वो ढाई साल (I)

मेरे जीवन के उन पलों की कहानी जब मैंने खुद के अंदर की लड़की को पहचाना।

भाग १: वो लड़की है न?

कॉफी शॉप में बैठा मैं याद कर रहा था करीब पांच साल पुराने उस वक्त को जब श्रेया के साथ तीन साल पुराना मेरा रिश्ता टूट गया था। सब कितना अच्छा था न तब। एक खूबसूरत गर्लफ्रेंड थी, महंगी बाइक थी, अच्छी नौकरी का ऑफर था और श्रेया के अलावा भी दूसरी लड़कियां लाइन देने के लिए थीं। लेकिन ब्रेकअप के बाद मानो सब बिखर गया. कुछ महीने डिप्रेशन रहा, लेकिन नौकरी पर चढ़ते ही उससे उबरने लगा। इस दौरान श्रेया की शादी भी हो गई, जिसका गम दिल में घर कर गया। लेकिन उसे भी सह लिया।

पर अभी तो इससे भी बुरा कुछ होना था जिसकी कल्पना जीवन में कभी न की थी कि मेरे साथ ऐसा भी हो सकता है, कि मैं ऐसा भी कर सकता हूं। हालांकि, वो बुरा समय अब आज खूबसूरत यादों सा लगता है। जिन्हें फिर से जीने की तमन्ना होती है।

करीब साढ़े तीन साल पहले की उन घटनाओं की कड़ी ने मेरे शरीर, मेरी आत्मा, मेरी पसंद-नापसंद, मेरी सोच सबको बदल दिया। कुछ सालों पहले खुद के लिए हैंडसम हंक सुनकर गर्व का अनुभव करने वाला मैं अब अपने लिए ब्यूटीफुल चिक, गॉर्जेस वूमेन और प्रिटी गर्ल शब्द सुनने के लिए तड़पता हूं। हां, मैं अब लड़की बनना यानी क्रॉसड्रेसिंग करना पसंद करता हूं।

कुछ सालों पहले जिम करके अपने बाईसेप्स देखने और दिखाने से ज्यादा अच्छा अब मुझे बैकलेस ब्लाउज में अपनी पीठ देखना और दिखाना लगने लगा है। बाईसेप्स और चेस्ट दिखाकर लड़कियों को लुभाने से अच्छा, ट्रांसपेरेंट साड़ी में अपनी पतली कमर और बैकलेस ब्लाउज में नग्न पीठ दिखाकर लड़कों से लार टपकवाना अच्छा लगता है। कलाई में बड़े डायल की फास्ट ट्रैक घड़ी पहनने की जगह चूड़ियां पहनकर उन्हें खनखनाने के इच्छा होती है। अब स्किन टाइट वेस्ट में अपनी चौड़ी छाती दिखाने की नहीं, बल्कि ब्रा और ब्लाउज पहनकर अपने स्तनों को साड़ी के पल्लू से ढकने की आरजू रहती है। जो स्पाइक हेयरकट उस वक्त कूल लगता था, अब उसे आईने में देखकर लगता है कि काश मेरे भी कमर तक लंबे बाल होते जो बार-बार मेरे चेहरे पर आते और मैं उन्हें अपनी नेल पेंट से सजी खूबसूरत अंगुलियों से कान के पीछे ले जाता तो मेरी कलाई की चूड़ियां खनखनाने लगतीं। फिर नजर जब कानों के दोनों छेदों पर जाती है तो लगता है कि बड़े-बड़े झुमके और ईयरिंग्स के बिना ये कितने सूने लग रहे हैं। हां, मेरे दोनों कानों में छेद हैं जिनमें कुछ सालों पहले तक मैं छोटी-छोटी बालियां पहनकर बाइक पर एट्टीट्यूड में घुमा करता था, लेकिन अब उन छेदों को इस तरह के बड़े-बड़े झुमकों से भरने की इच्छा होती है कि सिर हिलाऊं तो वे मेरे गाल और गर्दन को छूकर सारे बदन में झुरझुरी पैदा कर दें। पैरों में मेरे पसंदीदा वुडलैंड के जूते अब बोझ से लगने लगे हैं। जब चलते वक्त उनकी ठक-ठक की आवाज आती है तो लगता है कि उन्हें फेंककर पायल और सैंडिल पहन लूं। कितनी मधुर ध्वनि लगती थी वो जब मेरे पैरों से पायलों की छम-छम और सैंडिल्स की टिक टॉक ध्वनि एक साथ कानों में गूंजती थी। मन होता है कि आखों पर रेबैन की सनग्लासेस नहीं, उनमें काजल हो। माथे पर बड़ी-सी बिंदिया और होठों पर सुर्ख लाल लिपस्टिक हो।

