वो ढाई साल (V)

 मेरे जीवन के उन पलों की कहानी जब मैंने खुद के अंदर की लड़की को पहचाना।

भाग ५: तड़प


अपने पास्ट को यादकर उससे लड़ते हुए इस वक्त मैं फिर से वर्तमान मे अपनी भाभी के कमरे मे था। अपने आंसुओं को थाम कर मैं अपने चेहरे पर दृढ़ता का भाव लाया और तय किया कि अपने सबसे करीबी शख्स यानी भाभी को अपने देविका होने का राज बता दूं, अपने औरत बनने के शौक के बारे में बता दूं। कह दूं उन्हें कि भाभी अपनी यह पीली साड़ी मुझे पहनाकर देवर से अपनी ननद बना लो। बता दूं उन्हें कि भाभी मुझे किसी लड़की से शादी करने में रुचि नहीं है बल्कि खुद लड़की बनने में रुचि है। कह दूं उन्हें कि भाभी मुझे भी आप जैसे ही बड़े-बड़े स्तन अपनी छाती पर उगाने की तलब है और फिर उन्हें इसी पिंक ब्लाउज और पीली साड़ी के पल्लू में छिपाकर दुनिया घूमना चाहता हूं। मैं अब और पुरुष बने रहना नहीं चाहता हूं।

मैंने एक गहरी सांस ली और भाभी को अपना सच बताना शुरू किया, ‘भाभी….. वो…’ (मेरी आंखों में एक शर्म, एक झिझक आ गई, जिन हाथों में भाभी की पीली साड़ी और ब्लाउज थाम रखे थे, वो कांपने लगे, मन यह सोचकर घबराने लगा कि मेरे जीवन का सबसे बड़ा राज जानकर भाभी कैसे रिएक्ट करेंगी? फिर मेरा भविष्य क्या होगा? क्या भाभी और मेरा परिवार मुझे स्वीकारेगा या गालियां सुनाकर और मारपीट करके घर से निकाल देंगे। क्योंकि अक्सर लड़की बनने के शौकीन लड़कों के साथ यही तो होता है। कुछ ही पलों में ये सारे ख्याल मेरे मन में आ गए और मेरी आवाज कांपकर गले में ही अटक गई।)

भाभी – अब बता न… क्या छिपा रहा है? (मेरे चेहरे को प्यार से अपनी दोनों हथेलियों में लेते हुए, उन्होंने ममता के साथ मेरे एक गाल पर हाथ फेरते हुए कहा।)

इस ममतामयी एहसास से मेरे अंदर कॉंफीडेंस आया लेकिन पहले मुझे भाभी से एक वो भरोसा चाहिए था जिसके सहारे मैं इस राज को हम दोनों के बीच ही रखने में कामयाब हो जाऊं।

मैंने बाएं हाथ में भाभी के साड़ी – ब्लाउज पकड़े और दाएं हाथ से भाभी का हाथ अपने चेहरे से हटाते हुए उनकी हथेली अपनी हथेली में थाम ली. फिर उनकी आंखों में देखते हुए भावुकता के साथ कहा, ‘भाभी पहले प्रॉमिस करो आप कभी किसी को नहीं बताएंगी.’

भाभी – प्रॉमिस पागल। हम दोनों के बीच की बात कभी तीसरे को बताई है क्या मैंने? (मेरा हाथ अपने हाथों में थामे हुए मेरे गाल को एक मां की तरह चूमते हुए वो बोलीं।)

मैंने अपनी नजरें नीचे झुकाकर एक हाथ में भाभी का हाथ और दूसरे हाथ में थामे साड़ी-ब्लाउज की ओर देखते हुए कहना शुरू किया, ‘भाभी, पता नहीं आप कैसे रिएक्ट करेंगी। हो सकता है कि मुझ पर हंसें या नफरत करें या मुझसे घिन आने लगे…. (मेरी आंखें फिर नम हो गईं थीं। अपने जीवन का सबसे बड़ा राज उगलते हुए मेरी घबराहट चरम पर आ गई थी। गला सूखकर चिपकने लगा था और मुंह से बोल फूटना बंद हो गये और मैं इतना कहकर फिर अटक गया।)

भाभी ने मेरे हाथ से साड़ी-ब्लाउज लेकर बगल में रखे और मेरे हाथों की दोनों हथेलियां अपने हथेलियों में थामकर मुझे यकीन दिलाने वाले लहजे में बोलीं, ‘देव, हम देवर-भाभी से ज्यादा भाई-बहन या उससे भी ऊपर दोस्त जैसे हैं। मुझपे इतना भी ट्रस्ट नहीं है तुम्हें? और तुमसे नफरत और घिन का तो सवाल ही नहीं उठता, तुम तो मेरे लिए मेरे भाई से बढ़कर हो‘(मेरी झुकी हुई नजरों में देखते हुए बोलीं।)

मैं (उनकी दोनों हथेलियों को और अधिक मजबूती से पकड़कर उनसे आई कॉंटेक्ट तोड़ते हुए खुद पर शर्म करने के भाव से धीमे से बोला) – बहुत ट्रस्ट है भाभी, तभी तो इतना बड़ा राज आपके सामने खोलने का फैसला लिया।

भाभी (मेरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराकर) – बस फिर झिझकना कैसा? फटाफट बता.

