Part 2:

किसी तरह सास ससुर की सेवा करते हुए उसका दिन बिता और फिर धक्क हारकर वो कुछ कपडे जैसे पेटीकोट और ब्रा वगैरह जिसे उसने मशीन में धोये थे उन्हें लेकर कमरे आया। जहाँ राजीव बिस्तर पर आराम से लेटा हुआ था। उसने उन कपड़ो को बिस्तर पर रखते। हुए राजीव से कहा, "सुनो तुम इन कपड़ो को तह करने में मेरी मदद करोगे प्लीज़?" बेधारी शिखा को दिन पर काम करते देख राजीव ने भी उसकी मदद करने की सोचा। और उन कपड़ों में सबसे पहले तो अपनी पत्नी की ब्रा को पकड़ा और बोला, "शिखा तुम्हारी ना तो बहुत बड़ी है मारा और सुन्दर भी। राजीच की बात सुनकर शेखर खीज सा गया। और उसने एक दूसरी ब्रा उन कपड़ों से निकालकर राजीव को पकडाई। ये तो बहुत ही बड़ी है यार, राजीव बोला। "हाँ, इसमें मेरे साइज़ के ३ औरतों के स्तन आ जायेंगे। तुम्हारी माँ की ना है ये', शेखर ने कहा, शिक्षा की बात सुनते ही राजीव सकपका गया और वो ब्रा तुरंत उसके हाथ से छुट गयी। ये मुझे देने की क्या ज़रुरत थी। तुम ही संभालो इन कपड़ो को.', राजीव बोला। ठीक है. शेखर ने कहा, मैं बाथरूम से कपडे बदलकर आती हूँ. उसने आगे कहा और अपना ब्लाउज उतार कर अलमारी से नाईटी निकालकर बाथरूम चला गया। न जाने क्यों आज राजीव का अपनी पत्नी शिखा के ब्लाउज को पकड़ने का मन कर गया। उसने उसे अपने हाथो में पकड़ा तो उसे ब्लाउज की आस्तीन में अन्दर पसीने से गिला धब्बा दिखाई दिया। बेचारी शिखा ने दिन भर मेहनत जो की थी। भले शेखर एक औरत के रूप में औरतों वाले डीयो लगता था पर राजीव ने जब उस ब्लाउज की आस्तीन को सुंचा तो उसे एक मर्दानी पसीने की गंध आई। ना जाने क्यों वो ब्लाउज में पसीने की उस मर्दानी खुशबु से मदहोश हो गया था। वहीं शेखर बाथरूम में साड़ी और पेटीकोट उतारकर नाईटी पहन रहा था। बिना ब्रा और बिना पेंटी के नाईटी पहनना आज उसकी मजबूरी थी। दिनभर राइट ब्लाउज और भारी स्तनों और साड़ियों से वो आज़ाद होना चाहता था। अब नाईटी में खुला खुला उसे बहुत अच्छा लग रहा था। कपडे बदलकर जैसे ही वो कमरे से आपा तो राजीव थोडा सकपका गया और उसने तुरंत ही अपने हाथ से ब्लाउज को साइड में रख दिया। शिखा को एक बार फिर बिना पेंटी के उस उभार के साथ देखकर उसे कुछ होने लगा। पर शेखर इन सबसे अनभिग्य था और वो अपनी साड़ी पेटीकोट ब्लाउज वगैरह को बिना समेटे ही उठाकर एक कोने में रखकर सो गया। उसके लिए अगला दिन और मुश्किल होने वाला था। उसी बिस्तर के दूसरी ओर राजीव कमरे की धीमी धीमी रोशनी में शेखर को नाईटी में उसकी नितम्ब को देख कुछ सोच रहा था। उसका मन कर रहा था कि यो शिखा की कमर के निचे के उभ्हार को पकड़ कर थोडा सहलाए और उसे खड़ा करे। पर बिना कुछ किये वो बेताबी में सोने की कोशिश करता रहा। जब एक आदमी सुबह सुबह उठे तो उसे क्या होता है? यदि उसने अपने शरीर की उत्तेजना का अंत न किया हो तो सुबह सुबह उसका लिंग खड़ा होता है। और ऐसा ही हाल शेखर का था. उसकी नाईटी में उसका लिंग पूरी तरह से उसकी नाजुक नाईटी में तना हुआ बो अब भी नींद में था और राजीव उसे देख रहा था. राजीव के लिए तो जैसे उसकी बेताबी बढ़ती ही जा रही थी। वो कुछ करना चाहता था. पर करे तो कैसे करे? शिखा तो उसकी मदद के लिए आई थी। वो उसके साथ ऐसे कैसे करता? राजीव की बेताबी से बिलकुल अलग शेखर नींद में आहे भर रहा था और न जाने किन सपनो में खोया हुआ था। पर तभी अलार्म बजा तो उसकी नींद खुली। उस वक्त सुबह के ६ बजे थे। उसका लिंग तना हुआ था जिसको बो चाह कर भी छुपा नहीं सकता था। उसे एक बार फिर जल्दी से उठकर एक बहु के रूप में अपना दिन शुरू करना था। उसे अपने लिंग का एहसास था जिसकी वजह से उसी योद्धा शर्म भी आ रही थी। फिर भी वो उठा ओर अपने लम्बे बालो को अपनी उँगलियों से सवारकर एक बालो का जुड़ा बनाकर अपने पैरों को अपने शरीर के करीब मोड़ कर अपने तने हुए लिंग को छुपाने की असफल कोशिश करने लगा। राजीब ये सब देख रहा था पर उसने कुछ कहा नहीं। तुम इधर मत देखो जी', एक