My story of how I learnt to live my life as a woman while facing humiliation

आज़ादी
“अच्छा सुन, शहर जाकर अपने रंग ढंग न बदल लेना. मैंने सुना है बड़े शहरों के कॉलेज में लडकियां कैसे कैसे गुल खिलाती है. अपनी मर्यादा मत भूलना!”, मेरी माँ ने मेरे सूटकेस में कुछ साड़ियाँ और सलवार सूट भरते हुए कहा.

मेरे दिल्ली में कॉलेज जाने का समय आ चूका था. थोड़ी ही देर में शिखा दीदी और विनय जीजू मुझे अपने साथ लेने के लिए आने ही वाले थे. अब सालों के इंतज़ार के बाद मैं अपनी क्रूर माँ गीता के चंगुल से आज़ाद होकर कॉलेज में एक लड़के के रूप में पढने वाली थी. पता नहीं फिर क्यों मेरी माँ गीता मेरे लिए साड़ियाँ और सूट भर रही थी. या तो वो पागल हो गयी थी या फिर वो इस बात को अनदेखा करना चाहती थी कि अपने जिस बेटे को उसने ज़बरदस्ती एक लड़की का जीवन जीने मजबूर की है, वो अब फिर से लड़का बन कर रहना चाहता है. उसके चेहरे पे उसने जो कुछ भी मेरे साथ किया उसके लिए कभी पश्चाताप या दुःख नहीं देखा मैंने. मैं चुपचाप उसकी बातें सुनती रही. बस कुछ ही घंटे और सहना था मुझे और फिर मैं आज़ाद पंछी.
कुछ देर बाद घर के बाहर एक कार की आवाज़ सुनाई दी. शिखा दीदी और विनय जीजू आ चुके थे. मैं तो ख़ुशी से दौड़े दौड़े उन्हें दरवाज़े तक लेने गयी. दीदी और जीजू ने मुझे प्यार से गले लगाया और बोले, “चलो सोनू, तैयार हो तुम? हमें बहुत लम्बी दूरी तय करनी है आगरा जाने के लिए.”
कोई भी जब अपना घर छोड़कर दूर जाता है तो उसे दुःख होता है पर उस घर को छोड़ते वक़्त मुझे कोई दुख नहीं था. पर अकेले नए जीवन में कैसे रहूंगी वह सोच कर थोडा डर भी लग रहा था. दीदी और जीजू के साथ मैं रात तक उनके घर आगरा पहुच गयी थी. हमने खाना रास्ते में ही खा लिया था तो घर पहुँचते ही हम सोने चले गए थे.

अगली सुबह सुबह मैं नहा धोकर एक प्यारी सी साड़ी पहनकर तैयार थी. जीजू के लिए तो साली को थोडा सज धजकर ही रहना चाहिए. वो भी सुबह सुबह अपने काम पर जाने को तैयार थे और टेबल पर बैठ कर नाश्ता कर रहे थे. शिखा दीदी ने उनके लिए नाश्ता बनाया था.
“गुड मोर्निंग जीजू!”, मैंने चहकते हुए कहा. “अरे वाह साली साहिबा! आप तो सुबह सुबह … बड़ी कमाल लग रही है आप.”, उन्होंने हँसते हुए आगे कहा, “आज कॉलेज की शौपिंग के लिए तैयार हो न आप?”
“हाँ जीजू! कॉलेज की शौपिंग तो ठीक है पर आज मैं अपनी पसंद की खूब सारी साड़ियाँ भी खरीदने वाली हूँ. आज तो आपको चुना लगा कर ही रहूंगी मैं”, मैंने कहा.
“अरे तेरे जीजाजी तेरे लिए कुछ भी करने को तैयार है. चल बैठ, तेरे लिए भी नाश्ता लगा देती हूँ.”, शिखा दीदी ने बीच में कहा.
“सुनो शिखा. मैंने दराज में कुछ पैसे रखे है. आज मेरी साली को वो जो चाहे उसे दिला देना. उसे शिकायत नहीं होनी चाहिए… आखिर मेरी आधी घरवाली जो है”, जीजू ने बगल में खड़ी दीदी से कहा.
“आहा जी.. ज्यादा प्यार मत दिखाओ साली के लिए. मेरे लिए तो एक साड़ी नहीं खरीदी जाती तुमसे. साली पर ही सारा प्यार.”, दीदी ने झूठमूठ से रूठकर कहा.

“अरे तुम भी अपने लिए ले लेना कुछ.”, जीजू ने प्यार से दीदी को गले लगाया. “अच्छा डार्लिंग, अब मैं ऑफिस निकलता हूँ. और सोनाली, तुम आज ही सारी शौपिंग कर लेना. हम कल सुबह ही दिल्ली के लिए निकल जायेंगे. तुम्हारा हॉस्टल वगेरह का इंतज़ाम भी करना है वहां जाकर”, जीजू ने कहा और ऑफिस के लिए निकल लिए.
