वो ढाई साल (III)

 मेरे जीवन के उन पलों की कहानी जब मैंने खुद के अंदर की लड़की को पहचाना।

भाग ३: देविका


जॉकी के शॉर्ट्स और एक स्लीवलैस टीशर्ट पहने मैं अपने बैड पर जमीन में पैर लटकाए बैठा हुआ था। मेरी कोहनियां जांघों पर टिकी हुई थीं और कोहनियों के आगे का हाथ का हिस्सा घुटनों पर टिका था। बस कलाईयों से आगे का हिस्सा यानी मेरी हथेलियां हवा में झूल रही थीं और मैं एकटक उन्हीं हथेलियों की ओर देख रहा था क्योंकि उन हथेलियों में थी, एक पिंक पैडेड ब्रा। हां, वो मेरी ब्रा थी।

लेकिन एक क्रॉसरड्रेसर होने के नाते उस ब्रा को देखते हुए जो चमक मेरी आंखों में होना चाहिए थी, वो कहीं गुम थी। फिर मैंने ब्रा से नजर हटाकर पीछे मुड़कर बैड की ओर देखा। एक हल्के हरे रंग की ट्रांसपेरेंट (पारदर्शी) नेट साड़ी और गहरे हरे रंग का स्लीवलैस मखमली ब्लाउज बैड पर रखा था। बगल में एक पिंक पैंटी और एक बड़ा सा बॉक्स (कार्टन) भी रखा था। मैंने ब्रा भी पैंटी के साथ रख दी। और सिर पर दोनों हाथ रखकर कुछ सोच में उदास बैठ गया।

जब आप मर्द होकर भी औरतों के कपड़े पहनते हैं तो हमेशा एक द्वंद मन-मस्तिष्क में चलता है। कभी आपके तन का मर्द आप पर हावी होता है तो कभी मन की औरत। लेकिन यह वो दौर था जब मैंने अपने मन की औरत को सही से नहीं पहचाना था। हो सकता है कि मैं जानबूझकर उसे पहचानना नहीं चाह रहा था या फिर तन का मर्द मन की औरत को जबरन दबाए हुए था। मर्दों का काम ही है औरतों की इच्छाओं को दबाना। उस अंतर्दंवद में मेरे तन का मर्द यानी देव मेरे मन की औरत यानी देविका पर पूरी तरह हावी था। वह अपने तन पर देविका को बिल्कुल हक देने के पक्ष में नहीं था। तन देव का ही था लेकिन कोई तो ऐसी मजबूरी थी कि वह अपने मन के किसी छोटे से कोने में बसी औरत देविका को इस पर कब्जा करने की इजाजत दे देता था। शायद उसी मजबूरी के चलते मैं यानी देव सिर पर हाथ रखकर उदास बैठा था, क्योंकि बिस्तर पर रखे साड़ी-ब्लाउज और ब्रा-पैंटी पहनकर मुझे देविका जो बनना था। मर्द होते हुए भी औरत बनना था।

मैंने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा, 12 बज रहे थे। फिर मोबाइल उठाकर फेसबुक मैसेंजर खोलकर किसी को मैसेज किया। फिर सिर घुमाकर साड़ी-ब्लाउज और ब्रा-पैंटी को देखने लगा। तभी मैसेंजर का नोटिफिकेशन आया।

लिखा था – “will be there After 4”

मैंने भी जवाब मे लिखा – “see ya.. tc.. happy & safe journey.”

मैसेज करके मैंने सामने ही बने ड्रेसिंग टेबल के आईने में खुद को देखते हुए अपनी टीशर्ट और शॉर्ट उतार दिया। अब मैं पूरी तरह से नग्न था। अगर सिर, आईब्रोज और आईलेशेज के बालों को छोड़ दूं तो मेरे बदन पर एक बाल तो क्या, एक रुआं तक नहीं था। चार दिन पहले ही मैंने अपनी पूरी बॉडी वैक्स कराई थी। वैसे भी मेरे शरीर पर कोहनी के नीचे और घुटनों के नीचे ही बाल उगते हैं। बाकी शरीर चिकना ही है। फिर भी लड़की बनने से पहले मैं बॉडी वैक्स कराता ही हूं। हां, तीन दिन पहले भी मैं लड़की बना था। मेरी दाढ़ी-मूंछों की कहानी तो आप जानते ही हैं। तीन दिन पहले ही मैंने क्लीन शेव किया था। जरूरत नहीं थी, फिर भी आज फिर से कर लिया। शेव के बाद नहाकर चेहरे और पूरे बदन पर मैंने फीमेल बॉडी और फेशियल क्रीम लगाए। जिससे स्कीन में ग्लो और सॉफ्टनेस आ जाए।

आईने में खुद का छरहरा (पतला), गोरा और चिकना बदन व चिकना छोटा चेहरा देखकर सबसे पहले शब्द मेरे ज़हन में यही आए, ‘How Effiminate I have Become.’ यानी कि मैं कितना जनाना बन गया हूं। (हां, मैं जनाना बन गया था और शायद अब भी हूं। जबकि एक समय इतना मर्दाना था कि लड़कियां मुझे डेट करना चाहती थीं। पर अब मैं खुद किसी लड़की से कम नहीं और लड़के मुझे डेट करना चाहते हैं।)

चार-पांच दिन पहले ही जब मैंने अपना वजन कराया था तो 55 किलो था। 5 फीट 7 इंच कद पर एक लड़के का 55 किलो वजन हो तो कल्पना कीजिए कि मेरी कमर कितनी रही होगी? मेरी 27 इंच कमर थी जो कि आम पुरुषों के लिहाज से काफी कम थी। लेकिन, मेरे बचपन के सीने के फैट ने अब भी मेरा साथ नहीं छोड़ा था। हालांकि, कमर और कूल्हे पर अब बचपन की तरह फैट नहीं था लेकिन सीने पर था। लेकिन यह फैट इतना भी नहीं था कि उसे ‘मैन बूब्स (गायनोकोमेस्टिया)’ की श्रेणी का माना जाए। लेकिन इतना भी कम नहीं था कि 55 किलो के लड़के पर दिखाई न दे पाए। इसी फैट के चलते मेरे जिम ट्रेनर मुझे हमेशा किसी भी प्रकार का सोया प्रोडक्ट खाने से मना करते थे क्योंकि उसमें फीमेल हार्मोन यानी एस्ट्रोजन की अधिकता होती है। जब जिम में वेट लिफ्टिंग करता था तब यह फैट चौड़े कंधे, भारी बाजू, चौड़ी पीठ (बैक) के चलते दब जाता था और चेस्ट के वर्कआउट के चलते टाइट रहता था। लेकिन अब चौड़े कंधे सिकुड़ कर झुक गये थे, भारी बाजू पतले से हो गये थे। कहते हैं कि मर्द के भारी बाजू और चौड़े कंधों के साथ-साथ उसकी चौड़ी पीठ भी स्त्रियों को आकर्षक लगती है, जिसके पीछे वे खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं। लेकिन मर्द होते हुए भी मेरी पीठ अब इतनी छोटी हो गई थी कि वह तभी आकर्षक लगती थी जब मैं औरत बनकर बैकलेस ब्लाउज पहनूं। किसी औरत का मेरी पीठ के पीछे सुरक्षित महसूस करने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि मैं खुद उन हालातों में था जहां किसी मर्द की चौड़ी पीठ मुझे सुरक्षा दे। कम से कम जिन्होंने मुझे लड़की बना देखा था, वे तो यही कहने लगे थे।

