संजु (4)

 ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग ४: पहली साड़ी


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जब प्यार होता है तब दिल कितना खुशियों से भर जाता है, ये इस वक्त संजु से बेहतर कोई नहीं जान सकता था। दूसरी ओर ऋतु भी एक बार फिर अपने सबसे अच्छे दोस्त संजु को वापस पाकर बहुत खुश थी। और इन दोनों के अलावा संजु की माँ भी इस वक्त संजु के स्कूल से आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।

प्यार मे खुश संजु जैसे ही घर आया उसकी माँ ने उसके हाथ से उसका बैग लिया और उसके लिए खाना लगाने लगी। संजु भी हाथ धोकर टेबल पर आ चुका था।

“क्या बात है संजु? आज बहुत खुश लग रहा है।”, माँ ने मुसकुराते हुए पूछा।

“कुछ नहीं माँ, ऐसे ही।”, संजु यूं ही कैसे बता देता। फिर उसने अपनी माँ को देखा, वो भी आज कुछ ज्यादा खुश लग रही थी। “माँ .. तुम मेरी छोड़ो। तुम ये बताओ कि तुम क्यों इतनी खुश लग रही हो?”

“मैं भी ऐसे ही खुश हूँ।”, माँ ने कहा। मगर संजु जानता था कि उसकी माँ की खुशी की वजह क्या है। और वो वजह सामने आने मे ज्यादा देर भी नहीं लगी।

खाना हो जाने के बाद जब संजु अपने कमरे की ओर कपड़े बदलने जाने ही वाला था कि उसकी माँ उसके पास आई। उनके हाथों मे कुछ साड़ियाँ थी। आखिर यही तो वजह थी उनकी खुशी की।

“संजु … उस दिन तूने ये २ साड़ियाँ पसंद किया था न? मैंने भी अपनी पसंद से २ और साड़ियाँ चुनकर तेरे लिए इन चारों साड़ियों के ब्लाउज सिए है। देख न इनमे से तू कौनसी साड़ी पहनेगा आज?”, माँ ने कहा।

संजु ने एक बार फिर माँ कि तरफ देखा और बोला, “माँ, इतने जल्दी तुमने चारों के ब्लॉउज़ सील दिए?”

“अरे, दिन भर खाली ही रहती हूँ घर में तो बस हो गया काम। तू वो सब छोड़, बता न तू कौनसी साड़ी ट्राई करेगा?” माँ मे भी एक बड़ी आतुरता थी संजु को साड़ी पहनाने की।

“तुम जो कहो मैं वही पहन लूँगा।”, संजु ने माँ को गले लगाकर कहा। संजु आज वैसे ही खुश था तो माँ की इच्छा पूरी करने मे उसे कोई बुराई नहीं लगी। वहीं उसकी माँ अचरज से संजु की ओर देखने लगी क्योंकि अक्सर संजु को स्कूल से आने के बाद लड़के से लड़की के रूप मे आने मे और सहज होने मे कुछ समय लगता था। पर आज संजु खुशी से इस बात के लिए तैयार था।

माँ ने उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, चाहे कोई भी हो उसके लिए उसकी पहली साड़ी उसके लिए यादगार होती है। मुझे भी आज तक याद है जब मेरी माँ ने मुझे पहली बार साड़ी पहनाई थी। इसलिए मैं चाहती हूँ कि तू अपनी पसंद से साड़ी चुने।” संजु की माँ ने भी अपने शब्दों को बेहद चुनकर कहा था। उन्होंने ये नहीं कहा कि किसी लड़की के लिए उसकी पहली साड़ी यादगार होती है। उन्होंने कुछ इस तरह से अपनी बात रखी कि संजु को कहीं से भी असहज न लगे।

“माँ, तुम साड़ी को लेकर इतनी भावुक क्यों रहती हो?”, संजु ने माँ से पूछा।

“जब तू पहनेगा न तब तुझे पता चलेगा। हो सकता है कि तुझे आज वो महसूस न हो पर कुछ समय बाद तू आज के दिन को याद कर मेरी ही तरह भावुक होगा।”, माँ ने कहा। “अच्छा, अब जल्दी से पसंद कर।”

