ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग ५: पापा
“कैसी हो सुधी?” फोन पर “सुधी” शब्द सुनते ही जैसे संजु की माँ के दिल की सारी हसरतें उमड़ उठी। उसका जीवन तो जैसे हमेशा सिर्फ और सिर्फ संजु की माँ के रूप मे ही गुज़रता था। पर संजु की माँ बनने के पहले कभी वो “सुधा” हुआ करती थी। एक माँ होने के अलावा वो एक पत्नी भी थी, जो कि कभी अपने पति की प्रेमिका भी थी। संजु के पापा उसे प्यार से सुधी कहकर पुकारते थे। और फोन पर ‘सुधी’ सुनकर यकायक ही एक पत्नी जाग उठी थी जो न जाने कबसे एक माँ के जीवन के पीछे छिपी थी।
“अच्छी हूँ।”, सुधा यानि संजु की माँ ने खुशी से कहा। हफ्ते मे पति के फोन एक या दो बार जब भी आते तब वो चंद मिनट ही होते थे जब उसे एहसास होता था कि वो एक पत्नी भी है। और इसलिए सुधा की खुशी वाजिब थी। “तुम कैसे हो, राजीव?”, उसने अपने पति से पूछा जो अपने परिवार से दूर विदेश मे ऑइल कंपनी के लिए काम करता था।
“मैं भी अच्छा हूँ। सुधी तुम अपने फोन पर विडिओ क्यों नहीं चालू कर देती। तुम्हें कबसे देखा नहीं है”, राजीव ने कहा। “अभी करती हूँ।”, सुधा भी तो अपने पति को देखने को आतूर थी। पर ये क्या फोन पर विडिओ चालू ही नहीं हो रहा था। घर का वाईफाई बंद जो था।
“संजु — संजु — जरा देख तो वाईफाई को क्या हुआ है”, सुधा ने कहा। “हाँ, माँ देखती हूँ।”, संजु ने कमरे के अंदर से जवाब दिया जो कि अपनी साड़ी पहने अकेले ही इठला रहा था। न जाने क्यों उसे साड़ी पहनकर इतनी खुशी हो रही थी।
“एक मिनट राजीव। जब तक वाईफाई ठीक होता है तब तक मैं घर के बाहर निकालकर ट्राई करती हूँ। बाहर ४g का सिग्नल ठीक आता है।”, सुधा ने फोन पर राजीव से कहा।
घर से बाहर निकलते निकलते सुधा को भी मौका मिल गया कि वो अपने बिखरे हुए बाल सुधार ले। पति के सामने खूबसूरत बनकर रहना हर पत्नी को अच्छा लगता है और फिर पति इतने समय बाद मिले तो कहना ही क्या। सुधा ने झटपट अपने बालों को खोलकर एक बार उन्हे संवारकर रबर से बांध और फिर दरवाजा खोलकर घर से बाहर आ गई। बाहर आते ही उसने फिर से विडिओ शुरू किया और इस बार फोन पर विडिओ काम कर गया। अपने पति को देखते ही सुधा मुस्कुरा उठी।
“तुम आज भी आज से १७ साल पहले वाली सुधी की ही तरह सुंदर हो। गुलाबी रंग की साड़ी तुम पर हमेशा खूबसूरत लगती है।”, राजीव ने कहा। “क्यों मसखरी करते हो जी। तुम्हारी सुधी बूढ़ी हो रही है।”, वो बोली।
“मेरी सुधी आज भी बहुत सुंदर है। मैं और बहस नहीं करूंगा।”, राजीव ने प्यार से कहा।
“कब आ रहे हो तुम? तुम्हारा कबसे इंतज़ार कर रही हूँ मैं।”
“तुम तो जानती ही हो मेरा काम। अभी भी ३ महीने और बचे है। मैं भी तो घर आने को उतना ही बेताब हूँ तभी तो इतनी रात को जागकर तुम्हें फोन कर रहा हूँ।”, राजीव ने कहा।
“अब इतना लंबा इंतज़ार नहीं किया जाता मुझसे राजीव। अकेली पड़ चुकी हूँ मैं। अब थक भी गई हूँ। तुम अब नौकरी क्यों नहीं बदल लेते।”, सुधा बोली।
“सुधी दिल तो मेरा भी यही चाहता है। लेकिन तुम जानती हो न कि मैं ये नौकरी क्यों कर रहा हूँ?”