मत को तो जैसे शेखर के अन्दर शिखा वापस आ गयी थी जो शर्माते हुए बोल रही थीं। शमति हुए वो उठी तो उसके साथ उसका खड़ा लिंग उसकी नाईटी को उठाकर उसे साथ उठ खड़ा हुआ। शिखा के मन करने पर भी राजीव उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था। शर्माती हुई शिखा बाथरूम में पहुंची। उसे लगा कि उसे अपने लिंग को सहला कर अब आराम करने का मौका देना चाहिए। आखिर उसकी नाईटी में उसे भी सेनसी लग रहा था। पर समय कम था। वो जल्दी से नाईटी लतार कर शावर में जा पहुंची। गरम पानी उसके लिंग पर बहने लगा तो वो उसे छूने लगी। पानी के असर से उसका लिंग का तनाव थोडा कम हुआ। फिर बालो को सुखाकर एक पेंटी और ब्रा पहनकर यो कमरे में आ गयी। राजीव अब भी उराकी पेंटी को घर रहा था। पर उरो अनदेखा कर शिखा अपनी साडी पहनने लगी। एक बार फिर बहु बनने को तेधारा सज धज कर जब शिखा बाहर निकली तो उसकी सास पहले से ही तैयार बैठी हुई थी। उनको देखकर तो यकीन ही नहीं होता था कि कोई इतने सवेरे ऐसे तैयार भी हो सकता है। सास को देखते ही एक बार फिर शिखा न जाने कहाँ रफूचक्कर हो गयी और एक बार फिर रह गया था शेखर एक औरत के लिबास में। “माँ जी, मैं अभी नाश्ता बनाती हूँ आप सभी के लिए, शेखर ने यूंघट के साथ अपनी सास से कहा। तो सास मुस्कुरा दी और बोली, “हाँ चल। मैं भी तुझे जरा सिखाती हूँ कि मारवाड़ी परिवार की बहु कैसे नास्ता बनाती है। शेखर की सास बहुत ही स्वीट सास की तरह अपनी बहु को सिखा रही थी पर शेखर था कि एक नर्वस बह की तरह था। उसे तो सिर्फ सादा खाना और नाश्ता बनाना आता था और उसकी सास उससे इतना कुछ करवा रही थी। एक आदमी के लिए बहु बनना बहुत मुश्किल होता है। यदि इस वक्त वो दिल से शिखा होती तो चो बड़ी खुश होती पर इस वक्त तो शेखर था जो बहु होने का रोल अदा कर रहा था। नाश्ता बनाते हुए जाने अनजाने में उसकी सास के स्तन उसकी बांह को छुआ जाते थे। टेंशन में होते हुए भी उन स्तनों के स्पर्श से शेखर पर कुछ असर होने लगता। उसका दिमाग सोचने लगता कि उसके स्तन दबाकर कितना मज़ा आता। उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए पर एक आदमी का दिमाग भी कभी भी सोच सकता है. उसकी साड़ी के अन्दर उसका लिंग खड़ा होने लगा था। पर फिर भी किस्मत से भारी साड़ी और भारी पेटीकोट की वजह से उस लिंग का उभार बाहर नहीं दिख रहा था। सभी को नाश्ता कराने के बाद जब राजीव ऑफिस चला गया तो शेखर की सास ने उससे कहा, 'बहु, चल मैं तुझे वो साड़ियाँ दिखाती हूँ जो मैं तेरे लिए लेकर आई है. ये सुनते ही शेखर के अन्दर की शिखा जाग उठी। नयी साड़ियाँ देखना तो हर औरत को पसंद होता है, और शिखा भी वैसी ही थीं।पर वो ज्यादा खुश होती उसके पहले ही उसकी सास बोल उठी, और फिर एक साड़ी मैं तुझे पहना भी दूंगी। तुझे मारवाड़ी तरह से साड़ी पहनाना नहीं आता होगा न। हाय, यदि शेखर का लिंग एक बार फिर खड़ा हो गया तो जब उसकी सास अपने हाथों से उसे साड़ी पहना रही होगी?, ये सोचकर ही शेखर की चिंता बढ़ गयी। पर उसके पास कोई चारा नहीं था। अन्दर कमरे में शेखर की सास ने उसे ढेर सारी साड़ियाँ दिखाई जिसमे से शेखर ने एक उस वक्त पहनने के लिए पसंद की। वैसे तो र सी साड़ी एक से बढ़कर एक सुन्दर थी पर उसने जान बुझकर ऐसी साड़ी पसंद की जिसका पेटीकोट सबसे ज्यादा भारी था और जिसमे खूब सारी चुन] थी। शायद इनके पीछे उसका लिंग छिप जाए। नयी साड़ी पहनने के पहले शेखर बाथरूम में जाकर अपनी पैंटी के ऊपर २ पेंटी और पहन आया ताकि लिंग पर काबू रख सके। और फिर उसने वो भारी पेटीकोट पहना। जितना दो अपने लिंग के बारे में सोचता बो और खड़ा होने लगता। फिर भी किसी तरह हिम्मत कर वो बाहर आया जहां उसकी सास अपने हाथ में साड़ी पकडे खड़ी थी। और फिर बिना समय व्यर्थ किये वो शेखर की कमर पर अपने हाथो से साड़ी लपेट कर ठूसने लगी। शेखर का इस वक्त बुरा हाल था। उसकी सास के उसकी कमर पे नाजुक स्पर्श से उसका लिंग उफान पर था। किस्मत से