खैर, आईने के सामने तब मेरी छवि ऐसी दिख रही थी कि यदि मेरा लटकता लिंग सामने न होता तो एक ऐसी लड़की लगता जो सिर पर छोटे बाल रखती है और जिसके स्तनों की वृद्धि रुक गई है, लेकिन गोरा-चिकना बदन और पतली कमर उसे फिर भी आकर्षक बना रहे हैं।

खुद को मैंने एक झलक और देखा फिर बैड पर साड़ी के बगल में रखा बड़ा बॉक्स और पैंटी उठा ली। उस बॉक्स के अंदर भी कई प्लास्टिक बॉक्स थे। जिनमें से एक बॉक्स मैंने निकाला।

उस बॉक्स से जो चीज बाहर निकलीं वो मेरी दो फेक वजाइना (योनि) थीं। दोनों ही सिलीकॉन की थीं और मेरे ही स्किन टोन (फेयर) की थीं। एक मर्दों के बॉक्सर अंडरवियर की तरह थी जिसमें आगे से हूबहू योनि जैसा ही छेद था जो कि ऐसे क्रॉसड्रेसर के लिए बनाई गई थी जो मर्दों के साथ सैक्स करने में रुचि रखते हैं। दूसरी खासियत थी कि इसमें पेशाब करने के लिए भी एक छेद था। तब इसकी दूसरी खासियत ही इसे मंगाने का मेरा उद्देश्य था। क्योंकि क्रॉसड्रेसिंग के शुरुआती दिनों में मुझे अपना लिंग छुपाकर उस जगह को फ्लैट दिखाने के लिए लिंग को अपने नितंबों/कूल्हों की तरफ मेडिकल टेप से टक (Tucked) करना पड़ता था। ये दर्दनाक भी था और मुझे पेशाब जाने से भी रोकता था। दूसरी वाली फेक वजाइना सिर्फ इतनी बड़ी थी जो सिर्फ मेरे लिंग को ढकती थी। इसमें आगे से वजाइना वाला कम्पलीट लुक तो था लेकिन सैक्स करने के लिए छेद नहीं। इसमें पेशाब जाने की भी सुविधा नहीं थी।

दोनो ही मैंने इम्पोर्ट करके इंडिया मंगाई थीं। हालांकि ये काफी महंगी थीं, लेकिन लड़की बनते वक्त जो दर्द लिंग को टक करने और पेशाब रोकने के एवज में उठाना पड़ता था, उससे तो कम ही कीमत थी। वैसे अगर नौकरी से मोटा वेतन मिलता हो और परिवार की जिम्मेदारी भी सिर पर न हो तो खर्च की परवाह कौन करता है। लेकिन फिर भी मुझे इन्हें खरीदने का पैसा देकर भी नहीं देना पड़ा था। (कहानी के अगले भागों में इस पर बात होगी।)

मैंने पहली वाली वजाइना उसी बॉक्स में रखकर दूसरी वाली पहनने के लिए निकाल ली। पहली वाली मैंने तीन दिन पहले ही ट्राय की थी इसलिए इस बार दूसरी वाली पहनना चाहता था। मैंने इसके सभी कोनों पर एडहेसिव लगा दिया। इसमें अंदर की तरफ अपने लिंग को फंसाने का एक पाउच था, मैंने अपना लिंग पाउच में डाल दिया। हालांकि, मेरे लिंग की तुलना में वह पाउच काफी बड़ा था। (शायद इसलिए रहा होगा कि यदि लिंग में तनाव आए तो वह उसमें समा जाए। या फिर वह पुरुष लिंग का मैक्सिमम साइज देखते हुए बनाया गया था और मेरा लिंग उस मुकाबले बहुत छोटा था) फिर वजाइना अपनी स्किन से चिपका दी और अपने नितंब और कमर के सहारे उसके बेल्ट कस दिए। हालांकि बिना बेल्ट के भी उसे पहना जा सकता था लेकिन मैंने चिपकाने के साथ बेल्ट का भी डबल सपोर्ट लिया।

खुद को आईने मे देखा तो पहली नजर में लगा कि मेरा लिंग तो कभी था ही नहीं, यही वजाइना मेरे शरीर का अंग है। लेकिन गौर से देखने पर साफ पता चलता था कि उस वजाइना में छेद वाला डिजाइन तो है लेकिन छेद नहीं। साथ ही मेरा स्किन टोन और वजाइना का स्किन टोन भी सौ प्रतिशत समान नहीं था। लेकिन मुझे अपने कपड़े खोलकर किसी को वह दिखानी तो थी नहीं, मुझे तो बस अपना लिंग छुपाना था, इसलिए फिर परवाह किस बात की।

फिर मैंने पैंटी पहनकर चैक किया कि कहीं वजाइना के बेल्ट पैंटी के बाहर तो नहीं दिख रहे। बैड पर रखे बड़े बॉक्स में से मैंने एक और बॉक्स निकाला जिसमें एक काली ह्यूमन हेयर विग थी। कंघी से अपने बाल सिर से चिपकाकर मैंने विग सिक्योर बैंड पहना और उसके ऊपर विग पहन ली। अब बारी ब्रा की थी, मेरी ब्रा की।

