My story of how I learnt to live my life as a woman while facing humiliation

सुबह
नाश्ता करने के बाद शिखा दीदी ने मेरी फुल बॉडी वैक्सिंग की. सालो बाद अपनी मखमली कोमल त्वचा को महसूस करके मुझे अच्छा तो बहुत लग रहा था. अब दीदी की दी हुई सैटिन की मैक्सी भी मेरे तन पर फिसलते हुए मुझे रोमांचित कर रही थी.
“अच्छा वैक्सिंग तो हो गयी. अब नहा ले और मेरी अलमारी से अच्छी सी साड़ी निकाल कर तैयार हो जा. माँ को कोई शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए.”, शिखा दीदी ने मेरे पैरो पर हाथ फेरते हुए कहा. वो देख रही थी कि कहीं कोई हिस्सा रह तो नहीं गया वैक्सिंग के लिए. अपने काम से वो संतुष्ट दिखी.
“अरे दीदी, गीता के लिए कौन तैयार होने वाला है! मैं तो अपने जीजू के लिए तैयार होने वाली हूँ. तुम देखना कहीं विनय जीजू तुम्हे छोड़ कर मुझ पर लट्टू न हो जाए!”, मैंने हँसते हुए कहा और नहाने चली आई. इतने समय बाद ब्रा, पेंटी और ब्रेस्टफॉर्म पहन कर चलना बड़ा ही स्वाभाविक लग रहा था. पिछले कुछ साल लड़के की तरह बिताने के बाद भी मेरे अन्दर मजबूरी में बनी हुई औरत जाग रही थी. भले मुझे औरत बनने को मजबूर किया था पर अब खुद मेरे अन्दर औरत बनकर एक ख़ुशी थी.
नहाकर मैं दीदी के कमरे में गयी जहाँ से मैंने उनकी अलमारी से नेट की गुलाबी रंग की साड़ी निकाली. उस पर एम्ब्रायडरी से लाल रंग के गुलाब बने हुए थे. बड़ी ही सुन्दर लग रही थी साड़ी. किस्मत से दीदी ने मेरे लिए एक मैचिंग लाल रंग का ब्लाउज भी सिला रखा था. बड़ी खुली सी नैक थी उस ब्लाउज की. मैं आईने के सामने खड़ी होकर तैयार होने लगी. खुद को देखकर एक अजीब सी ख़ुशी थी. और मन में एक उलझन भी. क्यों मेरा दिल औरत बनकर खुश था? मैं तो एक लड़की से शादी करने वाली हूँ? शेफाली मेरे बारे में जानकर न जाने क्या सोचेगी? क्या मुझे इस तरह सज संवर कर खुश होना चाहिए. ऐसे ही सोचते हुए मैं तैयार हो गयी और निचे जाने लगी जहाँ दीदी किचन में व्यस्त थी.

दीदी ने मुझे देखते ही कहा, “हाय! नज़र न लगे मेरी प्यारी बहना को! इस साड़ी में तो तू मुझसे भी बहुत ज्यादा सुन्दर लग रही है”. शिखा दीदी भी न! कभी कभी मेरी समझ से बाहर हो जाती है उनके मन की बात. कभी तो वो मुझे अपने भाई के रूप में जीने को प्रेरित करती है और बहन के रूप में भी मुझे इतना प्यार देती है. उनकी बात सुनकर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी पर चेहरे से चिंता अब तक दूर नहीं हुई थी. दीदी ने मेरी चिंता को भांप लिया था.
“अरे पगली! तू डर मत मैं और जीजू माँ को संभाल लेंगे और तेरी शादी शेफाली से ही होगी. काश कि हमारे कोई बड़े बुज़ुर्ग रिश्तेदार हमारी माँ को समझाने में मदद करते. पर माँ ने सबके साथ इतना बुरा व्यवहार किया है कि कोई हमारी मदद करने को तैयार नहीं है. बस एक रघु मामा है जिनसे माँ अब तक संपर्क में रहती है और उनकी बात सुनती है.”, दीदी ने कहा.
