Part 1:
"बताओ ये ड्रेस कैसी लग रही है मुझपर?", शिखा ने घुटनों तक लम्बी एक सेक्सी ड्रेस पहनकर राजिव से ये सवाल पूछा था। "बड़े लम्बे समय से इस ड्रेस में फिट आने के लिए अपना वज़न कम कर रही थी मैं। बताओ न कैसी लग रही हूँ मैं, राजीव?", शिखा ये कहते हुए राजिव की गोद में आकर उसके कंधे पर अपने हाथो से उसे लपेट कर बैठ गयी थी। पर राजीव किसी और दुनिया में खोया हुआ था। “पता है एक लड़की के लिए सबसे अच्छा दोस्त एक गे लड़का होता है. क्योंकि उसके साथ वो कुछ भी बात कर सकती है और उसे चिंता भी नहीं रहती कि उस लड़के के लिए वो सिर्फ एक सेक्सी लड़की है.", शिखा ने राजीव के बाल को बिखेरते हुए उसका ध्यान अपने शरीर की ओर खींचना चाहा। पर राजीव शिखा की इस बात से थोडा खिन्न हो गया था। "क्या बात है राजीव? आज तुम उखड़े उखड़े लग रहे हो?", शिखा ने चिंतित होकर राजीव के चेहरे पर अपने नाजुक हाथो से फेरते हुए पूछा था। "यार १ महीने बाद मेरे माता पिता यहाँ यू एस आ रहे है। २ हफ्ते रहेंगे मेरे साथ और मुझे पता है कि आते ही वो पूरे समय मेरी शादी के लिए मेरे पीछे पड़े रहेंगे.", राजीव ने आखिर अपनी दुविधा बताई। शिखा ने कुछ देर सोचा और अपने लाल रंग की लिपस्टिक से सजे रसीले लबो से राजीव के माथे पर चुमते हुए कहा, "चिंता मत करो राजीव. सब ठीक होगा."। जिस तरह से शिखा राजीव के साथ बर्ताव करती थी किसी को भी लगता जैसे वो गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड हो। पर सच उससे बहुत अलग था। "ऐसे कैसे सब ठीक होगा शिखा। तुम तो सच जानती हो", राजीव ने कहा। "हाँ.. हाँ... मैं सच जानती हूँ. और अब तुम्हारे माता पिता को भी सच जानने का समय आ गया है। तुम उन्हें बता क्यों नहीं देते कि तुम एक गे हो और तुम्हारा किसी लड़की से शादी करने में इंटरेस्ट नहीं है?", शिखा राजीव के सर को अपने स्तनों के बीच उसे दिलासा देने के लिए रखते हुए बोली। “यार शिखा, तुम्हे पता नहीं कि एक राजपूत परिवार के लिए उनके बेटे को गे स्वीकार करना असंभव है। वो मुझे मार देंगे पर ये बात कभी नहीं मानेंगे.", राजीव ने शिखा के गले लगकर कहा तो शिखा चुप हो गयी। आखिर वो उदास जो लग रहा था। "शिखा... तुम मेरे लिए एक काम करोगी?", राजीव ने शिखा से कहा। “कहो?", शिखा ने कहा। उसे पता नहीं था कि राजीव उससे क्या कहने वाला है। “क्या तुम मेरे लिए दो हफ्तों तक मेरे माता पिता के साथ मेरी पत्नी होने का ड्रामा करोगी? मैं उन्हें कह दूंगा कि मैंने तुमसे शादी कर ली है। और फिर २ हफ्ते बाद जब वो चले जायेंगे तो कुछ महीनो बाद मैं उन्हें कह दूंगा कि हमने डाइवोर्स ले लिया है। फिर तो वो मेरे पीछे नहीं पड़ेंगे.", राजीव ने कहा। "बहुत ख़राब आईडिया है राजीव। उनके जाने के बाद वो अपनी बहु से बात करने के लिए क्या कभी फ़ोन तक नहीं करेंगे?", शिखा बोली। "यार वो जब होगा तब की तब देखी जाएगी। अभी तो ये दो हफ्तों के लिए तुम मान जाओ।" "राजीव, ये कैसे हो सकता है? तुमको तो पता है कि मैं क्रॉसड्रेसर हूँ। एक असली औरत नहीं हूँ मैं। उन्हें सच पता चल गया तो?", शिखा ने कहा, भले उसके दिल में बहु बनने का सपना हो पर इस तरह किसी को बेवकूफ बनाने का विचार भी उसे डरा रहा था। किसी को उसका सच पता चल जाए तो क्या होगा? "यार शिखा. किसी को कैसे पता चलेगा? तुम्हारे किसी भी औरत की तरह इतने लम्बे घने बाल है। जब भी तुम लड़की बनती हो तो तुम्हारे हाव-भाव पूरी तरह से औरतों वाले होते है। और फिर अब तो प्रैक्टिस करके तुमने अपनी आवाज़ को लड़की की आवाज़ में