संजु (2)

 ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग २: नोक-झोंक

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संजु और उसकी माँ ने बस अभी खाना खत्म ही किया था। रोज की तरह ही संजु की मम्मी अपनी पसंद का टीवी सीरीअल देखने वाली थी। संजु को उनके सीरीअल इतने पसंद न आते थे। फिर भी अपनी मम्मी की खुशी के लिए वो उनके साथ बैठकर वो उन्हे देख लेता था। कभी कभी उन सीरीअल को देखकर वो सोचता था जैसे कि उन सीरीअल की दुनिया मे सिर्फ औरतें ही रह गई थी जो सब कुछ करती थी फिर चाहे वो घर संभालना हो या बिजनेस या फिर कोई साजिश करना। आदमी तो सिर्फ जैसे नाम के लिए होते थे। उनका कोई ज्यादा काम नहीं होता था। संजु की अपनी लाइफ भी टीवी की लाइफ से बहुत अलग नहीं थी। वो मम्मी के साथ रहता था वो भी लड़कियों की तरह। उसकी सबसे अच्छी दोस्त ऋतु भी एक लड़की थी। और उसके पापा अलग अलग देशों मे पेट्रोलीअम इंडस्ट्री से जूड़े काम मे बाहर ही रहते थे। हफ्ते मे २ – ३ बार ही वो अपनी फॅमिली से बात करते थे।

भले संजु को टीवी सीरीअल इतने पसंद न थे, फिर भी वो उन्हे गौर से देखता था। एक लड़की और एक औरत की ज़िंदगी कैसी होती है, वो सोसाइटी मे कैसे रहती है, ये सब वो उन सीरीअल से सीखता था। वैसे तो वो जानता था कि ये सब काल्पनिक है और औरतें सीरीअल की तरह हर वक्त इतना सजधज के नहीं रहती थी। फिर भी उनसे वो कुछ न कुछ सीखता था। शायद उसे इन सब की कभी जरूरत न पड़े, पर यदि वो अपने एक्स्ट्रा X क्रोमज़ोम के लिए जो दवाइयाँ लेता था, उसने अपना असर न दिखाया तो उसके पास एक औरत की तरह जीवन बीताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहेगा।

“काश ऐसा दिन कभी न आए जब उसे पूरी तरह से लड़की बन कर रहना पड़े।”, वो मन ही मन सोचता और भगवान से प्रार्थना करता। उसकी उम्र ज्यादा नहीं थी पर इतना उसे समझ आता था कि सोसाइटी मे औरत का जीवन कई संघर्षों से भर होता है।

“संजु, मेरे सीरीअल का समय हो रहा है। तू जाकर कपड़े बदल आ। मैं भी सीरीअल शुरू होने के पहले सारे बर्तन समेट कर आती हूँ “, संजु की माँ की आवाज से उसका ध्यान वापस वर्तमान मे आया।

“माँ, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ। कपड़े मैं बाद मे बदल लूँगा।”, संजु ने माँ से कहा।

“न.. मैं तुम्हारी मदद कर देती हूँ। कहो”, माँ ने संजु को लड़की की तरह कहने के लिए प्यार से कहा। “बेटा, तू यदि सही तरह से बोलने की प्रैक्टिस न करे तो तुझे आगे चलकर मुश्किल होगी न?”, माँ ने उसे प्यार से समझाया। ये सब आखिर इसलिए तो हो रहा था ताकि यदि संजु को भविष्य मे लड़की बनना पड़े तो उसे मुश्किलों का सामना न करना पड़े।

“अच्छा माँ, मैं तुम्हारी मदद कर देती हूँ।”, संजु ने थोड़ा अनमने मन से कहा।

“नहीं, बर्तन तो मैं समेट लूँगी। तू जाकर कपड़े बदल ले। तुझे भी आराम लगेगा। “, माँ ने मुसकुराते हुए कहा| उसकी माँ की नटखट आँखें और उनका प्यार भरा अंदाज संजु को जल्दी ही उसकी असहजता से बाहर ले आई।

अपने कमरे मे संजु ने जाकर अपनी अलमारी खोली। वहाँ २-३ मैक्सियाँ थी जिसमे से एक मैक्सी संजु ने पहनने के लिए निकाल ली। अपनी सलवार कुर्ती उतार कर कुछ देर तो उसने अपनी काया को देखा। एक तरफ तो उसके स्तन उभर रहे थे और वहीं दूसरी तरफ उसकी पेन्टी के अंदर उसके पुरुष लिंग मे भी उम्र के साथ कुछ बदलाव आ रहे थे। किसी भी किशोर किशोरी के लिए उसके तन मे आने वाले बदलाव कन्फ्यूज़ करने वाले होते है, पर संजु के लिए तो यह बदलाव और भी अजीब थे। वो लड़का है या लड़की ये तो वो खुद नहीं समझ पाता था।