“ठीक है, माँ। करता हूँ पसंद।”, संजु ने कहा। और फिर संजु माँ के हाथों की साड़ियों को देखने लगा। उनमे से एक साड़ी तो सिल्क की थी जो उसकी माँ ने पसंद की थी। भले ही वो साड़ी बेहद खूबसूरत थी पर सिल्क की साड़ी संभालने के लिए शायद वो तैयार नहीं था। उसने जो दो साड़ियाँ पहले चुनी थी वो दोनों ही हल्की प्रिंटेड साड़ियाँ थी जिन पर फूलों के प्रिन्ट थे। शायद उसकी पसंद को देखते हुए ही संजु की माँ ने एक और प्रिंटेड साड़ी चुनी थी। हल्की ऑरेंज रंग की साड़ी जिस पर बड़े बड़े लाल रंग के फूलों के प्रिन्ट थे। संजु की चुनी हुई साड़ियों से भी ज्यादा खूबसूरत साड़ी थी वो। और आखिर संजु ने वो साड़ी पसंद करके माँ को दी।

“ये लो माँ। तुम्हारी खुशी के लिए आज मैं साड़ी भी पहन लेता हूँ। ये वाली साड़ी मुझे अच्छी लग रही है।”, संजु ने कहा।

“सच!”, माँ ने कहा। माँ के चेहरे पर इस वक्त जो नटखटता और खुशी झलक रही थी उससे संजु को समझ आ गया था कि जरूर कोई गड़बड़ है।

“माँ …”, संजु ने भी कहा जैसे उसने उसकी माँ की चाल समझ ली हो, ” सच सच बताओं बात क्या है? तुम इतनी खुश क्यों लग रही हो? जरूर दाल मे कुछ काला है।”

“दाल मे कुछ काला वाला नहीं है। तू अपने कमरे मे चल, मैं अभी ब्लॉउज़ लेकर आती हूँ।”, माँ ने चहकते हुए कहा। मगर संजु समझ गया था कि जरूर कोई न कोई बात है। खैर, थोड़ी देर मे ये बात भी बाहर आ ही जाएगी। संजु ने सोचा और अपने कमरे की ओर बढ़ गया। वो भी अब जल्द से जल्द अपनी स्पोर्ट्स ब्रा से निकलकर कुछ आरामदायक कपड़े पहनना चाहता था।

कमरे मे संजु एक आईने के सामने खड़े होकर माँ का इंतज़ार कर रहा था। तभी माँ आई और उसके हाथ मे कुछ कपड़े पकड़ाते हुए बोली, “जा ये पेटीकोट और ब्रा पहनकर आजा। मैं यही तेरा इंतज़ार करती हूँ।”

संजु ने अपनी माँ की ओर जरा शंका से देखा। उसकी माँ अभी भी उसी चंचलता के साथ संजु की ओर देख रही थी। “अरे देख क्या रहा है। जल्दी बदलकर आ न!”

संजु भी चुपचाप बाथरूम मे आ गया। “आखिर माँ को ये नई ब्रा देने की क्या जरूरत पड़ गई? मेरे पास तो पहले ही कई ब्रा है”, संजु मन ही मन सोचते हुए अपने कपड़े उतारने लगा। स्कूल शर्ट के बाद अपनी स्पोर्ट्स ब्रा उतारकर उसे बेहद चैन महसूस हुआ। उसने माँ की दी हुई लाल रंग की ब्रा की ओर देखा। थोड़ी प्लेन सी थी मगर बेहद खूबसूरत थी। जैसी ब्रा उसके पास पहले से थी, उनमे जो फूल पत्ती के प्रिन्ट थे उसे वो पसंद नहीं आते थे। मगर ये ब्रा कुछ अलग थी। फेमिनीन होते हुए भी थोड़ी न्यूट्रल डिजाइन थी उसकी और उसे बेहद अच्छी लग रही थी। फिर भी कुछ तो अलग था उस ब्रा में जो वो समझ नहीं पा रहा था। उसने स्ट्रेप्स मे अपने हाथ डाले और जब पीछे हुक लगाने की कोशिश किया तब उसे महसूस हुआ कि यह ब्रा अंदर से कुछ सॉफ्ट थी जिसकी वजह से उसके निप्पल को कुछ आराम लग रहा था। “चलो कम्फ्टबल तो है यह ब्रा।”, संजु ने मन ही मन सोचा और फिर कंधे पर ब्रा के स्ट्रेप्स की लंबाई एडजस्ट करने लगा। इतने दिनों मे वह ये तो सिख चुका था कि नई ब्रा के साथ लंबाई एडजस्ट करनी पड़ती है। लड़कों की बनियान की तरह नहीं कि बस सीधे पहन लो बिना कुछ सोचे समझे। लड़कियों के हर कपड़े मे कुछ न कुछ ध्यान देना पड़ता है।