पता नहीं उस वक़्त मेरे दिल में क्या चल रहा था. मैं अब खुले वातावरण में थी और खुश भी थी. पर मेरे दिल में यह बात नहीं आ रही थी कि अब मुझे लड़के का जीवन जीना है. शायद लड़की बने रहने की आदत सी हो गयी थी. शिखा दीदी यह सब नोटिस कर रही थी मेरे बारे में. पर उन्होंने मुझसे कुछ कहा नहीं और हम दोनों बहने नाश्ता करने के बाद मार्किट के लिए निकल गयी जहाँ मेरे लिए नए कपडे खरीदने थे. मैं तो अपनी साड़ी में ही सोनाली बनकर गयी थी, पर कपडे सोनू, एक लड़के, के लिए खरीदने थे.
सबसे पहले दीदी मुझे जिस दूकान में लेकर गयी वहां हम लोग मेरे लिए लडको वाले अंडरवियर खरीदने गए थे. सालो से अब मैं सिर्फ पेंटी पहन रही थी. तो बड़े बड़े अंडरवियर देख कर मैंने ऐसे रियेक्ट किया जैसे कोइ भी लड़की करेगी. “इश्श! मैं ऐसे अंडरवियर नहीं पहनूंगी!”, मैंने दीदी के कान में धीरे से कहा. “सोनू, लड़के ऐसे ही पहनते है.”, दीदी ने कहा. सच कहू तो सोच कर ही ख़राब लग रहा था कि कहाँ मैं सॉफ्ट सी छोटी सी रंग बिरंगी पेंटी पहना करती थी और अब यह कहाँ से मुझे लम्बे नीरस अंडरवियर पहनना पड़ेगा.
शिखा दीदी ने मुझे उस दिन खूब सारे टी-शर्ट और जीन्स वगेरह दिलाये. कहाँ तो मुझे टाइट चुरिदार पहनने की आदत थी और अब यह ढीले ढाले मोटे से जीन्स. मन में लग रहा था कि लडको के लिए चॉइस कितनी कम होती है. पर यही मेरा नया जीवन होने वाला था. नीरस और बिना रंगों के… अब न तो होंठो पर लिपस्टिक होगी और न ही कलाइयों में खनखनाती ढेरो चूड़ियां. सालों से इस पल का इंतज़ार था और अब यह क्या क्या बातें सोच रही थी मैं? ऐसा नहीं था कि लडको के कपडे नहीं पहने थे मैंने इतने सालो. आखिर स्कूल तो लड़का बनकर ही जाती थी. पर वो सिर्फ कुछ घंटो के लिए स्कूल यूनिफार्म होता था जिसके अन्दर मैं हमेशा ब्रा और पेंटी पहना करती थी. और वहां भी तो लड़कियों के साथ ही बैठकर उनके बीच लड़की हुआ करती थी मैं.
घर पहुँच कर दीदी ने मुझे एक टी-शर्ट और जीन्स पहनने को कहा. उन्होंने अपने हाथ से मेरे कानो के झुमके और मेरे हाथो से चूड़ियां उतार दी. अब न पायल थी और न लिपस्टिक, न बिंदी. बिना ब्रा के कुछ अधूरा अधूरा सा लग रहा था. मेरे चेहरे पर उदासी साफ़ थी. शिखा दीदी ने वो उदासी देख ली थी. पर वो कुछ बोली नहीं क्योंकि शायद वो जानती थी कि बदलाव हमेशा मुश्किल होता है. इससे कहीं ज्यादा उदास तो मैं तब थी जब गीता ने मुझे पहली बार लड़की बनने को मजबूर किया था.
कॉलेज की शुरुआत
पर जल्दी ही मैं दिल्ली में अपनी इंजीनियरिंग की पढाई करने आ चुकी थी. मेरे बाल अब भी लम्बे थे. जहाँ मेरे छोटे से शहर में मेरे बालों को लेकर मज़ाक उड़ाया जाता था वहीं बड़े शहर में कॉलेज में लम्बे बाल एक फैशन स्टेटमेंट था. कॉलेज के शुरूआती दिनों में मेरी रैगिंग भी हुई. और एक दिन कुछ सीनियर्स ने पकड़ कर मुझे खूब परेशान किया. “लम्बे बाल रख कर खुद को बड़ा रॉकस्टार समझते हो तुम”, एक सीनियर ने मेरे लम्बे बालो को अपने हाथों से निर्ममता के साथ पकड़ कर कहा. मुझे अपने बाल बहुत प्यारे थे. अपनी बहनों के साथ रहते हुए अपने बालों का ख्याल रखते हुए उनसे प्यार हो चूका था मुझे. और जब सीनियर ने मेरे बालो को बेरुखी से पकड़ कर खिंचा तो मेरे अन्दर की सोनाली लगभग रो पड़ी. वैसे भी उन्होंने मुझे इसके पहले खूब डांटा भी था. “प्लीज़ मेरे बालो को मत खींचो”, मैंने लगभग रोते हुए सोनाली की आवाज़ में कहा. यहाँ मैं खूब कोशिश कर रही थी कि लडको की आवाज़ में बात करू पर इतने साल सोनाली बनकर रही थी तो वैसी ही पतली आवाज़ में बोलने की आदत सी थी.