गुलाबी रंग की यह पुशअप ब्रा फ्रंट हुक वाली थी। फ्रंट हुक इसलिए नहीं था कि मुझे बैक हुक लगाने में दिक्कत होती है, बल्कि फ्रंट हुक इसलिए था क्योंकि मेरे सीने के फैट को ऊपर की तरफ तो उभार मिलता ही है साथ ही जो फैट मेरे सीने पर साइड में है वो भी खिंचकर सामने आ जाता है जिससे क्लीवेज (स्तनों के बीच की गहराई) भी आकर्षक दिखता है।

मैंने ब्रा में अपने दोनों हाथ डालकर हुक लगा लिए और आईने के सामने उसे अपने सीने पर सही से सैट किया। मेरा सीना जो कुछ देर पहले बिना ब्रा पहने ऐसी किसी लड़की के सीने जैसा लग रहा था जिसके स्तनों की वृद्धि रुक गई हो, अब वहां एक 16-17 साल की टीन एज लड़की जैसे स्तन थे। मेरे पतले शरीर के हिसाब से यह पर्याप्त था, इतना भी बुरा नहीं था। अब अपनी विग को सैट सही से सैट करके मैंने सभी बालों को अपने बाएं कंधे की तरफ से शरीर के आगे कर लिया। काले बालों की यह विग मेरी नाभि के थोड़ा ही ऊपर खत्म होती थी जिसके आखिरी छोर कर्ली (घुंघराले) थे।

मैं आईने के सामने पिंक ब्रा-पैंटी और लंबे बालों में खड़ा था। नीचे से खुद को देखना शुरू किया। पिंक पैंटी में मेरी गोरी-चिकनी और पतली टांगें व भरी हुई जांघें देखकर मैं ही खुद पर यकीन नहीं कर पा रहा था कि मैं वही देव हूं जो कभी जिम में 400 किलो से लैग प्रेस की एक्सरसाइज करता था। मेरी नजरें पैंटी पर जाकर टिक गईं, थोड़ी देर पहले यहां लिंग लटक रहा था। अब फ्लैट सरफेस था। लिंग का कहीं नामोनिशां नहीं था। चुस्त पैंटी में योनि (फेक) की बनावट साफ दिख रही थी। रत्ती भर भी कोई मुझे मर्द नहीं कह सकता था। चार चश्मे लगाकर भी कहना मुश्किल था कि यह मेरी योनि नहीं है और पैंटी के अंदर मैंने अपना लिंग छुपा रखा है। मेरी गर्लफ्रेंड या मां भी देख लेतीं तो यही सोचतीं कि मैंने अपना लिंग परिवर्तन करा लिया है।

उसी पल मेरे मन में ख्याल आया, ‘जिस लिंग को हेल्दी रखने और मर्दानगी बढ़ाने के लिए मैंने न जाने कितने जतन किए थे। क्यों आज अपने उसी लिंग से ज्यादा प्यारी मुझे अपने शरीर पर योनि की यह बनावट लग रही है। एक मर्द की पहचान उसके लिंग का उभार होता है, लेकिन मुझे अपने ही लिंग से शर्म आ रही है और उसे कृत्रिम योनि के नीचे छिपाकर औरत बन गया हूं। मैं मर्द नहीं हूं.

इन्हीं ख्लायों के बीच घड़ी में समय देखा तो एक बज गया था। तुरंत सभी ख्यालों से बाहर आकर मैंने अपने कूल्हे देखे। फिर बैड की तरफ पलटकर बड़े बॉक्स में से एक छोटा प्लास्टिक बॉक्स निकाला। उसमें सिलिकॉन हिप पैड्स थे। उसमें से दो पैड निकालकर आईने की तरफ अपने कूल्हे करके मैंने अपनी पैंटी में दोनों कूल्हों पर एक-एक पैड लगा लिया। चूंकि मेरे नितंब अन्य पुरुषों की अपेक्षा पहले ही बड़े थे इसलिए एक हिप पैड काफी था उन्हें आकर्षक उभार और गोलाई देने के लिए।

चुस्त पैंटी में उन्होंने स्किन के साथ खुद को एडजस्ट कर लिया। मैं हमेशा एक या दो साइज छोटी पैंटी ही पहनता था। क्योंकि लिंग को छिपाने के लिए टकिंग में ऐसी चुस्त पैंटी ही काम आती थीं। खासकर कि स्पेंडेक्स कपड़े की जो पूरी तरह बदन पर कस जाती थी। यह भी स्पैंडेक्स कपड़े की ही थी।

पैड लगाकर मैं आईने की ओर पीठ करके खड़ा हो गया। सिर घुमाकर अपने कूल्हे देखे। फिर उसी मुद्रा में आगे की ओर कमर झुकाकर कूल्हों को आईने की ओर ऊपर उठाया और पीठ की तरफ सिर घुमाकर आईने में देखने लगा। मैं तब ऐसी मुद्रा में खड़ा था जब कोई लड़की अपने कूल्हे किसी पुरुष को सैक्स करने के लिए ऑफर करती है। अपने दोनों कूल्हों पर कुछ सैकंड्स हाथ फेरने के बाद मैं आईने के सामने चेहरा करके सीधा खड़ा हो गया। एक बार फिर अपने बदन पर सरसरी नजर घुमाई। कमर से नीचे तक का मेरा शेप फाइनल हो गया था। अपनी पतली कमर से होते हुए ब्रा में अपने स्तनों को देखा और फिर लंबे बालों को।

अब ठीक रहेगा कि मैं लड़कियों की बोलचाल में ही अपनी कहानी सुनाऊं। लंबे बाल, चिकना बदन, पिंक ब्रा में स्तनों का उभार और गहराई, ऊपर से पिंक पैंटी में दिख रहा मेरा योनि का शेप मुझे अब इजाजत नहीं देते कि मैं पुरुषों की तरह बोलचाल करूं।

अब मैंने ड्रेसिंग टेबल के बाईं ओर की दीवार पर बनी बड़ी सी लकड़ी की वार्डरोब का एक दराज खोला जिसमें ढेर सारा मेकअप और एसेसरीज का सामान बिखरा था। उसमें से बालों का एक बड़ा क्लच निकाला और फिर से आईने की ओर बढ़ चली। चलते हुए अब मुझे साफ एहसास हो रहा था कि मेरी चाल बदल गई है। क्योंकि अब मेरा लिंग वहां नहीं था जिसके कारण मेरी जांघें आपस में जा मिली थीं और चलते वक्त आपस में रगड़ खा रही थीं। नितंबों में भी भारीपन था जिससे चलते वक्त मुझे उनका ऊपर-नीचे होना साफ महसूस हो रहा था।