“दीदी, अब रहने भी दो न. तुम और जीजू सब ठीक कर दोगे मुझे पूरा विश्वास है. रघु मामा से कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है.”, मैंने कहा.
“अच्छा ठीक है. अब मैं भी नहाने जाती हूँ. मुझे भी इनके आने के पहले तैयार हो लेना चाहिए”, दीदी ने कहा और वो अपने कमरे चल दी.
रघु मामा
एक कारण था जिस वजह से मैं रघु मामा से कोई मदद नहीं लेना चाहती थी. कभी मैंने किसी से कहा नहीं पर उस आदमी से मुझे बेहद नफरत थी. मुझे सही से दिन तो याद नहीं पर शायद यह तब की बात है जब दीदी दिवाली के बाद वापस आगरा चली आई थी. दीदी ने मुझे कई साड़ियाँ लाकर दी थी और मैं भी तब घर में ख़ुशी से साड़ी पहन कर रहने लगी थी. आखिर अखिल को भी मैं साड़ी में ज्यादा अच्छी लगती थी.
कुछ महीने हुए होंगे जब रघु मामा हमारे घर आये होंगे. माँ के सगे भाई, माँ को पूरी दुनिया में बस उन्ही पर भरोसा था. उस दिन माँ और वो बाते कर रहे थे.
“अच्छा हुआ भैया आप आ गए. आप ही तो बस हमारा एक सहारा हो. अब शिखा नौकरी कर रही है तो थोड़ी मदद हो गयी है. वरना आप तो जानते ही हो हमारी हालत.”, मेरी माँ गीता ने कहा.
“बहन. समय सब ठीक करेगा. तुम्हारा पति इतना नालायक न होता तो यह सब दिन देखने न पड़ते. सोनाली भी सुधर चुकी होती अब तक.”, रघु मामा ने कहा. वो एकलौते रिश्तेदार थे हमारे जो न जाने क्यों मुझे सोनाली बनाने के पीछे माँ का साथ दे रहे थे.
“अच्छा मैं ज़रा सोनाली बिटिया से उसके कमरे में मिलकर आता हूँ.”, मामा ने कहा.
“ठीक है भैया. मैं भी ज़रा बाहर काम से होकर आती हूँ. शाम को खाना खाकर ही जाना तुम. और थोड़ी देर आराम भी कर लेना.”, माँ ने कहा और वो बाहर चली गयी.
“सोनाली बिटिया”, रघु मामा ने मेरे कमरे में आकर कहा. मैं अपनी पढाई में व्यस्त थी. एक साधारण सी घरेलु साड़ी पहनी थी घर में. पर मामा को देख कर मैं बड़ी ख़ुशी हुई. “रघु मामा!! आप कब आये?”, मैंने कहा.
“अरे बैठी रह… मैं तो बस तुझे देखने चला आया.”, रघु मामा ने कहा और वो चलकर मेरी कुर्सी के पास आये. पहले तो उन्होंने मेरे सर पर प्यार से हाथ रखा, पर धीरे से उनका हाथ फिसल कर मेरी पीठ पर चला गया. मेरे ब्लाउज से झांकती मेरी नग्न पीठ पर उनका हाथ चल रहा था. मैं थोड़ी सी सहम गयी पर फिर भी मुस्कुराती रही. आखिर मामा थे वो मेरे. फिर उन्होंने मेरे ब्लाउज में पीछे से हाथ डालकर मेरी ब्रा को छूने लगे.
“मामा”, मैंने धीमी आवाज़ में कहा, “गुदगुदी हो रही है”. पर उनका हाथ नहीं रुका और अब मेरी कमर पर चलने लगा. मैं कुर्सी से उठ खड़ी हुई तो उन्होंने मुझे मेरी कमर से कस के पकड़ लिया.

“अरे मेरे बदन में क्या क्या हो रहा है कैसे समझाऊँ तुझे सोनाली रानी”, मामा ने मुझे अपनी बांहों में जकड लिया था. मैं उनकी पकड़ से छूटने के लिए कसमसाती रही. “मामा, छोडो न मुझे.”
