म होने में अभी भी १ घंटा था| एक छोटे शहर की सड़क में दोपहर के बाद वाली शांति थी| ज्यादा लोग न थे इस वक़्त बाहर| और इस शांति के बीच दो औरतें हाथों में थैला और पर्स लिए चल रही थी| देख कर लग रहा था कि जैसे दो औरतें सब्जी मार्किट में सब्जी खरीदने निकली हो ताकि शाम तक वो घर में अपने परिवार के लिए समय पर खाना बनना शुरू कर सके| बेहद ही सामान्य सी साड़ियां पहने हुई थी दोनों| एक छोटे शहर की मध्यमवर्गीय परिवार की बहुओं की तरह नैन नक्ष और लम्बे बाल थे उनके| कुछ भी असामान्य सा तो नहीं था दोनों में बस उनका कद साधारण स्त्रियों से ज़रा सा ज्यादा था| ५ फूट ६ इंच के करीब ऊंचाई होगी उनकी| पर किसने कहा कि औरतें लम्बी नहीं हो सकती भला?

उन दोनों औरतों में एक तो चुपचाप शर्माती हुई सी नज़रें झुकाएं चल रही थी, जबकि दूसरी बड़ी ही ख़ुशी से चल रही थी| जो शर्मा रही थी उस औरत का नाम तरुणा था, और मदमस्त सी चलने वाली का नाम था प्रीती| तरुणा ने आसमानी नीली हलकी हरी रंग की साड़ी पहन रखी थी| गुलाबी ब्लाउज में उसकी साड़ी उस पर बहुत फब रही थी| जबकि प्रीती ने लाल रंग की बेहद ही साधारण सी साड़ी पहने हुई थी| “कैसा लग रहा है तरुणा घर से बाहर निकल कर?”, प्रीती ने अपनी कुहनी से तरुणा को छूते हुए पूछा| तरुणा एक बार फिर हँस दी| “बहुत अच्छा लग रहा है दीदी|”, तरुणा ने अपने चेहरे से बालो को हटाते हुए कहा|
पर तरुणा की उस हंसी के पीछे एक बेचैनी भी थी| तरुणा के सीने पर उसकी साड़ी के पीछे छुपा हुआ बड़ा सा मंगलसूत्र देख कर तो वह शादीशुदा औरत लग रही थी| पर उसी सीने में उसका दिल बेचैनी में तेज़ी से धड़क रहा था| और उसके ब्लाउज में उसके ब्रेस्टफॉर्म उसकी गहरी साँसों के साथ फूलते और संकुचाते थे| तरुणा एक क्रॉस ड्रेसर थी और उसी की तरह प्रीती भी| अब तक वो दोनों एक दुसरे को फेसबुक से जानती थी जहाँ वो एक दुसरे के साथ अपनी तसवीरें शेयर किया करती थी| उनकी दोस्ती फेसबुक पर चैट तक ही सिमित थी और आज यह उनकी पहली मुलाक़ात थी| तरुणा काम के सिलसिले में प्रीती के शहर आई थी और दोनों ने तय किया था कि तरुणा के होटल के कमरे में मिलेंगे| तरुणा ने सोचा था कि मिलकर दोनों कमरे में ही औरत के रूप में सज कर सहेलियाँ बन कर समय बिताएंगे| आखिर दो औरतें एक कमरे में बैठ कर तो घंटो गप्पे मार ही सकती है? यही सोच कर तरुणा ने एक बेहद सुन्दर साड़ी अपने लिए और एक चमकीली भारी सी साड़ी प्रीती के लिए साथ लेकर आई थी|
