संजु (14)

 ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग १४: प्यार में उलझन


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६ दिसंबर २०१९ को शुरू हुई संजु की यह यात्रा आखिर अपने अंतिम ३ भागों के साथ जनवरी २०२१ में समाप्त हो रही है। आप सभी यह तीन भाग पढे इसके पहले मैं आप सभी के उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ। इस उपन्यास को लिखने में जितनी मुझे खुशी हुई इसका वर्णन तो मैं नहीं कर सकती। फिर भी यदि मुझसे कोई कमी रह गई हो तो क्षमा करिएगा और अपने विचार जरूर व्यक्त करिएगा।


परियों की कहानियाँ सुनी है कभी? अकसर उन कहानियों में छोटी सी उम्र की लड़की – एक प्यारी परी से कम नहीं होती है। पर बड़ी होने के बाद उन परियों का क्या होता है? क्या वह तब भी उतनी ही प्यारी होती है? क्या उनकी मासूमियत बड़ी होने के बाद भी उतनी ही बनी रहती है?

आज का दिन
उस बड़े से शहर की भीड़ में किसी और दिन की तरह जीवन चल रहा था। लोग अपने काम पर जा रहे थे। चमचमाती दुकानें अब तक पूरी तरह खुली न थी। और सड़क पर से एक टैक्सी बढ़ रही थी। लोग अपनी दिनचर्या में इस बात से बिल्कुल अनजान थे कि उस टैक्सी में जा रही लड़की कौन थी और उसकी कहानी क्या थी। यदि जानते तो वो उस लड़की को इस तरह अकेला न छोड़ पाते। इस दुनिया में हम सब एक दूसरे के इतने करीब होते हुए भी कितने अनजान होते है। और ये कहानी भी कुछ ऐसी ही थी … करीब होते हुए भी एक दूरी की।

टैक्सी जब एक बिल्डिंग के सामने रुकी तो उसमे से लड़खड़ाते मगर संभलते कदम उतरे। सुनहरी सैंडल जिसमे खूबसरत पैर और नेल पोलिश से सजी उँगलियाँ थी। लगभग २ इंच की हील वाली सैंडल जितनी सुंदर थी उतनी ही सुंदर थी उन सुडौल टांगों पर लिपटी हुई एक सुनहरे रंग की नेट साड़ी। सुबह १० बजे के समय के लिए बिल्कुल भी फिट नहीं थी वो। कौन है जो इतनी सुबह इस तरह सज संवर कर आई थी। सर पर जुड़ा भी बिल्कुल पार्टी वेयर स्टाइल में बना हुआ था पर कुछ बिखरा भी था। स्लीवलेस ब्लॉउज़ में दिखती लंबी गोरी बाँहें और कंधे पर पल्लू इतना सुंदर की बस नजरे देखती रह जाए। फिर भी कुछ उलझा हुआ सा पल्लू अपने में कोई कहानी छिपाए हुआ था।

खुद को संभालती हुई लड़की जब किसी तरह बिल्डिंग में पहुंची तो उसके रूप को देख कर रीसेप्शनिस्ट भी आश्चर्यचकित हो उसे देखने लगी। पर उस लड़की की डबडबाई सी आँखों ने रीसेप्शनिस्ट को उस पल की अहमियत का अंदाजा दिला दिया था।

“मैडम, आपका अपॉइन्ट्मन्ट है?”

“नहीं।”, अपनी आवाज को टूटने से रोकते हुए किसी तरह उस सुनहरी परी ने कहा।

रीसेप्शनिस्ट उस लड़की की प्रॉब्लम जानती तो न थी पर वो उस आवाज में छिपे दर्द को शायद देख सकी थी।

“मैं देखती हूँ कि आप जल्दी से जल्दी रुचिता मैडम से मिल सके। मैं उन्हे इन्फॉर्म कर देती हूँ। आपका नाम क्या है?”

“संजु।”, उस लड़की ने कहा। उसकी आँखों में जैसे एक निराशा छा गई थी और मानो एक मोती उन आँखों से टपक पड़ा।

“सॉरी मैडम। आपका नाम तो रिकार्ड में नहीं है।”, रीसेप्शनिस्ट ने जल्दी जल्दी अपने कंप्युटर में चेक कर कहा।

“संजना … प्लीज संजना नाम से चेक करिए।”, इस बार वो अपनी आवाज को टूटने से न रोक सकी।

“ओ हाँ। मैडम आप प्लीज वहाँ बैठिए। रुचिता मैडम का अभी किसी से अपॉइन्ट्मन्ट है। शायद आपको मिलने के लिए आधे घंटे और इंतज़ार करना पड़ सकता है। मैं उनको अभी जाकर तुरंत बता देती हूँ कि आप आई है।”, रीसेप्शनिस्ट ने कहा और तुरंत कैबिन के अंदर चली गई।

धीमे कदमों से चलती हुई वो लड़की आकर एक सीट पर बैठ गई। और अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छिपाकर फफक पड़ी। दिल तो जोर से रोने को हो रहा था पर फिर भी आंसुओं को बहाकर सिर्फ सुबक सकती थी वो।

ये सुनहरी परी तो हमारी संजु है। खूबसूरत, मासूम, प्यारी, सबका दिल जीतने वाली … तो आज वो इस तरह क्यों रो रही है? आज इतनी अकेली क्यों है वो?

एक दिन पहले
दोपहर का समय था और ऑफिस का टाइम। जब एक आवाज ने इस परी का ध्यान कंप्युटर से हटाया।

“संजना संजना … एक बार मुड़कर मेरी बात भी सुन ले।”, ये विक्की था, संजु यानि संजना के साथ ऑफिस में काम करने वाला।

“क्या है? क्यों चिल्ला रहा है? तुझसे कितनी बार कहा है कि मेरा नाम संजु है।”, संजु ने पलटकर कहा।

बचपन का संजु – कहाँ से कहाँ आ चुका था। आज बिल्कुल मॉडर्न हेयरस्टाइल के साथ, एक मॉडर्न घुटनों तक लंबी काली ड्रेस पहनी हुई संजु, उस संजु से कितनी अलग थी जो घर में साड़ी पहनकर खुश हुआ करता था। माँ की साड़ी पहनने को उतावला हुआ करता था और कभी आईने में खुद को देख शरमाता था। जिस संजु ने लड़की होने के पहले पाठ कुछ ऐसे सीखे थे जिसमे वो कभी खुद को साड़ी के आँचल से ढँकता तो कभी अपनी सलवार कुर्ती की चुन्नी से। उस संजु से अलग, आज की ये आत्म-विश्वास से भरी हुई एक बड़ी कंपनी में काम करने वाली संजु की यात्रा में क्या वो बचपन के सहेजे हुए पाठ क्या कहीं पीछे छूट गए थे? क्या उसकी मासूमियत कहीं खो गई थी? क्या ये संजु पूरी तरह से लड़की बन चुकी थी या आज भी उसमे वो मासूम लड़का संजु छिपा हुआ था जिसने एक मजबूरी में ये रूप धारण किया था। देखकर कुछ भी कहना मुश्किल था।

“ठीक है संजु। अब तू संजु बाबा की तरह दादागिरी मत कर मेरे साथ।”, विक्की हंस दिया।

“तुझे क्या बात करनी थी? जो कहना है सीधे सीधे बोल। मेरे पास समय नहीं है।”, संजु ने कहा।

“हाँ। तो सुन न … तू आज मेरे साथ डिनर पर चलेगी? बहुत ही फ़ैन्सी जगह ले जाऊंगा तुझे।”, विक्की ने कहा।