मेरी लड़की जैसी आवाज़ सुनकर वो सीनियर थोडा सकपका गया. उसने दुसरे सीनियर की तरफ देखा और दोनों ने आपस में कुछ इशारा किया. फिर उसने मुझसे कहा, “तुम्हारी आवाज़ तो बड़ी अच्छी है. तुमने कभी रॉक गाने गाये है? तुम्हारी आवाज़ बहुत अच्छी रहेगी उसके लिए. हमारे यहाँ म्यूजिक क्लब है जिसमे मैं गिटार बजाता हूँ. और हमें एक लीड सिंगर की ज़रुरत है. तुम ट्राई करना चाहोगे?”
वो पल था जब शुरुआत हुई मेरे कॉलेज में रॉक सिंगर बनने की. वैसे तो गीता के चलते मेरी पर्सनालिटी बेहद दबी हुई थी पर गाना गाने की वजह से जल्दी ही मैं कॉलेज में एक पोपुलर लड़का बनने वाला था.
गाने के अलावा मैं पढ़ाई में भी अच्छा था. पहला साल कॉलेज का बहुत बढ़िया जा रहा था. पर न जाने क्या था अब दिल में सोनाली बनने की हसरत भी जागने लगी थी. गीता शायद जीत चुकी थी. मेरे अन्दर एक लड़की अब हमेशा के लिए बस चुकी थी. कॉलेज में लड़कियों को तरह तरह के रंग-बिरंगे स्टाइलिश कपडे पहने देखकर मेरी भी बड़ी इच्छा होती थी. अब आज़ाद होते हुए भी जैसे सोनाली कहीं बंद हो गयी थी, और अब सिर्फ सोनू आज़ाद था. मेरा जीवन भी न, बड़ा अजीब सा था. शिखा दीदी ने मुझे एक मोबाइल फ़ोन भी ले दिया था. उसी के सहारे मेरा मेरे स्कूल के दिनों के बॉय-फ्रेंड अखिल से संपर्क बना हुआ था जो अपनी पढाई चंडीगढ़ में कर रहा था. वो मुझे अब भी मेसेज में सोनाली एक लड़की की तरह संबोधित करता था. और मुझे अच्छा भी बहुत लगता था. वो ही इस दुनिया में था जिसके साथ सोनाली खुल कर बात कर सकती थी. मेरी माँ गीता से मैंने बात करना छोड़ दिया था.
पर धीरे धीरे अखिल से बात होनी भी कम होने लगी. मैं, सोनाली, उतावली होकर उसके मेसेज या फ़ोन का इंतज़ार करती थी पर उसके फोन अब बहुत कम आते थे. शायद वो अपनी दुनिया में व्यस्त हो चला था. पर मेरे लिए ख़ुशी का पल तब आया जब दिल्ली में एक कॉलेज फेस्टिवल के लिए अखिल भी अपनी कॉलेज की तरफ से आने वाला है, ऐसी खबर आई. मैं भी उस फेस्टिवल में गाना गाने वाला था. मेरे कॉलेज से मैं प्रतिनिधित्व करने वाला था.
अखिल से मुलाकात
“हेल्लो सोनाली!”, फोन पर दूसरी ओर से अखिल की आवाज़ आई. मैंने हॉस्टल में तुरंत एकांत ढूँढा. मैं नहीं चाहती थी कि किसी को सोनाली के बारे में पता चले.
“अखिल! कब से तुम्हारे कॉल का इंतज़ार कर रही थी मैं. दिल्ली पहुच गए तुम?”, मैंने पूछा.
“हाँ हाँ. कल रात को ही पहुच गया था.”, अखिल ने कहा.
“और तुम मुझे अब दोपहर में बता रहे हो? मेरी बेचैनी का फायदा उठा रहे हो तुम? एक तो अब तुम मुझसे बात भी नहीं करते. तुमने कोई नहीं गर्लफ्रेंड तो नहीं बना ली?”, मैंने थोडा नाराजी जताते हुए कहा.
