अस्वीकरण: यह कहानी इन्टरनेट पर उपलब्ध 11 stories about crossdressing से प्रेरित है| हमने इसे केवल भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है|
आईने के सामने बैठ कर अपने लम्बे बालों को निहारते हुए सुनील खुद को आईने में देख बड़ा खुश था| आखिर १५ महीने से बाल बढाने के बाद अब जाकर उसके कंधे के थोड़े नीचे आये थे कि अब वो अपने बालो में चोटी बना सके| अपनी उँगलियों से अपने लम्बे घने बालो को सहलाते हुए, सुलझाते हुए, चोटी बनाना, हाय! क्या सुख था यह भी| और तो और, गुलाबी रेशमी साड़ी में बड़ा ही खुबसूरत भी लग रहा था| जैसे किसी ख़ास अवसर के लिए एक औरत सज धज कर तैयार हुई हो| किसी नयी नवेली दुल्हन से कम नहीं लग रहा था वो| उसने पलट कर आईने में खुद को देखा, ब्लाउज में गहरी पीठ पे बंधी हुई डोरी बड़ी ही आकर्षक लग रही थी उसके तन पर| आखिर आजकल के गहरे ब्लाउज का फैशन उसे भी लुभा गया था| और जब उसके लम्बे बाल उसकी नग्न पीठ को चुमते तो एक नाज़ुक स्त्री की तरह अनुभव करता वह| खुद को आईने में देख कर एक शालीन सुन्दर राजकुमारी की तरह मुस्कुरा रहा था सुनील|
“अब तक तो सब्जी बन कर तैयार हो गयी होगी”, सुनील का ध्यान अचानक किचन की ओर गया जहाँ उसने सब्जी को धीमी आंच में पकने के लिए छोड़ा था| एक गृहिणी की तरह घर में खाना बनाने का भी एक बड़ा सुख है, सुनील जानता था| आखिर मन में औरत की तरह जीने की ललक वो ऐसे ही छोटी छोटी चीज़े, घर में कर, पूरी करता था वो| उसका वश चलता तो वह ऑफिस में भी सिल्क की कड़क सुन्दर बड़ी बॉर्डर वाली साड़ी पहन कर जाता| कंधे में बड़ा सा पर्स टाँगे, ड्राई क्लीन की हुई सिल्क साड़ी पहन कर ऑफिस जाना तो जैसे एक सपना था उसका| घर के बाहर कामकाजी महिला न सही, पर अपने घर की चारदीवारियों में गृहिणी बनकर भी खुश था वो| मन ही मन खुश होते हुए वह, अपने ड्रेसिंग टेबल से उठा और साड़ी के पल्लू का एक छोर अपनी कमर में खोस कर वह किचन की ओर बढ़ गया| एक नज़र फिर आईने की ओर घुमाकर उसने खुद को ऊपर से नीचे तक निहारा| “बहुत सुन्दर औरत हो तुम”, उसने खुद से ही कहा|
उस वक़्त कोई सुनील की भरी हुई मांसल पीठ को उस ब्लाउज में देख लेता तो यक़ीनन ही ब्लाउज की डोर खोल कर उसे अपनी आगोश में ले लेता| पर इस वक़्त वो अकेला था| हाय, यह भी कैसा जीवन है कि यहाँ इतना भरपूर सौंदर्य है और उसे निहारने वाला कोई नहीं|
आज घर में सुनील ने कई स्वादिष्ट पकवान बनाये थे| अब बस एक आखिरी सब्जी बन रही थी|”हाय मेरी सब्जी जल तो नहीं गयी?”, इसी चिंता में उसने झट से गैस स्टोव बंद किया और सब्जी की गर्म कढ़ाई को अपने साड़ी के पल्लू से पकड़ कर स्टोव से नीचे उतार दिया|एक गृहिणी ही जानती है कि साड़ी उसे दिन भर के काम में कितनी तरह से सहायता करती है|
तभी दरवाज़े पर दस्तक सुने दी| कोई दरवाज़े पर चाभी घुमाकर खोल रहा था| वह बेहद घबरा गया| उसकी बीवी रुपाली को तो घर आने में कम से कम १ घंटा और था| वो तो कभी इतनी जल्दी काम से घर नहीं आती थी| उसकी धड़कने तेज़ हो गयी| अब क्या कहेगा रुपाली से? यह सोचने का भी समय नहीं था| अब बहुत देर हो चुकी थी| अब तो वो कहीं छुप भी नहीं सकता था| उसके पास समय भी नहीं था कि वो कपडे बदल सके| आखिर अब उसे रुपाली से ऐसे ही मिलना होगा| वो स्टोव के पास चुपचाप खड़ा रहा| उसकी सुन्दर गोल्डन सैंडल में उसके पैर कांप रहे थे| साड़ी के ब्लाउज के अन्दर डर से पसीना छूटने लगा जब रुपाली किचन में दाखिल हुई|