ये संजु जानती थी कि विक्की जरूर कोई मसखरी कर रहा है। वो दो साल से उसके साथ काम कर रही थी। उसकी हर आदत से वो परिचित थी।

“तू फिर शुरू हो गया विक्की।”, संजु ने उसको झिड़का। इतनी खूबसूरत लड़की से झिड़क खाने का भी अपना ही मज़ा है।

“अरे इसमे शुरू होने की क्या बात है। सबको पता है कि २ महीने के अंदर अंदर तेरा प्रमोशन हो जाएगा और तू मेरी बॉस बन जाएगी। मैं तब तुझसे डिनर के लिए थोड़ी पूछ सकूँगा।”

“क्यों? तब तू मेरा दोस्त नहीं रहेगा क्या?”, संजु ने कंप्युटर की ओर देखते हुए कहा।

“यार … तू मुझे एक बार पहले ही फ्रेंड ज़ोन मे डाल चुकी है। अब बार बार दोस्त दोस्त बोलकर मेरी इन्सल्ट मत किया कर। मैं तुझे प्रपोज थोड़ी कर रहा हूँ।”, विक्की ने कहा।

“अच्छा … तो ये फ़ैन्सी जगह डिनर तू अपने सभी दोस्तों को ले जाता है?”, संजु ने पूछा। उसके चेहरे की मुस्कान बेहद आकर्षक थी .. तभी तो कोई आश्चर्य नहीं था कि विक्की का संजु में इंटरेस्ट था।

“मैडम। इसलिए कहता हूँ कि कभी काम के अलावा भी कुछ देख लिया करो। आज हमारे ऑफिस का ऐन्यूअल डे है Marriot में। तुझे वहाँ आज अवॉर्ड भी मिलने वाला है तो मैं तुझसे बस पूछ रहा था कि तुझे वहाँ जाने के लिए राइड चाहिए या तू खुद पहुँच जाएगी।”

“ओह … मैं तो भूल ही गई थी! पहले क्यों नहीं बोला डफर!”, संजु ने सर पर हाथ रखते हुए कहा।

“तो वही तो बता रहा हूँ तुझे।”

और फिर अचानक ही हड़बड़ी में संजु वहाँ से उठ खड़ी हुई और विक्की से बोली, “यार! २ बज गए है और फ़ंक्शन ६ बजे से है। मुझे तो साड़ी भी पहननी है। विक्की मैं घर जा रही हूँ। तू प्लीज ५ बजे मुझे पिक अप करने आ जाना। और अपनी कार लेकर आना। यदि मोटरसाइकिल में आया तो मैं नहीं आऊँगी तेरे साथ”

“लो आज तो मेरी लॉटरी लग गई! तुझे पहली बार साड़ी पहने देखूँगा। ठीक है मैं कार लेकर ५ बजे पहुँच जाऊंगा तेरे घर। तू लेकिन दूसरी लड़कियों टाइप मुझे इंतज़ार मत कराना।”, विक्की ने संजु को छेड़ा।

“सिरियसली विक्की? तेरी किस्मत में कब किसी लड़की के लिए इंतज़ार करने का सौभाग्य मिल गया?”, संजु ने भी मसखरी की।

“यार तू न … बस मेरी इन्सल्ट ही करती है। मेरी भलाई का फायदा उठाती है तू।”

“इन्सल्ट? तू ही तो कहता है कि मैं बहुत हॉट लगती हूँ। अब एक हॉट लड़की तेरे साथ कार में आने वाली है … तुझे तो खुश होना चाहिए।”, संजु ने विक्की के गाल खींचते हुए कहा और पर्स उठाकर घर जाने के लिए निकलने लगी।

“संजु … सुन न। आज वहाँ पार्टी में तू नताशा के साथ रहना। इस बहाने मेरी भी नताशा से बात हो जाएगी।”

“यार। तेरी नताशा से इतनी फटती क्यों है? सीधे सीधे तू खुद उससे बात क्यों नहीं कर लेता? पर ठीक है तेरे लिए मैं ये भी कर लूँगी।”, संजु ने कहा और वहाँ से निकल पड़ी। ऊंची हील्स और परफेक्ट फिगर वाली उस लड़की को वहाँ से जाते हुए विक्की बस देखते ही रह गया। विक्की को संजु बहुत पसंद थी पर संजु उसके लीग के बाहर की लड़की थी – स्मार्ट, बिंदास, टैलन्टेड, खूबसूरत, मॉडर्न। शायद इस वजह से उसने संजु का दोस्त बनना ही उचित समझा था। संजु के साथ उसकी मौज मस्ती और अनुभव इतने अच्छे थे कि वो उन अनुभव को अपने एक तरफा प्यार के लिए छोड़ने का रिस्क नहीं ले सकता था। संजु एक स्पेशल लड़की थी – न जाने क्या बात थी इस लड़की में जो विक्की को इतना लुभाती थी। एक खूबसूरत अंदाज में लचकती हुई कमर के साथ उसने संजु को जाते हुए देखा और अपने उस गाल पर हाथ फेरा जहां संजु ने कुछ देर पहले अपने हाथों से खींचा था।

हाँ तो संजु तो बदल चुका था। कम से कम दिखने और हाव भाव में वो पहले वाले संजु की तरह तो न था। पर उसके दिल में क्या था वो ही जाने। पर इस कहानी में सिर्फ संजु ही एक परी न थी। एक और परी थी जो इस शहर से बहुत दूर अपने परिवार के साथ थी। भले वो अपने परिवार के साथ थी, पर जीवन की वास्तविकता के साथ उसका संघर्ष उसका अपना था जहां वो भी अकेली थी।

कुछ महीने पहले …
रात के ८ बज चुके थे जब वो दूसरी परी अपने घर लौटी थी। फॉर्मल सलवार कुर्ती जो उसकी गर्दन तक ढँकी हुई थी जो उसकी शालीनता को दर्शा रही थी। प्रेस किया हुआ दुपट्टा जो कंधे में एक ओर पिन किया हुआ था, दिन भर काम करने के बाद भी उसमे एक सिलवट तक न आई थी। पर इतने लंबे दिन तक काम करने के बाद उसके चेहरे पर थकान साफ दिख रही थी फिर भी घर आते ही एक मुस्कान उसके चेहरे पर थी जिसे देखकर उसके पापा खुश हो जाया करते थे। उनकी नन्ही परी अब बड़ी हो गई थी पर थी तो उनकी नन्ही परी ही।

“ऋतु की मम्मी। सुनो ऋतु आ गई है। चलो खाना लगाओ उसे भूख लगी होगी।”, पापा ने तुरंत आवाज दी।

“पापा, रहने दो। आज ऑफिस में ही मैनेजर सर ने कुछ खाने को मँगवा लिया था।”, ऋतु ने अपनी पर्स को एक ओर रखकर अपने पापा की बगल में आकर बैठ गई। तो पापा ने भी प्यार से उसके हाथ पर हाथ रखकर पूछा, “क्या बात है बेटा? इतनी देर तक काम कर रही हो? हमें चिंता होती है तुम्हारी।”

“पापा वोही मन्थ एंड का चक्कर, हर महीने के आखिर में अकौनटींग का काम बढ़ जाता है बैंक में।”, ऋतु ने पापा का प्यार महसूस करते हुए कहा, “अच्छा मम्मी कहाँ है?”

“अंदर बेडरूम में होगी। आज अलमारी से गहने निकाल कर देख रही थी। देखो तुम ही क्या कर रही है वो?”, पापा ने कहा तो ऋतु उठकर मम्मी-पापा के बेडरूम की ओर बढ़ चली।

बेडरूम में जाते ही उसने मम्मी को गले लगा लिया। “क्या बात है मम्मी? आज ये सब गहने क्यों देख रही हो?”