बदलने में एक्सपर्ट भी हो गयी हो। एक बार खुद को आईने में देखो तो सही। किसी को गलती से भी डाउट नहीं होगा कि तुम लड़की नहीं हो। यहाँ तक कि जब मैं तुम्हे ऑफिस में शेखर के रूप में देखता हूँ तो मुझे बिलकुल यकीन नहीं होता कि शेखर और शिखा एक ही है। "बस बस मुझे ज्यादा चने के झाड पर चढाने की ज़रुरत नहीं है," शिखा थोडा नखरे के साथ बोली। वैसे राजीव की बात में सच भी था। पिछले एक साल से शिखा अब इस रूप में कितने ही बार घर से बाहर भी गयी है और वो भी राजीव के साथ। किसी को भी कभी ज़रा सा डाउट नहीं हुआ था। अब तो शेखर से शिखा बनना उसके लिए बांये हाथ का खेल था। “पर राजीव... मेरे ऑफिस का क्या होगा? २ हफ्ते काम से कैसे गायब रहूंगी मैं?" "शिखा... मैं तुम्हारा सिर्फ दोस्त ही नहीं तुम्हारा बॉस भी हूँ। २ हफ्ते क्या ३ हफ्ते की छुट्टी ले लो तुम। तुमको पूरी सैलरी मिलेगी", राजीव ने उत्साह से कहा। "रहने दो राजीव। तुम्हारी सैलरी तो सिर्फ ८ घंटे के ऑफिस के काम के लिए होती है जबकि पत्नी और बहु बनकर रहना २४ घंटे का काम होता है। मैं नहीं कर पाऊंगी ये", शिखा बोली। “यार, प्लीज़ मान जाओ। तुम सैलरी से ज्यादा जो भी मांगोगी मैं दूंगा तुम्हे। प्लीज़ मान जाओ। प्लीज़", राजीव शिखा के सामने गिडगिडाने लगा. तो शिखा कुछ देर अपने रंगे हुए नाखुनो को देखते हुए बोली, "ठीक है पर मुझे सैलरी से बहुत ज्यादा चाहिए।" "तुम कहो तो तुम्हे कितने पैसे चाहिए", राजीव की जान में जान आ गयी थी। “मुझे पत्नी बनने के लिए ढेर सारी महँगी साड़ियाँ चाहिए!", शिखा हँसते हुए राजीव को गले लगाते हुए बोली। “बस इतनी सी बात. तुम्हे जितनी साड़ी लेना है ले लेना और उसके साथ कुछ भी चाहिए वो ले लेना। मैं अभी इसी वीकेंड को लॉस अन्जेलेस जाने के लिए हमारी फ्लाइट बुक कर देता हूँ। वहां बहुत सी साड़ियों की दुकानें है। तुम्हे जो चाहिए ले लेना। हमारे पास बस १ महिना है तैयारी के लिए। हम समय व्यर्थ नहीं कर सकते, राजीव ने कहा। बेचारी शिखा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस बात को लेकर खुश हो या फिर चिंतित। पर अब तो उसने पत्नी बनने के लिए हाँ कर दी थी और २ दिन में ही राजीव के साथ लॉस अन्जेलेस में शौपिंग के लिए जाने वाली थी। शनिवार की सुबह सुबह ही दोनों लॉस अन्जेलेस पहुच गए थे। पर इस वक़्त शिखा बनकर नहीं शेखर बनकर क्योंकि एअरपोर्ट में समझाना मुश्किल होता कि शेखर क्यों लड़की बने हुए है। और एअरपोर्ट से सीधा वो एक होटल चले गए। "राजीव, मेरे ख्याल से अच्छा होगा कि शौपिंग के लिए जब हम जाए तो मैं शिखा बनकर चलू तुम्हारे साथा वरना एक आदमी बनकर अपनी साड़ी के टेस्ट बताने में मुझे संकोच भी होगा और दूकान वाले भी मन ही मन डाउट करेंगे', शेखर ने राजीव से कहा। "जैसा तुम्हे ठीक लगे। वैसे भी अच्छा होगा कि हम दोनों अब पति-पत्नी की तरह बर्ताव करना शुरू कर दे तो १ महीने में हम रेडी रहेंगे। वैसे भी तुम्हारे अलावा किसी लड़की के साथ मैंने समय नहीं बिताया है। मुझे पता भी नहीं कि पत्नी के साथ कैसे रहते है। मैंने कभी उस तरह से सोचा नहीं न, राजीव ने कहा। एक गे होने की वजह से उसके सपनों में तो कोई और आदमी ही होता था। बिना समय व्यर्थ किये शेखर ने बाथरूम जाकर कपडे बदले और शिखा के रूप में आ गयी। उसने एक मॉडर्न कुर्ती पहनी थी लेग्गिंग्स के साथ और हाथ में एक मैचिंग क्लच भी था जिसे उसने एक बड़े पर्स में रख दिया। और एक हल्का सा नेचुरल लुक देने वाला मेकअप किया था। बाथरूम से शिखा बाहर आई तो राजीव उसे देखते रह गया