ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग ६: ऋतु
इस वक्त कमरे मे एक असहज सा सन्नाटा छा गया था। सभी के चेहरे से मानो रंग उड़ गए थे। एक ओर तो संजु और उसकी माँ के चेहरे पर एक डर के भाव थे, वहीं दूसरी ओर ऋतु का चेहरा भी मानो एक तरह के सदमे मे था।
पर फिर अचानक ही ऋतु संजु को साड़ी पहने घबराए हुए देख कर हंस दी। “आंटी, ये संजु ने साड़ी क्यों पहना हुआ है? कोई पनिशमेंट मिली है क्या इसे किसी शैतानी के लिए?”, ऋतु ने हँसते हुए संजु की माँ से पूछा।
“वो … हाँ… संजु ने मेरे कहने पर ही साड़ी पहना है।”, माँ ने किसी तरह कुछ कहा। संजु और माँ दोनों के दिमाग मे इस वक्त यही चल रहा था कि ऋतु से ऐसा क्या कहे कि ऋतु को संजु का सच न पता चल जाए। यूं तो आज नहीं तो कल शायद संजु का सच सभी को पता चलेगा, पर कम से कम इस वक्त दोनों ही किसी को इस बारे मे बताने को तैयार न थे।
“मगर क्यों आंटी?”, ऋतु ने अचरज से पूछा। शायद ये ऋतु की मासूमियत थी या ऐसे विषय को लेकर अनभिज्ञता, पर शायद इस वक्त संजु की माँ कोई भी बहाना बनाती तो ऋतु के पास मानने के अलावा कोई और चारा न होता।
“वो … अब तुझसे क्या कहूँ ऋतु। मेरी हमेशा से इच्छा थी कि मेरी भी एक बेटी हो। पर मेरी किस्मत मे एक ही बेटा था। पता है जब संजु छोटा था तब मैं इसे कभी कभी फ्राक पहनाती थी। पर बड़ा होने के बाद वो सब छूट गया। मैं तो बस इसे यूं ही तंग कर रही थी कुछ दिन पहले, उस समय को यादकर, पर तब मेरे मन मे इच्छा जाग गई कि यदि संजु मेरी बेटी होता तो कैसा लगता। तो मैंने ही संजु से खूब जिद की कि वो एक बार मेरी खातिर साड़ी पहन ले। २-३ दिनों तक तो संजु ना-नुकूर करता रहा पर अंत मे आखिर मेरा प्यार बेटा मेरी बात मान ही गया। तू ही देख ले, यदि संजु मेरी बेटी बनकर पैदा हुआ तो कितना खूबसूरत लगता।”, माँ मुस्कुराई और संजु के पास आकर उसके सर पर हाथ फेरने लगी। “देखो कितना नर्वस लग रहा है तुम्हारे सामने इस वक्त। सिर्फ अपनी माँ की इच्छा पूरी करने के लिए इसने ये सब किया है।”, माँ ने किसी तरह से बात को संभालने की कोशिश की। माँ इस वक्त इतनी अच्छी तरह से ऐक्टिंग कर रही थी कि ऋतु भी शायद उनकी बात पर यकीन कर बैठी थी। और वो उनकी बात सुनकर हंस पड़ी।
“हाँ आंटी। बहुत घबराया हुआ लग रहा है। वैसे आंटी, आपकी बात सच है… संजु सचमुच यदि लड़की होता न तो बहुत खूबसूरत लड़की होता। देखिए न अभी भी तो पूरी तरह से लड़की लग रहा है… कोई इसे यदि जानता न हो तो इसे लड़की ही समझेगा।”, ऋतु ने कहा और वो भी संजु की ओर आगे बढ़ चली।
“आंटी संजु के बाल इतने लंबे है मुझे तो पता ही नहीं था। हमारी क्लास की लड़कियों ने देख लिया तो वो तो जल उठेंगी”, ऋतु फिर खिलखिला उठी।
संजु को ऋतु की यह बात पसंद नहीं आई कि संजु पूरी तरह से लड़की लग रहा है। हालांकि कुछ देर पहले तक वो इसी बात को लेकर गर्व महसूस कर रहा था। पर ऋतु की दृष्टि मे वो लड़की नहीं दिखना चाहता था। तभी उसके मन मे ध्यान आया कि यदि ऋतु ने उसके ब्लॉउज़ मे खुली पीठ देख ली तो वो उसे और भी लड़की की तरह लगेगा। ऋतु उसे कुछ और कहे इसके पहले ही उसने सोचा कि जल्द से जल्द अपनी पीठ को वो ढँक ले। इसलिए नर्वस अवस्था मे ही उसने अपने साड़ी के पल्लू को पकड़ कर पीछे से अपनी पीठ को ढँककर सामने की ओर लाकर अपने पूरे ब्लॉउज़ को ढँककर हाथ से पकड़ कर थोड़ी शर्म के मारे नजरे झुकाकर नीचे देखने लगा। बेचारा संजु … वो नहीं चाहता था कि ऋतु को लगे कि वो लड़की की तरह लग रहा है पर इस वक्त उसने जो किया और जिस तरह से वो शर्मा के नीचे देख रहा था, इससे तो वो और भी ज्यादा लड़की की तरह लग रहा था।
“ऋतु बेटा, तुम अपनी क्लास मे किसी को इस बारे मे मत बताना वरना सब संजु का मज़ाक उड़ाएंगे। मज़ाक उड़ाते वक्त वो ये नहीं सोचेंगे कि मेरे बेटे ने ये सब मेरी खातिर किया है। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से संजु को कोई परेशानी हो।”, माँ ने देखा कि ऋतु अब जब उनकी बात पर यकीन कर रही है तो अब वह बस इस बात को यहीं दबा देना चाहती थी।
“जी आंटी। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी। मैं भी नहीं चाहती कि संजु का कोई मज़ाक उड़ाये। आई प्रामिस!”, ऋतु ने संजु के एक कंधे पर हाथ रखकर संजु की माँ को विश्वास दिलाते हुए कहा।