“तेरी शादी के लिए! और किसलिए? सालों से अलग अलग चीजें इकट्ठा की है कि तेरी शादी के समय तेरे काम आएंगे। देख तुझे इन तीन हारों में से कौनसा सबसे ज्यादा पसंद है। यदि तुझे पसंद ना आए तो नए डिजाइन में बनवाना होगा इन्हे।”, मम्मी ने कहा।

“मम्मी तुमने अपनी पसंद से बनवाए थे तो अच्छे ही होंगे। मुझे तो सभी अच्छे लग रहे है।”, ऋतु ने गौर से उन्हे देखते हुए कहा। और फिर उसकी नजर एक सेट के झुमकों पर गई। उसने उन झुमकों को उठाया और अपने कान पर लगाती हुई बोली, “मम्मी ये झुमके बहुत सुंदर है। ये झुमके न संजु को बहुत पसंद आएंगे।” कहते हुए वो मुस्कुराने लगी जैसे उसे खुश होने का एक कारण मिल गया था। उसकी मम्मी ने उसे देखा तो एक पल तो वो खुश हुई पर फिर उनके चेहरे पर कुछ गंभीर भाव आ गए।

“क्या हुआ मम्मी? क्या सोच रही हो?”, ऋतु ने पूछा।

“ऋतु। एक बात कहूँ।”

“कहो न माँ।”, ऋतु उन गहनों को देख खुशी से बोली।

“अब तू बड़ी हो गई है तो शायद तू समझ सके। तुझे और संजु को मैंने बचपन से साथ में खेलते कूदते देखा है। तुम दोनों को साथ में देखकर मुझे बहुत अच्छा भी लगता था। सच कहूँ तो मैंने तो सपने भी देख लिए थे कि एक दिन संजु और तेरी शादी होगी। पर फिर …”

“मम्मी! ठीक है तुमने सपने देखे थे। पर जो हुआ उसको हम बदल तो नहीं सकते न? जो हो रहा है होने दो। तुम चिंता क्यों करती हो?”, ऋतु ने एक बार फिर प्यार से मम्मी को गले लगा लिया।

पर उसकी मम्मी चिंता न करती तो क्या करती? आज भी संजु के नाम से ही ऋतु के चेहरे पर चमक आ जाती है। क्या ऋतु संजु के बिना ज़िंदगी बना सकती है? ऋतु ने कभी अपनी मम्मी से संजु के बारे में अपने दिल की बात कही तो नहीं थी पर उसकी मम्मी से ये बात छिपी भी नहीं हुई थी। ऋतु तो अब भी संजु को दिल से चाहती थी। पर क्या संजु भी ऐसा ही सोचता था? दोनों इतने अच्छे दोस्त थे तो इस बात का जवाब आखिर ऋतु के पास क्यों न था?

कुछ देर अपनी मम्मी से बात करने के बाद ऋतु अपने कमरे में आ गई। उसकी मम्मी की बातों ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था। आज तो संजु का फोन भी नहीं आया था। मन में चल रही बातों की वजह से शायद उसने अपनी पर्सनल डायरी निकाली जिससे वो अपने दिल की बातें किया करती थी। कभी कभी उस डायरी से कुछ कहने के बदले ऋतु उस डायरी के पूराने पन्नों में लिखी अपनी ही बातों को पढ़ कर खुश हुआ करती थी। उस डायरी में उसकी बातों के अलावा कुछ फोटो भी उसने रखी थी। और आज अपनी डायरी के पन्ने पलटते हुए एक ऐसी ही फोटो पर उसकी नजर पड़ी।

वो फोटो ऋतु और संजु की थी – दोनों ही स्कूल की यूनिफॉर्म की सलवार कुर्ती में थी। कुछ ही दिन हुए थे तब संजु को लड़की के रूप में स्कूल में आते हुए। पर दो चोटी वाली संजु अब ऋतु के कहने पर एक चोटी बनाकर स्कूल जाने लगा था। एक दूसरे के कंधों पर हाथ डाले दोनों कितनी खुश लग रही थी। ऋतु को अच्छी तरह से याद है कि शुरुआती दिनों में कई स्टूडेंट्स संजु के बारे में कभी पीठ पीछे तो कभी सामने गलत बातें किया करते थे। संजु तो कुछ न कहता था पर ऋतु सबसे लड़ जाती थी। और इस लड़ाई में तब तो अखिल भी शामिल हो गया था। बेचारा अखिल, उसे तो संजु से प्यार हो गया था। संजु के इस नए रूप की बात ही कुछ ऐसी थी। लंबी खूबसूरत लड़की जिसकी मुस्कान और चेहरे पर की लाज उसे बहुत आकर्षक बनाती थी। संजु का फिगर भी तो आकर्षक था। क्लास की कुछ लड़कियां तो संजु की खूबसूरती से जलने भी लगी थी। उन्हे लगता था कि कल तक जो लड़का था आज लड़की बनकर इतनी सुंदर कैसे लग सकता है। और संजु की हाइट के सामने तो सब छोटी ही थी। लेकिन फिर भी संजु की सादगी और पढ़ाई में लगन की वजह से क्लास की अधिकांश लड़कियां संजु की सहेली बन चुकी थी।

ऐसे ही एक लड़की थी कृति जो ऋतु और संजु के पीछे वाली बेंच में ही बैठा करती थी। उसे संजु के ऐम्बिशन और इंजीनियर बनने की आकांक्षा से काफी प्रेरणा मिलती थी। यूं तो वो अकसर संजु से पढ़ाई के बारे में ही पूछा करती थी लेकिन किसी टीनएजर लड़की की तरह उसे लड़कों के बारे में बात करना भी अच्छा लगता था। एक दिन लंच के समय ऋतु, संजु और कृति साथ में टिफ़िन खा रही थी तभी कृति ने संजु से पूछ लिया था, “यार संजु, तू इतनी लंबी है, सुंदर है और ऊपर से इतनी होशियार भी है। तुझे तो तेरी पसंद का कोई भी लड़का मिल जाएगा। तुझे कोई पसंद है क्या?”

कृति के उस सवाल से ऋतु ठिठक पड़ी थी। संजु इतने कम समय में जितनी आसानी से लड़कियों के हाव-भाव में ढल चुका था कि उसे डर लगने लगा था – संजु को खोने का। ऋतु के चेहरे पर जैसे एक उदासी छा गई थी जिसे संजु ने देख लिया था। संजु ने भी कृति का हाथ पकड़ा और जैसे ऋतु को सताने के लिए कहा, “कृति, मैं तुझे एक सीक्रिट बताती हूँ। पहले ये बता तू मानती है न कि लड़कियां लड़कों से ज्यादा अच्छी होती है?”