जहाँ तरुणा बंद कमरे में समय बिताना चाहती थी, वहीँ प्रीती का इरादा कुछ और ही था| प्रीती तरुणा को होटल से बाहर औरत के रूप में ले जाना चाहती थी| परन्तु भारी भरकम पार्टी वाली साड़ियां पहन कर बाहर जाने पर दुनिया की नज़रे उनकी ओर घूम जाती| और एक क्रॉस ड्रेसर को बाहर अनचाहा ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहिए| इसलिए प्रीती ने बेहद ही साधारण दो साड़ियां साथ लायी थी जैसी साड़ियां पहन कर औरतें आम तौर पर बाहर दिखती हो| और वही साड़ियां उन दोनों ने इस वक़्त पहने हुए थी| भले ही साड़ियां साधारण रही हो पर वे दोनों के लम्बे सुन्दर बाल और उनके सुन्दर सुडौल शरीर को देखकर तो उनके न चाहने के बावजूद किसी भी पुरुष का ध्यान उनकी ओर एक बार के लिए ही सही, आकर्षित ज़रूर होता| उस पर से, तरुणा ने अपने जीवन में पहले कभी भी कमरे से बाहर औरत के रूप में कदम नहीं रखे थे| शायद यही कारण था कि वो बेहद ही घबरायी हुई थी| उसका घबराना सही भी था| न वो इस शहर को जानती थी और न ही कभी पहले उसने ऐसा कुछ किया था|
फिर भी प्रीती ने पूरी तयारी कर रखी थी, शायद उसे पहले से अनुभव था| प्रीती ने दोनों का मेकअप कुछ इस तरह किया था कि किसी को लगे भी न कि उन्होंने मेकअप किया है| आखिर छोटे शहरो में जब औरतें मार्किट जाती है तब थोड़ी लिपस्टिक और मांग में सिन्दूर के अलावा बेहद हल्का मेकअप करती है| एक क्रॉस ड्रेसर के लिए बाहर जाते वक़्त एक ख़ास बात का ध्यान रखना होता है कि उनका फिगर एक औरत की तरह लगे| इसलिए प्रीती ने बड़ी सी पैडिंग तरुणा को पहनाई थी जो उसकी कमर के नीचे उसके हिप को बड़ा करने में मदद कर रही थी| तरुणा को लग रहा था कि उसकी हिप बेहद बड़ी लग रही है पर औरतों की हिप तो बड़ी ही होती है| प्रीती ने तरुणा को समझा रखा था कि यदि बाहर एक औरत की तरह घूमना है तो उसे अपनी चाल एक औरत की तरह रखनी होगी| जिसके लिए तरुणा को अपने कदम एक सीधी लाइन में रख कर चलने होंगे| तरुणा ने उत्साह में हाँ तो कर दी थी पर बाहर आकर उसका पूरा ध्यान अपने कदमो की तरफ था| इसलिए वह नज़रे झुकाए चल रही थी| “मैं कैसी लग रही हूँ? सड़क पर आते जाते जो लोग मुझे देख रहे है, वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे? कोई मुझे पहचान ले तो? मेरा दिल तो कर रहा है कि अपना आँचल लहराते हुए चलू| बाहर खुली हवा में निकल कर मज़ा तो आ रहा है पर मुझे डर है कि मेरी साड़ी खुल न जाए| मुझे एक दो साड़ी पिन और लगनी चाहिए थी|” ऐसे कई ख्याल तरुणा के मन में चल रहे थे|
“दीदी, हमें कोई पहचान तो नहीं लेगा न ?”, तरुणा ने धीरे से प्रीती से पूछा| “अरे बाबा कोई नहीं पहचानेगा तुम्हे! तुम इस शहर में पहली बार आई हो और तुम्हे वैसे भी कोई नहीं जानता, तो घबराती क्यों हो?”, प्रीती ने कहा| गली में बहती धीमी धीमी हवा में उन दोनों के बाल लहराकर उनके चेहरे के सामने आ रहे थे| उन बालों को चेहरे से हटाते हुए तरुणा को स्त्रीत्व का नाज़ुक सा अनुभव भी हो रहा था| जिस कॉन्फिडेंस से प्रीती चल रही थी, उसे देख कर तो तरुणा को घबराने की कोई ज़रुरत नहीं थी पर डर इतनी आसानी से कहाँ जाता है?

