ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग ८: सुलह
लंबे इंतज़ार के बाद ११,००० शब्दों से अधिक का यह भाग लेकर मैं आपके सामने उपस्थित हूँ। इस भाग मे जहां संजु को नई परेशानी का सामना करना पड़ेगा, वहीं उसकी मुलाकात ऋतु से होने वाली है। इस भाग के अंतिम ५००० शब्द मैंने बहुत दिल से लिखने की कोशिश की है। उम्मीद करती हूँ कि संजु और ऋतु की ये मुलाकात आप सभी को पसंद आएगी! – श्रुति सिन्हा
जब संजु की सुबह सुबह आँख खुली, तब तक सूरज चढ़ आया था। आज संडे था इसलिए उसकी माँ ने भी उसे जगाया नहीं था। कम से कम एक दिन संजु चैन की नींद के बाद उठ सकता था। उसने बिस्तर पर ही अंगड़ाई ली। नाइटी पहने हुए संजु की अंगड़ाई भी बड़ी लुभावनी थी। संजु को भी नाइटी पहनना पसंद था। उसकी कोमलता उसके कोमल अंगों के लिए बिल्कुल सही थी। क्योंकि अपनी माँ के कहे अनुसार संजु बिना ब्रा पहने सोया करता था, इसलिए उसके कोमल स्तनों के लिए उसकी नाइटी के कपड़े की तरह ही कुछ सॉफ्ट पहनना उचित था। उठकर संजु ने खिड़की के बाहर देखा। संडे का दिन मतलब स्कूल नहीं जाना यानि की आज उसे स्कूल मे अपनी टाइट स्पोर्ट्स ब्रा पहनकर कहीं जाने की जरूरत नहीं थी। वरना रोज सुबह सुबह नहाते ही उसका सबसे पहला काम स्पोर्ट्स ब्रा पहनना होता था। उसका उसमे एक घुटन सी महसूस होती थी। न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि एक मानसिक घुटन भी थी वो। कम से कम आज उसे कोई चिंता नहीं थी, इसलिए उसके चेहरे पर सुबह सुबह एक संतुष्टि का भाव था।
उठकर सबसे पहले वह बाथरूम की ओर बढ़ा। बिना ब्रा के चलते हुए उसके स्तन हिल उठते, इस चीज का तो वो आदि हो चुका था। बाथरूम मे ब्रश करने के बाद संजु नाइटी पहने हुए ही नीचे किचन मे अपनी माँ के पास जाना चाहता था। किचन से सुबह सुबह नाश्ता बनने की खुशबू जो आ रही थी। पर संजु इतना तो जानता था कि बिना ब्रा पहने इस तरह घूमना भी ठीक नहीं है। इसलिए उसने अलमारी से एक ब्रा निकाली और नाइटी उतारकर उस ब्रा को पहनने लगा। इस ब्रा को वो थोड़ा कम ही पहनता था क्योंकि पीछले कुछ समय से उसे इसमे कम्फर्ट थोड़ा कम लगता था। “स्पोर्ट्स ब्रा की घुटन से तो बेहतर ही है।”, संजु ने मन ही मन सोचा और ब्रा को पहनकर ऊपर से फिर अपनी नाइटी पहन ली।
नीचे जाने के लिए सीढ़ी से उतरते वक्त अब उसके स्तन हिल नहीं रहे थे क्योंकि अब उन्हे उसकी ब्रा ने संभाला हुआ था। जब धीरे धीरे चलते हुए वो किचन पहुंचा, वहाँ उसने देखा कि माँ तो नहा धोकर तैयार थी और नाश्ता बना रही थी। अपनी प्यारी माँ को देखकर उसके मन मे विचार आया कि उसके पास कम से कम संडे तो होता है देर से उठने के लिए, पर उसकी माँ की तो संडे को भी छुट्टी नहीं मिलती। अपनी माँ के प्रति प्यार अनुभव करते हुए संजु अपनी माँ की पीठ से लिपट गया। “गुड मॉर्निंग, माँ”, संजु ने प्यार से अपनी माँ से कहा।
“उठ गई बेटा। ब्रश हो गया तेरा?”
“हाँ, माँ।”
“चल ठीक है। अब दोनों माँ बेटी साथ में नाश्ता कर लेती है। तेरी पसंद के पराठे बनाए है।”, माँ ने प्यार से कहा।
“हाँ, माँ। बड़ी ज़ोरों की भूख लग रही है।”, संजु ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा। उसकी नाइटी उसके चिकने पेट पर उसके हाथों के साथ फिसलने लगी। लड़कियों के कपड़ों मे भी कुछ न कुछ खास होता है जो कोई लड़का जान भी नहीं सकता। शायद संजु भाग्यशाली है जो उसे यह सब अनुभव करने का मौका मिल। यकीनन ही यदि किसी लड़के ने नाइटी पहनकर कभी एक बार उसके कम्फर्ट को महसूस कर लिया तो वो सोते जागते कुछ और पहनने के बारे मे सोच ही नहीं सकेगा।
जब तक संजु की माँ पराठे के साथ चटनी और दही वगेरह इकट्ठा कर रही थी, तब तक संजु ने भी टेबल पर प्लेट कटोरी इत्यादि जमा दिए थे और फिर खुद एक कुर्सी खोलकर उसमे बैठ गया था। यूं तो नाइटी मे बड़ा खुलापन महसूस होता है, फिर भी पैरों तक ढँकी हुई होने की वजह से नाइटी मे ठंड के दिनों मे भी एक गर्माहट महसूस होती है। संजु को भी ऐसा लग रहा था। उसने अपनी जांघों पर हाथ फेरकर अपनी नाइटी को सुधारा और चहकती हुई चिड़िया की तरह माँ की ओर देखकर नाश्ते का इंतज़ार करने लगा।
माँ ने संजु की प्लेट पर एक पराठा रखा और खुद भी बगल मे बैठ गई। संजु ने ज्योंही पराठे को खाने के लिए हाथ उठाया उसे उसकी ब्रा मे कुछ प्रॉब्लम महसूस होने लगी। उसने अपने एक हाथ से ब्रा को थोड़ा एडजस्ट किया और पराठा खाने लगा।
माँ ने संजु को अपनी ब्रा को एडजस्ट करते देखा मगर उन्होंने उस बारे मे कुछ सोचा नहीं। मगर जब थोड़ी देर बाद संजु को उन्होंने फिर अपनी ब्रा के साथ संघर्ष करते हुए देखा तो उन्होंने आखिर संजु से पूछ ही लिया, “क्या बात है संजु? कोई प्रॉब्लम है वहाँ? तू बार बार अपनी ब्रा को ठीक कर रही है”
“माँ, पता नहीं क्यों पीछले कुछ हफ्तों से मेरी ये वाली ब्रा मुझे चुभ रही है।”, संजु ने जवाब दिया। उसने भी इस बारे मे ज्यादा सोचा नहीं था कि सिर्फ इकलौती यही ब्रा उसे क्यों परेशान कर रही है।
“हो सकता है कि ब्रा छोटी हो गई हो।”, माँ ने कहा।
“आपका मतलब कि ये धोने से सिकुड़ गई है? क्योंकि मेरी दूसरी किसी भी ब्रा मे मुझे चुभन महसूस नहीं होती।”, संजु ने पराठा खाते हुए कहा।
थोड़ा अजीब सा रिश्ता था ये माँ बेटे के बीच का। दोनों ब्रा के बारे मे इस तरह बातें कर रहे थे जैसे कि ये सामान्य सी बात हो। वैसे यह बात सामान्य ही होनी चाहिए आखिर संजु डेली ब्रा जो पहनता था।
लेकिन जब संजु ने अपनी परेशानी बताई तो माँ के दिमाग मे अब नई चिंता ने घर कर लिया था। सच तो ये था कि संजु की माँ ने संजु के लिए सभी ब्रा एक ही साइज़ की खरीदी थी। क्योंकि संजु के लिए ब्रा पहनना नया नया अनुभव था उन्होंने अधिकांश ब्रा ऐसी ली थी जिसमे सपोर्ट के लिए कोई वायर न हो जैसा अकसर बड़ी औरतों की ब्रा मे होता है। पर फिर भी उन्होंने एक ब्रा वायर सपोर्ट वाली ली थी यह देखने के लिए कि संजु उसमे कम्फर्ट महसूस करता है या नहीं। अब तक तो संजु को कोई शिकायत भी नहीं थी। मगर आज जो परेशानी संजु बता रहा है उसका एक ही मतलब हो सकता था। ऐसी ब्रा का वायर स्तनों पर तभी चुभता है जब स्तन ब्रा के साइज़ से बड़े हो जाते है। संजु के स्तनों के बड़े होने का मतलब यह था कि अब बस कुछ समय की बात है जब संजु के लिए उसके स्तनों को छिपाना और मुश्किल हो जाएगा। संजु की अन्य ब्रा मे क्योंकि वायर नहीं था इसलिए उसे चुभन नहीं होती थी मगर उसे उनमे टाइट तो महसूस होता ही होगा।
सुबह सुबह संजु की माँ संजु को आने वाली परेशानी के बारे मे बताना नहीं चाहती थी इसलिए वो बस मुसकुराती हुई संजु की ओर प्यार से देखती रही। और संजु भी अपनी माँ की प्यार भारी नजर को देख खुश था। पर उस नज़रों मे उसकी माँ उसके स्तनों को देखकर समझने की कोशिश कर रही थी कि क्या वास्तव मे वो बड़े हो गए थे या फिर ये सिर्फ उनका अंदेशा था। क्योंकि संजु की नाइटी जरा ढीली सी थी, इसलिए उन्हे कुछ पता नहीं चल रहा था। लेकिन अपना नाश्ता खत्म करने के बाद संजु जैसे ही अपनी प्लेट को धोने की जगह पर रखने के लिए उठा, उस पल मे थोड़ी देर के लिए उसकी नाइटी तनकर उसके स्तनों पर चिपक सी गई थी। उसने मुस्कुराकर अपनी नाइटी को जरा झटका और चलकर किचन के बेसिन की ओर चल दिया। हालांकि यह सिर्फ कुछ सेकंड की बात थी, पर इतना समय काफी था संजु की माँ को देखकर समझने मे कि संजु के स्तन का उभार उसकी ब्रा के कप की लाइन से बाहर निकल रहा था।
“माँ, तुम अपनी प्लेट भी दे दो। मैं आज बर्तन धो देती हूँ।”, संजु ने किचन मे बेसिन के पास खड़े खड़े कहा।