“ये भी कोई सवाल है? हाँ, लड़कियां लड़कों से १०० गुना अच्छी होती है।”, कृति ने झट से कहा था।

“तो फिर जैसा तू कह रही है, यदि मैं इतनी अच्छी और अट्रैक्टिव हूँ तो फिर कोई लड़का क्यों? मैं तो अपनी पसंद की लड़की को ही चाहूँगी न!”, संजु ने कहा और हँसने लगा। बेचारी कृति संजु के जवाब से जैसे शॉक में चली गई थी। पर ऋतु के चेहरे पर खुशी का भाव था।

संजु स्कूल में जो भी था वो सब ऋतु के सहारे की वजह से ही तो था। ऋतु ने ही तो उसे सीखाया था कि किस तरह बैठना है, चलना है, बातें करनी है, हँसना है, सब कुछ। और संजु ने भी इतनी अच्छी तरह से सब सीख लिया था कि स्कूल के दिनों में दोनों बिल्कुल पक्की सहेलियों की तरह लगती थी। एक दूसरे के साथ बैठना, बातें करना, कभी चोटी सँवारने में मदद करना – सब में एक दूसरे का साथ देते थे दोनों। उस मासूम ऋतु को एक ओर तो ऐसा करके खुशी भी मिलती थी कि वो अपने संजु के लिए इतना कुछ कर पाती थी, लेकिन फिर वही ऋतु जब अपने घर आती और अपनी डायरी से बातें करती तो उससे कभी संजु के साथ के खुशियों भरे पलों के बारे में बताती तो कभी अपने उस डर के बारे में कहती जो उसके मन में था – संजु को हमेशा हमेशा के लिए खो देने का।

फिर भी जब दिल पुरानी यादों में खोता है तो उसे अच्छी मीठी यादें ही याद आती है। और इसलिए तो उस पुरानी फोटो को देखकर ऋतु के चेहरे पर खुशी छा गई थी। उस फोटो को देखकर ऋतु को याद आया कि इस फोटो के लिए ऋतु ने खूब जिद कर संजु को लिप्स्टिक लगाई थी। और संजु था कि मना कर रहा था पर आखिर में ऋतु ने अपनी जिद मनवा ही ली थी। उन दिनों में ऋतु के लिए संजु को पूरी तरह से समझना थोड़ा मुश्किल होता था। एक ओर तो संजु जैसे लड़की के रूप में ढलने को तैयार था पर वहीं वो कई बार बहुत सी बातों के लिए मना भी करता था। जैसे वो ये लड़की का रूप सिर्फ एक बाहरी आडंबर के लिए धर रहा था ताकि वो इस समाज में जी सके और अंदर से शायद वो लड़का ही था। पर वहीं दूसरी ओर साड़ी का नाम सुनते ही उसका चेहरा चमक उठता था – न जाने कितनी ही बार ऋतु संजु से मिलने उसके घर जाती थी तो वो संजु को साड़ी पहने हुए पाती। ऋतु उसे चिढ़ाती भी थी पर साड़ी पहनकर संजु बिल्कुल ऐसे सजता जैसे कोई लड़की सजती हो और फिर खुश भी कितना होता था।

संजु के बारे में सोचते सोचते अब तो ऋतु के दिल में संजु से बात करने की तीव्र इच्छा जाग गई थी। ऋतु ने झट से अपने कपड़े बदले और नाइटी पहनकर आराम से बिस्तर पर आकर बैठ गई। दिन भर काम करने के बाद संजु से वो निश्चिंत होकर बात करना चाहती थी।

संजु को फोन लगाते ही जब घंटी बजने लगी तो ऋतु की दिल की धड़कने तेज हो गई। हमेशा ऐसा ही होता था। संजु की आवाज सुनने को वो इतनी उतावली जो रहती थी। और फिर संजु भी उसे अपने नए जीवन के एडवेंचर के बारे में बताया करता था। संजु अपने जीवन में सफलता की नीत नई सीढ़ियाँ जो चढ़ रहा था – इसलिए उसकी बातें सुनकर ऋतु बहुत खुश होती थी और उसे गर्व भी होता था।

“ऋतु!!”, कुछ देर बाद फोन के दूसरे छोर से आवाज आई। संजु की आवाज सुनते ही ऋतु के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान छा गई। और उसके शरीर में एक उतावलापन दिखने लगा जो किसी प्रेमिका के तन में दिखता है। अपनी सॉफ्ट सी नाइटी में अपने घुटनों को मोड़कर अपने सीने के करीब लाती हुई ऋतु ने मुसकुराते हुए कहा, “संजु!”

“कैसी है तू? तेरा month end वाले बैंक के काम में बिज़ी होगी न तू?”

“हूँ तो सही। पर तुझसे बात किये बगैर मुझे चैन मिलता है क्या? कहाँ है तू अभी? तेरे पीछे बड़ा शोर सुनाई पड़ रहा है।”

“यार बस फ्राइडे नाइट है तो इस विक्की ने जिद की तो दोस्तों के साथ यहाँ क्लब आई हूँ। डांस और ड्रिंक्स का प्लान है!”, संजु ने कहा।

“वाह संजु। डांस क्लब! कौनसी ड्रेस पहनी है आज?”, ऋतु ने कौतूहल से पूछा।

“ऋतु … सेक्सी मिनी ड्रेस ही पहनी हूँ! और क्लीवेज भी है! हा हा …”, संजु ने कहा।

“यार .. तेरी किस्मत अच्छी है। यहाँ हमें देख लो – गले तक ढँकी हुई कुर्ती पहनती हूँ मैं। और इस समय नाइटी पहनकर सोने वाली हूँ और तुम वहाँ ऐश कर रही हो!”, ऋतु ने थोड़ा शिकायती लहजे और थोड़ी मस्ती में कहा।

“यार ऋतु कैसी बातें कर रही है तू। तू है ही इतनी सुंदर कि तू कुछ भी पहने सुंदर ही लगती है। तुझे ऐसी ड्रेसेस की जरूरत नहीं है। पर मैं प्रामिस करती हूँ कि जब तू यहाँ आएगी न तब मैं तुझे साथ लेकर क्लब आऊँगी। और तुझे भी मिनी ड्रेस पहनाऊँगी!”, संजु ने कहा।

“अब मक्खन मत लगा संजु। और अपनी फोटो भेजना।”, ऋतु बोली।

“हाँ। अभी भेजती हूँ। सुन मैं तुझसे बाद में बात करती हूँ। ये विक्की न मेरे पीछे पड़ गया है। और यहाँ शोर भी बहुत है।”, संजु ने कहा और फोन काट दिया।

कुछ देर बाद ऋतु के फोन पर एक फोटो आई जिसमे संजु थी और उसके बगल में विक्की। इस विक्की का नाम ऋतु काफी समय से सुन रही थी। संजु कुछ लड़कियों के नाम भी लिया करता था और शायद इस फोटो में वो सभी भी थी लेकिन जिस तरह से विक्की इस फोटो में संजु की ओर देख रहा था, वो देखकर ऋतु को अच्छा न लगा। कहीं संजु और विक्की? ऋतु के दिल में ये सवाल उठा तो उसकी आँख में एक आँसू बह चला और फिर कमरे में लाइट बंदकर एक तकिये को पकड़कर ऋतु रोते हुए सोने की कोशिश करने लगी।

आजकल संजु से बात करना ऋतु के लिए आसान नहीं होता था। संजु कभी काम की बातें करता तो कभी आज ही की तरह किसी सेक्सी ड्रेस की बात करता। ऋतु कौतूहलवश संजु की ड्रेस के बारे में पूछती भी थी पर फिर बाद में उसके मन में कहीं न कहीं एक दर्द भी उठता था। शायद संजु पूरी तरह से अब लड़की बन चुका था और न जाने किस दिन संजु ये बात ऋतु से कह देगा कि अब संजु को एक बॉयफ्रेंड मिल गया है।

पर उस सुबकती हुई ऋतु को पता न था कि उससे कहीं दूर पर संजु अपने फोन को पकड़े इंतज़ार कर रहा था कि शायद ऋतु कुछ कहेगी। जब १० मिनट हो गए इंतज़ार करते तो उसका चेहरा उदास हो गया। विक्की ने आकर संजु से कुछ कहना चाहा तो संजु उस पर गुस्से से बरस पड़ी, “मैंने कहा था न कि मुझे नहीं आना है डांस करने। तेरी नताशा के चक्कर में अब मुझे यहाँ रुकना पड़ेगा। और ये भी पता नहीं कि वो नताशा आती भी है या नहीं।”