मैं (भाभी का हाथ चेहरे से हटाकर फिर से उनकी हथेली अपनी हथेली में थामते हुए) – भाभी, मुझे….. वो….. लड़की….. (घबराहट में मेरी सांसे तेज चलने लगी थीं और बोल मुश्किल से फूट रहे थे, फिर भी तय किया कि बताना है)….. वो मुझे लड़की…. मतलब लड़की के कपड़े…….

ट्रिन्न्न्न्न…. ट्रिन्न्न्न्न…. मेरी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही ड्रॉइंग रूम में रखा कॉर्डलैस फोन घनघनाने लगा…..

भाभी (पीछे मुड़करे देखते हुए) – कहीं मम्मी का फोन तो नहीं… ठहर जरा मैं अभी आई (मेरे हाथों से अपने हाथ अलग करते हुए मेरे गालों पर प्यार भरी थपकी देकर भाभी ड्रॉइंग रूम में चली गईं।)

मैं बिस्तर पर वहीं का वहीं हाथ टिकाकर और सिर झुकाकर बैठ गया और अपनी तेज चलती सांसों को संभालने लगा।

तभी भाभी तेज कदमों से कमरे में आईं और ड्रेसिंग टेबल की एक दराज खोलते हुए बोलीं, ‘मम्मी को लेने जा रही हूं। वो तुझे बुला रही थीं, लेकिन तू थोड़ा रेस्ट कर, फेस वॉश कर ले…… (दराज में से कानों के दो टॉप्स निकालकर उन्हें पहनते हुए आगे बोलीं)… मैं यूं गई और यूं आई। फिर बातें करते हैं।’

अब मेरी घबराहट पहले से कम हो गई थी. पीली साड़ी उतारकर सवाल-कमीज पहनने के बाद भाभी को मैंने अब पहली बार गौर से देखा। उन्होंने सफेद रंग की चुस्त सलवार पर एक लाल सिंपल रेगुलर कुर्ती पहनी हुई थी। जो न ज्यादा चुस्त थी और न ज्यादा ढीली। उसकी आस्तीन भाभी की कोहनी तक थीं और छोटा गला था जिसमें उनका पूरा बदन ढंका दिख रहा था। लेकिन सांचें में तराशा उनका बदन ढंका हुआ भी आकर्षक लग रहा था। कोई कह नहीं सकता था कि वो एक बच्चे की मां हैं। उनका मेकअप, हेयरस्टायल और ज्वेलरी वही थे जो साड़ी पर थे (जानने कि लिए दूसरा भाग पढ़ें), बस उन्होंने ईयर रिंग्स की जगह अब टॉप्स पहन लिए थे।

भाभी बैडरूम से बाहर निकलते हुए बोलीं, ‘देव, please shut the door. मैं बस अभी आई। you are not feeling well so बैडरूम में ही बैठना। हम वहीं बात करेंगे। वैसे भी मम्मी देखेंगी ऐसे तो … Godddd सीन क्रिएट होना है।’ (वो आंखें बाहर निकालकर डरने की एक्टिंग करते हुए बोलीं।)

मैंने भाभी को भेजकर दरवाजा अंदर से बंद किया और फिर से भाभी के बैडरूम में ही आ गया और बिस्तर पर उसी जगह पर बैठ गया, जहां पहले बैठा था। पास ही भाभी की पीली साड़ी और पिंक ब्लाउज और ब्रा रखे थे। कुछ सैकंड्स बैठने के बाद मैं बिस्तर से पैर जमीन पर लटकाए-लटकाए ही साइड करवट लेट गया। मैं लेटा तो संयोग से भाभी के साड़ी और ब्लाउज मेरे चेहरे की नीचे आ गए।

उफ्फ… चेहरे पर साड़ी के उस मुलायम कपड़े का एहसास और ब्लाउज में से आती भाभी के पसीने और लेडीज परफ्यूम की मिक्स सोंधी-सोंधी खुश्बू ने फिर से मेरा मन विचलित कर दिया। मैंने भाभी का ब्लाउज उठाकर अपने चेहरे पर रख लिया और उसकी सोंधी-सोंधी खुश्बू सूंघने लगा। एक आनंद की अनुभूति मिली और मेरी आंखें बंद हो गईं।