“उम्म… ऐसे मत कहो सोनाली. सुनो, मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ. तुम क्यों न ४ बजे मेरे होटल में आ जाओ. मैं कमरे की चाबी रिसेप्शन पर छोड़ दूंगा. तुम आकर तैयार हो जाना. मैं ४:३० बजे तक तुमसे मिलने आऊंगा. मुझे पता है कि तुम होस्टल से तैयार होकर नहीं आ पाओगी…. अच्छा मुझे ज़रा दोस्तों के साथ अभी निकलना है. मैं तुम्हे होटल की डिटेल sms से भेज दूंगा. ठीक है? हम मिलते है जल्दी ही.”
“ठीक है जानू. अपना ख्याल रखना और लंच कर लेना. बाय!”, मैंने प्यार से थोड़ी फिक्र जताते हुए कहा.
मेरे मन में तो अखिल से मिलने के बारे में सोच कर ही लड्डू फुट रहे थे. मैं भी कितनी अजीब हूँ न? पहले तो मुझे लड़की बनने को मजबूर किया गया था. और अब मैं खुद लड़की बनने को उतावली थी!
मैंने अपने कमरे में जाकर चुपके से अपनी सूटकेस से एक नयी साड़ी निकाली. कॉलेज आने के पहले शिखा दीदी और विनय जीजू से जिद करके खरीदवाई थी. मुझे पता है कि अखिल को ये डिजाईन मुझ पर बड़ी पसंद आएगी. मैं तो बस जैसे घडी का इंतज़ार ही कर रही थी कि कब मैं उसके कमरे में जाऊं और उसके लिए सज संवर कर तैयार होऊं. और फिर अपने पिया की बाहों में समां जाऊं. जब इंतज़ार होता है तो समय और धीरे बीतता है. फिर भी आखिर वो समय आ ही गया. मैं अखिल के कमरे में पहुच चुकी थी. बड़े समय बाद आज मैं लिपस्टिक मेकअप करने वाली थी. होस्टल में मौका ही कहाँ मिलता था. मैंने झटपट अपनी साड़ी पहनी और खुद को आईने में देख मुस्कुराने लगी. सच कहूं तो बड़ी ख़ुशी मिल रही थी उस वक़्त. मन ही मन सोच रही थी कि यदि और लडको को भी मेरी तरह साड़ी पहनना सिखाया जाता तो वो भी मानते कि शर्ट पेंट से लाख गुना बेहतर है साड़ी! इतनी लम्बी होते हुए भी जो खुला खुला और आज़ादी का एहसास मुझे साड़ी में मिलता है, वो किसी और में कहाँ?
“ठक ठक” दरवाज़े पर दस्तक हुई. ४:४० हो चुके थे. ज़रूर अखिल होगा. मैंने दरवाज़ा खोला और मेरा राजकुमार मेरी आँखों के सामने था. उसने थोड़ी दाड़ी बढ़ा ली थी. पर था तो मेरा हीरो ही. मैं तो उसे झट से अन्दर खिंच कर उससे गले लिपट गयी.

“कितना इंतज़ार कराया तुमने!”, मैंने कहा.
“अरे दोस्तों से भी तो पीछा छुड़ाना था न सोनाली. कोई हमें देख न ले ये भी तो ध्यान रखना है”, उसने कहा.
“क्यों तुम मुझे अपने दोस्तों से नहीं मिला सकते? आज नहीं तो कल मिलेंगे ही. आखिर एक दिन हमारी शादी जो होगी.”, मैंने उसे तंग करने के लिए कहा. पर उसके चेहरे पर एक अजीब सी ख़ामोशी थी.
“अच्छा चलो ठीक ही किया तुमने. मुझे तुम्हारे साथ अकेले में ही समय चाहिए था. इतने समय बाद मिल रही हूँ तुमसे. और देखो, तुमने अब तक मेरी साड़ी की तारीफ़ भी नहीं करी.”, मैंने आगे कहा.
“तुम तो हमेशा ही खुबसूरत लगती हो सोनाली! पर आज तो और भी ज्यादा खुबसूरत लग रही हो”
“अच्छा जी.. अब मस्का न लगाओ. तुम जो चाहते हो उसके लिए मैं तो पहले से ही तैयार हूँ… समझ रहे हो तुम?”, मैंने अपनी आँखों से एक मादक सा इशारा किया. और फिर अखिल को अपने करीब उसकी शर्ट पकड़ कर खिंच लायी. और आँखों में एक शरारत के साथ उसके शर्ट की बटन खोलने लगी.