तभी सामने से सड़क पर एक मोटरसाइकिल आती दिखाई दी जो उन दोनों की ओर बढ़ रही थी| उस पर सवार दो लडके उन्हें घूरते हुए पास आने लगे| तरुणा डर कर दूसरी ओर देखने लगी| उसकी धड़कने ऐसे तेज़ हो गयी जैसे वो उसी से मिलने आ रहे हो| उन लडको की नजरों में तो उनके सामने सेक्सी आंटियां थी| और ऐसी आंटियों को कोई भी करीब से देखना चाहता| इसलिए वो लड़के इन औरतों को देखते हुए अपनी गाडी उनके बेहद ही करीब से लेकर निकल गए| प्रीती तो जैसे इस चीज़ के लिए तैयार थी| वो हलकी सी हंसी के साथ उनकी ओर देखने लगी और पलट कर कुछ देर देखती रही| तरुणा की तो हालत बेहद ही ख़राब हो चुकी थी| और जैसे ही मोटरसाइकिल उनके बगल से गुज़री, तरुणा ने एक हाथ अपने सीने पर रख कर राहत की गहरी साँसे ली| “दीदी, मैं नहीं चल पाऊंगी अब और आगे| मुझे बेहद डर लग रहा है|”, तरुणा की आवाज़ में एक घबराहट थी| और उस घबराहट में उसकी आवाज़ औरतो की तरह धीमी और पतली हो गयी थी| बहती हवा से उसका आँचल उड़ता जा रहा था, जिसे सँभालने की वो कोशिश कर रही थी| “तो ठीक है, मैं अकेले ही मार्किट जाती हूँ| तुम होटल जाकर कमरे में मेरा इंतजार करना|”, प्रीती ने मुस्कुराते हुए कहा| प्रीती जानती थी कि तरुणा अकेले होटल वापस नहीं जायेगी| फिर प्रीती ने अपनी नज़रे झुकाकर अपनी ब्लाउज की ओर देखा| उसकी ब्लाउज की कटोरी खुली दिख रही थी| उसने पहले तो उसे अपनी साड़ी से छुपाया और फिर न जाने क्यों, उसने फिर से ब्लाउज की कटोरियों को खुले में दिखने के लिए छोड़ दिया| उन कटोरियों में उसके ब्रेस्त्फोर्म निखर कर उभरे हुए दिख रहे थे|
एक तरफ प्रीती बिंदास थी, वहीँ दूसरी तरफ तरुणा का डर थोडा और बढ़ गया था| उसने रुक कर अपने साड़ी के लहराते हुए आँचल को अपने हाथों से पीछे से सामने लाते हुए अपनी बांहों और सीने को ढँक लिया| कोई भी इंसान जब थोडा डर जाता है तब वह खुद को दुनिया से पूरी तरह से ढँक कर खुद को छुपा लेना चाहता है| तरुणा भी खुद को अपनी साड़ी के पल्लू में लपेट कर वही कर रही थी| इस वक़्त वह बेहद ही मासूम और भोली औरत लग रही थी| प्रीती उसका डर समझ रही थी| प्रीती ने एक हाथ उसके कंधे पर प्यार से रखते हुए कहा, “तरुणा, मैं जानती हूँ की तुम्हे डर लग रहा है| पर देखो उन लडको को भी तुम पर कोई शक नहीं हुआ| उन्हें तो यही लगा होगा कि कितनी हॉट भाभी हो तुम| और फिर इस वक़्त डर में तुम्हारी आवाज़ भी बिलकुल लड़कियों वाली हो चुकी है| तो घबराना कैसा? मैं अगले आधे घंटे में पक्का तुम्हे सुरक्षित होटल पंहुचा दूँगी| बस मेरा हाथ थाम कर चलना|”
“तो अब हम चले आगे?”, प्रीती ने तरुणा का हाथ पकड़ कर पूछा| तरुणा ने प्रीती की ओर देख कर हाँ का इशारा किया| “देखना तुम यह दिन भुलोगी नहीं कभी और आगे बार बार बाहर जाना चाहोगी”, प्रीती ने फिर हँसते हुए कहा| उसका हाथ तरुणा की कमर पर चला गया| तरुणा उस स्पर्श से सिहर गयी| आखिर आजतक उसकी खुली पीठ में ऐसे किसी ने हाथ नहीं लगाया था|