आप गलत समझें उससे पहले ही बता दूं कि आम पुरुषों की तरह मुझे भाभी के बदन या पसीने की खुश्बू में रुचि नहीं थी। मुझे तो उस ब्लाउज में रुचि थी जिसमें से वो खुश्बू आ रही थी। न जाने क्यों लंबे समय से मुझे पहने हुए ब्लाउज में से आने वाली पसीने और परफ्यूम की खुश्बू बहुत आकर्षित करती है और यह आकर्षण उस महिला के प्रति नहीं होता जिसका कि ब्लाउज है। बल्कि यह खुश्बू सूंघकर मेरा खुद औरत बन जाने का मन करने लगता है। उस ब्लाउज को पहनने का मन करता है। अपने बदन से ऐसी खुश्बू पैदा करने का मन करता है। और यह आदत मुझे खुद के ब्लाउज सूंघ-सूंघ कर ही लगी। (ऐसा क्यों और कब से होने लगा, इसका किस्सा अगले हिस्सों में)

उस खुश्बू को सूंघकर मेरे अंदर की औरत देविका बेकाबू हुए जा रही थी। मैं उठा और फिर भाभी के ब्लाउज को हाथ में थामकर हर एंगल से उसका डिजाइन देखने लगा। उसका और साड़ी का कपड़ा टटोल-टटोल कर महसूस करने लगा। एक अजीब खुशी मिल रही थी कि जिस साड़ी को पहनने के लिए सुबह से तरस रहा था आखिरकार भगवान ने मेरी सुन ली, अब वो मेरे हाथ में थी।

मैंने ड्रेसिंग टेबल के आईने के सामने जाकर साड़ी का पल्लू अपने बाएं कंधे पर डाल लिया।

उफ्फ… पल्लू को कंधे पर डालते ही, साड़ी का स्पर्श पाते ही ऐसा लगा मानो जन्मों की मेरी कोई अधूरी इच्छा पूरी हो गई हो। मैंने पल्लू हटाया और झट से अपनी लैदर जैकेट उतारकर बिस्तर पर फेंक दी। फिर ब्लाउज उठाकर अपनी छाती से लगाकर आईने में देखा कि मुझ पर कैसा लगेगा। लेकिन अफसोस कि मैं घर में अकेला होने के बाबजूद भी साड़ी-ब्लाउज पहन नहीं सकता था क्योंकि पांच-दस मिनट में ही भाभी मम्मी को लेकर आने वाली थीं।

पर सुबह से जो बेचैनी थी मैं उसका अंत करना चाहता था इसलिए तय किया कि अपने पुरुष कपड़ों के ऊपर ही साड़ी लपेटकर उसे महसूस करते हुए हस्तमैथुन कर लूं। मैंने अपनी टीशर्ट सीने की तरफ मोड़कर सीने के ठीक नीचे एक गांठ लगाकर बांध ली जिससे मुझे ब्लाउज वाला फील मिलने लगा। फिर साड़ी का पल्लू बाएं कंधे पर डाल दिया। मेरा कार्गो लो वेस्ट था इसलिए साड़ी के पल्लू में से मेरी नाभि और पतली कमर साफ दिख रही थी।

आज से पहले मैंने जितनी बार भी क्रॉसड्रेसिंग की थी तो सिर से लेकर पांव तक कंपलीट क्रॉसड्रेसिंग की थी। कभी ऐसा नहीं हुआ था कि लड़की बनने की अपनी तलब को शांत करने के लिए लड़कियों से जुड़ी कोई एक चीज पहनकर हस्तमैथुन करके खुद को संतुष्ट किया हो। यह पहली बार होने जा रहा था।

मैंने ड्रेसिंग टेबल का दराज खोलकर उसमें एक बिंदी निकाली, ठीक वही गोल बड़ी गुलाबी बिंदी थी जो भाभी ने उस दिन लगाई थी। उसे माथे पर चिपकाते हुए मेरी नजर सामने ही रखे भाभी के ईयर रिंग्स पर पड़ी, साड़ी उतारते वक्त भाभी ने उन्हें ड्रेसिंग टेबल पर ही रखा छोड़ दिया था। यहां तक कि उनके पिन का लॉक तक नहीं लगा था। मैंने झट से उठाकर अपने कानों के छेद में ईयर रिंग के पिन घुसा दिए। चूंकि करीब पिछले छह महीने से मैंने कानों में कुछ भी नहीं पहना था तो छेद भर से गये थे। इसलिए मुझे पूरी ताकत से ईयर रिंग के पिन कानों में डालने पड़े। यह दर्दनाक तो था लेकिन लड़की बनने की खुशी और तड़प के आगे उस दर्द का कोई मोल नहीं था। मैंने ईयर रिंग का लॉक न लगाकर उन्हें टेम्पेररी कानों में लटका लिया ताकि तुरंत उतारे जा सकें।

