एक राज़ जो सालो की दोस्ती को बदल देने वाला था. क्या ये दो रूममेट की दोस्ती इस राज़ को सह पाएगी?

“तुमने तो स्वेटर और टूथब्रश रखा ही नहीं”, मेरी पत्नी ईशा ने मुझसे कहा. उसके तेवर बता रहे थे जैसे उसे मालूम था मैं अपनी यात्रा के सामान में कुछ न कुछ भूल रहा हूँ. वो मेरे सूटकेस में सामान रखने लगी.
“ईशा, कैलिफ़ोर्निया में ठण्ड नहीं होती. और टूथब्रश तो होटल में भी मुफ्त मिल जाता है.”, मैंने अपने बचाव में कहा.
“ओहो निशांत, मैं कैलिफ़ोर्निया की बात नहीं कर रही. हवाईजहाज में तुम्हे ठण्ड लग जायेगी. तुम भी न! बिलकुल सोचते नहीं हो.”, ईशा ने शिकायती लहजे में कहा. पर उसकी शिकायत में प्यार भी बहुत छुपा हुआ था.
“आज ग्रोसरी शौपिंग करते वक़्त गौरव भैया और नीतू भाभी मिले थे. गौरव भैया बता रहे थे कि आपके सबसे अच्छे दोस्त चेतन कैलिफ़ोर्निया में ही रहते है.”, ईशा ने कहा.
“हाँ”, मैंने संक्षिप्त में उत्तर दिया.
“सुना है कि वो आपके बेस्ट फ्रेंड है. पर इतने सालो में हमारी उनसे मुलाकात या बात तक नहीं हुई. बस तस्वीरों में देखा है उन्हें. ये कैसे बेस्ट फ्रेंड हो आप?”, ईशा ने मुझसे फिर पूछा.
“मैडम, जब मैं US आया था तब वो इंडिया में ही रह गया. और दोबारा कभी एक शहर में मुलाक़ात ही नहीं हुई. समय के साथ दोस्ती भी छुट जाती है.”, मैं ईशा को सच बताया. पर ये पूरा सच नहीं था.
“अब उनके शहर जा ही रहे हो तो मिल लेना उनसे”, ईशा बोली. “देखता हूँ. ऑफिस के काम से फुर्सत मिल जाए तो चेतन से भी मिल लूँगा. “, मैंने जवाब दिया. मेरी चेतन से मिलने की कोई इच्छा नहीं थी. शायद हिम्मत भी नहीं थी.
“चलो आपकी फ्लाइट का समय हो रहा है. अब आपको निकलना चाहिए. अपना ध्यान रखना और फोन करते रहना”, ईशा ने मुझे गले लगते हुए कहा. मैंने उसके माथे पर एक किस किया.
हवाई जहाज में मैं बैठा बेचैनी महसूस कर रहा था. सोचा बेचैनी दूर करने के लिए अपने फ़ोन में गाने ही सुन लू. आज Aerosmith रॉक बैंड का “ड्रीम ऑन” नाम का गाना सुनने को दिल कर गया.
आज ऐसे लग रहा था जैसे इस गाने के शब्द मेरे दिल के अन्दर की हलचल को बयान कर रहे है. चेतन की बात सुनकर बीते दिन याद आने लगे. और वो गाना सुनते सुनते मैं अपने पुराने समय की यादों में चला गया. यह गाना मुझे पहली बार मुझे चेतन ने सुनाया था. चेतन और मैं निशांत, हम दोनों अपने इंजीनियरिंग कॉलेज के पहले दिन मिले थे. हम दोनों को हॉस्टल में एक ही रूम मिला था जहाँ हम ४ साल रूममेट बन कर रहे. जब चेतन ने मुझे ये गाना सुनाया था तब मेरी रॉक म्यूजिक की कोई समझ नहीं थी. चेतन गिटार का शौक़ीन था तो उसे ऐसे गाने बड़े पसंद थे. उसके साथ रहकर मेरा रॉक म्यूजिक का शौक भी बढ़ गया था. जब भी इस गाने में स्टीवन टाइलर को ‘ड्रीम ऑन’ गाते सुनते, हम दोनों के तो रौंगटे खड़े हो जाते थे.
हॉस्टल में समय के साथ हम दोनों की दोस्ती गहरी होती चली गयी थी. हमने न जाने कितने ही कारनामे साथ किये थे. हमारी पहली बियर हो या पहली सिगरेट, या फिर क्रिकेट का गेम, या फिर शहर जाकर माल में सुन्दर लड़कियों को देखना, न जाने क्या क्या साथ में किया. जिन कॉलेज के दिनों को लोग याद करते है, वो सारे दिन हमने साथ में बिताये थे. रात रात भर जागकर कंप्यूटर पर गेम भी खेले और देर रात तक असाइनमेंट भी किये, हमारी दोस्ती समय के साथ बस और गहरी होती गयी थी.
कॉलेज ख़त्म होने पर कई दोस्त बिछड़ जाते है पर किस्मत ने हम दोनों का साथ दिया और हम दोनों की नौकरी भी साथ ही में एक मल्टीनेशनल कंपनी में लग गयी. सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग की ABCD भी नहीं आती थी हम दोनों को! पर दोनों को प्रोग्रामर की नौकरी मिल गयी थी. नए शहर में जॉब करने हम साथ ही आये और एक घर किराये पर लेकर साथ ही रहने लगे. जेब में अब जब थोड़े पैसे आ गए थे तो हमारा रहन-सहन कपडे वगेरह भी थोड़े सुधर गए थे. जीवन में धीरे धीरे सब कुछ मिल रहा था. पर इंजीनियरिंग करने वालो को एक ही कमी रह जाती है, एक गर्ल फ्रेंड की! और नौकरी लगने के बाद हम दोनों ही कोशिश करते रहते की कोई गर्लफ्रेंड बन जाए. नौकरी के पहले २ सालो में हमको कुछ लड़कियों से बात करके डेट करने का मौका भी मिला था. पर बात एक दो मुलाकात में कॉफ़ी या डिनर से आगे कभी ज्यादा बढ़ न सकी. पता नहीं क्या गलत करते थे हम. सीधे शरीफ लड़के थे हम, पर फिर भी किसी लड़की को पसंद नहीं आते. २३ साल के हो चुके थे हम दोनों और अब तक कुंवारे ही थे. कई बार किसी बियर बार में जाकर खूब जोर शोर से विदेश दारु पीकर अपनी निराशा दूर करते थे, शायद किसी दिन हम पर भी भगवान रहम करके हमें एक गर्लफ्रेंड देगा.
इसी उम्मीद में हम दोनों अपने और दोस्तों के साथ नए साल के अवसर पर गोवा भी गए थे. यह सोच कर कि शायद वहां क्लब में हमारी किस्मत चमकेगी. पर किसी लड़की ने हमारी ओर मुड़कर भी नहीं देखा. कोई अफ़सोस भी नहीं था इस बात का. क्योंकि दोस्तों के साथ नए साल में मज़ा भी बड़ा आया था. शराब के नशे में यार दोस्त अपनी दोस्ती की मिसाल भी देने लगते है. “यार लड़की मिले न मिले, पर तुम लोग मेरे सच्चे दोस्त हो! तुम नहीं होते तो पता नहीं ज़िन्दगी कैसे चलती”, ऐसी ही बातें करते, हँसते खेलते, घूमते हुए हमने गोवा में अपना समय बिताया था.