क्लच मैंने ड्रेसिंग टेबल पर रखा और अपने दोनों हाथों से धीरे-धीरे बालों का सिर पर जूड़ा बनाया। फिर उसके ऊपर क्लच लगा दिया। एक बार फिर खुद को आईने में देखा। फिर जूड़े में से बालों की दाएं और बाएं एक – एक लट निकाली। एक बार खुद को निहारा। मैंने तब तक कोई मेकअप नहीं कर रखा था लेकिन फिर भी कोई उसी हालत में मुझे देखकर एक प्रतिशत भी नहीं कह सकता था कि मैं देविका नहीं, देव हूं यानी एक मर्द।

मैंने अब वार्डरोब के उसी दराज में से गुलाबी लिपस्टिक, गुलाबी नेल पेंट, आईलेशेज मशकारा, काजल, लिप लाइनर और लिप ग्लॉस निकाले। ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठकर लिप लाइनर से अपने होठों की आउटलाइन ड्रॉ करके उन्हें लिपस्टिक से भर दिया और लिप ग्लॉस की परत चढ़ा ली और पाउट बनाकर आईने मे देखने लगी। एक मर्द होते हुए भी मेरे गोरे चेहरे पर लिपस्टिक लगे मेरे गुलाबी होंठ आईसक्रीम के ऊपर रखी चैरी की तरह रसभरे दिख रहे थे। जिसे हर कोई अपने होंठों से लगाना चाहता है।

अब अपनी आंखों को काजल से सजाकर पलकों पर मशकारा लगाया। बचपन से ही मेरी आंखें लडकियों की तरह तो थी हीं, काजल और मशकारा लगाकर उनका आकर्षण कई गुना बढ़ गया था। मेरी आंखें मुझे गॉड गिफ्ट हैं तभी तो मेरी पलकें भी इतनी बड़ी हैं कि दूसरे क्रॉसड्रेसर की तरह फेक आईलेशेज लगाने की कभी जरूरत नहीं हुई।

होंठ और आंखों को सजाने के बाद बारी नाखूनों की थी। अपना बायां पैर ड्रेसिंग टेबल के ऊपर रखकर अंगुलियों पर नेल पेंट लगाने के लिए मैं आगे की तरफ झुकी हुई थी, अचानक मेरी नजर आईने पर गई। झुकने के कारण नीचे लटक रहे मेरे स्तनों की गहराई देखकर नेल पेंट लगाते मेरे हाथ वहीं रुक गये। मैंने अपने निचले होंठ के बाएं हिस्से को दातों तले दबाया और गंभीरता से अपने ही स्तनों को देखने लगा।

हां, देखने लगा क्योंकि पता नहीं उस समय शरीर में एक अजीब सी बेचैनी उठ आई थी। मेरी सांसें भी तेज सी हो गईं थीं। शायद मेरे शरीर का पुरुष देव मेरे शरीर की स्त्री देविका के रूप पर मोहित हो रहा था। स्तनों के साथ-साथ अब मैं आईने में अपनी गुलाबी ब्रा, चेहरे पर लटकतीं बालों की लटों और अपने सुर्ख गुलाबी होंठ, कजरारी आंखें और लंबे बालों का जूड़ा, साथ में गोरा-चिट्टा बदन सबको एक साथ देखने लगा।

उसी मुद्रा में अनायास ही मेरे हाथ मेरे स्तनों की ओर चले गये और ब्रा के ऊपर से ही अपनी हथेलियों में भरकर हल्के से उन्हें दबाकर देखा। मेरी सांसें तेज चल रही थीं जिससे उत्तेजना में अपने निचले होंठ को दांतों से दबा रखा था। अपने ही स्तनों को दबाने के उस मुलायम एहसास ने पता नहीं क्या जादू किया कि मेरी आंखों में मदहोशी सी छा गई और मुझे अपनी एक्स गर्लफ्रेंड श्रेया के स्तनों की याद आने लगी। पता नहीं मुझे क्या सूझा कि मैं उन्हें फिर से दबाने लगे। फिर दोनों हाथों की एक-एक अंगुली से ब्रा से बाहर दिखती स्तनों की गहराई और उभार को मैंने छूकर और दबाकर देखा। एक मुलायम सा खूबसूरत एहसास था जिसने सांसों की तेजी और बढ़ा दी। जिससे स्तन बार-बार ऊपर नीचे होने लगे। हालांकि, वह मेरी छाती का फैट था, स्तन नहीं थे। फिर भी न जाने क्यों उत्तेजना इतनी बढ़ी कि पैंटी के अंदर भी मुझे बेचैनी हुई। अचानक ही मेरा एक हाथ मेरे स्तनों को छोड़कर मेरे लिंग की ओर बढ़ा। लेकिन जैसे ही अपने हाथ से अपने लिंग को थामना चाहा तो वहां लिंग ही नहीं था। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा लिंग तो मेरी कृत्रिम योनि के पाउच में कैद है। साफ महसूस हो रहा था कि मेरी योनि (वजाइना) के पाउच में बंद मेरा लिंग उस पाउच की खाली जगह में फैलने की कोशिश कर रहा है।

तब मन से आवाज आ रही थी, ‘उफ्फ कितना खूबसूरत एहसास था। काश कि मेरा लिंग आजाद होता, काश कि मैंने वो पहली वाली वजाइना पहनी होती जिसमें सैक्स के लिए छेद था, तो उस छेद में लड़कियों की तरह अंगुली डालकर हस्तमैथुन कर लेता।’

मेरे दिमाग में तब मेरी ही एक छवि उभरने लगी जहां मैं एक हाथ से अपने स्तनों को मसल रहा था तो दूसरे हाथ की अंगुली बार-बार अपनी योनि के अंदर-बाहर कर रहा था।

तभी मुझे झट से ख्याल आया कि मेरी वजाइना में पेशाब करने की जगह नहीं है और मेरे लिंग की उत्तेजना बढ़ती जा रही है। मैं झट से नेल पेंट उठाकर आईने से दूर बैड पर एक कोने में बैठ गई।

और सोचने लगी, उफ्फ… क्या था वो? ये ख्याल मुझे तब भी आया और आज भी आता है। क्या मेरे अंदर का मर्द देव देविका के रूप को देखकर उस पर मोहित हो गया था और उसके स्तनों से खेलना चाहता था, गुलाबी होठों का रस चूसना चाहता था? लेकिन ये कैसे संभव होता क्योंकि वो औरत तो खुद देव ही था। या फिर मेरे अंदर की औरत देविका ही अपने खूबसूरत बदन की प्यास बुझाने की कोशिश कर रही थी? या फिर मैं खुद को ही अपनी एक्स गर्लफ्रेंड श्रेया समझने लगा था? यानी कि श्रेया मुझे नहीं मिली तो मैं खुद श्रेया बनकर अपने तन और मन को शांत करने की कोशिश कर रहा था?

