संजु (3)

 ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग ३: प्यार मे तकरार

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सुबह के ६ बजते ही संजु के कमरे का अलार्म बज उठा, और उसी अलार्म के साथ उसकी माँ की आवाज आई। “संजु.. संजु बेटा तू उठ गया?” ये माँ भी न कमाल की थी। रात तक तो संजु को बेटी की भांति संबोधित कर रही थी पर सुबह उठते ही वही बेटी बेटा बन जाती थी। शायद वो इसलिए कि आखिर संजु को सुबह सुबह घर से निकलते ही एक लड़के का सामान्य जीवन जीना होता था। और इसी की तैयारी उसकी माँ घर से ही शुरू कर देती थी।

संजु के पास एक लड़के का शरीर होने की वजह से एक परेशानी और थी जिससे हर टीन-एजर लड़का गुज़रता है। शरीर मे नए बढ़ते हॉर्मोन की वजह से उनका पुरुष लिंग उनके काबू मे नहीं रहता, और उन्हे एक डर हमेशा लगा रहता है कि कहीं उनका ये बेकाबूपन कोई देख न ले। और सुबह सुबह तो ये परेशानी और भी ज्यादा होती है। संजु की भी यही परेशानी थी। संजु का लिंग सुबह सुबह तना हुआ होता था। इससे पहले की उसकी माँ उसके कमरे मे अंदर आए उसे जल्दी से कुछ करना होगा। पर करे तो करे क्या? उस उभार को गलती से छु दो तो वो और भी बेकाबू होने लगता है। इस समस्या से बचने के लिए एक बार स्कूल मे संजु के दोस्तों ने उसे एक तरीका बताया था पर उसे वो तरीका सोचकर ही पसंद नहीं आया। ऐसा सभी लड़कों के साथ होता है .. जो भले दोस्तों के सामने कुछ भी कहे पर भीतर ही भीतर वो जानते है कि वो शरीर के इन बदलावों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है।

“संजु बेटा। चल अब जल्दी से उठ जा और नहा ले। मैं तेरे लिए टिफ़िन बना रही हूँ। जल्दी से तैयार हो जाना।”, आखिर मे संजु की माँ उसके कमरे मे उसे जगाने के लिए आ ही गई थी। वो तो समय रहते संजु ने बिस्तर पर उठकर खुद को चादर से पूरी तरह ढँक लिया था जो वो अपने दूसरे उभार को छिपा सका।

“हाँ माँ। मैं अभी जाता हूँ।”, संजु ने अपने बालों का जूड़ा खोलते हुए बंद सी आँखों के साथ कहा।

“मेरा प्यार राजा बेटा।”, संजु की माँ ने प्यार से संजु के चेहरे पर हाथ फेरा और वापस किचन की ओर चली गई।

माँ के जाते ही संजु ने चैन की सांस ली और चादर हटाकर उठने को तैयार होने लगा। चादर के हटाते ही उसका उस ओर ध्यान जाना स्वाभाविक था। उसकी मैक्सी मे उसका लिंग उभर कर टेंट बनाया हुआ था। उसकी कोमल सी मैक्सी उस उभार को छिपाने के लिए काफी नहीं थी। उसे तो अपनी पेन्टी पर भी अचरज होता था क्योंकि एक ओर तो वो उसके बड़े कूल्हों से चिपककर उन्हे जगह पर हिलने से रोकती थी पर वही दूसरी ओर उसके लिंग पर उसकी पेन्टी कमजोर साबित होती थी। फिर भी उसी अवस्था मे उठकर संजु अपने बाथरूम की ओर जाने लगा। ये तो अच्छा था कि उसका अपना बाथरूम था।

पर संजु की मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती थी। उसके शरीर मे कुछ दूसरे हॉर्मोन भी थे जो अपना असर कहीं और भी दिखा रहे होते थे। सुबह सुबह की ठंडक मे उसके निप्पल कठोर होकर उसकी मैक्सी से साफ झलक रहे होते थे। क्योंकि वो रात को बिना ब्रा के सोता था, तो निप्पल को छिपाने के लिए उसके पास कुछ न था। पीछले कुछ महीनों से संजु ने नोटिस किया था कि उसके निप्पल का आकार बढ़ता जा रहा था और उसके निप्पल के चारों ओर का गोला और बड़ा होते हुए गहरे रंग का होने लगा था। लगभग १.५ साल पहले जब उसके स्तन उभरना शुरू ही हुए थे तब उसके सीने पर हर वक्त एक दर्द रहा करता था। पीछले कुछ महीनों से वो दर्द अब कम हो गया था पर अब ये नए परिवर्तन आ रहे थे। गहरे और बड़े निप्पल सुबह सुबह जब कठोर होते तो उसे असहज लगता। शारीरिक बदलाव किसी भी लड़के या लड़की को उलझन मे डाल देते है पर संजु के लिए तो ये समस्या किसी के भी मुकाबले दुगुनी थी।