गोवा से वापस घर आने के बाद मैं यूँ ही अपने बैग में अपने नोकिया फ़ोन का चार्जर तलाश रहा था. पर मिला नहीं. शायद मैं गोवा के होटल में ही उसे भूल आया था. मैंने सोचा कि क्यों न चेतन के चार्जर से अपना फ़ोन चार्ज कर लू. उन दिनों सबके पास नोकिया के ही फोन हुआ करते थे और सभी का चार्जर एक ही होता था.
“चेतन, यार तेरा चार्जर कहाँ है? मैं शायद अपना गोवा में ही भूल आया हूँ”, मैंने अपने कमरे से ही आवाज़ लगाया. पर चेतन उस वक़्त नहाने गया हुआ था. तो उसका कोई जवाब न आया. मैं अपने कमरे से निकलकर उसके कमरे की ओर बढ़ा. हम दोनों दोस्तों के बीच कुछ छुपा हुआ न था, अकेले कुंवारे दोस्त थे, जो कभी भी एक दुसरे के कमरे में बिना पूछे चले जाते थे. उसके कमरे में पहुच कर मैं चार्जर ढूँढने लगा. कमरे में काफी सामान फैला हुआ था. गोवा से लौटकर अभी चेतन को भी कपडे जगह पर रखने का समय न मिला था. टेबल पर भारी भरकम लैपटॉप और उसका चार्जर था, और ऑफिस के कई सारे पेपर मैगज़ीन भी रखे हुए थे. मैंने सब उलट पलट कर देखा पर कहीं भी फ़ोन का चार्जर न मिला. ढूंढते ढूंढते मेरी नज़र उसके बिस्तर के निचे रखे सूटकेस पर गयी. उस सूटकेस से बाहर एक वायर लटका हुआ था. “शायद चार्जर हो”, मैंने सोचा. निचे झुककर मैं उस वायर को खींचने लगा, पर वो बाहर न आया. तब मैंने उस सूटकेस को खिंच कर बिस्तर के निचे से बाहर निकाला. खोल कर देखा तो वायर कुछ कपड़ो में फंसा हुआ था. थोडा कपड़ो को उलट पलट करने पर पता चला कि वह तो कैमरा का वायर था.
मैं अपनी तलाश पूरी करके वापस जाने ही वाला था पर उस वक़्त मेरी नजरो में कुछ खटकने लगा था. उस सूटकेस में ऊपर की सतह पर तो चेतन के कपडे थे, पर उनके नीचे कुछ लड़कियों के कपडे दबे हुए थे. किसी और का सामान बिना पूछे देखना तो नहीं चाहिए. पर चेतन मेरा दोस्त था. कोई लड़की हमारे घर आई और चेतन के पास अपने कपडे छोड़ कर गयी हो, और चेतन ने मुझे बताया तक नहीं? ये कैसी दोस्ती है? जहाँ मैं किसी भी लड़की से बात करने को तरसता हूँ और चेतन इतनी बड़ी बात मुझसे छुपा कर रखा हुआ था? अब दोस्ती में दोस्त की टांग तो खींचनी पड़ती है, वरना दोस्ती कैसी! मैंने सोचा. इसी सोच के साथ मैं उस सूटकेस में कपडे हटाकर देखने लगा. मुझे बेहद सलीके से रखे हुए सलवार सूट, दो साड़ियाँ, और एक गुलाबी रंग की ब्रा दिखाई दी. ब्रा देख कर तो मेरी चंचल आँखों में चमक आ गयी. मैंने ब्रा निकाल कर अलग रख दिया. अब चेतन को परेशान करना बहुत आसान होगा. मेरा शैतानी दिमाग तेज़ दौड़ने लगा.
क्या मुझे सूटकेस की और जांच पड़ताल करनी चाहिए? मैंने सोचा. मेरे हाथ में एक ब्रा थी जो चेतन को छेड़ने के लिए काफी थी. मुझे आगे और कुछ ढूँढने की ज़रुरत तो नहीं थी. काश मैं उस वक़्त वहीँ रुक जाता तो हमारी दोस्ती ख़त्म होने की कगार पर नहीं आ जाती. मैं आज भी उस पल को कोसता हूँ जब मैंने उस सूटकेस में रखी हुई दो साड़ियों को हटाकर देखा था. पर यदि मैंने वो न किया होता तो मैं अपने दोस्त को कभी समझ ही नहीं पाता. गंभीरता से सोचु तो लगता है कि हम दोनों की दोस्ती का अंत शायद एक लड़की के चक्कर में हुआ था, एक ऐसी ख़ास लड़की जो मेरी और चेतन, दोनों की ज़िन्दगी में एहमियत रखती थी. पर मेरी मुलाक़ात उससे तब तक हुई न थी.
उस पल मैं उन साड़ियों को हटाकर देख ही रहा था तभी चेतन बाथरूम से निकल कर बाहर आ गया. तौलिया लपेटा हुआ दुबला-पतला चिकना चेतन मुझे सूटकेस खोलते देख बौखला गया. वो तुरंत दौड़ कर आया और मुझ पर चीख पड़ा. “निशांत तुम्हे तमीज़ नहीं है? किसी के सामान को उनसे पूछे बगैर हाथ नहीं लगाते.”
“शांत हो जा यार! हम दोनों ने तो पहले कभी एक दुसरे की चीजों को हाथ लगाने से पहले नहीं पूछा. आज तू भड़क क्यों रहा है?”, मैंने चेतन से कहा. पर चेतन तेज़ी से सूटकेस बंद करने में व्यस्त था. वो बहुत घबराया हुआ लग रहा था.
“यार, ये तो बता कि यह कपडे किस लड़की के है?”, मैंने चेतन से पूछा. “किसी के नहीं.”, चेतन ने झून्झलाते हुए जवाब दिया. “किसी न किसी के तो होंगे ये?”, मैंने फिर पूछा.

“मैंने अपनी माँ और बहन के लिए ख़रीदे है कपडे. होली के समय घर लेकर जाऊँगा. तुझे क्या मतलब इससे?”, चेतन कुछ सोचते हुए बोला. उसके जवाब से मैं संतुष्ट नहीं था. आखिर कौन लड़का अपनी माँ या बहन के लिए ब्रा खरीद कर ले जाता है? और वो ब्रा भी उपयोग की हुई लग रही थी. पर ब्रा से ज्यादा मुझे वो खटक रहा था जो मैंने साड़ी के नीचे दबे देखा था. एक सेकंड के लिए ही सही पर मुझे यकीन था कि मैंने उस सूटकेस में लम्बे बाल देखे थे.
मैं यह सब सोच ही रहा था तभी चेतन की नज़र मेरे हाथ में रखी गुलाबी ब्रा पर गयी. उसे देखकर तो जैसे उसका गुस्सा और बढ़ गया. उसने झट से ब्रा मुझसे छीना और गुस्से में मुझे कमरे से बाहर जाने को कहा.
मैं बदहवास सा उस कमरे से बाहर आ गया. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि चेतन इतना नाराज़ हो सकता है इतनी छोटी सी बात से. बाहर आकर अकेले में बैठ कर मैं कुछ देर सोचने लगा कि वो कपडे और लम्बे बाल चेतन के पास क्या कर रहे थे. शायद चेतन ने कभी कॉलेज के ड्रामा में लड़की का रोल किया होगा और उसने मुझे कभी बताया नहीं. यह संभव हो सकता है. आखिर हमारे कॉलेज के दिनों में लड़कियां कम थी तो कई बार लड़के ही लड़की का रोल कर लेते थे . और शायद चेतन ने मुझे इसलिए नहीं बताया कि उसे डर रहा होगा कि मैं अपने और दोस्तों के साथ मिलकर उसका मज़ाक उड़ाऊंगा. यदि ऐसा है तब भी इतना नाराज़ होने की क्या ज़रुरत थी उसे? यह सब सोचकर तो मुझे भी चेतन के बर्ताव पर गुस्सा आने लगा था.