बाथरूम मे ही खड़े खड़े उसने आईने मे खुद को देखा तो उसे लगा कि उसके स्तन कुछ ज्यादा उठे और उभरे हुए लग रहे है। और दोनों स्तनों के बीच गहराई भी ज्यादा दिख रही थी। ब्रा के अंदर जो सॉफ्ट लेयर थी उसकी वजह से उसके स्तन और बड़े भी लग रहे थे। उसे लगा कि शायद उसने स्ट्रेप्स को कुछ ज्यादा छोटा कर दिया है तभी उसके स्तन ज्यादा उभरे हुए और बड़े लग रहे है। इसलिए उसने उन्हे फिर से एडजस्ट करने की कोशिश किया पर फिर भी स्तनों के उभार पर कुछ ज्यादा फर्क न पड़ा। “अब तो माँ से ही हेल्प लेनी पड़ेगी”, संजु ने सोचा। और फिर उसने अपनी पोनीटैल को खोल और अपने लंबे बालों को सामने लाकर अपने स्तनों के बीच की गहराई को उनसे ढंकने की कोशिश करने लगा। उस वक्त लाल रंग की ब्रा उसके स्किन के रंग पर अच्छी तरह से निखर रही थी और संजु अपने बालों को सहेजते हुए बेहद खूबसूरत लग रहा था।

उसके बाद संजु ने अपनी यूनिफॉर्म की पेंट उतारी और पेटीकोट पहनने लगा। पेटीकोट का आकार कुछ ऐसा था कि वो उसके कूल्हों पर बिल्कुल फिट आ रहा था। उसने पेटीकोट का नाड़ा कुछ वैसे ही बांधा जैसे अक्सर वो अपनी सलवार का बांधता था। अब बाथरूम से बाहर निकलने से पहले उसने एक बार फिर से खुद को एक साइड पलटकर देखा तब उसे एहसास हुआ कि उसके स्तन आज लगभग ऋतु के स्तनों के बराबर लग रहे है। ऋतु को याद करते ही उसके चेहरे पर खुशी आ गई। साथ ही अपने स्तनों के बड़े आकार को देखकर उसे एक संकोच भी हो रहा था। किसी तरह संकोच करते हुए वो अपने सीने को अपने हाथों और बालों से ढँकते हुए बाथरूम से बाहर आया।

“क्या हुआ? तेरा चेहरा इतना मुरझाया हुआ क्यों है?”, माँ ने पूछा।

“माँ .. वो बात ये है ..”, संजु नजरे झुकाकर कहने मे झिझक महसूस कर रहा था। “हाँ, बोल न”, माँ बोली।

“माँ, बात ये है कि मुझे लगता है कि इस ब्रा मे कुछ प्रॉब्लेम है। इसे पहनकर मेरे साइज़ मे कुछ फर्क आ गया है।”, किसी तरह से शरमाते हुए संजु ने बात कह ही दी।

माँ ने मुसकुराते हुए संजु का हाथ हटाया और बोली,”पगली, सब ठीक तो लग रहा है। ये पुश अप ब्रा है। इसका तो काम ही है कि स्तनों को थोड़ा लिफ्ट दे।”

“माँ!”, संजु शरमाते हुए माँ को रोकने की कोशिश करने लगा।

“चल अब ज्यादा शर्मा मत। उभरे हुए शेप के साथ साड़ी तुझ पर और निखर कर आएगी। ले अब ये ब्लॉउज पहन ले।”

“माँ! ये कैसा ब्लॉउज़ है?”, संजु ने जैसे ही ब्लॉउज़ देखा उसके तो जैसे होश ही उड़ गए।

“क्यों? क्या परेशानी है इसमे?”