पेटीकोट और ३ पटीयाँ उस उफान को काबू में रख पा रही थी। का कब ये साड़ी पहनाना पूरा हो यह सोचकर ही उसके ब्लाउज के अन्दर उसके पसीने छुट रहे थे और ब्लाउज का अस्तर उस पसीने से भीग रहा था। कहीं उसकी सास को उसके पसीने की खुशबु न आ जाए वरना उसकी सास को शक हो सकता है। इसी चिंता में जैसे ही उसकी सास ने साड़ी पहना कर उसके सर पर चूंघट रखा तो उस चूँघट को अपने हाथ से पकड़ कर शेखर की जान | में जान आई। उसे आगे से इसी तरह से अच्छी तरह से साड़ी पहननी होगी क्योंकि वो दोबारा अपनी सास के द्वारा साड़ी पहनाने का रिस्क नहीं ले सकता था। अब जब चैन की सांस बो ले चूका था तो खुद को आईने में देख वो अपने रूप पर इठलाने लगा। वो सचमुच बेहद सुन्दर मारवाड़ी बहु लग रहा था। शिखा एक बार फिर उस पर हावी हो रही थी जो अब उस रूप में गहरी सांसें ले रही थी। शेखर इस नास्त अपने रूप पर इठलाना चाहता था पर उसकी सास की उस पर नज़र उसे धोडा नर्वस कर रही थी। बहु बस एक कमी लग रही है, उसकी सास ने शेखर से कहा। "क्या कमी है माँ जी?", उसने किसी तरह पूछा। अभी भी औरत की आवाज़ निकाल कर एक बहु की तरह बर्ताव करना शेखर के लिए मुश्किल था। "मारवाड़ी बहु बिना नथ के पूरी नहीं होती। तूने अपने नाक में छेद क्यों नहीं करवाया है? हम लोग अभी जाकर तेरी नाक छिदा कर आते हैं. सास के मुंह से ये बात सुनकर शेखर के पैरो तले जमीं खिसक गगी। शेखर ने कान में तो छेद कराये थे और क्यों कि लडको में भी ये फैशन होता है तो उसे ऑफिस में कान के छेद से कोई प्रॉब्लम नहीं थी। पर नाक के छेद ? अपनी सास को लाख समझाने के बाद भी उसकी सास नहीं मानी। बल्कि वो नाराज़ होने लगी थी, अरे कल तेरे मामा ससुर तुझे देखने आयेंगे तो वो क्या सोचेंगे कि कैसी बहु है जिसने नच तक नहीं पहनी है. उसकी सास ने गुस्से में कहा था। और इसी मजबूरी में शेखर अपनी सास को लेकर शौपिंग मॉल आ गया था जहाँ अब वो अपनी नाक छिदने का इंतज़ार कर रहा था। वहां अमेरिकन औरतों और लोगों के बीच वो भारी साड़ी पहने मारवाड़ी बहु के रूप में बिलकुल अलग लग रहा था। उसकी सास की वजह से उसे सर पर पूँघट । रखना पड़ा था सो अलग। वहां लोग उससे तरह तरह के सवाल कर रहे थे। और वो अपना पूँघट और साड़ी संभाले उनके जवाब दे रहा था। भारी पायल और उसकी चूड़ियों की खनक और इस तरह से साड़ी पहने वो सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। अब बस वो कैरो भी ये नाक लिदा कर वहां से जल्दी से जल्दी जाना चाहता था। पर दुकानवाली भी उससे उसकी साड़ी और गहनों के बारे में तरह तरह के सवाल कर रही थीं। कान के छेद कराने के अनुभव से तो वो इस दर्द से वाकिफ था। और फिर जैसे ही उसके नाक का छेद हुआ उसने अपनी पर्स से पैसे दिए और अपनी सास के साथ कार में वापस आ गया। उफ़ कितनी तकलीफ से वो साड़ी संभालते हुए कार चला रहा था। ऐसी भारी साड़ी में कार चलाना और वो भी सूंघट के साथ उसके लिए आसान नहीं था। पर उसे ये सब करते देख उसकी सास अपनी बहु पर बहुत गर्व महसूस कर रही थी। घर पहुंचते ही शेखर को एक बड़ी सी गोत नथ पहनाई गयी उसकी सास बेहद खुश हो गयी। पर अभी तो अध दिन ही गुजरा था। बाकी पूरे दिन वो अपनी सास के साथ किचन में खाना बनाते रहा और अपनी सास और ससुर की सेवा करता रहा। नाक में दर्द में बजह से उसे बार बार अपनी नथ संभालनी पड़ रही थी। पूरी तरह औरत के दर्द से गुज़र २ ज़र रहा था शेखर। किसी तरह दिन गुज़रा और रात को राजीव घर पर आये तो अपने पति और सास ससुर को खाना खिलाने के बाद शेखर अपने कमरे में आप मा गयी। अपनी पत्नी को नथ पहने ने देख राजीव को बड़ा अच्छा लगा। जो भी हो शेखर को साड़ी में देखकर भी राजीव का मन रह रह कर शेखर की साड़ी के निचे छुपे हुए लिंग की ओर ही रहता था। शेखर को शायद ये अंदाज़ा गया था। वो उस रात को नाईटी पहनने का रिस्क नहीं लेना चाहता था भले ही साड़ी पहन कर सोना उसके लिए मुश्किल था। फिर भी उसके पास एक हलकी साड़ी थी जिसे पहनकर सोना आसान होता इसलिए उसने एक हलकी क्रेप साड़ी निकाल कर पहन सो गया। राजीव के लिए एक बार फिर बेताब करने वाली रात थी। वहीं शेखर जिसने सोचा था कि वो ये दिन शिखा बनकर खुशी से गुजारेगा उसके लिए भी ये सब आसान नहीं था। वो शिखा की तरह बिलकुल महसूस नहीं कर पा रहा था। भले पूरे समय वो एक खुबसूरत बहु की तरह सजा होता था पर उसका मन बिलकुल आदमी की तरह ही सोच रहा होता था। अगले दिन की शुरुमात भी कुछ अलग नहीं थी। सुबह से उठकर उसे बहुत सारा खाना बनाना था। क्योंकि आज राजीव के मामा और मामी अपनी बहु से पहली बार मिलने आ रहे थे। शेखर की सास के कहने पर उसने आज और भी ज्यादा भारी साड़ी और पुशीनी भारी गहने पहनी हुई थी। इतनी भारी की उसकी मर्दानी कमर भी नाजुक लगने लगी थी और दर्द करने लगी थी। उसे राजीव पर गुस्सा भी आ रहा था कि वह तो ऑफिस चला जाता है पर मोचार को घर में अकेले ही बहु बनकर इतना सब कुछ करना पड़ता था। जीती रहो', राजीब के मामा मामी ने शेयर को आशीर्वाद दिया था। पूरी तरह कमर झुकाकर मामा ससुर के पैर कई बार छूने में शेखर शर्मिंदगी महसूस कर रहा था। वो आदमी है, शेखर का मन उसे बार बार याद दिला रहा था पर भारी साड़ी और भारी स्तन उसे औरत बनने को मजबूर कर रहे थे। कुछ देर उनसे बात करके वो किचन में आकर खाना गर्म करने में लग गया। इतनी सारी चीजें बनवाई थी राजीव के माँ ने शेखर से जिनको गर्म करने में भी शेखर के पसीने निकल रहे थे। एक बार फिर शेखर ब्लाउज के अन्दर पसीने पसीने हो गयी थी। पर अचानक ही उसे उसकी बाहों पर किसी के हाथ महसूस हुए। "क्या बना रही हो बहु?', पे राजीव के मामा जी थे जो शेखर के ब्लाउज की बाह पर उरी कराकर पकड़ चुके थे और शेखर की नितम्ब पर अपने शरीर से लगा रहे थे। क्या ये सिर्फ गलती से स्पर्श हुआ था? शेखर चौंक पड़ी थी। ससुर जी आप यहाँ?", शेखर ने यूंघट काट कर झट से उनसे दूर होते हुए घबरा कर उनसे पूछा। अरे तुम्हारी मामी और तुम्हारी सास आपर में बातें कर रही है। और तुम्हारे ससुर बाहर गार्डन में है। तो मैंने सोचा कि मैं ही अपनी बहु को देख आऊँ, राजीव के मामा ने कहा उनके चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान थी। और देखते ही देखते बिना संकोच किये वो शेखर की कमर को अपनी हाथो से पकड़ कर छु लगे। उनकी नियत सचमुच खराब थी। ये क्या कर रहे है ससुर जी?", शेखर ने घबराते हुए बोली और उनकी गिरफ्त से बाहर होन चाहि। पर उसके मामा ससुर उसकी नितम्ब और स्तनों को छूकर दबाने लगे। मैं तो बस अपनी बहु को जानने की कोशिश कर रहा है, अपनी मक्कार हँसी के साथ वो बोले। वो तो अच्छा हुआ कि शेखर की सास और राजीव की मामी की किचन की ओर बढ़ने की आवाज़ आई तो शेखर अपने मामा ससुर की बाहों से बाहर आ सकी। पर उस गिरफ्त से छूटने के पहले तक उसके मामा ससुर ने शेखर के स्तनों और नितम्ब को दबाने के आनंद के साथ साथ शेखर के लबो का रस ज़बरदस्ती उन्हें चूम कर ले लिया था। शेखर अब एक कमज़ोर औरत की तरह महसूस कर रही थी। पर उसके अन्दर का पुरुष पूरी तरह से गुस्से में था। कैसे गुज़रेगी वो इस हवसी के साथ दिन? वो यही सोच रही थी। एक पल को भी अब यो अपनी सास को अपनी नजरो से ओझल होने नहीं देगी, दो सोचने लगी। किसी तरह उसने अपने आप को अपने मामा ससुर की हवस से उस दिन खुद को बचाया जब तक मामा मामी घर से चले नहीं गए। उनके जाते ही वो अपने कमरे में जाकर पुट फुट कर रो पड़ी। कैसी हालत में फंस गयी थी वो? और अपने मामा ससुर की हवस के बारे में वो किसी को कुछ कह भी नहीं सकती थी। रात को राजीव ऑफिस से घर आये तो बहुत देर र हो चुकी थी। ब तक चो सिसकते हुए सो चुकी थी। राजीव तो खुद शेखर के जिस्म को लेकर उतावला था.. वो तो खुद शेखर की साड़ी उठाकर शेखर के लिंग को सहलाना चाहता था और उसके साथ बहुत कुछ करना चाहता था। लेकिन १२ दिन उसे शेखर की मदद की जरूरत थी। इसलिए बिना कुछ किये वो बस रेशमी साड़ी में लिपटी हुई शेखर की नितम्बको निहारता हुआ सो