मैं बाहर बैठा यही सब सोच रहा था. तभी चेतन अपने कमरे से बाहर निकल कर आया. वो बहुत गंभीर लग रहा था. “निशांत मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.”, चेतन ने मुझसे कहा.
“हाँ, मुझे भी बात करनी है”, मैं अपना गुस्सा निकालना चाहता था.
“निशांत, ये बात बहुत सीरियस है. अब तक तुझे पता चल गया है पर फिर भी अच्छा होगा कि तू यह बात मुझसे अच्छी तरह समझ ले. पर प्लीज़ ये बात किसी को बताना मत.”, चेतन बोला.
मैं सोच रहा था चलो अब चेतन मुझे बताएगा कि कैसे वो कॉलेज ड्रामा क्लब में महिला के किरदार निभाता था. वैसे भी वो कॉलेज ड्रामा क्लब में काफी आता जाता था. मेरा नाटक में कोई इंटरेस्ट न था, इसलिए कभी इस बारे में मैं उससे कुछ पूछता नहीं था.
“मैं सुन रहा हूँ, चेतन. पर बताओ तो सही कि मुझे क्या पता चल गया ऐसा?”, मैंने कहा.
चेतन फिर गंभीर हो गया. उसने मेरी ओर देखा और कहा, “यार, तू इस बात को मज़ाक मत लेना. मैंने सालो से ये राज़ छुपा के रखा हुआ था. कोई भी नहीं जानता इस बारे में.”
मैं चेतन की बात सुनता रहा. “निशांत …”, चेतन कहते कहते कुछ पल के लिए रुक गया. “निशांत… मैं एक क्रॉस-ड्रेसर हूँ.”
“क्रॉस-ड्रेसर?”, मैं समझ न सका. यह क्या चीज़ है? मुझे कोई अंदाज़ा न था.
“इस दुनिया में कुछ लोग होते है जिन्हें विपरीत लिंग के कपडे पहनना अच्छा लगता है, उन्हें क्रॉस-ड्रेसर कहते है. मैं भी एक क्रॉस-ड्रेसर हूँ और मुझे लड़कियों के कपडे पहनने पसंद है. पर इसका मतलब ये नहीं है कि मैं लड़का नहीं हूँ. मैं भी एक सामान्य लड़का हूँ पर कभी कभी मुझे लड़कियों की तरह सजना और बर्ताव करना अच्छा लगता है.”, चेतन ने धीरे धीरे कहा.
मुझे अब भी कुछ समझ नहीं आ रहा था. कोई लड़का भला क्यों लड़कियों के कपडे पहनने लगा? क्या चेतन तीसरे लिंग का इंसान था? चेतन को मेरे चेहरे पर असमंजस के भाव दिख गए थे.
“निशांत, मुझे नहीं पता कि मैं ऐसा क्यों हूँ. पर मेरी तरह दुनिया में ऐसे बहुत से लड़के है जो कभी कभी लड़की बनना पसंद करते है.”, चेतन ने आगे कहा. मैं मन ही मन चेतन का मज़ाक उडाना चाहता था. आखिर दोस्त यही तो करते है! पर चेतन जितना गंभीर था मैं उसका मज़ाक नहीं उड़ा सकता था उस वक़्त.
“चेतन, ये तेरी कोई सेक्सुअल फैनटसी है क्या?”, मैंने पूछा. वैसे तो मुझे ये भी अंदाजा न था कि यह क्यों किसी की फैनटसी हो सकती है. पर दुनिया में लोग बड़ी अजीब अजीब चीजें करते है.
“प्लीज़ यार निशांत. ऐसा कुछ नहीं है. मैं नार्मल लड़का हूँ. मैं एक बार फिर तुझसे कह रहा हूँ कि प्लीज़ किसी को ये बात मत बताना. मैं तुझे पूरी तरह से समझा नहीं सकता पर तू इन्टरनेट पर इस विषय के बारे में पढ़ सकता है. तुझे बहुत सही या गलत जानकारी मिल जाएगी. तू चाहे तो आज शाम को हम दोनों इस बारे में और आगे बात कर सकते है.”
चेतन का चेहरा उस वक़्त बहुत उदास सा था. कहाँ मैं सोच रहा था कि चेतन छुप छूप कर नाटक में औरतों का रोल करता है, और कहाँ चेतन ने मुझे क्रॉस-ड्रेसर होने के बारे में बताया. मामला सच में गंभीर था. चेतन उसी उदास अवस्था में उठ कर ऑफिस जाने के लिए निकल पड़ा. वैसे तो हम दोनों रोज़ साथ में ही ऑटो लेकर ऑफिस जाते थे, पर उस दिन वो अकेला ही निकल गया था.
मैं कुछ देर सोफे पर ही बैठे रहा. मैं इस बात को इतना सीरियस नहीं लेना चाहता था. मैं तो बस एक दोस्त की तरह इस बात को लेकर उसे १-२ दिन छेड़ने की सोच रहा था. पर चेतन का उदास चेहरा मुझे इसे गंभीरता से लेने को मजबूर कर रहा था. थोड़ी देर बाद मैं भी ऑफिस चल दिया.
उस दिन ऑफिस पहुचते ही मैंने अपने कंप्यूटर पर क्रॉस-ड्रेसिंग विषय पर गूगल सर्च किया. मुझे तो उस शब्द की स्पेल्लिंग तक नहीं आती थी. गूगल ने उसे सही कर दिया. बहुत सी वेबसाइट आई उस विषय पर. कुछ वेबसाइट पर पुरुषों की औरतों के कपडे में बेढंगी सी तसवीरें दिखाई दी. तो कहीं पर दो आदमियों के ख़राब क्वालिटी के सेक्स विडियो थे जिसमे एक ने लड़कियों के कपडे पहना हो. देख कर मुझे काफी अजीब सा लगा. ऐसा लग रहा था जैसे क्रॉस-ड्रेसिंग बहुत ही ख़राब सी सेक्सुअल फैनटसी है. पर तभी एक वेबसाइट दिखाई दी, जिसमे इस विषय पर कुछ अच्छी जानकारी थी. इस वेबसाइट को किसी राधारानी नाम की औरत, असल में एक भारतीय क्रॉस-ड्रेसर, ने बनायीं थी. उस वेबसाइट पर राधारानी की बहुत सी तसवीरें थी. सभी एक शालीन औरत की तरह, सादगी पूर्ण साड़ी पहने या साउथ इंडियन कपडे पहने. कहीं कहीं उनका ख़राब मेकअप न दिखाई दिया होता तो पता भी नहीं चलता कि वो तन से आदमी है. बहुत सुन्दर थी राधारानी. और उन्होंने बहुत ही मेहनत के साथ उस वेबसाइट में बहुत सी जानकारियां लिखी थी. न सिर्फ क्रॉस-ड्रेसर के बारे में बल्कि लड़की की तरह कैसे दिखना, चलना है और बर्ताव करना है, इस बारे में भी बहुत कुछ था उस वेबसाइट में.