“माँ .. तुम देख रही हो न! इसकी पीठ कितनी गहरी है। ऐसे ब्लॉउज़ को पहनने से अच्छा तो मैं ब्रा के साथ ही साड़ी पहन लेती हूँ।”, संजु ने कहा।

“छी, कैसी बातें करती है? हाँ ये ब्लॉउज़ थोड़ा मॉडर्न है। मैंने सोचा कि कम से कम एक ब्लॉउज़ तो थोड़ा फैशनेबल सिलूँ। मुझे क्या पता था कि तू वही साड़ी चुनेगी जिसके साथ का मैंने ये ब्लॉउज़ सिया था।”

“तो तभी तुम्हारे चेहरे पर वो खुशी थी। हाँ? मैं तभी जान गई थी कि जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है।”, संजु ने कहा, “मैं नहीं पहनूँगी ये ब्लॉउज़। मैं कोई दूसरी साड़ी पहन लूँगी।”

“देख संजु। ये साड़ी तूने खुद चूज़ की है। अब तो अपनी बात से पलट नहीं सकती।”, माँ भी थोड़ी मसखरी के मूड मे आ चुकी थी।

“माँ कोई अपनी बेटी के साथ ऐसा करती है क्या?”, संजु ने शिकायती लहजे मे कहा।

“संजु तू ज्यादा ईमोशनल ड्रामा मत कर हाँ। जैसा बोल रही हूँ, मेरी बात मान ले। देखना अच्छी लगेगी तू इसमे।”, माँ हार नहीं मानने वाली थी।

“ठीक है। दो मुझे ब्लॉउज़।”, संजु ने माँ के हाथ से ब्लॉउज़ लिया और खड़े होकर उसे पहनने लगा। “दुनिया मे शायद मैं अकेली हूँ जिसकी माँ उससे एक्सपोस करा रही है।”

“संजु यदि तुझे ड्रामा करना आता है तो मैं भी तेरी माँ हूँ। अब नखरे करना बंद कर।”

“ठीक है ठीक है।”, संजु ने ब्लॉउज़ के हुक लगाते हुए कहा। जब माँ ने इसके पहले कल उसे ब्लॉउज़ ट्राई कराया था तो उसमे बाँहें थी और थोड़ी ढीली भी थी। इस ब्लॉउज़ मे तो स्लीव भी नहीं थी और ऊपर से उसके स्तनों पर बेहद टाइट भी लग रहा था। टाइट न सही पर बिल्कुल चुस्त फिट आ रहा था। ये सब उसकी पुशअप ब्रा का कमाल था।

“संजु। सच कह रही हूँ। तू तो अभी से बहुत सुंदर लग रही है। बिल्कुल जैसे मैंने सोचा था। चल अब जरा इधर आ, मैं तुझे साड़ी पहना दूँ”

माँ कि बात सुन संजु शर्मा गया या यूं कहे कि संजु शर्मा गई। ब्रा, पेटीकोट और अब ब्लॉउज़ पहनकर अब वो शायद मन से भी लड़की बनने लगा था।

माँ ने संजु की चुनी हुई साड़ी को खोला तो संजु उसकी खूबसूरती को देखते ही रह गई। उसने इस साड़ी को पहले इस तरह से देखा नहीं था। माँ के पास आकर उसने साड़ी के कपड़े को छूकर देखा तो उसने महसूस किया कि ऐसा कपड़ा आजके पहले उसने कभी नहीं पहना था। कुछ तो खास बात थी उस साड़ी के स्पर्श मे। माँ ने संजु को साड़ी को निहारते देखा तो माँ ने भी संजु को रोका नहीं।

और फिर संजु की माँ ने साड़ी का एक छोर लेकर संजु के सामने ही घुटनों के बल खड़ी हो गई, अब संजु को साड़ी जो पहनानी थी। पहली साड़ी पहनने का पल जितना खूबसूरत एक बेटी के लिए होता है उतना ही खूबसूरत ये उसकी माँ के लिए भी होता है। और संजु की माँ के चेहरे की खुशी ही बतला रही थी कि शायद वो इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।

माँ ने साड़ी का एक छोर पकड़ और संजु की दाई ओर पेटीकोट के अंदर उसका एक हिस्सा डालकर वो संजु की कमर पर लपेटने लगी। धीरे धीरे अपनी उंगलियों से संजु की कमर मे साड़ी को पेटीकोट के अंदर डालती हुई उसकी माँ साड़ी को ऐसे करीने से लपेट रही थी कि साड़ी मे एक भी सिलवट न पड़े। साड़ी का निचला हिस्सा संजु के पैरों को छु रहा था। अपनी माँ को इतनी गंभीरता के साथ साड़ी पहनाते हुए देखकर उसका दिल बहुत खुश हो रहा था। और ज्यों ज्यों साड़ी उसके तन पर लिपटती जाती, उसे एक कोमलता का एहसास होता। उसकी माँ ने अब साड़ी को उसके कूल्हों पर लपेटकर अपने हाथों से उसकी सिलवटे दूर कर दी थी। यूं तो साड़ी हल्की थी पर फिर भी उसका भार अब संजु महसूस कर रही थी। कितना अच्छा लग रहा था उसे। अपने अंदर होने वाली खुशी को संजु खुद समझ नहीं पा रहा था कि आखिर एक कपड़े को पहनकर ऐसी खुशी क्यों महसूस हो रही है? शायद संजु समझ रहा था कि साड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है बल्कि नारीत्व का एक हिस्सा है जो उसके अंदर की नारी को जीवंत स्वरूप दे रहा था।