बैड पर बैठे-बैठे कुछ पल मैंने खुद को शांत करने की कोशिश की और अपनी ही उस तस्वीर को भुलाने के लिए यहां – वहां का सोचना शुरू कर दिया। फिर अपने दोनों पैर भी बिस्तर पर उठाए और उन्हें नितंबों के नीचे दबाकर लड़कियों की तरह बैठकर फोन उठाया और ध्यान उसमें लगा लिया। एक नजर फिर मेरी बैठक पर गई। आगे लिंग का उभार न होने के कारण दोनों चिकनी जांघें आपस में बिल्कुल चिपक गई थीं। जीवन में मैंने पैंटी पहने बैठी हुई लड़कियों के अनेक फोटो देखे थे, आज मेरी भी बैठक बिल्कुल उन जैसी थी, जहां चिपकी जांघों के बीच का पैंटी में ढंका सपाट हिस्सा साफ दिख रहा था। अपने शरीर की यह खूबसूरती मुझे फिर से उत्तेजित करती उससे पहले ही मैं बिस्तर पर उल्टा पेट के बल लेट गई और फोन चलाने लगी।

लेकिन, दूसरी औरतों को इग्नोर करना आसान होता है क्योंकि उनके सामने से चले जाने का आपके पास विकल्प होता है। लेकिन जब आप खुद ही औरत बन जाओ तो कहां भागोगे। उल्टा लेटने के बाद जब मेरे स्तन बिस्तर से छुए तो छाती पर एक दबाब महसूस हुआ, मैंने स्तनों की ओर देखा तो दबने के कारण वह पहले से ज्यादा फूले हुए लग रहे थे। मेरा मन फिर कामुक हुआ। मैंने तुरंत उठकर बैड से अपने पैर नीचे लटका लिए और अपने दोनों हाथों से आंखें बंद करके चेहरा ढंकना चाहा। अब ये बेचैनी मुझे सताने लगी थी। खुद पर कंट्रोल नहीं हो रहा था। मन रोने का हो रहा था। इसी उत्तेजना में हाथों से जैसे ही मैंने अपना चेहरा ढंकना चाहा तो याद आया कि मेरे काजल और लिपस्टिक खराब हो जाएंगे।

फिर अपनी नाक और मुंह को इस तरह दोनों हथेलियों से ढंका कि लिपस्टिक खराब न हो और आंखें बंद करके लंबी सांसे लेना शुरू कीं और उन्हीं सांसों की ‘ब्रीद इन- ब्रीद आउट’ की काउंटिंग शुरू कर दी। अपने सामान्य रूप में यानी मर्द रूप में अपना तनाव भगाने मैं ऐसा ही करती थी, लेकिन आज पहली बार औरत बनकर यह प्रैक्टिस की तो अपनी ब्रा का कसाव मेरा ध्यान भटका रहा था। फिर भी कुछ देर में सब सामान्य सा लगा। घड़ी में समय देखा तो डेढ़ बज गया था। लेकिन इन आधे घंटों में मैं बिल्कुल बदल गया था।

आधे घंटे पहले जहां मैं अपने लिंग को छिपाकर उसकी जगह योनि बनाने के अपने फैसले के लिए खुद को नामर्द ठहरा रहा था। लेकिन आधे घंटे बाद अब यही योनि और स्तनों वाला शरीर मुझे इतना रोमांचित कर रहा था कि मेरी इसका भरपूर आनंद उठाने की इच्छा हो रही थी।

सामान्य होकर मैंने नेल पेंट उठाया और दोनों पैरों व हाथों के नाखून गुलाबी रंग दिए। फिर इठलाती-बलखाती मैं आईने के सामने पहुंची और दोनों हाथों के नाखून आईने में देखने लगी। फूंक मारकर उन्हें सुखाते हुए खुद को ऊपर से नीचे देखने लगी कि साड़ी पहनने से पहले कहीं कुछ छूट तो नहीं गया।

कहते हैं न कि औरत कितनी भी अधिक खूबसूरत हो, दुनिया को उसमें कोई कमी भले न दिखे लेकिन वह जरूर खुद में कमी ढूंढ़ निकालती है। उस समय मैं भी तो एक औरत ही थी। मुझे भी कुछ कमी नजर आ गई थी। पहले तो मैंने हाथों के नाखून देखे, वे पूरी तरह सूख गये थे। फिर बैड पर रखे बड़े बॉक्स के अंदर से छोटा प्लास्टिक केस उठाया जिसमें ब्रेस्ट एनहेंसर पैड्स थे। क्योंकि मुझे जिस मजबूरी, जिसके कहने, जिसके दबाव या जिसके लिए क्रॉसड्रेसिंग शुरू करनी पड़ी थी, उसे बस मुझमें एक कमी दिखती थी कि मेरे स्तन छोटे हैं। मेरे पास विकल्प था कि मैं अपने स्तनों का साइज बढ़ाने के लिए ब्रेस्टफॉर्म्स यूज करूं। लेकिन इससे मेरी छाती पर जमा मेरे नेचुरल फैट का सही यूज नहीं हो पाता। वहीं, एग्जैक्ट स्किन टोन के ब्रेस्टफॉर्म्स मिलना भी बहुत रेयर होता है। साथ ही मुझे लगता था कि डीप नैक ब्लाउज में गौर से देखने पर आसानी से पहचाना जा सकेगा कि वे मेरे असली स्तन नहीं। जबकि मेरी छाती का फैट भले ही मुझे छोटे स्तनों का उभार और गहराई देता हो लेकिन उन्हें कोई तब तक नकली स्तन नही बता सकता जब तक कि मेरी ब्रा न उतारकर देख ले।

इसलिए मैंने ब्रेस्टफॉर्म्स की बजाए सिलिकॉन ब्रेस्ट एनहेंसर पैड यूज करना शुरू किया था। हिप पैड्स की तरह ही इन्हें भी बस अपने ब्रा कप्स में फंसाना होता था। मैंने दो पैड निकाले और अपनी ब्रा के बाएं कप में डाले और फिर दो दाएं कप में। फिर ब्रा के अंदर हाथ डालकर उन्हें इस तरह सैट किया कि स्तनों का उभार और गहराई डेढ़ से दो गुना तक बढ़ गये। अब मेरे स्तन किसी टीनेज गर्ल जैसे नहीं, एक 22-24 साल की जवान लड़की जितने ही उभरे हुए, कसे हुए थे जिनके बीच की गहराई किसी भी मर्द की रातों की नींद उड़ाने पर्याप्त थी।