इससे पहले कि वो अपनी स्थिति को सोचकर और परेशान होता, उसने झट से मैक्सी पहन ली। वो कॉटन की सॉफ्ट सी मैक्सी थी। चाहे जो भी हो, उसे मैक्सी पहनकर कंफरटेबल महसूस होता था। जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, संजु की मैक्सी मे उसे उसके सीने के पास और कसाव महसूस होने लगा था। आखिर उसके स्तन जो धीरे धीरे बढ़ते जा रहे थे। कभी कभी तो उसे अपने बढ़ते स्तनों को देखकर गुस्सा आता था, पर कभी कभी उसे ये भी लगता था कि काश उसके स्तन ऋतु की तरह बड़े और भरे हुए होते। फिर भी वो इतने छोटे भी न थे कि उन्हे संजु अनदेखा कर सके। उनका वजन उसकी ब्रा और कंधों पर वो महसूस कर सकता था। और यदि किसी दिन वो ब्रा न पहने तो उसकी पीठ मे दर्द भी होने लगता था।

मैक्सी पहनकर जब वो चलता तो कमर के नीचे जो खुलापन उसे महसूस होता, वो उसे अच्छा लगता था। मैक्सी की कोमलता उसे लुभाती थी। अजीब सा दवन्द था संजु के मन मे भी। उसे लगता था कि मैक्सी इतनी कंफरटेबल है कि लड़का हो या लड़की, हर किसी को मैक्सी पहनकर ही सोना चाहिए। खैर, अब तक उसकी माँ ने टीवी चालू कर दिया था तो संजु भी चलकर अपनी माँ के पास आकर सोफ़े मे उनके बगल मे बैठ गया।

“आजा बेटा। तू देखना आज नमिता अपनी सास को सबक सीखा कर ही रहेगी।”, संजु की माँ ने उत्साह से सीरीअल के बारे मे बात करते हुए संजु का हाथ पकड़ लिया। संजु को कभी समझ नहीं आता था कि उसकी माँ को इन सीरीअल मे इतना क्यों मज़ा आता है।

“मुझे नहीं लगता माँ। नमिता को कुछ करना होता न, तो वो आज से दो-तीन महीने पहले ही कुछ कर लिया होता। तुम्हारा ये सीरीअल न, कभी आगे नहीं बढ़ने वाला है। मुझे समझ नहीं आता कि ये नमिता क्यों इतने समय से सब कुछ बर्दाश्त कर रही है? उसकी जगह मैं होती तो कबका अपनी सास को सुधार चुकी होती”, अनजाने मे ही सही, संजु ने अभी जो कह दिया था उसकी बात सुनकर उसकी माँ खुद को मुस्कुराने से रोक न सकी, और फिर माँ ने संजु को प्यार से गले लगा लिया। “मुझे पता है, मेरी बेटी ऐसे किसी से डरने वालों मे से नहीं है”, माँ एक बार फिर संजु से लिपट गई।

“छोड़ो न मुझे, माँ”, संजु ने अपनी बात के बारे मे सोचकर थोड़ी असहजता के साथ कहा।

“अरे इसमे अब शर्माने की क्या बात है? तुझे जो ठीक लगा तूने वही तो कहा। तेरी बात सही भी है”, माँ ने उखड़े हुए संजु को समझाने की कोशिश की। पर संजु ने थोड़ी गुस्से से भरी हुई नज़रों से अपनी माँ की ओर देखा तो वो उसे और प्यार से अपनी साड़ी के पल्लू से ढँककर हँसने लगी। संजु और उसकी माँ के बीच ऐसी नोक-झोंक टीवी देखते वक्त रोज की ही बात थी।

“माँ , ये जो तुम्हारी नमिता है, ये घर पर रहते हुए भी इतनी भारी भरकम साड़ी और हजारों गहने क्यों पहनती है? ऐसा लगता है जैसे हर वक्त किसी की शादी अटेन्ड करने के लिए तैयार बैठी हो”, संजु को अपनी माँ को छेड़ने के लिए सीरीअल मे नुक्स निकालना अच्छा लगता था।

“बेटा, वो बड़े घर की बहु है इसलिए”, माँ ने कहा। “अरे, बड़े घर की बहु है इसका मतलब इतना शृंगार और भारी साड़ी पहने ये जरूरी थोड़ी है। किसी भी औरत को इतना झंझट तो पसंद नहीं आता होगा। “, संजु ने फिर कहा।