विक्की समझ नहीं पाया था कि संजु क्यों इतनी नाराज हो रही है। सोसाइटी में मिक्स होने के चक्कर में संजु यहाँ क्लब के अनुरूप कपड़े पहनकर आई थी। उसे विक्की से प्रॉब्लम नहीं थी। प्रॉब्लम थी उसके साथ आई ऑफिस की लड़कियों से – अब वो उसे साथ में डांस फ्लोर पर डांस करने ले जाएगी और फिर हमेशा की तरह कुछ अनजान लड़के उनके साथ डांस करने आएंगे। और उन्ही में से एक लड़का संजु को पकड़ उसके साथ डांस करेगा और दूसरे लड़के उसकी ऑफिस वाली सहेलियों के साथ। उस भीड़ भरे डांस फ्लोर पर लड़के मौका देख कहीं भी हाथ लगा लेते है। न जाने संजु की ऑफिस की सहेलियों को ये सब करके क्यों अच्छा लगता था पर संजु को? इससे अच्छा तो विक्की ही साथ में डांस कर लेता तो शायद संजु को खुद से घृणा न हो रही होती।


आज से एक दिन पहले

संजु ऑफिस से घर आ चुकी थी। २ साल की नौकरी में ही संजु ने अपनी एक पहचान बना ली थी इसलिए उसकी सैलरी भी अच्छी थी। इसलिए एक छोटा सा ही सही पर एक अच्छे से फ्लैट में संजु रहती थी। आज तो ऑफिस के प्रोग्राम में उसे अवॉर्ड मिलने वाला था इसलिए उसे तैयार होना था। इस अवसर पर उसे साड़ी पहननी थी। अब बड़े शहर में रहने के बाद, संजु सीख चुकी थी कि एक लड़की को अपने रूप को निखारना कितना जरूरी होता है तभी तो उसे तैयार होने के लिए इतने समय की जरूरत थी। संजु ने साड़ी कौनसी पहननी है ये तो पहले ही फाइनल कर चुकी थी पर उस साड़ी के साथ मैच करने के लिए सैंडल, ईरिंग, चूड़ियाँ कौनसी होगी, बिंदी कौनसी होगी, जूलरी कौनसी पहनेगी, ये सब तय करने के लिए समय चाहिए था।

ड्रेस उतारते ही संजु ने पहले तो पेटीकोट पहना। संजु के कूल्हे अब बढ़कर बिल्कुल लड़कियों की तरह हो चुके थे। शरीर से संजु उन किस्मत वाली लड़कियों में थी जिसके स्तन भी बड़े और आकर्षक थे। अपनी ब्लैक ब्रा को उतारकर संजु ने एक न्यूड कलर की ब्रा पहनी। संजु के निप्पल भी अब बड़े और गहरे रंग के सुंदर हो गए थे। अब ब्रा पहनना संजु के लिए सामान्य बात थी। लेकिन इस नवयौवना की ललक कभी कभी उसकी रातों का चैन भी छीन लेती थी यह सोचकर कि क्या कभी उसके स्तनों में वो उस आनंद को अनुभव कर सकेगी जो एक लड़की प्रेमिका बनकर करती है। अपने तन से परिचित होने के बाद भी संजु अब तक कुछ अनजान थी – उसे समझ न आता थी कि उसे क्या चाहिए खुद से।

कम से कम यह सब विचार इस समय तो उसके मन में न थे। उसे तो जल्दी से तैयार होना था। पेटीकोट और ब्रा पहनी हुई संजु जल्दी जल्दी अपने मेकअप का सामान एक जगह सजाकर फिर अपने ज्वेलरी देखने लगी कि आज अपनी साड़ी से मैच करने के लिए वो क्या क्या पहनेगी। उसकी नजर कुछ ढूंढते हुए उन ईरिंग पर गई जिन्हे उसे ऋतु ने दिया था। ऋतु को सोचकर ही उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। और फिर एक कुशल लड़की की तरह संजु अपना मेकअप करने लगी। पहले फाउंडेशन, फिर कंसिलर, ब्लश, काजल, आई मेकअप, लिप्स्टिक और न जाने क्या क्या। फिर हाथों और पैरों की उंगलियों पर लाल रंग की नेल पोलिश। अपने बिस्तर पर पेटीकोट और ब्रा पहनी हुई संजु नेल पोलिश लगाती हुई किसी खूबसूरत परी की भांति मालूम पड़ रही थी। मेकअप से इतनी निखर भी गई थी वो।

जब मेकअप पूरा हो गया तो संजु ने अपनी सुनहरी नेट की साड़ी से मैच करती हुई एक जोड़ी सुनहरी चप्पल निकाली। इस चप्पल में थोड़ी सी हील थी जो साड़ी के अनुरूप थी। एक लड़की के रूप में जीने के लिए कितना कुछ सीख गई थी संजु। चप्पल पहनकर संजु ने एक स्लीवलेस ब्लॉउज पहनी और फिर अपनी खूबसूरत साड़ी को खोलकर निहारने लगी। आज भी साड़ी की दीवानी थी वो। यूं तो वो झटपट साड़ी पहन सकती थी पर आज तो एक खास अवसर था तभी तो उसने बिल्कुल मॉडर्न तरीके से पतली बराबर प्लीट बनाकर अपने कंधे पर ऐसे पिन की कि उसके ब्लॉउज़ का एक हिस्सा खुला दिखे। ऋतु साड़ी पहनने के इस स्टाइल को लेकर बहुत हँसती भी थी और संजु को छेड़ती भी थी कि बड़े शहर की लड़कियों को अपना एक बूब दिखाना पड़ता है। एक बार फिर ऋतु के बारे में सोचकर संजु मुस्कुरा दी। साड़ी में उसके ब्लॉउज़ के खुले हिस्से में एम्ब्रॉइडरी बहुत सुंदर लग रही थी।

संजु ने एक बार अपनी नाभि के पास अपनी साड़ी को उठाकर देखा और फिर उसे कुछ इस तरह से अरेंज किया कि उस साड़ी की पारदर्शिता के पीछे उसकी नाभि छुपी भी हो और दिखे भी। लड़कियों वाली सारी बातें सिख चुकी थी ये संजु। संजु के शरीर के उस एक्स्ट्रा X क्रोमज़ोम ने इतना खूबसूरत रूप लिया था कि कोई सोच ही न सकता था कि ये संजु लड़के के रूप में जन्मी थी। संजु की कोमल कमर बेहद नाजुक प्रतीत होती थी और बेहद आकर्षक। अपने कान में ऋतु की दी हुई ईरिंग को पहनकर संजु आईने में खुद को देख अपने रूप पर बहुत खुश हुई।

और लगभग तैयार हो जाने के बाद, संजु ने वही किया जो वो रोज घर से निकालने के पहले करती है। अपनी कमर के पास से साड़ी को हटाकर अपनी नाजुक उंगलियों के साथ अपनी हथेली से उसने कमर में बंधी प्लीट के पीछे हाथ डालकर उसने अपनी पेन्टी में कुछ व्यवस्थित किया जो उसके अंदर के Y क्रोमज़ोम की आखिरी निशानी थी।

एक बार फिर संजु ने अपनी लिप्स्टिक और ब्लश को टच अप किया और अपनी छोटी सी चेन वाली गोल्डन पर्स में चाबी, पैसे, क्रेडिट कार्ड और कुछ मेकअप की चीजें रखी। उसने अब अपनी हेयर स्टाइल करने के लिए बालों को कंघी से सुलझाया और फिर एक बहुत मॉडर्न स्टाइलिश सा जुड़ा बनाया। यूं तो उसे खुले बालों का बड़ा शौक था पर आज वो एक अलग लुक चाहती थी। संजु सचमुच बहुत खूबसूरत लग रही थी। वो अब बस अपनी फोटो खींचकर ऋतु को भेजना ही चाहती थी कि तभी विक्की का फोन आ गया।