फिलहाल तो संजु ने बाथरूम जाकर अपने बालों को बांधकर उन्हे शौवर कैप से ढंका, और फिर अपनी पेन्टी उतार कर नहाने लगा। स्कूल मे बायोलोजी की क्लास मे उसने दो अलग अलग तरह के शरीर देखे थे पर उसका शरीर तो जैसे उन दोनों शरीरों का मिलन प्रतीत होता था। उसके अपने शरीर के बारे मे तो उसने क्लास मे कभी पढ़ा ही नहीं था। इसी वजह से उसके मन मे थोड़ी कुंठा भी रहती थी कि वो सभी से अलग है।

नहाने के बाद संजु ने रोज की ही तरह टाइट स्पोर्ट्स ब्रा पहनी। उसे अंदाजा होने लगा था कि ये स्पोर्ट्स ब्रा अब ज्यादा दिनों तक उसकी असलियत को दुनिया से छिपा के नहीं रख सकेगी। फिर भी जब तक संभव हो उसे कोशिश तो करनी ही थी। क्या पता किसी दिन उसकी दवाइयों के असर से ये समस्या सुलझ जाए? और फिर पेन्टी और स्कूल की यूनिफॉर्म पहनकर, संजु ने बालों की पोनीटैल बनाई और वो घर से निकलने को तैयार था। माँ ने उसके लिए टिफ़िन भी तैयार कर लिया था। टिफ़िन बैग मे रखकर संजु ने घड़ी की ओर देखा। स्कूल शुरू होने मे २५ मिनट थे। उसे स्कूल जाने के लिए साइकिल से १५ मिनट लगते थे तो काफी समय था उसके पास।

सुबह की ठंडी हवा मे साइकिल चलाते हुए संजु कुछ सोचते हुए जा ही रहा था कि तभी उसे एक आवाज आई जिसे सुनकर उसके दिल की धड़कने तेज हो गई।


“संजु … संजु … रुक न”, ये आवाज ऋतु की थी।

उसने पलट कर पीछे देखा तो ऋतु हांफते हुए साइकिल तेजी से दौड़ाते हुए उसके पीछे आ रही थी। “ऋतु … तू साइकिल से? आज तेरे पापा ने तुझे स्कूटर से स्कूल नहीं छोड़ा?”, उसने अचरज से ऋतु की ओर देखते हुए कहा।

“नहीं … मैंने उनसे कहा कि मैं आजसे साइकिल से ही स्कूल जाया करूंगी और वो मान गए।”, किसी तरह हाँफती हुई ऋतु ने अपनी बात पूरी की। भले उसकी सांस फूल रही थी, पर उसके चेहरे पर एक खुशी थी मानो जैसे उसके दिल की सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई हो।

“तू पागल हो गई है क्या? देख कैसे हाँफ रही है। साइकिल चलना तेरे बस की बात नहीं है।”, संजु ने लगभग ऋतु का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।

“क्यों? मैं साइकिल क्यों नहीं चला सकती? अभी चलाकर ही तो यहाँ तक आई हूँ न?”, ऋतु को संजु का मज़ाक रास न आया।

“ठीक है। तेरी मर्जी। मुझे क्या परेशानी हो सकती है?”, संजु ने कहा और अपनी साइकिल तेज कर ऋतु से आगे बढ़ गया। चाहे उसका दिल ऋतु के चेहरे को देखने के लिए धडक रहा था।

“तू थोड़ा धीरे नहीं चला सकता क्या?”, ऋतु ने जोर से कहा और किसी तरह अपने सलवार सूट के यूनिफॉर्म पर पिन किये हुए दुपट्टे को संभालती हुई साइकिल संजु तक पहुंचाने की कोशिश करने लगी।

“मैं तो धीरे ही चला रहा हूँ। पर तू ज्यादा ही स्लो है।”, संजु एक बार फिर पलट कर हँसने लगा, “सच बता तू आज साइकिल से क्यों आई है?”

