वो ढाई साल (IV)

 मेरे जीवन के उन पलों की कहानी जब मैंने खुद के अंदर की लड़की को पहचाना।

भाग ४: सजना है मुझे सजना के लिए

गुलाबी पुशअप ब्रा और गुलाबी पैंटी पहले हुए मैं आईने के सामने खड़ी थी। बाएं कंधे की तरफ मेरे काले लंबे बाल कमर तक लटक रहे थे जिन्हें मैं अपने बाएं हाथ से सहला रही थी और दाएं हाथ से चेहरे पर आती बालों की लटों को कानों के पीछे ले जाकर संवार रही थी और आईने में खुद को ही एकटक घूरे जा रही थी।

दूध से गोरे और संगमरमर से चिकने छरहरे बदन पर गुलाबी ब्रा-पैंटी, गुलाबी लिपस्टिक और गुलाबी नेल पेंट ऐसे दिख रहे थे मानो सफेद वनिला आइसक्रीम पर लाल चैरी रखी हो जिसे हर कोई आइसक्रीम के ऊपर से हटाकर खाना चाहता है और फिर आइसक्रीम को चाटना चाहता है।

मेरा गोरा बदन आइसक्रीम था और ब्रा-पैंटी व लिपस्टिक वो चैरी. बस अंतर इतना था कि इस आइसक्रीम और चैरी को देखकर ‘हर कोई’ नहीं सिर्फ पुरुष ही ललचा सकते थे।

बालों को यूं ही सहलाते हुए आईने के सामने मैं खुद को देखने लगी. गोरा, चिकना, चमचमाता बदन… सामने ही गुलाबी पैंटी से झांकती सपाट योनि… पतली सी कमर…. गुलाबी ब्रा में से झांकते भरे हुए व कसे हुए स्तन जिनका क्लीवेज किसी भी मर्द की रातों की नींद उड़ा दे… सुर्ख गुलाबी होंठ… काजल से सजी काली-काली बड़ी आंखें और काले लंबे बाल…. और ऊंचा लंबा कद… बला सी खूबसूरत लग रही थी मैं।

फिर कुछ सोचकर मैं आईने के सामने से मुड़ी और बिस्तर पर रखा अपना फोन उठा लिया। आईने के सामने मैं लड़कियों वाले अलग-अलग पोश्चर में खुद के फोटो लेने लगी। आईने के सामने आगे की तरफ झुककर ब्रा में अपना पूरा क्लीवेज (स्तनों की गहराई) का भी फोटो लिया. कुछ फोटो पाउट बनाकर लिए तो कुछ अपने बालों पर सैक्सी अंदाज में हाथ फेरते हुए भी लिए। फिर अपने फोन का फ्रंट कैमरा ऑन करके अपने स्तनों को हाइलाइट करते हुए और भी कई फोटो लिए।

फिर बैड के ऊपर चढ़कर मैं लेट गई और अलग-अलग पोश्चर में और भी फोटो लिए। जिनमें कई तो ऐसे सेड्यूसिंग फोटो लिए जो अक्सर मैं इंटरनेट पर दूसरे लड़कियों के देखा करती थी। जिन्हें देखकर मैं अपने पुरुष रूप में हस्तमैथुन किया करती थी।

लेकिन तब क्या पता था कि एक दिन मैं खुद लड़की बनकर उन्हीं लड़कियों की तरह अपने ऐसे फोटो खींचूंगा जिन्हें देखकर कोई दूसरा पुरुष हस्तमैथुन करने को मजबूर हो जाए।

मैंने लेटे-लेटे ही उनमें से कई फोटो मैसेंजर पर किसी को सैंड कर दिए। फिर एसी का रिमोट उठाकर रूम टेम्प्रेचर सैट करने लगी, इसी दौरान घड़ी पर नजर पड़ी तो बिस्तर पर ही बगल में रखी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट उठाकर बिस्तर से उठने लगी। तभी मोबाइल में मैंसेजर का नोटिफिकेशन आया। मैंने झट से फोन उठाया और फिर से लेट गई। फिर नोटिफिकेशन चैक किया…..

‘OMG…. Cant believe… is this you?’ 😮
मैं – ‘Yup’ 😉
वो – ‘उफ्फ…’
मैं – ‘क्या उफ्फ…’
वो -‘यकीन नहीं हो रहा कि ये तुम हो। नजर नहीं हट रही तुमसे… माल लग रही हो मैडम… I’m Speechless’
मैं – ☺☺️
वो -‘कौन कहेगा यार तुम लड़के हो… एक बार कोई देख ले तो दीवाना हो जाए…Looking so hot & sexy 😍😘😘😘😘😘
मैं – हप्प 😄
वो – ‘You have changed a lot. वैसे चुन्नू-मुन्नू तो अब बड़े मोटे हो गये हैं😛😍
मैं – what?

(उसने मेरा ही एक फोटो क्रॉप करके मुझे भेज दिया जिसमें सिर्फ मेरे स्तन दिख रहे थे.)
मैं – really I will kill you. I should not have sent you these pics. Bye. 😡😠
वो – ‘अरे sorry sorry please 🙂 seriously मजाक नहीं, बहुत सही शेप में आ गये हैं। लास्ट जब मिले थे तब तो हाफ भी नहीं थे।‘
मैं – बस बस बब्बा..प्लीज न 😒…. BTW thanks ☺
वो – ‘कब कराया सैक्स चेंज?’
मैं – What?
वो – ‘परफेक्ट बॉडी शेप है। ऐसे ही तो मिल नहीं सकता। बताया भी नहीं और करा भी लिया।’
मैं – सरप्राइज जो देना चाहती थी 😉
वो – ‘सरप्राइज देकर क्या होगा? अभी भी मुझसे शादी करने का इरादा है क्या?’ 😁
मैं- Yup 😜
वो – ‘जब सब नॉर्मल था, तब तो की नहीं शादी। इस तरह तो अब सवाल ही नहीं उठता😀
मैं- I know babba.. I was just kidding… and कोई नहीं कराया सैक्स चेंज वगैरह.
वो – ‘फिर झूठ बोल रही हो। Im not blind. इतने परफेक्ट Boobs & butts और तुम्हारी Pussy सब बता रही है’ 😍😛😋
मैं- हाहाहा, अरे बब्बा नहीं कराया। swear on you.
वो – ‘वो तो आकर चैक करते हैं’ 😉
मैं – हप्प 😊😄
वो – ‘वैसे होंठ बड़े रसीले लग रहे हैं 😍…. So juicyyyy😋😋
मैं – हप्प 😄️…ये जूस किसी के पीने के लिए नहीं है 😉
वो – ‘उफ्फ लड़की की अदा … हाय मैं मरजावां’
मैं – correction please…. लड़के की अदा 😁😆
वो – ‘हाहाहा litterly यार कोई यकीन नहीं करेगा कि ब्रा-पैंटी में ये सैक्सी सी चिकनी चमेली वास्तव में लड़की नहीं, लड़का है 😍… साला क्या सोचकर ऊपर वाले ने तुम्हें लड़का बना दिया… Shit… हर एंगल से पूरे लड़की हो तुम’ 😁😘
मैं – मार डालूंगी हुंह… चलो बाय अब im getting ready … कहां हो अभी?
वो – ‘बस घर से निकलना ही है. then we’ll gonna have fun babe’ 😉
मैं- पहले आ तो जाइए 😉… now finally bye… मुझे साड़ी पहननी है। मेकअप, ज्वेलरी… उफ्फ बहुत कुछ बाकी है। 😥😭
वो – ‘yea bye… I’m excited to see you in Saree.. my cherry😍😘’…. Btw एक आखिरी बात तो सुनो।’
मैं – बोलिए जी 😏
वो – ‘अपने चुन्नू-मुन्नू पर काला टीका लगा लो, नजर लग जाएगी.’
मैं – तुम्हारे अलावा किसी को दिखाना ही नहीं है तो नजर का सवाल ही नहीं 😉
वो – ‘मेरी ही नजर लग गई तो’ 😍😛😋😋
मैं- Don’t worry तुम्हारी नहीं लगेगी. ये तुम्हारे ही तो हैं. I’m all yours 👙😇😘
मैं – चलो अब बाय… कोई मैसेज नहीं करना. बाय भी नहीं प्लीजजजज. वरना 😡

न जाने क्यों मुझे अब खुद से घिन नहीं आ रही थी कि एक पुरुष यानी मर्द होते हुए भी औरतों का लिबास पहनकर अपने फोटो दूसरों को दिखा रहा हूं। मर्द होने के नाते मुझे गर्व अपने लिंग पर करना था लेकिन अपने स्तन और सपाट योनि की तारीफ सुनकर शर्माते हुए मुस्कुरा रहा हूं।

मैंने खुशी-खुशी मुस्कुराते हुए फोन एक तरफ रखा और झट से साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट उठाकर आईने के सामने पहुंच गई। आईने में एक झलक खुद की देखी। इस बार मेरे चेहरे की हंसी और खुशी से मेरी खूबसूरती पहले से अधिक बढ़ी हुई लग रही थी। और मैं इसे यूं ही नही जाने दे सकती थी।

साड़ी-ब्लाउज को एक तरफ रखकर मैंने अपने पैर हरे रंग के पेटीकोट में डाले।

मुझे हमेशा सिर से नहीं, पैरों से ही पेटीकोट पहनने की आदत है ताकि बाल और मेकअप न बिगड़े। अपनी नाभि से चार अंगुली नीचे मैंने पेटीकोट का नाड़ा कमर पर कसकर बांध लिया।