अब मैंने खुद को आईने में देखा। टीशर्ट को मोड़कर ब्लाउज का शेप देकर उसके ऊपर से मेरे बाएं कंधे की ओर जा रहा भाभी की पीली साड़ी का पल्लू मेरी हाफ स्लीव टीशर्ट में मेरी गोरी बांहों को छूता हुआ जमीन में लटक रहा था, बांहो पर महीनों बाद महसूस किए साड़ी के उस स्पर्श से शरीर के रोएं खड़े हो गये थे। माथे पर गोल गुलाबी बिंदी और गले व कानों को छूते हुए कानों में बड़े से गुलाबी नग जड़े ईयररिंग ने चेहरे की खूबसूरती कई गुना बढ़ा दी थी, बस छोटे बाल रंग में भंग डाल रहे थे। मैंने अपने दोनों हाथों से झट से बालों में बीच की मांग निकाली और पल्लू को खींचकर सिर ढंक लिया।

सिर्फ पल्लू से ढंके सिर, ईयररिंग्स और बिंदी से मैं हमेशा जितना सुंदर तो नहीं, पर हां सुंदर तो लग रहा था। खुद को देखकर मेरा लिंग खड़ा हो गया। मैंने झट से कार्गो में हाथ डालकर उसे अपनी दोनों झांघों के बीच फंसा लिया। फिर खुद को आईने में देखते हुए अपने कूल्हे हिलाते हुए झांघों से लिंग को रगड़कर चरमसुख की प्राप्ति के प्रयास करने लगा। मेरी सांसें तेज हो गईं, उत्तेजना में अपने-आप ही मैं अपने दोनों हाथों से अपने सीने को ऐसे दबाने लगा मानो वो मेरे स्तन हों।

अपने जनाने (Feminine) चेहरे को आईने में देखकर, अपने सीने को लड़कियों के तरह सहलाते हुए और अपने लिंग को झांघों के बीच रगड़कर चरमसुख पाने में लगा मैं अपनी अंडरवियर में गीलापन महसूस करने लगा लेकिन चरमसुख से अभी आधे रास्ते दूर था, तभी दरवाजे की घंटी बज गई।

डर के मारे मेरे मुंह से निकाल – oooo Shit …

मैंने फटाफट सिर से पल्लू हटाकर साड़ी बिस्तर पर रखी, टीशर्ट की गांठ खोली और माथे से बिंदी निकालकर अपने कार्गो के पॉकेट में चिपका ली। तब तक दोबारा घंटी बजी। मैंने बिना कुछ सोचे-समझे हड़बड़ाहट में झटके से दोनों ईयररिंग्स कान से निकाले जिससे कान खिंच गये और मुंह से निकला, ‘आउच्च्च्च्च’. ईयररिंग्स ड्रेसिंग टेबल पर जहां के तहां रखकर मैं दर्द कर रहे कानों को सहलाता हुआ दरवाजा खोलने गया।

पास्ट (भूतकाल) – मई 2019

(चौथे भाग के अंत से शुरू)

घंटी उस दिन भी बजी थी लेकिन उस दिन पता नहीं था कि दरवाजे पर कौन है?

घंटी की आवाज सुनते ही मैं झट से बैडरूम में बने बालकनी के दरवाजे की ओर बढ़ी, दरवाजे की कुंडी खिसकाई और दरवाजा खोलकर बालकनी में जाने लगी। एक फीट दरवाजा खोल पाई थी कि मुझे अचानक याद आया कि मैं अभी देव नहीं, देविका के रूप में हूं और साड़ी पहन रखी है। मैंने फुर्ती से दरवाजा बंद किया। (मेरी हमेशा की यही आम आदत थी कि डोरबैल बजने पर पहले बालकनी से देख लेता था कि कौन है। आदत के मुताबिक उस दिन भी ऐसा ही किया। लेकिन उस दिन मैं एक औरत के रूप में था। अपने असली पुरुष रूप में तो नंगा भी बालकनी में चला जाऊं लेकिन एक पुरुष होते हुए भी साड़ी पहनकर एक सजी-धजी औरत बनकर बालकनी में जाने का मतलब था, पूरी कॉलोनी के सामने अपनी मर्दानगी को नीलाम कर देना। अपने मन में तो मैं खुद के मर्द होने पर शक करने ही लगा था लेकिन फिर यह बात दुनिया के सामने भी खुलकर आ जाती कि मुझे औरत बनने का शौक है और मैं कॉलोनी का हॉट टॉपिक बना जाता।)

मैं ये क्या गलती करने जा रहा था’, यह सोचकर मेरा मुंह फटा रह गया। मैंने दोनों हाथ अपने फटे मुंह पर रख लिए और घबराहट में दरवाजे से ही पीठ टिकाकर खड़ी हो गई। मेरी सांसें तेज हो गईं। जिन्हें कंट्रोल करने मैंने अपना सिर भी दरवाजे से टिका लिया। (हां, उस समय मैं एक मर्द की तरह ही सोचने लगा क्योंकि मुसीबत में मेरी सोच मर्दों वाली हो जाती थी। आखिर देविका राज तो एक मर्द यानी देव का ही थी तो छुपाना भी देव को ही था।) दरवाजे से टिके हुए कुछ ही पलों में मुझे अनेक ख्याल आ गये……