“थैंक यू, बेटा”, माँ की बेचैनी अब थोड़ी कम हो गई थी। माँ को लग रहा था कि अब मुसीबत टल गई है। शायद संजु को भी यही लग रहा था। माँ के चेहरे पर तो अब तसल्ली के भाव आ गए थे मगर संजु के नहीं। संजु को तो अब भी डर था कि ये बात इतनी आसानी से खत्म नहीं होने वाली है। और उसका अंदेशा शायद गलत भी नहीं था। क्या पता घर जाने के बाद जब ऋतु इस बात को फिर से सोचेगी और उसे याद आएगा कि जब संजु खुद के स्तनों को साड़ी से ढँक रहा था तब उसे उसके स्तनों के बीच की गहराई दिखाई दी थी, वो किसी लड़के मे तो नहीं होती। ऋतु के मन मे कई सवाल आएंगे और वो सारे सवाल संजु से ही करेगी। इस वक्त तो बस ऋतु अपने घर वापस चली जाए, संजु बस मन ही मन यही प्रार्थना कर रहा था।
“आंटी, संजु को ऐसे देखकर तो मैं भूल ही गई कि मुझे संजु से कुछ होमवर्क के सिलसिले मे बात करनी थी।”, ऋतु ने कहा। संजु मन ही मन जानता था कि होमवर्क तो बस बहाना है और ऋतु सिर्फ उससे मिलने आई है। यदि उसने इस वक्त साड़ी न पहना होता, तो वह भी ऋतु से दिल खोलकर बातें करना चाहता। यदि वो इस वक्त ऋतु को घर वापस जाने कहता है तो ऋतु उससे नाराज हो सकती है, और यदि कुछ नहीं कहता है तो उसका सच खुलने का डर होगा। अब तो बस उसकी माँ ही उसे बचा सकती थी।
“ऋतु बेटा। तुम होमवर्क के बारे मे कल क्यों नहीं बात कर लेते? अभी तुम खुद देख लो कितना असहज महसूस कर रहा है संजु। तुम लोग कल मिलकर होमवर्क कर लेना।”, माँ ने स्थिति को संभालने की कोशिश की। संजु के मन मे अब कुछ आस जग गई थी कि माँ सचमुच सब संभाल लेंगी।
“आंटी, वो असल मे होमवर्क कल सुबह ही स्कूल मे जमा करना है। मुझे सच मे अभी संजु की हेल्प चाहिए। वैसे भी समय बहुत कम बचा है। आप चिंता मत करिए, मैं संजु को ऐसा कुछ भी नहीं कहूँगी कि उसे कुछ बुरा लगे। “, ऋतु भी बहाना बनाने मे कम नहीं थी। संजु इस वक्त माँ के सामने ऋतु को झूठा साबित भी नहीं करना चाहता था क्योंकि यदि उसने ऐसा कुछ किया तो दो बातें होंगी, एक तो ऋतु नाराज हो जाएगी और दूसरा ये कि संजु को माँ को समझाना होगा कि ऋतु क्यों उससे इस तरह से मिलना चाहती थी। कोई भी १४ साल का लड़का हो या लड़की अपने प्यार के बारे मे माता पिता से ये बात करने मे झिझकता है।
माँ ने संजु के चेहरे की ओर देखा। माँ और बेटा दोनों ही इस वक्त समझ रहे थे कि ऋतु जितनी ज्यादा देर घर मे रहेगी, उतनी ही संभावना थी कि ऋतु को कुछ न कुछ शक जरूर होगा। बिना मुंह से कुछ कहे ही माँ और बेटा एक दूसरे की आँखों से अपनी बात कह रहे थे। जहां संजु माँ से इशारा कर रहा था कि माँ किसी तरह इस स्थिति को संभाल लो वहीं माँ संजु से कह रही थी बेटा तू कुछ देर इस स्थिति को संभाल लेना मैं जरूर कुछ करती हूँ।
“अच्छा ठीक है तुम दोनों संजु के कमरे मे होमवर्क के बारे मे बात कर लो। मैं तुम दोनों के लिए कुछ नाश्ता लेकर आती हूँ।”, माँ ने कहा। संजु ने माँ की ओर देखा और जैसे अपनी आँखों से कहा कि माँ तुम जल्दी आ जाना। और माँ ने भी इशारों इशारों मे ही कह दिया कि वो जल्दी ही आकर कुछ करेगी।
संजु अब भी घबराया हुआ था। उसने मुड़कर ऋतु की ओर देखा तो ऋतु की आँखें उत्साह से चमक रही थी। वो तो बस संजु से अकेले मे बातें करने को उत्साहित थी। और फिर संजु ऋतु के साथ अपने कमरे की ओर बढ़ चला। संजु ने अभी भी अपने पल्लू से अपनी पीठ को ढँककर रखा हुआ था और अपने बायें हाथ से सामने की ओर किये हुए पल्लू को पकड़ा हुआ था जैसे अक्सर घर की बहुएँ करती है। बस संजु का सर ढंका हुआ नहीं था। धीरे धीरे कदम बढ़ाता हुआ संजु सीढ़ियों की ओर बढ़ चला जो उसके कमरे की ओर ले जाती थी। ऋतु के लिए संजु को इस तरह देखना तो मजेदार था। अभी तक तो वो यही मान रही थी कि संजु ने साड़ी सिर्फ माँ के कहने पर पहनी है। मगर संजु तो बिल्कुल ही एक शालीन स्त्री की तरह लग रहा था। घबराहट मे धीरे धीरे चलता हुआ संजु बिल्कुल औरत लग रहा था।
जब सीढ़ी के पास पहुंचे तो संजु ने अपने दायें हाथ से अपनी साड़ी की प्लेटस को पकड़ कर अपनी साड़ी को जरा ऊंचा उठाया ताकि वो सीढ़ियों पर आसानी से चढ़ सके। उसका दूसरा हाथ अभी भी पल्लू को पकड़े हुए था। ऋतु उसे ऐसे करते देख हतप्रभ रह गई।
“संजु तुझे तो साड़ी पहनकर चलना अच्छी तरह से आता है।”, ऋतु ने लगभग हँसते हुए कुँहनी से संजु की कुँहनी को छूते हुए ऐसे कहा जैसे वो संजु को छेड़ना चाहती हो।
“माँ ने मुझे कुछ देर पहले ही सीखाया था जब हम दोनों ऊपर गए थे।”, संजु ने शायद ऋतु के सामने पहले शब्द कहे थे। उसके शब्दों मे कोई उत्साह नहीं था।