“नहीं, तू रहने दे बेटा। तू ऐसा कर … तू ऊपर जाकर अपने कमरे से तेल की शीशी लेकर आजा। आज तेरे बालों पर तेल लगा देती हूँ। फिर तू उसके बाद नहाते वक्त शैम्पू कर लेना।”, माँ ने संजु से कहा। उन्होंने संजु को जरा भी एहसास न होने दिया कि उनके मन मे अब एक नई चिंता है।
माँ की बात सुनकर संजु अपनी माँ के पास आकर उनको गले से लगा लिया। माँ तो अब भी डाइनिंग टेबल पर बैठी हुई थी और संजु ने जब उन्हे पीछे से गले लगाया तो संजु के स्तन उसकी माँ की बाजू से दब गए। सच मे संजु के स्तन बड़े हो रहे थे। ये उसकी माँ से छिपा नहीं था। फिर भी उन्होंने प्यार से संजु के चेहरे पर हाथ फेरा और संजु अपने कमरे मे तेल की शीशी लेने चला गया।
“ओह माँ, तुम जब भी मेरे बालों मे तेल लगाती हूँ, ऐसा लगता है जैसे मैं स्वर्ग पहुच गई हूँ। इतना आराम मिलता है मुझे।”, संजु ने बंद आँखों के साथ अपनी माँ से कहा। संजु इस वक्त अपनी माँ के पैरों से टिककर फर्श पर दरी बिछाकर बैठा हुआ था। उसने अभी भी नाइटी पहना हुआ था। नहाने के बाद वैसे भी उसे कपड़े बदलने ही थे। वहीं माँ उसके सर पर हाथ फेरते हुए बड़े प्यार से तेल लगा रही थी।
“तेरे इतने सुंदर लंबे घने बालों मे तो तेल लगाना मुझे भी बहुत खुशी देता है। मेरे न सही, मेरी बेटी के बाल तो इतने घने है।”, माँ ने कहा।
“माँ, तुम कुछ भी कहती रहती हो। तुम्हारे भी तो इतने खूबसूरत बाल है। अभी तो तुम्हारे बालों की लंबाई के आधे भी नहीं है मेरे बाल। देखना तुम … मैं भी तुम्हारी तरह इतने लंबे बाल करूंगी कि एक दिन मेरे घुटनों तक आएंगे।”, संजु हँसते हुए बोला। सच मे संजु को इस तरह खिलखिलाते और एक लड़की के रूप मे खुश देखना एक सुखद अनुभव था। कोई भी उसे इस वक्त देख ले तो वो संजु को यही हिदायत देता कि संजु को लड़की ही रहना चाहिए, आखिर इतना खुश जो है वो। मगर यह सब इतना आसान भी नहीं होता है।
“ठीक है। तो बढ़ा लेना अपने बाल। तुझे मना कौन कर रहा है? मुझे भी अच्छा लगेगा कि मेरी बेटी के बाल लंबे और घने हो!”, माँ ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा। संजु भी एक प्यारी बेटी की तरह मुस्कुरा दिया।
“बेटा तुझसे एक बात कहूँ?”, माँ ने कहा।
“हाँ कहो न माँ।”
“बेटा, मुझे लगता है कि तेरी ब्रा छोटी नहीं हुई है।”, माँ ने संभलकर अपने शब्दों का चयन किया, “मुझे लगता है कि तेरी ब्रा अब तुझे छोटी पड़ रही है।”
“तुम क्या कहना चाह रही हो माँ?”, संजु ने बेखबरी के साथ कहा। उसे तो अभी माँ के हाथों तेल लगवाने मे मज़ा आ रहा था। उसे पता भी नहीं था कि ये कितनी गंभीर बात हो रही है।
“बेटा तू अभी जवान हो रही है। और उसी के साथ साथ तेरा शरीर भी बढ़ रहा है।”, माँ सीधे सीधे नहीं कह पा रही थी जो वो कहना चाहती थी।
“मतलब?”, संजु तो अभी भी अपनी खुशी मे मस्त था। उसके पैर उसकी नाइटी से बाहर निकल रहे थे सो उसने अपने पैरों को नाइटी से ढँकते हुए माँ से कहा।
“मतलब यही बेटा कि तेरे स्तनों का आकार भी बढ़ रहा है। और हो सकता है कि तुझे जल्दी ही बड़ी ब्रा पहननी पड़ेगी।”, माँ ने आखिर संजु से कह ही दिया।
चिंतित होने की बजाए संजु के मन मे तो यह बात सुनकर खुशी होने लगी। क्योंकि वह जब भी खुद को आईने मे देखता था तो उसे यही लगता था कि काश उसके स्तन ऋतु की तरह बड़े होते। कितना सुंदर लगेगा वो और बड़े स्तनों के साथ!
“ठीक है न माँ। तो और बड़ी साइज़ की ब्रा ले लेंगे। उसमे क्या प्रॉब्लम है?”, संजु ने कहा। बचपन भी कभी कभी कितना नादान होता है ये संजु की माँ देख रही थी।
“वो तो ठीक है बेटा। मगर फिर ऐसा हो सकता है कि तेरी स्पोर्ट्स ब्रा तेरे लिए आरामदायक न रह जाए। और जब तू स्कूल जाएगी तब शायद … तब शायद …”, माँ से आगे कहा न गया। और अचानक ही संजु को समझ आया कि माँ क्या कहना चाह रही है। स्कूल मे किसी को भी उसके स्तनों के बारे मे पता चल गया तो सभी लड़के लड़कियाँ न जाने उसका कितना मज़ाक उड़ाएंगे। उसे ऐसा लगा जैसे उसके पैरों नीचे से जमीन खिसक गई हो।
“बेटा, तू मेरी एक बात मानेगी?”, माँ ने संजु से पूछा। मगर संजु ने कोई जवाब नहीं दिया तो माँ ने आगे कहा, “हो सकता है कि हमे इस बारे मे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। और हो सकता है कि हमे इस बारे मे कुछ करना भी न पड़े। वैसे भी इस क्लास मे तुझे बस ३ महीने और जाना है। फिर तो गर्मी की छुट्टियाँ भी आ जाएगी। तब हमारे पास सोचने के लिए बहुत समय रहेगा। लेकिन यदि कोई ऐसी स्थिति आई तो क्या तू मेरी बेटी बनकर स्कूल जाएगी?”
“माँ! ये क्या कह रही हो।”, संजु ने गुस्से मे कहा।
“बेटा, हो सकता है कि इसकी जरूरत न पड़े। पर यदि तेरा शरीर इसी तरह बढ़ता रहा तो तु स्पोर्ट्स ब्रा से अपने तन को छिपा नहीं पाएगी।”
“माँ, ऐसा कुछ हुआ तो मैं अपनी रेगुलर ब्रा पहनकर स्कूल चली जाउनगी। मगर मैं लड़की बनकर स्कूल जाऊँगी तो लोग मेरा कितना मज़ाक उड़ाएंगे।”
“मगर बेटा, पर फिर इस शरीर को कैसे छिपाएगी तू?”
“माँ, जरूरत पड़ी तो मैं सलवार सूट या स्कर्ट भी पहन लूँगी। मगर मैं लड़की बनकर स्कूल नहीं जाऊँगी”, संजु को अपनी ही बातों के विरोधाभास के बारे मे सोचकर रोना आ गया और वो अपने घुटनों के बीच सर रखकर सिसकने लगा। और अपने हाथों से अपनी नाइटी को सीने पर पकड़ कर अपने स्तनों को छिपाने की कोशिश करने लगा।
“बेटा …”, माँ ने कुछ देर रुककर संजु को समझाया, “तू घबराती क्यों है? अभी तो बहुत महीने बाकी है इस बात को तय करने मे। हो सकता है कि हमे ऐसा कुछ करना न पड़े।” माँ ने संजु के सर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाया।
“माँ तुम तो कहती थी कि जब सही समय आएगा तब मैं अपने जीवन के बारे मे खुद तय कर सकूँगी। और तुम मुझे अब कह रही हो कि मैं लड़की बनकर स्कूल जाऊँ? चाहे मेरी मर्जी हो या न हो!”, लड़की की तरह बात करते हुए भी संजु को बाहर की दुनिया मे लड़की बनकर जाना उसे अंदर ही अंदर डरा रहा था।
“बेटा, मर्जी तो तेरी ही होगी। भले तुझे कुछ समय लड़की बनकर स्कूल जाना पड़े पर तेरे ट्रीट्मन्ट के बाद, क्या पता कॉलेज मे तू फिर से लड़का बनकर अपनी मर्जी से जी सके?”
“माँ! कभी लड़का, कभी लड़की, और फिर लड़का, सारी उम्र क्या मैं अपना इसी तरह मज़ाक उड़वाती रहूँगी?”, संजु की बात सही थी।
रोती हुई संजु को आखिर माँ ने गले लगाया और बोली, “आई एम सॉरी बेटा, जो मैं तुझे इस परेशानी के बारे मे बताने लगी। शायद मैंने समय से पहले ही चिंता व्यक्त कर दी। कम से कम अभी तो हमे चिंतित होने की जरूरत नहीं है। चल अब मेरी अच्छी बेटी की तरह जाकर अपने बालों को शैम्पू करके तैयार हो जा। मैं भी रेडी होती हूँ, मुझे भी मार्केट जाना है किराना और दूसरा सामान लेने के लिए।”
माँ का प्यार यदि साथ हो तो बड़ी सी बड़ी मुश्किल का भी सामना किया जा सकता है। संजु को पता था कि उसकी माँ और उसके पापा उसके साथ हमेशा रहेंगे और उसे हर परेशानी से बचाने की पूरी कोशिश करेंगे। शायद इसी आस मे संजु ने अपनी आँखों से आँसू खुद ही पोंछ लिए और अपने कमरे मे नहाने के लिए बढ़ गया।
बाथरूम पहुँच कर उसने अपनी नाइटी और ब्रा को उतारकर खुद को आईने के सामने मे देखा। अपने स्तनों को देखकर वो खुद सोचने लगा कि कैसा होगा यदि उसके स्तन और बड़े हो जाते है। उसे याद आ रही थी अपनी वो खुशी जब उसने साड़ी पहनी थी और उसके साथ पहनी थी वो पुशअप ब्रा जिसमे उसके स्तन बड़े लग रहे थे। हाँ, वो बहुत खुश था तब। पर क्या हमेशा हमेशा के लिए बड़े स्तनों के लिए वो तैयार था?