“हाँ”, सुधा ने थोड़ा उदास होते हुए कहा।
“बस कुछ साल और संभाल लो सुधी। तब हमारे पास इतने पैसे होंगे कि संजु के इलाज मे जितनी भी जरूरत होगी हम उसे पूरा कर सकेंगे।”, राजीव ने कहा। उसकी आवाज भी थोड़ी धीमी हो गई थी।
“संजु कैसा है?”, राजीव ने सुधा से पूछा।
“अच्छा है।”
“सुधी वो खुश तो है न?”, एक चिंतित पिता ने पूछा।
“हाँ। बहुत खुश है।”, सुधा ने कहा और फिर थोड़ा रुककर बोली, “पता है आज मैंने उसे पहली बार साड़ी पहनाई है। बहुत खूबसूरत लग रहा है साड़ी में। अभी अंदर कमरे मे साड़ी पहनकर चलने की प्रैक्टिस कर रहा है।”
“साड़ी! संजु इतना बड़ा हो गया है।”, राजीव की आवाज मे एक अजीब सा दर्द था। राजीव भी आखिर एक पिता था जो अपने बेटे की स्थिति जानता था। अपने बेटे को धीरे धीरे यूं बेटी बनते देख कहीं न कहीं उसे दुख भी होता था। हालांकि आजतक राजीव ने संजु को कभी भी लड़की के रूप मे नहीं देखा था। सुधा को डर लगता था कि कहीं राजीव संजु को इस तरह देखकर अंदर से टूट न जाए।
“सुधी। मैं संजु को देख सकता हूँ?”, राजीव ने सुधा से पूछा।
“राजीव, तुम उसे इस तरह देख सकोगे? तुम क्यों खुद को दर्द देना चाहते हो राजीव?”, सुधा ने कहा।
“सुधा, यदि मैं अपने बेटे को इस वक्त सहारा न दे सका तो मैं आगे कैसे उसका साथ पाऊँगा? हम दोनों मे दूरी न बढ़ जाएगी। मैंने इस बारे मे बहुत सोचा है और मैंने तय किया है कि संजु की इस यात्रा मे मैं उसके साथ रहूँगा और उसे इस तरह से झूठलाकर नहीं जियूँगा।”
“तुम सचमुच उससे बात करना चाहते हो राजीव? तुम उसे देखकर रोओगे तो नहीं? तुम यदि मजबूत न रहे तो शायद संजु भी टूट जाएगा।”, सुधा ने कहा।
“हाँ, मैं उसे देखना चाहता हूँ सुधा। मेरी संजु से बात करा दो।”
“ठीक है। मैं अभी अंदर जाकर बात कराती हूँ। शायद अब तक वाईफाई भी चालू हो गया होगा।”, सुधा बोली और फोन लेकर अंदर आ गई।
संजु घर के अंदर ही वाईफाई को चालू करके उठा ही था। अपने पल्लू को पकड़े हुए संजु ने माँ से कहा, “माँ अब वाईफाई ठीक हो गया है।”
सुधा संजु के पास आकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली, “संजु तेरे पापा तुझसे विडिओ पर बात करना चाहते है।”
माँ की बात सुनते ही संजु के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई। संजु आजतक अपने पापा के सामने लड़की बनकर नहीं आया था। अपने पापा से वो कैसे नजरे मिलाएगा इस वक्त? वो भी जब उसने साड़ी पहना हुआ है और ऊपर से नीचे तक पूरी तरह से लड़की लग रहा है? अपने पापा के लिए तो वो बेटा ही था। अब कैसे बात करेगा वो पापा से? अचानक ही उसे खुद पर शर्म महसूस होने लगी। जिस साड़ी से वो बहुत खुश था वही साड़ी उसे अब एक जंजाल लगने लगी।
सुधा ने जो ही संजु के हाथ मे फोन पकड़ाया, संजु की नजरे झुक गई। अपने पिता से ये साड़ी ये बिंदी ये ब्लॉउज़ और ये लिप्स्टिक अब कैसे छिपाता वो। और नजरे झुकाए हुए ही उसने सिर्फ इतना कहा, “पापा” और उसकी आवाज लड़खड़ा गई।
“बेटा”, राजीव की आवाज भी अपने बेटे को देख लड़खड़ा गई।
संजु की आँखें भर आई और वह धीमे धीमे रोने लगा। “अरे बेटा तू रो क्यों रहा है? देख तो इतना सुंदर लग रहा है तू। पापा से बात करके कोई रोता है भला?” राजीव ने संजु को खुश करने की कोशिश की।
संजु ने सुबकते हुए ही कहा, “आई ऐम सॉरी पापा”
“अरे सॉरी किस लिए बेटा?”
“आपको मुझे इस तरह देखना जो पड़ रहा है। पापा मैं आगे से ये सब कुछ नहीं करूंगा। मैं आपका बेटा ही रहूँगा।”, संजु अब भी सुबक रहा था।
“बेटा जरा मेरी ओर एक बार देखना।”
राजीव के कहने पर आखिर संजु ने विडिओ की ओर देखा।
“बेटा पता है जब तुम्हारा जनम होने वाला था। तब तो हमको पता भी नहीं था कि हमारा बेटा पैदा होने वाला है या बेटी। पर मैंने तभी तुम्हारी माँ से कहा था कि हमारी जो भी संतान होगी मैं उसे हमेशा प्यार करूंगा। और बेटा, अब जो भी हो रहा है वो तुम्हारे या हमारे वश मे तो है नहीं। तुम दुखी क्यों होते हो? बस इतना याद रखना कि तुम्हारे पापा तुमसे हमेशा प्यार करते है। और जो भी होगा, तुम रहोगे तो हमारे संजु ही न? अब रोना बंद करो और जरा मुस्कुराओ।”, राजीव ने कहा।