“तेरे लिए ही आई हूँ स्टूपिड!”, ऋतु के चेहरे पर पसीने के साथ थोड़ा गुस्सा भी था। पर इस गुस्से के पीछे प्यार भी था।

ऋतु की बात सुनते ही संजु ने अपनी रफ्तार धीमी कर दी। “मेरे लिए? हम दोनों बगल के घरों मे रहते है… तुझे मेरे लिए साइकिल से आने की क्या जरूरत आ गई?”

“मुझे तुझसे बात करनी है डफर!”, ऋतु की बातों मे गाली भी थी और एक मासूमियत भरा प्यार भी था।

“देख ज़बान संभाल कर हाँ!”, संजु ने ऋतु को चेताया।

“तो क्या करूँ मैं? तू स्कूल मे मुझसे बात नहीं करता। घर के बाहर बात नहीं करता। और जब भी शाम को तेरे घर आती हूँ तो आंटी कहती है कि तू पढ़ाई कर रहा है। ऐसी क्या पढ़ाई कर रहा है तू? अभी से आईएएस बनने की तैयारी कर रहा है क्या तू?”

“तुझे ऐसी क्या बात करनी है? सीधे सीधे बोल न”, संजु ने पूछा।

“वही जो दो अच्छे दोस्त आपस मे करते है”, ऋतु ने कहा।

“दोस्त”, ये शब्द अब संजु को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। उसने इतनी बॉलीवुड की फिल्मे देखा था कि उसे इतना समझ आ गया था कि लड़कियां अच्छे लड़कों को दोस्त बनाकर रखती है, और प्यार हमेशा बिगड़े हुए लड़कों से करती है। और जब वो बिगड़े हुए लड़के उन्हे प्यार मे धोखा देते है तब उन्हे दोस्त की याद आती है। और संजु वो दोस्त बिल्कुल नहीं बनना चाहता था। कुछ ऐसी मानसिकता थी संजु की जिस वजह से वो ऋतु से अब बात भी नहीं करता था। यदि ऋतु को संजु को अपना बॉयफ्रेंड बनाना है तो अभी बनाए। बॉयफ्रेंड? नही उसे ये बॉयफ्रेंड वगेराह नहीं बनना है। अपने ही प्यार को झुठलाता हुआ वो अब ऋतु से गुस्से से पेश आता था। उसने कभी अपने दिल की बात ऋतु से कहा तो नहीं था पर अपने मन ही मन उसने ऋतु के लिए एक कहानी बून राखी थी कि ऋतु को भी बिगड़े लड़के पसंद है। अपने जीवन मे यदि संजु किसी वक्त बिल्कुल एक लड़के की तरह सोचता था तो वो यही वक्त था जब वो ऋतु से बाते करता था। शायद इस वक्त वो किसी लड़की की तरह सोच पाता तो ऋतु के दिल की बात समझ पाता और यूं मन मे उलटे-सीधे विचार न लाता।

“तुझे बात करनी है तो अपने दोस्त राहुल से क्यों नहीं कर लेती?”, संजु ने उखड़े स्वर मे ऋतु से कहा।

“राहुल? मैं उससे क्यों बात करूँ? वो मेरा दोस्त थोड़ी है।”, ऋतु ने भोलेपन से कहा।

“अच्छा हाँ वो तो तेरा बॉयफ्रेंड होगा न?”, संजु ने फिर कहा। उसकी बात ऋतु के दिल को दुखाने वाली थी।

“संजु, कुछ भी कहता रहता है तू! दूसरों की तरह तू भी शुरू मत हो जा”, ऋतु ने दुखते दिल के साथ कहा।

“अच्छा तो फिर तू रोज लंच ब्रेक मे उसके साथ क्यों बात करती है?”, संजु ने एक बार फिर अपनी साइकिल तेज कर दी।

“मैं कहाँ करती हूँ? वो ही आ जाता है। और बातें भी क्या करता है वो? आकर मेरे सामने ऐसे हकलाने लगता है जैसे उसे कोई सांप सूंघ गया हो। और रोज वही २-३ सवाल करता है। तुमने टिफ़िन मे क्या लाया है? तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? तुम कहाँ ट्यूशन के लिए जाती हो? डफर कहीं का। मैं तो उसके बोरिंग सवाल से तंग आ गई हूँ। रोज वही सवाल और रोज वही जवाब। फिर भी वो आ जाता है। और उसके बाद सब लड़के लड़कियां मेरा मज़ाक उड़ाते है उसके साथ नाम जोड़कर और अब तू भी।”, ऋतु की आवाज मे एक दर्द था।