पर वो रुके नहीं. और हँसने लगे. “अरे सोनाली रानी, मुझे भी तो देखने दो कि तुमने अपने पेटीकोट के अन्दर क्या छुपा रखा है.”, रघु मामा ने कहा और मेरी नाभि के निचे से होते हुए उन्होंने अपना हाथ मेरी साड़ी की प्लेट के पीछे से मेरी पेंटी में डाल दिया.
“मामा प्लीज़ मुझे जाने दो.”, मैं उनसे गीडगीडायी और जोर लगाने लगी उनसे छूटने के लिए. “अरे ऐसे कैसे जाने दूं. तेरी जैसी कलियाँ रोज़ रोज़ कहाँ मिलती है.”, मामा ने मुझे और जोर से पकड़ लिया और मेरे हाथो में अपना कठोर लिंग पकडाने लगे. मैं उनसे छूटने की कोशिश करती रही पर उन्होंने अपनी गन्दी सी जीभ मेरे होठो पर लगानी शुरू कर दी. मैं अन्दर ही अन्दर रोने लगी. आज भी मेरे दिल में रघु मामा के बारे में सोचते ही एक आग लग जाती है.
“सोनाली! सोनाली! क्या हुआ? कहाँ खो गयी?चल लगता है तेरे जीजू आ गए”, शिखा दीदी की आवाज़ से मेरा ध्यान उन पुरानी बातों से टुटा. दीदी भी तैयार हो चुकी थी. मेरी खुबसूरत शिखा दीदी को अपनी आँखों के सामने देख कर मुझे एक सुकून महसूस हुआ.
पर मुझे थोडा परेशान देख दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली, “अच्छा सुन. तू अपने दिल पे काबू रखना ज़रा. माँ कुछ उल्टा सीधा बोले तो हम संभाल लेंगे. तू परेशान न होना.” मैं तो दीदी से तुरंत गले लिपट गयी. मन में ज़रा डर भी था.

गीता से मुलाकात
घर का दरवाज़ा खुला और मेरी आँखों के सामने मेरे प्यारे जीजू थे. “जीजाजी! कैसे है आप?”, उन्हें देखते ही मैं उनसे गले लग गयी.
“अरे साली साहिबा!! क्या कमाल लग रही है आप! यह साड़ी में तो बहुत ही खुबसूरत लग रही है आप.”, जीजू ने मुझे गले लगाकर कहा.
“ओहो आप ही की बीवी की साड़ी है! मुझे यकीन है बड़ी सुहानी यादें जुडी होंगी आपकी इस साड़ी के साथ. उन यादों को मेरे साथ दोबारा महसूस करने का इरादा तो नहीं है न?”, मैंने छेड़ते हुए कहा.
“अरे कैसी बातें करती है आप भी. पर आपको देखकर सचमुच बड़ी ख़ुशी हुई.”, जीजाजी ने कहा.
पर उस वक़्त जीजाजी के पीछे पीछे चलते हुए मेरी निर्दयी माँ गीता भी आ चुकी थी. इतने सालो बाद वो मुझे देख रही है फिर भी उसकी आँखों में जैसे नफरत ही भरी हुई थी. शिखा दीदी ने मुझे माँ के पैर छूने का इशारा किया. मेरा मन तो न था पर दीदी की बात मैंने मान ली.
“जीती रहो. चलो देखकर अच्छा लगा कि इतने साल शहर में रहने के बाद भी तुम अपने संस्कार नहीं भूली”, गीता ने कहा. यह आशीर्वाद था या ताना, मेरे लिए समझना मुश्किल था. दीदी ने एक बार फिर मुझे शांत रहने का इशारा की और मैं चुप रही.
घर में कुछ देर बैठने के बाद शिखा दीदी ने सबको नाश्ता कराया. जब लगभग सभी का नाश्ता हो गया था तो दीदी ने आखिर मेरी शादी की बात छेड़ ही दी. “माँ, मैं सोच रही थी कि अब सोनू की शादी करा देनी चाहिए.”, दीदी ने कहा.