साड़ी पर के खूबसूरत फूलों के प्रिन्ट उसे बेहद मोहक लग रहे थे। वह खुद को इस वक्त किसी आईने मे पूरी तरह से देख नहीं सकता था पर उसे भरोसा था कि ये फूल और ये साड़ी उस पर बहुत खूबसूरत लग रही होगी। ब्लॉउज़ और साड़ी के बीच उसकी नाभि और कमर की खूबसूरती कई गुना बढ़ा चुकी थी। नाभि भी भला खूबसूरत लग सकती है? उसने तो सोचा तक नहीं था। पर आज जैसे उसकी नाभि दिख रही थी, उसकी खूबसूरती देखने लायक थी।

संजु की माँ ने साड़ी को लपेटते हुए संजु की नाभि के नीचे तक लाकर अब उठ खड़ी हुई। उन्होंने अब साड़ी के दूसरे लंबे छोर को पकड़ और उसमे कुछ मोड़ बनाती हुई एक बार फिर संजु की कमर से लपेटते हुए सामने लाकर उसके ब्लॉउज़ पर से ले जाते हुए करीने से संजु के कंधे पर रखा। अब साड़ी का वो छोर संजु के कंधे से होते हुए पीछे से उसके घुटनों तक लटक रहा था। संजु की माँ ने थोड़ा पीछे होकर उस छोर की लंबाई को देखा। लंबाई से संतुष्ट होकर उन्होंने संजु की नाभि के नीचे फंसी हुई साड़ी को निकाल अपनी उंगलियों से वहाँ प्लेट बनाने लगी।

“संजु तुझे साड़ी पहनना सीखने मे थोड़ा समय लगेगा। पर जब तू सीख लेगी न, देखना तुझे बहुत अच्छा लगेगा। पर आज तू पहली बार साड़ी पहन रही है इसलिए मैं तुझे सीखा नहीं रही हूँ। पर फिर भी कुछ बातों का ध्यान रखना। साड़ी मे यहाँ कमर के नीचे यूं कम से कम ५ प्लेट बननी चाहिए। और ये देख रही है .. ? ये कंधे से लटका हुआ खुला छोर? इसको पल्लू कहते है और ये कम से कम घुटनों तक आना चाहिए।”

“माँ, मैं जानती हूँ पल्लू क्या होता है!”, संजु हँसते हुए बोली।

और फिर संजु की माँ ने करीब ६ प्लेट बनाने के बाद संजु की नाभि के नीचे अपनी उंगलियों से उसके पेटीकोट मे खोंच दी। साड़ी की प्लेटें ज्यों ही उसके पेटीकोट मे लटकी, यूं लगा मानो वो किसी एक फूल की तरह खुलकर खिल उठी हो। नाभि से होते हुए उसकी साड़ी उसके पैरों तक पहुंचते तक जिस तरह से थोड़ी खुल जाती, वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। और अब साड़ी का भार पूरी तरह से संजु की कमर पर था जिसकी वजह से संजु खूद एक नाजुक फूल की तरह महसूस कर रहा था। संजु के अंदर इस वक्त जो खुशी थी वो सिर्फ वही समझ सकती थी।