“अरे ऐसी साड़ियाँ पहनने को तो हर औरत उतावली रहती है। इसका भी अलग ही मज़ा है। तूने कभी साड़ी पहनी नहीं है न इसलिए तू ऐसा कह रही है। कल जब मैं तुझे साड़ी पहनाऊँगी न, तब तुझे समझ आएगा।”, माँ ने बड़े ही प्यार से जवाब दिया।

“तुम फिर सपने देखने लगी माँ। मुझे किसी भी साड़ी का कोई शौक नहीं है। और ऐसी साड़ियों का तो बिल्कुल भी नहीं।”, संजु ने थोड़े नखरे दिखाते हुए कहा।

“अच्छा कल की कल देखेंगे। अभी तो सीरीअल देख लेते है।”, माँ ने एक बार फिर प्यार से संजु से कहा। पर संजु की ये बात उसकी माँ ने थोड़ी सी नोटिस जरूर करी। आखिर हर किसी की अपनी पसंद-नापसंद होती है, क्या पता संजु की क्या पसंद हो? उसकी माँ तो बस इतना चाहती थी कि संजु अपनी पसंद-नापसंद जानने के लिए सभी कुछ एक बार ट्राई करके तो जरूर देखे।

सीरीअल देखते देखते संजु भी सीरीअल की औरतों के हाव भाव देखने मे मशगूल हो गया। पर बीच बीच मे माँ को छेड़ने के लिए कुछ कहने से उसने खुद को रोका भी नहीं। ऐसे ही एक सीन मे उसने औरतों को सोफ़े पर बैठे देखा तो उसने नोटिस किया कि कैसे औरतें अपने पैरों को एक दूसरे के बेहद पास रखकर बैठती है। उसने खुद को देखा तो उसे एहसास हुआ कि वो तो उनसे उलट पैरों को फैलाकर बैठा हुआ था। उसने माँ कि नज़रों से छिपते हुए खुद की गलती सुधारी। पर माँ से कुछ छिपता कहाँ है? पर उसने संजु से कुछ कहा नहीं।

संजु के मन की दुविधा यूं तो किसी के लिए समझना आसान नहीं है। एक पल तो वो लड़की की तरह हाव-भाव करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था, पर अगले ही पल खुद ही लड़कियों की तरह बातें करता था। वो तो खुद समझ नहीं पाता था कि आखिर वो चाहता क्या है? शायद उसे जिस पल जो सही लगे वो उस तरह व्यवहार करता था।

पर फिर भी यूं ही हँसते खेलते कब उस सीरीअल को देखते हुए आधा घंटा बीत गया, उन दोनों को पता ही नहीं चला। स्कूल से आने के बाद संजु और उसकी माँ के बीच का रिश्ता कब माँ-बेटे से माँ-बेटी के रिश्ते मे बदल जाता था पता ही नहीं चलता था। रोज स्कूल के बाद संजु एक लड़के की तरह ही शुरुआत करता पर फिर धीरे धीरे रात होते तक लड़की के रूप मे पूरी तरह ढलने लगता। और इस वक्त उसके लिए जितना संभव था, वो अपनी माँ की बेटी ही था।

“मैंने कहा था न माँ कि नमिता आज भी कुछ नहीं करेगी।”, संजु ने सीरीअल खतम होते ही माँ की चुटकी लेते हुए कहा ।

“ठीक है आज न सही, कल तो जरूर कुछ करेगी। “, माँ ने भी जवाब दिया।

“तुम बस सपने देखती रहो माँ। मैं आज ही बता रही हूँ तुम्हें कि कल क्या, आज से दो हफ्ते बाद भी तुम्हारे सपने पूरे नहीं होने वाले।”, संजु ने कहा।

“तो ठीक है। हम दोनों शर्त लगा लेते है।”, माँ ने भी नटखट अंदाज मे कहा।

“अच्छा। यदि मैं शर्त जीत गई तो मुझे क्या मिलेगा?”, संजु ने कहा। संजु को माँ से नोक-झोंक करने मे मज़ा आ रहा था।

“तेरी शर्त जीतने का तो सवाल ही नहीं उठता। तू शर्त हार गई तो तुझे बिना किसी शिकायत के नमिता की तरह साड़ी पहनने के लिए तैयार होना होगा।”, माँ ने संजु से कहा। वो संजु के चेहरे पर इस शर्त का असर देखना चाहती थी।

“माँ मैं शर्त नहीं हारूँगी। तुम बस इतना बताओ कि मैं शर्त जीत गई तो मुझे क्या मिलेगा?”, संजु ने अपने चेहरे से बिना कुछ प्रकट किये उसकी माँ को जवाब दिया। वो अपनी जीत के प्रति आश्वस्त था।