‘उफ्फ बाल-बाल बच गया। बालकनी में चला जाता और कोई देख लेता तो? कॉलोनी की आंटीज जो अक्सर अपने घर के बाहर खड़ी होकर झुंड में गॉसिप्स करती रहती हैं, मुझे देख लेतीं और पहचान लेतीं तो? कितना हंसतीं वो मेरे ऊपर, पूरी कॉलोनी में और जगह-जगह बात फैला देतीं कि मिश्रा जी का छोटा बेटा ‘छक्का’ है (समाज क्रॉसड्रेसर को यही तो बोलता है. उनकी भावनाएं कभी नहीं समझता), साड़ी पहनकर और औरतों का साज-श्रृंगार करके बालकनी में घूम रहा था। कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहता, घर पर भी खबर पहुंच ही जाती। और सामने वाले घर में रहने वाली लड़की जो अक्सर बालकनी में पढ़ती रहती है, वो देख लेती तो कॉलोनी की हर लड़की और लड़के को बता देती कि सामने वाले फ्लैट में रहने वाला लड़का ‘गे’ है, औरतों के कपड़े पहनता है, मैंने उसे साड़ी पहने देखा था। अभी कॉलोनी की जिन लड़कियों के सामने अपनी स्पोर्ट्स बाइक पर स्टाइल मारते हुए निकलता हूं, फिर वही लड़कियां मेरा मजाक बनातीं। नीचे सड़क पर क्रिकेट खेल रहे और बालकनी के सामने ही अक्सर झुंड में बैठे रहने वाले कॉलोनी के लड़के पता नहीं मेरा क्या हाल करते? मेरा सड़क से निकलना तक मुश्किल कर देते। बचपन में तो मेरे घर वाली कॉलोनी के लड़के मेरी लड़कियों जैसी चाल देखकर ही मुझे सीटी बजा-बजाकर छेड़ते थे, इस कॉलोनी के लड़कों ने तो मुझे साड़ी पहने देख लिया होता तो न जाने मेरा क्या हाल करते? पिछली कॉलोनी के लड़कों से तो कई गुना अधिक शरारती थे ये। मेरे घर से निकलने पर न जाने कैसे-कैसे भद्दे शब्द मुझे बोले जाते। गलती से भी कोई (आंटी, सामने वाले घर की लड़की या ये लड़के) मेरा फोटो खींच लेता तो पता नहीं वो फोटो कहां-कहां तक जाता। पूरी कॉलोनी, ऑफिस, मेरे रिश्तेदार, परिवार सब मेरे औरत बनने के शौक के बारे में जान जाते।

सड़क पर क्रिकेट खेलने वाला वो लड़कों का ग्रुप कॉलोनी के सबसे बदनाम लड़कों का ग्रुप था जो क्रिकेट के बहाने झुंड बनाकर मस्ती करता था और कॉलोनी की सभी लड़कियों पर नजर रखता था। वैसे वो सब उम्र में मुझसे छोटे हैं और मुझे भैया पुकारते हैं। चूंकि मेरे ही फ्लैट के गेट के बाहर और बालकनी के सामने खेलते हैं तो उनसे कई बार बात भी होती है। इसलिए पता था कि वो कितने ज्यादा शातिर किस्म के हैं। कॉलोनी की खूबसूरत तो छोड़िए, बदसूरत से बदसूरत लड़की पर उनकी नजर रहती है। लड़की कैसी भी हो, उन्हें बस सैक्स से मतलब है। इसलिए बालकनी के दरवाजे से टिके हुए तब दिमाग में ये भी ख्याल आया…

ये लड़के बदसूरत से बदसूरत लड़की को छोड़ते नहीं, मैं तो कॉलोनी की सबसे ज्यादा खूबसूरत लड़की दिख रहा हूं, बालकनी में जाता तो उनकी पक्का मुझ पर नजर पड़ जाती। और वो मुझे पहचान लेते कि बालकनी में ‘देव भैया’ लड़की बनकर घूम रहै हैं तो मेरा क्या हाल करते। एक तो मैं लड़का, ऊपर से साड़ी पहनकर कॉलोनी की सबसे खूबसूरत और सैक्सी लड़की दिख रहा हूं, मुझे वो अपना सैक्स टॉय बना लेते और मैं उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं पाता।

‘सैक्स टॉय’ से मुझे कॉलोनी के उस लड़के की याद आ गई जो कुछ ही समय पहले कॉलोनी छोड़कर चला गया। वो कुछ-कुछ मेरी तरह ही था और लड़की बनने का शौकीन था (शायद वो transgender रहा हो)। वो भी इनके ग्रुप में था और ये सब उसे लड़कियों के कपड़े पहनाकर उसके साथ हमबिस्तर हुआ करते थे. आपस में उसे अपनी पत्नी बताया करते थे। उनके पास सैक्स करने के लिए कोई ठिकाना नहीं था तो वो अक्सर मुझसे मेरा फ्लैट मांगा करते थे जो मैं नहीं देता था। बालकनी के दरवाजे से मुंह पर हाथ रखकर टिके हुए उस एक पल में ज़हन में ख्याल आया….