यही सब सोचता हुआ संजु नहाने के बाद, अपने बालों को अपनी मम्मी के हेयर ड्राइअर से सुखाने लगा। संजु को एहसास हो चला था कि शायद उसके पास अपने जीवन के बारे मे निर्णय लेने के लिए ज्यादा समय नही बचा है। हो सकता है कि उसकी चिंता व्यर्थ हो पर अभी तो उसकी चिंता जायज थी।
“नमस्ते आंटी! आपने कहा था कि मैं आज संजु से मिल सकती हूँ।”, ये ऋतु थी जो इस वक्त दरवाजे पर खड़ी थी। ऋतु के सच जानने के पहले तो संजु की मम्मी किसी न किसी बहाने से ऋतु को घर आने से मना कर देती थी ताकि संजु का सच बाहर न आए, मगर संजु की मम्मी को ऋतु से खास लगाव था। उन्होंने ऋतु को उसके बचपन से अपनी आँखों के सामने बढ़ते देखा था और फिर संजु और ऋतु हमेशा से साथ खेलते थे और अच्छे दोस्त भी थे। ऋतु इतनी अच्छी और प्यारी बच्ची थी कि कोई भी उसे अपना प्यार देने से वैसे भी रोक नहीं सकता था। संजु की मम्मी भी ऋतु को बहुत प्यार देती थी, यहाँ तक कि जब संजु छोटा था तो वो अपनी माँ से गुस्सा करता था कि वो ऋतु को ज्यादा प्यार करती है बल्कि संजु को डांटती है। पर फिर संजु के बड़े होने के बाद जबसे उसके शारीरिक बदलाव शुरू हुए, तबसे उसे बचाने के लिए ऋतु को संजु की मम्मी मिलने से मना किया करती थी। जब एक बार ऋतु को सच पता चल गया तब एक बार को उन्हे तसल्ली हुई थी कि अब उन्हे दो अच्छे दोस्तों के बीच दीवार बनने की जरूरत नहीं रह गई है। पर अब संजु ऋतु से नाराज था। वो ऋतु से बात नहीं कर रहा था। संजु की मम्मी पूरी तरह इसका कारण समझ तो नहीं सकी थी क्योंकि उन बच्चों ने अपने प्यार के बारे मे कभी उनसे बताया न था, फिर भी उन्होंने ऋतु से कहा था कि कुछ दिन संजु को अकेले रहने दिया जाए और फिर ऋतु उससे मिल सकती है। और अब तो शायद १ हफ्ते से ज्यादा बीत चुके थे उस बात को, इसलिए उन्होंने ऋतु को आज बुलाया था।
“आजा बेटा। अंदर आ जा। बाहर क्यों खड़ी है?”, संजु की मम्मी ने प्यार से ऋतु को घर के अंदर बुलाया। संजु की मम्मी इस वक्त कुछ बैग्स इकट्ठा कर रही थी आखिर उन्हे बाहर मार्केट जाना था।
“बड़ी प्यारी लग रही है ऋतु। तेरी हेयर स्टाइल तो बहुत खूबसूरत है।”, व्यस्त माँ ने ऋतु की ओर एक नजर देखकर प्यार से कहा।
“थैंक यू आंटी।”, ऋतु ने कहा। उसका चेहरा थोड़ा उदास लग रहा था शायद संजु और उसके बीच की अनबन की वजह से। ” आंटी संजु कहाँ है?”, उसने पूछा।
“ओह हाँ, वो ऊपर अपने कमरे मे होगा। नहाने गया हुआ था थोड़ी देर पहले। अब तो काफी समय हो गया है, अब तक नहा चुका होगा।”, माँ ने कहा, ” ऋतु सुन … मैं जरा कुछ देर के लिए मार्केट जा रही हूँ, जल्दी ही वापस आऊँगी। पर तब तक तुम दोनों के पास अकेले मे वक्त है। बेटा, संजु थोड़ा परेशान है, तुम तो जानती ही हो … मगर मैं चाहती हूँ कि इस वक्त का फायदा उठाकर तुम दोनों आपस मे बात कर लो और अपने बीच की प्रॉब्लम को दूर कर लो। बेटा तुम समझदार लड़की हो … थोड़ा संजु को समझने की कोशिश करना। यदि मेरे आते तक भी तुम दोनों अपने बीच की प्रॉब्लम नहीं सुलझा सके तो मैं आकर संजु से बात करूंगी और समझाऊँगी पर बेहतर तो यही होगा कि तुम दोनों इसे खुद सुलझा सको। तुम संजु की सबसे अच्छी दोस्त हो और उसे इस वक्त तुम्हारी जरूरत है।”
माँ ने कुछ देर ऋतु की ओर देखा और फिर ऊपर संजु के कमरे की ओर। संजु इस वक्त लड़की के रूप मे होगा और शायद उसे ऋतु का इस तरह आना पसंद न आए। मगर संजु को अपने शुभचिंतकों के साथ जीना सीखना पड़ेगा, और घर के बाहर कोई यदि संजु के बारे मे अच्छा चाहता है तो वो ऋतु ही तो है। यही सोचकर संजु की मम्मी ऋतु को अकेले छोड़कर घर से जाने लगी।
“आंटी आप जल्दी आइएगा।”, ऋतु ने धीमी आवाज मे कहा। उसे कहीं न कहीं डर था कि संजु से उसकी मुलाकात अच्छी नहीं गुजरेगी।
जब ऋतु संजु के कमरे की ओर बढ़ रही थी तब उसने लगभग अपने मन मे तय कर लिया था कि आज वो संजु से लड़कर रहेगी। आखिर उन दोनों के बीच की ये परेशानी उसने तो नहीं खड़ी की थी। वो तो संजु के साथ अच्छे से बात करती थी, वो तो खुद संजु से दोस्ती बनाए रखना चाहती थी और संजु के पहले ही उसने संजु से अपने प्यार का इजहार किया था। और इतने सबके बाद भी वो संजु था जो उससे बात नहीं कर रहा था। अब संजु की जो भी मनोदशा थी, उनसे अनभिज्ञ ऋतु संजु से नाराज थी। और वो आज संजु से लड़कर अपनी दोस्ती वापस पाना चाहती थी। पर कभी लड़ाई करके दोस्ती मे जीता जा सकता है?
संजु के कमरे की ओर बढ़ते हुए उसे खयाल आया कि हो सकता है संजु इस वक्त घर मे लड़की के रूप मे हो। वैसे उसका दिल तो उससे कह रहा था कि वो संजु को लड़की के रूप मे नहीं देखना चाहती थी, वो तो अपने दोस्त संजु से उसके उस रूप मे मिलना चाहती थी जिसे वो हमेशा से जानती थी। यदि संजु उसे उसी रूप मे मिलता है तो उसके लिए संजु से लड़ना और बातें करना आसान होगा। पर अगर वो लड़की के रूप मे हो तो? तो क्या उससे उतनी ही आसानी से बात कर सकेगी? खैर अब जो होना होगा देखा जाएगा सोचकर ऋतु संजु से मिलने के लिए बढ़ने लगी। और हर एक कदम के साथ उसके दिल की धड़कने तेज होने लगी। अब वो संजु के कमरे के सामने खड़ी हुई थी, और अब बस उसे उस दरवाजे को खोलना था। दरवाजे के पीछे जो होगा क्या वो उसे देखने को तैयार थी? मन मे एक अजीब सी घबराहट के साथ और फिर मन मे हिम्मत करके उसने दरवाजे को धीरे से अपने हाथों से धकेलकर खोला।
और दरवाजे के पीछे …
दरवाजे के पीछे जब ऋतु ने झाँककर देखा तो उसे वहाँ संजु नहीं दिखा। कम से कम वो संजु नहीं जिसे वो जानती थी। उसे जो दिखा वो तो एक लड़की थी जिसने गहरी हरे रंग की सलवार कुर्ती पहनी हुई थी। देखकर समझ आ रहा था कि वो लड़की अभी अभी नहाकर निकली है और उसने अभी अभी अपने लंबे बालों को सुखाया है, आईने के सामने खड़ी होकर वो लड़की अपने बालों और अपने रूप को निहार रही थी। आखिर ऋतु को जो डर था वो सच साबित हुआ। संजु इस वक्त लड़की के रूप मे था। और ऋतु को भी इस वक्त अपने कमरे मे अचानक यूं देखकर संजु भी भौचक्क रह गया। अपने रूप को निहारना छोड़कर ऋतु को देख उसके चेहरे पर घबराहट छा गई। मौका ही कुछ ऐसा था कि दोनों उस कमरे मे अपनी अपनी जगह जैसे बुत बनकर खड़े रहे। दोनों से कुछ कहा नहीं गया। और जैसे एक अंतहीन समय तक दोनों अपनी अपनी जगह पर खड़े रहे। दोनों के दिल पर जो गुजर रही थी उसको शब्दों मे बयान नहीं किया जा सकता। अब संजु को इस रूप मे देखकर ऋतु कैसे उससे वो बातें करेगी जो वो उससे करना चाहती थी। और संजु? किस मुंह से ऋतु से कुछ कहता जब ऋतु ने उसे इस वक्त एक लड़की की तरह खुद को आईने मे निहारते हुए देख लिया था? दोनों ही इस वक्त अंदर ही अंदर रो रहे थे। पर ऋतु ने अपने आँसूओं को अपनी आँखों से छलकने न दिया। मगर संजु के लिए अपने आँसूओं को रोकना उसके बस मे न था। और उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। वो तो बस अब खड़े खड़े बिलखना चाहता था पर यूं सलवार कुर्ती पहने हुए लंबे बालों के साथ यदि वो जोर जोर से बिलख पड़ता तो ऋतु को यकीन हो जाता कि संजु अब लड़का नहीं रहा और वो पूरी तरह से लड़की बन गया है।
संजु की मनोदशा तो वो खुद समझ नहीं सकता था। एक पल पहले जहां वो खुद को आईने के सामने निहारते हुए खुश हो रहा था, वहीं उसके कुछ देर पहले वो बेहद चिंतित भी था जब उसकी मम्मी ने उसके बढ़ते हुए स्तनों के बारे मे उसे समझाया था। स्कूल मे लड़की बनकर जाने की बात सोचकर कितना परेशान हुआ था संजु। कभी खुद को लड़की के रूप मे सोचकर परेशान तो कभी खुश … उसका मन भी कितना चंचल था। पर ऋतु को देखते ही उसके मन मे और न जाने क्या क्या विचार आ रहे थे। आखिर मे उन दोनों का एक दूसरे की ओर एक टक देखने का सिलसिला संजु ने ही तोड़ा जब उससे रहा नहीं गया और ऋतु से दौड़कर उसके गले लगकर फुट फुटकर रोने लगा।
और वहीं ऋतु … अपने से गले लगकर रोते हुए संजु को देखकर बस उसकी पीठ पर दिलासा देती हुई हाथ फेरने के अलावा कुछ न कर सकी। करती भी क्या? उसे तो खुद कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे तो पता भी नहीं था कि संजु के यूं रोने का क्या कारण है? और फिर ऊपर से संजु के गले लगने पर जब संजु के स्तन उसके अपने स्तनों से दब गए, तब उसे पहली बार एहसास हुआ कि संजु का शरीर किस तरह वाकई मे लड़कियों के शरीर की तरह हो रहा है। न जाने क्यों संजु ने इस वक्त ब्रा नहीं पहना था। पर उस वजह से ऋतु को संजु के स्तनों की नरमी साफ महसूस हो रही थी। यह तो उसका दोस्त संजु नहीं था। ये तो कोई लड़की थी जो उससे लिपट कर रो रही थी।
“क्या हुआ संजु?”, ऋतु ने आखिर उससे पहले शब्द कहे। वो तो समझ भी नहीं पा रही थी कि संजु को लड़के की तरह संबोधित करे या लड़की की तरह। क्योंकि उसके आँखों के सामने तो एक लड़की थी, उसे वो लड़के की तरह कैसे संबोधित करे? फिर भी उसने वही किया जो उसे सही लगा, “क्या बात है संजु? तू रो क्यों रहा है?” उसने फिर संजु से पूछा।
बिलखते हुए संजु ने थोड़ा हटकर ऋतु की ओर नम आँखों से देखा और फिर हिम्मत करते हुए उसने वो सारी बातें बताई जो आज सुबह उसकी माँ के साथ हुई थी। किस तरह संजु को गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल मे लड़की बनकर जाना पड़ सकता है। किसी भी लड़के के लिए यह बात कहने मे बेहद शर्मिंदगी महसूस होती, और फिर वो भी उस लड़की से जिससे उस लड़के को प्यार हो?