और संजु किसी तरह अपने आँसू पोंछ कर मुस्कुराने की कोशिश करने लगा।
“ये हुई न संजु वाली बात। हमेशा ऐसे ही मुसकुराना संजु। रोना मत कभी। कभी ये मत सोचना कि तुम्हें पापा से सॉरी कहना पड़ेगा।”, राजीव ने कहा।
“थैंक यू पापा”, संजु ने मुस्कुराकर कहा।
और फिर सुधा ने संजु के हाथ से फोन लेकर राजीव से कहा, “सुनो तुम्हारे यहाँ काफी रात हो गई है। तुम जाकर सो जाओ। यहाँ हम दोनों माँ बेटी को भी कुछ पल साथ मे बीताने है। आज खुशी का दिन जो है। मेरे संजु ने पहली बार साड़ी जो पहनी है। इतनी सुंदर लग रही है मुझे इसकी फोटो भी खिंचनी है।”
“गुड नाइट सुधा। गुड नाइट संजु”, राजीव ने कहा और फोन काट दिया।
“माँ तुम्हें पापा से ये सब कहने कि क्या जरूरत थी?”, संजु ने मुसकुराते हुए ही गुस्सा दिखाने की कोशिश की।
“मेरी बेटी है ही इतनी खूबसूरत।”, माँ ने कहा और संजु को गले से लगा लिया।
संजु ने शायद सोचा भी नहीं होगा पर उसके लिए ये दिन बाकी दिनों के मुकाबले बहुत यादगार था। पहले तो सुबह सुबह ऋतु से उसकी बात हुई और उसके दिल मे जो उलझन थी वो दूर हो गई थी। स्कूल मे ऋतु को देखते हुए जो समय उसका बीता था, पहले प्यार की वो खुशी उसे दीवाना बना गई थी। और फिर घर आने के बाद माँ का दुलार, और पहली बार साड़ी पहनना, न जाने क्यों उसको इतना खुश कर गया था। और अब पापा से इस तरह से बात। संजु और उसके पापा के बीच मे बातें भले ही थोड़ी देर के लिए ही हुई थी पर उस थोड़े से समय मे ही इतना कुछ कह दिया गया था जो न जाने कितने समय से संजु के दिल को व्यथित करता था।
संजु का जीवन आसान नहीं था। उसके शारीरिक बदलाव की वजह से वो जानता था कि उसकी माँ भी चिंतित थी भले वो अपने चेहरे से कभी उसे प्रकट नहीं करती थी। माँ के कहने पर उसने घर मे सलवार सूट पहनना शुरू तो कर दिया था और थोड़ा बहुत लड़कियों के हाव भाव भी सीखने लगा था ताकि भविष्य मे यदि उसे लड़की के रूप मे जीवन गुजारना हो तो तकलीफ न हो। इसलिए तो वो अपनी माँ की बात अनमने मन से ही सही मान जाता था। पर उसके दिल मे एक दुख भी था, उसके माँ-पिता के लिए उसने बेटे के रूप मे जन्म लिया था और अब वो उनकी बेटी बनता जा रहा था। माँ तो फिर भी उसके साथ थी पर पापा उससे बहुत दूर थे। उन्होंने तो संजु को लड़की के रूप मे कभी देखा भी नहीं था। शायद इसलिए संजु को ग्लानि महसूस होती थी कि वो अपने पापा का अच्छा बेटा नहीं बन सका। उसे डर लगता था कि उसके पापा उसे यूं देखकर क्या सोचेंगे। इसलिए तो उसने अपने पापा से सॉरी कहा था। इसके अलावा एक और बात भी थी जो या तो संजु खुद समझ नहीं सका था या फिर वो खुद से ही उसे झूठला रहा था। माँ के साथ बेटी बनकर रहना संजु को बेहद सहज और स्वाभाविक लगने लगा था भले वो उसे स्वीकार करने से घबराता था। क्योंकि यदि वो इस बात को स्वीकार कर लेता है तो उसका मतलब साफ होता कि वो लड़की ही है। भले संजु कहता न हो पर मन ही मन उसे एक खूबसूरत लड़की की तरह दिखने मे कोई कमी न हो, ऐसी अब उसकी चाहत हो चली थी। उसका दिल चाहने लगा था कि उसका फिगर भी ऋतु की तरह हो। और तो और जब वो अपनी माँ से बेटी की तरह बात करता तो उसे ऐसा लगता कि मानो सब आसान हो गया हो। शायद वो लड़की ही है, संजु इस बात को यदि मान ले तो उसे इस बात का दुख जरूर होता कि उसके माता-पिता जो अब भी कहीं आस लगाए हुए है कि संजु का इलाज हो जाए तो वो लड़का बनकर रह सकेगा, वो आस एक झूठी आस होगी। वो उनके इस सपने को तोड़ना भी नहीं चाहता था।
कम से कम आज पापा से बात करके उसे ये दिलासा तो मिल कि चाहे जो भी हो, उसके पापा उसे प्यार करेंगे। यूं तो संजु इन सबके बारे मे बहुत सोचा करता था पर आज जबसे उसने साड़ी पहना था उसके दिल की एक चाहत तो पूरी हो गई थी, खूबसूरत दिखने की। और इसी खूबसूरती ने उसके दिल को जो खुशी दी थी उसकी वजह से आज संजु दिल से खुद को एक लड़की समझ रहा था।
