संजु (7)

 ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग ७: नई सुबह

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संजु की मम्मी और ऋतु की मम्मी इस वक्त ड्रॉइंग रूम मे बात कर रही थी। न जाने आज ऋतु की मम्मी क्यों अचानक ही संजु के घर आई थी। और उनके साथ ऋतु भी थी। बाहर हँसने की आवाजों से तो लग रहा था सब सही चल रहा है।

तभी संजु को उसकी माँ की आवाज सुनाई दी। “संजु बेटा। मैंने गैस पर चाय चढ़ाई थी। अब तक बन चुकी होगी। कप मे निकालकर सभी के लिए एक ट्रे मे लेकर आजा बेटा।”, माँ ने कहा।

“अभी लाती हूँ माँ।”, संजु ने अपनी माँ को जवाब दिया। और संजु उठकर गैस की ओर बढ़ चला। यकीनन ही इस वक्त संजु लड़की बनकर था। आसमानी रंग की साड़ी मे दमक रहा था संजु। आज तो हाथों मे ढेरों चूड़ियाँ भी पहना था उसने। शायद लड़की बनने के सफर मे संजु आगे बढ़ चुका था। आज उसने अपने बालों मे चोटी बांधी हुई थी। किचन मे काम करते वक्त लंबे खुले बाल अक्सर परेशान करते है, पर चोटी बांधने से ये समस्या नहीं होती। और फिर गैस के पास पहुँच कर संजु ने पहले तो गैस बंद की। और फिर अपनी साड़ी को कंधे तक चढ़ाकर पल्लू को अपनी कमर पे लपेटते हुए उसने अपनी दाहिनी ओर कमर मे खोंच ली। उसने अपनी माँ को किचन मे कई बार काम करते हुए अपनी साड़ी के साथ ऐसा करते देखा था। और सचमुच उसे अब आसानी महसूस हो रही थी।

“आंटी मैं संजु की मदद कर आती हूँ।”, बाहर बैठी हुई ऋतु ने संजु की माँ से कहा।

“अरे बेटा, बस चाय ही तो निकालनी है। संजु कर लेगी इतना तो। तू चिंता मत कर।”, माँ ने कहा। पर फिर कुछ देर रुक कर ऋतु की ओर देखकर बोली, “अच्छा जा। शायद तुझे संजु से बातें करनी होगी।”

“हाँ। ये दोनों बचपन से ही इतनी बातें करते रहे है। इनकी बातें फिर भी खतम नहीं होती।”, ऋतु की मम्मी भी बोलकर हंस दी।

संजु किचन मे चाय के पतीले से चाय कप मे निकाल ही रहा था कि ऋतु ने उसे पीछे से आकर गले लगा लिया। बेचारा संजु घबरा गया था।

“ऋतु! क्या कर रही है यार? यदि अभी गरम चाय मुझ पर गिर जाती तो। मेरी पूरी साड़ी खराब हो जाती।”, संजु ने लगभग गुस्से से कहा।

“ओहो मैडम को अपनी साड़ी की बहुत चिंता है। वैसे बहुत सुंदर लग रही हो तुम साड़ी में।”, ऋतु ने संजु का हाथ पकड़कर कहा। तो संजु की नजरे शर्म से नीचे झुक गई। यूं तो वो ऋतु से अब भी नाराज था पीछली बातों को लेकर।

“तुझे अपनी मम्मी को यहाँ लाने की क्या जरूरत थी?”, संजु ने चाय निकालते हुए गुस्से से ऋतु से कहा।

“अरे मेरी मम्मी को भी तो पता चलना चाहिए की मेरी सहेली कितनी सुंदर है। उन्होंने तुझे अब तक देखा नहीं है न”, ऋतु एक गैर-जिम्मेदार लड़की की तरह खिलखिलाकर हंस उठी।

माँ ने ऋतु को समझाया था कि संजु का सच वो किसी को न बताए पर ऋतु का ये गैर जिम्मेदाराना व्यवहार संजु को बिल्कुल नागवार गुजरा। ऋतु से वो पहले ही नाराज था और उसकी नाराजगी ‘सहेली’ शब्द सुनते ही और बढ़ गई थी। ऋतु तो ऋतु, संजु को यह नहीं समझ आ रहा था कि उसकी अपनी माँ क्यों इस तरह से उसे ऋतु की मम्मी के सामने आने कह रही है।

ऋतु समझ गई थी कि संजु अब उससे बात नहीं करेगा इसलिए वो कुछ देर के लिए चुप हो गई। और संजु चुपचाप ट्रे मे चाय लेकर बाहर जाने लगा। उसे अंदर ही अंदर कितनी शर्म महसूस हो रही थी वो तो सिर्फ वही जानता था।

“आंटी जी, लीजिए चाय।”, संजु ने ऋतु की मम्मी को चाय का कप पकड़ाते हुए कहा। ऐसा करते हुए उसकी कमर से पल्लू फिसल कर छूट गया तो उसने तुरंत ही उसे संभालते हुए पकड़ लिया।

“वाह संजु। जितना ऋतु कहती थी तू तो उससे भी कहीं ज्यादा सुंदर लग रहा है।”, ऋतु की मम्मी ने चाय का कप लेते हुए कहा। बेचारा संजु उसकी शर्मिंदगी के एहसास की कोई सीमा नहीं थी।

“सुधा, वैसे तुम सही कर रही हो जो संजु को अभी से साड़ी पहनने की ट्रैनिंग दे रही हो। वरना आजकल की लड़कियां इतनी बड़ी हो जाती है पर उन्हे साड़ी पहनना मुश्किल काम लगता है। ऋतु को ही देख लो… मैं उससे इतना कहती हूँ कि हफ्ते मे कम से कम एक बार घर मे ही साड़ी पहना करे मगर वो मेरी सुनती ही नहीं है।”, ऋतु की मम्मी बोली।