“हाँ हाँ आ रही हूँ। तू बस २ मिनट रुक तो सही। तुझे वेट नहीं कराऊँगी।”, संजु ने कहा और झटपट निकालने की तैयारी करने लगी। पर्स में सारा सामान समेटकर, घर को लॉक कर, ये खूबसूरत राजकुमारी फ्लैट से सीढ़ियों से होते हुए नीचे जाने लगी। धीरे धीरे अपने नाजुक कदमों को एक एक कर रखते हुए अपनी उंगलियों के बीच साड़ी उठाकर नीचे एक एक सीढ़ी को सावधानी से देखते हुए उतरने में उसे कुछ समय तो लगना ही था।

saree crossdresserबिल्डिंग से नीचे उतरते ही जैसे ही संजु बाहर निकली, वहाँ से थोड़ी दूर खड़ी कार ने हॉर्न बजाकर उसे इशारा किया। वो विक्की था। हमेशा की ही तरह वो जल्दी कर रहा था। पर इतनी खूबसूरत राजकुमारी ऐसे कैसे भाग पड़ती? वो तो धीमी धीमी नजाकत वाली चाल के साथ अपनी नेट की साड़ी को बड़े ही प्यार से संभालते हुए आ रही थी। उसे सचमुच अपनी साड़ी से बहुत प्यार था।

“ओहो यार तू ट्राफिक में फँसाएगी। १० मिनट से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ।”, विक्की ने संजु के कार में बैठते ही कहा।

संजु ने पहले तो बैठकर अपने घुटनों पर साड़ी सँवारी और फिर अपने पल्लू को कार के अंदर करते हुए दरवाजा बंद करते हुए बोली, “तेरे चक्कर में अब तक नेकलेस भी नहीं पहनी हूँ। दौड़ी दौड़ी आई हूँ। अब चल।”

पर इतनी खूबसूरत राजकुमारी को देख कोई यूं ही तुरंत ऐसे कैसे चल देता। संजु से लड़ना तो विक्की का बहाना रहता था अपने दिल की बात छिपाने का। जब संजु एक सुंदर सा हार अपने गले में पहन रही थी तो विक्की उसे एक टक निहारता रहा। खुद की ओर ऐसे देखते देख संजु ने उससे पूछा, “ऐसे क्या देख रहा है?” दोनों ही थोड़े लड़ाकू किस्म के दोस्त थे।

“बस तुझे ही देख रहा हूँ यार। पहली बार तुझे साड़ी पहने देखा है। बिल्कुल राजकुमारी लग रही है।”, विक्की ने कहा। उसके कहने के तरीके में तारीफ भी थी पर एक लहजा ऐसा भी था जो उसे अपने दिल की बात कहने से रोक रहा था।

संजु उसकी ओर देखकर मुस्कुराई। “जानती हूँ। मैं साड़ी में बहुत खूबसूरत लगती हूँ।”

“हम्म अपने मुंह मियां मिट्ठू। कभी दूसरों को भी अपनी तारीफ करने का मौका दिया कर।”, विक्की ने कहा और कार चलाने लगा।

संजु बस मुस्कुराकर रह गई। थोड़ी देर बाद वो विक्की की ओर पलट कर बोली, “विक्की .. एक सवाल पूँछू? सही जवाब देगा?”

“पूछ”

“तूने कभी साड़ी पहना है?”

“ये कैसा सवाल है संजु? तू मज़ाक कर रही है न?”, विक्की बोला।

“नहीं, मज़ाक नहीं कर रही। कभी पहनकर देखना। अच्छा लगेगा।”, संजु बोली।

“तू पागल है।”, विक्की ने कहा।

संजु बस मुस्कुराकर रह गई। “पागल ही सही पर अच्छा तो लगता है।”, वो मन ही मन सोचने लगी। आज भी उसके अंदर वो संजु जीवित है जिसने पहली बार छत पर साड़ी पहनकर जाकर आजादी महसूस की थी। आज उस दिन से कितने आगे बढ़ चुका था वो संजु।

“तुझे अपना वादा याद है न? तू साथ में नताशा को बुलाएगी और मेरा उससे इन्ट्रोडक्शन कराएगी।”, विक्की ने बात बदलने की कोशिश किया।

“विक्की तू जानता है न कि नताशा मेरे साथ नहीं आती है। तू जानता नहीं क्या कि तेरी नताशा मुझसे जलती है! और फिर वो तुझे जानती तक नहीं है तो तू उसके पीछे क्यों पड़ा है?”, संजु बोली।

“उसके नहीं तो क्या तेरे पीछे पड़ूँ?”

“रहने दे तू। मेरे सामने तो कितनी बार तेरे बेसिर पैर के मज़ाक में मुझे प्रपोज करता रहता है। उसके सामने तो तेरा मुंह बंद रहता है। उसके सामने कभी एक शब्द तक नहीं बोला। तुझसे तो उससे हाय तक नहीं कहा गया कभी। और मुझे तो हफ्ते में एक बार प्रपोज कर ही देता है कभी डिनर कभी कॉफी के लिए। स्टूपिड है तू। अब से मेरे साथ ऐसे मज़ाक मत किया कर।”, संजु बोली।

फिर न जाने क्यों एक चुप्पी छा गई। शाम हो चली थी और बाहर सड़क पर धीरे धीरे लाइट चालू होने लगी थी। उस लाइट के साथ संजु की साड़ी और गहने भी चममचमाने लगे थे। विक्की ने एक बार उस दमकती हुई राजकुमारी की ओर देखा और फिर बाहर सड़क की ओर देखते हुए कहा, “यार मैं तो तेरे साथ प्रैक्टिस करता हूँ। तू बिंदास लड़की है। तुझे कुछ कह भी दूँ तो तू बुरा नहीं मानती है। थोड़ा डांट देगी और बात खतम। ऐसे नताशा के साथ नहीं कर सकता न। नॉर्मल लड़कियां बुरा मान जाती है। थोड़े नखरे करती है … उनके साथ थोड़ा संभलकर आगे बढ़ना पड़ता है।”

शायद ये पहली बार था जब विक्की की कोई बात संजु को इस तरह चुभी थी। “नॉर्मल लड़कियां” … जैसे ये शब्द सुनकर किसी ने उसके जख्मों को कुरेद दिया था। फिर भी खुद को किसी तरह संभालते हुए उसने कहा, “यदि तू मेरे साथ प्रैक्टिस करता है तो कम से कम थोड़ी शालीनता के साथ कर लिया कर। लड़की नॉर्मल हो या बिंदास … उसे स्पेशल ट्रीट्मन्ट चाहिए होता है।”

विक्की ने शायद भांप लिया था कि उसकी बात संजु को खटक रही थी इसलिए उसने तुरंत कहा, “और मैं तुझे स्पेशल ट्रीट्मन्ट नहीं देता हूँ? दिन रात तेरे आगे पीछे तेरी सेवा करने को तैयार रहता हूँ। इतना तो मैंने अपनी गर्लफ्रेंड के लिए नहीं किया।”

“गर्लफ्रेंड बन तो जाने दे तेरी कभी।”, संजु कहकर हँसने लगी।

संजु की मनोदशा आज इस बात से कुछ विचित्र हो चली थी। “स्पेशल ट्रीट्मन्ट” जहां लड़की को कुछ खास महसूस कराया जाता है, न जाने क्यों संजु के अंदर भी ऐसी इच्छा जागने लगी थी। क्या संजु अब लड़की होने के हर सुख दुख को अनुभव करना चाहती थी?