और बोला, “क्या बात है तुमने आज ड्रेस नहीं पहनी? ये इंडियन कपडे?" "डिअर... मैं साड़ी खरीदने जा रही हूँ तो इंडियन कपडे पहनना ज्यादा अच्छा रहेगा न। मैं तो साड़ी ही पहनना चाहती थी पर फिर लगा कि थोडा ज्यादा हो जाएगा। वैसे भी साड़ी के साथ मुझे ऊँची हील पहनना पड़ता तो फिर दिन भर चलने में मेरे पैरो में दर्द हो जाता। इस कुर्ती के साथ तो मैं फ्लैट्स भी पहन सकती हूँ.", शिखा ने प्यार से राजीव को समझाया। लड़कियों को भी न कितनी बातों का ध्यान रखना पड़ता है जो लड़के समझते ही नहीं। राजीव ने भी बिना और सवाल किये शिखा का हाथ पकड़ा। दोनों कमरे से निकलने ही वाले थे कि शिखा ने शेखर से रुकने को कहा। "क्यों क्या हो गया अब?", राजीव ने पूछा। “रुको तो ज़रा, अब मैं तुम्हारी पत्नी हूँ तो मुझे और तुम्हे साथ में पति पत्नी की तरह चलना चाहिए ,शिखा न?" हँसते हुए बोली। और फिर राजीव की बांह को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसके बेहद करीब आ गयी। इतने करीब कि उसके नकली मगर नर्भ नर्म ग्लन राजीव की बांह से दबने लगे। किसी लड़की ने यदि शिखा को इस तरह छुआ होता तो शिखा के अन्दर का शेखर जाग जाता और उसके तन में कुछ कुछ होने लगता. पर शिक्षा के स्तनों के समर्श के बावजूद राजीव पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा था। शायद यही बात थी कि शिखा को राजीब के साथ इतना सहज लगता था। उसे राजीव के साथ ज़रा भी डर नहीं लगता था कि दो उसके साथ कुछ ऐसा वैसा करने की सोचेगा भी। वरना शिखा को तो पता ही था कि कैसे "क्रॉस-ड्रेसर एडमाईबर होते है जो उस वासना से भरे होते है। शिखा के लिए तो जैसे ये एक सुन्दर सपना था. वो पत्नी होने का आनंद भी ले सकती थी और उसके लिए उसे अपने तन और अपनी इज्जत को भी खोने का डर नहीं था। अरे भैया। ये क्या क्या डिजाईन दिखा रहे हो। कुछ पारंपरिक मारवाड़ी स्टाइल में साड़ी दिखाओ न', राजीव ने दूकान में कंझाते हुए कहा था। जितनी भी साड़ी यो और शिखा देख रहे थे उनमें से कोई भी वैसी नहीं थी जैसा उसने अपने परिवार में किसी औरत को पहनते देखा था। "इनकी बात मत सुनो भैया। इनको तो कुछ पता नहीं है साड़ी के फैशन के बारे में इनका बस चले तो मुझे १९०० के जमाने की पूंघट ओड़ी हुई औरत बनाकर रखेंगे। आप वही दिखाओ जो मैं कह रही हूँ. ये इस तरह की जारजट साड़ी आजकल काफी फैशन में है न?" शिखा ऐसे बोली जैसे अपने पति से झगडा कर रही हो। शिखा की बात सुनकर दुकानवाला मुस्कुरा दिया पर कुछ बोला नहीं. आखिर वो राजीव को नाराज़ करने का रिस्क नहीं ले सकता था। जहाँ राजीव इन सब के बीच बोर हो रहा था, वहीं शिखा के लिए तो ये सबसे खुशी का दिन था। न जाने कितने साड़ियों को फैला फैलाकर अपने कप पर लगाकर आईने में देखती तो कुछ को कमर में लपेट कर देखती। किसी औरत की तरह कभी वो भी ऐसे दिल खोलकर साड़ियों ट्राई कर सकेगी ऐसा तो उसने सपने में भी नहीं सोची थी। उसे तो खुद पर यकीन नहीं हो रहा था। और तो और अब किसी भी औरत की इतनी आसानी से उसे कोई भी साड़ी पसंद नहीं आने वाली थी। उसने अपना टेस्ट जो डेवेलोप कर लिया था। अब तो सही रंग, सही पैटर्न और न जाने क्या क्या बारीकी से वो देखती ताकि यदि वो जो साड़ी ले, तो उसे पहन कर किसी परी से कम न लगे। लगभग ३ घंटे उस दूकान में बिताने के बाद शिखा ने बहुत सोच विचार कर साड़ियों पसंद की। और फिर जब बो पेमेंट कर दूकान से बाहर निकले तो राजीव ने कहा, "पार तुम औरतें इतना क्यों समय लगाती हो शौपिंग में? इसलिए किसी लड़की से ज्यादा किसी लड़के