और फिर दोनों ही चुपचाप ऊपर चढ़ने लगे। उस दौरान एक अजीब सी शांति थी और उस शांति को चीरने वाली सिर्फ एक आवाज थी जो संजु की साड़ी से आ रही थी। ऊपर चढ़ते वक्त उसकी साड़ी उसके कूल्हों और पैरों पर रगड़ खाती हुई सरसराहट की आवाज कर रही थी। ऋतु तो इस वक्त मन ही मन मुस्कुरा रही थी। और विवश संजु एक बेचैनी से अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था।
जैसे ही दोनों संजु के कमरे मे पहुंचे, संजु की नजर सबसे पहले तो उन तीन साड़ियों पर पहुंची जिसे उसकी माँ लेकर उसके पास पहुंची थी ताकि संजु उन साड़ियों मे से एक पसंद कर सके। उन्हे देखते ही संजु को समझ आ गया था कि ऋतु उनके बारे मे जरूर कुछ पूछेगी।
संजु का डर सही था। ऋतु ने जैसे ही बिस्तर पर पड़ी हुई साड़ियों को देखा तो वो तुरंत उन साड़ियों को पकड़कर उन्हे देखने लगी।
“संजु, ये साड़ियाँ? तेरी है क्या?”, और फिर ऋतु ही ही कर हँसने लगी। वो इतना तो समझती थी कि ये साड़ियाँ संजु की नहीं हो सकती फिर भी वो संजु को छेड़ने का मौका नहीं छोड़ना चाहती थी।
“ऋतु, तू पागल है क्या? ये सब माँ की साड़ियाँ है। वही लेकर आई थी और मुझसे इनमे से एक पसंद करने को कहा था।”, संजु ने खीजते हुए कहा।
“अच्छा ठीक है। तू गुस्सा क्यों होता है? तुझे साड़ी पहनने तेरी मम्मी ने कहा है मैंने नहीं।”, ऋतु ने कहा और गौर से वो उन साड़ियों को देखने लगी।
“वैसे संजु, सच कहूँ तो तेरी चॉइस सही मे अच्छी है। इन सभी साड़ियों मे शायद तूने सबसे सुंदर साड़ी पसंद किया था। जब मैं कभी लाइफ मे अपने लिए साड़ी खरीदूँगी न तो तुझे ही साथ मे ले जाऊँगी पसंद करने के लिए।”, ऋतु फिर संजु को छेड़ने लगी मगर संजु की गुस्से भरी नज़रों के सामने वो चुप हो गई।
“हम्म … ये साड़ी तो सिल्क की है। बहुत सुंदर साड़ी है। मैं भी न किसी दिन सिल्क की साड़ी पहनकर देखना चाहती हूँ। पर मुझे अभी तक साड़ी संभालने की प्रैक्टिस नहीं है। शायद मैंने लाइफ मे अब तक दो ही बार सलीके से साड़ी पहनी है। वैसे संजु, सच कहूँ तो तुझे देखकर लग रहा है कि पहली बार साड़ी पहनकर भी तू साड़ी को मुझसे भी बेहतर तरीके से संभाल रहा है।”, इस बार ऋतु हंसी नहीं। वो नहीं चाहती थी कि संजु का गुस्सा और बढ़े।
संजु ऋतु की बात अनदेखा करते हुए इस वक्त अपने स्कूल बैग को खोलकर उसमे से कुछ कॉपी किताब निकालने की कोशिश कर रहा था। चूंकि वो नहीं चाहता था कि ऋतु को संजु का बैकलेस ब्लॉउज और खुली पीठ दिखाई दे इसलिए उसने अभी भी अपने एक हाथ से पल्लू पकड़ा हुआ था। सिर्फ एक हाथ फ्री होने की वजह से उसे बैग खोलकर कॉपी किताब ढूँढने मे मुश्किल हो रही थी। इसी झुंझलाहट मे उसने ऋतु से कहा, “तुझे कौनसे सब्जेक्ट के होमवर्क के बारे मे बात करनी है?” उसकी आवाज मे एक अनकहा गुस्सा था।
“अरे गुस्सा क्यों करता है? मुझे तो सिर्फ तुझसे मिलना था, मुझे कोई होमवर्क नहीं डिस्कस करना है। पर फिर भी तू फिज़िक्स की बुक निकाल ले ताकि आंटी को कोई शक न हो।”, वो मुस्कुराकर बोली।
संजु अब भी एक हाथ से बैग मे ढूंढते हुए झुँझला रहा था जो उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था। ऋतु ने संजु को यूं संघर्ष करते देख कहा, “तुझे एक हाथ से इतनी परेशानी हो रही है तो तू एक मिनट के लिए अपनी साड़ी को छोड़ क्यों नहीं देता? दोनों हाथों से जल्दी ढूंढ सकेगा तू अपनी बुक्स।”
ऋतु ने ये बस कहा ही था कि संजु के न चाहते हुए भी कैसे उसके हाथों के बीच से उसकी साड़ी फिसल गई। फिसल क्या गई, उसकी साड़ी उसके पीठ से फिसलते हुए उसका पूरा पल्लू जैसे उस कमरे मे लहराकर नीचे आने लगा। और उस पल्लू के पीछे छिपी हुई संजु की खूबसूरत पीठ और खूबसूरत लाल रंग का ब्लॉउज़ दिखने लगा। यूं तो फिसलती हुई साड़ी और धीरे से दिखती हुई पीठ का दृश्य बहुत ही खूबसूरत था मगर ऋतु की दृष्टि से वह कुछ अलग ही था। संजु की पीठ और सेक्सी ब्लॉउज़ देखते ही ऋतु का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया।
“संजु!!! तेरा ब्लॉउज़ तो कितना सेक्सी है यार।”, ऋतु का उत्साह उसके शब्दों मे झलक रहा था।
अचानक से यूं हुए प्रदर्शन से संजु सकपका गया और तुरंत ही वो पल्लू के उस छोर को ढूँढने लगा ताकि वो उसे पकड़ कर फिर अपनी पीठ को ढँक सके। मगर ऋतु इस वक्त संजु से तेज थी। उसने झट से उठकर संजु का पल्लू पकड़ लिया और संजु को उसकी पीठ ढंकने से रोक दिया।