माँ ने मेरी ओर देखा और बोली, “हाँ क्यों नहीं? सोनाली ने कोई लड़का देख रखा है क्या? तुमको तो पता है मेरा कितना खुला दिल है. तेरी और मधु दोनों की शादी तुम दोनों की मर्ज़ी के लडको से ही करवाई है मैंने. सोनाली भी लड़का पसंद कर ले तो मुझे कोई हर्ज़ नहीं है. कहीं यह उसके स्कूल के अखिल से तो शादी नहीं करना चाहती?”
गीता की बात सुनकर मेरे मन में एक खीज उठ पड़ी. पर मैं अपनी भावना को काबू में करके बैठी रही.
“माँ, सोनू ने शादी के लिए लड़की पसंद की है.”, दीदी ने माँ से कहा. यह बात आसानी से नहीं होने वाली थी.
“हे भगवान. लड़की की शादी भी कभी किसी लड़की से हो सकती है भला? इतना भी खुला दिल नहीं मेरा. यह करमजली जब से पैदा हुई है तब से मेरे जी का जंजाल बनी हुई है. नाक कटा कर ही रहेगी यह.”, गीता ने जहर उगालने शुरू कर दिया था. “कलमुही कहीं की!”
बस, अब मुझसे और बर्दाश्त न हुआ. इतने सालो के बाद भी ऐसा जहर. बेटा हूँ मैं इस औरत का! और वो इस तरह …. मैं भावुक होकर रोते हुए वहां से भाग खड़ी हुई, और जीजू भी मेरे पीछे दौड़े चले आये. भागते भागते मैं एक टेबल से ठुकरा कर गिर गयी तो जीजू ने मुझे सहारा दिया. जीजू ने मेरी ओर देखा और बोले, “सुनो, तुम्हे मुझ पर और अपनी दीदी पे भरोसा नहीं है? हम कराएँगे तुम्हारी शादी. तुम बस कमरे में जाकर आराम करो और बाकी सब हम पर छोड़ दो”

शिखा दीदी और गीता की बातें गुस्से में चल ही रही थी. “माँ, तुम भूल गयी क्या कि वो बेटा है तुम्हारा! बेटी नहीं!”, दीदी चिल्लाई.
“मेरा कोई बेटा नहीं. मेरी तीन बेटियाँ है बस. और तुम्हे सोनाली की शादी लड़की से करनी है तो करा दो. मेरी बस एक शर्त है कि शादी के दिन वो लाल जोड़ा पहनेगी”, गीता ने पलट कर जवाब दिया.
“तुम पागल हो गयी हो माँ! बेटे को दुल्हन बना कर विदा करोगी तुम?”, शिखा दीदी को भी अब समझ नहीं आ रहा था कि गीता किस तरह की औरत है.
“कौनसा बेटा? वो जो साड़ी पहन कर रोते हुए गयी है वो बेटी है मेरी? मेरी यही शर्त है बस. वरना तुम लोग मेरा मरा हुआ मुंह देखोगे. मेरे पास मरने के बहुत तरीके है.”, गीता बोली.
दीदी तो बस अब अपना सर पकड़ कर बैठ गयी. गीता ऐसी सनकी औरत थी जो सचमुच ऐसा कदम उठा सकती थी. वो न भी करे तो शादी में हंगामा खड़ा कर सकती थी वो.
शेफाली से बात
शिखा दीदी और जीजू दोनों मेरे पास आये और मुझे स्थिति से अवगत कराया. उन दोनों को भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी सनकी औरत का क्या किया जाए. कुछ देर के बाद शिखा दीदी बोली, “सोनू, तू दुल्हन बनने को तैयार हो जाए तो मामला ऐसे ही सुलझ जाएगा”
“दीदी! यह क्या कह रही हो तुम? शेफाली क्या सोचेगी इस बारे में. और मेरे बारे में?”, मैंने दीदी से कहा.
“सोनू, तेरी शादी के पहले शेफाली से सोनाली वाली बात तो कहनी ही है न? उसे कहीं और से पता लगेगा तो उसका दिल टूट जायेगा. उसे लगेगा कि उसके साथ धोखा हुआ है. क्या पता शायद वो समझ जाए? मैं उससे बात करूंगी.”, शिखा दीदी बोली.