हालांकि, जब छह महीने पहले तय किया था कि क्रॉसड्रेसिंग छोड़कर अब मर्दों की तरह रहूंगा। तब औरत होने के एहसास से मुझे बिल्कुल प्यार नहीं था। पर आज फिर से उस एहसास को जीने की तड़प है। फिर से साड़ी पहनकर बलखाने और नजरें झुकाकर पल्लू से अपना आंचल छिपाने की तड़प है, फिर से अपना भारी लहंगा संभालने की ललक है। चूड़ियां खनकाना चाहता हूं, पायल छनकाना चाहता हूं। छह महीने से कान तरस रहे हैं यह सुनने को कि बस कोई तो एक बार मुझे देव नहीं, देविका कहकर पुकारे।

लेकिन, अब यह संभव नहीं। अपनी दर्जनों साड़ियां, सूट, लहंगा और ड्रेसेज, मेकअप और ज्वेलरी सब मेरे अंदर के मर्द ने छह महीने पहले नष्ट कर दिया था। लेकिन, औरतों पर मर्दों का बस कहां चलता है भला। मेरे अंदर की औरत ने मेरे अंदर के मर्द को काबू कर ही लिया। लेकिन काबू पाने में उसने देर कर दी। काश कि छह महीने पहले ही वह काबू करके मुझे एहसास करा देती कि मुझे औरत होने से नफरत नहीं, बहुत प्यार है तो अभी मैं साड़ी में बैठा इठला रहा होता, शर्मा रहा होता। हां, तब मुझे नफरत थी लड़की बनने से, पर अब प्यार है। लेकिन मेरे अंदर की औरत के तले दबा मेरे अंदर का मर्द अभी भी मुझे क्रॉसड्रेसिंग के स्वर्ग में लौटने देना नहीं चाहता है। इसलिए अंदर की औरत की प्यास बुझाने इंटरनेट का रुख किया तो आईसीएन की कहानियों में उसे जीने लगा। वहां मेरे जैसी ही एक औरत ने मुझे अपनी कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया।

उफ्फ… कहानी लिखने के लिए कैसे याद करता वो वक्त जिसका सोचते ही धड़कनें तेज हो जाती हैं, बैचेनी बढ़ती जाती है। कहानी लिखते वक्त यह बेचैनी मुझसे कुछ ऐसा-वैसा न करा दे इसलिए लिखने के लिए लैपटॉप उठाकर कॉफी शॉप चला आया।

लैपटॉप खोलकर अपनी इन्हीं खूबसूरत यादों में मैं खोया हुआ था (या कहूं कि खोई हुई थी) कि कहां से कहानी शुरू करूं। तभी अचनाक घर से मम्मी का फोन आ गया।

मम्मी – बेटा, जल्दी से घर आ जा।

मैं – क्यों? क्या हुआ मम्मी?

मम्मी – बस तू आ जा। और हां, कुछ अच्छा सा पहनकर आना।

मैं – अरे बताओ तो क्या हुआ? कहीं जाना है क्या? तबीयत ठीक है न आपकी?

मम्मी – अब सवाल मत कर और तू आ जा। बता कब तक आएगा?

मैं – मैं अभी बाहर हूं। फ्लैट जाकर लैपटॉप और सामान रखता हूं, फिर आता हूं। अगर बहुत इमर्जेंसी है तो सब सामान लेकर यहीं से सीधा आ जाता हूं।

मम्मी – नहीं, नहीं फ्लैट चला जा। तुझे कपड़े भी तो बदलने हैं। और कुछ ढंग का पहनकर आना जिसमें तू अच्छा दिखे।

मैं – अब ऐसा ढंग का क्या होता है? शेरवानी पहन आऊं क्या? (मैंने हंसते हुए बोला)

मम्मी – अरे मैं शादी में जाती हूं तो दुल्हन बनके जाती हूं क्या। अच्छी साड़ी पहनकर जाती हूं। ऐसे ही तू आजा अच्छे से तैयार होकर।

ऐसा कहकर मानो मां ने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। साड़ी पहनने के ख्यालों में तो मैं पहले से ही खोया था। मैंने झट से जबाव दिया – तो ऐसा बोलो न। चलो मैं भी साड़ी पहनकर आ जाता हूं। लेकिन मेरे पास साड़ी तो है नहीं। घर आ जाता हूं, भाभी पहना देंगी। (मैंने मुस्कुराते हुए भोलेपन से मां से कहा। लेकिन फोन के स्पीकर को बिल्कुल मुंह पर लगाकर धीरे से बोला। ताकि कॉफी शॉप में कोई सुन न ले।)

मम्मी – बकवास मत कर। कुछ सूट-वूट टाइप का पहन आ।

मैं – क्या! सलवार सूट? मम्मी वो भी नहीं है। (और मैं हंस दिया। उस हंसी में थोड़ी प्यारी सी शर्म भी थी, थोड़ा मां से दिया मसखरापन भी।)