गया। नींद में कई बार दो शरीर एक दुसरे के पास आ जाते है, भले वो कुछ करे न। ऐसा ही शेखर और राजीव के साथ हुआ था। सुबह जब उन दोनों की नींद खुली तो शेखर राजीव की बाहों में थी। और राजीव का खड़ा लिंग शेखर यानी शिखा की नितम्ह पर जोर से टकरा रहा था और राजीव के हाथ शैखर की रेशमी साड़ी पर थे और उसके होंठ शेखर की ब्लाउज में खुली हुई पीठ से लगे हुए थे। नींद खुलते ही जैसे ही शेखर को ये एहसास हुआ और वो ज़ारा होश में आई तो वो झट से उळकर बिना कुछ कहें अपनी साड़ी संभालती हुई बाथरूम आ गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि किसी से कहे तो कहे क्या। ये औरत का रूप उसके लिए कितनी मुसीबत बन गया था। शेखर और राजीव दोनों को पता था कि सुबह की उस अनजाने में नींद में हुई गलती से दोनों के बीच एक अनकहा टेशन था। इस वजह से दोनों ने ज्यादा बातें नहीं की और राजीव अपने ऑफिस जल्दी ही चले गए। वहीं शिखा घर पर आपने सास ससुर की बाकी दिन की तरह सेवा करती रही। शिखा की सास उससे दिन भर कुछ न कुछ करवाती रहती थी। मुश्किल से दोपहर में आधे घंटे की नींद का उसे मौका मिला था पर फिर उसकी सास की आवाज़ से उसे उठाना पड़ा था। उसकी नाक में नथ पहनकर अभी भी दर्द था। और वो किचन में अपने सास ससुर के लिए चाय बना रही थी। यही तो समय था जिस वक्त इस कहानी की शुरुआत हुई थी और शिखा सोच रही थी कि वो कौन सी घडी थी जब उसने इस घर की बहु बनना स्वीकार की थी। जब वो राजीव के साथ उसकी पत्नी बनकर १४ दिन रहने के लिए मानी थी तब तो उसकी तैयारी में वो मन ही मन बहुत खुश थी। बहु बनकर जीना तो उसके लिए एक सुन्दर सपना था और उसे राजीव पर किसी तरह का डाउट भी नहीं था। पर पिछले कुछ दिनों में उसे लगने लगा था कि राजीव भी उसके शरीर की तरफ आकर्षित होने लगा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है। राजीव तो गे थे। और शिखा तो उनके सामने एक औरत और एक पत्नी बनकर रह रही थी। उसे ये नहीं समझ आ रहा था कि राजीव का शिखा के लिंग की वजह से ण है। वैसे तो ये दिन शिखा के लिए उतना बुरा नहीं था। सास की सेवा तो वो रोज़ की तरह ही कर रही थी। पर इस वक्त खिा के अन्दर छुपा हुआ शेखर इन सब से तंग आ चूका था। इस दिन जब राजीव ऑफिस से घर देर से पहुँच कर कमरे में तो शिखा का गुस्सा उन पर टूट पड़ा, कहाँ थे तुम इतनी देर मैं यहाँ दिन भर तुम्हारे माँ बाप की सेवा कर रही हूँ और तुम समय पर भी नहीं आ सकते?", शिखा का चेहरा एक गुस्से से | नी की तरह तमतमा रहा था। ओहो शिखा. तुम तो जानती आज के दिन हफ्ते में एक बार हम सब ऑफिस के बाद खाने गए बाहर जाते है। तुम तो जानती हो कि उस पार्टी में देर हो जाती है, राजीव ने एक अजीब सी मुस्कान के साथ जवाब दिया। देसी मुस्कान जो आदमी शराब पीकर देता है। तुम शराब पीकर आये हो?", शिखा और गुस्से से भड़कने लगी तो राजीव ने गुस्से से भरी शिखा को अपनी बांहों में पकड़ लिया। शिखा तुम तो मेरी पत्नी की तरह गुस्सा कर रही हो। शराब ही तो पि है. ऐसा क्या बुरा किया?", राजीव ने कहा और शिक्षा को बांहों में तेने लगा। मुझे छोडो राजीव, शिखा राजीव की | बांहों से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी। तुम बहु बनकर सचमुच बहुत खुबसूरत लग रही हो शिखा', नशे में धुत राजीय शिखा को और जोर से पकड़ने लगा और उसे चूमने की कोशिश करने लगा। राजीब अब शिखा की नितम्ब को बहुत जोर जोर से अपने हाथ से दबा रहा था और अपने खड़े लिंग को शिखा के शरीर से दबा रहा था। 