फिर मैंने तुरंत फोन उठाया और फिर से खिलखिलाते चेहरे के साथ अपने कई फोटो कैप्चर किए।

इस बार औरत बनने की खुशी मेरे चेहरे पर थी जिससे चेहरा भी दमका हुआ लग रहा था और बॉडी पोश्चर में भी एक कॉंफीडेंस था। ढीले-ढाले पेटीकोट में मेरे कूल्हे अब और बड़े दिख रहे थे।

अब बारी ब्लाउज की थी। ब्लाउज हाथ में उठाते ही मन में गुदगुदी सी होने लगी. क्योंकि न जाने क्यों ब्रा से भी अधिक ब्लाउज मेरी धड़कनें बढ़ा देते हैं।

वह गहरे हरे रंग का मखमली ब्लाउज था जिसका आगे और पीछे दोनों ओर से गला बराबर था यह डीप नैक ब्लाउज तो था लेकिन पीछे की अपेक्षा आगे स्तनों की तरफ से अधिक डीप लगता था। इसे कसने के लिए आगे की तरफ तीन हुक थे।

मैंने ब्लाउज की दोनों आस्तीनों में अपने हाथ डाले और आगे से तीनों हुक लगा लिए। ब्लाउज की बिल्कुल वैसी फिटिंग थी, जैसी कि मुझे उम्मीद थी। यह मेरे शरीर पर बिल्कुल चिपक सा गया था।

लेकिन यह ब्लाउज मेरे द्वारा पहने गये पिछले सभी ब्लाउज से थोड़ा अलग था। मैंने पहली बार स्लीवलैस ब्लाउज पहना था। और पहली बार ही ऐसा ब्लाउज पहना था जो आगे से डीप नैक हो। इससे पहले जितने भी ब्लाउज पहने वो आगे से मेरे स्तनों को लगभग पूरा ढकते थे और पीठ पर एक तरह से बैकलेस होते थे। लेकिन इस ब्लाउज में पीठ से अधिक खुला स्तनों वाला हिस्सा दिख रहा था और आधे स्तन मेरे ब्लाउज के बाहर नजर आ रहे थे।

मैंने आईने में एक बार खुद को पेटीकोट-ब्लाउज में देखा। ब्रा स्ट्रेप ब्लाउज से बाहर झांक रहे थे। दोनों स्ट्रेप को ब्लाउज के अंदर बने हुक्स में फंसाकर मैंने एक झलक खुद को आईने में देखा। ब्लाउज को थोड़ा-बहुत एडजस्ट करने के बाद ब्लाउज के ऊपर से अपने स्तनों को दोनों हथेलियों में भरकर एक बार जोर से दबाया।

हल्का सा दर्द तो हुआ लेकिन चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट भी आ गई। वो मुस्कुराहट बता रही था कि मैं उस वक्त भूल गया था कि मैं औरत नहीं, वास्तव में एक मर्द हूं और मेरी सच्चाई ब्लाउज से झांकते ये गोल बड़े स्तन नहीं हैं बल्कि पैंटी के अंदर छुपा मेरा लिंग है।

तब आईने के सामने मेरी छवि टीवी सीरियल्स या फिल्मों की उन भाभी की तरह दिख रही थी जो अपने पति के साथ सैक्स करने के बाद बिस्तर से उठकर पेटीकोट और ब्लाउज पहने हुए आईने के सामने खड़ी हो जाती हैं। पुरुष रूप में किसी का ‘देव जीजू’ मैं बनूं न बनूं लेकिन स्त्री रूप में ‘देविका भाभी’ होने का वह खूबसूरत एहसास हमेशा जिंदा रखने के लिए मैंने पेटीकोट-ब्लाउज में ही अपने कई फोटो ले लिए।

मेरे हाथ तब रुके जब ब्लाउज में से झांकते अपने स्तनों को देख-देखकर मेरी फेक वजाइना के अंदर कैद मेरा लिंग उत्तेजित होने लगा। यहां मुझे फिर अपने उस फैसले पर पछतावा होने लगा कि आखिर क्यों मैंने वो वजाइना नहीं पहनी जिसमें सैक्स और पेशाब करने के लिए छेद था।

मैंने फोन एक तरफ रखा और पहनने के लिए हरे रंग की नेट वाली ट्रांसपेरेंट साड़ी उठाई। साड़ी का एक छोर अपनी नाभि के ठीक नीचे पेटीकोट में दबाया और अपने बदन पर लपेटने लगी। मेरे बाल खुले ही हुए थे जो इस दौरान बार-बार मेरे चेहरे पर आ रहे थे। लेकिन मैं उन्हें बांधना नहीं चाहती थी क्योंकि वो मुझे औरत होने का एहसास करा रहे थे। हां, मुझे अब सब अच्छा लगने लगा था।

अजीब था कि कुछ ही मिनटों पहले हाथों में ब्रा पकड़े अपने पुरुष रूप में बिस्तर पर बैठा था और लड़की बनने का मन नहीं था। और अब लड़की बनना अच्छा लगने लगा था। क्या इसके पीछे मैंसेजर में उस अज्ञात व्यक्ति से हुई चैट का असर था या अपनी खूबसूरती का गुमान या फिर यह लड़कियों के नाजुक कपड़ों का वो खूबसूरत एहसास था जिनका नशा और आकर्षण मुझ पर हावी हो गया था। इनमें से कुछ तो था या शायद सब कुछ था। पर जो भी था, बड़ा अच्छा था।

उफ्फ… आज सोचता हूं तो लगता है कि मर्द होना भी क्या खाक जिंदगी है। असली मजा तो औरत होने में है।

बहरहाल, साड़ी की प्लीट्स बनाकर पल्लू मैंने अपने बाएं कंधे पर चढ़ाकर उसकी लंबाई सैट की और जमीन से बस चार अंगुली ऊंचा पल्लू रखा।

जब संतुष्टि हो गई कि मैंने सही से साड़ी पहन ली है तो आईने के सामने जाकर दाएं-बाएं पलटकर अंतिम संतुष्टि करने लगी। चूंकि साड़ी का कपड़ा बहुत पतला और मुलायम था इसलिए पल्लू बार-बार मेरे कंधे से खिसक रहा था और मैं उसे संभाल रही थी।

साड़ी पहनते ही मेरी बची-खुची मर्दानगी ने भी मेरा साथ छोड़ दिया था। एक हाथ से मैं अपना पल्लू संभाल रही थी और दूसरे हाथ से अपने लंबे बालों को। जब पल्लू कंधे से सरक जाता था तो बालों को छोड़कर दूसरे हाथ से भी उसे कंधे पर चढ़ाने लगती थी।

पल्लू का मेरे कंधे से सरक कर बांहों पर फिसलना मेरे लिए वो एक नया अनुभव था क्योंकि कभी मैंने स्लीवलैस ब्लाउज नहीं पहने थे। इसलिए मेरी पूरी खुली चिकनी बाहों पर साड़ी का वो नरम-मुलायम स्पर्श एक खूबसूरत एहसास दे रहा था. जिससे उत्तेजित होकर मेरी चिकनी बांह के रोएं खड़े हो गये थे. साथ ही मेरी बांह मुझे पहले से अधिक नाजुक लगने लगी.

पल्लू संभालते – संभालते ही मैं मुंह से बुदबुदाई, ‘यार, चूड़ियां पहनकर इसे कैसे संभालूंगा। बहन** फालतू ही ये साड़ी पहन ली। ब्रेस्ट भी पूरे दिख रहे हैं।‘

तन से तो मैं देविका बन गई थी। मन भी मेरा खुद को औरतों के लिबास में देखकर खुश था। मेरी चाल-ढाल, हाव-भाव, अदाएं और नजाकत इस बात की गवाह थीं कि मैंने अपनी मर्दानगी खो दी है. लेकिन सच तो यही था न कि साड़ी में दिख रहे देविका के आकर्षक बदन का मालिक देव था। देविका तो बस किराएदार थी। जिसने देव के मर्द शरीर को साड़ी पहनाकर स्त्री में तब्दील कर दिया था।

इसलिए जब देविका साड़ी से अपने शरीर को ढंकने के लिए स्ट्रग्ल कर रही थी तो उस शरीर के असली मालिक देव के मुंह से Frustration में गाली निकल गयी।

शायद अपनी चौड़ी छाती की जगह ब्लाउज से बाहर झांकते बड़े-बड़े स्तनों का खुलापन भी देव की आंखों में चुभा या फिर वो देविका थी जिसे अपने स्तनों के एक्सपोजर से लाज आ रही थी?