संजु की पूरी बात सुनने के बाद ऋतु ने संजु के कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ उसकी आँखों मे देख मुस्कुराई और बोली, “बस इतनी सी बात?”
“इतनी सी बात? तुझे पता है लोग मेरा कितना मज़ाक उड़ाएंगे? न सिर्फ स्कूल मे, बल्कि आस पड़ोस हर जगह।”
“जिसको मज़ाक उड़ाना है वो तो उड़ाएगा ही। पर तू घबराता क्यों है? मैं रहूँगी न तेरे साथ हर पल.. घर हो या स्कूल। और सोच खुशी की बात तो ये होगी कि तब तू मेरे साथ क्लास मे एक बेंच मे बैठ सकेगा। मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ उसके बगल मे बैठ सकूँगी! मैं तो सोच कर ही खुश हूँ।”, ऋतु ने गमगीन माहौल को थोड़ा हल्का करने की कोशिश की।
“ऋतु! तू इतनी गंभीर बात का मज़ाक मत बना।”, संजु ने थोड़ा झुँझलाते हुए कहा।
“मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ स्कूल मे हर समय साथ रह सकूँगी। इसमे तुझे मज़ाक क्या लगता है? या फिर तू मुझे अपनी गर्लफ्रेंड नहीं मानता है? यदि ऐसा है तो बता दे मुझे।”, ऋतु ने हँसते हुए कहा। हालांकि उसके मन मे भी इस बात को लेकर बड़ी चिंता थी।
ऋतु को इस तरह हँसते देख संजु का भी दिल थोड़ा खुश होने लगा। “गर्लफ्रेंड” शब्द सुनकर उसे भी अच्छा लग रहा था। आखिर ऋतु से प्यार जो करता था वो। और उसी प्यार की वजह से खिलखिलाती हुई खूबसूरत ऋतु को देखना उसे अच्छा लग रहा था। और उसे ऐसा करते देख अपनी चिंता को भूल उसके अपने चेहरे पर भी एक मुस्कान खिल उठी।
और फिर ऋतु ने संजु के हाथों को अपने हाथों के बीच पकड़कर उससे कहा, “संजु, मैं सच कह रही हूँ … तू बुरा मत मानना। तेरे दिल मे इस वक्त क्या गुजर रही होगी वो मैं क्या कोई भी नहीं समझ सकता। पर मैं तुझे एक बात का वचन देती हूँ। तू मुझे जब और जिस तरह चाहेगा मैं तेरे लिए वैसे ही हमेशा तेरे साथ रहूँगी। यदि जिस बात का आगे चलकर होने का तुझे डर है, उस वक्त मुझे क्या करना होगा, मुझे पता नहीं। पर इतना भरोसा रखना कि मैं तेरा भरोसा नहीं तोड़ूँगी।”
ऋतु की यह बात संजु के दिल को छु गई। आखिर वो खुद नहीं जानता था कि आगे वो क्या और कैसे करेगा, तो वो ऋतु से ऐसी उम्मीद कैसे कर सकता था कि वो सब जानती हो। पर कम से कम वो उसके साथ रहेगी, यही भरोसा तो उसे चाहिए था। ठीक वैसे ही जैसे उसे अपने मम्मी पापा पर भरोसा था। और इस बात को समझते ही उसने खुशी से ऋतु को ज़ोरों से गले लगा लिया। गले लगने पर उसे अब खुद ध्यान आया कि उसके स्तन ऋतु के स्तनों को छु रहे है तो उसे मन मे एक उलझन महसूस हुई। पर उसने इस पल की खुशी मे उस उलझन को बीच मे न आने दिया और ऋतु को कुछ देर तक गले लगाया जैसे वो ऋतु को दिल से धन्यवाद दे रहा हो।
“थैंक यू ऋतु”, संजु ने प्यार से ऋतु की ओर देखते हुए कहा। दुबली पतली ऋतु के चेहरे की मुस्कान और उसकी खूबसूरती देखकर संजु को ऋतु पर बेहद प्यार आ रहा था। ऋतु भले मुस्कुरा रही थी पर उसके दिल मे अब भी संजु को इस तरह लड़की के रूप मे देखकर कुछ असहज भाव थे। पर कम से कम अब दोनों हंस कर बात तो कर सकते थे।
“अच्छा थैंक यू वगेरह छोड़, मुझे ये बता कि आज क्या कर रहा है?”, ऋतु ने पूछा।
“कुछ नहीं बस थोड़ी पढ़ाई और फिर मम्मी के कामों मे थोड़ी मदद।”, संजु ने कहा। ऋतु इस वक्त बेफिक्र होकर संजु के कमरे मे घूम रही थी, शायद वो संजु के कमरे मे क्या है सब कुछ देखना चाहती थी।
“ऋतु … मुझे तो अभी भी डर लगता है सोचकर कि गर्मी की छुट्टियों के बाद क्या होगा?”, संजु ने थोड़े धीमे स्वर मे अपनी दुविधा बताया। उसने अपने खुले बालों को अपने कान के पीछे करते हुए कहा तो ऋतु को एक बार फिर लगा जैसे वो एक लड़की से ही बात कर रही है।
“तू डरता क्यों है? लड़की के रूप मे जीवन इतना मुश्किल भी नहीं होगा। बस तुझे …”, ऋतु अपनी बात कहते कहते रुक गई। उसकी नजर संजु की अलमारी की ओर गई जो खुली हुई थी। “बस तुझे थोड़ी लड़की की तरह जीने की पहले से प्रैक्टिस करनी होगी, लड़कियों के हाव भाव सीखने मे ज्यादा समय नहीं लगेगा तुझे।” और फिर वो संजु की अलमारी मे कपड़ों को देखने लगी। लड़कों वालों कपड़ों के अलावा, कुछ साड़ियाँ और ५-६ सलवार कुर्ती और उनके दुपट्टे थे उस अलमारी मे। संजु की ब्रा भी थी, जिसे ऋतु ने अनदेखा करते हुए सलवार के दुपट्टों को खोल खोलकर देखने लगी। संजु के सलवार कुर्तियाँ थोड़ी पुरानी फैशन की थी, क्योंकि ये सब संजु की मम्मी ने अपनी समझ से संजु के लिए खरीदी थी। नए फैशन की समझ न तो संजु की मम्मी को थी और न ही संजु को। फिर भी ऋतु ने उन दुपट्टों मे से एक दुपट्टा उठाया जो कि संजु ने इस वक्त जो कुर्ती पहनी थी उसके साथ के सेट का था। और फिर उस दुपट्टे को लेकर संजु के पास जाकर बोली, “संजु सबसे पहले तो तुझे ये सीखना पड़ेगा कि जिस तरह की सलवार कुर्ती तू पहनता है उसके साथ दुपट्टा बहुत जरूरी है।” कहते कहते ऋतु उस दुपट्टे को फोल्ड कर संजु पर पहनाने को आगे बढ़ने लगी।
“ऋतु! क्या कर रही है यार? मुझे नहीं ओढ़ना कोई दुपट्टा वगेरह”, संजु ने ना नुकूर किया। वो कभी दुपट्टा नहीं पहनता था क्योंकि वो अब तक खुद के लड़की होने को स्वीकार नहीं कर सका था। पर संजु के मना करने पर भी ऋतु कहाँ रुकने वाली थी। उसने बड़े ही प्यार से संजु के कंधों पर उस दुपट्टे को रखा और फिर संजु की ओर गौर से देखते हुए बोली, “इस दुपट्टे का प्रिन्ट बहुत ही सुंदर है संजु। इसको फोल्ड करने की बजाए इसे खुला इस तरह रखना अच्छा लगेगा। बस तुझे इस थोड़ा संभालना पड़ेगा।” और ऋतु ने उसके दुपट्टे को खोल दिया और वो संजु की बाँहों पर फैल गया। सचमुच उस दुपट्टे के फूलों के प्रिन्ट बहुत खूबसूरत थे। और ऋतु ने संजु को पकड़ कर आईने की ओर घुमाया और उसे उसका प्रतिबिंब दिखाती हुई बोली, “अब लग रहा है न तू खूबसूरत!”
ऋतु के यह कहने पर भी संजु इतना शर्मा रहा था कि वो खुदके प्रतिबिंब को ऋतु के सामने देखने से रोकता रहा। “अरे कितना शरमाएगा यार। तू लड़की थोड़ी है जो इतना शर्मा रहा है! अब खुद को देख भी ले। तू कोई दुल्हन थोड़ी है जो अपने दूल्हे को देखने से शर्मा रही हो।”, ऋतु ने फिर संजु से कहा। ऋतु ने ये ताना जानबूझकर दिया था ताकि संजु को लगे कि शर्माना लड़कियों का काम है, और वो खुद को देखने मे सहज महसूस करे। ऋतु की तरकीब काम आई और संजु ने धीरे धीरे अपनी झुकी हुई नज़रों को उठाकर खुद को आईने मे देखा और बोला, “तू बहुत शरारती है ऋतु। मैं क्यों खुद को देखने से शर्माने लगा?” और जब संजु ने खुद को आईने मे देखा तो उसे सचमुच बहुत सुंदर एहसास हुआ और खुशी मे वो हँसते हुए ऋतु की ओर देखने लगा। उसकी नज़रों मे ऋतु के लिए प्यार था, वैसा प्यार जैसा कि एक बॉयफ्रेंड की नज़रों मे होता है, मगर ऋतु की नजरे अपने सामने सिर्फ एक लड़की या एक सहेली को ही देख पा रही थी।

“ऋतु, मुझे दुपट्टा संभालना बड़ा भारी काम लगता है। मुझे नहीं पहनना दुपट्टा वूपट्टा”, संजु ने फिर नखरे किये। वो ऋतु को जताना चाहता था कि वो लड़का ही है। मगर सच तो यह है कि भविष्य मे संजु लड़का बनकर रहे या लड़की, उसने लड़कियों के परिधानों की कोमलता और खूबसूरती को बेहद करीब से महसूस किया था। कभी साड़ी, तो कभी सलवार, तो कभी नाइटी, उसने उन सब परिधानों के साथ कुछ खूबसूरत पल बिताए थे। यदि वो आगे चलकर लड़के के रूप मे भी जीवन बीताता है तब भी उसका इन परिधानों से लगाव ऐसे अब दूर नहीं हो सकता था। इन कपड़ों का नशा ही कुछ ऐसा होता है। वो तो खुद कई बार सोचता था कि क्यों हर लड़का इस तरह के कपड़े नहीं पहनता है। उसे तो समझ नहीं आता था कि क्यों लोग इतने खूबसूरत और कोमल कपड़ों से दूर रहते है। काश, इस दुनिया मे सभी आदमी इस तरह के कपड़े पहनते तो उसे इतना शर्माने की जरूरत ही न पड़ती।
संजु अपने विचारों मे खोया ही हुआ था कि ऋतु एक बार फिर उठकर संजु की अलमारी की ओर गई और वहाँ उसकी साड़ियों को छूती हुई बोली, “संजु, तुझे पता है मुझे साड़ियों का बहुत शौक है?”
संजु ने यूं तो सिर्फ एक बार साड़ी पहना था पर उनके प्रति उसका आकर्षण बहुत ज्यादा था आखिर उसने उस दिन एक आजादी महसूस जो किया था साड़ी पहनकर। पर ये बात वो ऋतु से कहना नहीं चाहता था। “हाँ, मुझे जरा आइडिया तो था। पता है पीछली दीवाली मे जब तूने साड़ी पहनी थी। तू बहुत खूबसूरत लग रही थी। मैं तो उस शाम को पूरे समय तुझे ही देखना चाहता था। इसलिए तो पूरे समय तेरे पीछे पीछे घूम रहा था मैं!”, संजु ने हँसते हँसते कहा। हँसते हँसते उसका दुपट्टा उसके कंधे से सरक गया तो उसने बेहद ही खूबसूरत तरीके से उसे अपने कंधे तक वापस उठाया जैसे उसकी आदत हो।
“हाँ, मुझे भी पता है कि मैं तुझे खूबसूरत लग रही थी।”, ऋतु भी हंस दी। “मैं न बचपन से ही मम्मी की साड़ी से खेला करती थी। और मम्मी से जिद करती थी कि वो मुझे साड़ी पहनाए। पर मैं छोटी थी तो मम्मी के दुपट्टों को ही साड़ी बनाकर लपेट लिया करती थी। बड़ा मज़ा आता था। मैं तो बस इंतज़ार कर रही थी कि मैं कब बड़ी हो जाऊँ और अपनी मम्मी की साड़ी पहनू”, ऋतु ने अपने मन की बात संजु से बताई। अक्सर टीन-ऐज मे लड़कियों को साड़ियों का बड़ा शौक हो जाता है पर फिर बड़े होते होते मॉडर्न ज़िंदगी मे ये शौक को वो भूल जाती है। पर ऋतु अब तक इतनी बड़ी भी नहीं हुई थी, उसे तो अब भी साड़ियों का शौक था।
फिर वो संजु की ओर देखते हुए बोली, “यार, बस एक प्रॉब्लम है।”
“कैसी प्रॉब्लम?”
“प्रॉब्लम ये है कि मेरी मम्मी मुझे बहुत पुराने फैशन के ब्लॉउज ही पहनने देती है। तू लकी है संजु जो तेरी मम्मी ने तेरे लिए कम से कम स्लीवलेस और थोड़े डीप नेक वाले ब्लॉउज़ भी तैयार की है।”, ऋतु बड़ी हसरतों के साथ संजु की साड़ियों के साथ हैंगर मे रखे हुए ब्लॉउज़ को देखते हुए बोली।
“लकी?”, संजु ने मन ही मन सोच कि ये कैसा भाग्य है। पर उसने ऋतु से कुछ कहा नहीं क्योंकि ऋतु तो अपनी दुनिया मे खोई हुई थी। बचपन भी अनोखा होता है, जहां एक ओर इन दोनों के बीच की ये अजीबोगरीब स्थिति थी पर फिर भी उसे भुलाकर इन दोनों का ध्यान कहीं और ही था।
“संजु, तू बुरा न माने तो मैं तेरी ये साड़ी पहनकर देखूँ?”, ऋतु ने खुशी से पलटकर संजु से कहा और उसके हाथ मे एक नारंगी रंग की प्लेन और हल्की साड़ी थी जो संजु ने कुछ दिन पहले खुद पसंद किया था अपनी मम्मी के कलेक्शन मे से।
“मेरी साड़ी?”, संजु अब ये कैसे कह देता कि हाँ तू मेरी साड़ी पहन ले। “मेरी साड़ी” कहने मे ही उसे शर्मिंदगी महसूस होती। ऋतु की खुशी को देखते हुए फिर भी उसने कहा, “तुझे जो पहनना है पहन ले यार। मुझे तो तुझे साड़ी पहने देखकर खुशी ही मिलेगी।”, और फिर कुछ सोचते हुए उसने ऋतु से कहा, “पर तुझे ब्लॉउज़ फिट आएगा?”
ऋतु ने संजु के ब्लॉउज़ को खोलकर अपने सीने पर रखते हुए कहा, “हम्म लगता तो है कि आ जाएगा, बस कमर मे थोड़ा ढीला हो सकता है। मैं पिन लगाकर टाइट कर लूँगी। तेरे पास सैफ्टी पिन तो है न?”
“हाँ, वहाँ ड्रावर मे होगी।”, संजु ने इशारे से बताया। संजु के मन मे विचार चल रहा था कि कमर तो ठीक है पर ऋतु के स्तन संजु के स्तनों से बड़े थे, तो क्या वो उसके ब्लॉउज़ मे फिट आ जाएंगे? हो सकता है आ भी जाए क्यों उस दिन जब उसने ब्लॉउज़ पहना था तब उसने अंदर जो पुशअप ब्रा पहनी थी, उसको पहनने के बाद उसके स्तनों का आकार भी ऋतु के बराबर ही हो गया था।
ऋतु बहुत खुश थी। वो खुद को स्लीवलेस ब्लॉउज़ पहने देखना जो चाहती थी। पर उसे पहनने के पहले उसे अपनी कुर्ती उतारनी होगी। संजु भले एक लड़की के रूप मे है, पर है तो वो लड़का ही, उसके सामने ऐसे कैसे अपने कपड़े उतार लेती वो।
“संजु तू आँखें बंद करके पीछे पलट जा कुछ देर के लिए।”
“आँखें बंद? मगर क्यों?”
“स्टूपिड, मुझे कपड़े बदलना है।”
“तो बदल न। मैं कहाँ मना कर रहा हूँ।”, संजु ऋतु को छेड़ने लगा।
“देख संजु, मैं मारूँगी तुझे। अब बहस मत कर, मुझे कुर्ती उतारनी है। तू आँखें बंद करके पीछ मूड जा। तू नहीं करेगा तो मैं बाथरूम मे जाकर बदल लूँगी।”, ऋतु ने कहा।
“अच्छा अच्छा मैं आँखें बंद करता हूँ। पर फिर मुझे पीछे मुड़ने की कोई जरूरत नहीं है। ठीक है?”, संजु ने कहा।
“तू आँखें नहीं खोलेगा न? पक्का? नहीं तो मैं तुझे पीटूँगी!”, ऋतु ने कहा।
हालांकि शालीनतावश ऋतु संजु से आँखें बंद करने कह रही थी मगर दो प्यार करने वालों के बीच ये आँख मिचौली वाला खेल लड़का और लड़की दोनों को ही पसंद आता है। लड़की जानती है कि लड़का कुछ भी हो अपनी आँखें जरूर खोलेगा तब भी वो लड़के के सामने कपड़े बदलती है। और लड़का भी आँखें बंद करने का नाटक करता है। क्योंकि इस आँख मिचौली के बाद लड़की को भी अच्छा लगता है जब लड़का उसे प्यार भरी नज़रों से देखता है।
संजु ने अपनी आँखों पर जब अपने हाथ रख दिए तो ऋतु ने दूसरी ओर पलट कर अपनी कुर्ती उतारनी शुरू की। हाँ, वो जानती थी कि संजु उसे देखेगा जरूर पर वो संजु को सिर्फ अपनी एक झलक दिखलाना चाहती थी। पूरा दीदार तो जब सही समय आएगा तब हो ही जाएगा। थोड़ी शरमाती, और थोड़ी जल्दी मे उसने अपनी कुर्ती उतारी और ब्लॉउज़ को अपने हाथों मे पकड़ कर उसकी बाँहों को खोल उसमे अपने हाथ डालने के लिए तैयार करने लगी।
संजु अपनी उंगलियों के बीच से अपने सामने इस दृश्य को देख रहा था। कहने की जरूरत नहीं है पर यह दृश्य बेहद सुंदर था। और संजु को ऋतु को ब्लॉउज़ को पकड़ कर देखते हुए अच्छा लग रहा था। हालांकि उसके लिए ये दृश्य इतना भी अनजाना नहीं था। आखिर खुद को ब्रा पहने आईने के सामने खुद को कई बार देखा था और ऋतु भी उससे बहुत अलग नहीं लग रही थी। मगर ये संजु नहीं ऋतु थी, और इस दृश्य का उस पर कुछ असर हो रहा था। ऋतु की ब्रा भी संजु की सामान्य ब्रा की तरह ही थी पर ऋतु पर उस तरह की ब्रा उसे आकर्षक लग रही थी। वो ऋतु पर मोहित हो रहा था। शायद ३० सेकंड का यह दृश्य जब वो ऋतु को ब्रा मे देख सका, उसे ये झलक हमेशा याद रहेगी। वो मन ही मन मुस्कुराने लगा।
जब ऋतु ब्लॉउज़ पहनने लगी तो संजु ने मसखरी मे कहा, “यार, ये मुझे आँखें बंद रखने की क्या जरूरत है?”