“बस इतनी ही बात करते हो तुम लोग? और वो तेरे सामने हकलाता है?”, संजु के चेहरे पर नई खुशी आ रही थी।

“हाँ। मेरा बस चले तो उसका मुंह नोच लू। उसकी वजह से मेरा जीना हराम हो गया है।”, ऋतु शिकायती लहजे मे बोली।

ऋतु की बात सुनकर संजु के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई थी। “अच्छा तो वो तेरा बॉयफ्रेंड नहीं है?”, उसने फिर पूछा।

“कितनी बार बोलू कि वो मेरा बॉयफ्रेंड नहीं है। वो मेरे टाइप का नहीं है”, ऋतु अब झूँझला उठी थी।

“अच्छा तो तेरे टाइप का बॉयफ्रेंड कैसा होगा?”, संजु ने आखिरकार मुसकुराते हुए ऋतु की ओर देखा।

“मैं क्यों बताऊँ तुझे?”, ऋतु हँसने लगी। फिर दोनों ही चुप रहकर एक दूसरे की ओर देखते हुए अपनी अपनी साइकिल चलाते रहे।

“क्या तुझे पता नहीं है कि मुझे कैसा लड़का पसंद होगा?”, ऋतु ने कहा और ज़ोरों से हँसने लगी। न जाने ऋतु मे कहाँ से नई ताकत का संचार हो गया था कि उसने अपनी साइकिल तेजी से बढ़ा दी और संजु के आगे निकल गई। और संजु उसे बस जाते हुए देखता रह गया। इस बार उसने मन ही मन मुसकुराते हुए ऋतु को आगे बढ़ जाने दिया।

स्कूल के दिनों के प्यार मे भी एक मासूमियत होती है। संजु और ऋतु मे भी वही मासूमियत थी। दोनों ने कभी एक दूसरे से कहा तो नहीं था पर दोनों एक दूसरे को प्यार करते थे। पर न जाने क्या कारण था कि दोनों इस बात का इजहार नहीं कर सके थे। एक दूसरे से क्यों वो तो खुदसे ही इस सच को स्वीकार करने से कतराते थे।

आज संजु के लिए खुशी का दिन था। उसे राहुल की सच्चाई पता चल गई थी। और उसने नोटिस भी किया कि जब राहुल लंच ब्रेक मे ऋतु से बात करने गया तो ऋतु उसे अनसुना कर आगे बढ़ गई थी। पूरे दिन संजु और ऋतु दोनों ही क्लास मे नजरे छिपा कर एक दूसरे को देखते और जैसे ही उन दोनों की नजरे मिलती, दोनों मुस्कुराकर अपनी नजरे चुरा लेते। ऋतु के चेहरे की मोहक मुस्कान संजु को दीवाना बना रही थी। शायद बॉलीवुड की फिल्मे गलत थी। लड़कियां कभी कभी अच्छे लड़के भी पसंद करती है, संजु सोचते हुए मुस्कुराने लगा।

देखते ही देखते न जाने कैसे स्कूल का समय खत्म हुआ और आज संजु और ऋतु दोनों ही अपनी अपनी साइकिल मे साथ वापस घर जा रहे थे। पुराने दिनों मे जिस तरह वो दोनों खूब बाते करते थे और एक दूसरे को छेड़ते परेशान करते थे, आज बिल्कुल वैसे ही दोनों साथ थे।

“आज तू बहुत खुश लग रहा है।”, ऋतु ने यूं ही संजु के चेहरे की खुशी को देखकर कहा था और संजु ने बस हाँ कहकर उसका जवाब दिया था। “तू ऐसे ही खुश रहाकर। अच्छा लगता है तू ऐसे”, ऋतु की बात सुनकर संजु का दिल खुशी के मारे सातवें आसमान पर था। “और तू भी ऐसे ही हँसती रहा कर। अच्छी लगती है।”, संजु ने भी ऋतु से कहा था।

हँसते खेलते दोनों अपने घर वापस आ चुके थे। दोनों ही खुश थे। और फिर एक दूसरे को बाय कहकर दोनों अपने अपने घरों मे चले गए।

क्रमश:

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