हां, वो साड़ी मेरे स्तनों को भी नहीं छिपा पा रही थी। ब्लाउज पहले से आगे से बड़े गले का था और साड़ी भी ट्रांसपेरेंट। उसका पल्लू मेरे आंचल (स्तनों) को ढंकने की वैसी ही नाकाम कोशिश कर रहा था जैसे छलनी चांद को ढकने की कोशिश करती है।

मैं पल्लू को हाथ से कंधे पर संभाले-संभाले ही आईने के बाईं ओर बनी दराज की ओर गई। साड़ी के पहनने के बाद अब मेरी चाल बिल्कुल बदल गई थी। मुझे नाक की सीध में छोटे-छोटे कदम आगे बढ़ाने पड़ रहे थे जिससे मेरे कूल्हे और कमर पहले से भी अधिक लचक और बलखा रहे थे। हर कदम के साथ मेरी चिकनी जांघें आपस में रगड़ खा रही थीं। लेकिन, फिर भी मैं चलने में पूरी कंफर्टेबल थी। क्योंकि मेरे लिए अब यह कोई नया अनुभव नहीं था। अब तो यह वो खूबसूरत एहसास लगने लगा था जो सिर्फ औरतों को मिलता है, पुरुषों को नहीं। लेकिन मैं पुरुष होकर भी इस एहसास को जी रही थी।

कितने बदनसीब होते हैं न पुरुष कि उन्हें कोई चलते वक्त देखता तक नहीं। मेरे साथ भी यही था लेकिन जब लड़की बनकर साड़ी पहनकर चलती थी तो हमेशा खुद पर ये कॉंफीडेंस रहता था कि मेरी चाल देखकर ही पुरुषों का लिंग बेकाबू हो जाएगा।

वैसे किसी पुरुष की तो साड़ी पहनकर सहजता से चलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लड़कियां भी साड़ी पहनकर चलने में असहज हो जाती हैं। वहीं, हर क्रॉसड्रेसर के लिए साड़ी पहनना सपना तो होता है लेकिन जब वह साड़ी पहनकर चलता है तो वही खूबसूरत सपना मुश्किल भरा लगता है।

लेकिन, मैं पुरुष भी हूं और क्रॉसड्रेसर भी। फिर भी साड़ी पहनकर उसी नजाकत और सहजता से चलती हूं, जितनी नजाकत और सहजता से मेरी भाभी चलती हैं।

खैर, अब मैंने ड्रेसिंग टेबल के बाईं ओर की दीवार पर वार्डरोब की खुली पड़ी दराज में खड़े-खड़े ही झुककर कुछ ढूढ़ना शुरू कर दिया। लेकिन साड़ी पहनने के बाद झुककर हाथों से कुछ ढूंढ़ना ब्रा-पैंटी में झुकने की अपेक्षा बहुत कठिन होता है।

मेरा एक हाथ मेरे आंचल से पल्लू को सरकने से रोके हुए था तो दूसरे से मैं बार-बार अपने बालों को संवार रही थी। चूंकि मैं झुकी हुई थी तो बार-बार मेरे खुले हुए बाल चेहरे पर आ जाते थे। पहले उन्हें संवारती, फिर दराज में हाथ डालकर अपनी चीज खोजती, फिर बालों को संवारती। इस तरह थक हार कर मैं घुटने मोड़कर नीचे बैठ गई।

अब मेरा पल्लू भी कंधे पर डट गया और बालों ने भी चेहरे पर आना बंद कर दिया। फिर झट से मैंने वो चीज ढूंढ़ ली जिसे ढूंढ़ रही थी यानी कि साड़ी पिन।

रंग-बिरंगी ढेरों डिजाइनर साड़ी पिन मैंने एक पेपर बैग में रख रखीं थीं। उनमें से अपनी साड़ी की मैचिंग का एक पिन सैट निकाला और बाकी वहीं रखकर फिर से आईने के सामने पहुंच गई। सबसे पहले एक पिन से मैंने अपने पल्लू को ब्लाउज में अटका दिया और दूसरी पिन साड़ी की प्लीट्स में लगाई।

पहले मैं बहुत पिन लगाया करती थी लेकिन अब साड़ी में इतनी सहज हो गई थी कि दो ही पिन में काम चल जाता था।

अब आईने के सामने मैंने खुद को देखा। स्लीवलैस ब्लाउज में मेरे पतले-पतले हाथ आकर्षक लग रहे थे। वैक्स और बॉडी लोशन के चलते उनकी चिकनाहट चमक मार रही थी। बाई बांह पूरी पल्लू से ढंकी थी। पल्लू संभालने के लिए जिसे मैंने मोड़ रखा था।

नेट की उस ट्रांसपेरेंट हरी साड़ी में मेरे ब्लाउज का पूरा शेप और डिजाइन साफ दिख रहा था। मेरे गोरे चिकने स्तनों की गहराई और गोलाई न तो वो बड़े गले का ब्लाउज छिपा पा रहा था और न ही वह ट्रांसपेरेंट साड़ी।

पतले कपड़े की होने के कारण वह साड़ी मेरे तन से चिपक सी गई थी। जिसके चलते मेरी 27 इंच की पतनी कमर और नाभि बिल्कुल साफ-साफ दिख रही थी। मेरे गोरे बदन पर रट्टी भर भी फैट नहीं था इसलिए वो साड़ी मुझ पर इतनी अधिक आकर्षक दिख रही थी मानो मैं कोई जीती-जागती लड़की नहीं, किसी शोरूम में रखी परफेक्ट फिगर की Mannequin (पुतला) हूं।

साड़ी के पारदर्शी पल्लू से ढंकी मेरी पतली, चिकनी और नाजुक बांह को देखकर कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि कुछ समय पहले ये किसी पुरुष का 15 इंच बायसेप्स वाला मजबूत बाजू हुआ करता था। ब्लाउज से बाहर झांकते और साड़ी के पल्लू से खुद को छिपाने की नाकाम कोशिश करते मेरे स्तनों को देखकर कोई सपने में भी नहीं कह सकता था कि कुछ समय पहले यह एक पुरुष की चौड़ी छाती थी।

खैर, काजल से सजी आंखें, गहरे गुलाबी होंठ, गुलाबी रंगे नाखून, बड़े-बड़े स्तन, साड़ी में लिपटे बदन और बाएं कंधे से कमर तक लहराते काले लंबे बाल काफी थे मुझे देव से देविका बनाने के लिए।

लेकिन अपनी भाभी को अक्सर कहते सुना था कि औरत जब एक बार सजना शुरू करती है तो उसे पति तो क्या भगवान भी नहीं रोक सकते।

मैं भी तो अब एक औरत थी। भगवान तो दूर, मुझे तो रोकने के लिए मेरा पति तक नहीं था, तो मैं कैसे रुक जाती भला?

वैसे भी जो पुरुष मर्दानगी नहीं दिखा पाते, उन्हें दुनिया यही तो कहती है कि तू मर्द नहीं है, चूड़ियां पहन ले। देव यानी एक मर्द होते हुए भी देविका यानी औरत का रूप धरने के बाद मुझे भी कौन मर्द कहता। इसलिए चूड़ियां पहनना मैं डिजर्व करता था।

बहरहाल कपड़े पहनकर और सज-संवरकर मर्द से औरत तो बन सकते हैं लेकिन औरत बनकर जब कोई मेहनत का काम करना हो तो बहुत बेबस हो जाते हैं।

मेरे श्रृंगार में अब बस गहनों की कमी थी और गहने वार्डरोब की सबसे ऊपरी दराज में रखे थे जहां तक पहुंचने के लिए मुझे ऊंची टेबल की जरूरत होती है। लड़की बनते वक्त हमेशा मैं गहने पहले ही निकाल कर रखती थी। लेकिन उस दिन भूल गई थी।

मैं बिस्तर के दूसरी ओर गई जहां मेरी स्टडी टेबल रखी थी। उसका सामान हटाकर मैंने अल्मारी में रख दिया और दोनों हाथों से टेबल उठाने लगी। लेकिन, साड़ी में लिपटे बदन, बांह से सरकते पल्लू और लहराते बालों को बार-बार संभालते हुए व स्तनों के भारीपन के चलते मैं इतनी कमजोर हो गई थी कि टेबल उठाना तो दूर ढंग से हिला भी नहीं सकी जबकि अपने पुरुष रूप में दोनों हाथों से उसे ऊपर उठा लेती थी।

थक हारकर मैं दोनों हाथों से टेबल घसीट-घसीट कर वार्डरोब तक ले गई। लेकिन मेरी मुसीबत का अंत नहीं हुआ। साड़ी पहनकर ऊंची टेबल पर चढ़ना असंभव था। मैं ड्राइंग रूम से एक छोटा टेबल लेकर आई और बड़े टेबल के नीचे सीढ़ी बनाकर उसे रख दिया। अब मैं छोटे टेबल पर चढ़ने लगी लेकिन साड़ी पहनकर उस पर भी चढ़ना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। चढ़ने की इसी कोशिश में मेरे पैर के अंगूठे का नाखून टेबल के किनारे से टकरा गया। मैंने जोर से चिल्लाया, ‘आउच’ और झट से बैड पर बैठकर अंगूठा पकड़कर रोने जैसी सिसकियां मुंह से निकालने लगी। अपने दर्द को छिपाने के लिए दोनों होठों को दांतो तले दबाकर आंखें बंद कल लीं।

दो मिनट बाद मैं उठी और छोटी टेबल को बिस्तर से सटाकर लगाया और बड़ी टेबल को छोटी टेबल के साथ। इस तरह मैंने तीन सीढ़ियां बना लीं। पहले बिस्तर पर चढ़ी, उसके बाद छोटी टेबल पर और फिर बड़ी टेबल पर।

देविका क्रॉसड्रेसर की साड़ी
यही वो साड़ी और ब्लॉउज है जो देविका ने उस शाम पहनी थी। आखिर वो क्यों इस तरह साज सँवरकर बैठी थी और किसके लिए?