मम्मी – गधे, सूट मतलब वो क्या कहते हैं, ब्लेजर वगैरह। अब मजाक मत कर जल्दी निकल वहां से।

मैं – हाहाहा, ठीक है, ठीक है। बस फ्लैट से कपड़े बदलकर निकलता हूं।

मम्मी – एक मिनट सुन। थोड़ी दाढ़ी भी सैट कर लेना। क्लीन शेव करके मत आना, लड़की लगता है।

मैं – वो तो मैंने कल ही करा लिया। एक काम करता हूं फिर साड़ी पहनकर ही आ जाता हूं। पूरी लड़की लगूंगा। (मैंने खिलखिलाते हुए कहा। हालांकि, मैंने क्लीन शेव नहीं कराया था। लेकिन मां को चिढ़ाने के लिए ऐसा बोल दिया।)

मम्मी – हरामजादे, फोन रख (उन्होंने खिसियाहत भरे गुस्से में कहा। मैंने हंसते हुए फोन कट कर दिया।)

कॉफी शॉप में बैठा जब मैं अपनी क्रॉसड्रेसिंग पास्ट की यादों में खोया हुआ कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था, तब उन यादों के चलते मेरे लिंग में तनाव आने लगा था और शरीर में बेचैनी। मम्मी के साथ इस बातचीत ने लिंग के तनाव और बेचैनी को और बढ़ा दिया था. करीब पांच-दस मिनट तक मैंने कुर्सी पर बैठे-बैठे ही खुद को सामान्य करने की कोशिश की और फिर अपना बैग पैक करके फ्लैट की ओर चल दिया।

लेकिन क्रॉसड्रेसिंग की वो यादें और मम्मी से हुई बातचीत मुझे बार-बार याद आ रही थी। मैं तैयार होने बाथरुम में गया। शेव सैट करने के लिए खुद को आईने में देखा तो मम्मी की कही बात याद आई, ‘क्लीन शेव करके मत आना, लड़की लगता है।’ फिर से बेचैनी बढ़ने लगी।

पिछले कई दिनों से मेरा लड़कियों की तरह सजने संवरने का मन तो था ही, लेकिन अब यह मुमकिन नहीं था। एक तो मेरे पास पहनने के लिए कुछ नहीं था और दूसरा कि मुझे पहनना भी नहीं था, चाहे जो हो जाए। क्योंकि भले ही मेरा मन औरत बनने को मचलता है लेकिन मैंने ठान लिया है कि मुझे मर्द ही रहना है। कभी लड़कियों के कपड़े नहीं पहनूंगा, बस ख्यालों में ही खुद को लड़की बनने की कल्पना किया करूंगा। फिर धीरे-धीरे इससे भी पीछा छूट जाएगा, जैसे कि पिछले छह महीने से क्रॉसड्रेसिंग से छूट गया।

लेकिन उन यादों और मम्मी से हुई बातों से जो बेचैनी बढ़ी थी, उसका अंत करना जरूरी था। मैं अपने घर से करीब 30 किलोमीटर दूर खुद के ही एक फ्लैट में रहकर वर्क फ्रॉम होम की जॉब करता हूं। हफ्ते-दस दिन या पंद्रह दिन में एक बार घर जाता हूं। जब कभी एकाध बार घर जाने वाले दिन यदि औरत बनने की बेचैनी रहती है तो उसे अपने बिस्तर पर आंख बंद करके अपने शरीर से लड़कियों की तरह खेलते हुए शांत कर लेता था। ताकि परिवार के सामने सामान्य रहूं। हालांकि ऐसा एक-दो बार ही हुआ था क्योंकि छह महीने पहले तक जब मैं क्रॉसड्रेसिंग किया करता था, तब लड़की बनना मजबूरी लगती थी और मुझे पसंद नहीं था। लेकिन जब क्रॉसड्रेसिंग छोड़ दी, तब उसकी अहमियत पता लगी और आए दिन लड़की बनने का मन करने लगा। इसी दौरान जब घर जाना होता था और जब कभी ऐसा मन होता था तो खुद को लड़की समझकर शरीर के साथ आंख बंद करके खेल लिया करता था।

आज भी ऐसा ही मन और बेचैनी थी। लेकिन यह पहले से कहीं अधिक थी। आईने के सामने खड़ा था। मम्मी के शब्द याद आ रहे थे कि क्लीन शेव में लड़की लगता है। मन में ख्याल आया कि साड़ी नहीं पहन सकता तो क्या अपना लड़कियों जैसा चेहरा तो देख सकता हूं। वैसे भी मम्मी से तो कह ही दिया है कि क्लीन शेव कल ही कराई है।