कुछ ही देर में कुछ ऐसी ही बातें करते हुए दोनों marriot hotel पहुँच गए। वहाँ वेन्यू पर पहुंचते ही ऑफिस की कई लड़कियां और सीनियर महिला संजु की साड़ी की तारीफ करते हुए उसे घेरने लगी। कुछ उसे अवॉर्ड के लिए पहले से बधाई देने लगी। इस पूरे समय में विक्की संजु के आस पास ही था। उसे पता था कि संजु जल्दी ही उस भीड़ से निकलकर बाहर आएगी।

और वैसा ही हुआ। “उफ्फ़ यार … ये सब कितना बातें और गॉसिप करती है।”, संजु ने विक्की के पास आते ही कहा।

“तू भी न कमाल की लड़की है।”, विक्की हँस दिया।

“ज्यादा हँस मत। ये ले मेरा पर्स पकड़ मैं बाथरूम से होकर आती हूँ।”, संजु ने विक्की को अपनी छोटी सी पर्स पकड़ाने की कोशिश की।

“मैं नहीं पकड़ रहा तेरा पर्स।”

“क्यों?”, संजु ने गुस्से से उसकी ओर देखा।

“तुझे पता नहीं है क्या कि किसी लड़की का पर्स पकड़ने का क्या मतलब है? मैं यदि किसी लड़की का पर्स पकड़ूँगा तो नताशा का।”, विक्की बोला।

saree crossdresser“बेटा विक्की। नताशा से पहले हैलो तो बोल लेना तू पर्स बाद में देखना उसका। अब नखरे मत कर .. २ मिनट की तो बात है।”, संजु ने उसके गाल में थपथापी देते हुए बोली। कभी कभी संजु विक्की के ऐसे मज़ाक से थोड़ा परेशान हो जाती थी, पर लड़का अच्छा था इसलिए उसे ज्यादा कुछ कहती भी न थी।

वो शाम अच्छी तो थी। संजु के लिए बड़ा दिन भी था। एक तो उसे अवॉर्ड भी मिला, बड़े मैनेजर और डायरेक्टर से उसकी मुलाकात भी हुई और ये भी कन्फर्म हो गया था कि संजु का कंपनी में प्रमोशन हो रहा था। अपनी कंपनी की हिस्ट्री में इतनी कम उम्र में वो पोज़िशन पाने वाली पहली एम्प्लोयी बनने वाली थी वो। हर तरफ से बधाई का तांता भी लग गया था।

इस खुशी के बीच संजु ने आखिर विक्की के लिए नताशा को अपने साथ अपने ग्रुप में बैठने के लिए बुला लिया। आज संजु ने कुछ ऐसा किया कि नताशा वहाँ डिनर टेबल से जा न सकी और फिर संजु ने नताशा का विक्की से इन्ट्रोडक्शन भी कराया। बेचारा विक्की तो पसीना पसीना हो रहा था।

कुछ देर के बाद जब प्रोग्राम और डिनर खत्म होने को आया तब वहाँ सभी के लिए डांस फ्लोर खोल दिया गया। किसी नाइट क्लब के मुकाबले ये डांस फ्लोर बहुत शालीन था। म्यूजिक भी रोमांटिक था और कंपनी में काम करने वाले शादीशुदा लोगों के लिए अपने जीवनसाथी के साथ धीमे धीमे डांस करने का मौका भी था। जो सिंगल थे वो अपने ग्रुप में या फिर किसी एक के साथ पार्टनर बनाकर डांस कर रहे थे। संजु ने विक्की की ओर इशारा किया तो उसने हिम्मत कर नताशा से डांस के लिए पूछ लिया। नताशा तो जैसे बस वहाँ से उठकर जाना ही चाहती थी इसलिए उसने भी हाँ कह दी।

यूं तो संजु इतनी आकर्षक युवती थी फिर भी उससे डांस करने के लिए कोई सिंगल लड़का हिम्मत नहीं कर पाता क्योंकि उसकी उम्र के लड़कों से वो उस कंपनी में काफी आगे निकल चुकी थी। बस एक विक्की ही था जो उससे शरमाता नहीं था। संजु उस समय विक्की और नताशा को कमर में हाथ डाले एक दूसरे की नज़रों में देखते हुए डांस करते देख रही थी। न जाने क्यों संजु को भी कुछ कमी महसूस हो रही थी।

“मेरे मम्मी पापा मेरे लिए लड़का ढूंढ रहे है!”, ये शब्द न जाने कहाँ से संजु के दिमाग में आ गए। शायद ३ महीने पहले ऋतु ने संजु से फोन पर ये कहे थे और वो जोर जोर से हँस रही थी जैसे कि उसे फर्क नहीं पड़ता। शायद इसलिए संजु भी खूब जोर जोर से हंसा था। पर फिर न संजु ने और न ही ऋतु ने इस विषय पर आगे बात की। उस बारे में संजु ने फिर ज्यादा सोचा भी नहीं था पर आज नताशा और विक्की को साथ देखकर उसके मन में वो बात कैसे आ गई वो समझ न सकी। अचानक से दिल में जैसे एक बेचैनी ने घर कर लिया था। दिल किया कि तुरंत वहाँ से उठकर घर चली जाए और ऋतु से बात करे पर तभी कंपनी की एक सीनियर महिला आकर उससे बात करने लगी। १०-१५ मिनट के जब वो वहाँ से गई तो तब तक विक्की टेबल पर वापस आ चुका था।

“क्या हुआ? नताशा कहाँ गई?”, संजु ने विक्की की ओर देखकर उत्साह से पूछा।

“चली गई वो। मेरे टाइप की लड़की नहीं है वो।”, विक्की ने कहा।

संजु मुस्कुरा दी और टेबल के नीचे से विक्की के हाथ पकड़ कर सहलाकर बोली, “होता है। तेरे टाइप की भी मिल जाएगी एक दिन।”

और फिर वो खुद डांस फ्लोर पर डांस करते हुए कपल को रोमांटिक होते हुए देखती रही जैसे मन में खुद वहाँ होने की एक आस हो। एक टक बिना पलके झपकाए .. जैसे वो वहाँ खो गई थी। इतनी भीड़ में भी वो जैसे अकेली थी। और उसके चेहरे की धीमी धीमी मुस्कान जैसे उस अकेलेपन को छिपाने की कोशिश कर रही थी।

अपनी ही दुनिया में बेखबर संजु का हाथ कब विक्की ने थाम लिया था उसे पता भी न चला और विक्की ने उसके सामने आकर कहा, “संजु, मेरे साथ डांस करोगी?”