अब तय हो गया था कि दीदी शेफाली से बात करेगी. और इसी के लिए, दीदी मेरे साथ गुडगाँव आ गयी थी. जीजाजी ने गीता को कुछ दिन अपने साथ ही आगरा में रखा.
गुडगाँव आने के बाद उसी शाम को शिखा दीदी शेफाली से मिलने गयी. मुझे घर पर ही रहने को कहकर गयी थी वो. वो नहीं चाहती थी कि मैं सामने आऊँ. वो खुद बात करके आएगी और मुझे बताएगी.
दीदी करीब ४-५ घंटे बाहर रही होगी. और जब देर रात को वो वापस आई तो मेरी हंसती खेलती बहन का चेहरा काफी उदास दिख रहा था. मेरी आँखें डबडबा गयी. “क्या हुआ दीदी? कुछ बोलो न!”, मैंने दीदी से कहा.
“देख सोनू. मैंने शेफाली से बात की … और…”, दीदी बोली. “और क्या, दीदी?”, मैंने पूछा.
“.. और शादी २ हफ्ते में तय हो चुकी है! शेफाली मान गयी!!! तेरे जीजू ने तो खबर सुनते ही शादी के लिए एक छोटा सा हाल भी आगरा में बुक कर लिए है!”, दीदी ख़ुशी से उछलते हुए बोली. और मैं अपने आंसूं को रोकने में असफल दीदी को गले लगा लिया.
शादी
दुल्हन बनना किस लड़की को अच्छा नहीं लगता? ज़िन्दगी का वो दिन जब एक लड़की सबसे खुबसूरत होती है और सारी दुनिया उसे देखने आती है. मुझे भी अच्छा लग रहा था. माँ की इच्छा के अनुसार पर मैंने अपनी पसंद से एक लाल रंग की लहंगा चोली ली थी इस अवसर के लिए. मेरे हाथों में ढेरो चूड़ियां और कंगन पहनाती मेरी शिखा दीदी बड़ी खुश लग रही थी.
“पता है शिखा दीदी! इतने घने लम्बे सुन्दर बाल मैंने इतने समय में किसी दुल्हन के नहीं देखे”, मेरी ब्यूटी पारलर वाली ने कहा जो मेरे बालों का सुन्दर सा जूडा बनाकर सजा रही थी.
“अरे मेरी बहन तो है ही लाखो में एक”, शिखा दीदी अपने लहंगे को संभालते हुए बोली.
और मैं तो आईने में खुद को देख शर्माने लगी. नीछे देखती हूँ तो मेरे पैरो पर रची हुई मेहंदी दिखती है और उस पर पहनी हुई भारी सी पायल. मेरा तो लहंगा ही शायद १५ किलो का होगा. गोटा पत्ती वाला लहंगा जो है. आखिर में पारलर वाली ने मेरे सर पर बिंदिया लगायी और घूँघट चढाते हुए बोली, “लो जी, देख लो! आप की दुल्हन अब पूरी तरह तैयार है”
हाय! कितनी खुबसूरत लग रही थी मैं. खुशकिस्मत थी मैं जिसे दुल्हन बनने का मौका मिला. जो मैं महसूस कर रही थी काश वो दुनिया के सारे लड़के भी महसूस कर पाते कि दुल्हन बनना कितना खुबसूरत ख्वाब है.
“नज़र न लगे”, शिखा दीदी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा. “तू ठीक तो है न? नर्वस?”, दीदी ने मुझसे पूछा. “हाँ दीदी. शेफाली ने कभी सोनाली को देखा नहीं है न. थोडा घबरा रही हूँ.”, मैं बोली.
“अरे, घबराना कैसा? उसने अब तक नहीं देखि तो आज देख लेगी!”, दीदी हँसते हुए बोली.