और मैंने रेजर निकालकर खुद को क्लीन शेव कर लिया। वैसे मेरी दाढ़ी भी अधूरी आती है और मूंछें भी घनी नहीं हैं। दाढ़ी मैं अपनी ठोढ़ी के हिस्से पर ही स्टायलिश तरीके से रखता हूं और साथ में मूंछें। मेरी दाढ़ी और मूंछों के बाल बहुत मुलायम है क्योंकि मैं अधिक क्लीन शेव नहीं करता। इसलिए जब क्लीन शेव करता हूं तो स्किन दूसरे मर्दों की तरह कठोर नहीं, कोमल सी लगती है। जिस पर कि दाढ़ी-मूछों के रूएं तक नहीं दिखते। इसलिए ही मेरा चेहरा क्लीन शेव में लड़कियों की तरह दिखता है। पर आज करीब छह माह बाद मैंने खुद को क्लीन शेव किया था। आखिरी बार तब किया था, जब मैंने अपने बदन पर लिपटी हुई साड़ी का खूबसूरत एहसास महसूस किया था। अपने ही जन्मदिन पर मैं औरत की तरह सजा था।

क्लीन शेव में मैंने खुद को आईने में देखा तो सबसे पहले दोनों हाथों की अंगुलियां मेरी छाती के निपल्स पर गईं और मैंने अपने अंदर की औरत को अपने शरीर के साथ लड़कियों की तरह खेलकर शांत करने लगा। लेकिन, कुछ मिसिंग लगा तो कंघी से मैंने अपने बालों में बीच की मांग निकाली और फिर आईने के सामने ही शरीर से खेलने की वही प्रैक्टिस शुरू कर दी। कुछ देर बाद मेरी आंखें बंद हो गईं और मैं खुद को एक सजी – धजी औरत होने के कल्पना लोक में खो गया जो अपने स्तनों के साथ खेल रही थी. कुछ ही पलों बाद देविका यानी मेरे शरीर की औरत को, मेरी आत्मा को चरम सुख प्राप्त हो गया।

फिर फटाफट मैंने नहाया और एक स्काय ब्लू डेनिम, ब्लैक टी-शर्ट और ब्लैक ब्लेजर, साथ में फॉर्मल ब्लैक शूज पहनकर तैयार हो गया। खुद को आईने में देखा तो दुबला-पतला सा लग रहा था और मम्मी सही थीं, जेंट्स वियर में भी चेहरा लड़कियों सा लग रहा था। ब्लेजर और उसके मैचिंग में पहनी स्किन टाइट डेनिम में मैं दुबला-पतला और छरहरा तो लग ही रहा था, साथ में क्लीन शेव के चलते लड़कों वाला कॉन्फिडेंस ही नहीं आ पा रहा था। अब पछतावा हो रहा था कि क्यों मैंने क्लीन शेव किया?

(हालांकि, पिछले छह महीनों में मैंने थोड़ा वजन बढ़ाया है। लेकिन फिर भी मेरा वजन 59 किलो और कद पांच फीट सात इंच है, कमर 28 है। हालांकि मैं हमेशा से ऐसा दुबला-पतला छरहरा नहीं था। कुछ सालों पहले यानी कि ब्रेकअप से पहले करीब 72-75 किलो वजन हुआ करता था। अच्छे खासे मसल्स थे। वो कहानी बाद में।)

फिलहाल थोड़ी देर खड़ा-खड़ा मैं सोचने लगा कि पक्का कहीं शादी में जाना होगा। इस तरह तो लड़कियों के सामने मेरी पर्सनैलिटी बिल्कुल खराब दिखेगी। मैंने तय किया कि मम्मी चाहे जो कहें मैं कैजुअल में ही जाऊंगा, कम से कम एक कांफीडेंस तो रहेगा। मैंने झट से अपने पहने हुए कपड़े उतारे और एक लूज फिट कार्गो निकाला, साथ में लैदर की बॉम्बर जैकेट, टी शर्ट वही रखी। इन ढीले कपड़ों में मैं थोड़ा हेल्दी लगने लगा। फिर वुडलैंड के ट्रेकिंग शूज पहनते ही मेरा कद भी करीब तीन इंच बढ़ गया।

इस तरह मैं यानी देव तैयार होकर अपनी बाइक उठाकर घर के लिए निकल गया, देविका से जुड़ी, क्रॉसड्रेसिंग से जुड़ी सभी यादों को पीछे छोड़कर। लेकिन कहीं न कहीं ये चीज तो दिमाग में थी कि आज मां का तो पता नहीं, लेकिन भाभी जरूर मुझे ‘लड़की’ कह-कहकर मेरी टांग खींचने वाली हैं।