“लेकिन सोनाली …”
“श्श्श… कोई लेकिन नहीं..”, और मैंने अखिल के सीने को अपने नाज़ुक हाथों से छूते हुए उसके होंठो को चूम लिया. और वो भी मुझे बांहों में लेकर चूमने लगा.
ऐसा नहीं था कि मेरे तन मन में अखिल के साथ सेक्स करने के लिए आग लगी हुई थी. पर स्कूल में मेरी सहेली नियति और दूसरी लड़कियों ने तो मुझे यही सिखाया था कि अपने बॉयफ्रेंड के लिए ये करना पड़ता है. एक अच्छी गर्लफ्रेंड की तरह अपने उनको खुश रखना मेरा दायित्व था, ऐसी मेरी सोच हो चुकी थी. पर अंत में ख़ुशी तो मुझे भी मिलती थी.
मेरी कमर के निचे मेरी साड़ी पर अखिल का उभार मैं महसूस कर रही थी. वो भी अब मचल उठा था. और मुझे जोरो से चूम रहा था. मैंने अपने हाथो से अखिल को वहां छुआ और उसकी पेंट की चेन खोलने लगी. अखिल अब जैसे अपने होश खो रहा था. आखिर इतना समय जो हो चूका था हम दोनों को.
“नहीं… सोनाली..”, अचानक ही अखिल ने मुझसे दूर होते हुए कहा. पर मैं तो अपनी अदाओं से उसे रिझाने में माहिर थी. “अब ऐसे न तडपाओ जानू. मैं जानती हूँ तुम भी मुझे प्यार देना चाहते हो. पर आज सिर्फ मैं तुम्हे खुश करूंगी.”, और मैंने अपनी अदा से अपनी साड़ी का पल्लू निचे गिरा दिया और खुद निचे अखिल के पेंट की तरफ झुक गयी.
“रुको सोनाली. प्लीज़ मुझे तुमसे कुछ कहना है.”, अखिल तो सचमुच गंभीर था. क्या बात थी जो वो मुझे इस पल रोक रहा था? पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ था. पर जो उसने मुझे बताया वो मेरा दिल तोड़ने वाला था. अखिल को अपने कॉलेज में किसी स्निग्धा नाम की लड़की से प्यार हो गया था और वो उसी के साथ दिन भर दिल्ली घूम रहा था. सुनकर ऐसा लगा जैसे कोई मेरे दिल में छुरा घोंप रहा है. यह सुनकर क्या करती मैं? मैंने उसे कमरे से बाहर जाने कहा, और रोते हुए कपडे बदलकर अपने होस्टल जाने लगी.
“सोनाली, मैं तुम्हे सचमुच प्यार करता था. पर तुम… स्निग्धा पूरी तरह…”
“पूरी तरह क्या, अखिल? पूरी तरह से औरत है और मैं नहीं?”, और मैं बिलखते हुए वहां से निकल गयी. आज पहली बार एक अधूरी औरत महसूस कर रही थी खुद को मैं. यह कैसी ज़िन्दगी हो गयी थी मेरी. न मैं अब पूरी तरह से लड़का थी और न ही लड़की. अच्छी खासी ज़िन्दगी थी मेरी जिसको मेरी अपनी ही माँ ने इस तरह बिगाड़ दिया. कौन लड़का या लड़की अब पसंद करेगी मुझे?

टूटे हुए दिल के साथ कॉलेज फेस्टिवल में मैंने अपने कॉलेज की तरफ से गाना गाया, और उस दर्द के सहारे पहला इनाम भी मिला. पर उस प्रोग्राम में अखिल भी आया था स्निग्धा के साथ. घुटनों से ऊँची छोटी सी स्कर्ट पहनी और छोटे बालों वाली उस लड़की में न जाने क्या दिखा था उसे. उससे तो कहीं सुन्दर थी मैं. दिल में दर्द और जलन दोनों ही थी.
एक ख़ुशी
वो पल जब मैं अखिल से अलग हुई थी, सोच कर ही दिल में दर्द होता है. और मेरी इच्छा नहीं है उस पल के बारे में और सोचने की. आखिर सबसे ज्यादा दर्द तो पहले प्यार के टूटने पर ही होता है, और उससे उबरने में काफी समय लग जाता है. कुछ दिनों बाद मेरी कॉलेज की पहले साल की परीक्षा होने वाली थी. पढाई में मन नहीं लग रहा था तो २ दिन के लिए मैं शिखा दीदी के यहाँ आगरा पहुच गयी थी कि शायद मन बहल जाए. अब मैं लड़के के रूप में ही जी रही थी और वैसे ही दीदी के यहाँ पहुंची. दीदी मुझे देख कर बड़ी खुश थी पर मेरे अन्दर की उदासी उनसे छिपी नहीं थी. पर उन्हें मेरी उदासी का कारण पता नहीं था. उन्हें डर लग रहा था कहीं मैं लड़के के रूप में रह कर दुखी तो नहीं हूँ.