साड़ी पहनने की सबसे बड़ी चुनौती यही होती है कि तन की नजाकत और कोमलता इतनी बढ़ जाती है कि आप किसी फूल की नाजुक कली बन जाते हैं जिसे हमेशा किसी मजबूत सहारे की जरूरत होती है और वो सहारा सिर्फ मजबूत पुरुष ही दे पाते हैं। लेकिन मैं तो खुद एक पुरुष थी, पर मजबूत नहीं थी। और उस रूप में तो पुरुष कहलाने की हकदार भी नहीं थी। खुद को स्त्री बनाकर मैंने इतना असहाय बना लिया था कि किसी दूसरे मजबूत पुरुष के सहारे की जरूरत महसूस कर रही थी।

बहरहाल टेबल पर चढ़कर दराज से मैंने गत्ते का एक बड़ा सा बॉक्स उठाया और उसे बड़ी वाली टेबल पर रख दिया। फिर धीरे-धीरे उतरकर जमीन पर आई और उस बड़े बॉक्स में से एक शॉपिंग बैग और कुछ ज्वेलरी बॉक्स निकालकर ड्रेसिंग टेबल पर रख दिए।

फिर मैंने वार्डरोब का एक और दराज खोला। इसमें अलग-अलग रंग की चूड़ियों के कई सारे डिब्बे रखे थे। ऊपर ही रखा एक डिब्बा लेकर मैं ड्रेसिंग टेबल की ओर चल दी।

तभी मेरा फोन बजने लगा। मम्मी का फोन था। फोन उठाने में मुझे झिझक सी हो रही थी, मानो कि साड़ी पहनकर इस रूप में मम्मी का सामना करना हो। झिझक स्वाभाविक थी क्योंकि अपने जिस लाडले बेटे पर उन्हें गर्व था वो अकेले में ऐसा काम कर रहा था जिसे देखकर शर्म से उनका सिर झुक जाये। कौन मां भला अपने जवान लड़के को साड़ी पहनकर पल्लू से स्तनों को छिपाते देखना चाहेगी?

लेकिन फोन तो मुझे उठाना ही था। फोन न उठाने का मतलब होता कि मम्मी और भाभी को मेरी चिंता होती। वे या तो खुद मुझे देखने चली आतीं या फिर भैया को भेज देतीं। मैंने फोन उठाया और आईने के सामने ही ड्रेसिंग टेबल वाली स्टूल खिसकाकर बैठ गई,

मैं – ‘हैलो मम्मी’

मम्मी – ‘देव बेटा वो तेरे कपड़े धुल गये थे। आकर ले जा।‘

मैं – ‘सोमवार को लेने आऊंगा मम्मी’

मम्मी – ‘अरे ऑफिस के काम में बिजी हो तो मैं भिजवा दूं किसी से।‘

मैं – ‘नहीं, नहीं मम्मी। मत भेजो मैं आ जाऊंगा।’

मम्मी – अरे तो चार दिन हो गये। तेरे बचे हुए कपड़े भी गंदे हो गये होंगे। पहनेगा क्या? अभी क्या पहन रखा है तूने?

(मम्मी के यह पूछते ही मुझे शॉक सा लगा मानो उन्होंने साड़ी पहने हुए मुझे रंगे हाथों पकड़ लिया हो। मेरा साड़ी का पल्लू भी मेरी बांह से नीचे खिसक गया।)

आईने में खुद को देख कर अपना पल्लू संवारते हुए मैं धीरे से बोली – कपड़े मम्मी और क्या?

(यह बोलते हुए मेरे शब्दों में एक शर्म थी इसलिए बहुत ही धीरे से ये शब्द जुबां से निकले।)

लेकिन मां तो मां होती है, उससे अपनी भावनाएं छुपाना बहुत मुश्किल होता है।

मम्मी – ऐसे क्यों बोल रहा है? कहां खोया हुआ है? कहीं बिजी है क्या?

(उफ्फ कैसे बताता मां को सच कि आपके बेटे यानी मैंने भी आपकी ही तरह साड़ी पहन रखी है और उसी साड़ी के पल्लू को संवारने में खोया हुआ हूं।)

‘नहीं मम्मी, बस बॉस के प्रजेंटेशन देने के लिए प्रोजेक्ट तैयार कर रहा हूं.’

(मैं मम्मी से कभी झूठ नहीं बोलता, लेकिन तब उन्हें बता भी तो नहीं सकता था कि वो प्रोजेक्ट मैं खुद हूं और साड़ी पहनकर खुद को औरत बनाकर किसी के सामने पेश होने की तैयारी कर रहा हूं।)

मम्मी – ठीक है कर ले तैयार। कपड़ों की जरूरत हो तो बता देना। गंदे मत पहनना। ज्यादा हो तो नये अंडरवियर बनियान ले लेना।

मैं (आईने के सामने खड़े होकर अपनी साड़ी के पल्लू और लंबे बालों को संभालते हुए) – हां मम्मी बता दूंगा।

मां का अकेले रहने वाले बेटे की फिक्र करना जायज ही था। क्योंकि उन्हें थोड़ी न पता था कि पिछले चार में से तीन दिन तो उनके बेटे ने लड़कियों के कपड़े पहने हैं तो पुरुषों वाले कपड़े गंदे होने का सवाल नहीं नहीं था. उन्हें थोड़ी न पता था कि उनका गबरू जवान बेटा तन से तो पुरुष है लेकिन मन से पूरा औरत बन चुका है जिसके पास पहनने के लिए औरतों वाला हर लिबास है। अंडरवियर बनियान न भी हों तो वह ब्रा और पैंटी पहनकर काम चला लेगा।

फोन काटने के बाद मैंने ड्रेसिंग टेबल पर ज्वेलरी बॉक्सेस के साथ रखे शॉपिंग बैग में से दो बॉक्स निकाले। एक बॉक्स खोला उसमें मेरे ब्लाउज के रंग से मैच करते आठ गहरे हरे रंग के स्टोन जड़े हुए कंगन थे। उनमें से दो-दो कंगन मैंने अपनी दोनों कलाईयों में पहन लिए। फिर ड्रेसिंग टेबल पर रखा बैंगल बॉक्स खोला। उसमें चार दर्जन गुलाबी कांच की चूड़ियां थीं, मेरे लिपस्टिक और नेल पेंट के कलर से मैच करती हुईं। धीरे-धीरे करके मैंने अपनी दोनों कलाईयों में दो-दो दर्जन चूड़ियां पहन लीं और उनके ऊपर बाकी बचे दो-दो कंगन पहन लिए। इस तरह हर कलाई में 4 कंगन और 24 चूड़ियां पहनते ही मेरी कलाईयां उनके वजन से अपने आप ही नीचे झुक गईं।

मैं सभी खाली बॉक्स को इकट्ठा करके शॉपिंग बैग में रखने लगी। अब तक मेरे देव से देविका बनने की रस्में शांति से हो रही थीं। लेकिन मेरे बदन की जरा से हरकत से मेरे हाथों की चूड़ियों की खनखनाहट से सारा कमरा गूंजने लगा था।

वह सबसे खूबसूरत एहसास था लेकिन साथ में मुश्किल व शर्मिंदगी भरा भी तब होता था जब मैं हाथों से अपने बाल संवारकर कान के पीछे ले जाती थी। कानों के करीब होने वाली चूड़ियों की खनखनाहट दिल दिमाग में गूंजने लगती थी।

कभी-कभी यह खनखनाहट शर्मिंदगी का भी एहसास कराती थी कि कैसा मर्द हूं मैं जो हाथों में चूड़ियां पहन रखी हैं। छी… नामर्द हूं मैं।

बहरहाल आईने के सामने आकर मैंने अपने चेहरे के सामने करके दोनों कलाईयों में पहनी चूड़ियों को देखा।

बता दूं कि मेरी कलाईयां हमेशा से ही लड़कियों की तरह बहुत पतली हैं। जब मैं जिम किया करता था, तब भी वो पतली ही थीं और कभी उनका साइज नहीं बढ़ा। मेरी कलाईयां कितनी ज्यादा पतली हैं उन्हें इस उदाहरण से समझिए कि एक बार मेरी एक्स गर्लफ्रेंड ने मजाक-मजाक में मेरी कलाईयों से अपनी कलाईयों की तुलना करते हुए कहा था, तुम्हारी कलाईयों से तो मेरी कलाईयां दोगुनी मोटी हैं। मैंने तुम्हारी कलाई पकड़ ली तो छुड़ा भी नहीं पाओगे बच्चू।

इसलिए मेरी दूध सी गोरी, पतली और चिकनी कलाईयां चूड़ियां पहनकर बहुत ज्यादा आकर्षक लग रही थीं। मानो कि वे बनी ही चूड़ियां पहनने के लिए थीं। पुरुष रूप में मुझे अपनी कलाईयां दिखाने से शर्म आती है इसलिए हमेशा फुल स्लीव लूज टी शर्ट पहनता हूं। लेकिन इन्हीं कलाईयों में चूड़ियां पहनने के बाद मुझे शर्म नहीं गर्व का अनुभव होने लगता है।