वहीं सुधा यानि संजु की माँ सिर्फ मुस्कुराकर रह गई।

“मैं क्यों साड़ी पहनू? मैं सलवार नहीं पहन सकती क्या? वैसे भी आजकल जॉब मे कौनसी लड़की साड़ी पहनकर जाती है।”, ऋतु ने अपनी मम्मी का विरोध किया। ऋतु थी ही ऐसी। अपने मन की बात कहने से कभी घबराती नहीं थी।

“देख रही हो सुधा। कितनी बातें करती है मेरी बेटी। न जाने कैसा ससुराल मिलेगा इसे। जब ससुराल जाएगी तब मुझे याद करेगी कि अच्छा होता यदि पहले साड़ी पहननी सीख ली होती।”

ये ऋतु और उसकी मम्मी के बीच का ड्रामा संजु और उसकी मम्मी शांति से देख रही थी।

“कम से कम मेरी बेटी के साथ मुझे कोई शिकायत नहीं है। बहुत प्यारी है मेरी बेटी और मेरी हर बात मानती है।”, संजु की माँ ने संजु के सर पर हाथ फेरते हुए कहा जो इस वक्त अपनी माँ के बगल मे बैठा हुआ था। माँ की बात सुनकर गर्व महसूस करने की बजाए उसे तो लग रहा था कि उसे जमीन इसी वक्त निगल ले तो बेहतर होगा।

“हाँ, अब तो संजु तुम्हारी बेटी है। अब तुम भी हमारी गैंग की हो गई हो सुधा। अब तो तुम्हारे सर पर भी नई जिम्मेदारी आ गई है जो हम पर है।”, ऋतु की मम्मी ने कहा।

“कैसी जिम्मेदारी?”, संजु की माँ ने पूछा।

“यही कि बेटी एक के लिए एक अच्छा घर ढूँढना, एक दामाद ढूँढना। बड़ा कठिन काम होता है। अभी तो कई साल बाकी है पर ये जिम्मेदारी तो है ही।”, ऋतु की मम्मी ने कहा। बड़ी ड्रामेबाज़ औरत थी ऋतु की मम्मी भी।

“मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं है। मेरी बेटी अपना अच्छा बुरा खुद सोच सकती है। जब सही समय आएगा वो मेरे लिए दामाद भी खुद चुन लेगी।”, संजु की माँ ने कहा।

“ये क्या बातें कह रही हो माँ?”, संजु मन ही मन सोचने लगा। उसकी शर्मिंदगी का तो जैसे अंत ही नहीं था। उसका वहाँ से तुरंत उठकर जाने का मन हुआ। वहीं दूसरे कोने मे वो ऋतु को दांत निपोर कर हँसते हुए देख सकता था। “बड़ी बदतमीज़ है ऋतु।”, संजु ने मन ही मन गुस्से मे सोचा।

“सुधा बहन। जरा संभालकर रखना अपनी बेटी को। मैंने तो सुना है कि इन दोनों की क्लास मे एक राहुल नाम का लड़का है जिसके पीछे इनके क्लास की सभी लड़कियां दीवानी है।”, ऋतु की मम्मी ने संजु की माँ को चेताते हुए कहा।

राहुल?, ये नाम सुनते ही संजु अंदर ही अंदर गुस्से से आग-बबूला हो गया। उसके जैसे लड़के की लड़कियां दीवानी? संजु तो वैसे ही राहुल से चिढ़ता था क्योंकि राहुल ऋतु से स्कूल मे बातें किया करता था।

“संजु, आंटी सही कह रही है क्या?”, संजु की माँ ने उसकी ओर देखते हुए पूछा। संजु का ध्यान इस वक्त ऋतु की ओर था जो अब भी हँसे जा रही थी। उसे ऋतु से चिढ़ हो रही थी। आखिर ऋतु ने उसे बॉयफ्रेंड की जगह फ्रेंड बना ही लिया था। अब ऋतु से वो दोस्ती भी खत्म कर देगा। वैसे भी ऋतु की वजह से उसका राज अब ऋतु की मम्मी के सामने भी खुल गया था। अब बात और न जाने कहाँ कहाँ पहुचेगी?

“संजु संजु”, संजु की माँ अब भी अपने सवाल के जवाब के इंतज़ार मे संजु को आवाज दे रही थी।


“संजु संजु”, संजु की माँ ने फिर से कहा। “संजु बेटा उठ जा अब। स्कूल भी तो जाना है।”, माँ ने संजु के सर पर हाथ फेरते हुए संजु को जगाया।

उफ्फ़ कितना बुरा सपना था ये! संजु को एक तरह की राहत महसूस हुई। उसने खुद को देखा तो उसे समझ आया कि वो रात को साड़ी पहने पहने ही सो गया था। उसने अब भी ब्लॉउज़, ब्रा, पेटीकोट और कंगन पहने हुए थे। जो उसने देखा वो सपना तो था पर अभी वो जिस रूप मे था ऐसा सपना कभी भी सच हो सकता था। पर कम से कम अभी तो उसने अपनी माँ को देख राहत की सांस ली।

“सॉरी बेटा, आज तुझे मैंने जल्दी जगा दिया। आज तुझे बाल भी धोने है न।”, संजु की माँ ने प्यार से उसके गालों को छूते हुए कहा और उसके माथे पर एक चुंबन दिया।

“माँ, मैं आज स्कूल नहीं जाऊँगी।”, संजु ने माँ से कहा और उनसे गले लिपट गया। सुबह सुबह संजु अक्सर व्यवहार से लड़का बन जाता था पर इस वक्त वो लड़की की तरह ही व्यवहार कर रहा था। तो माँ ने भी संजु का साथ दिया।

“बेटा तू यदि पढ़ाई नहीं करेगी तो तुझे और परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। चाहे कुछ हो जाए तुझे पढ़ाई अच्छे से करनी है। मेरी बात समझ रही है न तू?”, माँ ने कहा।