फिर माँ ने उसके कंधे पर रखे हुए पल्लू को पकड़ा और फिर उसे बड़े ही नजाकत से बराबर हिस्सों मे मोड़ने लगी। और फिर अपनी उंगलियों से उस पल्लू की लंबाई को बिल्कुल सीध मे खींचकर उन्होंने संजु के कंधे पर एक बार फिर रखा और फिर थोड़ा खींचकर उसकी लंबाई सही की। अब संजु की साड़ी उसके तन से बिल्कुल चिपक गई थी। माँ ने फिर उसके सीने पर ब्लॉउज़ के ऊपर उसके आँचल पर की मोड़ो को कुछ इस तरह से खोला कि वो उसके ब्लॉउज़ को ढंकने लगे, पर फिर भी संजु की कमर जरा खुली रही। संजु ने पहली बार कुछ इस तरह पहना था जिसमे उसकी कमर खुली रहे। संजु को बहुत अच्छा लग रहा था। साड़ी उसके कंधों पर से होते हुए उसकी नाभि के बिल्कुल करीब से जाती हुई बेहद सुंदर लग रही थी। और दूसरा हिस्सा उसके स्तनों पर चढ़कर उसके ब्लॉउज़ को ढँक रहा था। साड़ी की खूबसूरती वाकई मे उसके पहनने के तरीके मे भी होती है। पुशअप ब्रा की वजह से संजु के स्तन बड़े लग रहे थे और बड़े स्तनों पर उसकी साड़ी और भी खिल रही थी। संजु का साड़ी पहनना अब पूरा हो चुका था और संजु की माँ उसके रूप को देखकर बहुत खुश थी।

माँ के चेहरे के भाव देखकर संजु को समझ आ गया था कि अब साड़ी पहनना हो चुका है। और फिर उसने अपने एक हाथ से साड़ी के पल्लू को पकड़कर सामने लिया जैसा उसने अक्सर अपनी माँ को पहले करते देखा था। और फिर उसने अपनी माँ से पूछा, “माँ क्या मैं खुद को एक बार आईने मे देख आऊँ?” संजु के अंदर अब एक बेसब्री थी खुद के रूप को देखने की।

“अरे, अभी कहाँ? अभी तो तुझे गहने पहनाना है।”, माँ बोली। और माँ ने पास मे रखे जेवलेरी बॉक्स से एक नेकलेस निकाल और संजु के बालों को हटाकर उसे नेकलेस पहनाया। संजु खुद को देख तो नहीं सकता था पर नेकलेस को छूकर उसने कहा, “माँ बहुत सुंदर है यह।”

“हाँ तुझ पर अच्छा भी लग रहा है।” फिर माँ ने संजु को २ कंगन दिए और कहा, “अच्छा अब जरा इन्हे पहन ले।”

संजु, जो अक्सर लड़की बनने को लेकर संकोच करता था, आज न जाने कैसे बिना कुछ कहे सब करने को तैयार था। पर उसने कंगन पहनने की कोशिश किया तो कंगन उसके हाथ मे जाने को तैयार ही न थे। कंगन के साथ उसे इस तरह संघर्ष करते देख माँ मुस्कुराई और उससे बोली, “रुक जरा। पहले ये मॉइस्चराइज़र हाथों पे लगा ले फिर कंगन आसानी से पहन सकेगी तू” और माँ ने उसकी कलाई और हाथों पर मॉइस्चराइज़र लगाया और फिर संजु के हाथों को अपने हाथ मे लेकर उसे कुछ इस तरह से मोड़ा कि कंगन बेहद आसानी से संजु की कलाई मे चले गए। अपने दोनों हाथों मे कंगन को देखकर संजु की खुशी और बढ़ गई और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। खूबसूरत साड़ी, नेकलेस और अब ये कंगन .. वो यकीनन ही बहुत खूबसूरत लग रहा होगा, उसने मन ही मन सोचा।

“अब झुमके पहनने की बारी”, माँ चहकते हुए बोली। “पर माँ मेरे कानों मे तो छेद नहीं है।”, संजु ने कहा।

“तेरे कानों मे एक दिन छेद भी कर देंगे पर अभी तो मैंने ये खास झुमके लिए है जिसके लिए तुझे कानों मे छेद करने की जरूरत नहीं है।”, माँ ने कहा और संजु के कानों पर उन झुमकों को प्रेस करके पहना दिए। “माँ झुमकों को पहनकर मेरे कान भारी लग रहे है।”, संजु ने कहा। “बस कुछ समय की बात है, तुझे उनकी भी आदत हो जाएगी।”, माँ ने संजु के चेहरे को प्यार से अपने कोमल हाथों से छूकर कहा।

“माँ अब तो मैं तैयार हो गई हूँ न? अब मैं खुद को देख आऊँ?”, संजु अब आतूर हो चुका था।

माँ मुस्कुराई और उस कमरे मे बिस्तर के एक किनारे बैठकर बोली, “बड़ी जल्दी है तुझे। मुझे एक बार तुझे पूरी तरह सजा तो लेने दे।”, माँ हंस पड़ी।

“सुन .. तू यहाँ बिस्तर किनारे नीचे बैठ। मैं पहले तेरे बाल संवार दूँ। थोड़े बिखरे लग रहे है।”, माँ बोली।