यही गर्व मुझे तब हुआ जब आईने के सामने चेहरे के पास लाकर अपनी गुलाबी चूड़ियों को देखा। गुलाबी चूड़ियां, गुलाबी नाखून, गुलाबी होंठ सभी एक फ्रेम में देखकर मुझे कुछ याद आया और मैं झट से वार्डरोब के खुले पड़े दराज की ओर गई जिसमें एक कोने में रबर बैंड से बंधी बिंदिया उठा लीं। उन बिंदियों में से एक गोल गुलाबी बड़ी बिंदी का पत्ता निकालकर आईने के सामने आ गई। एक बिंदी निकालकर मैंने अपने माथे पर लगा ली। बिंदी लगाकर आईने में खुद को देखती, उससे पहले ही मेरा फोन बज उठा।

जब स्क्रीन पर नाम देखा तो मेरे दिल की धड़कनें कई गुना तेज बढ़ गईं। सांसें तेज हो गईं। हाथ कांपने लगे। बदन के रोंगटे खड़े हो गये और माथे पर पसीना आ गया। मैं घबराए हुए चेहरे से एकटक बस स्क्रीन को देखे जा रही थी लेकिन फोन उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी।

दाहिने हाथ में मेरे फोन था और बायां हाथ मेरी बेचैनी की गवाही दे रहा था। अपनी घबराहट पर काबू पाने के लिए कभी मैं बायां हाथ अपने मुंह पर रखती तो कभी तेज सांसों के चलते ऊपर-नीचे हो रहे मेरे स्तनों पर। कभी पल्लू से खेलने लगती तो कभी बालों की लटों से। इतनी घबराहट थी कि सिर्फ 60 सेकंड में ये सब क्रियाएं कर लीं। फोन का बजना बंद हुआ तो मैंने थोड़ी राहत की सांस ली लेकिन पल भर ही बीता था कि वह फिर से बजने लगा। मेरे पैर भी कांपने लगे थे। इसलिए मैं आईने के सामने ही जमीन पर पैर लटकाकर बिस्तर पर बैठ गई।

मैंने फिर फोन नहीं उठाया। अगले ही पल एक एसएमएस आया।

‘Dev, pick up the Phone. Its urgent.’

यह पढ़कर चिंता और घबराहट में मैंने अपने निचले होंठ का बायां कोना दांतों के बीच दबा लिया और बाएं हाथ से अपने बालों की लटों से खेलते हुए कुछ सोच में पड़ गई। अगले ही पल फिर फोन बजा। इस बार मैंने उठा लिया।

‘हैलो। क्या कर रहे थे आप? कब से फोन लगा रही हूं। उठा क्यों नहीं रहे थे?’

(फोन पर जो लड़की बोल रही थी, वो कोई और नहीं मेरी एक्स गर्लफ्रेंड श्रेया थी।)

‘कहीं बिजी था।’ (बड़ी मुश्किल से मेरे गले से ये तीन शब्द कांपते हुए निकले।)

मेरे शब्दों का कांपना, मेरी घबराहट, मेरी धड़कनें बढ़ना स्वाभाविक था। आखिर कौन लड़का अपनी एक्स गर्लफ्रेंड से इस रूप में यानी औरत बनकर बात करना चाहेगा। वो भी उस एक्स गर्लफ्रेंड से जिसने उसे धोखा देकर किसी और मर्द से शादी कर ली हो।

अक्सर लड़की जब धोखा देती है तो लड़के की मर्दानगी बढ़ जाती है। वह मसल्स बनाकर और हैंडसम दिखता है। उसका एग्रेशन बढ़ जाता है। जिसे दिखाकर वो एक्स गर्लफ्रेंड को जलाता है।

लेकिन मेरे हाथों में खनखनाती चूड़ियां बता रही थीं कि मैंने खुद को मर्द कहलाने लायक भी नहीं छोड़ा। हैंडसम की जगह ब्यूटीफुल बन गया। एग्रेशन बढ़ना तो दूर जो था, वो भी खो दिया। एग्रेशन की जगह अब साड़ी के पल्लू से अपने स्तनों को छिपाने वाली लाज, शर्म और नजाकत ने ली ली थी।

हां, श्रेया अब मुझसे एक ही सूरत में जल सकती थी कि वो मेरी खूबसूरती देखकर इतनी इनसिक्योर हो जाए कि उसे लगे कि उसका पति उसके एक्स बॉयफ्रेंड यानी मुझे उसकी सौतन न बना ले।

‘हांफ क्यों रहे हो और आवाज क्यों कांप रही है… देव, जिम हो क्या आप….’

खुद को सामान्य करने की कोशिश में अपनी अंगुलियों से चेहरे के सामने आ रही बालों की लटों को कान के पीछे ले जाते हुए और अपने स्तनों पर हाथ रख सांसों पर काबू पाते हुए मैं बोला, ‘नहीं नहीं… वो तो…..’

श्रेया ने बीच में ही मेरी बात काटते हुए पूछा, ‘ये इतनी तेज चूड़ियों की आवाज किसकी आ रही है?’

मैंने मन ही मन खुद को कोसा, यार चूतिए बिल्कुल फोन के पास हाथ से बाल संवारते वक्त कैसे भूल गया कि तूने चूड़ियां पहन रखीं हैं। श्रेया को आवाज जाएगी.

मैं बिल्कुल सकपका गया। घबराहट और तेज हो गई। दिमाग में कुछ समझ नहीं आया और मैंने कहा दिया, ‘टीवी में से आ रही है।’

‘ओ हेलो मिस्टर, टीवी में से आवाज आती तो सिर्फ चूड़ियों की आती क्या? म्यूजिक-डायलॉग की भी आती… झूठे… सच सच बताओ किसके साथ हो?’

(अब मैंने खुद को बिल्कुल स्टेच्यू कर लिया था कि गलती से भी मेरी चूड़ियां न खनकें।)

‘अरे किसी के साथ नहीं। फ्लैट पर हूं अकेला। काम कर रहा हूं।’

‘ओहहहहहहहहहह…. काम… कौन सा वाला?’ (श्रेया थोड़ा खिलखिलाते हुए ताना मारने वाले अंदाज में बोली)

‘लिखना-पढ़ना और कौन सा काम करूंगा?’

‘मुझे लगा कि अपनी चूड़ी वाली फ्रेंड के साथ वो वाला काम कर रहे हो।‘ (ऐसा कहते हुए वह जोर-जोर से हंसने लगी) (उसका इशारा था कि मैं किसी लड़की के साथ सैक्स कर रहा हूं।)

‘बस बकवास करवा लो तुझसे तो…’(मैंने थोड़ी धीमी सी आवाज में नजरें झुकाते हुए कहा।)

(नजरें मेरी शर्मिंदगी से झुक गईं थीं। क्योंकि मेरी एक्स गर्लफ्रेंड श्रेया सोच रही थी कि उसका एक्स बॉयफ्रेंड किसी लड़की के साथ सैक्स कर रहा है। जबकि हकीकत यह थी कि मैं तो साड़ी पहनकर और श्रृंगार करके खुद एक लड़की बना बैठा था। किसी लड़की से क्या खाक सैक्स करता। लेकिन उसका क्या दोष, वो तो मुझे मर्द ही समझ रही थी और मर्द औरतों के साथ ही तो सैक्स करते हैं। लेकिन उसे क्या पता था कि उसके एक्स बॉयफ्रेंड को अब औरत बनने का शौक चढ़ गया है। और जब मर्द औरत बन जाते हैं तो वे औरतों से सैक्स करने लायक नहीं रहते बल्कि दूसरे मर्द उनके साथ सैक्स करने का ख्वाब देखते हैं। पर मैं उसे बता भी तो नहीं सकता था न कि ‘श्रेया वो चूड़ियों की खनखनाहट मेरी ही कलाईयों से आ रही थी। मैंने अभी साड़ी भी पहन रखी है। अब मैं मर्द नहीं रहा जो लड़कियों के साथ सैक्स करे। तुम्हारी तरह अब मैं भी एक औरत हूं।)’

श्रेया – ‘तो नई गर्लफ्रेंड मिल गई न मिस्टर देव को अब… Have fun Dude’

मैं – ‘अरे कसम से कोई गर्लफ्रेंड नहीं मिली। Swear on you.’ (मैंने भावशून्य चेहरे के साथ कहा।)

तब नजरें झुकाकर अपने पूरे जिस्म को देखते हुए मन ही मन कहा,

तुम्हारे अलावा कोई मुझे पसंद भी आती है भला। तुम्हारे जाने के बाद इतने साल हो गये। आनी होती तो अब तक तो कोई पसंद आ जाती। और अब तो किसी लड़की को पसंद करने का सवाल ही नहीं। क्योंकि अब मैं मर्द नहीं बचा, खुद एक लड़की हूं।

(उस दिन भले ही मेरी कलाईयों में चूड़ियां थीं, बदन पर साड़ी और श्रेया जितने ही बड़े स्तन मैंने ब्लाउज से ढंक रखे थे, औरतों वाली हर चीज मेरे अंदर थी लेकिन पहला प्यार तो पहला प्यार ही होता है। श्रेया मेरा पहला प्यार थी। भले ही मैं तब देविका के रूप में था लेकिन श्रेया से बात देव ही कर रहा था। मेरे मन की औरत देविका जिसने मेरे तन पर भी कब्जा जमा लिया था और देव को पूरी तरह से दबा दिया था, श्रेया की आवाज ने देव को जगा दिया। थोड़ी देर पहले जो देविका का रूप उसे असीम खुशी दे रहा था और वह अपनी औरताना खूबसूरती पर इतरा रहा था, अब वही रूप देखकर लग रहा था कि ये साड़ी, ब्लाउज, चूड़ियां सब कुछ उतार फेंकूं और खुलकर श्रेया से बात करूं। लेकिन वो सब अब बेड़ियों की तरह शरीर से लिपट गये थे जिन्हें उतारना आसान नहीं था।)