'छोडो मुझे राजीव, शिखा खूब कोशिश कर खुद को छुड़ाने लगी, 'तुम गे हो राजीव। तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते” शिखा गिडगिडाने लगी। राजीव कहाँ मानने वाला था। उसने शिखा को और मजबूती से पकड़ लिया और उसकी साड़ी पर हाथ फेरते हुए शिखा के लिंग को अपने हाथ से पकड़ कर बोला। "हाँ मैं गे हूँ। पर तुम भी तो औरत नहीं हो डार्लिंग', राजीव हँसने लगा। शिखा का चेहरा अब लाल हो गया था। राजीव उसके लिंग को हिलाने लगा था और ज़बरदस्ती शेखर का हाथ अपने लिंग पर ले जाने लगा। डार्लिंग मैं कबसे तुमको प्यार करना चाहता हूँ। तुम इस तरह मुझसे दूरन भागो", राजीव शिखा से कहने लगा। राजीव प्लीज़। मैं तुमसे भीख मांगती हूँ, शिखा सचमुच राजीव के सामने कमज़ोर पड़ गयी थी क्योंकि राजीव जो भी हो एक मजबूत राजपूत आदमी था जिसकी से छूटना शिक्षा के लिए मुश्किल था। राजीव ने ज़बरदस्ती शिखा को बिस्तर पर उल्टा लिटाया और उसकी साड़ी उठाने लगा। उसके पेटीकोट के अन्दर हाथ डालकर शिखा की पेंटी उतारने लगा। शिखा के दोनों हाथ उसकी पीठ के पीछे राजीव ने अपने एक हाथ से मजबूती से पकडे हुए था। और वहां शिखा असहाय ही लेती हुई वी जिसकी पेंटी अब उत्तर चुकी थी और साड़ी पेटीकोट राजीव ने कमर तक उठा लिया था। "नहीं राजीव" शिखा एक बार फिर बोली। 'डार्लिंग, तुम चिंता मत करो। तुम्हे भी मज़ा आएगा। में धीरे धीरे', राजीव ने कहा और उसने शिखा के पीछे की तरफ अपना लिंग डाल दिया शिखा के मुंह से एक धीमी सी दर्द भरी कराह निकलीं। साड़ी पहनकर शिखा सचमुच अब एक औरत की मुश्किलों को खुद महारा कर रही थी। और राजीब अपना लिंग जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगा। बेचारी शिखा अब कुछ और नहीं कर सकती थी। और वो बस इस बुरे समय के खतम होने का इंतज़ार करने लगी। जब राजीव ने अपनी हवस पूरी कर ली तब वो शिखा के बदन से उठकर अलग हुआ और शिक्षा को उल्टा पलट कर लिटा दिया। "मैं तुम्हे भी खुश फरगा मेरी शिखा डार्लिंग, राजीच ने कहा और एक बार फिर शिखा की साड़ी उठाकर शिखा के लिंग को हिलाने लगा। एक कमज़ोर औरत सा अनुभव करती हुई शेखर का लिंग इस वक़्त कैसे खड़ा होता भला? फिर भी राजीव उसे चूसने की कोशिश करता रहा। और ऐसे ही कोशिश करते करते राजीव वहीं उसकी गोद में सो गया। और शिखा वहां बस लेटी रही। आखिर में उसने मारवाड़ी बहु होने का सबसे बुरा रूप देख ही ली थी। शेखर अब एक औरत होने के सबसे बड़े सुख और दुःख दोनों को समझ चूका था। शायद रात को अपनी की हुई हरकत पर राजीव शर्मिंदा था, इसलिए सुबह सुबह शिखा से बिना कुछ कहे ही अपना मुंह छिपाप वो अपने ऑफिस के लिए निकल गया था. और घर में रह गयी थी शिखा जो समदा समझ नहीं पा रही थी कि वो अब क्या करे। किसी को राजीव का सच बताकर उसे कुछ अच्छा हासिल भी नहीं होगा क्योंकि उसकी अपनी असलियत सब के सामने आ जाएगी। पर घर में वो सास ससुर तो थे ही जो अपनी बहु के उठने का इंतज़ार कर रहे थे। जो शिखा के साथ हुआ उसके बाद उसके पारीर के उस हिस्से में दर्द होना स्वाभाविक था। किसी तरह उस दर्द के साथ उठकर वो बाथरूम गयी। अब तो उसकी चाल भी बदल गयी थी। उस दर्द की वजह से वो पैर फैलाते हुए चल रही थीं। नहा धोकर और एक बार फिर से तैयार होकर वो बाथरूम से बाहर आई। और धीरे धीरे चलकर किचन जाकर अपने सास ससुर के लिए चाय नाश्ता बनाने की तैयारी में जुट गयी। पर आज उसका चेहरा बहुत उदास था। और होता भी क्यों नहीं? शायद उसकी सास ने उसकी समस्या को भांप लिया था तभी तो उसने शिखा के ससुर से घर से १-२ घंटे के लिए बिना चाय पिए ही बाहर मोनिंग वाक पे जाने के लिए कह दिया था। 'बहु, तुम बहुत उदास लग रही हो", सास ने शिखा से कहा। पर। र शिखा । कुछ न बोला ल सकी और अपने किचन के काम में धीरे धीरे लगी रही। कल राजीव शराब पीकर घर आया था। क्या इसलिए तुम नाराज़ हो?" उसकी सास ने एक बार फिर पूछा। नहीं, माँ जी", शिखा ने धीमे स्वर में कहा और किचन के दुसरे हिस्से से कुछ सामान लाने के लिए धीरे धीरे उस ओर बढ़ने लगी। लिंग के उसके अन्दर जाने के दर्द की बजह से बो पैर फैलाए धीरे धीरे चल रही थी। उसकी सास शापद अब पूरी बात समझ गयी थी। उसने अपनी बहु को बांह से पकड़ कर रोक कर पूछा, "मुझे सच सच बताना बहु। मेरे पास कोई ओर साफ़ सुधरे शब्द नहीं है इस सवाल के लिए। क्या राजीव ने कल रात तेरी गांड मारी?" अपनी सास के मुंह से ये सवाल सुनकर शिखा एक पल को भौचक रह गयी पर बिना कुछ कहे ही उसकी सास की ओर देखते हुए उसकी आँखों में आंसू आ गए। उसकी सास को उसका जवाब मिल गया था। उसकी सास ने शिखा को तुरंत गले लगा लिया और शिखा भी अपनी सास के गले लगकर फुट फुटकर रोने लगी। शिखा की सास जो अब तक तो बहुत पारंपरिक किस्म की महिला लगती थी जो अपनी बहु से सब काम करवाती थी, उसका दिल भी पिघल गया था। और वो शिखा के सर पर हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना देने लगी। "बहु, मैं भले राजीव की माँ हूँ। पर मैं एक औरत भी हूँ। और एक राजपूत औरत होने के नाते मैं कहूंगी कि तुम एक રાજપૂત પરિવાર શ્રી વધુ હો ગૌર જ રાનપૂત વહુ કે શરીર કો उसके मर्जी के बिना कोई भी मर्द चाहे वो उसका पति हो क्यों न हो, वो उसे हाथ नहीं लगा सकता। यदि तुम दोनों की शादी हमारे यहाँ पूरे रीती रिवाज़ से हुई होती न तो मैं तुझे यह सब सिखा पाती। वरना मर्दो का क्या है। वो तो औरत को अपनी जागीर समझते है." शिखा की सारा की बातें सही भी थी. 'तू अब रोना बंद कर. तू एक राजपूत यह है। मैं तुझे सिखाऊंगी कि कैसे एक राजपूत बहु अपने शरीर को अपने पति को अपनी मर्जी से देती है। जब एक मर्द और एक औरत के शरीर आपस में मिलते है तो सुख दोनों शरीरों को मिलना चाहिए सिर्फ एक मर्द को ही नहीं। शिखा ने अपनी सास की बात सुन बिना कुछ कहे ही नजरे झुकाए इशारे में कह दिया कि वो उनकी बात समझी नहीं। तो शिखा के सास ने उसके आंसू पोछते हुप उसके चेहरे को दुलार से देखा और बोली, 'तू मेरे साथ चल मेरे कमरे में। आज मुझे तुम दोनों के सुहागरात की तयारी करनी है। और शिखा का हाथ पकड़ उसकी सास उसे अपने कमरे में ले गयी और एक बड़े सूटकेस के सामने जाकर खड़ी हो गयी जिसे उसने अब तक खोला नहीं था। और फिर जब उसने सूटकेस खोला तो शिखा की आँख खुली की खुली रह गयी। उस सूटकेस के अन्दर एक बहुत ही आलिशान लहंगा चौली और दुपट्टा थी। ऐसा लग रहा था जैसे २०-२५ किलो का तो लहंगा ही होगा और दुपट्टा ५-६ किलो का अलग। एक से एक पत्थर और शीशो और जरी के काम से सजा हुआ लहंगा और दुपट्टा उस कमरे की रौशनी में दमक रहा था। ये लहंगा मैंने कुछ महीने पहले अपनी होने वाली बहु के लिए खास तौर से बनवाया था। पर तुम दोनों ने तो यहाँ पहले ही शादी कर ली थी। पर आज एक राजपूत बहु की सुहागरात होगी जिसमे तुम इसे पहनोगी। मैंने कल ही इसकी चोली को तुम्हारे साइज़ के अनुसार सिल दिया था, शिखा की सास वो लहंगा निकालकर शिखा को दिखाने लगी। उस लहंगे का घेर इतना था कि उसके अन्दर कई लोग समा जाए। जैसे दीपिका रानी पद्मावती बन घूमर करती हुई लहंगा पहनी थी, ये तो उससे भी ज्यादा भव्य लहंगा था। इसे पहनकर तो कोई भी औरत एक राजपूत बहु होने पर गर्व महसूस करेगी। इतना गर्व कि वो अपना शरीर किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी के बिना नहीं देती। एक राजपूत बहु जो कमज़ोर नहीं होगी। यह सब देखकर शिखा ने धन्यवाद कहने के लिए अपनी सास को प्यार से गले लगा लिया। आखिर कार शिखा के अन्दर अब शिखा के ही मनोभाव थे और शेखर कहीं गूम हो गया था। अच्छा अब मुझे तुम्हारी सुहागरात की बहुत सी तैयारी करनी है. आज तुम्हारे ससुर को बहुत शौपिंग करनी होगी। उन्हें तुम कार की चाबी दे देना , सास ने प्यार से मुस्कुराते हुए शिखा से कहा। वैसे तो इस दिन भी शिखा सबके लिए खाना नाश्ता बनाना था पर उसके सास ससुर आज खुद बहुत से काम में लगे हुए थे। ससुर दूकान दूकान जाकर फुल खरीदने गए थे। तो वहीं सास शिखा के कमरे को सजाने में व्यस्त थी. शाम तक पूरा कमरा फूलो की खुशबू से महक उठा था और बिस्तर एक फूलो की सेज में बदल गया था। अब समय था शिखा के उस लहंगे को पहनने का और एक पारंपरिक राजपूत बहु की तरह तैयार होने का। इसके लिए शिखा पहले तो अपनी चोली पहनकर आई और उसके निचे एक सैटिन का पेटीकोट पहनकर आई जो उस लहंगे के साथ आया था। क्योंकि उस लहंगे में कई प्रकार के वर्क किये हुए थे और दुल्हन की नाजुक