से प्यार करना आसान है। हा हा.. इसलिए तो तुम गे हो. शिखा मसखरी लेते हुए बोली। "अच्छा अब दूसरी दूकान चले?", शिखा ने राजीव से कहा। “दूसरी? अभी तुम्हे और भी शौपिंग करना है?", राजीव नै अचरज से कहा। "ऑफ कोर्स! अभी तो शौपिंग शुरू हुई। अभी तो बहुत सी साड़ियाँ खरीदनी है, शिखा बोली। "कितनी और लेनी है?", राजीव ने अपने सर पर थक हार कर पूछा। "कम से कम १२ और! तुम्हारे माता पिता १४ दिन के लिए आ रहे है तो मैं एक भी साड़ी रिपीट नहीं करूंगी। और फिर कुछ स्पेशल ओकेशन के लिए २ या ४ तो लेनी ही पड़ेगी न? राजीव को अब समझ आ रहा था कि पति बनने का रोल करना तो उसके लिए भी मुश्किल होगा। "भाह, खाना खाकर मज़ा आ गया। अब तो में बस कपडे बदलकर सोने वाला हूँ, राजीब ने होटल के कमरे में बापस आकर बहा। पूरे दिन में उन दोनों ने आज २८ साड़ियाँ खरीदी थी और फिर कई साड़ियों के लिए तो ब्लाउज भी सिलाने थे। इतने सारे ब्लाउज के डिजाईन चुनने में और टेलर को अपना नाप देने में ही शिखा नै २-३ घंटे लगा दिए थे। दिन भर की शौपिंग के बाद खाना खाकर अब दोनों थक हार कर वापस आये थे। ठीक है तुम कपडे बदल लो। मैं भी बदल लेती हूँ. शिखा तो जैसे पूरी तरह औरत बनकर रम चुकी थी। इस बात तो यो अपनी सभी साड़ियों को एक बार फिर निकाल कर बारीकी से निरिक्षण कर रही थी। राजीव को तो डर लग रहा था कि कहीं अगले दिन फिर से शिखा किमी साड़ी को बदलने न चली जाए। पर कुछ देर के बाद शिखा बिस्तर पर से उठी और एक हाथ में नाइटी लेकर बाथरूम चली गयी। जब दो बाथरुम से निकली तो राजीव इचलबेड के दुसरे सिरे. पर लेट चूका था। शिखा तो अपनी नाईटी पहनी हुई बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। आखिर उसकी नाईटी भी बड़ी सेक्सी थी। उसका बदन लगभग एक ओरल की भौंती ही लग रहा था। पर फिर तुरंत ही उसने अपनी बांह के अन्दर हाथ डाला और अपनी ब्रा का हुक खोलकर या निकालने लगी। उसकी वा बहुत सेक्सी थी। यदि राजीव की जगत कोई और आदमी होता तो वो तो उतावला हो जाता. पर फिर ब्रा के साथ साथ शिखा के नकली स्तन भी बाहर निकल गए और दो राजीव के बगल में आकर बैठ गयी। तुमने वा क्यों उतार दी?", राजीव ने पूछा। ओहो. दिन भर के बाद रात को हर लड़की बिना ब्रा के सोती है। कम्फर्टेबल लगता है, शिखा बोली और अपनी ब्रा और स्तनों को बगल के ड्रावर में स्खने लगी। बिना स्तनों के उभार के भी भी शिखा एक रूपमती औरत लग रही थी। पर कुछ और भी था जो उसके स्त्री रूप से धौडा भिन्न था। उसकी नाईटी में निचे की और उसके लिंग का उभार दिख रहा था। नहीं वो तना नहीं ? पर उभरा हुआ था। तुमने पेंटी भी नहीं पहनी है?", राजीव ने पूछा नहीं.. नाईटी में मुझे खुला चुला सोना अच्छा लगता है। वैसे भी सब कुछ तो ढका हुआ है फिर पटी की क्या जरुरती में तो कहती है। तुमको भी कभी नाईटी ट्राई करनी चाहिए राजीव', शिखा मुस्कुराकर बोली और फिर लेटकर रजाई के अन्दर घुस गयी। राजीव | मन ही मन कुछ सोचते हुप पलटकर गुड नाईट कह कर सो गया। वो बहुत थक गया था। अब कुछ न ही सोचे तो अच्छा है। पर उसे इस वक्त भी एहसास हो रहा था कि पत्नी साथ हो तो जीवन कैसे बदलता है। क्या वो सचमुच ये झूठ-मुठ की शादी में अपने माता पिता के सामने एक मति होने का नाटक कर सकेगा? शिखा तो जैसे पत्नी के रोल के लिए पूरी तरह तैयार लग रही थी पर क्या वो तैयार था?