अब मैं आईने के सामने सीधी तनकर खड़ी हो गई। एक झलक खुद को देखा और सिर के जूड़े से अपना क्लच निकाल दिया। क्लच निकलते ही सारे बाल खुलकर पीठ पर बिखर गये। मैं दोनों हाथों की मदद से बालों को अपने बाएं कंधे और गाल की ओर से शरीर के आगे ले आई।

आईने के सामने अपने बाएं हाथ से उलझे बालों को सुलझाते हुए और दाएं हाथ से चेहरे पर आती बालों की लट को कान की पीछे फंसाते हुए मैंने खुद ही बुदबुदाया, Looking Sexy.’

फिर अपने निचले होंठ का बायां कोना दातों से दबाते हुए और बालों को यूं ही सहलाते हुए आईने के सामने अपनी ही सैक्सी इमेज देखने लगी। गोरा, चिकना, चमचमाता बदन… सामने ही गुलाबी पैंटी से झांकती सपाट योनि… पतली सी कमर…. गुलाबी ब्रा में से झांकते भरे हुए व कसे हुए स्तन जिनका क्लीवेज किसी भी मर्द की रातों की नींद उड़ा दे… सुर्ख गुलाबी होंठ… काजल से सजी काली-काली बड़ी आंखें और काले लंबे बाल…. और ऊंचा लंबा कद… बला सी खूबसूरत लग रही थी मैं।

उसी तरह आईने में खुद को आंखें फाड़े देखते हुए मैंने मन में कहा, ‘मैं तो कोई ऐसी ही माल लड़की डिजर्व करता था। फालतू ही उस श्रेया पर समय खराब किया। साली बनानी ही थी गर्लफ्रेंड तो ऐसी ही किसी लड़की को ढूढ़ना था न। बिना रूप रंग देखे बना ली और तब भी छोड़कर चली गई।‘

मैं खुद को ही देखकर अपनी एक्स गर्लफ्रेंड की यादों में खो गया था। और भूल गया था कि आईने के सामने खड़ी जिस लड़की को मैं गर्लफ्रेंड बनाने की सोच रहा हूं, वो लड़की कोई और नहीं मैं खुद ही हूं.


वर्तमान – (28 जनवरी 2020)

कहते है कि इतिहास खुद को दोहराता है। फिर से मैं लगभग वैसे ही हालातों में था जिनमें मई 2019 में था।

भाभी (अपनी पीली साड़ी उतारकर मेरे पास ही बैड पर रखते हुए) – देव, तुम तो ड्रॉअर से ब्रा निकालने में ऐसे घबरा रहे हो जैसे कि कोई बॉम्ब हो। मेरी भाभी बनने के बाद रोज तुम्हें भी तो वही पहनना है… समझीं देविका भाभी (ये शब्द भाभी ने हंसते हुए नहीं, थोड़ा मुंह फुलाते हुए ताने मारने के अंदाज में कहे)

फिर उन्होंने वार्डरोब का ड्रॉअर खोलकर एक पिंक पैडेड ब्रा निकालकर मेरे हाथों में रख दी।

भाभी – मैं बाथरूम से पेटीकोट और ब्लाउज उतारकर ला रही हूं। तब तक तुम ये ब्रा पहनकर तैयार रहो। फिर हनी को भी बुलाना है। देर मत करना, वरना मम्मी आ जाएंगी। (भाभी एक लाल सलवार कमीज हाथ में लिए बाथरूम की ओर जाते हुए बोलीं।)

(रोज शाम को पूजा करने के बाद मम्मी अक्सर ही कॉलोनी के एक मंदिर में सत्संग के लिए चली जाती हैं। मम्मी को सत्संग तक मैं ही छोड़कर आया था। भाभी को तो बस यह बताने आया था कि मैं जा रहा हूं। लेकिन क्या पता था कि मैं अपने मन की उलझन में फिर फंसने जा रहा हूं, भाभी की पीली साड़ी के करीब जा रहा हूं।)

फिलहाल तो आठ महीने पहले यानी मई 2019 की तरह ही मेरे हाथों में आज फिर पिंक ब्रा थी और मैं बैड पर पैर लटकाए उस ब्रा को उसी दिन की तरह घूरे जा रहा था। उस दिन भी मेरे चेहरे पर सिकन थीं और आज भी। याद तो नहीं, पर शायद उस दिन भी मैं रोना चाहता था और आज भी। उस दिन भी मैं मजबूर था और आज भी। उस दिन मैं शांत था और आज भी।

मैं रोना चाहता था, फूट-फूट कर। उसी दिन की तरह ब्रा को देखते हुए ख्यालों में आज भी खोया था,

भाभी को किसी तरह पता चल गया है कि मैं देविका हूं। क्या भाभी अब भैया को भी बताएंगी? कहीं भैया को बता तो नहीं दिया? कहीं मम्मी को भी तो नहीं पता, इसलिए ही वे मेरी शादी किसी लड़की से कराना चाहती है ताकि मैं लड़की बनना छोड़ दूं? क्या सोच रहे होंगे वो मेरे बारे में? अगर भाभी ने नहीं भी बताया है तो अब बता दिया तो? क्या भाभी ने अपने भाई हनी को बता दिया है कि उनका देवर देव लड़की बनने का शौकीन है, तभी वो मुझे हनी की दुल्हन बनाना चाहती हैं।

मेरा ध्यान भाभी की आवाज से टूटा। बाथरूम से बाहर आते हुए उन्होंने अपना पेटीकोट और ब्लाउज मेरे बगल में रखी साड़ी पर रखते हुए कहा, ‘अरे अब तक ब्रा भी नहीं पहनी। कैसी लड़की है यार तू?’ (वो मेरे सामने ही खड़ी होकर अपनी कमर पर दोनों हाथ रखते हुए डिसेपॉइंटमेंट में बोलीं)