वो उस शाम मेरे पास आई और हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए बोली, “सोनू, तेरे जीजू कह रहे थे कि वो अपनी साली को शौपिंग करने ले जाना चाहते है. तू बता, सोनाली को कुछ खरीदना है?” अखिल के साथ जो कुछ हुआ था उसके बाद अपने अन्दर की अधूरी औरत की भावना मेरे दिल से गयी नहीं थी. “दीदी अब सोनाली मर चुकी है.”, मैंने कहा. दीदी को समझ न आया कि इस बात को सुनकर वो खुश हो या दुखी. एक तरफ तो उनका भाई वापस अपनी ज़िन्दगी जी रहा था पर कहीं न कहीं उसके अन्दर के व्यक्तित्व का एक हिस्सा मर रहा था. फिर भी दीदी जीजू ने मुझे उन २ दिनों के लिए बहुत खुश रखा.
अब मैं वापस अपने कॉलेज आ चुकी थी. और एक दिन पढाई के लिए मैं लाइब्रेरी गयी. परीक्षा के दिनों में बहुत भीड़ थी लाइब्रेरी में और बैठने की जगह नहीं मिल रही थी. एक टेबल पर एक कुर्सी खाली दिखाई दी. सामने में एक लड़की बैठी थी जो शक्ल से थोड़ी जानी पहचानी सी थी.
“मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?”, मैंने लड़की से पूछा.
“ओह माय गॉड! सुनील! ऑफ़ कोर्स, तुम बैठ सकते हो!”, लड़की ने बड़ी ख़ुशी से कहा. सुनील मेरा कॉलेज का नाम था.
“तुम मुझे जानती हो?”, मैंने थोडा आश्चर्य से पूछा.
“तुम मज़ाक कर रहे हो न? तुम्हे कौन नहीं जानता. रॉकस्टार सुनील… जिसने हमारे कॉलेज को इनाम दिलाया. मैं तो तुम्हारी बड़ी फैन हूँ. लगता है तुम मुझे नहीं जानते. मैं तुम्हारे ही बैच में हूँ. इनफैक्ट, मैं तुम्हारी क्लास में भी हूँ. तुमसे थोडा ही पहले मेरा रोल नंबर आता है.”, उसने कहा. मैं केवल मुस्कुरा दिया.
“शेफाली”, उसने अपना नाम बताते हुए अपना हाथ मिलाने के लिए आगे बढाया.
“नाइस तो मीट यू शेफाली”, मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया.
स्कूल के दिनों में तो मेरी काफी लड़कियां सहेलियां बन चुकी थी. पर कॉलेज में कोई न थी. और शेफाली में मुझे एक अच्छी सहेली दिखाई दी. मैं उसे सोनाली का सच तो नहीं बता सकती थी, पर धीरे धीरे हम दोनों की दोस्ती बढती चली गयी. उससे बात करना मुझे अच्छा लगता था. मुझे उससे पता चला कि उसके माता पिता नहीं है और उसको उसके चाचा चाची ने बड़ा किया था. पर उनका व्यवहार उसके साथ ठीक नहीं था. इसलिए वो कभी छुट्टियों में अपने घर नहीं जाती थी. मैं भी अपने घर नहीं जाती थी. तो हम दोनों की दोस्ती बढ़ते जा रही थी.
प्यार
मेरे दिल में अखिल के लिए कसक भी थी, और मैं शेफाली से जानना चाहती थी कि लडकियां ऐसी स्थिति से कैसे लडती है. पर शेफाली से कभी किसी ने प्यार नहीं किया था. बहुत ही सीढ़ी किस्म की लड़की थी वो. उसके हिसाब से वो बहनजी टाइप की थी. पर मुझे पता था कि वो बेहद खुबसूरत है, और ज़रुरत थी सिर्फ अच्छे कपडे पहनने की. तो एक दिन मैं उसे शौपिंग के लिए लेकर गयी. मेरा कपड़ो में टेस्ट काफी अच्छा था. और उसका नतीजा भी ज़बरदस्त रहा. शेफाली अब रातोरात कॉलेज की हॉट लड़कियों में गिनी जाने लगी. पर कोई उसकी तरफ फिर भी हाथ आगे नहीं बढ़ा सका. क्योंकि उसके साथ हर पल कॉलेज का रॉकस्टार यानी मैं रहता था. लडको को लगता था कि मेरे आगे वो भला शेफाली को मुझसे कैसे जीत पाते. सारे कॉलेज को यही लगता था कि हम दोनों एक कपल है. पर हम दोनों ने कभी ऐसा कुछ कहा नहीं था. मेरे दिल में ख्याल तो आते थे, पर मैं उन्हें दबा देती थी. क्योंकि मेरा पहला प्यार सोनाली के रूप में था. और मुझे लगता था कि सोनू यानी सुनील का प्यार सच्चा नहीं होगा. मेरा दिमाग मुझे यही बताता था कि मैं एक लड़की हूँ और मुझे लड़के से प्यार होना चाहिए.