इस वक़्त सड़क पर कोई न था इसलिए तरुणा थोड़ी सहज महसूस कर रही थी| हिप पैडिंग के साथ चलना एक नया अनुभव था उसके लिए| एक औरत की तरह महसूस कर रही थी वह| पर अब मार्किट पास आ रहा था| और सड़क किनारे दुकाने दिखने लगी थी| पास ही में एक साइकिल सुधारने वाली दूकान थी जहाँ एक लड़का पंचर बना रहा था| उस लड़के की नज़र प्रीती पर थी| प्रीती को शायद उसकी ब्रा से कुछ तकलीफ हो रही थी तो उसने अपनी उँगलियों को अपनी पीठ में ब्लाउज के अन्दर डाल कर ज़रा ब्रा स्ट्राप को सुधारा| पंचर बनने वाला लड़का तो यह नज़ारा बस देखता ही रह गया| प्रीती का पीठ पर ब्लाउज कट भी गहरा था और उसके स्तन भी बेहद बड़े थे, जिसकी वजह से कोई भी मसखरे लड़के उसकी ओर एक नज़र तो छिपते छुपाते देख ही लेते थे| प्रीती इन सब को नज़रंदाज़ करते बिंदास चल रही थी| और तरुणा अपनी मुस्कराहट छुपाते हुए प्रीती के साथ साथ चल रही थी| उसके मन में अब भी डर था पर सबकी नज़र प्रीती पर ज्यादा पड़ती, यही सोच कर उसका डर कम हो रहा था| आखिर प्रीती के गहरे कट वाले ब्लाउज और उसके उभरे स्तन जो लोगो का ध्यान अपनी ओर खिंच लेते थे|

अब वो दोनों मार्किट पहुच गयी थी जहाँ पैदल चलने वालो की भीड़ बढ़ गयी थी| इतने सारे लोगो की नज़रे अब तरुणा की नजरो से मिल रही थी| अब तो डर के मारे उसके हाथ पैर फूल रहे थे पर वो चुप चाप आगे बढ़ रही थी| इसी बीच एक बड़ी मोटी सी औरत चलते हुए उससे टकरा गयी| “मैडम, अंधी हो क्या? देख कर चलो न| मेरी सारी सब्जियां अभी सड़क पर गिर जाती|”, उस औरत ने गुस्से से तरुणा से कहा| तरुणा कुछ बोल न सकी| उसकी मुंह से मानो आवाज़ चली गयी थी| मैरून साड़ी और ऑरेंज ब्लाउज पहनी वह औरत, तरुणा से भी बड़ी थी| और उस औरत की आवाज़ और कद काठी देख कर आदमी भी उससे डर जाता| और तरुणा तो औरत के रूप में आदमी ही थी| तरुणा को लगा कि अब तो उसकी असलियत सामने आ जाएगी और अब उसकी खैर नहीं| दूसरी औरत कुछ देर गुस्से में तरुणा की ओर देखती रही| पर फिर उसने अपना सब्जी का थैला उठाई और अकेले ही बडबड़ाती हुई आगे चल दी|
प्रीती यह सब देख रही थी पर वह तरुणा का बीचबचाव करने नहीं आई| दूसरी औरत के जाने के बाद वह तरुणा के पास आकर उसके कान में बोली, “तरुणा , तुमने देखा यहाँ इतनी भीड़ में सब अपने अपने काम में मगन है| लोग तुम्हे देख ज़रूर रहे है पर किसी के पास फुर्सत नहीं है कि तुम पर ज्यादा ध्यान दे| तुमसे टकराने के बाद भी वो औरत आगे चल दी क्योंकि उसके पास भी समय नहीं है| अच्छा हुआ तुम चुप थी और कुछ बोली नहीं वरना बात आगे बढ़ जाती| हमारे जैसी औरतें भीड़ में जाने से डरती है और सोचती है कि एकांत वाली जगह अच्छी है जहाँ हमें कोई देख कर पहचानेगा नहीं | पर हमारी जैसे औरतो के लिए ऐसी भीड़ वाली जगह से बेहतर जगह नहीं है जहाँ सभी जल्दी में हो और सभी अपने काम से काम रखे| यहाँ तुम्हे कोई परेशान नहीं करेगा| अब तुम निश्चिन्त होकर मार्किट में घूम फिर सकती हो और कोई तुम्हे कुछ नहीं कहेगा| डरना मत! मैं हूँ तुम्हारे साथ हर कदम पर”| प्रीती की बात सच थी| और सचमुच तरुणा का डर अब ख़त्म होने को था| “अच्छा, अब मेरे साथ उस तरफ चलो| वहां जाकर सब्जियां खरीदते है|”, प्रीती ने इशारा किया और तरुणा साथ चल दी|
“आइये आइये मैडम! ऐसी ताज़ी सब्जी आपको कहीं और नहीं मिलेगी| एक बार में ही सही भाव लगाऊँगा, आइये आइये”, लगभग १८ वर्ष के एक सब्जी वाले ने तरुणा से कहा| तरुणा को यह सुनकर तो एक हाउस वाइफ की तरह ख़ुशी महसूस हुई| “अच्छा टमाटर कैसे भाव दिए?”, तरुणा ने आखिर अपने मुंह से कुछ पूछ ही लिया| उसकी आवाज़ बिलकुल औरत की तरह तो नहीं थी पर सब्जी मार्किट के शोर में सभी को जोर से बोलना पड़ता है| तो कई बार औरतों की आवाज़ भी बुलंद लगने लगती है| “२० रुपया पाव है मैडम”, सब्जी वाले ने कहा| “चल १५ रुपये लगा तो २ किलो लूंगी मैं”, तरुणा मोल भाव करने लगी| सब्जी वाले ने तरुणा को एक टोकरा हाथ में दिया ताकि तरुणा अपनी सब्जियां उसमे भर सके|
पर सारी सब्जियां तो ज़मीन पर बीछी हुई थी| “दीदी, अब तो ज़मीन पर बैठना पड़ेगा? ऐसे तो सब्जी नहीं ले पाऊंगी मैं!”, तरुणा ने प्रीती से कहा| प्रीती ने सहमती में सिर हिलाया| “पर दीदी, मुझे डर है कि मेरी साड़ी खुल जाएगी| नीचे वैसे बैठने का अनुभव नहीं है मुझे|”, तरुणा ने अपनी चिंता प्रकट की| प्रीती हँस दी और बोली, “अरे सुबह सुबह बाथरूम जाने का अनुभव है न? वैसे ही बैठना है| और वैसे भी मैंने बहुत पिन लगायी है तेरी साड़ी में| नहीं खुलेगी तेरी साड़ी| चिंता मत कर!”
और तरुणा ज़मीन पर बैठ कर टोकरे में टमाटर चुनने लगी| भले उस भीड़ में पहले किसी का तरुणा की तरफ ध्यान न रहा हो पर उसके नीचे बैठने के बाद कई लोगो की नज़र प्रीती की कमर और पीठ पर गयी| उसकी पैडिंग से तरुणा की हिप बिलकुल गोल लग रही थी| कोई भी पुरुष एक बार उसे देख ले तो नज़रे छुपा कर ही सही पर देखता रह जाता| थोड़ी देर में तरुणा के साथ ही में प्रीती भी बगल में बैठ कर एक टोकरे में टमाटर बीनने लगी| तरुणा को मज़ा आने लगा था| प्रीती को पता था कि आदमियों की नज़र उन पर है और वह बेफिक्र होकर मज़े ले रही थी|
नीचे बैठ कर सब्जी खरीदती तरुणा और प्रीती की कमर और हिप्स बेहद आकर्षक लग रही थी |
तरुणा ने टमाटर के साथ ही थोडा धनिया उठा कर टोकरे में रखा और लड़के को दिया और बोली, “यह धनिया भी दे दे| और थोड़ी मिर्च भी डाल दे|” “मैडम १० रुपये और लगेंगे धनिया मिर्च के”, सब्जी वाला बोला| तभी प्रीती बीच में बोल पड़ी, “वाह बेटा, अब तू धनिया मिर्च के पैसे भी वसूलेगा?”