पापा से बात करके उसके दिल का बोझ भी उतर गया था।
“ऐसे क्या देख रही हो, माँ?”, संजु ने अपनी साड़ी मे लजाते हुए माँ से पूछा। उसकी नजरे कभी माँ के चेहरे को देखती तो कभी अपने हाथ मे पकड़े हुए पल्लू को जिसपर के फूलों के प्रिन्ट उसे लुभा रहे थे।
“कुछ नहीं, बस अपनी खूबसूरत बेटी को निहार रही हूँ। किसी की नजर न लगे मेरी बेटी को।”, माँ खिलखिलाकर बोली।
“माँ, तुम भी न कभी कभी इतनी ओल्ड फ़ैशनड हो जाती हो!”, संजु ने नाटकीयता के साथ कहा। संजु को अपने हाथों मे पकड़े हुए पल्लू के साथ खेलने मे बड़ा मज़ा आ रहा था।
“ठीक है। तू कहती है तो मैं थोड़ी मॉडर्न हो जाती हूँ। अब जरा इधर देख।”, माँ ने कहा और अपने हाथ मे पकड़े हुए फोन मे कैमरा ऑन कर संजु की फोटो खींचने की कोशिश करने लगी।
“माँ! ये क्या कर रही हो?”, संजु ने माँ के कैमरा के आगे हाथ बढ़ाते हुए कहा।
“अरे फ़ोटो ही तो खींच रही हूँ। तू जरा एक स्माइल तो करना।”, माँ बोली।
“मैं नहीं करूंगी स्माइल।”, संजु ने थोड़े नखरे दिखाए और माँ से मुंह फेर कर पलटने लगा।
पर माँ ने झट से एक फोटो खींच ही ली। मुंह फेरे हुए संजु की उस फोटो मे संजु का बैकलेस ब्लाउस और उसकी साड़ी के साथ बहुत ही खूबसूरत पोज आ गया था। बस संजु का चेहरा पूरी तरह से नहीं दिख रहा था क्योंकि वो उस वक्त पलट रहा था और फिर उसके खूबसूरत बाल भी उसके चेहरे पर आ रहे थे।
“संजु देख तो सही कितनी सुंदर फोटो आई है। किसी मॉडल से कम नहीं लग रही है तू!”, माँ ने खुशी से संजु को फोटो दिखाने की कोशिश की। माँ के कहने पर संजु ने भी फोटो देखा तो उसे तो मानो यकीन ही नहीं हुआ कि फोटो मे दिखने वाली लड़की वो खुद है। साड़ी का जादू संजु समझ गया था।
“पर माँ ये फोटो तो बड़ी डार्क आई है।”, संजु ने थोड़े उदास स्वर मे कहा।
“रुक मैं जरा लाइट ऑन करके फिर से एक फोटो खींचती हूँ।”, माँ ने कहा।
“चल अब जरा एक पोज तो दे”, लाइट ऑन करने के बाद माँ बोली।
“मुझे पोज करना नहीं आता माँ”, संजु ने कहा।
“अरे इतना भी मुश्किल नहीं है। तू एक बार कोशिश तो कर।”, माँ बोली।
संजु भी माँ की बात मानकर कोशिश करने लगा। वो टीवी सीरीअल की औरतों को याद करने की कोशिश करने लगा कि वो साड़ी पहनकर कैसे बैठती है। पर बेचारा संजु अपने पल्लू और बालों को संभालने के बीच पोज करने मे संघर्ष करते रह गया। माँ ने संजु को यूं बेचैन होते देख कहा, “रुक मैं बताती हूँ तुझे।”
“सबसे पहले तो अपने घुटनों को पास लेकर आ। लड़कियां घुटनों को यूं दूर दूर नहीं रखती।”, माँ ने कहा।
संजु ने भी कहे अनुसार अपने दोनों घुटनों को बेहद पास ले आया। इतने पास कि उसकी जांघें आपस मे स्पर्श करने लगी। इतने पास कि पेन्टी के अंदर उसका लिंग कुछ दब सा गया था। जांघों का स्पर्श उसके लिए एक नया अनुभव था। अक्सर वो सलवार या पेंट पहना होता था इसलिए हमेशा उसकी जांघों के बीच कोई कपड़ा हुआ करता था। पर आज उसकी पेन्टी से नीचे उसके पैर पूरी तरह से पेटीकोट के अंदर खुले हुए थे। उस स्पर्श से उसे लगा जैसे वो अपने ही शरीर से कितना अनजान था। अपनी ही चिकनी जांघें उसे छूआती हुई अच्छी लग रही थी। फिर माँ ने पास आकर उसकी कमर की नीचे की प्लेटस को सुंदर तरीके से सजाया तो संजु को उन्हे देखकर बहुत खुशी हुई।
“माँ इस पल्लू को कहाँ रखूँ?”, संजु को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने पल्लू का क्या करे।
“इसे यूं सामने लाकर अपने हाथ से पकड़ लेना।”, माँ ने संजु की बांह के नीचे से पल्लू को सामने लाकर उसकी गोद मे रखा। अब पल्लू और साड़ी दोनों ही खूबसूरत लग रही थी। संजु का पोज लगभग तैयार था।
“अब जरा दूसरे हाथ से अपने बालों को पीछे करना।”, माँ ने कहा।
संजु ने ज्यों ही बालों को सुधारना शुरू किया माँ फटाफट फोटो खींचने लगी। फोटो तो बहुत खूबसूरत आ रही थी पर लाइट अभी भी काफी नहीं थी।
“संजु। क्यों न हम छत पर चलकर फोटो खींचे? वहाँ रोशनी अच्छी आएगी।”, माँ ने फ़ोटो को देखकर कहा।
“नहीं माँ! वहाँ किसी ने मुझे देख लिया तो क्या करूंगी मैं?”, संजु ने मना किया। पर माँ आज ऐसे कहाँ मानने वाली थी।
“तू चिंता क्यों करती है? कोई नहीं देखेगा तुझे। छत पर एक ओर जहां दीवार है न, हम वहाँ जाकर फोटो खींचेंगे।”, माँ ने अपनी बात से संजु को मानने के लिए मजबूर कर ही दिया।
और माँ संजु का हाथ पकड़ कर सीढ़ियों की ओर ले गई जहां से छत तक जाना था। सीढ़ी पर पहुंचते ही माँ ने संजु को रोक और बोली, “देख सीढ़ी पर चढ़ते वक्त साड़ी पर थोड़ा ध्यान देना होता है। यदि ध्यान नहीं दोगी तो खुद ही अपनी साड़ी पर पैर रख दोगी और फिर या तो तुम गिर पड़ोगी या तुम्हारी साड़ी खुल जाएगी। इसलिए जरा ध्यान से मेरी ओर देखना कि कैसे चढ़ते है साड़ी पहन कर।”, माँ ने कहा। और संजु गौर से माँ की ओर देखने लगा।
“सबसे पहले तो अपनी उंगलियों से यूं अपनी साड़ी की प्लेटस को ऐसे पकड़ते है और फिर उसे यूं इतना उठाओ कि साड़ी पर पैर पड़ने की संभावना न रहे।”, माँ ने प्यार से संजु को समझाया। संजु ने भी माँ को देख वैसे ही किया। और फिर माँ बेटी सीढ़ी पर चढ़ने लगी। संजु ने देखा कि उसका लंबा पल्लू सीढ़ियों से लग रहा है तो उसने आगे अपनी माँ को चलते देखा कि वो कैसे अपने पल्लू को मैनेज कर रही है। माँ को देखकर संजु ने अपने दूसरे हाथ से अपने पल्लू को पीछे कमर और कूल्हों से होते हुए सामने अपनी नाभि के पास लाया और अपने हाथ मे उसे पकड़कर चढ़ने लगी। अब सीधी पर चढ़ना संजु के लिए आसान हो गया था। और उसे एक औरत की भांति चलने मे मज़ा भी आ रहा था। उसकी साड़ी के अंदर का पेटीकोट उसके कदमों को बड़े ही प्यार से रोकता भी था कि वो लड़कों की तरह लंबे लंबे कदम न ले सके। वरना संजु तो हमेशा दो सीढ़ी एक बार मे लांघ कर चढ़ता था पर उसका पेटीकोट उसे एक कदम पर एक सीढ़ी चढ़ने के लिए मजबूर कर रहा था। संजु को तो अच्छा ही लग रहा था। सीढ़ी चढ़ते वक्त उसकी साड़ी उसके कूल्हों पर रगड़ खाती और उसके दिल मे कुछ गुदगुदी सी कर देती। संजु को साड़ी पहनकर उसके साथ होने वाला एक एक अनुभव अच्छा लग रहा था और उसे कुछ सीख दे रहा था। साड़ी तो साड़ी आज पुशअप ब्रा की वजह से उसके स्तन भी बड़े लग रहे थे और जो रहरहकर उसकी बाँहों से रगड़ खाते और उसके स्त्रीत्व की भावना को और मजबूत करते। स्लीवलेस ब्लॉउज़ मे संजु की बाँहों मे ब्लॉउज़ की कटोरी मे उसके स्तन छूआना संजु को बहुत लुभा रहा था। और फिर सीढ़ी चढ़ते वक्त जो उन्मे उछाल संजु महसूस करती तो अंदर ही अंदर खुद ही शर्मा जाती।
अपनी ही खुशी मे मगन संजु जब ऊपर छत के दरवाजे पर पहुँचा तो उसके कदम ठिठक से गए। दरवाजा खोलने के पहले उसके अंदर एक डर आ गया था। यदि किसी ने उसे देख लिया तो उसका निश्चित हो मज़ाक उड़ाएगा। संजु की माँ ने उसके चेहरे पर वो डर देख लिया था।
“अरे इतना घबरा क्यों रही है तू? मैं हूँ न तेरे साथ। मैं पहले देखकर आती हूँ कि छत पर हमें कोई देख तो नहीं सकेगा।”, माँ ने कहा और दरवाजा खोलकर बाहर निकालने लगी। पर तभी वो रुक गई और संजु की ओर देखने लगी। और अपनी दिशा बदलकर अब संजु के कंधे पर उसकी साड़ी के साथ कुछ करने लगी।
“क्या कर रही हो माँ?”, संजु ने नर्वस होते हुए कहा।
“बस ये पिन खोल रही हूँ ताकि तेरा पल्लू खुला रहे मेरी साड़ी की तरह।”, माँ ने कहा।
“पर माँ! बड़ी मुश्किल से तो अभी साड़ी पहनकर चलना शुरू किया है मैंने। अब तुम ये पल्लू को खोल रही हो? कैसे संभालूँगी मैं?”, संजु ने कहा।
“मैं फिर से पिन लगा दूँगी बेटा। बस ये पल्लू जब खुला रहेगा तो इसे खोलकर लहरा सकेगी। और फिर फोटो भी अच्छी आएगी। “, माँ हँसते हुए बोली।
“माँ! मुझे नहीं लहराना है पल्लू वल्लू”, संजु ने शिकायती लहजे मे कहा।
“ओहो तू अपनी माँ की बात मानती क्यों नहीं है? देखना तुझे भी बड़ा मज़ा आएगा।”, माँ बोली।