क्लीन शेव में मैंने भाभी का सामना अब तक सिर्फ एक बार किया था। वो भी तब जब मैं क्रॉसड्रेसिंग नहीं किया करता था और थोड़ा भारी-भरकम भी था। बात 2014 की है। मैं तब भी घर के बाहर रहकर पढ़ाई करता था। अपना लुक बदलने के लिए मैंने क्लीन शेव कराया था और घर भी पहुंच गया। भाभी छत पर कपड़े सुखा रही थीं। मेरा डेढ़ साल का भतीजा रो रहा था तो उसे गोद में उठाया और भाभी को देने छत पर गया। मैं उसे तोतली भाषा में चुप कराते हुए भाभी के पास पहुंचा तो देखते ही भाभी जोर से हंसने लगीं और बोलीं, बिल्कुल लड़की दिख रहे हो और लड़कियों जैसे ही बोल रहे हो।

बता दूं कि मेरी आवाज भी शुरू से थोड़ी कच्ची है। वह लड़कों की तरह न तो बहुत भारी है और न ही लड़कियों की तरह हल्की। थोड़ी कच्ची सी है। फोन पर तो कई बार पहले मुझे लोग लड़की ही समझ लेते थे। फिर समय के साथ थोड़ी भारी तो हुई, लेकिन बस इतनी कि बिल्कुल लड़कियों जैसी न लगे। मुझे कभी अपनी आवाज पसंद नहीं आई। उस दिन जब मैं तोतलाकर भतीजे को खिला रहा था, ‘मेला लाजा बेटा…. मेला शोना… मेला विशु’ तो मेरी पतली आवाज के कारण भाभी को लगा मानो कोई लड़की हो। फिर मेरा क्लीन शेव फेस तो था ही।

मैं खुद के लिए लड़की सुनकर शर्म के मारे चुप रहा और भाभी भतीजे को गोद में लेकर चुप कराते हुए बोलीं, ‘ओले… ओले… बेटू चुप देख..देख… देख तो सही चाचू बिल्कुल लड़की लग रहे हैं।’ और खिलखिलाकर हंसने लगीं। फिर मेरी तरफ देखते हुए थोड़ा गंभीरता से बोलीं, ‘सच में भैया लडकियों के कपड़े पहन लो तो बिल्कुल लड़की दिखोगे। सुंदर लगोगे कसम से।’ और फिर से खिलखिलाकर हंस दीं और मैं उन्हें हंसता छोड़ते हुए बालकनी में चला गया।

(वर्तमान – बाइक चलाते-चलाते मैं सोचने लगा कि जब मैं भारी-भरकम था तब क्लीन शेव में भाभी ने इतना टॉर्चर किया था, अब तो छरहरा बदन है, अब क्या करेंगी।

मैं फिर उन यादों में खो गया कि भाभी के साथ हुए उस क्लीन शेव एनकाउंटर से पहले भी मैं कई बार अपने लिए लोगों के मुंह से ‘लड़की’ सुन चुका था। लेकिन हमेशा ही पीठ पीछे खुसपुसाते हुए, वो पहली बार था जब भाभी ने मतलब कि किसी ने सामने खड़े होकर मेरे मुंह पर ही मुझे लड़की बता दिया। लेकिन फिर भी उस समय पिछले चार सालों में मैंने अपनी पर्सनैलिटी इतनी बदल ली थी कि कोई मुझे लड़की नहीं कहता था। सबकी नजर में मैं एक हैंडसम चॉकलेटी बॉय बन गया था। लेकिन भाभी के साथ घटी घटना के चार साल पहले ….. यही कोई 2010 में जब मैं 15 साल का था। तब खेल के मैदान से लेकर, स्कूल और बाजार में शायद ही मेरा कोई ऐसा दिन बीतता हो जब किसी को मैंने मुझे लड़की बताकर खुसपुसाते हुए न सुना हो।

इसका कारण मेरा चेहरा तो था ही जो बिल्कुल गोरा, चिकना और स्मूथ था, ऊपर से मेरी आंखें। हां, मेरी आंखें इतनी काली थीं कि कई बार जो पहली बार देखता था वो यह पूछता था कि क्या मैंने काजल लगाया है। यह कम था क्या जो मैंने अपने बाल भी कंधे तक बढ़ा रखे थे। मैंने 2008 में आठवीं क्लास पास की तो फुटबॉलर बनने का भूत चढ़ा था। डेविड बेकहम पसंद था तो मुझे लगता था कि मैं भी गोरा हूं, लंबे बालों में बेकहम लगूंगा। इसलिए बाल बढ़ाना शुरू किए थे। एक कारण यह भी था कि मेरा चेहरा शरीर के मुकाबले छोटा था। बड़े बालों से वह थोड़ा भरा हुआ और आकर्षक दिखता था। मैं बचपन से ही मोटा और थुलथुला भी था। जब खेलने लगा तो मुझ पर फिट होने का भूत चढ़ा। मैं खाना-पीना रोककर डाइट फॉलो करने लगा। मैं दुबला होता गया। लेकिन हाथ-पैर तो पतले हुए पर कमर के चारों और की चर्बी और कूल्हे अधिक कम नहीं हुए। शरीर के मुकाबले चेहरा मेरा हमेशा से ही छोटा था। अब वह और छोटा हो गया। वजन कम होने से छाती पर जमा चर्बी लटकने लगी।