ऋतु ने आगे बढ़कर संजु से धीरे से कहा, “यार, काश मेरी मम्मी मुझे ऐसा ब्लॉउज़ पहनने देती। मैं तो उनसे रीक्वेस्ट करती रह गई थी कि मेरी पीठ मे भी गला ब्लॉउज़ का जरा बड़ा कर दे पर वो मानी नहीं थी। तू लकी है जो तुझे तेरी मम्मी मिली।”
संजु ने ऋतु की ओर ऐसी नज़रों से देखा जैसे कह रहा हो, “इसे तू लकी कहती है? लड़का होकर सेक्सी ब्लॉउज़ पहनना लकी है?” कम से कम ऐसा ऋतु को उसकी नज़रों को देखकर लग रहा था। जबकि संजु तो पूरी तरह से झेंप गया था। संजु को समझ नहीं आ रहा था कि वो इस वक्त क्या करे पर ऋतु तो इस वक्त उसके ब्लॉउज़ को निहारने मे व्यस्त थी। लड़कियां भी कभी कभी ऐसी होती है न कि उन्हे तो बस कपड़ों की डिजाइन से मतलब रहता है। ऋतु को भी इस वक्त ब्लॉउज़ के डिजाइन से मतलब था भले ही उस डिजाइन मे संजु की पीठ किसी सेक्सी लड़की की पीठ की तरह लग रही थी।
संजु ने एक बार फिर पल्लू ऋतु के हाथ से छुड़ाने की कोशिश किया। मगर ऋतु ने उसे जाने न दिया, “एक मिनट न संजु। मुझे तेरा ब्लॉउज़ तो देखने दे। सचमुच कितना खूबसूरत डिजाइन है इसका।”, और ऋतु संजु की पीठ पर उसके ब्लॉउज़ पर हाथ फेरकर उस ब्लॉउज़ के डिजाइन और कपड़े को महसूस करने लगी। और इसी कोशिश मे ऋतु ने ब्लॉउज़ के नीचे से उंगली डालकर ब्लॉउज़ के कपड़े को अपनी उंगलियों के बीच पकड़कर उसे छूकर महसूस करने लगी। और इसी कोशिश मे उसकी उंगलियों को कुछ और भी महसूस हुआ।
ब्लॉउज़ के अंदर जो चिकनी सतह ऋतु इस वक्त महसूस कर पा रही थी वो सतह संजु की पीठ की नहीं थी बल्कि संजु की पहनी हुई ब्रा की थी। इस वक्त ऋतु के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी। वो खुद जो ब्रा पहना करती थी वो कॉटन की हुआ करती थी, जबकि ये ब्रा छूने से ही प्रतीत होता था कि ये थोड़ी महंगी किस्म की है। ऐसी ब्रा तो उसने सिर्फ दुकानों मे देखी थी मगर उसे खुद पहनने का मौका कभी नहीं मिला था। उसकी मम्मी उससे कहती थी कि जब ऋतु की ब्रा का साइज़ एक बार फिक्स हो जाए तब वो उसके लिए महंगी ब्रा खरीद कर देंगी। मिडल क्लास फॅमिली मे बढ़ रही ऋतु भी एक समझदार बेटी की तरह माँ की बात मान जाती। वैसे भी उसके लिए माँ के साथ जाकर ब्रा खरीदना थोड़ा शर्मिंदगी भरा पल होता था।
“संजु तूने तो ब्रा पहना है”, ऋतु की आवाज मे अचरज का भाव था। संजु की माँ ने उसे साड़ी और ब्लॉउज़ पहनाया चाहे उसके पीछे जो भी कारण हो, मगर संजु को ब्रा पहनाना और वो भी महंगी वाली, ये कुछ अजीब सा लग रहा था उसे।
“ब्रा? तुझे सिर्फ ब्रा दिख रही है? मैं इस वक्त किसी अजूबे की तरह साड़ी, ब्लॉउज़ पेटीकोट और चूड़ी पहना हुआ हूँ, तुझे वो नहीं दिख रहा। ऋतु मैं इस बारे मे और बात नहीं कर सकता।”, संजु ने कुछ सोच समझकर जवाब दिया।
संजु के जवाब से ऋतु का दिल पूरी तरह से आश्वस्त तो नहीं हुआ था पर फिर भी उसने खुद को समझाने की कोशिश की। “वैसे संजु देखकर लग रहा है कि तूने B कप साइज़ की ब्रा पहना है।”, ऋतु ने यूं ही कहा। संजु को साइज़ के बारे मे कोई अंदाजा नहीं था। ऋतु के आने के पहले तक तो वो इस बात से खुश था कि अब उसके स्तन ऋतु के स्तनों के आकार के हो गए थे।
“ऋतु मैंने कहा न मुझे इस बारे मे और बात नहीं करना है।”, संजु ने ऋतु के हाथ से झटककर अपनी साड़ी छुड़ाई और एक बार फिर उसने खुद को ढँक लिया। इस वक्त संजु एक लड़के की तरह बोल रहा था पर साड़ी की वजह से उसके भाव लड़कियों की तरह ही लग रहे थे। साड़ी के साथ कोई कुछ भी करे उसमे एक स्त्री-बोध होता ही है।
“वैसे मैं भी B कप साइज़ के ब्रा पहनती हूँ।”, ऋतु ने एक असहज मुस्कान के साथ कहा और संजु को छोड़कर कमरे मे चलने लगी। और न जाने क्यों उस कमरे मे रखी हुई अलमारी को देख उसके मन मे एक आशंका हुई। सहसा ही ऋतु को कुछ देर पहले का वह दृश्य याद आने लगा जब संजु ने नीचे पहली बार खुद को झट से साड़ी से लपेटकर ढंका था। उसे याद आ रहा था कि उसने संजु के ब्लॉउज़ के बीच स्तनों मे गहराई देखी थी।
“वैसे संजु तूने अपनी ब्रा मे भरा क्या है?”, ऋतु हँसते हुए बोली। मगर संजु ने कोई जवाब नहीं दिया। ऋतु से बेखबर संजु इस वक्त फिज़िक्स के कॉपी और किताब निकालकर टेबल पर रख रहा था। ऋतु की ओर ध्यान न देना ये संजु की इस वक्त सबसे बड़ी गलती साबित होने वाली थी।