अब माँ से संजु कुछ भी कह ले, आज तो माँ अपनी मर्जी चलाकर ही रहेगी। अब तक माँ ने संजु का पल्लू खोलकर फिर से पिन कर दिया था। अब पल्लू खुलकर उसकी साड़ी संजु की कलाइयों तक आ रही थी। और साड़ी के पल्लू की लंबाई अब उसके घुटनों से नीचे होते हुए लगभग जमीन तक पहुच रही थी। इसलिए संजु ने अपने हाथों को कुँहनियों के पास मोड़ते हुए साड़ी को जरा ऊपर उठाया।
“देख तू यूं ही चिंता कर रही थी। तुझे तो साड़ी संभालना अच्छे से आता है।”, माँ ने कहा और दरवाजे से छत पर चली गई। छत पर माँ ने इधर उधर देखा और जब सब कुछ साफ दिखाई दिया तो माँ ने संजु को छत पर आने का इशारा किया।

बेचारा संजु बेहद ही घबराया हुआ था। पर आज माँ की बात वो टाल नहीं सकता था। पहले तो उसने धीमे से अपना सर बाहर निकाला और फिर अपनी साड़ी को प्यार से संभालते हुए उसने पहला कदम दरवाजे की दहलीज को पार कर छत पर रखा। यूं तो वो अभी भी अपने ही घर की छत पर था पर बाहर की खुली हवा मे संजु का औरत के रूप मे यह पहला कदम था। डर और रोमांच के मारे उसकी बाँहों मे उसके रोंगटे खड़े हो गए थे। या फिर शायद मौसम मे थोड़ी ठंड थी उसका असर था। संजु को कम से कम एक तसल्ली थी खुले पल्लू की वजह से उसकी एक बांह तो ठंड से बची हुई थी। उसने अपने पल्लू से ढंके हाथ से अपनी खुली बांह पर हाथ फेर कर खुद को गर्मी का एहसास देने की असफल कोशिश की। छत पर आते ही हल्की गुलाबी हवा मे उसके खुले लंबे बाल लहराने लगे। और फिर अपने ही आप उसके हाथ उसके बालों को उस बहती हवा मे संभालने मे लग गए। उसने बड़े ही प्यार से अपने बालों को अपने कानों के पीछे फँसाया पर फिर भी बाल हवा मे उड़ते ही रहे। संजु को उसकी नग्न पीठ पर चूमती हुई हवा बेहद प्यारी लग रही थी। उस ठंड मे भी उसे एक खुशी मिल रही थी और वो खुशी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। अपने बालों और उड़ते हुए पल्लू को संभालता हुआ पल्लू जब मुड़कर अपनी माँ की ओर देखा तो उसने देखा कि उसकी माँ उसकी फोटो खींच रही थी। संजु को यकीन था कि उसकी यह तस्वीर सबसे खूबसूरत होगी। और यह सच भी था। उस गुलाबी ठंड मे उसकी हल्की ऑरेंज रंग की साड़ी मे लाल रंग के फूलों के प्रिन्ट, उसकी लाल लिप्स्टिक और हाथों मे एक एक कंगन, सब कुछ बहुत खूबसूरत लग रहा था। संजु बहुत खूबसूरत लग रही थी और उसकी फोटो भी उतनी ही खूबसूरत आई थी।
“संजु यहाँ कोई भी नहीं है। अब तुझे जैसे पोज करना है वैसे पोज कर।”, माँ ने खिलखिलाते हुए कहा। वैसे तो माँ की साड़ी भी हवा मे लहरा रही थी पर उसकी माँ को इस वक्त अपनी साड़ी की कोई फिक्र नहीं थी। माँ की नजर तो इस वक्त सिर्फ और सिर्फ अपनी खूबसूरत बेटी पर थी।
माँ की बात सुनकर संजु मुस्कुरा दिया। पोज करना उसके बस की बात नहीं थी। वो तो इस पल मे इतना खुश था कि उसे पोज करने की जरूरत भी नहीं थी। अपने एक हाथ को मोड़कर अपने खुले हुए पल्लू को संजु आगे की ओर लाकर छत मे उस दिशा की ओर बढ़ने लगा जहां एक दीवार थी। ठंडी ठंडी हवा अब उसके ब्लॉउज़ से होकर उसके अंदर तक जा रही थी। अब तो उसके उरोज़ों मे भी हल्की गुलाबी ठंड से रोंगटे खड़े हो रहे थे और उसके निप्पल हल्के से फूलकर कड़े हो रहे थे। यह सब अनुभव उसके ब्रा के अंदर संजु को हो रहा था पर वो समझ नहीं पा रहा था।
संजु को इतना खुश देखकर माँ भी बड़ी खुश थी। और संजु के एक एक कदम पर उसकी फोटो खींच रही थी। एक एक फोटो संजु के लिए यादगार होने वाली थी और भविष्य मे उसे इस दिन की याद दिलाएगी।
“एक बार जरा पलट कर तो दिखा।”, माँ ने संजु से कहा। और संजु ने माँ से बिना कोई सवाल किये उनकी ये इच्छा भी पूरी कर दी। उसके पलटते ही संजु के हाथ पर से उसका पल्लू लहर उठा। कितना खूबसूरत पल था वो। उसे इस तरह देखकर माँ भी कुछ देर के लिए फोटो खींचना भूलकर अपनी बेटी को निहारने लगी।
“यदि संजु हमेशा के लिए मेरी बेटी बन जाए तो भी इसमे कोई बुरा नहीं है।”, माँ ने मन ही मन सोचा और संजु को लहराते देखने मे मगन हो गई।