डाइट फॉलो करने के चलते अब फुटबॉल खेलते वक्त शरीर से वो ताकत भी नहीं लगती थी। चलते वक्त बड़े-बड़े कूल्हे हिलते थे और दौड़ते वक्त छाती। गोरा बदन, छोटा चेहरा, कजरारी आंखें, लंबे बाल और शरीर की ऐसी बनावट। पूरे क्लब के लड़के मुझे लड़की बुलाने लगे थे। लेकिन मुझे लंबे समय तक इस सबका पता ही नहीं था। शुरुआत में तो जब मैं क्लब जाता तो वे मुझे देखकर मुस्कुराते थे, मैं भी स्माइल पास कर देता था। लगता था कि वो मुझे मुस्कुराकर वेलकम कर रहे हैं। फिर धीरे-धीरे वे मुस्कुराने के साथ-साथ खुसुर-पुसुर भी करने लगे। मुझे अजीब तो लगता था, पर पता नहीं था कि वे मेरे बारे में क्या बात करते हैं, करते भी हैं या नहीं।

लेकिन, एक बार अपने घर पर ही फुटबॉल की प्रैक्टिस कर रहा था। बालों को मैंने रुमाल से बांध रखा था। अचानक मैन डोर पर कुछ कुछ आहट हुई, मैंने हाथ में फुटबॉल लिए ही दरवाजा खोलकर देखा तो मेरे भैया के एक दोस्त अपने किसी दोस्त के साथ खड़े थे। उन्होंने भैया के बारे में पूछा। मैंने उन्हें जबाव देकर गेट बंद कर लिया। तभी गेट के बाहर मैंने उन दोनों की बातें सुनीं।

दोस्त का दोस्त – ये लड़की थी न।

दोस्त – नहीं वे लौंडा है।

दोस्त का दोस्त – नहीं यार। लगता ही नहीं है। लड़की ही है, लड़कों की तरह रहती है।

दोस्त – अबे बचपन से जानता हूं। फुटबॉल खेलता है तो बाल बढ़ा रखे हैं। आवाज तो उसकी ऐसी ही है।

वो पहली बार था जब किसी ने मुझे लड़की कहा था। उनकी बातें सुनकर मैंने प्रैक्टिस बंद कर दी। दूसरे दिन ग्राउंड पर गया तो लड़कों को स्माइल पास करने के बाद फिर से खुसुर-पुसुर करते सुना। अब मुझे शक था कि ये भी कहीं मुझे लड़की तो नहीं बोलते।

ग्राउंड पर मेरे एक दो दोस्त भी थे जिनसे हमेशा बातें होती थीं। एक दिन इसी तरह दो दोस्तों के साथ खड़ा था तो एक ने पूछा – ‘देव, तू इतना मेहनत और डाइट फॉलो करता है। हाथ-पैर, चेहरा, शरीर तो डाउन हो गया लेकिन बैक बहुत बड़ा है अभी भी।’ (उसने मुझे हाथ से घुमाकर मेरे कूल्हों की ओर इशारा किया।) मैंने कहा- ‘धीरे-धीरे हो जाएगा कम। कल से रनिंग के साथ-साथ स्प्रिंट और स्किपिंग भी चालू करूंगा।‘

वो पहला मौका था जब मुझे पता लगा कि मेरे शरीर के साथ कुछ अजीब है। फिर मुझे भैया के दोस्तों की बातचीत याद आई। मुझे लगने लगा कि मेरे कूल्हे लड़कियों की तरह दिखते हैं, क्योंकि बाल तो सबके लंबे होते हैं आजकल, शायद कूल्हों के कारण ही भैया के दोस्त ने मुझे लड़की समझा।

एक दिन मैंने ग्राउंड पर खुसुर-पुसुर करते लड़कों से पूछ ही लिया कि क्या बात कर रहे हो? सब एक-दूसरे पर बताने की कहकर टालने लगे। उनमें से एक लड़का जो मेरा सीनियर था और जिससे कभी-कभार मेरी बात होती थी, मैंने उससे कहा – बताओ न क्या हुआ। उसने कहा – ‘रजत तुझे किन्नर बोल रहा है.’ मैं तब इस शब्द का मतलब नहीं जानता था। मैंने उससे ही पूछा- ‘इसका क्या मतलब होता है।’ वो हंसते हुए बोला कुछ नहीं। मैंने जोर दिया तो कहा, तेरी तारीफ कर रहे हैं। मैं हंस कर बोला, ‘मैंने कौन सा तीर मार लिया जो तारीफ हो रही है।’ वे सब अपनी बातों में लग गये और मैं वहां से चला गया।