और संजु भी बेबस मन से अपनी माँ से दूर होते हुए उठने की कोशिश करने लगा।

“आउच”, तभी संजु के मुंह से आवाज निकली जिसे सुन उसकी माँ तुरंत पलट कर उसे देखने लगी। “क्या हुआ?”, माँ ने पूछा।

“माँ! मुझे लगता है कि मेरे कान का झुमका मेरे बालों मे और साड़ी मे फंस गया है।”, संजु ने अपने बालों को खींचकर अपने झुमके को छुड़ाने की कोशिश की पर झुमका खिंचाकर उसके कान मे दर्द देने लगा।

“रुक। अपने बालों को खींचना बंद कर। मैं सुलझाती हूँ।”, माँ ने कहा और प्यार से संजु के कान से झुमके उतारने लगी।

“आगे से याद रखना कि कभी झुमके पहन कर नहीं सोना है। समझी?”, माँ ने कहा।

“हाँ माँ। समझ गई।”, संजु ने मुस्कुराकर माँ की ओर देखा।

“मैं तेरे लिए टिफ़िन बनाने नीचे जा रही हूँ। तू नहा कर तैयार हो जाना। और अपनी साड़ी उतारकर पहले यहीं बिस्तर पर रख देना। मैं बाद मे फोल्ड कर अलमारी मे रख दूँगी।”, माँ ने कहा और उठकर वो नीचे किचन की ओर चली गई।

संजु भी उसी तरह बिस्तर से उठकर अपने बाथरूम मे आ गया। जो बातें बीते दिन मे हुई थी उसके बाद एक नई शुरुआत करना मुश्किल होता है मगर संजु न जाने कैसे इतना साहस जुटा सका था कि वो कल की बातों को भुला देना चाहता था। अब ऋतु उसकी दोस्त नहीं है, उसने अपने मन मे ठान लिया था।

बाथरूम मे उसने सबसे पहले तो अपने हाथों मे कंगन देखे और उन्हे उतारने की कोशिश करने लगा। पर जितना मुश्किल उन्हे पहनना था उतना ही उन्हे उतारना भी। तभी उसे उसकी माँ की तरकीब याद आई और उसने मॉइसचुराइजिंग क्रीम हाथ मे लगाई ताकि उसका कंगन आसानी से फिसलकर निकल आए।

कंगन निकालकर उसने खुद को आईने मे देखा। रोज की तरह सुबह की ठंड मे उसके निप्पल कड़े हो गए थे पर कम से कम आज ब्रा पहनी होने की वजह से वो दीख नहीं रहे थे, वरना उसकी नाइटी मे रोज उभरे हुए दिखा करते थे। शुक्र था उसके पेटीकोट और साड़ी का जो उसका खड़ा लिंग आज उसकी माँ की नज़रों से छिपा रहा। पर उस लिंग के होने के बावजूद भी संजु ने जब खुद को आईने मे देखा तो उसे सिर्फ और सिर्फ एक लड़की ही नजर आई। “मैं लड़की ही तो हूँ।”, संजु ने मन ही मन सोचा। वो सोच खुशी की न होकर बल्कि एक हारी हुई सोच थी। यदि संजु ने गर्व से खुद को लड़की स्वीकार किया होता तो बात अलग होती।

संजु ने गौर से आईने मे देखा तो उसे उसकी बिंदी उसके बालों मे फंसी हुई दिखाई दी। शायद रात को सोते हुए वो सरककर बालों मे फंस गई थी। उसने अपनी बिंदी को सावधानी से निकाल आईने पर लगा दी। और फिर संजु अपने कंधे पर ब्लॉउज़ मे लगी पिन को खोलने लगा ताकि वो साड़ी उतार सके। साड़ी का पल्लू का कंधे पर से उतारते ही संजु ने अपने वक्षों को ब्लॉउज़ मे देखा तो एक बार फिर जैसे उसका विश्वास बढ़ गया कि वो लड़की ही है। न जाने क्यों खुद को लड़की स्वीकार कर लेने पर उसे यूं लग रहा था जैसे सभी मुश्किलें खत्म हो जाएगी। कहीं संजु ये तो नहीं भूल रहा कि बाहर वो अब भी लड़का ही है। घर से बाहर निकलते ही उसकी कठिनाइयों का अंत नहीं है।

बीते दिन की बुरी यादों को भुलाते हुए संजु सिर्फ अच्छी बातों को याद करते हुए बड़े ही ध्यान से अपनी साड़ी खोलने लगा। यही तो वो साड़ी थी जिसने उसे कल इतनी खुशी दी थी। और इसी साड़ी मे वो पहली बार अपने पापा से बेटी बनकर बात किया था। और फिर उसके पापा ने भी तो उससे कहा था कि वो संजु का हमेशा साथ देंगे। इतना सब कुछ अच्छा भी तो हुआ था उसके साथ। हल्के से साड़ी उतारकर उसने बाथरूम मे एक ओर टांग दी। और फिर वो धीरे धीरे अपने ब्लॉउज़ के हुक खोलने लगा। उसकी माँ ने उसके लिए चुस्त फिटिंग वाला ब्लॉउज़ सीया था इसलिए ब्लॉउज़ के हुक खोलते ही संजु को थोड़ी राहत महसूस हुई। संजु ने एक बार फिर खुद को ब्रा पहने हुए निहारा। उसे अपने वक्षोज पर गर्व महसूस हो रहा था। ब्लॉउज़ को साड़ी के साथ रखकर उसने फिर अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला। नाड़ा छूटते ही जैसे संजु ने एक भारी राहत की सांस ली। पेटीकोट उसकी कमर पर कस के बंधा हुआ था ताकि उसकी साड़ी के वजन को वो संभाल सके। नाड़े की वजह से उसकी नाजुक सी कमर पर निशान भी पड़ गए थे। उसे एहसास हुआ कि साड़ी पहनकर खुशी तो मिलती है पर उस खुशी को पाने के लिए थोड़ा दर्द भी महसूस करना होगा। वैसे तो यदि उसके पास एक ऐसा पेटीकोट होता जिसकी कमर पर बैंड होता है तो उसे ये दर्द भी महसूस न करना पड़ता। पर उसे ऐसे पेटीकोट के बारे मे कोई आइडिया न था। अब संजु आईने के सामने सिर्फ ब्रा और पेन्टी पहने हुए था। यदि उसकी पेन्टी मे वो उभार न दिखता तो लंबे खुले बालों के साथ संजु बेहद सेक्सी लड़की लग रहा होता।