इस बार मेरा ध्यान उनके सलवार कमीज पर नहीं गया क्योंकि सारा ध्यान खुद से जुड़ा सबसे बड़ा राज खुल जाने के डर से जूझने में लगा था। मैं एक तरह से बुत बन गया था, समय मानो रुक सा गया था। भाभी कपड़े भी बदल आईं और वो ब्रा अब भी मेरे हाथों में थी। बैड पर मेरे बगल में भाभी की साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट रखे थे जिन्हें मुझे पहनना था।

वही नजारा था जो मई में था। मैं पैर लटकाए बैड पर बैठा था, हाथों में पिंक ब्रा थी, बैड पर वो साड़ी और ब्लाउज थे जिन्हें मुझे पहनना था और मैं किसी चिंता में डूबा था। बस जो अंतर था वो थीं, भाभी। तब मैं अपने बैडरूम में अकेला था और आज सामने भाभी थीं।

शायद एक और अंतर था… तब मैं वो ब्रा, साड़ी और ब्लाउज नहीं पहनना चाहता था, उन्हें न पहनने की उधेड़बुन में उलझा था। लेकिन, अब मैं बैड पर रखी साड़ी पहनने के लिए बेचैनी के चरम पर था।

हां, भाभी ने जब से बाथरूम से आकर साड़ी के ऊपर अपने पेटीकोट और ब्लाउज रखे थे, मेरी धड़कनें फिर से उनको पहनने के लिए मचलने लगी थीं। वो भी तब जब मुझे यकीन था कि भाभी को मेरे देविका होने की सच्चाई पता लग गई है। मुझ पर देविका ने इस तरह कब्जा कर लिया था कि पीली साड़ी पहनने की ख्वाहिश में अपने जीवन का सबसे बड़ा राज खुलने की परवाह भी नहीं रही थी।

भाभी – अब ब्रा भी लगता है कि मुझे ही पहनानी पड़ेगी। (झुककर मेरी जैकेट की चैन खोलते हुए)

भाभी के ऐसा करते ही मेरे आंसू फूट पड़े और मैंने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। मुझे फूट-फूट कर रोता देख झट से भाभी ने अपनी दोनों हथेलियों में मेरा चेहरा ले लिया।

भाभी – अरे क्या हुआ? क्यों रो रहा है?… श्श्श्श्श… शांत.. शांत.. मै नहीं पहना रही तुझे साड़ी। (भाभी मेरे आंसू पोंछते हुए गंभीर और चिंतित लहजे में बोलीं)

लेकिन भाभी को क्या पता कि ये रोना इसलिए नहीं था कि मुझे साड़ी नहीं पहननी थी। ये रोना तो इसलिए था कि मुझे किसी भी कीमत पर वो साड़ी पहनने का मन था। जिस साड़ी को पहनने के लिए तन-मन में आग लगी हुई थी वही मेरे बगल में थी, स्तन होने का खूबसूरत एहसास महसूस करवाने वाली ब्रा मेरे हाथों में थी। कोई और दिन होता तो इन खूबसूरत कपड़ों को पहनने से मैं खुद को पल भर भी नहीं रोकता, जैसे क्लीन शेव करने से नहीं रोका था, बिंदी लगाने से नहीं रोका था। लेकिन चाहकर भी औरत बनने की अपनी प्यास नहीं बुझा पा रहा था। ये रोना इसलिए भी था कि भाभी को मेरे देविका होने का सच पता लग गया है, अब परिवार को भी पता लगेगा। मैं कैसे सबका सामना करूंगा। ये रोना इसलिए भी था कि कैसे भाभी को सब सच बताऊं कि भाभी मैं ये साड़ी पहनने के लिए बुरी तरह तड़प रहा हूं, कि भाभी मैं मन से औरत बन चुका हूं।

ये सारी चीजें एक ही समय मेरे दिल और दिमाग में चल रही थीं और मुझे पता भी नहीं था कि क्या करना है। इसलिए जैसे ही भाभी ने मेरी जैकेट की जिप खोली, बेबसी में मैंने फूट-फूटकर जोरों से रोना शुरू कर दिया। ये औरत बनने की महीनों की मेरी वो तड़प थी जो आंसू बनकर फूट पड़ी थी। महीनों से मैंने अपने अंदर की औरत देविका की इच्छाओं और सपनों को देव यानी अपने मर्दाना शरीर में कैद कर रखा था। लेकिन आज देविका अपनी पसंदीदा साड़ी को अपने करीब पाकर, हाथों में ब्रा थामकर उस कैद से आंसू बनकर आजाद होना चाह रही थी।

भाभी – ( अपने एक हाथ से मेरे हाथों से ब्रा लेकर साड़ी के ऊपर रखते हुए और अपने दूसरे हाथ से मेरे आंसू पोंछते हुए) – क्यों रो रहा है इतना….. नहीं पहना रही मैं…. विशु की कसम नहीं पहना रही तुझे साड़ी… मजाक कर रही थी… तू बस चुप हो जा .. प्लीज। (मेरे बगल में बैठकर मुझे अपने गले से लगाते हुए।)

लेकिन मेरा रोना थम नहीं रहा था। मैं सिर अभी भी अपने हाथों की तरफ झुकाए हुए जिनमें ब्रा पकड़े हुए था, वहीं देखते हुए रोए जा रहा था। भाभी अपना सिर झुकाकर मेरे चेहरे के नीचे ले आई, ताकि मेरा चेहरा देख सकें। अब मेरी उनके चेहरे पर नजर पड़ी। उनकी पलकों में भी आंसू आ गए थे, बस वो टपक नही रहे थे। चेहरे पर चिंता और घबराहट थी कि मैं क्यों रो रहा हूं। इसी घबराहट में उन्होंने अपने एक हाथ से मेरा चेहरा ऊपर उठाया और दूसरे हाथ से अपना दुपट्टा पकड़कर मेरे आंसू पोंछने शुरू कर दिया। फिर वो लगभग रोते हुए से बोलीं, ‘देख तू चुप हो जा, तुझे मेरी कसम है। मेरे कारण रोया है… देख कसम नहीं मानेगा तो मैं ही मर जाऊंगी… आई प्रॉमिस अब कभी तुझसे ऐसा मजाक नहीं करूंगी।’ (आखिरकार भाभी की आंखों से आंसू टपक ही पड़े)

उनकी कसम और उन्हें रोता देख मैंने भी खुद पर काबू करने की कोशिश शुरू की। वो लगातार अपने दुपट्टे से मेरे आंसू पोंछे जा रही थीं। आखिरकार मेरे आंसू तो थम से गये लेकिन मेरे आंसू पोंछने में लगीं भाभी के आंसू बहे जा रहे थे। अब मेरी बारी थी भाभी को चुप कराने की।

मैं – आई एम सॉरी भाभी। (सिसकते हुए) … जो आप सोच रही हैं वैसा नहीं है। आपका मजाक मुझे कभी बुरा नहीं लगता … वो तो बस आपने जब मुझे देविका….