बेखबर संजु से अलग ऋतु ने संजु की उस अलमारी को खोला। पहली नजर मे तो उस अलमारी मे उसे संजु के स्कूल यूनिफॉर्म और दूसरे कपड़े नजर आए। मगर उस अलमार के एक हिस्से मे उसकी नजर पड़ी जहां २-३ नाइटियाँ रखी हुई थी जिन्हे पहनकर संजु घर मे सोया करता था। वो नाइटियाँ अलमारी के दूसरे दरवाजे के पीछे थोड़ी छिपी हुई थी सो ऋतु ने दूसरा दरवाजा भी खोल दिया। और दूसरा दरवाजा खोलते ही ऋतु को हैंगर मे टंगे हुई ४-५ सलवार सूट दिखाई दिए जिनपर उनसे मैच करते हुए दुपट्टे भी टंगे हुए थे। हालांकि संजु दुपट्टे का इस्तेमाल नहीं करता था फिर भी वो सभी सलवार के साथ रखे हुए थे। ऋतु को उन्हे देखते ही समझ आ गया था कि ये साइज़ के सलवार संजु की माँ के तो नहीं हो सकते। उस घर मे वैसे भी संजु के अलावा उस साइज़ का कोई और था नहीं।
ऋतु ने उनमे से एक सूट और दो नाइटियाँ हाथ मे पकड़ कर निकाली और संजु की ओर पलट कर बोली, “संजु ये सब किसलिए है?”
ऋतु की आवाज सुन जैसे ही संजु उसकी ओर पलटा, उसके हाथ पैर मानो पत्थर की तरह सुन्न हो गए। संजु की जुबान पे जैसे लकवा मार गया हो। इतनी देर से ऋतु के साथ इस अजीब सी परिस्थिति मे संजु वैसे ही टेंशन महसूस कर रहा था और अब वही हुआ जिसका उसे डर था। अब उन कपड़ों के बारे मे वो या उसकी मम्मी कैसे ऋतु को समझायेंगे? अब जब सब कुछ संजु के हाथ से निकल चुका था, संजु के दिल दिमाग ने इस वक्त जवाब दे दिया था, वो हार मान चुका था और उस भाव विभोर अवस्था मे संजु के होंठ कांप उठे और उसकी आँखों मे आँसू आ गए थे।
संजु को इस हालत मे देखकर ऋतु का भी दिल पसीज गया। वो संजु को इस तरह शर्मिंदा नहीं महसूस कराना चाहती थी और न ही उसे रुलाना चाहती थी। वो तो खुद संजु के इस राज की वजह से अंदर से कमजोर महसूस कर रही थी। उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके बचपन का दोस्त संजु जिसके साथ वो खेल कूदकर बड़ी हुई थी, वह लड़का होते हुए भी साड़ी क्यों पहने हुए था? क्या वजह थी कि उसकी अलमारी मे लड़कियों के कपड़े थे? उसे खुद कुछ समझ नहीं आ रहा था। और इस वक्त संजु को नम आँखों के साथ एक बूत की तरह खड़े देखकर उसका दिल पिघल उठा और वो संजु की ओर बढ़ चली।
“बच्चों, मैं तुम दोनों के लिए कुछ नमकीन लेकर आई हूँ। पढ़ाई के साथ कुछ खा भी लेना।”, तभी कमरे मे संजु की माँ दाखिल हुई।
ऋतु के हाथ मे संजु का सलवार और नाइटी देखकर और संजु की नम आँखें देखकर संजु की माँ को समझ आ गया था कि अब स्थिति हाथ से बाहर हो चुकी है। शायद उन्हे भी अंदेशा हो गया था कि अब ऋतु को जब तक जवाब नहीं मिल जाते तब तक वो हमेशा ये जानना चाहेगी कि संजु के पास लड़कियों के कपड़े क्यों है। आज नहीं तो कल उन्हे दुनिया को संजु के सच से वाकिफ कराना ही था पर कम से कम वो हमेशा से बस यही चाहती थी कि कब और किसे ये सच बताना है और कैसे बताना है, ये तो वो अपनी मर्जी से तय करेंगी। और फिर हमेशा से ही मन मे ये उम्मीद भी रहती थी कि यदि संजु की दवाइयों ने असर कर दिया तो शायद कभी किसी को ये सच बताने की जरूरत ही न पड़े। मगर इस वक्त उनके पास सच बताने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा था।
“तुम दोनों अभी इस वक्त मेरे साथ नीचे के कमरे मे चलो।”, माँ ने कठोर आवाज से कहा। संजु और ऋतु दोनों ही माँ की ओर देखते रह गए।
नीचे ड्रॉइंग रूम मे एक बार फिर खामोशी छाई हुई थी। संजु और ऋतु एक सोफ़े पर बैठे हुए थे। उन दोनों के बीच इस वक्त एक दूरी थी। ऋतु के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें थी वहीं संजु के शरीर मे कंपकंपी छूट रही थी। उसके बारे मे सच आज पहली बार घर के बाहर किसी को पता चलने वाला था, वो भी ऋतु को जिससे वो मन ही मन प्यार करता था। क्या उसका प्यार इस सच के बाद बच पाएगा? ये सब जानने के बाद ऋतु का व्यवहार उसकी तरफ कैसा होगा? ऐसे कई सवाल या डर उसके मन मे थे।
उन दोनों के सामने संजु के मम्मी एक अलग सोफ़े पर बैठी हुई थी। उनके चेहरे पर गंभीरता के भाव थे। वो अपने सामने संजु और ऋतु दोनों को देख रही थी। ऋतु नर्वस होकर अपने दुपट्टे को अपनी उंगलियों के बीच पकड़कर परेशान सी लग रही थी। यह साफ था कि इस वक्त जो भी बात होगी वो संजु की माँ ही करेगी। उन सबमे सबसे परिपक्व वही तो थी।
माँ ने ऋतु की ओर देखा और कहा, “ऋतु बेटा। कभी कभी कुछ सच ऐसे होते है जिनको जानने के लिए दुनिया तैयार नहीं रहती है। और वो सच सिर्फ सही समय आने पर दुनिया के सामने उजागर किया जाता है। मैं जानती हूँ कि तुम्हारे मन मे संजु को लेकर बहुत से सवाल है। और मैं यह भी जानती हूँ कि संजु तुम्हारा दोस्त है और तुम हमेशा उसके लिए अच्छा ही चाहोगी। मैं सही कह रही हूँ न?”