पर सबसे पहले तो मैं ये जानना चाहता था कि मेरा दोस्त चेतन त्रितियालिंगी या हिजड़ा तो नहीं है? दूसरा सवाल मेरे मन में था कि चेतन गे(समलैंगिक) तो नहीं है? उन दिनों गे होने के विषय पर थोड़ी बहुत ही बातें होती थी समाज में. लोगो की कोशिश थी कि गे को समाज स्वीकार करे. मुझे तो समझ नहीं आता था कि कोई आदमी दुसरे आदमी के प्रति कैसे आकर्षित हो सकता है. पर मॉडर्न होने के नाते मैं गे के समर्थन में ही बातें करता था. वैसे भी किसी अनजान इंसान को समर्थन देना आसान है पर जब खुद अपना दोस्त गे हो? तब यह बात मुश्किल हो जाती है. वो भी जब वो दोस्त आपका जिगरी दोस्त हो, जो एक रॉक स्टार गिटारिस्ट भी हो, जो एक ‘cool dude’ भी हो. उसको गे कैसे स्वीकार करता मैं? पर भाग्य से राधारानी जी की उस वेबसाइट में लिखा था कि क्रॉस-ड्रेसर गे हो ज़रूरी नहीं है. मैं फिर चकराया हुआ था. कोई यदि एक लड़की के कपडे पहनना पसंद करता हो, लड़की की तरह बर्ताव करता है, तो शायद उसे किसी आदमी की तरफ आकर्षण हो सकता है, ऐसा मुझे लगा. पर पता चला कि दुनिया के अधिकाँश क्रॉस-ड्रेसर सुखपूर्वक शादीशुदा ज़िन्दगी बिताते है और उनमे से बहुत कम गे होते है. ऑफिस में मेरा पूरा समय इस विषय के बारे में पढ़ते हुए निकल गया. बहुत सी बातें मन को विचलित करने वाली थी. पर दिन के अंत तक मुझे कुछ बातें समझ आ गयी थी. एक तो क्रॉस-ड्रेसर होना किसी की सेक्सुअल फैनटसी नहीं है. अधिकाँश क्रॉस-ड्रेसर बहुत कम उम्र से ही विपरीत लिंग के कपडे पहनना चाहते है. और एक क्रॉस-ड्रेसर गे हो यह ज़रूरी नहीं है. कई क्रॉस-ड्रेसर लड़कियों का नाम भी उपयोग करते है, और उनसे लड़कियों की तरह व्यव्हार करो तो उन्हें अच्छा लगता है.

जब मैं घर पहुंचा, तब तक चेतन पहले ही घर पहुँच चूका था. वो बाहर के कमरे में ही बैठे हुए था. मैं स्थिति को थोडा सुधारने के लिए कहा, “यार आज तू अकेले ही वापस आ गया. और मुझसे सिगरेट के लिए भी मिला नहीं? काम बहुत था क्या?” चेतन ने जवाब न दिया. वो बस एक पल के लिए मेरी ओर घूर कर देखा.
मुझे कुछ करना पड़ेगा, मैंने सोचा. अब उस विषय को और दबाया नहीं जा सकता. “यार, आई ऍम सॉरी. मुझे तेरा सामान तेरी मर्ज़ी के बगैर खोल कर नहीं देखना चाहिए था. पर आज मैंने क्रॉस-ड्रेसिंग के बारे में बहुत कुछ पढ़ा. पूरा दिन निकल गया. मैं तुझसे बस यही कहना चाहता हूँ कि इससे हमारी दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरे लिए इस विषय को समझना थोडा मुश्किल है पर तेरा राज़ मेरे साथ सुरक्षित है. मैं किसी को नहीं बताऊँगा.”
चेतन के चेहरे से नाराज़गी या उदासी अब थोड़ी कम थी. पर वो कुछ बोला नहीं. तो मैंने आगे कहा, “तो क्यों न हम दो दोस्त बियर पीकर चियर्स करे?” ऐसा कहकर मैं फ्रिज से दो बियर बोतल ले आया. मैंने एक बोतल चेतन को दिया. अब वो थोडा मुस्कुरा रहा था. हम दोनों ने बियर पीना शुरू किया. शराब कई बार बातें करना आसान कर देती है. और एक बियर के बाद जब हल्का हल्का सुरूर आ गया तब हम दोनों खुल कर बातें करने लगे. हमारे जीवन, नौकरी और फिर क्रॉस-ड्रेसिंग के बारे में. मैंने चेतन से बहुत सवाल पूछे. कई सवाल तो सच कहू, थोड़े बेहूदा थे, पर नशे में भी चेतन को एहसास था कि उसका दोस्त अपनी अज्ञानता की वजह से ऐसे सवाल पूछ रहा है. काफी कुछ समझने को मिला मुझे चेतन के बारे में. चेतन को बेसब्री से इंतज़ार रहता था कि मैं कभी अपने माता-पिता से मिलने जाऊं ताकि वो घर में अकेले लड़की बन सके. होशोहवास में यह बातें मुझे कंफ्यूज करती पर नशे में मुझे सब सामान्य सा लगा. मुझे हमारी दोस्ती पसंद थी.
हम दोनों ने मिलकर ३-३ बियर ख़त्म की होगी, तब मैंने चेतन से कहा, “यार, क्या मैं तुझे क्रॉस-ड्रेस किये हुए देख सकता हूँ? यदि तू सुन्दर लड़की की तरह दिखे, तो तुझे ही अपनी गर्लफ्रेंड बना लूँगा” चेतन मुस्कुरा दिया, बल्कि मैं बदतमीज़ी से हँस रहा था. मैं अपनी बात में ज़रा भी सीरियस न था. मेरा चेतन को गर्लफ्रेंड बनाने का कोई मन न था. और चेतन तो खुद गर्लफ्रेंड ढूंढ रहा था, वो क्यों किसी की गर्लफ्रेंड बनता? उसने शायद इशारों से कुछ कहा पर मैं नशे में धुत समझ न पाया. चेतन अपने कमरे की ओर चल दिया. इस वक़्त मैं नशे में खुश था. चेतन जा चूका था पर नशे की ख़ुशी में मुझे बहुत परवाह नहीं रही. मैं घर की बालकनी से बाहर रात को चमचमाता शहर देखता रहा. मुझे वो चांदनी रात बहुत अच्छी लग रही थी. चाँद आज बाकी रातों से काफी बड़ा लग रहा था.
शायद ४० मिनट बीते होंगे मुझे बाहर शहर का नज़ारा अकेले देखते हुए. मैं तो उस नज़ारे को देखते हुए चेतन को भूल ही गया था. पर तभी चेतन की आवाज़ आई, “निशांत, अब अन्दर आ जाओ.” मैंने सोचा शायद चेतन ने कुछ खाने को मंगवाया होगा होटल से, और खाना आने पर वो मुझे खाने के लिए बुला रहा था. मेरा नशा अब उतर रहा था तो भूख भी लगने लगी थी.
मैं बालकनी से अन्दर घर चला आया पर वहां न चेतन था, न खाना और न खाने की खुशबू. “आज तो मैगी से ही काम चलाना पड़ेगा”, मैं सोचने लगा. “निशांत”, एक बार फिर चेतन की आवाज़ आई. आवाज़ उसके कमरे से आ रही थी. सुबह जो हुआ था उसके बाद से उसके कमरे में जाने की इच्छा न थी. पर अब हम दोनों में सुलह हो गयी थी. चेतन ने फिर मुझे आवाज़ लगायी. मैं चेतन के कमरे की ओर बढ़ गया जहाँ दरवाज़ा टिका हुआ था.
मैंने चेतन के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी. मैं पहले कभी ऐसा न करता था. पर आज की बात के बाद मैं थोडा संभल कर रहना चाहता था. “दरवाज़ा खुला है. अब अन्दर आ भी जाओ”, चेतन ने कहा. मैंने दरवाज़ा खोला.