सब्जीवाले ने प्रीती की ओर देखा, और कहा,”ओह प्रीती मैडम! मुझे पता नहीं था कि यह दीदी आपके साथ आई है! माफ़ कीजियेगा!” सब्जीवाला प्रीती को जानता था|
“आप बहुत दिनों के बाद आई है प्रीती मैडम, घर में सब ठीक है न?”, सब्जीवाले ने पूछा| “हाँ रे| सब ठीक है| अब तेरे भैया ही हमेशा सब्जी लेने आ जाते है तो मुझे आने का मौका ही नहीं मिलता| आज तो बस तेरे लिए ही अपनी सहेली को लेकर आई हूँ| पर तू तो उसे ही ठगने लगा| मैं तो तुझे अच्छा मानती थी!”
“क्यों टांग खिंच रही हो प्रीती मैडम| छोटा भाई समझ कर माफ़ कर दीजिये| गलती हो गयी मुझसे!”, सब्जीवाले ने कहा|
प्रीती और सब्जीवाले के बीच की बातचीत में तरुणा उन दोनों की ओर आश्चर्यचकित होकर देखती रह गयी| दोनों कुछ देर और बातें करते रहे जैसे सालो से जानते हो एक दुसरे को| कुछ देर बाद तरुणा ने अपनी पर्स से पैसे निकाल कर सब्जी वाले को दिए तो उसने २० रुपये ज्यादा लौटा दिए और कहा, “दीदी, माफ़ कीजियेगा आपसे ज्यादा पैसे नहीं ले सकता| मुझे पता नहीं था कि आप प्रीती मैडम की सहेली है| आगे से मेरी ही दूकान से सब्जी खरीदिएगा|”
“हाँ हाँ चल अब ज्यादा मक्खन न लगा दीदी दीदी करके और मेरा भी हिसाब कर दे”, प्रीती ने अपने ब्लाउज के अन्दर से हाथ डालकर कुछ पैसे निकाल कर देते हुए कहा| हिसाब होने पर बचे हुए पैसे प्रीती ने फिर अपनी ब्लाउज में रख लिए| प्रीती सब कुछ बेझिझक कर रही थी| वही तरुणा अपनी हंसी नहीं दबा पा रही थी| दोनों औरतें हाथों में सब्जी का थैला लिए हँसते हुए वापस चल पड़ी|
“दीदी आप तो कमाल हो! सब्जीवाला आपको जानता था आपने मुझे पहले बताया भी नहीं था? और आप उससे किस भैया की बात कर रही थी? मेरे जीजाजी है और मुझे पता तक नहीं?”, तरुणा ने प्रीती को छेड़ते हुए कहा|“पगली, भैया वैया और कोई नहीं, मैं ही हूँ| वो सब्जीवाला जानता है कि मैं ही आदमी और औरत रूप में आती हूँ वहां| अच्छा लड़का है| मेहनती भी है| एक दो महीने में मैं एक बार प्रीती बन कर आ ही जाती हूँ उसके पास| बड़ी बहन मानता है वो मुझे| कभी कभी उसको कॉलेज की पढाई के लिए टिप भी दे देती हूँ इसलिए अच्छी तरह से जानता है मुझे|”
बातें करते दोनों सहेलियाँ तरुणा के होटल के ओर चल पड़ी| तरुणा का डर अब ख़त्म हो गया था| और डर के ख़त्म होते ही अब किसी औरत की तरह बातूनी हो गयी थी वह| बेहद खुश थी वो| प्रीती ने सच कहा था कि सब्जी खरीदने जैसी सामान्य सी बात भी कभी न भूलने वाला अनुभव बन गया था उसके लिए| अपने एक एक कदम का एक औरत के रूप में आनंद लेते हुए तरुणा और प्रीती चल पड़े| शाम हो चुकी थी| पर उन दो सहेलियोँ के लिए तो बस एक नयी गहरी दोस्ती की शुरुआत थी|








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