श्रेया – ‘तो फिर क्या वो चूड़ियां आपने पहन रखी हैं?’ (श्रेया ने खिलखिलाते हुए कहा)

मैं – हां… और साड़ी भी पहन रखी है. (मैंने धीमी सी आवाज में कहा।)

श्रेया – फिर एक काम करो फटाफट वीडियो कॉल पर आ जाओ। बहुत किस्से सुने हैं देविका के ….आज देख भी लिया जाए। (श्रेया जोर-जोर से हंसते हुए)

(श्रेया को मैंने पहले कई बार अपने लड़की बनने के शौक या मजबूरी के बारे में बताया था। जब भी मुझ पर देविका हावी होती थी तो उस दौरान सच श्रेया के सामने मेरी जुबां से निकल जाता था। हालांकि, उसने कभी मेरी बातों पर भरोसा नहीं किया था और यही कहती थी कि तुम जैसा माचो और हैंडसम लड़का लड़कियों के कपड़े पहन ही नहीं सकता। मैंने तुम्हे धोखा दिया इसलिए तुम कुछ प्लानिंग कर रहे हो मेरे खिलाफ, इसलिए ऐसी वाहियात स्टोरीज बना रहे हो। हालांकि, मैंने उसे एक-दो बार Convince भी कर लिया था कि अब तुम्हारा एक्स बॉयफ्रेंड देव तन से तो मर्द है लेकिन मन से औरत बन गया है और कभी-कभी औरतों के कपड़े भी पहनता है। इस दौरान मैंने कभी देविका रूप में श्रेया से फोन पर बात नहीं की थी। बहरहाल, मेरा यह सच जानकर भी उसने मुझे कभी नफरत नहीं की या मेरा मजाक नहीं बनाया और किसी के सामने सीक्रेट नहीं खोला। न ही उसने कभी ऐसी डिमांड की कि उसे मुझे औरत के रूप में देखना है। लेकिन जब मेरे तन का मर्द देव मेरे मन की औरत देविका पर हावी हो जाता था तो मैं श्रेया के सामने खुद को मर्द साबित करने के लिए उसे बोला देता था कि मेरे देविका बनने की कहानी झूठी है और तुम्हें इसलिए सुनाई क्योंकि तुम हमेशा अपने पति की बातें करती हो। मुझे पसंद नहीं कि तुम अपने पति की बातें मेरे सामने करो। इसलिए तुम्हें इरीटेट करने के लिए यह स्टोरी क्रिएट की। मैं क्या नामर्द हूं जो तुम उसकी बातें करती हो? इसलिए मैंने तुम्हें इरीटेट करने और इंडायरेक्टली इशारा करने के लिए कि मैं नामर्द नहीं हूं, अपने नामर्द होने की स्टोरी क्रिएट की।

इस तरह श्रेया खुश हो जाती और कहती कि मैं तो पहले ही जानती थी कि तुम लड़की बन ही नहीं सकते। लेकिन इसके बाद श्रेया मेरी देविका वाली कहानी को लेकर अक्सर मुझसे मस्ती-मजाक करती रहती थी और देविका कह-कहकर चिढ़ाती थी। उस दिन भी वीडियों कॉल पर आने का वो मुझे चिढ़ाने के लिए ही कह रही थी। उसे लग रहा था कि मैं मजाक कर रहा हूं।)

मैं- मुझे शर्म आती है इस रूप में वीडियो कॉल पर आने में। (धीरे से भावशून्य होकर)

श्रेया – प्लीचचच न…. प्लीचचचच प्लीचचचचचच (बच्चों की तरह आवाज निकालते हुए)

मैं – मैं फोन काट दूंगा.. बकवास न कर। (उसके बच्चों की तरह जिद करने से मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई थी और थोड़ा सा शर्माने वाले लहजे में मैंने कहा।)

श्रेया – जाओ कट्टी, मुझे बात नहीं करनी (मुंह फुलाने वाले लहजे में श्रेया बोली)

मैं – ओके बाय….

श्रेया – अरे मजाक छोड़ो देव सुनो तो… (वो गंभीर होते हुए बोली)

मैं – तू ही बकवास कर रही है…. (थोड़ा नाराजगी भरी धीमी आवाज में कहा)

श्रेया बीच में टोकते हुए बोली – अरे अब शांत रहो… सुनो न यार… (थोड़ा जिद्दी लहजे में)

मैं – हां जी बोलिए मैडम (मैंने थोड़ा मर्दों वाले कॉंफीडेंस में बोला। लेकिन जब मैं ये बोल रहा था तो आईने में मेरी नजर गई। ऐसा लग रहा था मानो कि कोई खूबसूरत लड़की मर्द बनने की घटिया एक्टिंग कर रही हो)

श्रेया – आपके लिए एक सरप्राइज है… बस ये बताओ कि फ्लैट पर ही हो न?

मैं – क्या सरप्राइज है?

श्रेया – पहले बताओ तो देव… (थोड़ा प्यार भरी जिद करते हुए)

मैं – नहीं.. घर पर हूं फैमिली के साथ (हल्का सा मुस्कुराते हुए)

(अब मेरी घबराहट बिल्कुल दूर हो गई थी। एक ओर मैं आईने में अपना औरतों वाला खूबसूरत जिस्म देखे जा रही थी तो दूसरी ओर अपनी एक्स गर्लफ्रेंड से मर्दों की तरह बात कर रहा था। उस वक्त मैं एक ही समय में स्त्री और पुरुष दोनों लिंगों का अनुभव कर रहा था। लेकिन ये अनुभव खास था। क्योंकि हमेशा ऐसा होता था कि देविका मेरे मन में होती थी और तन देव का होता था। लेकिन उस दिन दोनों ने अपनी जगहों की अदला-बदली कर ली थी। तन पर देविका ने कब्जा कर लिया था और मन पर देव ने।)

श्रेया – आपको मेरी कसम सच बताओ

मैं – फ्लैट पर हूं। (मैं श्रेया की कसम कभी नहीं तोड़ता था तो सच बता दिया।)… अब सरप्राइज बताओ।

श्रेया – सरप्राइज बताया थोड़ी जाता। (चुलबुले अंदाज में)

मैं – हिंट तो दो न (जिद्दी भाव से)

श्रेया – बस आज रात तक आपको मिल जाएगा… अब बाय…. और हां साड़ी पहनकर कहीं बाहर मत जाना… पता चला मेरे एक्स बॉयफ्रेंड को किसी ने प्रेग्नेंट कर दिया (श्रेया जोर-जोर से खिलखिलाते हुए)

मैं – ओके बाय…

मैंने फोन एक तरफ रखा और खड़ी होकर आईने के सामने पहुंच गई। लेकिन मेरी चाल, मेरी अदाओं, मेरे चेहरे पर श्रेया से बात करने से पहले जो एक खूबसूरत औरत होने का गुमान था, वो अब गायब था। चेहरे पर वही भाव थे जो तब थे जब मैं कुछ देर पहले अपने असली देव रूप में थी और देविका बनने की सोचकर ही घबराहट हो रही थी। अब तन तो मेरा देविका का था लेकिन मन पर देव ने कब्जा कर लिया था।

लग रहा था कि क्यों श्रेया मुझे छोड़कर चली गई? इतनी सुंदर एक्स गर्लफ्रेंड शादी के बाद भी मुझमें इंटरेस्ट ले रही है, फिर भी क्यों मैं मर्द होते हुए भी किसी और के लिए औरत बनता हूं? वो मुझे इस रूप में देखेगी तो क्या सोचेगी?

ऐसे अनेकों ख्याल जहन में लिए मैंने घड़ी की ओर एक नजर घुमाई और फिर फुर्ती से एक ज्वेलरी बॉक्स उठाकर खोला। उसमें कानों के झुमके थे। मेरी हथेली जितने लंबे सिल्वर कलर के उन झुमकों में गुलाबी कलर के स्टोन जड़े थे जो मेरी लिपस्टिक नेल कलर और बिंदी से मैच कर रहे थे।

मैंने अनमने मन से पहले अपने सीधे कान के छेद में झुमके पहना। श्रेया के बारे में सोचते हुए दोनों हाथों से झुमका पहनने की मशक्कत में मेरी दोनों कलाईयों की चूड़ियां कानों के आगे ही खनखनाने लगीं। उस खनखनाहट ने श्रेया की तरफ से मेरा ध्यान भटका दिया।

फिर मैंने दूसरे कान में झुमका पहनना शुरू किया तो अबकी बार मेरी चूड़ियों की खनखनाहट ने मन पर कब्जा किए बैठे देव पर काबू पा लिया और मुझे फिर देविका बनने पर, अपने औरताना जिस्म पर, खूबसूरती पर गुमान होने लगा।

झुमके वजन में बहुत भारी थे जिससे मेरे कानों पर दबाव बढ़ गया और वे लटकने लगे। झुमकों का भारीपन मैं सिर्फ अपने कानों में ही नहीं, चेहरे पर भी महसूस कर सकती थी। अब मैं अपना सिर इतनी सहजता नहीं घुमा पा रही थी। जरा सा सिर हिलाती तो झुमके मंदिर के किसी घंटे की तरह झूलने लगते थे।