शायद उनसे पूछना ही मेरी गलती थी। उन्हें लगा कि मैंने किन्नर शब्द को नॉर्मल लिया, इसलिए कुछ दिन बाद से मेरे क्लब आते और जाते वक्त लड़के एक कदम आगे बढ़कर अक्सर ‘लड़की’ शब्द वाले गाने गुनगुनाते थे, कभी तो बहुत जोर-जोर से गाते थे, ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा……. लड़की शहर की लड़की…… लड़की है क्या रे बाबा… ’

एक दिन तो एक लड़का बिल्कुल मेरे करीब आकर मुझे देखते हुए ऐसा ही गाने लगा। मैंने उससे झगड़ा कर लिया। उसके बाद से मैदान पर खेलते वक्त अक्सर ही पीछे से लड़के ‘लड़की-लड़की’ चिल्लाते थे। तंग आकर मैंने फुटबॉल खेलना ही छोड़ दिया। लेकिन घर से निकलना तो नहीं छोड़ सकता था न। मेरे कूल्हे और कमर के फैट के कारण मेरी चाल भी लड़कियों जैसी हो गई थी। कॉलोनी के लड़के रास्ते में मुझे छेड़ने लगे थे।

मैंने पैदल निकलना बंद कर दिया। हाथों को जेब में डालकर चलना शुरू कर दिया। कूल्हे और कमर का फैट कम करने के लिए एक्सरसाइज शुरु कर दीं। धीरे-धीरे चाल तो सुधर गई लेकिन चेहरा और आंखें, वो अब भी लड़कियों जैसे थे। एक बार अपने एक दोस्त विकी जो कि कॉलेज में था, उसे मैं जूते दिलाने मार्केट में गया। मैंने जींस, टी-शर्ट और पुलोवर पहन रखा था। बाल लंबे ही थे लेकिन सिर पर कैप लगा रखा था। जब जूते खरीदकर दुकान से निकलने लगे तो जिस सेल्समेन ने हमें जूते दिए थे, उससे दूसरे सेल्समेन ने पूछा, ‘ये लड़की थी न?’ हमें जूते पहनाने वाला सेल्समेन बोला – ‘नहीं बे लड़का था।‘ पहला सेल्समेन बोला – ‘यार लग तो बिल्कुल लड़की रहा था। शायद आंखों में काजल लगा रखा था।’

मैंने ये बात सुन ली थी जबकि विकी आगे निकल गया था। विकी के साथ एक दिन मैं नया साल मनाने गया। जिस इवेंट में हमें जाना था, वहां बस कपल एंट्री थी। हम दोनों दोस्त एक बीयर बार गये पहले, मैं ड्रिंक नहीं करता था। विकी ने बीयर पी और बातें करने लगा। उसी टाइम दोस्ताना फिल्म सिनेमाघरों में लगी थी।

विकी – एक काम करें देव। हम भी दोस्ताना 2 बना लेते हैं।

मैं – क्या?

विकी – क्लब चलते हैं। कह देंगे कि गे हैं।

मैं – पागल है क्या तू? (हंसते हुए)

विकी – अबे सच में। कपल भी दिखेंगे हम, तू लड़की वाला पार्ट प्ले करना बस थोड़े बाल वगैरह सैट करने हैं और मैं लड़के वाला करूंगा। बस एंट्री ही तो लेनी है उसके बाद लड़कियों के मजे लेंगे।

मैं – जा बे विकी। चढ़ गई है तुझे।

वर्तमान में –

बाइक चलाते वक्त अपने क्लीन शेव चेहरे को देख कर जब भाभी का मुझे कुछ सालों पहले ‘लड़की’ कहना याद आया तो वो सारी यादें ताजा हो गईं जब-जब मुझे लोगों से अपने लिए ‘लड़की’ शब्द सुनना पड़ा था। उस समय शर्म से डूब मरने को दिल करता था, लेकिन पता नहीं था तब कि एक दिन मैं लड़कियों के कपड़े पहनकर खुद ही लड़की भी बनूंगा। लड़की बनने के लिए तड़पूंगा। तब कोई मुझे लड़की कह देता तो शर्म और गुस्से से लाल हो जाता था, लेकिन तब पता नहीं था कि एक दिन खुद ही साड़ी, लहंगा, सूट, ड्रेस, चूड़ी, पायल, बिंदिया सब पहनने लगूंगा। हर पल यह दुआ करूंगा कि कोई मुझे लड़की कहे और बार – बार कहे। बाइक चलाते – चलाते अब फिर से मेरे अंदर की औरत यानी देविका मुझ पर हावी होने लगी थी।