“जी आंटी”, ऋतु ने धीमी स्वर मे अपना सर हाँ मे हिलाया।
“देखो बेटा। ये एक बहुत ही गंभीर बात है। और मैं चाहती हूँ कि तुम्हें इस बात का एहसास रहे कि ये सच जानना एक बेहद जिम्मेदारी का काम है। क्या तुम इस जिम्मेदारी को स्वीकारने के लिए तैयार हो?”, माँ ने ऋतु से फिर पूछा।
“जी”, ऋतु के मुंह से अब शब्द नहीं निकल रहे थे।
“पता है तुम्हें कभी कभी लाखों बच्चों मे एक स्पेशल बच्चे का जन्म होता है। जो हर तरह से खास होते है। संजु भी ऐसा ही खास बच्चा है। बहुत स्पेशल है संजु। इतना स्पेशल की हर कोई उसकी बात समझ सके यह संभव नहीं है। तुम तो सुपर-मैन की कहानी जानती ही होगी न? वो भी स्पेशल था। उसमे कई खूबियाँ थी पर फिर भी उसके माता पिता उसकी खूबियों के बारे मे दुनिया मे किसी को नहीं बताते थे। क्योंकि वो जानते थे ये दुनिया उनके बेटे के सच को जानने के काबिल नहीं थी। और जब सही समय आया, तब सुपर-मैन ने अपनी खासियत दुनिया को दिखाई थी। फिर भी उसका सच और पहचान उसे दुनिया से छिपा कर रखना पड़ता था। तुम समझ रही हो मेरी बात?”, माँ ने कहा तो ऋतु ने एक बार फिर नजरे झुकाकर हाँ मे सर हिलाया।
“बेटा, संजु भी कुछ ऐसा ही स्पेशल है। हो सकता है कि उसे सुपर-मैन की तरह जीवन भर अपनी पहचान छिपा कर न रखनी पड़े। मगर इस वक्त उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए यह जरूरी है कि उसका ये सच दुनिया मे किसी को न पता चले।”, माँ ने कहा और कुछ देर के लिए चुप हो गई।
ऋतु ने अपनी आँखें उठाकर एक बार संजु और एक बार संजु की माँ की ओर देखा जैसे वो उनसे कहना चाह रही हो कि वो इस सच को जाने की जिम्मेदारी उठाने को तैयार है। वैसे भी इस वक्त संजु और उसकी माँ को ऋतु पर भरोसा करने के अलावा उनके पास और कोई रास्ता नहीं था।
यूं तो संजु की माँ खुद अंदर से थोड़ी घबराई हुई थी पर अपने बेटे के सामने वो कहीं से भी कमजोर नहीं लगना चाहती थी। कहीं से भी वो संजु को ये महसूस नहीं कराना चाहती थी कि उन्हे किसी भी प्रकार की कोई शर्मिंदगी है।
और फिर संजु की माँ ने ऋतु को संजु के बारे में बताना शुरू किया। ऋतु को जरा बायोलोजी के बारे मे समझाते हुए उन्होंने ऋतु को संजु के एक्स्ट्रा X क्रोमज़ोम के बारे मे समझाया। और समझाया कि किस तरह संजु के शरीर मे बदलाव आ रहे है जो कि देखा जाए तो पूरी तरह स्वाभाविक रूप से होने वाले बदलाव है। बस दुनिया इन्हे समझ नहीं सकती है। उन्होंने ऋतु को बताया कि किस तरह संजु का इलाज चल रहा है और किस तरह संजु को भविष्य मे निर्णय लेना पड़ सकता है कि वह किस तरह से अपना जीवन जीएगा। अपने भविष्य को लेकर इतनी अनिश्चितताओं के बीच न जाने संजु कैसे जी रहा होगा, यह सोचकर ही ऋतु के दिल भर आया था।
संजु की माँ से सब कुछ जानने के बाद ऋतु का दिल एक ओर तो भाव-विभोर हो रहा था पर साथ ही उसे एक तसल्ली थी कि वो अपने दोस्त की अब राजदार थी और वो अपने दोस्त के जीवन मे एक अच्छे दोस्त की तरह उसका साथ भी दे सकती थी। पूरी बात सुनने के कुछ देर बाद चुप रहने के बाद उसने संजु के एक हाथ अपने हाथ मे पकड़ कर संजु के माँ से कहा, “आंटी मैं नहीं समझ सकती कि आप दोनों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा होगा पर मैं आपको विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि आज के बाद मेरी और संजु की दोस्ती और भी गहरी होगी। मुझे खुशी होगी कि मैं संजु के जीवन की इस यात्रा मे उसकी दोस्त बनकर हर पल उसके साथ रहूँगी। कम से कम मैं वो इंसान रहूँगी जिसके सामने संजु को छिपकर रहने की जरूरत नहीं होगी, ये सोचकर मुझे कहीं न कहीं अच्छा भी लग रहा है।”
और फिर संजु की ओर मुड़कर ऋतु ने कहा, “संजु मैं तुझे प्रामिस करती हूँ कि मैं हमेशा ये दोस्ती निभाऊँगी और हमेशा तेरा साथ दूँगी।” ऋतु की बात सुनकर संजु की माँ मुस्कुरा दी।
ऋतु ने तो यह बात अपने दिल से कही थी मगर जब बात ही इतनी मुश्किल हो तो कहीं न कहीं अविश्वास बढ़ने की संभावना तो होती ही है। ऋतु की बात सुनकर संजु ने अपना हाथ उसके हाथ से वापस खींच लिया। जब आज सुबह ऋतु और संजु ने बात की थी, तब बात प्यार की हुई थी, दोस्ती की नहीं। संजु के अंदर नकारात्मक भाव आने लगे थे। उसे लगने लगा था कि संजु की स्थिति की वजह से ऋतु अब उससे उस तरह का प्यार नहीं करेगी। बॉयफ्रेंड से फ्रेंड बनने तक का ये सफर बहुत छोटा था। जहां ऋतु उसे विश्वास दिलाना चाह रही थी वहीं संजु को वही बात अब चुभ रही थी।