मुझे ऐसे ही झुमके पहनने का हमेशा से शौक रहा और जब जब मैं पहनती थी तो यही सोचती थी कि उफ्फ औरतों को कमजोर कहा जाता है लेकिन कितना वजन वे अपने कानों में लटकाकर चलती हैं, एक मर्द तो कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन मैं वो खुशनसीब मर्द था जिसने कल्पना ही नहीं की बल्कि अपने कानों में झुमकों का भार भी महसूस किया।

कानों में झुमकों का भार संभालना मुश्किल तो था लेकिन गर्दन छूते उन झुमकों का ठंडा स्पर्श जादुई था जो खुद के विशेष होने का एहसास कराता था। सिर हिलाने पर जब वे झुमके गालों को छूते थे तो तन में बिजली से दौर जाती थी और उनके भारीपन से औरत होने की पूर्णता का बार-बार एहसास होने लगता था। उन्हें उतारने का मन नहीं करता था। देविका ही बने रहने की चाहत होती थी, देव को तन-मन के किसी कोने में दबाए रखने का मन होता था।

बहरहाल, मैं अब पूरी तरह से सज गई थी। आईने के सामने अब सीधी खड़ी हो गई। पहले दाएं हाथ को सिर से घुमाकर अपने सभी बालों को बाएं कंधे के आगे कर दिया। फिर दाएं हाथ से ही अपना पल्लू संवारा। बायां हाथ पहले से ही पल्लू को बांह से नीचे सरकने से रोके हुए था। लहराते पल्लू की साड़ी पहनने वाली हर जवान लड़की की तरह मैं भी बाएं हाथ को पल्लू सरकने से रोकने में रिजर्व रखे थी, सिर्फ दायां हाथ ही सारे काम कर रहा था।

अब मैंने एक झलक खुद को आईने में देखा। काले लंबे बाल मेरे सिर से सीधे उतरते हुए नाभि के पास घुंघराले हुए जा रहे थे। माथे पर बड़ी गोल गुलाबी बिंदी, काजल से सजी आंखें, सुर्ख गुलाबी होंठ और बड़े – बड़े झुमके मेरे चेहरे को पहले से भी अधिक छोटा और आकर्षक बना रहे थे। जब मैंने खुद को बिना बिंदी और झुमकों में देखा था तब के मुकाबले अब बिंदी और झुमके से मेरी खूबसूरती कई गुना बढ़ गयी थी।

चेहरे से नजर नीचे डाली तो हरी साड़ी के ट्रांसपेरेंट पल्लू से गहरे हरे ब्लाउज में से मेरे बड़े-बड़े स्तन किसी भी सच्चे मर्द को ललचा सकते थे। (सच्चा मर्द मतलब कि मेरे जैसा मर्द नहीं) ट्रांसपेरेंट साड़ी में दिखती पतली कमर और नाभि के साथ-साथ हरे कंगनों और गुलाबी चूड़ियों से सजे स्लीवलैस ब्लाउज में मेरे पतले-पतले हाथ बता रहे थे कि मैं कोई हाईसोसायटी शादीशुदा लड़की हूं या जल्द ही शादी करने वाली हूं। साड़ी की प्लीट्स भी सलीके से बनी हुई थीं। सब परफेक्ट था।

भगवान ने मुझे इतना गोरा बदन शायद इसी दिन के लिए दिया था. अब तो मुझे बनाने वाला भगवान भी नहीं कह सकता था कि मैं एक पुरुष हूं, औरत नहीं।

तभी मेरे वॉट्सएप का नोटिफिकेशन आया। चैक किया तो श्रेया ने अपना एक फोटो भेजा था। उसने ब्लू डेनिम और ब्राउन टॉप पहन रखा था और पॉनीटेल कर रखी थी।

मैंने हल्की से मुस्कुराहट के साथ उसका फोटो देखा और बुदबुदाया, ‘मोटी’

और फिर आईने में खुद को देखकर मुस्कुराते हुए बुदबुदाया, ‘मैं अपना फोटो भेज दूं तो खुद को सुंदर कहना भूल जाएगी।’

श्रेया ने वो फोटो आईने के सामने पाउट बनाते हुए भेजा था। मैं भी श्रेया की नकल करते हुए आईने के सामने उसी अदा से पाउट बनाने लगी।

अपना दायां कूल्हा आईने की ओर दिखाते हुए और कमर को लचकाकर थोड़ आगे की तरफ झुकाया, बाल और झुमके लटककर मेरे चेहरे पर आ गये, पल्लू को सरकने से रोकने के लिए बाएं हाथ से मैंने स्तनों से चिपकाकर वहीं रोक लिया और आईने के सामने अपने गुलाबी होंठों से पाउट बनाकर फोटो ले लिया  और अगले दो सेकंड उसी मुद्रा में खड़ा रहकर बुदबुदाया, ‘I’m more hot and Sexier than you mrs. Shreya Sharad Gupta.’ और आईने में खुद को फ्लाइंग किस दे दिया और अपने स्तनों की ओर देखकर तुतलाते हुए मस्ती में कहा, ‘मेले चुन्नू-मुन्नू’ और खिलखिलाकर हंसने लगी।

श्रेया ने मुझे अपना फोटो भेजा था और मैंने अपना फोटो मैंसेजर पर किसी और को भेज दिया।

कितना अजीब था न वो सब कि मेरी एक्स गर्लफ्रेंड मुझे मर्द समझकर अपने फोटो भेज रही थी लेकिन मैं खुद औरत बनकर अपने फोटो दूसरों को भेज रहा था।

होना तो यह चाहिए था कि मैं श्रेया को बिस्तर पर ले जाकर अपनी मर्दानगी दिखाता लेकिन हो यह रहा था कि मैं उसका स्त्रीत्व खुद के अंदर देखना चाहता था, उसे दिखाना चाहता था कि अब मैं तुमसे भी ज्यादा सुंदर औरत हूं यानी कि मैं उसे दिखाता चाहता था कि अब मैं नामर्द हो गया हूं। तुम्हारे जैसी ही औरत खुद बनने की कोशिश कर रहा हूं।

पुरुष होते हुए भी स्त्री बनकर अपनी खूबसूरती की तुलना उस लड़की से कर रहा था जो कि मेरी पूर्व प्रेमिका थी जिससे शादी करना चाहता था।

हालांकि औरत रूप में मैं उससे अधिक खूबसूरत दिखता था लेकिन फिर भी न जाने क्यों उसे कॉपी करने की इच्छा होती थी। लेकिन कभी औरत बनते वक्त मैंने उसकी नकल नहीं की थी, ये उस दिन पहली बार था कि मैंने उसके पोश्चर की नकल करते हुए अपना फोटो लिया।

कुछ महीनों में ही कितना ज्यादा बदल गया था मैं। एक वक्त जिस लड़की का फोटो देखकर हस्तमैथुन किया करता था, अब उसी लड़की का फोटो देखकर उसके जैसी लड़की खुद बनना चाहता था।

एक वक्त जिस लड़की के स्तनों को देखकर मेरी मर्दानगी बेकाबू हो जाती थी और हर फोटो में सबसे पहले उसके स्तनों को देखता था। आज फोटो में उसके स्तनों को देखा तक नहीं बल्कि खुद के स्तनों को देखकर खुशी मिल रही थी, गर्व हो रहा था, प्यार आ रहा था।

पहले मैं श्रेया को फोटो को देखकर उसे फ्लाइंग किस भेजता था और अब आईने में खुद को औरत बना देखकर खुद को ही फ्लाइंग किस कर रहा था।

श्रेया मेरा पहला प्यार थी लेकिन अब मुझे देविका से प्यार हो गया था। यानी मुझे खुद से प्यार हो गया था। मेरी जिंदगी में एक नई लड़की आ गई थी और वो नई लड़की मैं खुद था। पहले मैं श्रेया के फोटो को घंटों देखता रहता था लेकिन अब औरत बनकर आईने के सामने खड़ा होकर खुद को घूरते रहने चाहता हूं।

मैं बाएं होंठ का कोना दांतों से दबाए अब भी खुद को एकटक आईने में निहारे जा रही थी। कभी पल्लू से खेल रही थी तो कभी बालों की लट से तो कभी अपने झुमकों से। नजरें मेरी आईने पर थीं और कान हाथों की चूड़ियों की खनखन सुनने में व्यस्त थे। तभी मेरे फ्लैट की डोर बैल बजी…….

दरवाजे पर कौन था? क्या वही शख्स था जिसके लिए मैं देव से देविका बना? कौन था वो शख्स जिसे मैं देविका बनकर अपने फोटो भेज रहा था? क्या रिश्ता था मेरा उससे? क्यों मैं औरत बनकर उसे फोटो भेज रहा था? क्या वो पुरुष था या कोई औरत? क्या मेरे उसके साथ शारीरिक संबंध थे? श्रेया मुझे रात तक क्या सरप्राइज देने वाली थी? क्या श्रेया के प्रति मेरे मन में मर्दों वाला प्यार खत्म हो गया था और मैं उसे सहेली की तरह देखता था और उसके जैसी औरत बनना चाहता था? क्या मेरी चूड़ियों की आवाज सुनकर श्रेया को मुझ पर कोई शक हुआ था? जब श्रेया ने मुझे धोखा देकर किसी और से शादी कर ली, तब भी मैं उससे क्यों बात करता था? श्रेया ने मुझे क्यों धोखा दिया था?