शेफाली के साथ हँसते खेलते कॉलेज के ४ साल कब निकल गए पता भी नहीं चला. और वो दिन भी जल्दी आ गया जब हम सबको एक ख़ास प्रोग्राम में डिग्री मिलने वाली थी. शेफाली के घर से इस अवसर पर कोई नहीं आ रहा था. और मैंने सिर्फ शिखा दीदी और विनय जीजू को बुलाया था, माँ को नहीं. मधु दीदी ने जयपुर में नयी नौकरी शुरू की थी तो वो नहीं आ सकती थी.
डिग्री के प्रोग्राम के लिए शेफाली ने साड़ी पहनना तय किया था. मेरे साथ ही गयी थी वो शौपिंग के लिए. और उस दिन मैं शेफाली को लेने के लिए उसके घर गया जहाँ वो पेइंग गेस्ट थी. बेचारी शेफाली अपनी साड़ी पकड़ कर रो रही थी. मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ शेफाली?”
“सोनू, मुझे साड़ी पहनना नहीं आता. आज मेरी माँ होती तो वो मेरी मदद करती. पर अब मैं क्या करू सोनू? मुझे आज सलवार सूट ही पहनना पड़ेगा.”, उसने कहा.
उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुरा दिया. “अरे इतना क्यों चिंता करती हो. youtube का ज़माना है. मैं विडियो देखकर तुम्हारी मदद करूंगा”, मैंने कहा. मैंने जताना नहीं चाहती थी कि मुझे साड़ी पहनना आता है वरना उसके मन में कई सवाल उठ पड़ते. स्वाभाविक था कि एक लड़के के सामने उसे थोड़ी शर्म आ रही थी, पर हम दोनों अब तक एक दुसरे के इतने करीब आ चुके थे कि थोड़ी झिझक के बाद उसने अपनी टॉप उतार कर मेरे सामने ब्रा में आ गयी. और मैंने उसे धीरे से ब्लाउज पहना कर उसके हुक लगाने शुरू किये. जब मेरे हाथो से उसके स्तन हलके से छुआए, तब न जाने कैसे मेरे तन में कुछ कुछ होने लगा. शायद पहली बार आभास हो रहा था एक लड़का होने का. मेरे अन्दर एक हलचल तो थी. पर यह वक़्त शेफाली को तैयार करने का था.
मैंने विडियो देखने का बहाना किया और फिर शेफाली के तन पर साड़ी लपेट कर उसकी कमर पे प्लेट बनाकर ठूंसने लगा. उफ़ कितनी कोमल नाज़ुक कमर थी शेफाली की. मेरे एक एक कदम से शेफाली के चेहरे की मुस्कान बढती जा रही थी. जल्द ही वो तैयार थी. और उसके चेहरे पर बड़ी सी ख़ुशी साफ़ थी. उसे यकीन नहीं हुआ कि मैंने उसे पहली बार में इतनी परफेक्ट साड़ी पहनाई हूँ. उसकी नज़रो में तो मैं एक लड़का थी.
उस दिन का प्रोग्राम बड़ा ख़ुशी भरा रहा. और प्रोग्राम के बाद शेफाली ने मेरे पास आकर मौका देखकर शरमाते हुए धीरे से मेरे कान में कहा, “सुनील, आई थिंक आई लव यू”. और फिर तुरंत ही शर्मा कर वो चल दी. वो तो चल दी पर मेरे चेहरे पर एक नयी ख़ुशी दे गयी थी वो.

शिखा दीदी यह सब दूर से देख रही थी. उनको भी पता चल गया था कि शेफाली और मेरे बीच प्यार पनप रहा है. उस दिन शिखा दीदी ने मुझे शेफाली को लेकर खूब छेड़ा. कितनी ख़ुशी थी वो कि उनका भाई अब एक बार फिर पूरी तरह से अपनी ज़िन्दगी जीने को तैयार है. उन्हें लगा कि शायद सोनाली अब पूरी तरह से उनके जीवन से जा चुकी है.
पर मेरे दिल में कहीं न कहीं सोनाली जिंदा थी. शेफाली को साड़ी पहनाते वक़्त मेरे अन्दर की सोनाली भी साड़ी पहनने की इच्छा जता रही थी. पर शेफाली को खुश देखकर सुनील इतना खुश था कि सोनाली की इच्छा अन्दर ही अन्दर दब गयी. और समय के साथ साथ, सोनाली की हर इच्छा दबती चली गयी. क्योंकि अब सोनू के जीने का वक़्त आ गया था.