“तू चुप चाप आँखें बंद रख। तूने आँखें खोली तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”, ऋतु ने ब्लॉउज़ की आस्तीन को ठीक करते हुए कहा और ब्लॉउज़ के हुक लगाने लगी। ब्लॉउज़ उसके स्तनों पर सही फिट आ रहा था, हाँ कमर जरा ढीली थी उस ब्लॉउज़ की। “कोई लड़की अपने बॉयफ्रेंड की खुली आँखों के सामने कपड़े नहीं बदलती, समझा न तू?”, ऋतु ने नीचे झुककर हुक लगाते हुए बोली।
“वो तो ठीक है। पर आगे चलकर भी मुझे ऐसे ही आँखें बंद रखनी होगी क्या?”, संजु ने पूछा।
“आगे चलकर, मतलब?”
“यही कि जब हमारी शादी हो जाएगी और जब मैं तेरा बॉयफ्रेंड नहीं रहूँगा।”, संजु के सवाल मे मासूमियत थी।
“मतलब जब तू मेरा पति बन जाएगा?”, ऋतु हंस दी और बोली, “तब तो मैं तुझे अपने उंगलियों पे नचाया करूंगी। और तब भी तुझे ये देखने नहीं दूँगी।”
ऋतु की बात सुनकर संजु भी हंस दिया।
“अच्छा अगर मैं आगे चलकर लड़की बन गया तो?”, संजु ने न जाने क्यों बिना सोचे समझे ये सवाल ऋतु से कर दिया। शायद उसे ये सवाल नहीं करना चाहिए था, पर अब मुंह से निकली बात को वापस कैसे लेता।
ऋतु जानती थी कि इस सवाल का जवाब देने मे वो जितना अधिक समय लगाएगी, दोनों के बीच की स्थिति एक बार फिर असहज हो जाएगी। इसलिए उसने झटपट सोचकर बोली, “यदि तू लड़की बन गया, तो मैं तुझे अपनी पत्नी बना लूँगी। और फिर तुझसे अपनी खूब सेवा करवाया करूंगी। और तब भी तू मुझे ऐसे नहीं देख सकेगा।”, ऋतु ने अपने ब्लॉउज़ का आखिरी हुक लगाकर जोर से हँसने लगी। उसने परिस्थिति को अच्छे से संभाल ली थी। संजु भी अब जोर से हंस रहा था।
ऋतु अब साड़ी के साथ हैंगर मे टंगे हुए पेटीकोट को निकालकर अपनी कमर पर लगाकर देखने लगी। शायद इसकी लंबाई उसके लिए थोड़ी ज्यादा होगी, पर थोड़ा ऊपर से पहनने पर वो उसे पहन सकती थी। अब जब ऋतु पेटीकोट बदलने वाली थी तो संजु के दिल की धड़कने बढ़ने लगी। आखिर ऋतु को अब अपनी सलवार उतार कर पेटीकोट पहनना होगा। उसकी खूबसूरत कमर के साथ अब संजु को छिप छिपकर ऋतु के पैरों को देखने मिलेगा। पर उसके सपनों पर तब पानी फिर गया जब ऋतु ने पेटीकोट को अपने सर से होते हुए पहना और कमर पर लाकर फिर अपनी सलवार को उतारा।
“अब तू अपनी आँखें खोल सकता है संजु”, आखिर मे ऋतु ने पेटीकोट पहनने के बाद संजु को पर्मिशन दे ही दी। अब संजु निश्चिंत होकर ऋतु को निहार सकता था। यकीनन ही ऋतु की कमर संजु की कमर से ज्यादा मोहक थी। और वो प्यार से ऋतु की ओर देखने लगा।
“ऐसे क्या देख रहा है?”, ऋतु ने संजु से पूछा।
“बस यही कि तू कितनी खूबसूरत है यार।”, संजु ने बैठे बैठे ही कहा।
और फिर ऋतु साड़ी को खोलकर पहनने लगी। हल्की और आसानी से मुड़ने वाली साड़ी होने की वजह से उसके लिए इसे पहनना आसान लग रहा था पर बेचारी को साड़ी पहनने की इतनी प्रैक्टिस न थी। अगले १५-२० मिनट तक कभी वो अपने पल्लू की लंबाई सही करती तो कभी अपनी प्लीट को, ४-५ बार कोशिश करने के बाद भी उससे साड़ी सही से बंध नहीं रही थी। साड़ी के साथ यूं बार बार संघर्ष करते हुए ऋतु को देखकर संजु खुद को हँसने से रोक नहीं सका।
“तू हंस क्या रहा है? तुझे साड़ी पहनना आता है तो तू ही पहना दे मुझे।”, ऋतु ने गुस्से से कहा।
“साड़ी पहनने का शौक तुझे है मुझे नहीं। मैंने तो बस एक बार पहना था और वो भी माँ ने पहनाई थी। तू बोले तो माँ को बुला दूँ। वो तुझे २ मिनट मे तैयार कर देगी।”, संजु ने कहा।
“तेरी मम्मी मार्केट गई है स्टूपिड।”, ऋतु ने गुस्से से कहा, “अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। बस ये प्लीट बन जाए।”
और ऋतु ने आखिर कई असफल प्रयास के बाद साड़ी को पहन ही ली। परफेक्ट तो नहीं, पर फिर भी कुछ ऐसी कि वो ठीक ही लगे। जब लड़कियां साड़ी पहनने मे नई नई होती है, तो उनकी वो छोटी छोटी गलतियाँ भी उन पर प्यारी लगती है। और जब ऋतु तैयार हो गई तो ऋतु से ज्यादा संजु के चेहरे पर खुशी थी। ये सच था कि वो ऋतु को दीवाली के दिन साड़ी मे देखकर बहुत खुश हुआ था, और आज तो वो उसे और करीब से देख रहा था। उसने अपने दुपट्टे को संभालते हुए अपनी जगह से उठकर ऋतु के करीब चलकर आया और ऋतु के चेहरे को बड़े प्यार से छूते हुए बोला, “तू बहुत सुंदर लग रही है ऋतु”
ऋतु के चेहरे को छूते हुए संजु का खूबसूरत दुपट्टा एक बार फिर सरक कर उसकी बाँहों पर आ गया पर इस बार उसने उसे संभाला नहीं। दूर से देखने पर तो वो दोनों सहेलियों की तरह लग रहे थे पर संजु की आँखों मे इस वक्त जो चमक थी, वो एक सहेली की नहीं बल्कि एक बॉयफ्रेंड की थी जो अपनी गर्लफ्रेंड को प्यार से देख रहा था। ऋतु ने भी उस चमक को पहचान लिया था और संजु की नज़रों के सामने शर्माने से वो खुदको रोक नहीं सकी। और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को लहराते हुए बोली, “सच मे बहुत सुंदर साड़ी है ये संजु। किसी दिन खास फ़ंक्शन मे मुझे पहननी होगी न तो मैं तुझसे ये लेकर जाऊँगी।” और फिर ऋतु अपनी जगह पर झूम उठी।

“तुझे जैसा ठीक लगे।”, संजु ने खूबसूरत ऋतु को निहारते हुए कहा। और फिर दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए साथ चलकर बिस्तर पर बैठ गए। संजु ऋतु की ओर देखने लगा, उसकी साड़ी की सुनहरी बॉर्डर उस पर बहुत खूबसूरत लग रही थी। शायद संजु इस बात को झुठलाना चाहता था पर न जाने क्यों उसके दिल मे भी इस साड़ी को कभी पहनने की ललक जाग गई थी। पर उसे भुलाकर वो इस वक्त सिर्फ ऋतु पर ध्यान देना चाहता था।
ऋतु भी संजु की आँखों मे देख रही थी। जहां संजु खोया हुआ था वहीं ऋतु का मन चुलबुलेपन मे था, वो अब संजु के इस रूप मे रहने के बाद भी अपने स्वाभाविक तरीके से व्यवहार कर रही थी। और फिर उसने संजु का हाथ पकड़कर उससे पूछा, “संजु, तू बुरा नहीं माने तो एक बात पूछूं?”