“माँ तुम सच कहती हो, साड़ी पहनकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि मैं यही तो हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे सालों से मेरी एक इच्छा थी जिसे मैं खुद नहीं जानती थी, और आज वो इच्छा पूरी हो गई है। मैं आज बहुत खुश हूँ माँ।”, संजु ने जोर से कहा और अपनी दोनों बाँहें फैलाकर गोल गोल घूमने लगा। उसे ऐसा लगने लगा जैसे वो आजाद हो गया है। चारदीवारी से बाहर खुली हवा मे इस तरह निकलना, कुछ देर के लिए ही सही, उसके लिए ऐसा अनुभव था जैसे एक चिड़िया बंद पिंजरे से बाहर निकल आई हो। हवा मे लहराती साड़ी मानो उस चिड़िया के रंग बिरंगे पंख थे, इतने सुंदर पंख जिनके बारे मे वो चिड़िया जैसे खुद न जानती रही हो, पर आज वो अपने उन पंखों को देख सकती थी।
और फिर उड़ते उड़ते वह चिड़िया अपनी माँ से गले लग गई। माँ की आँखों मे अपनी बेटी को देखकर आँसू निकल आए।
“अरे रोती क्यों हो माँ? देखो मैं कितनी खुश हूँ।”, संजु ने माँ की आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा।
“ये तो खुशी के आँसू है बेटी, इन्हे बहने से मत रोक।”, माँ ने कहा और संजु के सर पर हाथ फेरते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया।
माँ बेटी का यूं गले मिलना पहले से बहुत अलग था। माँ तो संजु को पहले भी गले लगाती थी पर कहीं न कहीं संजु खुले दिल से अपनी माँ से गले मिलने से खुद को रोकता था। अपने बढ़ते हुए स्तनों की वजह से उसके मन मे कुछ संकोच रहता था। पर आज उसने अपने शरीर को दिल से स्वीकार कर लिया था। कम से कम इस वक्त तो वो यही सोच रहा था। और आज इसलिए बेफिक्र होकर संजु ने अपनी माँ को एक बेटी की तरह गले लगाया था।
“माँ, तुमने मुझे लिप्स्टिक तो लगाई मगर नेल-पोलिश नहीं लगाई। देखो तो मेरे नाखून कितने सुने लग रहे है।”, संजु ने चमकती हुई आँखों के साथ कहा।
“हाँ बेटी। अगली बार जरूर लगाऊँगी।”, माँ ने नम आँखों से संजु के हाथ पर हाथ फेरते हुए कहा।
“मगर माँ, अगली बार मैं कभी साड़ी पहनूँगी तो मैं इस तरह का ब्लॉउज़ नहीं पहनूँगी। मुझे इसमे बहुत ठंड लग रही है। मेरा दिल तो कर रहा है कि तुम्हारे आँचल के अंदर छिप जाऊँ और तुम्हारी प्यार की गर्माहट मे सकूँ महसूस करूँ।”, संजु ने कहा। संजु की बातें उसकी माँ के दिल को लुभा रही थी।
“पगली, तू इतनी बड़ी हो गई है। अब तुझे मेरे आँचल की क्या जरूरत है।”, माँ ने कहा। और फिर माँ ने संजु के पल्लू के खुले छोर को पकड़ और उसे उसकी पीठ पर से ले जाते हुए संजु के दूसरे कंधे पर से सामने लाते हुए वो छोर संजु के हाथ मे पकड़ाते हुए बोली, “अब तो तेरे पास तेरा अपना आँचल है बेटा। ले अब तुझे मिल गई गर्माहट। अब जब भी माँ के प्यार की गर्माहट की कमी महसूस हो तो अपनी साड़ी को इस तरह से लिपट कर मुझे याद करना और तेरी साड़ी तुझे तेरी माँ की कमी पूरी करने मे मदद करेगी।”
संजु भी माँ की बात सुन मुस्कुरा दी। माँ की बात सच थी। उसकी अपनी साड़ी भी उसे सकून दे रही थी। फिर भी माँ के आँचल की बात कुछ और होती है। संजु कुछ और सोचती उसके पहले ही उसकी माँ ने उसके पल्लू को पीछे से उठाकर उसके सर को ढँक दिया। ढंके सर के अंदर लजाता हुआ संजु और भी खूबसूरत लग रहा था। लाल रंग की बिंदी उसके माथे पर उसकी सुंदरता मे चार चाँद लगा रही थी।
“जब कभी भी तेज हवा चल रही हो और तेरे बाल खुले हो तो उन्हे हवा से इस तरह से बचाया करना। यदि सलवार पहनी हो तो अपने दुपट्टे से बच सकती है। तेरे बाल इतने लंबे और घने है, मैं नहीं चाहती कि तेरे बालों को कुछ हो।”, माँ ने संजु को प्यार से समझाया। यदि किसी औरत के पास लंबे घने बाल है तो वही उसका सबसे सुंदर गहना होता है, शायद संजु को ये समझ आ रहा था। जिन लंबे बालों से उसे शिकायत रहती थी, आज उन्ही लंबे बालों की वजह से उसे इतना अच्छा लग रहा था। वो खुश था कि उसकी माँ ने उससे बाल लंबे करने को कहा था।