“माँ, अब मैं अपने कमरे मे जा रहा हूँ।”, संजु ने उठकर माँ से कहा। उसने ऋतु की ओर पलटकर तक नहीं देखा। अब उसे ऋतु पर जरा भी प्यार नहीं आ रहा था। इससे पहले की माँ या ऋतु कुछ और कहती, संजु कमरे से उठकर जा चुका था।
ऋतु बस उसकी ओर देखती रह गई कि शायद संजु उसकी ओर एक बार मुड़कर देखेगा पर संजु ने ऐसा कुछ नहीं किया। ऋतु मन ही मन रोना चाहती थी, वो संजु को गले लगाकर अपने दिल की बात कहना चाहती थी, मगर संजु भी उसके दिल का सच जानने के लिए तैयार नहीं था, कम से कम इस वक्त तो नहीं। संजु और उसके बीच का रिश्ता आगे कैसे बदलेगा, यह सोचकर ऋतु अंदर ही अंदर परेशान थी। संजु के चले जाने के बाद ऋतु ने संजु की माँ की ओर देखा। माँ ने ऋतु के प्रति संजु का रूखापन नोटिस कर लिया था।
“बेटा, शायद संजु को इस वक्त एकांत की जरूरत है। उसे कुछ समय दो।”, माँ ने कहा।
“जी आंटी।”, ऋतु ने एक बार फिर हौले से सर हिलाया। “अच्छा आंटी, मैं भी अब घर चलती हूँ।”, ऋतु ने संजु की माँ से कहा। वो कहना तो और भी बहुत कुछ चाहती थी पर कभी कभी हम ऐसी परिस्थिति मे होते है कि दिल तो लाख भला चाहता है पर उसे बयान करने के लिए शब्द नहीं होते है। ऋतु की भी यही हालत थी। और फिर उदास चेहरे के साथ वो उठकर जाने लगी। माँ ने ऋतु के चेहरे की उदासी देख ली थी।
“ऋतु बेटा। तुम २ दिन बाद फिर से वापस आना।”, माँ ने भी ऋतु को दिलासा देनी की असफल कोशिश की।
“ऋतु, तू घर आ गई? होमवर्क के बारे मे पूछ आई संजु से।”, अपने घर मे ऋतु ने पहुँचने पर उसकी माँ की आवाज सुनी।
“हाँ, माँ। संजु से बात हो गई है मेरी। अब मुझे बहुत होमवर्क करना है। मैं अपने कमरे मे जा रही हूँ। तुम मुझे दो घंटे तक परेशान मत करना”, ऋतु ने अपनी माँ को जवाब दिया। वो भी इस वक्त एकांत चाहती थी। उसकी माँ ने यदि ऋतु का उदास चेहरा देख लिया होता तो उन्हे समझाने मे उसे बड़ी मुश्किल आती। इसलिए वो माँ से बिना मिले ही अपने कमरे मे चली गई और अंदर जाते ही कमरे की सिटकनी लगा दी।
और फिर अपने टेबल पर कुर्सी लगाकर बैठ गई। उसके आँखों के सामने उसकी अपनी एक डायरी थी। उस डायरी को देखते ही ऋतु रोने लगी। कहीं उसकी माँ ने सुनले इसलिए धीरे धीरे सिर्फ आँसू बहाकर वो वहाँ सिसकती रही।
“आज मेरे लिए सबसे खुशी का दिन है। आज सुबह सुबह मैं संजु का पीछा करते हुए साइकिल से गई थी। आज इतने दिनों बाद संजु ने मुझसे कुछ बातें की। इतने दिनों से वो मुझसे इसलिए बात नहीं कर रहा था क्योंकि उसे जलन हो रही थी कि दूसरे लड़के मुझसे बातें करते थे। पागल है संजु भी न! मगर उसकी जलन के बाद भी मुझे उस पर प्यार आ रहा था। आज स्कूल मे मैं उसे छिप छिप कर देख रही थी। मुझे लगता है कि वो भी मुझे छिप छिप कर देख रहा था। न जाने क्यों उसे देखकर मुझे इतनी खुशी मिल रही थी। और फिर स्कूल के बाद जब हम दोनों साथ मे वापस आ रहे थे तो हम दोनों अपने पुराने दिनों की तरह ढेर सारी बातें करते हुए आए। मुझे बहुत अच्छा लगा उसके साथ बात कर। संजु मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। मैं सोच रही हूँ कि यदि संजु ने मुझसे यूं बात करना बंद न किया होता तो शायद मैं कभी समझ ही नहीं पाती कि संजु मेरे लिए सिर्फ एक साधारण दोस्त नहीं है। जब वो मुझसे बात नहीं कर रहा था तब मैं कितनी बेचैन थी उससे मिलने और उससे बात करने के लिए। और आज, उसके साथ बातें करते हुए मुझे न जाने क्यों दिल मे कुछ हलचल महसूस कर रही थी। वैसे तो मैं उससे हमेशा की ही तरह व्यवहार कर रही थी मगर मेरे दिल मे कुछ और भी चल रहा था। मुझे लगता है कि मैं संजु को चाहने लगी हूँ। क्या संजु मेरा बॉयफ्रेंड है? सोच रही हूँ कि मैं ये बात सीधे संजु से ही कर लूँ। चलो, मैं आज उसके घर जाकर सप्राइज़ देती हूँ। उसकी मम्मी यदि कुछ पूछेगी तो मैं होमवर्क का बहाना बना लूँगी। वैसे भी पता नहीं क्यों उसकी मम्मी भी मुझे संजु से मिलने से रोकती है। हमेशा यह कहकर मना कर देती है कि संजु पढ़ाई कर रहा है। अब देखती हूँ कि आंटी मुझे होमवर्क के बहाने से मिलने से कैसे रोकती है। मैं आ रही हूँ संजु <3"