“अच्छा.. यदि तुम किसी कारण से ये शर्त जीत गई तो मैं तुम्हें तुम्हारी पसंद की .. “, माँ कहते कहते रुक गई जैसे कुछ सोच रही हो।

“पसंद की क्या माँ?”, संजु ने पूछा।

“मैं तुम्हारे पसंद की साड़ी तुम्हारे पसंद की स्टाइल मे पहनाऊँगी।”, माँ खिलखिलाते हुए बोली।

“माँ!”, संजु ने भाव बनाते हुए कहा, “ये क्या है? तुम जीती तब भी तुम्हारी खुशी, मैं जीती तब भी तुम्हारी खुशी?”, संजु ने कहा।

“अरे.. पसंद तो तुम्हारी ही होगी न!”, माँ संजु के चेहरे को छूते हुए बोली।

दोनों माँ बेटी कुछ देर तक एक दूसरे की आँखों मे देखती रही। और माँ के चेहरे की खुशी देखकर संजु के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।

“अच्छा चल बेटा। अब रात हो गई है। तू जाकर अब सो जा। सुबह ६ बजे स्कूल के लिए उठना भी तो है।”, माँ ने गंभीर होते हुए कहा।

“ठीक है माँ। मैं जाती हूँ सोने के लिए। गुड नाइट “, और संजु ने अपनी माँ से गले लगा कर गुड नाइट कहा।

“अच्छा एक बात सुन.. चाहे तो चोटी खोलकर जूड़ा बनाकर सो जाना। और सोने के पहले दांतों को ब्रश करने के बाद, अपनी ब्रा उतारना मत भूलना”, माँ ने कहा।

“माँ!”, संजु ने जोर से कहा। “क्या हुआ? बेटा, रात को लड़कियों को ब्रा उतारकर ही सोना चाहिए। दिन मे स्तनों को सपोर्ट चाहिए होता है पर रात को उन्हे खुला रखना स्तनों के आराम के लिए जरूरी है। अब ये बात एक माँ अपनी बेटी को नहीं सिखाएगी तो कौन सिखाएगा उसे?”, माँ ने ऐसे कहा जैसे ये कोई मामूली बात हो। मगर संजु के लिए ये बात मामूली कहाँ थी? एक लड़की की तरह हँसना, बाते करना और एक बेटी की तरह व्यवहार करना फिर भी थोड़ा आसान है। मगर शरीर मे आने वाला ये बदलाव उसके लिए वास्तविकता थी जो उसे इस सच से वाकिफ कराता था कि संजु शायद एक दिन पूरी तरह से लड़की बन जाए। इस सच को वो अनदेखा करना चाहता था मगर उसके स्तन हर पल उसे आभास कराते थे।

माँ की कही हुई बात से उसका मन विचलित हो गया था। फिर भी किसी तरह संजु नजरे झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ चला था।

अपने बेटे (बेटी) को इस तरह उदास देखकर किस माँ का दिल दुखी न होता? संजु की माँ भी बस यही महसूस कर रही थी। पर अब वो कर भी क्या सकती थी? भविष्य मे क्या लिखा है ये तो वो नहीं जानती थी पर जैसा भी भविष्य हो, उसकी तैयारी करना उसकी जिम्मेदारी थी। और बस इसी जिम्मेदारी को पूरी हिम्मत के साथ वो पूरा कर रही थी।

वही दूसरी ओर, संजु अपने कमरे मे अपनी ब्रा उतारने के बाद अपनी मैक्सी पहने हुए सो गया। अपने पैरों को घुटनों के पास मोड़कर खुद को मैक्सी की गर्माहट मे खुद को ढाँढ़स बँधाते हुए इस सपने के साथ कि शायद एक दिन जब वो सो कर उठेगा तब सब कुछ ठीक हो चुका होगा, उसकी मुश्किलें खत्म हो जाएगी और उसे एक दिन इस सवाल का जवाब मिल जाएगा कि वो लड़का है या लड़की।

आँखें बंद करते ही संजु के दिमाग मे सहसा ही कुछ और खयाल आने लगे। उसके मस्तिष्क मे एक तस्वीर उभर रही थी। एक ऐसी तस्वीर जो उसे बेचैन भी कर रही थी और उसे खुशी भी दे रही थी। उसके जीवन के बाकी पहलुओं की तरह ये भी उसके मन की एक दुविधा ही थी। इतनी मोहक तस्वीर उसे यूं बेचैन क्यों करती थी? उसे बेचैन करने वाली वो तस्वीर किसी और की नहीं बल्कि ऋतु की थी।

क्रमश:

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