“हाँ, पूछ न।”, संजु ने कहा।
“मैं सोच रही थी … मैं सोच रही थी कि तूने उस दिन जब साड़ी पहना था तब तुझे कैसा लगा था?” ऋतु को पता नहीं था कि संजु इस सवाल का जवाब देगा या नहीं।
संजु ने अपनी नजरे नीची कर ली। शायद उसे सच नहीं बताना चाहिए पर उसके दिल ने उससे कहा कि यदि ऋतु से कुछ छिपा कर रखता है वो तो ये उन दोनों के रिश्ते के लिए ठीक नहीं होगा। और फिर ऋतु जिस तरह से उसके साथ सामान्य व्यवहार कर रही थी, उसे लगा कि शायद उसे सच बता देना ही उचित रहेगा।
“ऋतु, पता नहीं मैं कैसे बताऊँ तुझे ये बात। “, संजु कहते कहते चुप हो गया।
“यार, तू सीरीअस बहुत जल्दी हो जाता है। बता न क्या बात है?”, ऋतु ने संजु की जांघों पर हाथ फेरते हुए कहा जैसे वो उसे भरोसा दिलाना चाहती हो कि चाहे जो हो जाए ऋतु उसके साथ है।
संजु ने शायद ऋतु का यह भरोसा पहचान लिया था इसलिए उसने आगे कहा, “ऋतु, सच बात तो यह है कि मुझे उस दिन साड़ी पहन कर बहुत अच्छा लगा था। ऐसे लग रहा था कि जैसे मैं एक आजाद परिंदा हूँ। न जाने क्यों उस साड़ी को पहनकर लगा कि वो साड़ी मानो मेरे लिए ही बनी हो। मेरे पास शब्द नहीं है ऋतु और मुझे ये कहते हुए न जाने क्यों शर्मिंदगी भी महसूस हो रही है, मगर फिर भी उस साड़ी मे जब मैंने खुद को देखा था तो खुद को बहुत खूबसूरत महसूस किया था। न सिर्फ बाहर से, बल्कि अंदर से भी। और शायद इसी वजह से उस वक्त मेरा आत्म-विश्वास भी बहुत बढ़ गया था। वरना आजकल जो मेरे साथ हो रहा है उसके बाद से मन मे एक कुंठा सी हो गई है। पर उस दिन जैसे वो कुंठा खत्म सी हो गई थी। जैसे मम्मी और फिर पापा दोनों ने ही मुझे उस दिन प्यार दिया था जो मुझे ऐसा लगा जैसे कि कोई परेशानी ही नहीं है मेरे जीवन मे। यदि मैं पूरा सच कहूँ तो उस दिन साड़ी पहनकर मुझे ये लगा ही नहीं कि ये लड़कों की नहीं लड़कियों के लिए बनी है। मेरे लिए तो वो बस एक कपड़ा थी जिसने मुझे एक खूबसूरत एहसास दिया था। मेरे आत्म विश्वास को बढ़ाया था। ये सच है कि मुझे लड़कियां और खासकर तुम साड़ी मे बहुत आकर्षक लगती है। मगर मेरे लिए अब साड़ी सिर्फ लड़की मात्र के लिए बना हुआ लिबास नहीं है। अब तो मुझे लगने लगा है कि कोई लड़का भी उसे पहने तो उसमे कोई बुराई नहीं है यदि वो उसे खूबसूरती का एहसास दे। शायद मैं अपने अंदर जो चल रहा है उसे जायज ठहराने के लिए यह कह रहा हूँ पर मेरे लिए ये जानने का भी कोई तरीका नहीं है कि मेरी सोच के पीछे यही कारण है। मैं तुझसे उम्मीद नहीं करता ऋतु कि तू ये सब समझ सके, पर तू समझ सके तो इससे ज्यादा खुशी की बात मेरे लिए कोई नहीं होगी। क्या तू समझ रही है ऋतु?”
जब तक संजु अपनी बात कह रहा था तब तक ऋतु बड़े ही प्यार से संजु के हाथों को पकड़े हुए उसे एक टक देख रही थी। शायद वो संजु के मन की बात पूरी तरह तो नहीं समझ सकती थी, पर वो कोशिश जरूर कर रही थी। संजु ने जो साड़ी के बारे मे कहा था उसको वो खुद कुछ अलग तरीके से महसूस किया करती थी। साड़ी पहनकर वो न सिर्फ खूबसूरत महसूस किया करती थी, बल्कि साड़ी उसे एक आभास दिलाती थी कि वो अब बड़ी हो गई है और अपना अच्छा बुरा भी समझ सकती है। भले वो १४ वर्ष की हो पर फिर भी साड़ी उसके लिए एक औरत बनने की ओर पहला कदम थी, और शायद इसलिए उसका भी आत्म-विश्वास बढ़ जाता था।
संजु की बात खत्म होने के बाद वो कुछ देर तक लगातार संजु की आँखों मे देखते रही और फिर उससे बोली, “तू सही कहता है संजु। यदि साड़ी पहनकर किसी लड़के का आत्म-विश्वास बढ़ता है तो उसमे बुराई कैसी? वैसे भी साड़ी ये तो नहीं कहती कि उसे कौन पहन सकता है। वो तो मोटे-पतले लंबे-छोटे सब तरह के इंसान पर अच्छी लगती है।”
ऋतु की बातें सुनकर संजु की आँखों मे २ बूंद आँसू आ गए। वो आँसू खुशी के आँसू थे। पर ऋतु उसे ऐसे कैसे रोने देती।
ऋतु ने तुरंत कहा, “यार, तू इतना ईमोशनल क्यों हो जाता है? तुझे साड़ियाँ अच्छी लगती है तो ये तो मेरे लिए खुशी की बात है न?”
“वो कैसे?”, संजु ने उससे पूछा।
“अरे … कितना सिम्पल है। जब हमारी शादी हो जाएगी, उसके बाद हम दोनों मिलकर खूब सारी साड़ियाँ खरीदेंगे। ऐसे मे हम दोनों के पास डबल कलेक्शन होगा न! सोच मेरे पास भी कितनी चॉइस होगी। बस हर साड़ी के लिए २ ब्लॉउज़ सिलाने पड़ेंगे।”, ऋतु कहते कहते खिलखिलाकर हँसने लगी।
संजु भी ऋतु को इस तरह हँसते देख खुशी महसूस करने लगा। “तुझे पता है ऋतु? तू पूरी पागल है।”, संजु ने ऋतु से कहा।
“पागल ही सही। अच्छा साड़ी खरीदने तक तो सही है मगर मेरी एक शर्त रहेगी।”, ऋतु ने कहा।
“कैसी शर्त?”, संजु थोड़ा उत्सुक था जानने के लिए।
“मेरी शर्त ये है कि हम दोनों के ब्लॉउज़ मे मेरे ब्लॉउज़ ज्यादा सेक्सी होने चाहिए। पता है उस दिन तुझे इतनी डीप बैक वाले ब्लॉउज़ पहने देखकर मुझे कितनी जलन हो रही थी! सुपर सेक्सी लग रहा था तू!”, ऋतु बोली।
“ऋतु, आज न तू मेरे हाथ से मार खाएगी!”, संजु हँसते हुए ऋतु को मारने का नाटक करने लगा।
और फिर यूं ही दोनों मस्ती करने लगे।
“देख संजु, मार तो तुझे पड़नी चाहिए!”, ऋतु ने उंगली दिखाकर संजु से कहा।
“मुझे क्यों पड़नी चाहिए?”, संजु ने पूछा।
“बताती हूँ। पर मेरे पास तुझे मारने से भी ज्यादा अच्छा तरीका है।”, ऋतु बोली।
“अच्छा क्या करेगी तू?”, संजु ने जैसे ऋतु को चैलेंज किया। पर इससे पहले कि वो कुछ सोच भी पाता ऋतु ने अपना एक हाथ संजु के पेट पर से होते हुए उसके दुपट्टे के अंदर डाला और फिर संजु के स्तनों को छूते हुए उसके निप्पल को अपनी उंगलियों से पकड़कर उसे मसल दिया।
“आउच”, संजु ने एक दर्द भरी आवाज निकाली और झट से अपने सीने पर हाथ रखा जैसे कोई लड़की इस स्थिति में करती। पर ऐसा करने वाली उसकी सहेली थी इसलिए शायद उसने इतना बुरा नहीं माना। पर ऐसा करने के लिए ऋतु को सजा तो मिलनी ही थी। ऋतु भी ये जानती थी इसलिए वो तुरंत उठकर दौड़ पड़ी। साड़ी पहनकर वो बहुत तेज तो नहीं भाग सकती थी फिर भी किसी तरह वो हँसते हुए अपनी साड़ी संभाले संजु के कमरे से निकल कर सीढ़ियों से नीचे की ओर भागने लगी। संजु भी उसके पीछे उठ उसके पीछे दौड़ने लगा और उसके मुंह से निकल पड़ा, “ऋतु की बच्ची, रुक अभी मज़ा चखाती हूँ तुझे। बहुत शैतान हो गई है तू।” सहसा ही संजु लड़की बन गया था। पर उसने अभी जो कहा उसके बारे मे न ऋतु ने सोच और न संजु ने। दोनों तो अभी दौड़ रहे थे। जहां ऋतु साड़ी पहने दौड़ रही थी, वहीं संजु सलवार कुर्ती मे, मगर उसका दुपट्टा यूं उसके दोनों हाथों पर फैला हुआ था और इतना लंबा था कि उसे संभालते हुए उसके लिए भी दौड़ना इतना आसान नहीं था।
और आखिर मे संजु ऋतु तक पहुँच ही गया और उसने ऋतु को कमर से पकड़ लिया। संजु की बाँहों मे थी ऋतु अब। दोनों ही हाँफ भी रहे थे और हंस भी रहे थे। बहुत प्यारे लग रहे थे दोनों साथ मे। ये किशोरावस्था का प्यार भी कितना पवित्र होता है ये इन दोनों को देख कर समझ जा सकता था। जो ऋतु ने अभी संजु के साथ किया था उसमे कामुकता कम थी और शरारत ज्यादा।
“क्यों की तूने ऐसा?”, संजु ने ऋतु से गुस्से से पूछा पर गुस्से के साथ साथ चेहरे पर मुस्कान भी थी।
“बताती हूँ … बताती हूँ , जरा सांस तो लेने दे।”, ऋतु ने हांफते हुए कहा। और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को संभालती हुई बोली, “दो कारणों से किया मैंने ऐसा। पहला तो इसलिए क्योंकि मुझे पता है कि तू मुझे देख रहा था जब मैं कपड़े बदल रही थी। उसी की सजा थी ये।”
ऋतु की बात सुनकर संजु थोड़ा झेंप गया कि ऋतु को ये कैसे पता चल। “और दूसरा कारण क्या था ये करने का?”, संजु ने फिर पूछा।
“दूसरा कारण ये है डिअर संजु, इससे तुझे सबक मिलेगा कि हमेशा ब्रा पहननी चाहिए।”, ऋतु नखरे दिखाती हुई बोली।
कभी दो प्यार करने वालों को ऐसी बातें करते सुना है आपने? यकीनन ही ऋतु के दिल मे संजु के लिए बचपन से न जाने कितना प्यार रहा होगा कि वो संजु के साथ ऐसी बातें भी कर पा रही थी, और बुरा भी नहीं मान रही थी। कम से कम उसने संजु को जताया तो नहीं।
घर मे इस वक्त संजु की मम्मी तो थी नहीं इसलिए घर मे दोनों की मस्ती और छेड़-खानी चलती रही। दोनों बचपन से ही ऐसे थे। एक दूसरे को परेशान भी बहुत करते थे और एक दूसरे के बगैर रह भी नहीं सकते थे। ये बचपन का साथ अब किशोरावस्था मे प्यार मे जरूर बदल रहा था मगर फिर भी वो बचपन की ही उनकी आदतें और शरारतें थी जो उनके प्यार को और परिपक्व भी करती थी।
इसी मस्ती के बीच अचानक ही ऋतु ने एक सवाल संजु से किया।
“संजु तूने कभी उन्हे छूकर देखा है?”, ऋतु का इशारा संजु के स्तनों की ओर था।
“ये कैसा सवाल है? यह तो वही बात हुई जैसे पूछ रहे हो कि क्या तूने कभी अपनी नाक को छुआ है। अब खुदके शरीर को कम से कम नहाते वक्त तो हर कोई छूता है।”
“मैं वैसे छूने की बात नहीं कर रही स्टूपिड!”
“तो कैसे छूने की बात कर रही है?”, संजु समझ तो गया था पर नासमझी का नाटक कर रहा था।
“हम्म … मेरा मतलब है कि कभी अकेले मे, उन्हे अपने हाथों से छूकर देखा है … “, ऋतु किसी तरह से बताने लगी पर फिर झुँझलाकर बोली, “क्या यार तू समझता क्यों नहीं कि मैं क्या बोल रही हूँ।”
“नहीं, मैंने कभी अकेले मे नहीं छुआ है उन्हे।”, संजु शायद सच ही कह रहा था।
“गुड! कभी छूना भी मत। हमारे क्लास कि स्टूपिड लड़कियां भी न कुछ न कुछ अजीबोगरीब हरकते करती है और फिर क्लास मे आकर बताती है। मैंने … उफ्फ़, मुझसे तो सुना भी नहीं जाता”, ऋतु झुँझलाती हुई बोली।
संजु का दिल तो चाह रहा था कि ऋतु से पूछे कि क्या उसने कभी खुद को वैसे छुआ है, पर उसने उस बात को वहीं छोड़ देना उचित समझा। क्योंकि उसकी सुबह सुबह के कठोर निप्पल वाली परेशानी की बात या उससे जुड़ी कोई भी बात करने की इस वक्त इच्छा नहीं थी।
और फिर दोनों सोफ़े पर बैठ कर इधर उधर की बातें करने लगे। क्योंकि संजु ने आज बालों को खुला रखा था और ऊपर से नीचे दौड़ते हुए आने की वजह से वो बिखर भी गए थे और उसके चेहरे के सामने भी आ गए थे। उन बालों के साथ और अपने सुंदर कपड़ों मे संजु के हाव-भाव स्वाभाविक रूप से लड़की की तरह ही लग रहे थे और अब तो उसे इसका आभास भी नहीं था। लड़कियों की तरह ही वह अपनी कुर्ती को ठीक करता, पैरों को पास पास रखता, समय समय पर अपने बालों को चेहरे से हटाकर अपनी उंगलियों से कान के पीछे करता, और अपने दुपट्टे को बार बार उठाकर कंधे पर लाता और सामने अपने सीने पर खींच कर उस दुपट्टे से सीने को ढँकता। ऋतु के साथ अब जब सभी कुछ ठीक था और वो दोनों अच्छी तरह बातें कर रहे थे तो संजु को अब ऋतु के सामने ऐसा सब करते हुए कुछ खयाल भी न रहा कि वो क्या कर रहा है। बस वो बोल लड़कों की तरह रहा था। ऋतु ने ये सब नोटिस किया था। ऐसा नहीं है कि उसके मन मे दुविधा नहीं उठ रही थी। पर इतने समय बाद संजु के साथ उसे हँसने का मौका मिला था, वो उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। शायद अपने मन मे चल रही बातों को वो बाद मे सोचेगी।
ऋतु और संजु दोनों ही न जाने कितनी देर तक बातें करते रहे, बिल्कुल वैसे ही जैसे वो पहले किया करते थे। और इन्ही बातों के बीच ऋतु ने संजु से कुछ कहा जो वो बहुत देर से कहना चाहती थी।
“संजु, तुझे पता नहीं है कि तुझसे आज इतने समय बाद बातें करके मुझे कितना अच्छा लग रहा है। तू मुझसे प्रामिस कर कि आगे से तू मुझसे ऐसे बातें करना बंद नहीं करेगा?”
“आई प्रामिस”, संजु ने ऋतु को आश्वासन दिया।
“ठीक है। तो अब से मैं लगभग रोज तेरे घर आया करूंगी। हम दोनों मिलकर साथ मे पढ़ाई किया करेंगे। हो सकता है तेरे साथ रहकर मेरे नंबर भी अच्छे आने लग जाए। मेरी मम्मी तो बस मेरे पीछे पड़ी रहती है कि मैं संजु के जैसे क्यों नहीं पढ़ सकती। मेरी मम्मी भी न, मेरी जान ले लेती है। और फिर मैं आया करूंगी तो तेरा भी फायदा है।”
“मेरा क्या फायदा है?”, संजु ने आँखें घुमाते हुए कहा जैसे कि ऋतु को छेड़ रहा हो।
“देख ज्यादा नखरे मत दिखा, हाँ? मैं आया करूंगी तो यदि आगे चलकर तुझे स्कूल और सोसाइटी मे लड़की बनने की ऐक्टिंग करनी पड़ेगी, तो वो सब तू मुझसे सिख सकता है। मैं सिखाऊँगी तुझे कि कैसे करना है ये सब।”, ऋतु मुस्कुरा कर बोली।
ऋतु ने अपने शब्दों का चयन बहुत सोच समझकर किया था। उसने ये नहीं कहा कि संजु जब आगे लड़की बन जाएगा। उसने जो कहा उससे संजु बुरा मान जाए, इसकी संभावना कम थी।
“तुझसे सीखूँ मैं ऐक्टिंग? तू तो पूरी ड्रामा क्वीन है। तेरी तरह की एक और लड़की दुनिया मे आ जाए तो न जाने दुनिया का क्या होगा!”, संजु हंस दिया पर मन ही मन वो ऋतु को धन्यवाद भी दे रहा था।
दोनों यूं ही अपनी बातों मे मशगूल थे, तभी संजु की माँ मार्केट से वापस आ गई। उन्होंने जब दोनों को साथ मे हँसते हुए बातें करते देखा, तो उन्होंने खरीदा हुआ सारा सामान एक कोने मे रखा और दोनों बच्चों से कहा, “लगता है तुम दोनों की आपस मे सुलह हो गई। चलो अच्छा हुआ! तुम दोनों ऐसे साथ मे बहुत अच्छे लगते हो।”
“हाँ, आंटी। अब सब प्रॉब्लम दूर हो गई है।”, ऋतु ने चहकते हुए कहा।
“ऋतु …”, संजु की माँ ने ऋतु को साड़ी पहने देखकर कहा, “वाह, कितनी सुंदर लग रही है तू साड़ी में! तुझे तो साड़ी पहनना अच्छी तरह आता है।”
तारीफ सुनकर ऋतु थोड़ी झेंप गई क्योंकि उसने ये साड़ी सिर्फ संजु को दिखाने के लिए पहनी थी, अब संजु की माँ के सामने वो कुछ बहाना बनाने की कोशिश करने लगी। “वो … आंटी जी। बस ऐसे ही …”, पर ऋतु के मन मे कोई बहाना न सुझा।
“जो भी है, बड़ी प्यारी लग रही है तू!”, संजु की माँ सुधा ने प्यार से ऋतु के गालों को छूते हुए कहा। ऋतु तो बेचारी शर्म से लाल हो रही थी।
ऋतु और अपनी माँ को इस तरह प्यार से देखकर संजु खुश भी था, पर उसके दिमाग मे कुछ और भी चल रहा था। आखिर उसने भी आज पहली बार दुपट्टा पहना था, और उसे पता भी था कि वो दुपट्टा ओढ़ कर कितना सुंदर लग रहा है, पर उसकी माँ ने उसे अब तक नोटिस तक नहीं किया। शायद उसकी आँखों की हसरत सुधा ने संजु की ओर देखते ही पढ़ ली थी, इसलिए तो उन्होंने फिर संजु की ओर देखते हुए कहा, “ऋतु, मेरी बेटी को देख रही है। आज इस दुपट्टे के साथ कितनी खिली खिली लग रही है! मैंने तो इसके बारे मे सोच कर ही खास ये सलवार कुर्ती और दुपट्टा खरीदी थी, पर आज के पहले ये पहनती ही नहीं थी। आज पहनी है तो देखो इसकी सुंदरता कितनी बढ़ गई है।”
सुधा संजु के बारे मे अपने बेटे नहीं बल्कि अपनी बेटी की तरह बात कर रही थी। पर संजु को बुरा न लगा। वो तो बस शर्मा कर अपनी नजरे झुकाकर अपने दुपट्टे को पकड़ उसे संभालने लगा।
“मेरी किस्मत तो देखो, कितनी प्यारी प्यारी दो बेटियाँ है मेरे पास!”, सुधा ने कहा और संजु और ऋतु दोनों को अपने पास ला गले लगा लिया।
और फिर उसके बाद ऋतु ने सुधा से कहा, “आंटी, आपकी बेटी है तो बहुत सुंदर, मगर आंटी, आपको उसके लिए नए फैशन के सलवार सूट भी लेने चाहिए न।”
“हम्म तू बात तो सही कहती है। पर मुझे ज्यादा समझ नहीं है नए फैशन की। हम ऐसा करते है किसी दिन सभी साथ चलते है और संजु के लिए नए सूट खरीदेंगे।”, माँ ने कहा।
संजु को यह सब सुनकर अच्छा भी लग रहा था पर उसे शर्म भी बहुत आ रही थी, इसलिए तो वो अब तक चुप चाप मुस्कुरा बस रहा था।
“हाँ, आंटी। बड़ा मज़ा आएगा शॉपिंग करने मे।”, ऋतु बोली और फिर संजु की ओर बढ़कर उसका हाथ पकड़कर बोली, “आंटी, सच कह रही हूँ। आज मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई है जिसके साथ मैं सभी तरह की बातें कर सकती हूँ। और मुझे यकीन है कि हम दोनों सहेलियाँ मिलकर खूब इन्जॉय करेंगी। मैं सही कह रही हूँ न, संजु?”
अभी भी नजरे झुकाए हुए संजु ने धीमी सी आवाज मे अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, “हम्म।” उसके इस छोटे से शब्द मे बहुत बड़ी स्वीकृति थी। शायद अब ऋतु के साथ वो उसकी सहेली भी बनकर रहने को तैयार हो चुका था। उसकी ये स्वीकृति ऋतु और सुधा दोनों ने पढ़ ली थी। कोई और खुश हो या न हो, मगर सुधा इस बात से सबसे ज्यादा खुश थी।
क्रमश:
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