उस लड़के को वो सबके सब अपनी पत्नी बनाकर रखते थे। वो अब चला गया। अगर आज ये लड़के मुझे औरत के रूप में देख लेते तो उस लड़के की कमी मुझे अपनी ‘पुरुष पत्नी’ बनाकर पूरी करते। रात-दिन मुझे उन्हें बिस्तर पर यौन सुख देना पड़ता, वरना सारे शहर में मेरा राज खोलकर मुझे बदनाम कर देते। पहले तो उनके पास सैक्स करने जगह नहीं थी, मेरा तो खुद का फ्लैट है, जब भी किसी लड़के का मन होता, मुझे अपनी पत्नी बनाकर जिस्म की प्यास बुझाने आ जाता। दर्जनभर लड़के हैं, चौबीसों घंटे मुझे उनकी पत्नी बनकर उन्हें यौन सुख देने के लिए न जाने क्या-क्या नहीं करना पड़ता।

इन्हीं ख्यालों में खोए हुए मेरे ज़हन में एक तस्वीर उभरने लगी थी जहां मेरे बिस्तर पर उस ग्रुप के दो-तीन लड़कों ने मुझे साड़ी पहनाकर लिटा रखा है और वे निर्वस्त्र होकर मेरे जिस्म के साथ खेल रहे हैं।

उफ्फ…. कितना असहाय महसूस कर रहा था मैं। कितना अधिक सहम गया था उस दिन मैं। लेकिन यही सच है कि क्रॉसड्रेसिंग तब तक ही एक खूबसूरत जन्नत जैसा एहसास लगती है जब तक कि यह चारदीवारी के भीतर आपके दिल में दफन एक राज रहे। जैसे ही यह राज सार्वजनिक होने को होता है, जान निकलकर हलक में आ जाती है। क्योंकि एक मेल क्रॉसड्रेसर चाहे कितना भी सुंदर औरत दिखे, समाज के लिए वो हंसी का पात्र और मर्दों के लिए सैक्स टॉय ही माना जाता है।

ऐसे ही हजारों ख्याल मेरे मन में आ गये कि अगर अपने औरत रूप में बालकनी का दरवाजा खोल देता तो मेरे साथ क्या-क्या होता? ये ख्याल तब टूटे जब दोबारा डोरबैल बजी। डोरबैल की आवाज सुनकर कुछ पलों की उस घबराहट और ख्यालों की दुनिया से मैं तुरंत बाहर आई और फुर्ती से अपना फोन उठाया और उस शख्स का नंबर डायल करने लगी जो कि मुझसे मिलने आने वाला था। नंबर इसलिए डायल कर रही थी क्योंकि दरवाजा खोलने से पहले मैं कंफर्म करना चाहती थी कि घंटी बजाने वाला वही शख्स है या फिर कहीं कोई और तो गेट पर नहीं?

नंबर डायल करती, उससे पहले ही फोन की घंटी बजने लगी। उसी शख्स का फोन था जो मुझसे मिलने आने वाला था। मैं श्योर हो गई कि वही शख्स है दरवाजे पर, मैं दरवाजा नहीं खोल रही तो उसने फोन लगा दिया है।

मैंने झट से फोन उठाकर बोला, ‘बस दो मिनट रुको।’

ऐसा कहकर फोन काट दिया। फोन उधर ही बिस्तर पर पटककर मैंने फुर्ती से ड्रेसिंग टेबल पर रखा एक ज्वेलरी बॉक्स खोला जिसमें चांदी की पतली-पतली पायल थीं जिनमें लॉक की जगह पर चार-चार घुंघरू लटक रहे थे। मैंने फुर्ती से अपने दोनों पैरों में उन्हें पहन लिया।

तभी तीसरी बार घंटी बजी। मैं फ्रस्ट्रेशन में बुदबुदाई, ‘उफ्फ… दो मिनट का भी सब्र नहीं होता इसे’