संजु ने अपनी साड़ी पेटीकोट और ब्लॉउज़ को लेकर अपने कमरे मे बिस्तर पर रखकर वापस बाथरूम मे आ गया जहां उसने अपनी ब्रा उतारी और शॉवर के नीचे नहाने आ गया। ठंड के मौसम मे गरम पानी पड़ने पर भी संजु के शरीर मे एक सिहरन उठ पड़ी। संजु के निप्पल इस वक्त फूलकर कठोर हो चुके थे। गरम पानी के असर से थोड़ा अच्छा लग रहा था संजु को। उसने अपने बालों को भीग जाने दिया और उन्हे पीछे कर अपनी पीठ की ओर कर दिया। और फिर साबुन लेकर अपने स्तनों पर धीमे धीमे झाग बनाते हुए उन्हे साफ करने लगा। खुद के स्तनों को छूकर कभी कभी मसाज करते हुए कुछ अजीब सी अनुभूति होती थी जो उसे अच्छी तो लगती थी पर जिसे महसूस करने से वो घबराता था। यदि उसने खुद को पूरी तरह से लड़की मान लिया होता तो वो उस अनुभूति का पूरी तरह से आनंद लेने से खुद को रोकता नहीं। अपनी उंगलियों से अपने फुले हुए निप्पल को पकड़कर संजु के दिल मे उन्हे कचोटने का मन तो कर रहा था पर उसने खुद को रोक लिया था। इस वक्त बहते पानी मे उसकी पेन्टी पूरी तरह भीग गई थी और उसके अंदर उसका लिंग अब भी तना हुआ था। उसने अपनी भीगी हुई पेन्टी को उतार और अपने लिंग पर साबुन की झाग लगाने लगा। उसका दिल तो हुआ कि उसकी क्लास के लड़के जो कहते है लिंग के साथ करने के लिए, वो भी उसे एक बार ट्राई करे पर उसका दिल न माना। उसे अपने लिंग को छूते हुए अच्छा लग रहा था। उसके स्पर्श से ही उसका लिंग और तन जाता था तो उसने उसे भी छोड़ दिया। और फिर पानी के असर से उसके लिंग का तनाव धीरे धीरे खत्म होने लगा। शायद ये अच्छी बात थी कि संजु अपने शरीर के आकर्षण से खुद को रोके हुए था। इस कच्ची उम्र मे शारीरिक सुख लेना शायद उसके लिए ठीक भी नहीं था। अब अपने बालों को शैम्पू से धोकर संजु फिर अपने अंग अंग को टोवेल से बड़े ही प्यार से सुखाकर शॉवर से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसने एक नाजुक सी पेन्टी मे अपने पैरों को डाला और उसे पहनकर उसने खुद को तौलिए मे लपेट लिया। और एक दूसरा तौलिया लेकर वो अपने बालों को सुखाता हुआ कमरे से बाहर आया।

संजु ने बाहर आकर अपने बालों को पोंछते हुए ही अपनी अलमारी को खोल तो उसे अपने स्कूल यूनिफॉर्म की जगह सलवार सूट पहनने की इच्छा हुई। पीछले कुछ चंद दिनों मे ही संजु मे बेहद बदलाव आ गया था। वो अब लड़की बनने को लेकर ज्यादा उत्सुक प्रतीत होने लगा था। उसने अपने एक सलवार के दुपट्टे को छूकर देखा और थोड़ी हताशा के साथ उसने अपनी स्कूल की यूनिफॉर्म निकाली। उसे एक बार फिर स्पोर्ट्स ब्रा पहनकर एक लड़के की भांति जीवन जीना होगा। संजु के खयाल से ऋतु अब उसकी ज़िंदगी से बाहर हो चुकी थी। और ऋतु के बगैर संजु को लड़के के जीवन जीने मे कोई मतलब नजर नहीं आता था। मगर क्या ऋतु उसकी ज़िंदगी से इतनी आसानी से बाहर हो सकती थी? क्या सिर्फ एक शाम को हुई कुछ बातों की वजह से ऋतु उसे इतनी आसानी से छोड़ देगी? ऋतु चाहे जो भी सोचती हो पर संजु का दिल ऋतु के लिए नकारात्मक भावनाओ से भर गया था। जब से ऋतु ने कल उसके साथ हमेशा दोस्त बने रहने की बात की,तबसे संजु ऋतु से नाराज था। ऋतु के दिल मे वास्तव मे क्या है उसके बारे मे उसने सोचा तक नहीं। वो ये भी भूल गया कि जब ऋतु ने वो शब्द कहे थे तब संजु की माँ उसी कमरे मे थी। उनके सामने क्या ऋतु अपने दिल की बात यूं ही कह देती? मगर जब इंसान क्रोध से भरा होता है, उसकी सोचने की क्षमता कम हो जाती है। यही हाल संजु का था। शायद ऋतु को लेकर हो रही चिढ़ की वजह से वो पूरी तरह लड़की बनने की सोच रहा था? या वाकई मे संजु के शरीर के हॉर्मोन उसे लड़की बना रहे थे?