“अरे कहाँ हो तुम सब लोग? दुल्हन तैयार हुई या नहीं? वहां शेफाली तो तैयार है अब.”, यह आवाज़ मधु दीदी की थी. क्योंकि शेफाली का कोई नहीं था इसलिए मधु दीदी उसके साथ थी. मधु और उसे हसबंड शेफाली की तरफ थे इस शादी में.
“अरे वाह सोनाली कितनी अच्छी लग रही है!! इतनी सुन्दर तो मैं भी अपनी शादी में नहीं लगी थी. सही कह रही हूँ न शिखा दीदी?”, मधु ने कहा और मुझे गले लगा ली.
अब चलने का वक़्त आ गया था. शेफाली आज सोनाली से पहली बार मिलने वाली थी. मैंने अपना लहंगा ज़मीन से ज़रा उठाया और मेरी बड़ी बहन मेरी मदद करने लगी. लहंगा सचमुच बहुत भारी था पर आज के दिन मैं यह भार ख़ुशी से उठाने वाली थी. शिखा दीदी ने मेरी कमर में लगी एक छोटी सी पोटली नुमा पर्स में एक चिट्ठी डालते हुए कहा, “सुन मेरी बहना, इस चिट्ठी को शादी होने के बाद घर पहुच कर रात में पढना. ठीक है?”
मैं तो बस मुस्कुरा दी. मन में ख़ुशी जो थी इतनी. मेरी होने वाली पत्नी भी आज सुनहरे लहंगे में किसी राजकुमारी सी लग रही थी. और देखते ही देखते अग्नि को साक्षी मानकर हम दोनों एक दुसरे के साथ सात फेरे लेकर एक दूजे के हमेशा हमेशा के लिए हो गए. आज गीता भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी. मुझे यकीन नहीं हुआ कि शेफाली मेरा जीवन में इस तरह से साथ देगी.

शादी की रात
आखिर शादी की पार्टी के बाद शेफाली और मुझे शिखा दीदी के घर में एक कमरा दिया गया जिसे फूलो से सजाया गया था. मैं बेहद खुश थी शेफाली के साथ एकांत पाकर.
“यकीन नहीं होता कि मेरी शादी हो गयी, और मुझे इतनी खुबसूरत बीवी मिली है. मैं तो सपने में भी नहीं सोची थी कि मुझे बीवी मिलेगी! चलो, अब बीवी मिल ही गयी है तो उम्मीद करती हूँ कि वो मेरा घर साफ़ रख कर मेरे लिए खाना भी बनाया करेगी.”, शेफाली ने मुझे गले लगाकर हँसते हुए बोली.
“शेफाली”, मैंने भी नखरे करते हुए कहा. उसकी आँखों में जो ख़ुशी थी और प्यार था, उसलिये मैं बेहद शुक्रगुज़ार थी कि उसने मुझे इस रूप में भी स्वीकार किया. “थैंक यू शेफाली.”, मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा.
“यार तू थैंक यू बाद में करना. पर तू ज़रा यह भारी भरकम चूड़ियां और लहंगा उतारने में मदद कर दे. सुबह से ढो ढो कर थक गयी हूँ. तेरा तो और भी भारी लग रहा है.”, शेफाली ने कहा.
सच कह रही थी वो. मैं भी थक गयी थी उन चूड़ियों के बोझ से. शिखा दीदी ने हम दोनों के लिए नयी नयी मैचिंग सी लाल रंग की नाईटी रखी थी बेड पर पहनने के लिए. मेरी मदद से शेफाली ने तो तुरंत अपने कपडे बदल लिए. पर मेरा ध्यान दीदी की दी हुई चिट्ठी पर था. और मैं चिट्ठी खोलकर पढने लगी.
सोनाली,
मेरी प्यारी बहन! शादी की बहुत बहुत बधाई. शेफाली सचमुच बहुत अच्छी लड़की है और तुम दोनों के लिए मैं बेहद खुश हूँ.