फिर मैंने तुरंत बिस्तर से फोन उठाया और अपने फ्लैट के मुख्य दरवाजे का लॉक खोलने की कमांड दी। मेरा फ्लैट कुछ ऐसा बना है कि ग्राउंड फ्लोर पर कार और बाइक पार्किंग के साथ-साथ एक स्टोर रूम टाइम कमरा बना है। फर्स्ट फ्लोर पर मेरा फ्लैट है। दरवाजे पर ब्लूटूथ वाला स्मार्ट लॉक लगा रखा है जिससे कि आने वाले व्यक्ति को बालकनी से देखकर फोन से स्मार्ट लॉक खोल दिया जाए और नीचे आने की मेहनत न करनी पड़े। मुख्य दरवाजा खुलते ही करीब 50 से 60 मीटर चलकर अंदर आना पड़ता है और सामने ही सीढ़ियां हैं। जैसे ही सीढ़ियां खत्म होती हैं, मेरे फ्लैट का एक और दरवाजा है जो ड्रॉइंग रूम में खुलता है। उस दरवाजे के सामने भी बालकनी है, यह फ्लैट की दूसरी बालकनी है। इस बालकनी के सामने एक बॉयज हॉस्टल बना हुआ है। कोई व्यक्ति सीढ़ियां चढ़कर जैसे ही मेरे फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचता है, यहां भी उसे एक डोरबैल बजानी होती है।

स्मार्ट लॉक को जैसे ही मैं मोबाइल से कमांड दूं तो लॉक में लगा स्पीकरा आने वाले मेहमान को बता देता है कि ‘Welcome. Door is open now. Push and Come in.’ इसके बाद चलकर आने और सीढ़ियां चढ़कर मेरे फ्लैट के दूसरे दरवाजे तक आने में अमूमन एक मिनट लग जाता है।

मेरे सजने-संवरने में जो भी कमी बाकी रह गई थी वो इसी एक मिनट में पूरी करनी थी। मुख्य दरवाजा खोलने की कमांड मोबाइल से देते ही फोन बिस्तर पर पटककर मैंने फुर्ती से भागकर वार्डरोब के दराज से लिपस्टिक जैसी एक स्टिक निकाली और आईने के सामने पहुंचते-पहुंचते उसे खोल भी लिया। वह मांग में भरने वाला सिंदूर था। हां, मैं एक शादीशुदा औरत की तरह अपनी मांग भरने जा रही थी। आईने के सामने खड़े होकर मैंने अपनी मांग भर ली। और फिर ड्रेसिंग टेबल पर सामने ही रखा एक और ज्वेलरी बॉक्स खोला। इसमें मंगलसूत्र था। मैंने एक सेकंड के सौवें हिस्से में उसे निकाला और गले में पहन लिया। मेरा गला अब तक सूना था लेकिन अब बड़ा-सा मंगलसूत्र मेरे गले में लटक रहा था, जिसका पेंडेंट मेरे ब्लाउज के लंबाई खत्म होने के तीन अंगुली ऊपर ही मेरे स्तनों के उभार के सामने बिल्कुल बीचों-बीच लटक रहा था।

तभी मेरे दूसरे दरवाजे की भी घंटी बजी। आखिरकार सुबह से जिसका इंतजार था और जिसके लिए मैं देव से देविका बनने के लिए सज रहा थी, वो भी एक शादीशुदा औरत की तरह, उसके और मेरे बीच बस एक दरवाजा था। इस मुलाकात की खूबसूरत तड़प का अंत नजदीक था।

मेरे चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई। यह मुस्कुराहट बता रही थी कि जो दो मिनट पहले मैं बालकनी का दरवाजे खोलने की गलती के कारण अपनी पोल खुलने से घबरा रही थी, अब वो घबराहट गुम हो गई थी और फिर से मैं खुद क्रॉसड्रेसिंग की दुनिया को एंजॉय करने लगी थी।

घंटी सुनते ही मैंने एक झलक खुद को आईने में देखा, मेकअप, बिंदी, लिपस्टिक, काजल, झुमके, सिंदूर भरी मांग, साड़ी, चूड़ियां, मंगलसूत्र सब परफेक्ट था। कोई सपने में भी नहीं कह सकता था कि छरहरे बदन की बड़े-बड़े स्तनों वाली यह लंबी औरत वास्तव में एक पुरुष है। देखने वाला मुझे किसी रईस मर्द की खूबसूरत नवविवाहिता पत्नी ही कहता।