जो भी संजु ने इस वक्त चुप चाप स्पोर्ट्स ब्रा पहनकर अपने स्तनों को किसी तरह दबाकर अपने सीने को सपाट रूप देने की कोशिश की। न जाने और कितने दिनों तक वो ऐसा करने मे सफल रहेगा, यह तो समय बताएगा पर जिस तेजी से उसके स्तन बढ़ रहे थे वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं था जब उसकी ये स्पोर्ट्स ब्रा उसकी सच्चाई को छिपाने मे नाकाफ़ी होगी। स्पोर्ट्स ब्रा के ऊपर उसने इनर पहनी। अपने बालों को सुखाकर संजु ने पोनीटैल बनाई और उसके ऊपर शर्ट पेंट पहन ली। अपनी पोनीटेल को वह शर्ट के अंदर छिपाकर ही रखता था। यूं तो सबको पता था कि संजु पोनीटेल रखता है पर उसकी लंबाई का किसी को अंदाजा नहीं था।

संजु ने बाथरूम जाकर खुद को एक बार फिर आईने मे देखा। रोज की तरह ही तो लग रहा था वो फिर भी उसे आईने मे आज एक लड़की दिख रही थी। चाहकर भी वो आईने मे दिखने वाले चेहरे मे एक लड़के को नहीं देख पा रहा था। शायद ऐसा सोचने वाला वो अकेला नहीं था। जब तैयार होकर वो नीचे आए तो उसे देखकर उसकी माँ को भी सहसा ऐसा ही कुछ लगा पर उसने कुछ कहा नहीं।

“ये टिफ़िन रख ले। और आज ठंड ज्यादा है तो तू स्वेटर पहनकर ही जाना।”, माँ ने कहा। वो अपने चेहरे पर चिंता की लकीरें संजु को दिखाना नहीं चाहती थी।

“ठीक है, माँ। तुम मेरे शूज पोलिश कर दोगी जब तक मैं कमरे से स्वेटर लेकर आता हूँ।”, संजु ने कहा और वो ऊपर जाकर स्कूल का स्वेटर पहनकर नीचे आ गया। तब तक माँ ने संजु के शूज पर पोलिश लगा दिया था।

“दो माँ, मैं अब ब्रश कर चमका देता हूँ।”, संजु ने कहा।

संजु और उसकी माँ इस वक्त दोनों ही अजीब सी मनोसथिति से गुजर रहे थे। दोनों ही तब ज्यादा सहज थे जब संजु लड़की के रूप मे था पर अब जब संजु लड़का बन गया था तो न जाने कैसी बेचैनी थी दोनों के दिलों मे। शायद एक डर भी था।

“बेटा, स्कूल मे समय से खाना खा लेना।”, संजु की माँ ने उसके गालों को छूकर प्यार से कहा।

“हाँ, माँ”, संजु ने कहा और माँ से गले लग गया।

जल्दी ही तैयार होकर वो अपनी साइकिल लेकर स्कूल की ओर चल पड़ा। रास्ते मे आज उसके दिन की पहली परीक्षा इंतज़ार कर रही थी। वो जानता था कि ऋतु जरूर उससे बात करने उसके पीछे पीछे आएगी।


साइकिल से स्कूल जाते हुए संजु को थोड़ा ही समय हुआ था और वही हुआ जिसका उसे अंदेशा था।

“संजु संजु संजु रुक न”, पीछे से ऋतु की आवाज आ रही थी। उसकी आवाज जिस तरह से कांप रही थी उसी से लग रहा था कि ऋतु पूरी जान लगाकर अपनी साइकिल दौड़ाती चली आ रही है। पर संजु न तो रुका और न ही उसने अपनी रफ्तार धीमी की। बेचारी ऋतु फिर भी अपनी पूरी कोशिश कर संजु के पीछे साइकिल चलाती हुई
संजु तक पहुँचने की कोशिश करती रही।

“संजु संजु यार तू मेरी बात तो सुन “, ऋतु किसी तरह संजु तक पहुँच कर रुआन्सी हुई आवाज मे हाँफती हुई बोली।

“मुझे तुझसे कोई बात नही करनी है।”, संजु ने बहुत बेरुखी से कहा। और उसने अपनी साइकिल और तेज कर दी।

“पर … पर … मुझे इतना तो बता दे कि मैंने क्या गलती की है?”, ऋतु ने संजु को पीछे से ही जोर से आवाज दी। इस वक्त ऋतु की आँखों मे आँसू आ चुके थे। इस मासूम सी उम्र मे अधिकतर लड़कियों का दिल बहुत साफ होता है। ऋतु का भी दिल बहुत साफ था। उस बेचारी की इस बात मे क्या गलती थी कि संजु की जो अवस्था है उसके लिए उसके पास कोई अनुभव नही था। वो न तो संजु की परेशानियों का हल जानती थी और न ही उसके पास इतनी समझ थी कि वो किस तरह से संजु से इस बारे मे बात करे। चाहे उसके पास कोई समाधान न हो, पर उसका साफ दिल उससे यही कहता था कि उसे संजु का इस वक्त साथ देना है जब तक कोई समाधान नही निकल जाता। वह उसे प्यार और दोस्ती का सहारा देना चाहती थी। संजु की मुसीबतों के लिए वह तो जिम्मेदार नही थी पर संजु उससे जिस तरह से व्यवहार कर रहा था, लग रहा था मानो ऋतु ही इसकी जिम्मेदार है। दिल से अच्छा चाहने के बावजूद संजु उसका दिल दुखा रहा था। चाहे लड़का हो या लड़की, किसी साफ दिल के इंसान को दुख नही देना चाहिए। संजु के तन मे भले लड़कियों के हॉर्मोन भी दौड़ते हो, पर इस वक्त एक भोली लड़की के दिल को दुखा कर वो जो गलती कर रहा था, वो कहीं से भी सही नही था। कहीं उसे भगवान ऐसी गलती की सजा न दे। यदि संजु लड़की होता और उसका प्यार उसके साथ यूं व्यवहार करता तब संजु को समझ आता कि एक लड़की की भावनाओं को ठेस पहुंचाना कितना गलत है।