जब मैंने कमरे के अन्दर देखा तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी. चेतन गुलाबी साड़ी पहने मेरी आँखों के सामने खड़ा था. मुझे पता न था कि चेतन सचमुच मेरे लिए लड़की के कपडे पहन कर तैयार हो रहा था. चेतन साड़ी पहने किसी नाज़ुक लड़की की तरह इठला रहा था. भले उसने साड़ी परफेक्ट न पहनी हो, पर किसी कॉलेज की लड़की की तरह ही लग रहा था वो जिसने पहली बार साड़ी पहनी हो. उसमे एक जवान लड़की की तरह ही अल्हड जवानी दिख रही थी. मुझे लडकियां साड़ी में बेहद आकर्षक लगती है. और चेतन ने लड़कियों की तरह मेकअप भी कर रखा था. चेतन लड़की तो नही था, पर उसके सजने सँवारने में कोई कमी भी नही थी.

मैं लड़खड़ाते कदमो के साथ चेतन के पास पहुंचा. मैं उसे देखकर बहुत मुस्कुरा रहा था. और चेतन भी मुस्कुरा रहा था. हम दोनों हलके हलके नशे में थे शायद इसलिए हम दोनों इस बात के लिए तैयार हो गए थे. वरना होश में तो मैं चेतन को लड़की बनने नहीं कहता. चेतन की सुन्दरता, उसके होंठो पर लगी लिपस्टिक, और सेक्सी साड़ी से मैं मोहित हो गया था. मेरी आँखें तो कह रही थी कि सामने एक सुन्दर लड़की खड़ी है पर दिमाग याद दिला रहा था कि ये मेरा दोस्त चेतन है. चेतन के पास पहुच कर मैंने उसकी साड़ी का पल्लू हाथ में पकड़ कर कहा, “यार चेतन तू तो बिलकुल लड़की लग रहा है!”
मैं तो चेतन को उस रूप में देख कर बहुत उत्साहित था. चेतन भी उतना ही उत्साहित था. उसने कहा, “सचमुच निशांत?” मुझे तो कोई संदेह नहीं था. “हाँ यार, यकीन ही नहीं हो रहा कि मेरा दोस्त चेतन खड़ा है यहाँ”, मैंने जवाब दिया.
“निशांत, मेरी एक बात मानोगे?”, चेतन ने किसी लड़की की तरह संकुचाते हुए नज़रे नीची करके कहा. “हाँ क्यों नहीं? क्या बात है?”, मैंने पूछा.
“प्लीज़ तुम मुझे लड़की की तरह ट्रीट करोगे? मुझे अच्छा लगेगा”, चेतन ने कहा. मुझे बात थोड़ी अटपटी सी लगी. अपने दोस्त को लड़की की तरह कैसे ट्रीट करू? पर आँखें तो यही कह रही थी कि सामने एक लड़की है, चेतन नहीं.
“बिलकुल यार..”, मैंने कहा. “यार चेतन.. तू तो बिलकुल माल लड़की लग रहा है! मेरा मतलब है कि आप बहुत खुबसूरत लग रही हो”, मैंने आगे कहा. मैं अब भी उसका साड़ी का पल्लू अपने हाथ में पकड़ा हुआ था. पता नहीं क्यों पर बड़ा अच्छा लग रहा था मुझे. चेतन मेरी ओर देख कर किसी लड़की की तरह हँस दिया. उन लिपस्टिक लगे होंठो और लम्बे बालो के साथ लग ही नहीं रहा था कि चेतन हँस रहा है. मेरी नजरो में तो एक आकर्षक लड़की मेरे साथ हँस रही थी.
“तुम नशे में हो निशांत!”, चेतन ने कहा. “हाँ, और तुम साड़ी में हो!”, मैं पागलो की तरह हँसते हुए बोला. चेतन के हाव भाव अब लड़की की तरह होते जा रहे थे.
“तुम मुझसे मेरे इस रूप से नफरत तो नहीं करते न?”, उसने धीरे से पुछा. “हाय! हुस्न की मल्लिका! तुम जैसी खुबसूरत लड़की से भला कोई कैसे नफरत कर सकता है?”, मैं ड्रामेबाज़ की तरह बोलने लगा.
आगे मैंने क्या किया? वोही जब एक दोस्त अपने दुसरे दोस्त को लड़की के रूप में देखे तो करता. मैं चेतन को मज़ाक में छेड़ने लगा. मैं देखना चाहता था कि चेतन कब तक मेरी छेड़-छाड़ बर्दाश्त कर सकता है. कभी न कभी तो बोलेगा कि बस यार निशांत और परेशान मत कर. मेरा बस वही इरादा था. कितना बदतमीज़ था मैं! चेतन ने अपने जीवन का सबसे बड़ा राज़ मुझे बताया था और मैं उसे तंग करना चाहता था?
चेतन, उस वक़्त किसी लड़की की तरह लजा रहा था, जैसे कोई खुबसूरत लड़की अपनी तारीफ़ सुनकर शर्मा जाती है. उसने बड़ी नजाकत से अपनी साड़ी का पल्लू मेरे हाथो से खींचना चाहा. चेतन अपना पल्लू खींचता रहा, पर मैं छोड़ने को तैयार नहीं था. इसी खींचतान में मैं उसके बेहद करीब आ गया था. इतने करीब कि थोडा भी और करीब आने पर उसके बूब्स मेरे सीने से लग जाते.
“वैसे मैं आपको किस नाम से बुला सकता हूँ हुस्न-परी?”, मैंने पूछा. चेतन ने फिर शर्मा कर नज़रें झुका ली. फिर धीरे से उसने कहा, “चेतना”. उसको शर्माते देख आखिर उसके पल्लू से मैंने उसके सिर को ढँक घूँघट काढ दिया, जैसे बहुएं रखती है. चेतन यानी चेतना ने एक हाथ से उस पल्लू के खुले हिस्से को पकड़ लिया “चेतना, तुम बहुत सुन्दर लड़की हो”, मैंने कहा. चेतन ने तो मेरी बातें सुनकर ख़ुशी के मारे उस घूँघट से अपना चेहरा ढँक लिया. मुझे चेतन को एक औरत की तरह शरमाते देखने में बड़ा अच्छा लग रहा था.
सच कहता हूँ, वो एक बहुत ही सुन्दर पल था. पर मेरे दिमाग में अब भी मसखरी सूझ रही थी. मैंने अपना हाथ उसकी साड़ी से झलकती कमर पर रख दिया. मैंने सोचा कि चेतन मुझे मना करेगा, पर वो कुछ न बोला. मैंने फिर आगे बढ़ कर उसकी नितम्ब पर एक चिकोटी काटी. “आउच”, चेतन ने एक नाज़ुक सी लड़की की तरह आवाज़ निकाली. वो अपनी ही जगह नजाकत में उछल पडा था और उसका पल्लू उसके सिर से गिर चूका था. चेतन ने अपनी आँखें बड़ी कर मेरी ओर देखा जैसे वो नाराज़ हो रहा हो, पर फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान थी. शायद उसे भी ये छेड़-छाड़ अच्छी लग रही थी.
फिर मैंने अपनी उँगलियों से उसकी ब्लाउज में दिखती गर्दन पर छुआ. “मत छेड़ो न निशांत”, चेतन ने मेरा हाथ हटाते हुए बोला. यही तो मैं चाहता था कि चेतन मुझसे बोले कि बस कर यार. मैं उत्साह में आगे बढ़ कर उसकी नंगी पीठ पर हाथ फेरने लगा. “निशांत, प्लीज़ ऐसे न छुओ मुझे.”, चेतन झिझक कर मुझसे दूर होते हुए बोला. “अरे ऐसे कैसे न छुऊँ मेरी जान! अभी तो तुम्हारे ब्लाउज में तुम्हारे स्तन मसलकर तुम्हारी साड़ी उतारकर बहुत कुछ करना है मुझे”, चेतन को छेड़ते हुए थोड़ी बदतमीज़ी में आ गया था मैं.,”एक बार अपने होंठो को चूम तो लेने दो मुझे. आज तो तुमको औरत बना ही दूंगा मैं.”, मैं चेतन का हाथ पकड़ कर खींचने लगा.