माँ की बात मानकर संजु माँ के पास आकर बैठने की कोशिश करने लगा। साड़ी पहनकर बैठने की उसकी आदत तो थी नहीं। तो थोड़ा संघर्ष करने के बाद वो माँ के पैरों के पास उनसे पीठ लगाकर बैठ गया। तब उसे लगा कि उसकी साड़ी का खूबसूरत पल्लू उसके वजन के नीचे दब रहा है तो उसने अपने हाथों से उस पल्लू को निकालकर अपनी गोद मे रखा और उसे सीधाकर सलीके से उसे संभालकर रखा। उसने अब तक टीवी सीरीअल मे देखा था कि औरतें इस तरह से बैठकर अपनी माँ से अपने बालों को सँवारने को कहती है। अपने हाथों मे कंगन के साथ खुद की साड़ी को संभालने मे उसे बेहद मज़ा आ रहा था। जब उसने देखा कि नीचे बैठने पर उसकी साड़ी उसके घुटनों के नीचे थोड़ी बिखर सी गई है तो उसने फिर अपनी साड़ी को संवार कर सुधारा जिससे कि साड़ी से उसके पैर ढँक जाए। अब तक जो उसने अपनी माँ को करते देखा था या फिर उसने सिर्फ टीवी सीरीअल मे देखा था वही सब संजु अब खुद अपनी साड़ी के साथ करते हुए बहुत खुश था। उसे साड़ी पहनकर बहुत खुशी हो रही थी। साड़ी संभालना या पहनना भले उसके लिए मुश्किल हो पर उसकी खूबसूरती और उसके वजह से होने वाली खुशी की वजह से संजु जानता था कि वो आगे भी साड़ी जरूर पहनेगा। इतना प्यारा अनुभव तो उसे कभी सलवार पहनकर नहीं हुआ था। क्योंकि वो अक्सर सलवार बिना दुपट्टे के पहनता था शायद इसलिए वो अनुभव नहीं कर सका था जो दुपट्टा उसे करा सकता था। और फिर सलवार मे उसकी कमर यूं इस तरह खुली न होती थी और न ही उसकी पीठ इस तरह कभी खुली रहती थी। उसके सलवार सचमुच बोरिंग थे।

संजु की माँ ने फिर संजु के लंबे बालों को अपने हाथों मे लिया और फिर उन्हे कंघी से सँवारने लगी। “संजु, तेरे बाल सचमुच घने लंबे और सुंदर है। इतने घने बाल तो कभी मेरे भी न थे। इनको तू हमेशा संभालकर रखना और इन्हे कभी छोटा मत कराना। इतने लंबे बालों के साथ तो तेरे बालों मे कई तरह की स्टाइल भी की जा सकती है। अच्छा अब ये बात कि तुझे कैसे बाल रखना है?”

संजु ने कुछ देर सोचा पर उसे हेयरस्टाइल का कोई अंदाज नहीं था। वो तो बस पोनीटेल और चोटी बनाना ही जानता था। “माँ तुम उन्हे ने खुला रख दो।”, संजु ने कहा। उसके दिमाग मे शैम्पू के एड मे आने वाली लड़कियां आ रही थी। खुले बालों मे वो सब खूबसूरत लगती थी। और फिर संजु के बाल भी उन एड की तरह ही लंबे और सीधे थे। माँ जब जब संजु के बालों पर कंघी फेरती तो उसके सर पर एक खिंचाव महसूस होता। उसके बालों पर तेल लगाना और कंघी करना ये सब तो माँ ने पहले भी किया था और संजु को ये हमेशा से ही अच्छा लगता था। पर आज साड़ी पहनकर अपने बाल माँ से सँवारने मे उसे और भी अच्छा लग रहा था। माँ ने कुछ देर उसके बालों को संवार और फिर उन लंबे बालों को सीधाकर उसकी पीठ पर छोड़ दिया। उसके रेशमी बालों का स्पर्श संजु को उसकी खुली पीठ पर महसूस हुआ। आज तो उसे सब कुछ अच्छा लग रहा था।