“संजु एक मिनट के लिए तो रुक जा न यार।”, ऋतु ने बिलखते हुए संजु को फिर आवाज लगाई मगर संजु न रुका। यकीनन ही संजु किसी लड़की के हाव-भाव और कपड़े पहनना तो सीख रहा था पर एक लड़की की भावनाएँ क्या होती है वह इनसे पूरी तरह अनभिज्ञ था। भगवान न करे कि यदि संजु अपने जीवन मे एक लड़की बनकर रहे तो उसे कोई लड़का धोखा दे या यूं इस तरह रोने के लिए छोड़ दे।

स्कूल पास आने पर भी ऋतु संजु को आवाज देती हुई उसे रोकने की कोशिश करती रही। और स्कूल के कई स्टूडेंट्स ने ये सब देखा भी मगर निष्ठुर संजु बिल्कुल नही रुका।


आज स्कूल मे संजु ने ऋतु की ओर जरा भी ध्यान नही दिया। न जाने क्यों उसके मन मे ऋतु के लिए इतने नकारात्मक भाव भर आए थे। जबकि ऋतु पूरे दिन संजु की एक झलक पाने के लिए उसकी ओर देखती रहती। पर आज संजु ने उसकी ओर एक भी बार पलट कर नही देखा। ऋतु किसी तरह अपने चेहरे के दुख को छिपाती रही।

अंततः लंच के समय ऋतु संजु के पास आकर बोली, “संजु मुझे तुझसे बात करना है।”

“पर मुझे तुझसे कोई बात नही करना है। तुझे समझ क्यों नही आता?”, संजु ने कहा और पलटकर उससे दूर जाने लगा।

ऋतु और संजु को साथ मे दूर से कोई और भी उन्हे देख रहा था। वो कोई और नही राहुल था जो ऋतु का दीवाना था। ये लड़के भी न, लड़की चाहे न चाहे उसके पीछे पड़े रहते है। और जब उस लड़की को किसी और लड़के के साथ देखते है तो जलन से भर जाते है। कुछ लड़के जलन के मारे लड़की से दूर रहते है जैसे संजु ने किया था मगर कुछ लड़के ऐसे होते है जो उन लड़कों से लड़ने को तैयार हो जाते है जो भी उनकी पसंद की लड़की से बात करता है। राहुल इस दूसरी बिरादरी के लड़कों मे से था।

जब संजु ऋतु से दूर हो गया था तब राहुल संजु के पास जाकर एक गुंडे की तरह बोला, “आजकल तू ऋतु से बहुत बात कर रहा है।”

“तुझे इससे क्या मतलब? तू अपने काम से काम रख।”, संजु भी राहुल को देख गुस्से मे था।

“देख संजु … ऋतु सिर्फ मेरी है। तू उससे दूर ही रहे तो तेरे लिए अच्छा रहेगा।”, राहुल ने संजु को धमकाया।

“तू मुझे क्या धमकाया रहा है। ऋतु तुझसे बात तक नही करती है और तू मुझे धमकाएगा?”, संजु ने लगभग राहुल का मज़ाक ही उड़ा दिया था। और वो पलट कर जाने लगा। उसे राहुल से बात करने मे कोई इन्टरिस्ट नही था।

मगर राहुल गुस्से से तमतमा उठा था। उसने गुस्से मे जाते हुए संजु की पोनीटेल को अपने हाथ से खींचकर बाहर निकालकर हँसते हुए कहा, “तुझसे ऋतु सिर्फ इसलिए बात करती है क्योंकि वो तुझे अपनी सहेली मानती है। तुम दोनों अपनी हेयर स्टाइल के बारे मे ही बातें करते हो न कि चोटी कैसे बांधनी है।”

यूं यकायक संजु के लंबे बाल पहली बार सबके सामने इस तरह उसकी शर्ट से बाहर निकले थे। इसी वजह से संजु सकपका गया था। इतने लंबे बाल तो उसकी क्लास की कई लड़कियों के भी नही थे, शायद इस वजह से अब उसकी क्लास के लड़के उसका मज़ाक उड़ा सकते है। सकपकाया हुआ संजु अब गुस्से मे ही राहुल से भीड़ गया और उन दोनों मे हाथापाई होने लगी। उन दोनों को लड़ते देख क्लास के बाकी लड़के उनकी ओर दौड़ पड़े। हाथापाई मे संजु के लंबे बाल किसी लड़की की तरह हील रहे थे। और अचानक ही राहुल ने संजु के गिरफ्त से छूट कर संजु के सीने पर ज़ोरों से अपने दोनों हाथों से धक्का दिया। उस धक्के से संजु राहुल से दूर छिटक गया। मगर उस धक्के मे राहुल के दोनों हाथों से संजु के स्तन जो पहले ही स्पोर्ट्स ब्रा मे दबे हुए थे , वो और जोर से दब गए और उसे एक दर्द महसूस हुआ। चूंकि संजु स्वेटर पहना हुआ था तो राहुल को ऐसा कुछ शक नही हुआ कि उसके हाथों से जो दबा वो स्तन थे। वो भी गुस्से मे तमतमाया हुआ था और उसे दूसरे लड़कों ने पकड़कर रोक रखा था। दूसरी ओर संजु इस तरह अपने स्तनों के दबाए जाने पर बेहद असहज महसूस कर रहा था। उसका चेहरा एक शर्म से लाल हो गया था। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी अस्मिता पर हाथ रख दिया है। अचानक ही जैसे उसके अंदर की लड़की जाग उठी थी जो शर्मिंदगी महसूस कर रही थी क्योंकि किसी पराए ने उसके तन पर इस तरह हाथ रखा था। संजु का चेहरा लाल था, और उसे दूसरे लड़कों ने रोकने के लिए पकड़ रखा था, और उसकी चोटी लहरा रही थी। सभी लोग संजु को लड़के के रूप मे ही जानते थे इसलिए उस वक्त किसी ने वहाँ एक लड़की को नही देखा। सिवाय एक के, वो थी ऋतु जो उस वक्त एक लड़की को संघर्ष करते हुए देख रही थी। ऋतु ने आगे बढ़कर संजु को सभी के हाथों से छुड़ाया और उसका हाथ पकड़ कर उसके डेस्क पर ले गई।