पता है तुझे? सालो पहले एक प्यारा सा हँसता खेलता लड़का हुआ करता था. अपनी बड़ी दीदी का बड़ा प्यारा भाई था वो. हमेशा अपनी दीदी को खूब प्यार करता था. पर एक दिन उसकी दीदी की शादी की बात हो रही थी. और उस दिन एक गलती की वजह से उसे ज़िन्दगी भर मुश्किलों का सामना करना पड़ा. उसकी दीदी अब तक खुद को माफ़ नहीं कर सकी है क्योंकि उसकी वजह से उसके भाई को इतने मुश्किल उठानी पड़ी.
अपनी दीदी को माफ़ कर देना सोनू. इस चिट्ठी के साथ २ ट्रेन की टिकट है तुम्हारी हनीमून के लिए. कल सुबह जब माँ मंदिर जाएगी, तब तुम दोनों चुपचाप निकल जाना.
तुम्हारी दीदी,
शिखा
चिट्ठी को पढ़कर मेरी आँखों में आंसूं थे. मेरी आँखों में आंसू देख शेफाली ने पूछा कि क्या हुआ तो मैंने उसे चिट्ठी पढने को दे दी. और उसे पढ़कर उसने मुझे गले लगा ली.

अगली सुबह
जब तक घर में गीता थी, मेरे लिए वापस लड़का बनकर रहना संभव नहीं था. इसलिए सुबह मैंने एक लाल रंग की साड़ी पहनना ही मुनासिब समझा और नहाकर बाहर आ गयी. गीता भी बाहर के कमरे में ही थी.
“हे प्रभु. शादी को एक दिन भी नहीं हुआ है और कलाई इतनी सुनी. कम से कम २ दर्जन चूड़ी तो पहन ले. पता नहीं कब सीखेगी तू”, गीता ने मेरे हाथो को देख कर कहा.
“मैं ज़रा मंदिर जा रही हूँ. १-२ घंटे में लौटूंगी. तब तक नयी दुल्हन की तरह तैयार हो जाना.”, गीता ने कहा और वो मंदिर चल दी.
शिखा दीदी ये सब देख रही थी. वो मेरे पास आई. तभी शेफाली भी बाहर आ गयी. मैं न सही पर शेफाली पक्की नयी नवेली बहु लग रही थी. घूँघट सर पे चढ़ाये!

शिखा दीदी ने कहा, “अरे शेफाली, मेरे सामने घूँघट करने की ज़रुरत नहीं है! अच्छा तुम दोनों ने बैग तैयार कर लिया जाने के लिए? सोनू, तू चाहे तो कपडे बदल ले. अब तुझे सोनाली बने रहने की ज़रुरत नहीं है.”
“दीदी, एक बात बोलू?”, मैंने कहा. “हाँ, बोल!”, दीदी ने कहा.
“क्या पता माँ सही हो?”, मैंने आगे कहा. “मतलब?”, दीदी ने पूछा.
“यही कि क्या पता यदि माँ ने मेरे साथ ऐसा न किया होता तो मैं भी अपने पिताजी की तरह एक नालायक लड़का होता जो अपनी पत्नी और बच्चो की ज़िन्दगी ख़राब कर देता. आखिर माँ मुझे प्यार करती थी न? ऐसा करने के पीछे कोई तो वजह रही होगी. वो हमेशा यही कहती है कि वो नहीं चाहती थी कि मैं अपने बाप की तरह बनू”, मैंने कहा.
मेरी बात सुनकर शिखा दीदी रो पड़ी. “तुझे और मधु को एक बात नहीं पता है सोनू. माँ सही नहीं है और जो तेरे साथ जो कुछ हुआ वो गलत था.”, दीदी बोली.
“क्या कह रही हो दीदी?”, मैंने उत्सुकतावश पूछा.