“बस बहुत हुआ निशांत! तुम लड़कियों से ऐसे बदतमीज़ी से बात नहीं कर सकते. तुम मेरी भावनाओ को समझ ही नहीं सकते. मैंने गलती कि जो तुम पर विश्वास किया. तुम अभी चले जाओ यहाँ से.”, चेतन ने बहुत ही गुस्से में कहा. चेतन, या चेतना, गुस्से में थी. वो रो पड़ी. गुस्से से ज्यादा वो मेरे बर्ताव से हताश थी.
पर मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा था. चेतन मज़ाक के मूड में नहीं था. उसने ये रूप मज़ाक करने के लिए नहीं धरा था जैसे फिल्मो में दिखाते है. चेतन के लिए यह मज़ाक नहीं उसका अपना सच था. वो दिल से सचमुच चेतना था. पर मेरी भी इतनी बड़ी गलती न थी. क्रॉस-ड्रेसिंग के विषय में जाने मुझे १२ घंटे भी नहीं हुए थे. मैंने चेतन की दोनों बांहों को पकड़ कर उसके चेहरे को देखते हुए कहा, “आई ऍम सॉरी, चेतना. मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था. पर तुम इतनी सुन्दर हो कि यदि मैं ऐसे मज़ाक न करू तो मुझे डर है कि मुझसे कोई सीमा पार न हो जाए. तुम मुझे सचमुच बहुत प्यारी और आकर्षक लग रही हो.” मेरी बात में सच था. चेतन को छूते छूते मेरे मन और तन में कुछ कुछ हो रहा था जिसे अपने बेहूदापन से मैं छुपाने की कोशिश कर रहा था. चेतन का शर्माना, मुस्कुराना, और नजाकत से हिलना, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. मैं चेतन की दोनों बांहों को पकड़ कर उसके सुन्दर चेहरे की ओर देखने लगा. मेरी नज़र में अब उस चेहरे में कहीं भी मेरा गिटारिस्ट दोस्त चेतन नहीं था पर एक शर्माती हुई सुन्दर लड़की थी जो मेरी ओर लाज के मारे देख तक नही पा रही थी.
चेतना मेरी बातें सुनकर पिघल गयी. न जाने वो नशे का असर था, या २३ साल की जवानी का असर, या अब तक कुंवारे होने का असर, या फिर चेतना की सुन्दरता, पर मेरे तन में अब बहुत कुछ हो रहा था. मैंने धीरे धीरे अपने एक हाथ की उँगलियों से चेतना की बांहों पर फेरना शुरू किया. चेतना ने मुझे अब रोका नहीं. अब मैं उसे प्यार से छू रहा था, शायद इसलिए उसने मुझे रोका नहीं. चेतना को पहली बार कोई इस तरह छू रहा था. मेरे स्पर्श से वो अपनी आँखें बंद करके सिहर उठी. मैंने भी कभी किसी लड़की को ऐसे छुआ न था. और उसकी चिकनी नर्म बांहों को छूने का असर मेरे लिंग पर भी हो रहा था.

मेरा दिमाग मुझे आगे बढ़ने से रोक रहा था पर तन-मन तो चेतना की सुन्दरता पर मुग्ध था. मैंने चेतना को पलट कर अपनी बांहों में ले लिया. उसकी पीठ अब मेरे सीने से लग गयी थी. मैं उसके लम्बे बाल अपने चेहरे पर महसूस कर सकता था. उसकी साड़ी और मुलायम त्वचा का स्पर्श पाकर मेरा लिंग और उत्तेजित होने लगा था. फिर मैंने धीरे धीरे अपने दोनों हाथो को उसकी कमर पर फेरना शुरू किया. साड़ी पर हाथ फेरते फेरते मैंने उसकी साड़ी को नाभि के पास से हटाकर उसके पेट को छूना शुरू किया. चेतना तो आँखें बंद करके अपने होश खो रही थी. मेरा एक एक स्पर्श उसके रोम रोम में उसे उकसा रहा था. मेरे तन से लगकर वो अपने एक हाथ से मेरे चेहरे को छूने लगी. उसकी साड़ी में लिपटी हुई नितम्ब (hips) मेरे तन के निचले हिस्से से लग कर मचल रही थी. अपनी नितम्ब से वह मेरे लिंग को दबा कर सहलाने लगी. मेरा पुरुषत्व भी अब कठोर होकर उसकी नितम्ब पर दस्तक दे रहा था. हम दोनों अब कुछ बोल न रहे थे. अब बस हमारे तन ही मिलकर एक दुसरे को स्पर्श करते हुए बातें कर रहे थे. चेतना की नाभि के पास हाथ लगते हुए मैं उसे और जोरो से पकड़ कर अपने और करीब ले आया. इतने में ही मेरा लिंग और उसकी नितम्ब दोनों ही बेहद उतावले हो चुके थे. बीच में यदि उसकी साड़ी न होती तो अब तक मेरा लिंग उसके तन में समा चूका होता. पर उस उतावलेपन का भी अपना ही मज़ा था. मैं खुद मचल रहा था पर चेतना को तरसाने में मुझे और मज़ा आ रहा था.
मैंने फिर अपने हाथ उसके कंधे पर फेरना शुरू किया, और फिर ब्लाउज से झलकती उसकी पीठ पर. उसके बालो को हटाकर मैंने उसकी गर्दन को चूम लिया. मेरे उस चुम्बन से चेतना तो जैसे इस वक़्त अपना होश ही खो चुकी थी. मदहोशी में मुंह खोल कर उसने गहरी लम्बी सांसें लेना शुरू कर दी थी और अपनी नितम्ब निचे मेरे लिंग से छूते हुए लहराने लगी. और फिर धीरे धीरे मैंने उसकी पीठ को चूमना शुरू कर दिया. उसके बालो को हटाकर जब मैं उसकी गर्दन को चूमता तो वो और तेज़ी से अपनी नितम्ब लहराने लगती. और जब मैं उसके नाज़ुक कानो को चूमता तो मेरी गहरी साँसों को अनुभव करके वो सिहर जाती. उसकी आँहें और तेज़ हो जाती. मदहोशी में अपनी आँखें बंद कर के चेतना बस मेरी बांहों में कैद हो जाना चाहती थी. उसने इशारों से मुझे अपनी बांहों से उसे जोर से पकड़ लेने को कहा. और मैंने भी वही किया.
मैं अब बहुत कामुक हो गया था, और चेतना भी. सालो से हमारे अन्दर लगी तन की आग अब भड़क उठी थी. मैंने जोश में उसे पलट कर जोर से कमर पर पकड़ कर अपनी बांहों में खिंच लिया. अब चेतना का चेहरा बिलकुल मेरे चेहरे के सामने था. उसके होंठ मेरे होंठो के पास थे. पर इस वक़्त कुछ और भी था जो मेरा ध्यान खिंच रहा था. चेतना की कमर के निचे साड़ी में उसका लिंग भी तन गया था जो मेरे लिंग से टकरा रहा था. मैं समलैंगिक नहीं था. मेरे लिए उसका लिंग आकर्षक नहीं होने चाहिए था. पर नशा था या जवानी, मुझे पता नहीं. मैं तो अपनी आँखों के सामने एक सुन्दर लड़की के रसीले होंठ देख रहा था. मैं देख रहा था कि वो लड़की कितनी मचल रही है मुझसे आलिंगन करके. कोई और समय होता तो शायद मैं उस वक़्त वहां चेतना को छोड़ कर चला आता. पर उस वक़्त चेतना को छोड़ना मेरे वश में नहीं था. मैं एक बार फिर चेतना की गर्दन को चूमने लगा. उसने आँखें बंद करके फिर से आन्हें भरनी शुरू कर दी थी. वो अपने हाथो से मेरे सर पर मेरे बालों को छू रही थी. कभी वो मुझे कमर पर पकड़ कर जोरो से खींचने लगती जैसे वो मुझे अपने अन्दर समा लेना चाहती हो.
मैं एक पल रूककर उसकी आँखों में देखने लगा. और फिर उसके लिपस्टिक लगे आकर्षक होंठो को. फिर मैं अपने होंठ उसके होंठो के बेहद करीब ले गया. चेतना की सांसें खूब तेज़ हो गई थी. मैं उसकी धड़कने महसूस कर सकता था. उसकी आँखों में होंठो को चूमने की आतुरता दिख रही थी. और उसके होंठ मेरे होंठो का स्पर्श पाने के लिए काँप रहे थे. “अब और रुका नहीं जाता निशांत”, चेतना के पहले शब्द जो उसने धीमी स्त्री की आवाज़ में बोले. मैं कुछ सोच पाता उसके पहले ही उसने मेरे होंठो को अपने होंठो में ले लिया. हम दोनों एक दुसरे के होंठो का रस लेने लगे. चेतना तो जिस तरह चूस रही थी उससे उसकी मदहोशी पता चल रही थी.
मेरे जीवन का पहला किस था वो! और सबसे यादगार भी. सचमुच बहुत हॉट था. चेतना न जाने कितनी देर मेरे होंठो का रस लेती रही. हम दोनों मदहोश से थे. पर चेतना उससे संतुष्ट होने वाली नहीं थी! उसने मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर लपलपानी शुरू कर दी. मैं उसकी नर्म मुलायम जीभ को चूसने लगा. मदहोशी में हम दोनों एक दुसरे के अंग अंग को छूने लगे. साड़ी में चेतना को हर जगह छूना बड़ा आसान था. मुझे तो उसके कपडे भी उतारने की ज़रुरत न लगी. उसके अंग तो उस नर्म मुलायम साड़ी में भी छुए जा सकते थे. मेरे एक एक स्पर्श से चेतना और मचल जाती थी. चेतना भी मेरे शर्ट के बटन खोल कर मुझे छूने लगी. मेरे पेंट की बटन और चैन खोलकर उसने मेरे लिंग को छूना शुरू कर दिया था. चेतना के नाज़ुक हाथो का स्पर्श पाकर मेरा लिंग और जोर से तन गया. हम दोनों के स्पर्श के बीच किस करना बेहद हॉट लग रहा था. यदि किस इतना हॉट हो सकता है तो सेक्स कितना अद्भुत लगेगा, शायद हम दोनों यही सोच रहे थे. पर हम दोनों ने कभी सेक्स नहीं किया था. किसी लड़की के साथ पहली बार सेक्स करने के बारे में तो मैंने पहले पढ़ रखा था, पर चेतना तो ख़ास लड़की थी. मुझे कोई अंदाज़ा न था कि उसके साथ सेक्स कैसे होगा. पर जब दो जिस्म इस तरह से एक होने को तड़प रहे हो तो उन्हें भला मिलने से कौन रोक सकता था?
मैं चुमते हुए चेतना को बिस्तर पर ले गया. उसे बैठा कर मैंने अपने होंठो को उसके होंठो से दूर कर उससे थोडा दूर आकर खड़े हो गया. चेतना अब भी आँखें बंद की हुई थी. उसके होंठ अभी भी जैसे आँखें बंद करके उस चुम्बन को महसूस कर रहे थे. वो बिस्तर पर आँखें बंद किये बिलकुल स्थिर थी, जैसे मेरा इंतज़ार कर रही हो. मैं उसके पूरे तन बदन को देखना चाहता था, उसे तरसाना चाहता था. आँखें खोल कर उसने मेरी ओर देखा. उसकी आँखें बता रही थी कि वो मेरे स्पर्श के लिए तड़प रही है. मुझे बुलाने के लिए वो अपनी साड़ी को धीरे धीरे सरकाते हुए अपनी चिकनी टांगो को दिखाने लगी जैसे वो मुझसे कह रही हो, “आ जाओ अब भी मेरे बदन में बहुत कुछ है तुम्हे लुभाने के लिए, आओ अपने स्पर्श से मेरे तन की आग बुझा दो” जैसे जंग छिड़ी हुई थी हम दोनों में कि कौन किसे ज्यादा तडपा सकता है? और इस जंग में किसी की हार नहीं थी! मैं उसकी कमर के निचे उसकी साड़ी में उसके लिंग के उभार को अब साफ़ देख सकता था. उसकी साड़ी की चुन्नट से उसका लिंग बाहर आना चाहता था पर चेतना ने उसे अपने पल्लू से ढँक लिया. कमर के नीचे चाहे चेतना का जो भी लिंग रहा हो पर उसका तन बदन मुझे लुभा रहा था, ललचा रहा था कि मैं उसे छू सकता हूँ. चेतना मेरी होने को आतुर थी. और मैं भी उसे अपना बनाने को बेसब्र था. मैं बिस्तर पर उसके बगल में आकर बैठ गया. हम दोनों के चेहरे फिर एक दुसरे के करीब थे. उसकी जांघो पर उसकी साड़ी को सरकाते हुए मैंने उसके एक हाथ को पकड़ा और अपने लिंग तक ले गया. मैंने अपने इरादे चेतना को जता दिए थे और वो भी समझ चुकी थी उसे क्या करना है. उसने मेरे लिंग को सहलाना शुरू किया. और फिर अपनी नाक से मेरी नाक को छुआ. चेतना ने आँखें बंद करके अपने होंठो को आगे बढाकर मेरे होंठो को छुआ. पर इससे पहले की मैं उसे वापस चूम सकता, उसने अपने होंठो को तुरंत मुझसे दूर कर दिया. चेतना मुझे और तडपाना चाहती थी. पर मेरी गर्म साँसों में और मेरे आगोश में आकर मुझे तड़पाना उसके बस में न था. मैंने भी उसके होंठो को अपने दांतों से कान्टकर उसे और तरसाना चाहा. अब वो खुद को संभाल नहीं पायी और जोर से मेरे होंठो को अपने रसीले होंठो से चूसने लगी.

चुमते चुमते हम दोनों बिस्तर पर लेट गए थे. उसका एक हाथ मेरे लिंग को सहला रहा था और मेरे हाथ उसकी साड़ी को धीरे धीरे ऊपर सरका रहे थे. उसकी टाँगे बिलकुल चिकनी थी जैसे अभी अभी वैक्स की हो. उसकी चिकनी टांगो पर हाथ फेरते हुए मैं उसकी जांघो तक ले गया. फिर उसकी नितम्ब को मैंने जैसे ही छूकर दबाया वो और मचल उठी. उसके चेहरे पर एक बहुत ही मादक मुस्कान थी. मैं फिर उसकी जांघो को छूते हुए उसकी दोनों जांघो के बीच में अपना हाथ फेरने लगा. मुझे अंदाजा न था कि वहां स्पर्श उसे इतना मदहोश कर देगा. वो जोर जोर से आँहें भरते हुए मुझे जोरो से चूमने लगी. मैंने धीरे से उसकी पेंटी को छूकर महसूस किया. मैंने अब तक उसकी पेंटी को देखा नहीं था पर यकिनन ही बहुत हलकी और छोटी सी सेक्सी पेंटी थी वो. मैंने उसकी पेंटी को उतारना शुरू कर दिया. इस दौरान मैं ध्यान रख रहा था कि मैं उसके लिंग को छू न लूं. घुटनों तक पेंटी के सरकने के बाद आगे चेतना ने अपनी पेंटी खुद ही उतार दी. हम दोनों के जोशीले आलिंगन से उसकी साड़ी की चुन्नटे अब बिखर रही थी. और हम दोनों मदहोश हुए जा रहे थे.