संजु ने डेस्क पर बैठकर ऋतु की ओर देखा। उसका चेहरा अब भी लाल था। गुस्से मे या शर्मिंदगी की वजह से ये तो वही जाने। पर वो ऋतु से जैसे कुछ कहना चाहता था। मगर ऋतु ने उसके होंठों पर एक उंगली रखकर कहा, “अभी कुछ कहने की जरूरत नही है।”

संजु ने ऋतु की उंगली को हटाकर गुस्से से उसकी ओर देखा। उसकी सांसें तेज चल रही थी। ऋतु समझ गई थी कि इस वक्त संजु को अकेले छोड़ना ही ठीक है। इसलिए वो अपने डेस्क पर आ गई। यदि संजु ने इस वक्त सलवार कुर्ती पहना होता तो यकीनन ही वो अपने दुपट्टे से खुद को लपेटकर अपने सीने को छुपाकर एक दो बूंद आँसू के बहाता। पर अभी वो एक लड़का था। संजु के जीवन का संघर्ष तो अभी बस शुरू ही हुआ था। आज पहली बार उसे महसूस हुआ था कि उसके स्तन और उसके इस शरीर पर किसी अनजान का स्पर्श कितना बुरा लग सकता है। ऐसा लग रहा था कि एक लड़की की संवेदना महसूस करने की शुरुआत आज संजु के जीवन मे हो चुकी थी।


स्कूल मे बाकी के दिन पूरे समय खुद की भावनाओं को ही समझने मे व्यस्त रहा। लड़कों से लड़ाई झगड़े उसने बचपन से कई बार किये थे पर आज क्यों उसे इस तरह से अलग लग रहा था जब राहुल ने उसके सीने पर हाथ लगाया। क्यों नही वो पहले की तरह लड़कर जवाब दे सका? आखिर क्यों उसे लगने लगा था जैसे उसकी पवित्रता के साथ आज छेड़ छाड़ हुई थी?

स्कूल के बाद भी संजु थोड़ा उदास ही थी अपनी इन नई भावनाओं की वजह से। वो स्कूल से धीमे धीमे ही साइकिल चलाते हुए घर की ओर बढ़ने लगा। ऋतु भी उससे कुछ दूरी पर चल रही थी। मगर ऋतु ने सोचा कि स्कूल से कुछ दूर जाने के बाद वो संजु से बात करेगी। इस वक्त ऋतु संजु की बेरुखी को भूलकर उसके बारे मे चिंता कर रही थी।

जब स्कूल काफी पीछे छूट गया था तब ऋतु संजु के पास आई।

“संजु”, ऋतु ने संजु के बगल मे आकर कहा।

“क्या है ऋतु? तू क्यों मेरे पीछे पड़ी है?”, संजु की आवाज मे उदासी थी।

“तू एक मिनट साइकिल रोक।”, ऋतु ने कहा और संजु के सामने अपनी साइकिल लाकर खड़ी कर दी। संजु भी रुक गया। संजु ऋतु की ओर देखने लगा।

ऋतु ने अपनी साइकिल से उतरकर संजु के पास आकर उससे गले लग गई और बोली, “मैं तुझसे सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ… कि मैं तुझसे प्यार करती हूँ डफर”

“झूठ मत बोल ऋतु। कल शाम को तूने कह दिया था माँ के सामने कि तू मेरी दोस्त बन कर रहना चाहती है।”

“तो आंटी के सामने मैं कैसे कहती तुझसे? क्या तू अपनी मम्मी के सामने मुझे कह सकता है ये बात?”

“मैं तुझसे प्यार नही करता।”, संजु बोला।

“झूठा कहीं का! तुझसे झूठ भी नही कहा जाता”, ऋतु मुस्कुराई।

“तू मुझसे प्यार करती है?”

“हाँ। पक्का!”

“मेरे बारे मे सच जानने के बाद भी?”

“हाँ। चाहे सच जो भी हो। तू वही संजु है न?”

“पर यदि आगे चलकर मैं वो संजु नही रहा तो? तब क्या करेगी तू?”

संजु का सवाल सुनकर ऋतु चुप हो गई। ऋतु के पास उसका जवाब नही था। कम से कम इस वक्त तो नही। जवाब न होने का मतलब ये नही था कि उसे संजु से प्यार नही है। पर संजु ने यही मतलब निकाला।

“मैं जानता था।”, संजु ने कहा और अपनी साइकिल लेकर आगे बढ़ गया।

ऋतु संजु से कुछ बोल न सकी। उसके पास सही मे कोई जवाब नही था। दूसरी लड़कियों की तरह ऋतु भी सपने देखा करती थी कि जब वो पहली बार अपने प्यार का इजहार करेगी तो वो कितना खूबसूरत पल होगा। मगर आज जब ऋतु ने अपने पहले प्यार का इजहार किया, तब उस वक्त कोई खुशी का पल नहीं था। बल्कि संजु ने तो उसे प्यार करने से साफ इनकार कर दिया था।


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कुछ देर बाद संजु अकेले ही अपने घर पहुँच गया। आज स्कूल मे जो कुछ भी हुआ उससे उसका मन विचलित था। और फिर ऋतु से जो बातें हुई, उससे थोड़ा उदास भी था क्योंकि अब उसे यकीन हो गया था कि ऋतु उससे तभी तक प्यार कर सकती है जब तक वो लड़का है। लेकिन कब तक वो लड़का रहेगा इसका तो उसे खुद भरोसा नहीं था। ऋतु को लेकर अब वो और ज्यादा नहीं सोचना चाहता था। ऋतु से ज्यादा तो उसके स्कूल मे हुई लड़ाई याद आ रही थी क्योंकि उस वक्त वो सचमुच लड़कियों की तरह सोचने लगा था। काश अपने अंदर की लड़की को वो ऋतु के दिल के जज़्बातों को भी समझने मे उपयोग करता तो ऋतु के बारे मे यूं बुरा नहीं सोचता।