त्वचा पे खरोच न आये इसलिए एक अच्छा पेटीकोट पहनना ज़रूरी था। शिखा की तो चोली ही १-२ किलो की महसूस हो रही थी। उसके वजन के सामने आज उसके स्तनों का वजन कम लग रहा था उसे और फिर जब उसकी सास ने उसे वो भारी लहंगा पहनाया तो उसमे खुद को एक नाजुक फुल की भाँती महसूस कर रही थी। और फिर एक एक कर उसकी सास ने उसे पारंपरिक गहने पहनाये. ऊपर से निचे तक शिखा गहनों से लद गयी थी। और फिर नाक पर पक बड़ी सी नथ पहन शिखा टिमटिमाने लगी। इतने वजन के बाद भी उसके चेहरे पर अद्भुत खुशी थी। एक औरत बहुत खास होती है। ये खास होने का अनुभव वो आज कर रही थी। और फिर अंत में जब उसकी सास ने प्यार से उसके सर पर दुपट्टा चढाते हुए उसके स्तनों पर उसे लपेटा तो शिखा किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी. और फिर शिखा की सास ने शिखा को पकड़ कर उसे सुहाग की सेज पर ले गयी। भारी लहंगे को लेकर चलने में एक एक कदम में शिखा को एक बहुत ही खास औरत होने का अनुभव हो रहा था। सुहाग की सेज पर सास ने शिखा को बिच में बिठाया और उसके लहंगे के घेर को उस सेज पर संचार कर सजाने लगी। अब शिखा के चारों ओर उस लहंगे का गोल घेर बन गया था जो उस बड़ी सी सेज पर भी बड़े से हिस्से को घेर चूका था। शिखा अब अपनी सुहाग रात के लिए तैयार थीं। सुन, जब राजीव आये तो तू उसे ये बादाम का दूध ज़रूर पिलाना। ये सुहागरात की ख़ास रस्म होती है. उसकी सास ने बहुत प्यार से शिखा से कहा। शिखा की सास जब कमरे से बाहर चली। की गयी तो शिखा गन ही मन बहुत खुश थी। आज उसकी सुहागरात थीं। हालांकि उसे पता था कि उसे एक मर्द का स्पर्श पसंद नहीं है पर उसके दिमाग में कुछ अलग चल रहा था। आज के सुहागरात का आनंद ज़रूर लेगी। एक औरत होने की खुशी ज़रूर पाएगी वो और वो भी अपने तरीके से। जा बहु तेरा कमरे में इंतज़ार कर रही है. राजीव के ऑफिस से आने के बाद उसकी माँ ने उससे राजीव को समझ आ रहा था कि आज कुछ खास है घर में पर उसे यह नहीं समझ आ रहा था कि कल की हरकत के बाद वो शिखा से कैसे नज़रे मिलाएगा। "और सुन, बहु की इज्जत करना तेरा धर्म है। उसकी खुशी का ध्यान रखना। जा तेरी पत्नी सुहाग के सेज पर तेरै इंतज़ार में बैठी है, राजीव उसकी माँ ने कहा और राजीव को उसके कमरे की ओर भेज दिया। जब कमरे के अन्दर राजीव पहुंचा तो शिखा को उस भव्य रूप में देखकर उसे यकीन नहीं हुआ। आज वो सुहागरात मनाने वाला था। और शिखा इसके लिए तैयार कैसे हो गयी? वो मन ही मन सोचने लगा। कोई और आदमी वहां होता तो अपनी इतनी घुबसूरत पत्नी को गले लगाने को बेताब हो उठता. पर राजीव अलग था। वो गे था। उसे तो शिखा के इस रूप-सौंदर्य से कम मतलब था। वो तो शिखा के लिंग की ओर आकर्षित रहता था। पर जब एक स्त्री अपने परम सौंदर्य वाले रूप इतनी भव्य तरीके से सजी हुई हो तो उससे प्रभावित हुए बगेर कोई भी आदमी नहीं रह सकता। और राजीव भी इससे अछूता नहीं था। वो धीरे धीरे बड़कर अपनी पत्नी के करीब आ गया तो उसकी पत्नी शिखा ने एक मोहक मुस्कान के साथ धीरे धीरे अपने पति के शार्ट के बटन खोलने शुरू किये। उसके गहनों की आवाज़ से शिखा और मोहित हो रही थी। आज की रात तुम भूलोगे नहीं राजीव", शिखा बोली और राजीव का शर्ट खोलकर कमरे में दूर कहीं फेक दी। राजीव उत्तेजना में अपने घुटनों में उठ खड़ा हुआ तो शिखा ने उसकी पेंट की बटन खोल उसकी पेंट भी उतार दी और फिर अंडरवियर भी। राजीव अब उत्तेजित था। वो एक बार फिर शिखा के अन्दर जाने को उत्साहित था। और इस तरह दोनों ने सुहागरात मनाई। अब शिखा को भी मज़ा आने लगा था राजीव की बीबी बनकर रहने मे। शिखा भले ही एक औरत के कपड़ों में थी, लेकिन फिर भी वो एक मर्द थी, इसलिए राजीव गे होते हुए भी उसे प्यार करने लगा था। इसी तरह समय बीत जाता है, और शिखा के सास ससुर अपने घर चले जाते हैं। और फिर राजीव और शिखा हमेशा के लिए एक दूसरे के साथ रहने का फैसला कर लेते है।
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