“सभी को लगता है कि माँ का दिल सबसे बड़ा होता है. पर हमारी माँ किसी दूसरी औरत की तरह माँ के साथ साथ एक पत्नी और बहु भी थी, और एक बहुत बुरी बहु. तुझे पता भी है हमारे पिता कहाँ है? हमारे पिता अब इस दुनिया में नहीं है, और वो कोई बुरे इंसान नहीं थे सोनू जैसे माँ ने तुझे बताया है. बहुत पहले जब तू छोटा था तब गाँव में उनके माँ-बाप यानी हमारे दादा दादी बीमार पड़ गए थे. वो उन्हें अपने घर लाकर हम सभी के साथ उनका ख्याल रखना चाहते थे. पर माँ को ये मंज़ूर नहीं था. वो बुज़ुर्ग सास-ससुर की सेवा नहीं कर सकती थी. वो सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचती थी. पिताजी ने उनको खूब समझाया पर वो नहीं मानी. तो वो खुद छुट्टी लेकर गाँव चले गए अपने माता पिता का ख्याल रखने. पर वहां तबियत बड़ी ख़राब थी दोनों की. और पिताजी दादा दादी को उस हालत में छोड़कर वापस नहीं आ सकते थे.”
“पर छुट्टी से कुछ ज्यादा दिन गाँव में बीताने के बाद जब वो वापस आये तो देर से आने की वजह से उनकी नौकरी जा चुकी थी. उन्होंने फिर माँ को समझाया कि अब वो घर का खर्च चलाने में अक्षम है और दादा दादी का ख्याल भी रखना ज़रूरी है. उन्होंने माँ से फिर कहा कि वो दादा दादी को घर आने दे. पर माँ नहीं मानी. और जब तक पिताजी गाँव वापस गए, दादा जी की तबियत और बिगड़ गयी और उनका देहांत हो गया. कुछ महीने गाँव में मजदूरी कर पिताजी दादी का ख्याल रखते पर वो भी न बची. माँ ने तब तक पिताजी को तलाक भी दे दिया था. अब वो गाँव में ही रहकर मजदूरी करते थे और शराब पीने लगे थे. कभी कभी मुझसे मिलने स्कूल आया करते थे. अपने आखिरी समय में भी वो तुझसे मिलना चाहते थे. पर माँ के रहते ये संभव नहीं हो सका सोनू. हमारे पिता ख़राब इंसान नहीं थे सोनू, और तू भी कभी बुरा इंसान नहीं था. यह सब हमारे माँ की जिद और स्वार्थीपन का असर है जो हम सब भुगत रहे थे. पर अब और नहीं.”
“मैं तो अब बस इस बात से खुश हूँ कि तुम दोनों अब हमेशा के लिए हमारी माँ से दूर जा रहे हो.”, दीदी ने कहानी पूरी की.
दीदी से अपने पिता के बारे में जानकर जैसे मुझे एक सदमा लग गया था. मैं कुछ सोच नहीं पा रही थी. ट्रेन का समय हो रहा था. और हमें अब जाना भी था. पता नहीं क्यों पर मैं सोनाली के रूप में ही लाल साड़ी पहन कर शेफाली के साथ स्टेशन आ गयी जहाँ दीदी और जीजू ने हमें प्यार से विदा किया.
ट्रेन में अब सबसे दूर मैं और शेफाली अपनी नयी ज़िन्दगी शुरू करने जा रहे थे. मन भारी तो था और थोड़ी सी ग्लानी भी थी कि मैं औरत बनकर शेफाली के साथ ट्रेन में थी. मैंने शेफाली की आँखों में देखा और उससे पूछा, “तुम्हे क्या लगता है शेफाली?”
वो मुस्कुरायी और मेरे सीने पर अपना सर रखकर बोली, “मुझे लगता है कि मुझे सुनील और सोनाली दोनों ही पसंद है. मैं दोनों के साथ जी सकती हूँ. बस, शादी के समय जितनी साड़ियाँ दीदी ने तुम्हे गिफ्ट की है वो मेरे साथ शेयर करती रहना!”
हम दोनों हँस दिए. मैंने अपने हाथ में ट्रेन की टिकट देखी, उस पर यात्री के नाम लिखे हुए थे, शेफाली और सोनाली. मैं खुश थी क्योंकि शेफाली अब मेरे साथ थी. भले मेरी सोनाली वाली पुरानी यादों में कुछ दुख देने वाली बातें भी थी, पर अब शेफाली के साथ सुनील और सोनाली दोनों अब नयी खुबसूरत यादें बना सकेंगे.
समाप्त …
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