ऐसे ही अनेक सवाल आपके मन में फिर उभर रहे होंगे. कुछ सवाल पिछले भी बाकी होंगे. वहीं कुछ सवालों के जबाव भी मिले होंगे, जैसे कि वो शख्स श्रेया नहीं थी जिसके लिए मैं मजबूरी में क्रॉसड्रेसिंग करता था और न ही श्रेया ने मुझसे मेरी क्रॉसड्रेसिंग की आदत के चलते ब्रेकअप किया था। वादानुसार इस भाग में एक अहम किरदार यानी श्रेया की एंट्री हो गई और मेरी जिंदगी में श्रेया के किरदार की कुछ परतों से पर्दा भी हटा। अगले भाग में कुछ और सवालों के जबाव मिलेंगे।

साथ ही माफी चाहूंगी कि इस भाग के लिए आपको लंबा इंतजार करना पड़ा। पर क्या करूं, पिछला कुछ समय मेरा बहुत तनावपूर्ण बीता है। कहानी लिखने के लिए मैं अपना पास्ट याद करके खुद को हर्ट करना नहीं चाहती थी। – देविका


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नोट: इस भाग को पढ़ने के बाद कहानी के अंत मे अनुपमा त्रिवेदी द्वारा लिखा यह नोट पढ़ना न भूले।


देविका की  अब तक की कहानी के बारे मे अपने विचार जरूर लिखिएगा।

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अंधेरे से उजाले की ओर

शायद आप पाठिकाओं ने भी मेरी तरह इस भाग को पढ़कर महसूस किया होगा कि इसमे देविका के जीवन मे जैसे एक घना अंधेरा छाया हुआ है। इस कहानी मे आगे क्या होगा मुझे यह तो नहीं पता, पर ये पहले प्यार को खोने का अनुभव मेरा भी रहा है जिसे आप सभी के साथ शेयर करने की इच्छा जागृत हो गई ताकि आप सब भी जान सके कि अंधेरे के बाद उजाला भी आता है। समय का चक्र अंत मे सब ठीक करता है।

बात तब की है जब मेरी उम्र करीब २२ साल की थी। नई नई नौकरी लगी थी,कॉलेज के दिनों की ३-४ सालों से एक खूबसूरत गर्लफ्रेंड थी और जवानी मे जैसे सारी दुनिया मेरे कदमों मे थी। कभी कभी गर्लफ्रेंड पूछती थी कि हम शादी कब करेंगे। और मैं हमेशा यही जवाब देता कि ४-५ सालों मे जब मैं अपने बूते पर अपनी शादी के लिए पैसों और अपनी पत्नी यानि गर्लफ्रेंड के सुख साधन का सामान इकठ्ठा कर लूँ तो शादी भी कर लूँगा। वो भी मेरी इस बात से सहमत थी और इस बात पर गर्व करती थी कि मैं अपनी शादी का खर्च माँ-बाप से नहीं करवाना चाहता था। पर मेरी हम-उम्र गर्लफ्रेंड के माता-पिता बेटी को इतने सालों तक कुंवारी नहीं रखना चाहते थे। उस पर दबाव बढ़ने लगा पर मैं उसकी बात को गंभीरता से नहीं लेता था। मुझसे बेहद प्यार करने के बाद भी और सब कुछ अच्छा होते हुए भी घरवालों के दबाव मे उसने किसी और से शादी के लिए मान गई। वो लड़का उम्र मे मुझसे और मेरी गर्लफ्रेंड से ८-१० साल बड़ा ही रहा होगा और शादी के लिए परिपक्व भी। पहले तो रोते हुए मेरी गर्लफ्रेंड ने शादी के लिए हाँ कर दी पर अगले ७-८ महीनों मे शादी के पहले उसने अपनी नियति को स्वीकार कर लिया और अपने होने वाले पति की अच्छाइयाँ भी उसे दिखने लगी।

पहले प्यार को खोने का गम जो होता है वो वही जानता है जो उससे गुजर चुका हो। मेरा बहुत बुरा हाल था और मानो मैं देवदास बन गया था जिसकी पारो जा चुकी थी। दुनिया मे अंधेरा छा गया था और दिल हर वक्त रोने को होता था। पर एक सामान्य लड़के के मुकाबले मेरे जीवन का अंधेरा इस वजह से भी ज्यादा गहरा था कि मेरी क्रॉस-ड्रेसिंग के बारे मे मेरी गर्लफ्रेंड को पता था। और जो इस बात को जानते हुए भी मेरे साथ इतने सालों से थी, पर जब उसने मुझे छोड़ा तो मुझे ऐसे लगा जैसे उसे मेरी मर्दानगी मे कोई कमी लगती रही हो। ऐसे समय मे दिमाग भी बेवजह संदेह करता है। इस बात के अलावा एक और मुसीबत थी कि अब मैं उस लड़की को पाने के लिए या फिर कम से कम उससे बात करने का मौका पाने के लिए ही सही कुछ भी करने को तैयार था। यहाँ तक कि एक बार को तो मैं उसकी शादी मे शामिल होकर शादी की तैयारी मे मदद करने को भी तैयार था (अच्छा हुआ कि नहीं किया!)। नि:संदेह इस दुनिया मे बहुत से लड़के है जो इस अवस्था मे अपने आत्म-सम्मान को भुलाकर कुछ भी करने को तैयार हो जाते है। उस लड़की की शादी के ६ महीने बाद भी मेरी हालत ठीक न हुई। शादी के बाद भी मैं अपने आत्म-सम्मान के साथ समझौता करते हुए उससे बातें करने की कोशिश मे रहता था। बेसब्री से उसके फोन का इंतज़ार करता था (शादी के बाद लड़की से बात करना सबसे बड़ी गलती है ये! जो तुम्हें छोड़ दे, तुम भी उसे छोड़ दो .. यही तुम्हारे लिए अच्छा है।) पर अंत मे दोस्तों के समझाने के बाद मैंने उसे भुलाने की कोशिश किया पर सफल न हुआ। अब न जॉब मे मन लगता था और न ही दुनिया मे। अंधे कुए की तरह मेरा जीवन नीचे गर्त मे डूबे जा रहा था। पर कहते है न कि जब जीवन अपने सबसे निचले स्तर पर एक बार पहुच जाए तो वहाँ से सिर्फ ऊपर उठा जा सकता है। कुछ वैसा ही मेरे साथ हुआ।

उसकी शादी के १.५ साल बाद आखिर मैंने वो नौकरी छोड़ दी क्योंकि डर लगने लगा था कि मुझ देवदास को वहाँ से कभी भी निकाला जा सकता था। अंततः मैंने शहर बदला, नौकरी बदली और मेरी किस्मत भी बदल गई। नई जगह मे प्रमोशन तो जल्दी मिला ही बल्कि एक बार फिर आत्म-विश्वास बढ़ गया। और जल्दी ही एक इतनी सेक्सी गर्लफ्रेंड मिली जैसे मैंने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था। मेरे दोस्त मेरी किस्मत पर जलने लगे थे! २ साल तो हम दोनों एक छत के नीचे भी रहे। लग रहा था कि शायद हम दोनों शादी भी कर लेंगे। पहले एक साल तो उसके साथ रहने मे बड़ा मज़ा आया मगर फिर इतनी हॉट गर्लफ्रेंड होते हुए भी हम दोनों को महसूस हुआ कि शायद हम दोनों को ज़िंदगी मे जीवनसाथी से कुछ अलग चाहिए। इसलिए हम दोनों ने अलग होना तय किया। इस बार न मैं रोया और न दुखी हुआ। पहले ब्रैकप के बाद मैं अब मजबूत हो चुका था। बस उसकी याद जरूर आती थी क्योंकि वो बहुत ही मॉडर्न और हॉट लड़की थी। मेरे दोस्तों को तो यकीन ही नहीं हुआ कि मैं इतनी हॉट लड़की से बोर हो गया था।

फिर भी समय आगे बढ़ा, और लड़कियां जीवन मे आई पर अंत मे माता-पिता की मर्जी से मेरी शादी फिक्स हुई। मेरे ब्रेक-अप के लगभग ८ साल बाद मेरी शादी एक ऐसी लड़की से हुई जो मेरे माता-पिता को तो खुश रखती ही है और मुझसे प्यार भी बहुत करती है। आज से कई साल पहले जहां जीवन मे अंधेरा था, वहाँ आज उजाला ही उजाला है। आज यदि पहले प्यार को खोने का कोई अफसोस है तो वो सिर्फ ये कि उस लड़की के बाद से किसी के लिए मैंने अब अपने दिल मे उतना प्यार महसूस नहीं किया जैसा पहले प्यार मे किया था। पर ये भी है कि अब मुझे तब से कहीं ज्यादा प्यार मिलता है।

बस दोस्तों यही एक बात आप सभी से कहनी थी। पहले प्यार को खोने के बाद देवदास बन जाना कोई नई बात नहीं है और न ही बुरी बात। पर उस अंधेरे से बाहर निकला जा सकता है और करोड़ों लोग निकलते भी है। तो यह आपके ऊपर है आप संजय लीला भंसाली के देवदास की तरह है या अनुराग कश्यप के ‘देव D’ की तरह!

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