और फिर संजु एक बार फिर छत की दूसरी छोर की ओर बढ़ चला। छत की यह सीमा छोटी जरूर थी पर घर की चारदीवारी से ज्यादा बड़ी थी और इसमे संजु आजादी महसूस कर रहा था। और छत की उस छोर से वो बाहर की बड़ी सी दुनिया को देखने लगा। एक दिन वो इस दुनिया मे भी आजादी से अपने असली रूप मे घूम सकेगा। उसे पता नहीं था कि वो दिन कब आएगा पर जब भी आएगा, वो उस दिन के लिए तैयार रहना चाहता था। कुछ देर यूं ही सपनों मे खोया हुआ संजु फिर पलटकर माँ के पास आ गया।
“चलो माँ। आज के लिए इतना ही। तुमसे मुझे और भी बहुत कुछ सीखना है। पर माँ, आज के इस पल के लिए बहुत शुक्रिया। तुम्हारी बात भी सही है न कि पहली साड़ी का अनुभव यादगार होता है। मेरे इस पल को यादगार बनाने के लिए धन्यवाद माँ”
संजु की बात सुन माँ कुछ कह न सकी। और संजु का हाथ पकड़ वापस उस दरवाजे की ओर बढ़ चली जहां से वो दोनों आई थी। यूं तो संजु को स्कूल से आए ज्यादा समय नहीं हुआ था पर इतने थोड़े से वक्त मे संजु के हाव भाव चाल चलन बिल्कुल बदल गया था। और अब तो माँ बेटी मे प्यार भी इतना उमड़ रहा था। और संजु बिल्कुल एक चुलबुली बेटी की तरह अपनी माँ से बात कर रहा था। उस बात मे न जाने क्या हुआ और संजु की माँ सीढ़ी से दौड़ी दौड़ी नीचे उतरने लगी। संजु भी माँ के पीछे पीछे तेजी से आने की कोशिश करने लगा। पर साड़ी पहनने का पहला अनुभव और ऊपर से खुला हुआ पल्लू, संजु कहाँ अपनी माँ की रफ्तार पकड़ पाता, उसकी माँ को तो साड़ी की आदत थी। और संजु के लिए अभी तक साड़ी उतनी सहज भी नहीं थी। वो तो धीरे धीरे नजाकत के साथ अपनी साड़ी को पकड़कर सीढ़ी पर एक एक कदम नीचे देखकर उतर रहा था।
जब माँ तेजी से नीचे आई तो अपने ड्रॉइंग रूम मे आते ही ठिठक पड़ी।
“आंटी”, माँ के सामने खड़े उस शख्स ने जैसे ही ये शब्द कहे, माँ की नजर तुरंत पीछे पलटने को हुई ताकि वो संजु को आने से रोक सके।
“आंटी आपकी सांसें इतनी तेज?”, उस शख्स से फिर पूछा।
“ऋतु, तुम यहाँ? कैसे?”, माँ ने ऋतु से कहा।
“आपके घर का दरवाजा खुला दिखा तो मैं अंदर चली आई। सोचा संजु से मिल लूँ। मुझे उससे कुछ होमवर्क के सिलसिले मे बात करनी थी।”, ऋतु ने दमकते चेहरे से कहा। वो तो कब से संजु से मिलने को आतूर थी।
माँ को आखिर एहसास हुआ कि जब वो संजु के पापा से बात करने के लिए घर से बाहर निकली थी तो उन्होंने दरवाजा खोला था। और फिर शायद संजु से बात कराने के लिए जब वो अंदर आई तो उन्होंने दरवाजे को बंद नहीं किया था। माँ के चेहरे पर पसीना और माथे पर चिंता की लकीरें आ गई थी। संजु किसी भी तरह इस कमरे मे न आयें, वो मन ही मन प्रार्थना करने लगी।
“माँ माँ तुम कहाँ मुझे दौड़ाती हुई चली गई। तुम जानती हो न कि मैं साड़ी पहनकर तुम्हारी तरह दौड़ नहीं सकती।”, संजु तभी उस कमरे मे अपनी साड़ी पकड़े चलते हुए दाखिल हुआ।
संजु की वो बात सुनकर ऋतु हतप्रभ थी। “संजु?”, ऋतु का चेहरा गंभीर हो गया और उसने अचरज के स्वर मे कहा। संजु ने साड़ी क्यों पहनी है? ये बात उसे समझ नहीं आई।
संजु भी ऋतु को सामने देख घबरा गया। सीढ़ी से उतरते उतरते उसका आँचल उसके सीने से फिसल गया था, और उसका ब्लॉउज़ और उसके बीच उसके बड़े स्तनों के बीच की गहराई उस वक्त साफ दिख रही थी। शायद कोई और दिन होता और संजु ने पुशअप ब्रा न पहनी होती तो वो गहराई और उसके स्तन शायद छिप जाते मगर आज नहीं। संजु को शायद अंदाजा हो गया था कि उसका आँचल फिसल गया है। उसने अपनी माँ को कई बार देखा था कि वो कैसे अपने आँचल को समय समय पर अपनी उंगलियों से उठाकर ब्लॉउज़ को ढंकती थी। संजु ने भी वही किया। शायद ऋतु ने अब तक उसके ब्लॉउज़ को न देखा हो, उसके स्तनों को नोटिस न किया हो। संजु मन ही मन सोचने लगा। मगर शायद तब तक देर हो चुकी थी। ऋतु के चेहरे की उडी हुई रंगत ये साफ बता रही थी।
नोट: संजु की छत पर खींची हुई सभी तस्वीरें इस पेज के नीचे गॅलरी मे है। उसे देखना न भूले!
क्रमश:
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