संजु को लगा जैसे नताशा के जाने से दुखी विक्की के साथ डांस करके उसका मन भी लग जाएगा।

“तू किस्मत वाला है विक्की। यहाँ की सबसे हॉट लड़की के साथ तू डांस करने वाला है।”, वो हँस दी।

“फिर वही बात संजु। कभी तेरी तारीफ मुझे भी करने दिया कर।”, विक्की बोला। और बिल्कुल एक जेन्टलमैन की तरह संजु का हाथ थाम उसे डांस फ्लोर पर ले गया।

संजु ने अपने हाथ विक्की के कंधों पर रख दिए। उसकी सुनहरी दमकती दो चूड़ियाँ और उससे भी ज्यादा दमकती मुस्कान भरी संजु के चेहरे को सामने देखकर विक्की ने धीरे से हिम्मत कर संजु की कमर पर हाथ रखा और दोनों डांस करने लगे। ये दोनों काफी अच्छे दोस्त थे तभी तो एक दूसरे की आँखों में देखते हुए धीमे धीमे उस रोमांटिक म्यूजिक पर डांस करते रहे।

“तू सच में सबसे ज्यादा खूबसूरत राजकुमारी है संजु।”, विक्की ने संजु की आँखों में देखते हुए कहा।

“जानती हूँ।”, संजु भी मुस्कुराकर बोली। संजु की मुस्कान, खूबसूरत हेयर स्टाइल और साड़ी उसे इतनी आकर्षक बना रही थी।

“संजु, तुझसे एक बात पूँछु? तू बस बुरा मत मानना क्योंकि तुझे पता है न कि मैं तेरा दोस्त हूँ।”

“ठीक है। पूछ ले।”

“क्या तू कभी अपना सच मुझे बताने वाली थी?”, विक्की ने पूछा।

“कैसा सच विक्की? क्या नहीं पता है तुझे मेरे बारे में? तू तो मेरी ब्रा का साइज़ तक पूछ चुका है। अब और क्या बचा है बताने को?”, संजु हँस दी।

“मज़ाक मत कर यार।”, विक्की ने कहा।

“चल आज तू नताशा की वजह से सीरीअस लग रहा है। ठीक है दुखी आशिक साहब, पूछ ले जो तुझे पूछना है।”, संजु अपने अंदाज में बोली।

“तू क्या कभी मुझे बताने वाली थी कि तू एक स्पेशल लड़की है?”

“स्पेशल तो मैं हूँ ही। इसमे बताना क्या है?”, संजु फिर मुस्कुरा दी।

“रहने दे। तू सीरीअस नहीं लग रही है। तुझे नहीं बताना तो न सही।”, विक्की शायद इन दो सालों में पहली बार इतना सीरीअस हुआ था संजु के साथ।

कुछ देर संजु चुप रही जैसे वो विक्की की आँखों में देखकर कुछ समझना चाह रही हो।

“विक्की, तुझे कैसे पता चला? और कब?”

“लगभाग १ महीने पहले …”

बिना कुछ कहे ही संजु के इतने बड़े सच के बारे में वो दोनों बात कर रहे थे। फिर भी संजु को कोई घबराहट नहीं हुई क्योंकि उसे विक्की पर भरोसा था।

“… पर कैसे?”, संजु ने फिर पूछा।

“तू हमेशा अपनी गर्दन तक मेकअप करती है। और अपने ‘Adam’s apple’ को किसी तरह छिपाती है। बस एक दिन मैंने उसे नोटिस कर लिया था।”, विक्की ने कहा।

“और उसके बाद क्या हुआ?”, संजु ने किसी तरह विक्की से पूछा।

“कुछ नहीं। आखिर तू है तो वही संजु जिसको २ साल से जानता हूँ। क्या तुझे कभी ऐसा लगा कि कुछ बदल गया है हमारी दोस्त में पीछले महीने में?”, विक्की ने पूछा।

“नहीं। कुछ नहीं बदला।”, संजु की आवाज थोड़ी भावुक हो गई थी। इसलिए नहीं कि उसका सच किसी को पता चल गया था बल्कि इसलिए कि विक्की उसका इतना सच्चा दोस्त था उसे पता भी नहीं था।

“ईमोशनल?”, विक्की ने पूछा।

तो संजु ने हामी में धीरे से सर हिलाया।

विक्की ने भावुक संजु की पीठ पर हाथ रखा तो संजु उसके करीब आकर सीने से लग गई जैसे वो एक भरोसेमंद सहारा चाहती हो। विक्की ने उसकी पीठ पर हाथ फेरकर कहा, “संजु लोग देखेंगे तो बातें बनाएंगे। चल एक डांस करते है फिर घर चलते है।”

संजु के जीवन में इस शाम को बहुत कुछ हो रहा था। एक तरफ विक्की और दूसरी तरफ, उनकी टेबल पर रखे संजु के पर्स में वो फोन जो न जाने कितनी ही देर से बज रहा था। यदि वो फोन संजु ने उस समय पिक कर लिया होता तो शायद उसे पहले ही पता चल जाता कि उसके जीवन में कितना बड़ा तूफान आ चुका था।

ऑफिस पार्टी के बाद सभी को बाय कहने के बाद विक्की और संजु चलकर पार्किंग में कार तक आए।

“अब कब तक सीरीअस रहेगी यार? इतने दिनों से यदि कुछ नहीं बदला था तो अब क्यों बदल रहा है? Why can’t you smile?”, विक्की ने संजु से कहा।

“थोड़ा समय तो दे यार। सब तेरी तरह थोड़ी होते है।”, संजु बोली।

विक्की मुस्कुरा दिया और फिर उसने संजु के हाथ से उसका पर्स पकड़ा और फिर संजु के लिए कार का दरवाजा खोल कर कहा, “मैडम, राजकुमारी संजु। आपकी सेवा में आपका दोस्त हाजिर है। आप अंदर बैठिए मैं आपकी साड़ी का पल्लू पकड़ कर आपके हाथों में दे दूंगा।”

संजु मुस्कुरा दी और कार में बैठने लगी। विक्की ने भी प्यार से संजु की साड़ी उसके हाथ में देते हुए कार का दरवाजा बंद किया।

कार चालू कर विक्की ने कोई लाउड गाना चला दिया जिसे थोड़ी देर बाद संजु ने बंद कर दिया।

संजु विक्की की ओर पलट कर देखते हुए बोली, “तूने मेरा सच तो जान लिया। अब तू अपना सच कब बताएगा?”

“मेरा कौनसा सच?”, विक्की ऐसे बोला जैसे कुछ बताने को ही न हो।

“यही कि तेरा नताशा में कभी इंटरेस्ट था ही नहीं।”

“तुझे कब पता चला?”, कुछ देर चुप रहने के बाद विक्की ने कहा।

“आज ही।”, संजु खिड़की से बाहर देखते हुए बोली।

“तुझे और नताशा को साथ डांस करते देख पहले तो थोड़ा डाउट हुआ था पर फिर जब हम दोनों डांस कर रहे थे तब यकीन हो गया।”, संजु बोली।

“पर कैसे?”

“लड़कियों के पास सिक्स्थ सेन्स होता है! जो लड़कों के पास नहीं होता।”, संजु हँस पड़ी।

उस खिलखिलाती हुई राजकुमारी को देख विक्की भी हँस दिया।

“तो आज हम दोनों को एक दूसरे का सच पता चल गया।”, विक्की बोला।

“प्यार करता है न मुझसे?”

“बहुत।”

“उस प्यार को खुद तक संभाल कर रख सकेगा?”

“आज तक तो खुद तक ही रखा है। आगे भी रखूँगा।”, विक्की ने कहा।

दोनों के बीच जैसे अब बातें करना फिर से आसान हो गया था।

फिर हमेशा की तरह लड़ते झगड़ते दोनों संजु की बिल्डिंग तक पहुँच गए। पहले संजु कार से उतरी और फिर विक्की भी उतरकर उसके पास आया।

न जाने दिल में क्या हुआ और संजु विक्की के सीने से लिपट गई।

“विक्की, मैं कभी तेरी नहीं हो सकती।”, संजु ने धीरे से कहा तो विक्की ने अपने हाथ से संजु के चेहरे को उठाते हुए कहा, “जानता हूँ।”

फिर संजु विक्की के और करीब आकर विक्की के गाल पर एक किस करते हुए उससे दूर होते हुए बोली, “ये मेरी तरफ से पहला और आखिरी किस था। याद रखना।” संजु हँसते हुए पलट कर अपनी बिल्डिंग की ओर बढ़ चली।

और विक्की अपने गालों पर हाथ फेरते हुए उस दमकती हुई राजकुमारी को जाते हुए देखता रहा।


क्रमश:

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