राजीव के घर में इस वक़्त शिखा एक लाल रंग की क्रेप सिल्क साड़ी पहनी हुई थी। उसके बाल पीछे एक रबर से बंधे हुए थे और उसने अपनी साड़ी का पल्लू अपनी कमर में खोंच रखी थी। माथे पर | लाल बिंदी और गले में मंगलसूत्र भी सजा हुआ था जो राजीव ने उसके लिए खरीदा था। पर शिखा घोड़ी चिंतित लग रही थी। "कोई यकीन नहीं करेगा इस घर को देखकर कि हम दोनों कि २ महीने पहले शादी हुई है पतिदेव। तुम्हारी माँ को देखकर तुरंत पता चल जावेगा कि इस घर में कभी कोई औरत रही ही नहीं है। न तो ठीक से बर्तन है और न ही घर में कोई सजावट है. हमें बहुत कुछ इस घर में सुधारना पड़ेगा मेरे पतिदेव, शिखा ने थोड़े चिंतित स्वर में कहा। "ये साड़ी तो हमने नहीं खरीदी थी शिखा। तुमने उनमे से कोई क्यों नहीं पहनी जो हम लॉस अन्जेलेस से लाये थे", राजीद ने शिखा के पास आकर उसकी कमर से पल्लू निकालकर पकड़ते हुए कहा। वो मखमली पल्लू टूकर उसे अच्छा लग रहा था। ओहो, वो सब साड़ियाँ तो तुम्हारी माँ को दिखाने के लिए है. घर में यहाँ इतना काम | है. उसके लिए यही साड़ी सही है, शिखा बोली। पर शिखा की बात को अनदेखा करते हुए राजीव किसी और विचार में खोया हुआ था। उसे होटल की वो रात याद आ रही थी जब शिखा नाईटी में बिना पेंटी पहने सोची थी। न जाने क्यों उसे उस नाईटी में जो उभार दिखा था दो याद आ रहा था। उसको एहसास हो रहा था कि शिखा की इस खुबसूरत साड़ी में उसकी कमर के निचे खूबसूरत प्लीट्स पीछे एक पुरुष लिंग छुपा हुआ है। न जाने क्या सोचता हुआ राजीव ने शिखा को उसकी कमर से पकड़ लिया। पर राजीव के इन विचारों से अनभिग्य शिखा सामने पड़े कामो की चिंता में थी। सबसे पहले तो हमको बेडरूम से शुरुआत करनी पड़ेगी। वहां अलमारी में मेरे कपड़े ऐसे लगाने पड़ेंगे कि ऐसा लगे कि में इसी घर में उस कमरे में रहती हूँ। आज से हम दोनों उसी कमरे में रहेंगे, समझे?", शिन्ना ने कहा और पलटने के लिए थोड़ी पीले हुई। वो जैसे ही पीछे हुई उसकी रेशमी साड़ी में लिपटी हुई उसकी नितम्ब राजीव के कमर के निचले हिस्से से जा लगी आखिर राजीव उसके पीछे ही। तो कोई ई और दिन होता तो शिखा को इस बात से बात से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो जानती थी कि राजीव का उसमें ऐसा वैसा कोई इंटरेस्ट नहीं है। पर आज जब उसकी नितम्ब राजीव से लगी तो उसे अपनी नितम्ब के बिच कुल उभरा उभरा लगा। वो एक खड़ा था। पल में ही सकपका गयी। शायद आज गलती से हुआ हो ये राजीव से क्योंकि पुरुष का लिंग तो कभी भी कठोर हो सकता है। उसमे शिखा का कोई योगदान नहीं होगा। खुद के मन को समझाती हुई वो झट से राजीव की गिरफ्त से बाहर निकल आई और अपने स्तनों को अपने आँचल से ढकने लगी। पर शिखा को कहाँ पता था कि राजीव पर यह असर उसके सुन्दर दिखने वाले स्तन या फिर सेक्सी साड़ी में लिपटी हुई उसकी सेक्सी लग रही नितम्ब की वजह से नहीं था। उसके मन में तो कोई और ही तस्वीर चल रही थी। फिर भी उसे नज़र अंदाज़ कर शिखा बेडरूम में अलमारी में अपने कपड़े सजाने लगी। और फिर बाधरूम में उसने अपने मेकअप का सामान भी सजाया। एक ड्रावर में अपनी ढेर सारी ब्रा और पेंटी भी रखी। शिखा । को इस तरह स्त्री वाले काम करते देखकर राजीव पर जो असर हुमा था बो अब ख़तम हो चूका था। राजीव ने भी अब चैन की सांस ली। बहुत देर की साफ सफाई के बाद आखिर थक कर शिखा साड़ी पहनी हुई ही बिस्तर पर सोने आ गयी जहाँ राजीव पहले से ही था। नज़रे चुराकर एक बार बार शिखा ने राजीव के उस हिस्से को देख ही लिया कि कहीं राजीब को कुछ हो तो नहीं रहा। वहां कुछ न देखकर शिखा पलट कर सो गयी और सोते सोते बोली, "में कल कुछ बर्तन और सज सजा का सामान खरीद लूंगी. तुम अपना क्रेडिट कार्ड दे देना । जैसा मेरी पत्नी चाहे", राजीव