घर के अंदर माँ संजु को देख चिंतित न हो जाए इसलिए उसने अपने इस दवन्द को माँ से छिपा कर रखना ही मुनासिब समझा। संजु को घर वापस सकुशल देखकर माँ भी थोड़ी खुश थी। वरना जब तक संजु स्कूल मे था उनकी चिंता कम ही नहीं हो रही थी। वैसे तो अभी भी वो समझ सकती थी कि ऋतु के सच जानने के बाद संजु परेशान होगा, पर जल्दी ही समय के साथ संजु भी समझ जाएगा। वैसे वो ये तो नहीं जानती थी कि दोनों बच्चों के बीच मे कहीं प्रेम जैसी भावना भी हुआ करती थी।

“माँ, तुम खाना गरम कर दो। मैं कपड़े बदल कर आता हूँ।”, संजु ने कहा और बिना माँ की कोई और बात सुने अपने कमरे मे चला गया।

अपना स्वेटर उतार कर संजु अपने लंबे बालों को अपने कंधे के एक ओर लाकर उन्हे छूते हुए अपनी अलमारी तक गया। उसने अलमारी खोली तो एक पल के लिए अचरज मे पड़ गया था। उसकी माँ ने उसकी अलमारी मे ४ साड़ियाँ हैंगर पर टांग रखी थी। ये वही साड़ियाँ थी जिसे कल उसकी माँ ने उसे दी थी। वो तो भूल ही गया था कि ये साड़ियाँ अब संजु की है। हैंगर पर साड़ियों के साथ उनसे मैच करता हुआ पेटीकोट और ब्लॉउज़ भी टंगा हुआ था। उसने एक एक कर उन साड़ियों को छुआ और उनके ब्लॉउज़ को पलट कर देखा। कल जो साड़ी उसने पहनी थी, उसके अलावा दूसरी साड़ियों के ब्लॉउज़ इतने खुले हुए नहीं थे और न ही वो स्लीवलेस थे। बल्कि उनकी आस्तीन लंबी थी। एक की थोड़ी छोटी मगर बाकी २ ब्लॉउज़ लगभग उतने ही लंबी आस्तीन वाले थे जितनी उसकी माँ पहना करती थी। उन साड़ियों को देखकर संजु को तो एक पल के लिए लगा कि वो सब कुछ भुलाकर एक साड़ी पहन ले। आखिर कल साड़ी पहनकर उसे सचमुच छत पर पहुँच कर कितनी खुशी मिली थी। उसे ऐसा लगा था जैसे वो बंद पिंजरे से आजाद हो चुका था। पर उसे साड़ी पहनना अभी आता कहाँ था?

साड़ियों को छोड़कर संजु ने अपनी स्कूल यूनिफॉर्म को उतार दी, और फिर अंदर पहनी हुई स्पोर्ट्स ब्रा को भी उतारकर कुछ देर के लिए बिस्तर पर बैठ गया। उसके मन मे रह रहकर ये विचार आ रहा था कि आखिर क्यों आज स्कूल मे उसके स्तनों के दबने पर इतना बुरा लग रहा था। वो न तो अपने मन को समझ पा रहा था और न ही वो अपने स्तनों को देखने मे उत्सुक था। और फिर उसने अलमारी से अपनी एक रेगुलर ब्रा निकालकर पहन लिया। आज बिना पुशअप के उसके स्तन कल की तरह बड़े नहीं लग रहे थे। फिर न जाने उसे क्या सूझी उसने अलमारी से एक दुपट्टा निकालकर अपने स्तनों को ढँकते हुए अपने कंधों पर रख लिया। वैसे तो वो कभी दुपट्टा नहीं ओढ़ता था पर आज उसके दिल मे कुछ और विचार चल रहे थे। उसने अपने दुपट्टे पर हाथ रखकर खुदसे मन ही मन कहा, “ये मेरा शरीर है। ये मेरे स्तन है। इसे मेरी मर्जी के बगैर न कोई देख सकता है और न ही इसे कोई छु सकता है।” शायद संजु को ये बात समझ आ गई थी कि उसके मन मे जो भाव आ रहे थे वो इसलिए थे क्योंकि किसी पराए इंसान ने उसकी मर्जी के बिना उसे छुआ था। ज्योंही उसे यह बात समझ आई उसने एक सलवार कुर्ती निकाल पहनकर तैयार हो गया। उसकी कुर्ती ढीली सी थी और पूरी तरह से उसके गले तक उसके शरीर को ढंकती थी। फिर भी सुंदर थी। उसे अपनी कुर्ती पहनकर अच्छा लगा। और फिर उसने अपनी पोनीटेल को सामने लाकर अपने लंबे बालों मे चोटी बनाई। जैसे उसकी माँ उससे कहा करती है कि लंबे बाल उसका गहना है और इस गहने को संभालकर रखना उसका कर्तव्य। चोटी बनाने से बालों को नुकसान कम पहुंचता है। अब जब संजु अपने मन को थोड़ा बहुत समझ पा रहा था तो उसका मन चोटी बनाते हुए खुश था।

“संजु बेटा। खाना तैयार है। आजा आज साथ मिलकर खाते है।”, नीचे से संजु की माँ की आवाज आई।

“आ रही हूँ माँ।”, संजु ने कहा। वह चलकर पहले अपने बाथरूम गया जहां उसने सुबह आईने मे अपनी एक बिंदी को चिपकाया था। उसी बिंदी को अपने माथे पर लगाकर संजु नीचे अपनी माँ के पास जाने लगा। शायद धीरे धीरे संजु अपने अंदर की लड़की को समझने और स्वीकारने लगा था।

क्रमश

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