मैं इतना ही बोल पाया था कि बीच में ही भाभी रोते हुए ही थोड़ी तेज आवाज में बोल पड़ीं.

भाभी – यार.. तेरा देव नाम है, बस चिढ़ाने के लिए देविका बुला दिया। (अब वे मेरे आंसू छोड़कर अपने दुपट्टे से अपने आंसू पोंछने लगीं।)…. I know सुबह से ही मैंने तुझे लड़की-लड़की कहकर बहुत Embarras किया। इतना मुझे नहीं करना चाहिए था। (आखिरकार वो भी अपने आंसू साफ करके चुप हो गईं।)

अब यह तो तय था कि मेरे देविका होने का राज भाभी को पता नहीं चला था। यह तो बस मेरा डर था जिसके चलते मैंने मन में अनेकों कहानियां गढ़ ली थीं।

मैं – भाभी आप गलत समझ रही हैं, वो बात नहीं है। आप मुझे साड़ी भी पहना देतीं, मैं तब भी नहीं रोता। आप मेरी सब कुछ हो। बस कुछ कारण हैं जो मैं बता नहीं सकता। (भाभी की इमोशनल बातें और आंसू देखकर मैं भी इमोशनल हो गया था।)

भाभी (मेरी तरफ देखते हुए) – ऐसी क्या बात है? बता मुझे… क्यों इतना जोरों से रोया? सब ठीक है न तेरे साथ? जो भी बात हो, तू बता। मैं हूं न। (ऐसा कहते हुए भाभी ने अपना हाथ मेरे गाल पर प्यार से रख दिया। ममता भरा प्यार था वे।)

मैं उनकी बात सुनकर चुप रहा। क्योंकि मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया था कि भाभी को इमोशनल देखकर मैं भी इमोशन में कुछ ऐसा कह गया था जो मुझे नहीं कहना था। मैं कह गया था, ‘बस कुछ कारण हैं जो मैं बता नहीं सकता।’ अब तय था कि भाभी वो कारण जानना चाहेंगी ही।

भाभी (मेरा हाथ पकड़ते हुए) – बता न। तेरे साथ सब ठीक तो है न? ये शादी नहीं करनी तो मम्मी से मना कर दूंगी। तू बस बोल… या कोई और बात है।

भाभी की चिंता और भोलापन देखकर, अपनी पास्ट याद करके और मन ही मन यह सोचकर मेरी आंखों में फिर आंसू आ गये कि ‘भाभी कैसे बताऊं आपको कि मेरा तन तो मर्द का है लेकिन मन धीरे-धीरे पूरी तरह औरत का बन चला है, मैं भी आपकी तरह ही एक औरत हूं बस मेरा शरीर आपसे अलग है। कैसे बताऊं आपको कि मेरे अंदर की औरत देविका को घुटन हो रही है इस शरीर में। कैसे बताऊं आपको कि लड़कियों के कपड़े देखकर उन्हें पहनने के लिए मेरी बेचैनी का आलम क्या होता है? कैसे बताऊं आपको कि मेरे बगल में रखी आपकी पीली साड़ी मुझे पहननी है? कैसे बताऊं कि खुद लड़की होकर दूसरी लड़की से शादी कैसे करूं?‘ (भाभी ने मेरे अपने दुपट्टे से मेरी आंखों में आईं आंसू की बूंदों को पोंछा।)

इसी उधेड़बुन में मेरे ज़हन में ख्याल आया कि क्यों न भाभी को सब सच बता दूं? इस पीली साड़ी को पहनने की इच्छा बता दूं और अपने देविका होने का राज बता दूं? मन का बोझ हल्का होगा। यह सोचकर मैंने अपने आंसू रोके।

भाभी (मेरा चेहरा दुपट्टे से पोंछते हुए) – तू फिर से रो दिया… क्या है जो तुझे मन ही मन परेशान कर रही है और तू बता नहीं रहा…. मुझे अपनी दोस्त मानता है न…. फिर बताता क्यों नहीं? देख मेरी ओर.. सुन तो मैं क्या कह रही हूं?

इसी पल मैंने अपने बगल में रखी भाभी की पीली साड़ी और पिंक ब्लाउज अपने हाथों में उठा लिए।

क्या मैंने अपने हाथ में साड़ी और ब्लाउज इसलिए उठाए थे कि उन्हें पहनने की अपनी इच्छा भाभी को बता सकूं? क्या मैंने भाभी को अपने देविका होना का सच बता दिया? क्या उन्हें बता दिया कि एक मर्द होते हुए भी मेरी इच्छा औरत बनने की होती है? मन न होने के बावजूद मई 2019 में मैं क्यों वो हरी साड़ी और पिंक ब्रा-पैंटी पहन रहा था? किस मजबूरी में, किसके कहने पर, किसके दबाव में या किसके लिए मैं क्रॉसड्रेसिंग करता था? ऐसा क्या था कि मैं उस व्यक्ति को खुश करने के लिए अपने स्तनों को पैड लगाकर बड़ा दिखाता था? क्या कोई मुझे ब्लैकमेल कर रहा था? मैसेंजर में मेरी किससे चैट हो रही थी? क्या वह शख्स 4 बजे के बाद मुझसे मिलने आना वाला था और मैं उसी के लिए हरी साड़ी पहनकर लड़की बन रहा था? क्या मैं लड़की बनकर अपनी एक्स गर्लफ्रेंड श्रेया को खुद में महसूस करता था? श्रेया मुझे नहीं मिली तो क्या मैं खुद श्रेया बन जाना चाहता था? क्या मुझे खुद के ही लड़कियों वाले रूप और बदन से प्यार हो गया था? क्या मैं लड़की बनकर लोगों से मिलता था या बाहर घूमने जाता था जो मुझे अपने लिंग को छुपाना पड़ता था और दुनिया के सामने टांगों के बीच का हिस्सा योनि जैसा सपाट दिखाना पड़ता था?

क्या कारण थे कि मैं इतने एक्सट्रीम लेवल पर क्रॉसड्रेसिंग करने लगा था कि मेरे लिए बड़े स्तन, गोल नितंब और सपाट योनि होना बहुत मायने रखता था?


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Part 2

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Part 4

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