पास्ट (भूतकाल) –

याद आने लगा कि जब हर कोई मुझे लड़की कहने लगा तो आखिरकार मैंने अपने बाल कटा ही लिए। 15 साल की उम्र में ही जिम शुरू कर दी ताकि शरीर की बनावट सुधरे। लोगों को नाजुक और कमजोर नहीं, कठोर लगूं। दो सालों में ही मेरा शरीर, मेरा लुक, मेरे हाव-भाव और मेरा कांफीडेंस आसमान पर था। मैं आकर्षक और हैंडसम दिखने लगा। अब मेरे दाढ़ी और मूंछ भी निकलने लगे थे, उससे भी मुझे फायदा मिला। जो कॉलोनी के लड़के पहले मुझे लड़की कहकर छेड़ा करते थे, अब मैं उनसे अधिक मर्दाना और आकर्षक दिखता था। अब उनसे नजरें चुराकर भागता नहीं था, जानबूझकर उनकी तरफ देखता था और वे नजर फेर लेते थे। लेकिन कम उम्र में जिम से मेरा कद वहीं का वहीं रुक गया।

सोशल मीडिया पर तब मैं कई लड़कियों से फ्लर्ट करता था तो कई लड़कियां मुझसे फ्लर्ट करती थीं। और ऐसे ही मुझे श्रेया मिली। बातें मुलाकातों में बदलीं और हमें प्यार हो गया।

वर्तमान –

अचानक ही मुझे किसी ने जोरों से हॉर्न दिया तो मैं अपने बीते समय की यादों से बाहर आया। फिर से अपना चेहरा आईने में देखा। लेकिन इस बार मेरे अंदर की औरत देविका पर देव की सोच हावी हो गई और सोचने लगा कि आज भले ही लड़की दिख रहा हूं, आज भले ही ब्लेजर मुझ पर बुरा लग रहा है, लेकिन मैंने पहले भी खुद को हैंडसम हंक बनाया था, दूसरे लोगों की नजरों में लड़की था, लेकिन हेंडसम लड़का बनकर दिखाया था, पहले कर सकता था तो अब भी कर सकता हूं।

28 जनवरी की कहानी आज लिखते वक्त मन में उठे निम्न सवाल और अंतर्द्वंद…

लेकिन क्या वाकई अब फिर मैं ऐसा कर सकता हूं? क्योंकि कुछ ही मिनटों पहले तो मैं क्लीन शेव करके, बालों में बीच की मांग निकालकर, खुद को आईने में देखते हुए अंगुलियों से अपने निपल्स को इस तरह सहला रहा था कि मानो वे मेरे स्तन हों, यह सब करते हुए आंखें बंद करके खुद के साड़ी और बैकलेस ब्लाउज पहने होने की कल्पना कर रहा था। और अब हैंडसम हंक बनना चाहता हूं, मर्द बनना चाहता हूं। पहले मुझे समाज ने लड़की ने बनाया था, मैं नहीं बनना चाहता था, लेकिन अब मैं खुद लड़की बनने की इच्छा रखता हूं। क्या मेरी सोच का यह परिवर्तन मुझे इस बार लड़का बनने देगा?

2012 में जब हैंडसम हंक बन गया था और श्रेया जिंदगी में आई, उसके बाद क्या हुआ? श्रेया और मेरा रिश्ता क्यों और कैसे टूटा? क्या श्रेया अब भी मेरी जिंदगी में है? एक सामान्य लड़का जो लड़की कहलवाने से भी नफरत करता था, जिसके चलते उसने जिम में पसीना बहाकर खुद को परफेक्ट मेन बना लिया था, जिसकी एक खूबसूरत गर्लफेंड भी थी, कई लड़कियां जिससे फ्लर्ट करती थीं, ऐसा क्या हुआ कि वह क्रॉसड्रेसिंग करने लगा? वो कौन-सी घटनाएं थीं जिन्होंने मुझे बदल दिया, मर्द से औरत बना दिया? क्या मैं सिर्फ क्रॉसड्रेसिंग तक ही सीमित रहा या फिर लड़कियों वाली दूसरी आदतें और शौक भी लग गये? क्या मजबूरी थी कि मैं क्रॉसड्रेसिंग करता था? क्यों अपने ही जन्मदिन पर औरत बना था? आखिर क्यों मैंने छह महीने पहले अपने लड़कियों वाले सारे स्टफ नष्ट करके क्रॉसड्रेसिंग छोड़ दी? क्यों अब मैं फिर से औरत बनने के खूबसूरत एहसास को फिर से जीना तो चाहता हूं लेकिन नहीं बन रहां हूं? और आखिर मां ने मुझे 28 जनवरी 2020 को घर क्यों बुलाया था?

ऐसे और भी सवाल आपके मन में जरूर उठ रहे होंगे। इन सबके जवाब अगली कड़ियों में। अभी तो और भी बहुत कुछ होना बाकी है मेरे पास्ट में। – देविका


Part 1

Part 2

Part 3

Part 4

Part 5

Part 6


टिप्पणियाँ