और फिर संजु की माँ ने संजु का चेहरा और अपनी ओर घुमाया और फिर अपने हाथों मे एक लिप्स्टिक लेकर जैसे ही संजु की ओर आगे बढ़ाया तो संजु चीख पड़ा, “माँ लिप्स्टिक! नहीं।” अब संजु इतना कुछ करवा चुका था पर अब लिप्स्टिक से कैसा संकोच? वो शायद उसने अपनी आदत की वजह से कह दिया था। उसकी माँ ने उसे पहले भी सलवार के साथ एक दो बार लिप्स्टिक लगाने को कहा था पर तब उसके मन मे एक विरोध रहता था। पर आज की बात कुछ अलग थी। आज तो वो खुशी से लड़की बन रहा था। “संजु बेटा, ऐसे नखरे भी न कर। देख लाल रंग की लिप्स्टिक है। तेरी साड़ी के ब्लॉउज़ के रंग से मैच कर रही है। मेरी बात मान, अच्छी लगेगी तुझ पर।”

और माँ ने बिना संजु की सुने उसे लिप्स्टिक लगाने लगी। संजु ने आज जीवन मे पहली बार लिप्स्टिक लगाई थी और उसके होंठों पर लिप्स्टिक का असर किसी जादू से कम नहीं था। लिप्स्टिक लगाने के बाद जब उसने अपनी दोनों होंठों को आपस मे छुआ तो लिप्स्टिक उसे महसूस हुई। उसे सच मे अच्छा लगा। वो खुद को अब तक देख नहीं सकता था पर अब खुद को लिप्स्टिक के साथ देखने को आतूर था।

फिर अंत मे माँ ने अपने हाथ मे एक बिंदी के पैकेट से एक छोटी सी लाल रंग की गोल बिंदी निकाली और संजु के माथे पर लगाकर उसके चेहरे को छूकर बोली, “अब तू तैयार हो गई है। जा खुदको आईने में देखकर आजा”

माँ के ये शब्द सुनते ही संजु के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। वो तुरंत उठ खड़ा हुआ और जल्दी से बाथरूम के आईने की ओर बेसब्री से जाने के लिए उसने पहला कदम बढ़ाया। पर हाय , यह क्या? उसका पैर उसकी साड़ी पर पड़ गया और वो लड़खड़ा गया।

माँ उसे लड़खड़ाते देखकर हंस पड़ी पर फिर जल्दी ही उससे बड़े प्यार से समझाते हुए बोली, “बेटा, साड़ी पहनकर ऐसे जल्दबाजी नहीं करते। जरा संभलकर। साड़ी को संभालकर चलोगी तो तुम्हारी शोभा और बढ़ेगी। पहले अपनी साड़ी को धीमे से अपने एक हाथ की उंगलियों से उठाओ” संजु ने माँ के कहे अनुसार वैसे ही किया।

“.. और अब दूसरे हाथ से पल्लू को पकड़कर धीरे धीरे चलकर बाथरूम जाओ”, माँ ने आगे कहा।

माँ की बात मानते हुए संजु धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। उसके तो दिल की धड़कने तेज हो गई थी। और बेसब्री से आगे बढ़ते हुए जब वो बाथरूम पहुंचा तो आईने के सामने उसने एक बेहद खूबसूरत औरत को देखा जो खुद को देखकर लजा रही थी। लिप्स्टिक से सजे होंठ के साथ उसकी मुस्कान बेहद मोहक थी। ब्लॉउज़ के ऊपर प्लेट की हुई साड़ी उसका आँचल बेहद मोहक था जिस पर फूलों के प्रिन्ट उस पर बेहद सुंदर लग रहे थे। कमर के नीचे भी उसकी साड़ी की प्लेट किसी फूल की भांति खिल रही थी। उसके हाथ मे लंबा पल्लू उसके कंधे से झूलता हुआ बेहद सुंदर लग रहा था। आज साड़ी ने संजु को वो महसूस कराया था जो वो आजतक नहीं कर पाया था। खुदको आईने मे इतना खूबसूरत देखकर वो जैसे खुद से ही शर्मा गया था। उसने अपने एक हाथ की उंगलियों से अपने चेहरे पर आते हुए बालों को एक ओर करते हुए अपने कान के पीछे किया और कानों मे सजे खूबसूरत झुमके देख उन्हे निहारने लगा। और फिर अपने आँचल को अपने स्तनों के ऊपर अपनी उंगलियों से छूते हुए उसने अपने नेकलेस को छूकर निहारा और आईने मे देख खुद से कहा, “मैं संजु हूँ। और मैं खूबसूरत हूँ।”

आज साड़ी ने संजु को महसूस करा ही दिया था कि वो भी खूबसूरत है।

क्रमश:

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