चेतना अब बिलकुल बेकाबू हो गयी थी. उसने मेरे शर्ट को खोल कर मेरे सीने पर तेज़ी से चूमना शुरू कर दिया. वो मेरे पुरुष निप्पलो को चूस कर काट रही थी. मुझे भी बहुत मीठा दर्द हो रहा था. मेरा पहला अनुभव था यह. और सचमुच मुझे उकसा रहा था. चेतना मेरे उत्साह को देख कर और जोरो से मेरे निप्पलो को चूसने लगी और बीच बीच में कांटने लगी. मेरा तन जोश में अकड़ा जा रहा था. धीरे धीरे चेतना मेरे सीने को चुमते हुए नीचे जाने लगी. उसने मेरी पेंट उतार दी थी. उसकी चूड़ियों की खनक और चुम्बन दोनों ताल में मिलकर मुझे तडपाये जा रहे थे. उसके रेशमी बाल का स्पर्श मेरे रोम रोम को आनंदित कर रहा था. उसकी साड़ी का स्पर्श मेरे लिंग को और कठोर कर रहा था. चेतना के होंठ अब मेरे लिंग के पास आ गए थे. मेरे तने हुए लिंग को चेतना अपनी साड़ी के पारदर्शी पल्लू से ढँक कर देखने लगी. उसे छूकर हिलाकर देखने लगी. मैं नज़रे झुकाकर चेतना को मेरे लिंग के साथ खेलते हुए देख रहा था. पर मेरी तड़प बढती जा रही थी. मेरे लिंग को हिलाते हुए उसकी अनगिनत चूड़ियों की खनक मुझे बहुत लुभावनी लग रही थी. आखिर में चेतना रुक गयी. उसने अपना पल्लू हटा दिया था. अब चेतना और मेरे लिंग के बीच कुछ न था. वो रुक कर उसे निहारती रही. मुझसे अब रुका नहीं जा रहा था. मेरा लिंग आतुर था उसके स्पर्श के लिए. और सहसा ही चेतना ने अपनी जीभ से मेरे लिंग की पूरी लम्बाई को छुआ. उन्माद में मेरा पूरा तन अकड़ गया. उसकी जीभ ने जैसे मेरे पूरे शरीर में करंट लगा दिया था. इतना आनंद मैंने कभी महसूस नहीं किया था. पर फिर जैसे ही चेतना ने मेरे लिंग को अपने मुंह में लेकर अपने होंठो से पकड़ लिया, मैं आनंद की नयी सीमा महसूस कर रहा था. चेतना अपने होंठो से धीरे धीरे मेरे लिंग को चूसने लगी और उसको धीरे धीरे अपने मुंह में लेने लगी. उफ्फ… उसका असर जो मुझ पर हुआ, मेरी तो मुट्ठियाँ भींच गयी. पर सेक्स का यह मेरा पहला अनुभव था. मैं अपने जोश को अपने भीतर ज्यादा देर तक रोक कर नहीं रख सका. मैं संतुष्टि से शांत हो गया था. पर मेरी धड़कने अब भी तेज़ थी. मैं मन ही मन ख़ुश हो रहा था. आखिर अब मैं कुंवारा नहीं रह गया था!

चेतना भी उठ कर बैठ गयी. उसने मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए अपनी साड़ी की चुन्नटे ठीक की. अपने ब्लाउज को अपने साड़ी के आँचल से ढंकते हुए एक शरारती मुस्कान देती हुई मेरी बगल में आकर मेरी बांहों में आकर सो गयी. उसकी आँखों में भी संतोष था. उसने अपना काम पूरा कर दिया था. हमने एक बार फिर एक दुसरे को चूमा और एक दुसरे की बांहों में समा गए. थोड़ी देर बाद चेतना पलटकर अपनी पीठ मेरे सीने से लगा कर सोने लगी. उसका सिर मेरी बांह पर था. मेरा हाथ पकड़ कर, मेरे सीने से लगकर जैसे वो प्यार महसूस कर रही थी. मैं भी उसके बदन से कसकर लग उसकी कमर पर हाथ रख कर सो गया. हमने एक दुसरे से कुछ कहा नहीं. पर चेतना को अपनी बांहों में पाकर मुझे बहुत ख़ुशी थी. चेतना ने मुझे आज आदमी होने का सुख दिया था.
हमें लगा था कि शायद इसके बाद हम सो जायेंगे. पर जवानी में रात इतनी जल्दी ख़त्म नहीं होती. मैं थोड़ी देर बाद फिर चेतना की पीठ को चूमने लगा. उस ब्लाउज में उसकी नग्न पीठ मुझे बड़ी आकर्षक लग रही थी. मेरा एक हाथ उसकी कमर और जांघो को छू रहा था. मैं उसकी जांघो पर लिपटी साड़ी से उसे छेड़ने की कोशिश करने लगा. और जल्दी ही मुझे एहसास हो गया था कि मेरी कोशिश सफल रही. चेतना एक बार फिर मेरी बांहों में आँहें भरने लगी. उसके कुल्हे फिर लहराने लगे और मेरे लिंग पर दस्तक देने लगे. उसका लिंग भी तन गया था. उसकी कमर पर हाथ फेरते हुए आखिर उसकी साड़ी पर आये उभार को मैंने छू ही लिया. पता नहीं क्यों पर उस उभार को पकड़ कर छूने में मुझे कुछ अजीब नहीं लगा. मैं साड़ी पर से उसे पकड़ कर अपने हाथो को उसकी लिंग की लम्बाई पर ऊपर निचे कर चेतना को और तडपाने लगा. चेतना ने जल्दी ही मेरा हाथ पकड़ कर वहां से हटा दिया. उसने धीमी आवाज़ में मुझसे कहा, “रहने दो न निशांत. प्लीज़ वहां मत छेड़ो मुझे, मेरी साड़ी में दाग लग जाएगा.”
उसके बाद मैंने चेतना के लिंग को उस रात दोबारा नहीं छुआ पर उस चांदनी रात को हम दोनों की आँखों से नींद गायब थी. और पूरी रात हम एक दुसरे को प्रेम करते रहे, एक दुसरे को छूकर महसूस करते रहे. और न जाने कैसे आलिंगन करते करते सुबह भी हो गयी थी.
आज सालो बाद हवाईजहाज में बैठ कर भी वो रात मुझे ऐसे याद आ रही थी जैसे कल ही की बात हो. उस रात की याद भले ही बेहद सुहानी हो, पर वो रात मेरी और चेतन की दोस्ती की अंत की शुरुआत थी. और जल्दी ही चेतना मेरे जीवन का अहम हिस्सा बनने वाली थी. यह भी मेरे जीवन का अजीब इत्तेफाक था कि चेतन की पर्सनालिटी को देख कर हमारे दोस्त कहते थे कि चेतन को मुझसे पहले गर्लफ्रेंड मिलेगी. चेतन को तो कोई नहीं मिली, पर मुझे चेतना पहले मिल गयी थी.
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क्रमश:
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