पायल पहनने के लिए झुकने के कारण मेरे खुले बाल चेहरे के आगे आ गये थे। दाहिने हाथ से मैं अपने सभी बालों को बाएं कंधे से आगे की तरफ बाएं गाल के पास ले गई। बस दाहिने गाल पर दो-चार बालों की लटें लटक रही थीं। आईने में अपने लुक को एक स्माइल देकर फाइनल करते हुए मैं दरवाजा खोलने की लिए ड्रॉइंग रूम की ओर बढ़ी। मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी उससे मिलने की, चाल में मतवालापन था। साड़ी में छोटे-छोटे कदम आगे बढ़ाते वक्त कमर लचक रही थी और गोल व चौड़े-चौड़े कूल्हे हिल रहे थे। मैं पीछे से अपनी लचकती कमर और हिलते कूल्हे देख तो नहीं सकती थी लेकिन इतनी कॉंफीडेंट थी कि पीछे से देखने वाला कोई भी पुरुष मुझे अपनी बांहों में भरने का ख्वाब पालने लगेगा। मुझे मीठी चाश्नी मानकर मधुमक्खी की तरह मेरे पीछे-पीछे चला आएगा। मेरी मुस्कुराहट और चाल के मतवालेपन में मेरे हाथों की चूड़ियों की खनखनाहट और पैरों की पायलों की छम-छम किसी सम्मोहित करने वाली धुन का एहसास दे रही थीं। और इसका सबसे ज्यादा सम्मोहन मेरे ऊपर ही हो रहा था। क्योंकि तन से तो मैं औरत बन ही गई थी, लेकिन वास्तव में यह तन जिस पुरुष यानी देव का था, उसका हक न तो अब तन पर रहा था और मन में भी रत्ती भर देव के लिए जगह नहीं बची थी। मेरी पायल की छम-छम, चूड़ियों की खनखनाहट व कलाईयों में उनका वजन और कानों में झूल रहे भारी-भारी झुमके जो चलते वक्त मेरे गले और गालों को बार-बार चूम रहे थे, यह सब मुझे तन और मन दोनों से औरत होने का एहसास करा रहे थे। और यह एहसास बहुत ही ज्यादा खूबसूरत था।

दरवाजे पर पहुंचते ही मैंने एक बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ गहरी सांस ली और फिर नजरें झुकाकर मुस्कुराते हुए दरवाजा खोल दिया।

दरवाजा खोलते ही नजरें उठाकर ऊपर देखा तो मेरी आंखें फटी रही गईं, चेहरे की हवाईयां उड़ गईं और मुस्कुराहट गुम हो गई, अपने आप ही मुंह खुला का खुला रह गया, टांगें कांपने लगीं, दिल की धड़कनें तेज हो गईं। दरवाजा खोलने वाले हैंडल से दायां हाथ मैंने पीछे की तरफ इस तरह खींचा मानो 440 वोल्ट का झटका लगा हो। जिस बाएं हाथ को मोड़कर मैंने अपना पल्लू संभाल रखा था, वो अपने आप सीधा हो गया और पल्लू हाथ से खिसककर जमीन पर लटकने लगा। मैं बुत बनकर खड़ी रह गई।


किसे खड़ा देख लिया था मैंने दरवाजे पर जो मेरे चेहरे की खुशी फाख़्ता हो गई? क्या दरवाजे पर वो शख्स नहीं था जिसके लिए मैं सुबह से एक खूबसूरत औरत दिखने के लिए सज रहा था? या फिर वही शख्स था और मेरे लिए कुछ ऐसा सरप्राइज लेकर आया था जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी? या फिर कोई और था? कहीं कॉलोनी के उन शरारती लड़कों में से तो कोई नहीं था? अगर ऐसा था तो उन्होंने मुझे औरत रूप में देखकर मेरे साथ क्या किया? मैंने अपनी मांग क्यों भरी और मंगलसूत्र क्यों पहना? क्या मेरा कोई पति था? क्या मेरे किसी पुरुष के साथ भी संबंध थे? या फिर आम क्रॉसड्रेसर की तरह मुझे भी एक शादीशुदा औरत, हाउसवाइफ या पत्नी की तरह सजने का शौक था? क्या मैंने भाभी को अपना क्रॉसड्रेसिंग का राज बता दिया? भाभी के बैडरूम में जब मैं उनकी पीली साड़ी को सिर पर ओढ़कर आईने के सामने खड़ा था और डोरबैल बजी, क्या तब दरवाजे पर भाभी ही थीं या वहां भी मुझे कुछ चौंकाने वाला था?

इस भाग ने भी आपके मन में अनेक सवाल उठाए होंगे। पिछले भागों के भी अनेक सवालों के जबाव मिलना बाकी हैं। उन सवालों को मैंने यहां दोहराया नहीं है। माफी चाहूंगी कि इस भाग में पिछले सभी सवालों से उपजी किसी भी गुत्थी को सुलझा नहीं सकी। दरवाजे पर कौन था, इसके जबाव को मैंने थोड़ा लंबा खींच लिया। लेकिन सब्र का फल बहुत मीठा होता है। भले ही यह फल उस समय मेरे लिए कड़वा रहा हो या हो सकता है कि न भी रहा हो, लेकिन भरोसा है कि आपके लिए जरूर मीठा साबित होगा। वहीं एक गुजारिश करूंगी कि छठा भाग अगले हफ्ते तक आपको पढ़ने मिलेगा। तब तक संभव हो तो इस कहानी के सभी भाग एक बार फिर से पढ़ लें जिससे छठे भाग को पढ़ने में आपको अधिक आनंद मिलेगा। आप खुद को कहानी से जुड़ा पाएंगे। क्योंकि पिछले सभी पांच भागों से छठे भाग का गहरा जुड़ाव होगा। – देविका

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Part 5

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