ये बातें ऋतु ने आज स्कूल से आने के बाद अपनी डायरी मे लिखी थी जिसमे वो अपने दिल की बातें लिखा करती थी। संजु के घर वो क्या सोच कर गई थी और वहाँ जाकर जो हुआ वैसा तो उसने सपने मे भी नहीं सोचा था। कुछ देर रोने के बाद ऋतु अपने दिल मे चल रही हलचल को अपनी डायरी मे लिखना चाहती थी। पर उसने खुद को कुछ भी लिखने से रोक लिया। अब वो संजु का सच जानती थी। और संजु के सच के बारे मे जरा भी कुछ लिखना खतरे से खाली नहीं था। यदि गलती से भी किसी ने उसकी डायरी पढ़ ली, तो संजु का सच बाहर आ जाएगा। अब ऋतु को संजु की बात अपने दिल मे ही छिपा कर रखनी थी। अपनी मजबूरी के बारे मे सोचकर वो एक बार फिर रोने लगी।
कुछ देर पहले तक ऋतु के दिल मे पहले प्यार की खुशी समा नहीं रही थी। अब उस खुशी की जगह चिंता ने ले ली थी। संजु के लिए ये समय कितना कठिन होगा? यदि संजु सचमुच आगे चलकर लड़की बन गया तो क्या होगा? क्या संजु उससे प्यार करता है? ऋतु का संजु के प्रति प्यार का क्या होगा? एक लड़की होकर क्या लड़की बन चुके संजु से वो प्यार कर सकेगी? आजकल तो वैसे लड़की भी दूसरी लड़की से प्यार कर सकती है, तो वो क्यों नहीं? ऐसे ही अनगिनत सवाल उसके मन को घेर रहे थे। और किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था। आगे क्या होगा ये तो समय बताएगा। पर ये समय का इंतज़ार कितना कठिन होगा उसके लिए। यदि उसके लिए ये इतना कठिन है तो संजु के लिए? संजु के बारे मे सोचते ही उसका दिल भर आया।
रहरहकर ऋतु के मन मे संजु की साड़ी पहनी हुई तस्वीर उभर रही थी। उसका ब्लॉउज़, उसकी पीठ, उसके स्तनों के बीच की गहराई को छिपाते हुए संजु के तस्वीर उसे विचलित कर रही थी। संजु के इस रूप के साथ कैसे दोस्ती निभाएगी ऋतु? अपने कमरे मे शायद १ घंटे रहने के बाद ऋतु बाहर आई तो उसके चेहरे से रौनक गायब थी जिसे ऋतु की मम्मी ने देख लिया था।
“क्या हुआ? संजु से तेरा झगड़ा खत्म नहीं हुआ अब तक?”, मम्मी ने ऋतु से पूछा तो ऋतु आश्चर्य से देखने लगी।
“मम्मी, तुम्हें किसने कहा कि मेरा संजु से झगड़ा हुआ है?”, ऋतु ने कहा।
“तुम दोनों इतने दिनों से बात नहीं कर रहे हो। तो मैं खुद ही समझ गई। संजु क्यों नाराज है तुझसे?”, मम्मी ने यूं ही पूछ लिया। उसकी मम्मी के लिए तो संजु और ऋतु बचपन के दोस्त थे।
“नहीं है वो नाराज। तुम अपने मन मे कहानी बनाना बंद करो।”, ऋतु ने कहा और माँ के साथ किचन मे हाथ बँटाने लगी।
संजु के घर मे संजु अपने कमरे मे अकेला था। बिस्तर पर उलट कर लेटा हुआ संजु भी अकेले ही अकेले रो रहा था। किसी ने उसे इस वक्त देख लिया होता तो उसे लगता कि एक लड़की रो रही है। संजु की साड़ी बेतरतीब हो गई थी।
संजु की माँ जानती थी कि संजु को अभी एकांत की जरूरत है इसलिए उन्होंने संजु को अकेला ही छोड़ दिया था। मगर कुछ घंटे बीत जाने के बाद वो संजु के कमरे मे गई जहां संजु उसी अवस्था मे लेटा हुआ था।
माँ ने संजु को देखा और बिस्तर पर बैठ गई। उन्होंने प्यार से संजु के सर को उठाकर अपनी गोद पर रखा और सर और बालों पर हाथ फेरने लगी जैसे वो उसे सहारा दे रही हो। संजु भी माँ के गोद मे सर रखकर थोड़ा अच्छा महसूस कर रहा था। और फिर उसने खुद के घुटनों को अपने पास लाकर कुछ इस तरह मोड़ लिया कि जैसे वो बिल्कुल छोटा बच्चा बनकर अपनी माँ की गोद मे समा जाना चाहता है। संजु की माँ ने संजु के घुटनों पर साड़ी को सुधारकर उसके पैरों को साड़ी से ढँक दिया और उसके पल्लू से संजु की पीठ को ढँक दिया। साड़ी की गर्माहट मे माँ का प्यार है, संजु को वो बात याद आई और अपनी साड़ी मे छिपकर और अपनी माँ की गोद को पकड़कर वो आँसू बहाने लगा।
इस पल मे वो दोनों एक बार फिर माँ बेटी बन चुके थे। कभी कभी जीवन मे ऐसे मौके आते है जब कहने को तो बहुत कुछ होता है पर फिर भी कुछ न कहना बेहतर होता है। ये भी ऐसा ही पल था। संजु अपनी माँ की गोद मे सर रखकर आँखें बंद कर चुकी थी। और माँ भी अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरती रही। और उस पल मे संजु अपनी माँ के गोद मे ही सो गई।
क्रमश:
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