कॉलेज के बाद, शेफाली और मैंने गुडगाँव में एक ही कंपनी में जॉब शुरू कर दी थी. मैं अब उसका बॉयफ्रेंड था जिसके साथ शादी का प्लान था. हम दोनों का जीवन ख़ुशी से बीत रहा था. पर शादी कब और कैसे होगी, यह तय नहीं था. शेफाली की तरफ से कोई उलझन नहीं थी. वो तो कभी भी शादी करने को तैयार थी. उसके घर से वो किसी को भी बुलाना नहीं चाहती थी. पर मेरी तरफ से मेरी माँ गीता एक परेशानी का सबब थी. मैं उसे बुलाना नहीं चाहता था. क्योंकि वो यह मानने को तैयार नहीं थी कि मैं उसका बेटा हूँ, बेटी नहीं. मैंने तो उससे सालो तक बात भी नहीं की थी. पर उस औरत का कोई ठिकाना न था कि कब वो आये और मेरे जीवन में ज़हर घोल कर चली जाए. मेरे लिए एक चिंता और थी कि मैं शेफाली से अपना सोनाली के रुप में बिताया हुआ जीवन छुपाकर नहीं रखना चाहता था. पर डर भी था कि सच जानने के बाद उसे कैसा लगेगा? कहीं उससे यह बर्दाश्त न हुआ तो? मेरी तो सारी खुशियाँ छीन जाती.
आखिर मैंने अपनी उलझन हमेशा की तरह शिखा दीदी के साथ शेयर की. दीदी ने मुझे कहा कि वो सब मैं उन पर छोड़ दूं. वो इस बारे में खुद कभी शेफाली से बात करेगी. पर उसके पहले वो गीता के साथ मामला सुलझाना चाहेगी.
उस बात को करीब ३ महीने हो चुके थे. और एक दिन शिखा दीदी का फोन आया और उन्होंने मुझसे कहा, “सोनू, तू ३-४ दिन के लिए आगरा आ जा. बहुत दिन हुआ तुझे देखे.” और यही सोच कर मैं आगरा आ गया.
आगरा आते वक़्त मुझे ज़रा भी अंदेशा नहीं था कि वो गीता को भी बुलाने वाली है. गीता से कुछ भी बात करनी हो तो उसे नाराज़ होने का मौका नहीं दिया जा सकता था. इसलिए इतने सालो के बाद मैं एक बार फिर सोनाली बनकर दीदी के घर में हूँ, और इस बेडरूम में अकेले सोने की कोशिश कर रही हूँ. पुरानी बातें सोचते हुए न जाने कैसे सुबह होने को आ चुकी है. बाहर से चिड़ियों के चहचहाने की आवाजें आ रही है. सूरज निकलना अभी बस शुरू ही हुआ है. लगता है शिखा दीदी जाग चुकी है. किचन से आवाजें आ रही है. उनकी सुबह सुबह जल्दी उठकर दिन शुरू करने की आदत जो है. मुझे भी अब उठ जाना चाहिए. मैंने सोचा.
और बिस्तर से उठकर किचन पहुच कर मैंने शिखा दीदी को पीछे से प्यार से गले लगा लिया. मेरी नाईटी में अब मुझे सच में काफी अच्छा लग रहा था. मैं सोच रही थी कि मुझे नाईटी ही पहन कर सोना चाहिए. दीदी को गले लगते ही जैसे एक निश्छल प्यार का एहसास हुआ. दीदी ने मेरे गालो को अपने कोमल हाथो से छुआ और बोली, “जाग गयी तू? या रात भर चिंता के मारे सोयी ही नहीं? चल मैं तेरे लिए नाश्ता बना देती हूँ. नाश्ता करके तैयार हो जाना. २-३ घंटे में तेरे जीजू माँ को लेकर आते ही होंगे.”
“क्या दीदी? सुबह सुबह गीता की याद मत दिलाओ.”, मैंने कहा. तो दीदी ने प्यार से मेरी ओर झूठमुठ के गुस्से के साथ देखा. “अच्छा दीदी, तुम मेरी वैक्सिंग कर दोगी? जीजू के लिए उनकी साली को तो अच्छे से सजना होगा न?”, मैंने आगे कहा.
शिखा दीदी मुस्कुरा दी और मेरे लिए नाश्ता बनाने में जुट गयी. और मैं डाइनिंग टेबल पर बैठ कर सोच रही थी कि अब न जाने गीता से मुलाक़ात के बाद क्या होगा.
क्रमशः …
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