ने हंसकर कहा और वो भी पलट कर सो गया। पर एक बार फिर उसके दिमाग में नाईटी पहनी हुई शिखा थी जिसके कमर के निचे एक उभार था। एक पुरुष लिंग था। उस विचार से लड़ते हुए राजीव आखिर में सो ही गया। देखते ही देखते वो दिन आ ही गया था जब राजीव के माता पिता आने वाले थे। शिखा ने घर को बिलकुल एक शादी शुदा दंपत्ति के घर की भाँती सजा दिया था। अब घर में नए बर्तन और नए फर्नीचर भी थे। और बेडरूम में एक महँगी फेंसी साड़ी पहनकर सजती हुई शिखा थी। "कैसी लग रही हूँ मैं?", वही सवाल जो हर एक पत्नी अपने पति से पूछती है, यही उसने भी राजीव से किया। बहुन खुबसूरत', राजीव ने कहा। ये सच है कि राजीव का शिक्षा में उस तरह का कोई इंटरेस्ट नहीं था पर पिछले ४ हफ्तों में शिक्षा के साथ रहते हुए उसे पति बनने के बारे में काफी कुछ आ गया था। उसे समझ आ गया था कि पत्नी की तारीफ़ करो तो वो कितनी खुश होती है। और फिर अपनी खुबसूरत पत्नी के पैरों में में अपने हाथों से उसने उसे सैंडल पहनाई और अपनी पत्नी का हाथ पकड़ पर से बाहर आ गया। बाहर उसने दरवाज़ा खोलकर अपनी पत्नी को कार में बिठाया और फिर उसे उसका पर्स दिया। जल्दी ही दोनों एअरपोर्ट की और बढ़ने लगे। एअरपोर्ट में दोनों सजीव के माता-पिता के आने का इंतज़ार ही कर रहे थे। आखिर वो घड़ी आ ही गयीं थीं। अब तक तो सब ठीक था पर शिखा अब नर्वस होने लगी थी। अब तो उसकी असली परीक्षा शुरू होने वाली थी। उसने अपनी साड़ी को देखा और सोचने लगी कि यह साड़ी अपने सास ससुर के समक्ष पहली बार आने के लिए सही है या नहीं। चेहरे से ही थोड़ी घबरायी हुई लग रही थी वो। शिखा ने एक भारी भरकम साड़ी पहनी थी जो एक बहु के लिए बिलकुल सही थी जो अपने सास ससुर से पहली बार मिलने वाली थी। उसने सुन्दर गहने भी पहने हुए थे और उसकी साड़ी की भारी बॉर्डर से मैच कर रहे थे। हाथ में कंगन भी थे जो राजीव ने उसे खरीद के दिए थे। जाने शिखा कहाँ खो गयी थी। इस वक्त अचानक से ही शिखा की जगह शेखर था। बाहर नन पर तो साड़ी थी पर मन एक पुरुष का था शेखर का। ये क्या कर रहा हे शेखर?", उसके मन ने उससे कहा। जिस साड़ी में शिखा इठलाती हुई एअरपोर्ट आई थी और जो गर्व से अपने बड़े से मंगलसूत्र को पहनकर पत्नी बन इठला रही थी, उसी औरत की जगह अब शेखर धा। एक आदमी जो उस साड़ी को पहनकर बहुत असहज महसूस कर रहा था। वजनी स्तन और भारी गहने और ऊपर से भारी साड़ी शेखर को विचलित कर रही थी। इतना विचलित की शेखर उस साड़ी को उतारकर अब बस शर्ट पेंट पहनकर वहां से बस निकल जाना चाहता था। और उसके चेहरे से उसकी असहजता राजीव से छुपी न रहीं। क्या बात है शिखा, परेशा दिख रही हो तुम, राजीव ने पूछा। नहीं कुछ नहीं, शेखर ने किसी तरह जवाब दिया। पर ये क्या उस खुबसूरत औरत रो इतनी मर्दानी आवाज़? वो आवाज़ सुनकर तो राजीव भी आश्चर्य में था। इतने दिनों में शिखा के मुंह से उसने मर्दानी आबाज़ नहीं सुनी थी। शेखर भी ये समझ गया था। उसने एक बार फिर औरत की आवाज़ निकालने की कोशिश की और कहा, 'नहीं कुछ बात नहीं है." पर उसकी आवाज़ थोड़ी मर्दानी और थोड़ी औरत का मिक्स थी। शेखर के अंग अंग में डर के मारे रोंगटे खड़े हो गए थे। इतने दिन से शिखा के रूप में वो पूरी तरह औरत की तरह सोच रहा था पर अचानक ही बो एक बार फिर मर्द बन चूका था। एक साड़ी पहना हुआ मर्द। जहाँ पहले स्त्री के हाव-भाव उसके लिए बिलकुल आसान थे जब वो सिर्फ एक औरत होने का नाटक करने की कोशिश कर रहा था। वो कोशिश करता रहा कि एक बार फिर शिखा वापस आ जाए पर वो वापस नहीं आई। एक मर्द राजीव को अपने पति के रूप में देखकर उसे खुद से शर्म आने लगी कि वो इस बात के लिए तैयार कैसे हो गया। फिर भी वो दोनों वहीं इंतज़ार करते रहे। और तभी २ लोगों की आकृति उनके सामने दिखने लगी। राजीव के चेहरे के उत्साह को देखकर शेखर को समझ आ गया था कि यही उसके सास ससुर है। शेखर की कमर पर पेटीकोट और साड़ी उसे बहुत टाइट और भारी लगने लगी। वो असहज होकर अपनी साड़ी संभालने लगा। और सामने जो औरत उसकी और आगे बढ़ती हुई दिखाई दी। उसे देखकर तो ऐसा लगा जैसे किसी टीवी के सास बहु के सीरियल की तरह की एक अमीर घराने की सास उसके सामने निकल आई हो। भारी साड़ी, भारी गहने और गोल-मटोल शरीरा ऐसा लग रहा था जैसे उसकी सास किसी हवेली की रानी हो। उस सास को देखकर तो शेखर अपने ससुर की ओर देखने की भी नहीं सोच पा रहा था। वो दोनों अव्य राजीव और शेखर के बहुत करीब थे। राजीव के इशारे से उसे समझ आ गया था कि उसे एक बहु की तरह झुककर अपने सास ससुर के पेर छूने है। पर हाथ यह क्या। झुकते ही उसका एक नकरनी स्तन ब्रा से निकल कर सरककर बीच में आ गया। किसी तरह तो शेखर ने झुके झुके ही अपने स्तन को वापस सही जगह लाया और यही उम्मीद किया कि किसी ने उसे ऐसा करते देखा न हो। बाह मेरी बहु रानी तो बहुत सुन्दर है. शेखर की सास ने उसके पेहरे को हाथ लगाते हुए कहा। बहुरानी शब्द सुनकर ही जैसे शेखर अन्दर ही अन्दर चिढ़ गया। पर उसकी सास इस वक्त रुकने कहा बाती थी। उसने शेखर की साड़ी के पल्लू । को शेखर के सर के ऊपर रखते हुए उसके पल्लू के दुसरे छोर को उसके ब्लाउज पर से ढंकते हुए शेखर के हाथ में पकडाती हुई बोली, "तुम बहुत सुन्दर हो बहु। पर एक औरत और भी सुन्दर लगती है जब उसके सर पूँघट से ढका हुआ हो!" जहाँ शेखर की सास यह कह कर मुस्कुरा रही थी वहीं शेखर को अंदाजा हो रहा था कि अगले ३४ दिन उसके लिए आसान नहीं होने वाले है। कहाँ वो सोच रहा था कि वो कितनी खुशी से बहु बनकर अपने सपनों को पूरा करेगा पर शिखा थी की अब उसके मन में आ ही नहीं रही थी। उसकी ऊँची हील की सैंडल उसे अब परेशान कर रही थी। आप लोगों की यात्रा कैसी रही?', किसी तरह से औरत की कांपती हुई आवाज़ में शेखर ने अपने गूंघट और पल्लू को संभालते हुए कहा। जिन कंगन और चूड़ियों की आवाज़ उसे इतना लुभाती थी वही कंगन और चूड़ियाँ उसे अब मुसीबत लग रहे थे। यात्रा तो अच्छी रही बहु, अब बस घर पहुच कर अपनी बहु के हाथ का खाना खा ले तो सब ठीक हो जाएगा", शेखर के ससुर ने हँसते हुए कहा। "हाँ पिताजी, शिखा ने आपके लिए बढ़िया खाना बनाया है. बस हम यहाँ से जल्दी ही घर पहुँच जायेंगे', राजीव ने कहा। और सभी वहां से सामान लेकर कार की ओर जाने लगे। साड़ी और हील में शेखर को चलने में न जाने क्यों दिक्कत हो रही थी। इतनी ऊँची हील मत पहना करो बहु। तुम्हारे पैरो के लिए ठीक नहीं है, शेखर की सास ने उससे कहा तो वो बस अपने पूँघट को संभालते हुए आगे चलता रहा। "माँ, तुम इतने सारे सूटकेस लेकर आई हो। क्या है इसमें?", राजीव ने पूछा। "अरे.. पहली बार अपनी बहु से मिलने आ रही है तो उसके लिए साड़ियाँ और लहंगे लेकर आई हूँ। राजपूत परिवार की बहु के लिए उसके हिसाब के कपड़े होने चाहिए ना , सास ने कहा। "अरे माँ। शिखा के पास बहुत सी साड़ियाँ है। हमने लॉस अन्जेलेस जाकर खरीदी थी उसके लिए", राजीव बोला। "अरे रहने दे अपने लॉस अन्जेलेस की साड़ियाँ। भला जयपुर की पारंपरिक साड़ियों के सामने बो टिकेगी। मेरी बहु तो खास जयपुर की नक्काशी वाली साड़ियाँ और लहंगे पहनेगी। वैसे भी तेरे मामा मामी जब मिलने आयेंगे बहु और हमसे तो उन्हें लगना तो चाहिए कि हमारे खानदान की बहु से मिल रहे हैं। ये सब बातें सुनकर तो शिखा को मानो उलटी आने लगी। अब मामा मामी और आगेगे उससे मिलने। घर में शेखर जपने सारा रासुर के लिए खाना गर्ग कर रहा था। रार पे पूँघट और हाथ में ढेर सारी चूड़ियों से उसे काम करने में बहुत मुश्किल हो रही थी। बो सोच रहा था कि आखिर क्यों उसने इतनी चूड़ियां पहन लिया था आज। और फिर उसके भारी स्तन जो उससे जगह पर संभल नहीं रहे थे वो और मुसीबत बने हुए थे। किचन की गर्मी में उसके ब्लाउज में उसे बहुत पसीना भी आ रहा था। आखिर में परेशान होकर उसने गैस की आंच कम की और बाथरूम चला गया। कोई और दिन होता तो खुद को बाथरूम के शीशे में इतनी सुन्दर साड़ी और गहने पहन देखकर वो बहुत खुश होता पर आज दो खुशी न थी। उसने झट से अपने ब्लाउज को खोला ताकि कुछ हवा लग सके और उसका पसीना सूखे. उसने बहुत सेक्सी ब्रा पहन रखी थी। पर आज ब्रा उसकी परेशानी का सबब थी। कम से कम कुछ देर के लिए उसके सीने को खुला खुला महसूस हुआ तो उसे अच्छा लगने लगा। वो अपना पल्लू हिलाते हुए अपने सीने पर हवा करने लगा। पर किचन में गर्म होता खाना जल न जाए इसलिए वो ज्यादा देर बाथरूम में रह भी नहीं सकता था। उसने अपनी ब्रा का स्ट्राप को थोडा और जोर से कस दिया ताकि उसके स्तन जगह पर टीके रहे। १४ दिनों की उसकी मुसीबत की तो यह बस शुरुआत ही थी। उसने अपनी ब्लाउज के हुक लगाये और एक पल चैन की सांस लेते हुए यहीं शीशे के सामने खड़ा रहा। "बहु, ओ बहु', उसे बाहर से उसकी सास की आवाज़ आई तो उसने झट से अपने ब्लाउज को आँचल से ढंका और सर पे एक बार फिर घट लेकर बाहर आ गया। उसकी सास अन्दर के अपने कमरे से नहाथोकर नए कपड़े पहनकर आई थी। उसकी सास को देखकर तों लगता था जैसे की बस वो किसी पार्टी में ही जाने वाली हो। उसकी सास के हाथ में कुछ साड़ियाँ और पेटीकोट और ब्रा थी। बहु ये मेरी कुछ साड़ियाँ और कपड़े हैं। इन्हें धो देना तुम सास बोली। जी माँ जी। मैं आज ही इन्हें मशीन में लगा दूँगी”, शेखर ने उन साड़ियों को हाथ में लेकर कहा।कितनी भारी साड़ियाँ थी वो। "अरे मशीन में धोओगी तुम इतनी महंगी साड़ियों को? इन्हें तो हाथ से नजाकत से त से धोना होगा, सास बोली। 'बहु मेरे भी कुछ कपडे कमरे में रखे है. उन्हें भी धो देना", तभी ससुर भी बोल पड़े। "जी पिताजी', बस इतना कहकर शेखर अन्दर के कमरे में जाकर अपने ससुर के कपडे भी ले आया। एक आदमी के अंडरवियर को हाथ में पकड़ कर उसे अपनी किस्मत से चिढ हो गयी। बहु होना आसान नहीं है। वो सोचने लगा। पर फिर जल्दी ही उन कपड़ो को अपने कमरे के बाथरूम में रखकर वो किचन में आ गया और जल्दी ही राबके लिए टेबल पर खाना लगाने लगा। सबको भूख जो लगी थी। खाना खाकर तो मज़ा आ गया बहु। पर तुग अपनी सारा रौ कुछ दिनों में मारवाड़ी खाना बनाना सिख लेना। असली मजा तो उसी में है, ससुर ने जब शेखर से कहा तो शेखर रो कुछ और न कहा गया। खाने के बाद उसके सारा रासुर अपने कमरे में आराम करने चले गए तो शेखर भी थाधरम जाकर कपड़े धोने के लिए तयारी करने लगा। अमेरिका में बाथरूम में कपडे धोने की जगह तो होती नहीं तो किसी तरह उसने अपनी साड़ी को अपनी कमर में ऊपर उठाकर दूंगा और फिर बाथटब के अन्दर बैठकर अपनी सास की साड़ी धोने लगा। जो की बहुत मेहनत का काम था। अपने माथे का पसीना पोछते हुए उसने किसी तरह कपड़े धोये और फिर उन लम्बी लम्बी साड़ियों को सुखाने का इंतज़ाम किया।

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