सुनील अपनी गुलाबी रेशमी साड़ी में बेहद आकर्षक लग रहा था| उसकी मांसल पीठ को देख कर कोई भी उसके ब्लाउज की डोर खोलने को मचल जाता
किचन में दाखिल होते ही रुपाली ने जब सुनील को गुलाबी साड़ी में सजे संवरे देखा तो मानो उसके पैरो के नीचे से ज़मीन ही निकल गयी थी|
“धोखेबाज़!”, रुपाली गुस्से से आगबबूला हो गयी|
सुनील ने रुपाली को बेहद ही प्यार से शांत होने का इशारा किया| पर वह खुद भी बड़ा नर्वस था| नज़रे झुकाकर पल्ले को अपने हाथो से पकड़ कर जैसे रुपाली से माफ़ी मांग रहा था वह|
“तुमने मुझे धोखा दिया है!”, रुपाली चीखते हुए गुस्से से सुनील की ओर बढ़ी| सुनील रुपाली के हाथ के वार से खुद को बचाने के लिए झुक कर दूर जाना उचित समझा|
“हम पहले इस बारे में बात कर चुके थे सुनील|”, रुपाली लगभग रो पड़ी| “तुम फिर भी मेरे साथ ऐसा करोगे, ऐसा मैं सोची भी नहीं थी! तुमने मेरा विश्वास तोडा है सुनील”, रुपाली जोरो से कहते हुए लगभग रो पड़ी|
“रुपाली प्लीज़ मुझे समझाने का एक मौका दो”, सुनील ने अपनी चोटी को पीछे करते हुए अपनी साड़ी को संभालते हुए कहा|
“अब समझाने को रह क्या गया है सुनील?”, रुपाली रुंधे हुए गले से बोली, “बोलो? क्या हमने यह निर्णय नहीं लिया था कि आज हमारी शादी की सालगिरह के अवसर पर तुम पीली साड़ी पहनोगे और मैं यह नई गुलाबी साड़ी?” कहते कहते रुपाली रो पड़ी|
सुनील ने तुरंत रुपाली को गले लगा लिया| रुपाली अपनी आँखों से बहते आंसुओं को पोछने लगी|
“आय ऍम सॉरी सुनील पर तुम साड़ियों में इतने सुन्दर लगते हो और मैं इतनी ख़राब|”, रुपाली ने कहा|
“रुपाली, यह सच नहीं है| और तुम यह सच जानती हो रुपाली|”, सुनील ने कहा| वह अपनी साड़ी की प्लेट्स पकड़ कर रुपाली की ओर बढ़ा और उसे प्यार से गला लगा लिया|
“नहीं, यही सच है| तुम्हारा तन और भरी हुई पीठ और कमर साड़ी में खिल उठती है|ऐसा लगता है तुम्हारा तन साड़ी पहनने के लिए ही बना है| और तुम्हारे सामने तो मैं हमेशा ही फीकी लगती हूँ|”, रुपाली ने फिर कहा|
सुनील ने रुपाली के माथे पर एक चुम्बन देते हुए कहा, “रुपाली तुम भी जानती हो कि तुम ही मेरी प्रेरणा हो| तुम न होती तो मैं कहीं का नहीं होता|” कुछ देर चुप रहकर उसने फिर कहा, “चलो क्यों न हम इस गुलाबी साड़ी को कुछ देर के लिए भूल जाए? मैंने तुम्हारे लिए हमारी शादी के समय का लहँगा निकाल कर रखा है| याद है न कितनी खुबसूरत लगी थी तुम हमारी शादी के दिन? क्यों न आज फिर से वो दिन जी ले हम?”
रुपाली मुस्कुरा दी और फिर धीरे से उसने सहमती में सर हिलाया| फिर दोनों प्रेम से एक दुसरे का हाथ पकड़ कर बेडरूम की ओर चल पड़े जहाँ बिस्तर पर सुनील ने लहंगा-चोली और उसके साथ के गहने और सैंडल निकाल कर रुपाली के लिए सजा रखा था|



टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें