ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग १३: नई लड़की
संजु की कहानी अब अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ चली है। इस भाग को अंत तक अवश्य पढे क्योंकि इसके बाद इस कहानी का अंतिम भाग आएगा जिसे जोड़ने के लिए यह भाग एक कड़ी का काम करता है। इस भाग में मुझसे कोई कमी रह गई हो तो क्षमा करिएगा और अपने विचार जरूर व्यक्त करिएगा।
बेटियों में कुछ तो खास होता है जो वो सबकी चहेती होती हैं। और बचपन में तो और भी प्यारी। और जाने-अनजाने में हर बेटी अपनी माँ से बहुत कुछ सीखती भी है, और अपनी माँ की तरह ही दिखने और बनने का उसका सपना होता है। तभी तो छोटी सी उम्र से ही कभी अपनी माँ के दुपट्टे को साड़ी की तरह लपेटकर खुश होना या फिर कभी माँ से उनकी लिप्स्टिक लगाने की जिद करना, या फिर कभी माँ की तरह हाव-भाव करना या फिर कभी घर में माँ के काम में हाथ बँटाना, ऐसे अनगिनत तरीकों से एक बेटी अपनी माँ की तरह बनने की कोशिश करती है। सुधा को भाग्य ने एक बेटी होने का सुख एक बड़ी ही विचित्र सी परिस्थिति में दिया था। एक बेटी को पाना उसके लिए खुशी की बात तो थी पर यह खुशी अपने बेटे को खोकर मिली, जिसकी टीस हमेशा उसके मन मे थी। चाहे संजु कितनी ही प्यारी और खूबसूरत बेटी क्यों न बन जाए पर सुधा के भीतर एक ललक अपने बेटे को बढ़ते देखने की थी जो समय के साथ न जाने कहाँ खो गया था।
“माँ, अब तुम जाओ थोड़ा आराम कर लो। अब बर्तन मैं धो देती हूँ।”, संजु ने माँ के हाथों से बर्तन लेते हुए कहा था।
“रहने दे तू। मैं कर लूँगी।”, सुधा ने संजु की ओर देखते हुए कहा था। दुबले पतले शरीर पर चूड़ीदार सलवार कुर्ती पहना हुआ संजु अपनी लंबी चोटी के साथ एक टीन-एजर किशोरी लड़की की तरह था जिसका कद तो सुधा से अधिक लंबा हो गया था फिर भी उसमे एक कच्ची कली वाली बात थी। उसका तन अब भी एक महिला की तरह परिपक्व न हुआ था।
“ओहो माँ। तुम्हारी बेटी बड़ी हो गई है। अब घर के काम में मैं भी हाथ बँटा सकती हूँ।”, संजु ने जिद किया और अपनी चुन्नी को पीठ के पीछे बांधकर बिल्कुल एक बेटी की तरह उसने अपना काम शुरू किया।
“मैंने तुझसे कहा न कि मैं कर लूँगी। तुझे मेरी बात एक बार में समझ क्यों नहीं आती? अब चुप चाप अपने कमरे में जाओ और पढ़ाई करो। तुम्हारा काम पढ़ने लिखने का है, किचन मे काम करने का नहीं।”, सुधा गुस्से से बरस पड़ी।
संजु अपनी माँ के अचानक से बदले रूप से डर गया। और चुप-चाप अपने कमरे में चला गया। माँ उस पर इतना गुस्सा क्यों कर रही है? यह बात उसे समझ नहीं आ रही थी। वो तो बस माँ की मदद एक बेटी की तरह करना चाहता था। उसे क्या पता था उसके माँ के मन में क्या चल रहा था।
जब संजु चला गया तो सुधा किचन में अकेली रह गई। कुछ टूट सी गई थी वो। कहते है कि जब बेटी नवयुवती की उम्र की हो जाए तब माँ और बेटी को सहेलियों की तरह रहना चाहिए। और ऋतु के जाने के बाद सुधा और संजु के बीच रिश्ता कुछ ऐसा ही हो रहा था। दोनों घंटों बातें किया करते थे। संजु के पूछने पर सुधा अपने बचपन के किस्से उसे सुनाया करती थी, तो कभी अपनी मैगजीन से पढ़ी हुई रेसपी के बारे में बातें कर संजु के साथ कुछ नया बनाने की कोशिश भी करती। सुधा और संजु दोनों को ही ये पल बहुत सुहावने लग रहे थे। और किसी दिन यदि संजु ने साड़ी पहन ली तो वो खुद को अपनी माँ की तरह बड़ा समझने लगा था जैसे किशोरावस्था मे सभी को लगता है कि वो अब सब कुछ समझ सकते है इस दुनिया के बारें में। संजु के हाव भाव कई बार बड़ी उम्र की स्त्रियों की तरह होने लगे थे।
इतनी कम उम्र में संजु जिस तरह बड़ों का बर्ताव करने लगा था, और वो भी एक स्त्री के तरह, सुधा को यह एहसास सहसा ही हुआ था। संजु बेटा था उसका। उसके पास अभी भी एक उम्मीद थी कि किसी दिन वो भी एक सामान्य बेटे की तरह अपना जीवन जी सकेगा। एक ओर तो सुधा को संजु को इस तरह तैयार करना था कि यदि उसे एक स्त्री का जीवन जीना पड़े तब भी उसे कोई परेशानी का सामना न करना पड़े, पर दूसरी तरफ यह भी तो ध्यान रखना था कि संजु इतना भी न बदल जाए कि कभी एक लड़का बनकर जीने की संभावना ही न रह जाए। अंदर ही अंदर टूटती हुई सुधा को आज अपने पति के साथ की कमी बहुत खल रही थी। फिर भी रोज की तरह यह रात भी गूजरनी ही थी उस दिन के इंतज़ार में जब सूरज निकालने पर भविष्य पूरी तरह से साफ दिखने लगेगा। न जाने कितना लंबा इंतज़ार था यह। क्या संजु किसी दिन एक बार फिर एक लड़के की तरह जीवन जी सकेगा?
गर्मी के मौसम मे दोपहर की कड़ी धूप मे उस समय ऑटो के इंजन की आवाज के अलावा एक सन्नाटा सा छाया हुआ था। चूड़ीदार सलवार कमीज मे शायद धूप से बचने के लिए संजु ने अपनी चुन्नी को सर पर लपेट रखा था। चुस्त फिटिंग वाली कुर्ती मे बैठी उस लड़की की नजर बाहर सब कुछ देखते हुए भी जैसे कुछ भी न देख रही थी। गर्मी के मौसम की हवा भी उसकी एकटक देखती हुई पलको को झपकाने मे नाकाम थी। बस उसका हाथ समय समय पर सीने पर अपनी चुन्नी को संभालकर उसकी लाज की रक्षा करने की कोशिश करता। बगल में बैठी सुधा भी संजु को देखते हुए कुछ सोच रही थी पर वो भी चुप थी। मन में बातें तो बहुत थी पर कहना मुश्किल था।
घर की ओर बढ़ते हुए यूं तो संजु के दिल की धड़कने तेज होनी चाहिए थी जैसे कुछ घंटों पहले घर से निकलते समय बढ़ी थी, इस डर से कि कहीं कोई उसे पहचान न ले, पर इस समय वो डर भी उसे डरा न रहा था। वैसे भी संजु को किसी ने बहुत समय से देखा न था। और जिस संजु को लोगों ने कुछ महीने पहले देखा था वो इस दुबली पतली लड़की को जिसने चुस्त फिटिंग वाली कुर्ती पहन रखी थी से बहुत अलग दिखता था। इस लड़की को देखकर तो शायद ही कोई सोच पाता कि वो लड़की कोई और नहीं संजु है। पर इतनी गर्मी के मौसम में उनके मोहल्ले में कोई घर से बाहर निकलने वाला भी कोई नहीं था। पर फिर भी मन में डर तो रहता ही है? तो फिर संजु का डर कहाँ खो गया था? उसके चेहरे पर न कोई भाव था न कोई शिकन। वो तो बस कहीं दूर कोरी आँखों से न जाने कहाँ देख रहा था। और फिर धीरे से घर के करीब पहुंचते पहुंचते उस भाव विहीन चेहरे पर होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान के लक्षण दिखाई दिए। क्या था उसकी इस हल्की सी खुशी का कारण? और संजु घर से बाहर कहाँ गया था?
“संजु के टेस्ट रिजल्ट आ गए है।”, डॉ अलका देशपांडे ने सुधा और संजु से कहा था। सुधा और संजु डॉ अलका से ही मिलने गए थे उस दोपहर को। उस समय कुछ सहमा हुआ सा संजु अपने कंधों पर फिसलती हुई चुन्नी संभालते हुए अपने भविष्य को जानने को लेकर आतुर भी था और डरा हुआ भी। सच कहा जाए तो वो एक घबराई हुई लड़की थी जिसकी इस गर्मी के मौसम मे इस डॉक्टर के पास दूसरी विज़िट थी।
सुधा और संजु दोनों के चेहरे पर चिंता देख डॉ अलका ने एक मुस्कान बिखेरी और कहा, “जैसा मैंने सोचा था रिपोर्ट वैसी ही है।”
“मतलब?”, सुधा ने पूछा।
“संजु के मेल हॉर्मोन लेवल नॉर्मल है।”, डॉ अलका ने जैसे दिलासा देना चाहा।
“तो फिर डॉ ये सब बॉडी चेंजेस… इनका मतलब क्या है?”, सुधा ने पूछा।
“जी … संजु के मेल हॉर्मोन तो नॉर्मल है पर इसके शरीर में एस्ट्रजन की मात्रा नॉर्मल से थोड़ी अधिक है।”, डॉ अलका बोली, “और ये बॉडी चेंजेस कोई भी अभी पर्मनन्ट नहीं है। सही समय पर ये सब वापस किया जा सकता है।”
“सही समय मतलब?”, हल्की सी आवाज में संजु ने हिम्मत कर पूछा।
“देखो बेटा। ये तुम्हारी लाइफ है और इसके बारे में कोई निर्णय मैं नहीं ले सकती। और फिर तुम्हारी उम्र भी अभी इतनी नहीं हुई है कि तुम अपना निर्णय पूरी तरह से सोच समझकर ले सको। इसलिए हमें थोड़ा इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा।”, डॉ अलका बोली।
“क्यों? मैं अपना निर्णय क्यों नहीं ले सकती?”, संजु ने थोड़ा उत्तेजित होते हुए कहा।
“संजु … बेटा। तुमको याद है तुम ६ महीने पहले जब यहाँ आए थे तब तुम मुझसे किस तरह बात कर रहे थे और आज तुम किस तरह कर रही हो? क्या मैं मान लूँ कि पिछली बार तुम एक लड़के की तरह रहना चाहते थे पर इस बार लड़की की तरह जीना चाहते हो? और फिर आज से ६ महीने बाद भी क्या तुम वही सोचोगे जो आज सोच रहे हो?”, डॉ अलका ने संजु के लड़की की तरह बात करने के तरीके की ओर इशारा करते हुए कहा।
“वो .. वो तो मैंने आज सलवार कुर्ती पहनी हुई है इसलिए मैंने इस तरह …”, संजु डॉ की बात सुनकर ठिठक पड़ा। तो सुधा ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे संभाला। मन में अजीब सी घबराहट थी उसके। अपनी चुन्नी के लटकते हुए छोर को अपनी गोद में समेटते हुए वह समझ नहीं पा रहा था कि वो डॉ देशपांडे को किस तरह जवाब दे। इस समय उसकी आँखों मे आँसू तो न थे पर चेहरा उदास जरूर था।
यूं तो डॉ अलका की उम्र भी बहुत ज्यादा नहीं थी पर उनके दिल में भी संजु के लिए एक विशेष लगाव था और एक व्यावहारिक समझ थी कि उन्हे संजु को कमजोर नहीं बनाना है। वो उठकर संजु के पास आई और संजु का हाथ पकड़ कर बोली, “संजु, मैंने सुना है कि पढ़ाई मे पूरे शहर में तुमसे अच्छा कोई नहीं है। मुझे ये बताओ कि तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?”
संजु ने झुकी हुई नज़रों से कहा, “एक इंजीनियर बनना है मुझे।”
“और इंजीनियर बनने के लिए तुम्हें बहुत पढ़ाई भी करनी होगी और फोकस भी बहुत करना होगा। है न?”
“हाँ।”, संजु ने सर हिलाकर कहा तो उसकी चुन्नी फिसल गई पर उसने उसे उठाया नहीं।
डॉ अलका ने संजु की चुन्नी उसके कंधे पर रखते हुए कहा, “देखो बेटा। यदि मैं इस समय तुम्हें किसी तरह की स्ट्रॉंग दवाइयाँ दूँ तो उसका तुम्हारे दिमाग पर बहुत असर पड़ेगा। उन दवाइयों के असर से तुम्हारे ईमोशन बेहद उतार चढ़ाव से गुजरेंगे और तुम पढ़ाई पर ध्यान न दे सकोगे। और फिर तुम इंजीनियर बनने की तैयारी भी नहीं कर पाओगे। मैंने तुम्हारी तरह की मुश्किल से गुजरते हुए और भी कुछ लोगों को देखा है और उनको ट्रीट किया है। पर तुम सबसे स्पेशल हो क्योंकि तुम स्ट्रॉंग हो। तुमने इतने उतार चढ़ाव के बाद भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया है। ऐसा बहुत कम लोग कर पाते है। मैं नहीं चाहती हूँ कि तुम्हारी इस काबिलियत पर कोई भी बुरा असर पड़े। ये उम्र तुम्हारी पढ़कर आगे बढ़ने की है न कि इन सब बातों में फंसकर कहीं रुकने की। इन बातों से डील करने के लिए सही समय भी आएगा और वो समय अभी नहीं है।” डॉ अलका ने प्यार से संजु के सर पर हाथ फेरा।
“पर आंटी। मैं ऐसे स्कूल कैसे जाऊंगा?”, संजु ने टूटती हुई आवाज में कहा। उसका इशारा अपने इस रूप की ओर था। “जाऊंगा” ये शब्द कहीं न कहीं संजु के दिल का दर्पण था जो उसके अंदर छिपे लड़के को दिखा रहा था।
“हम्म … अपनी आंटी पर ट्रस्ट करोगे?”, डॉ अलका ने पूछा।
“हम्म”, संजु ने धीरे से सर हिलाया।
“ठीक है। तुम स्कूल जाओगे बिल्कुल वैसे ही जैसे दूसरी लड़कियां जाती है। तुमको लोगों की कुछ भली-बुरी बातें भी सुनने को मिलेंगी। पर तुम सबको अनदेखा करके वो करोगे जो तुम्हारे लिए इस उम्र मे सबसे ज्यादा जरूरी है। और जब तुम्हारा इंजीनियरिंग में अड्मिशन हो जाए तब तुम अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र रहोगे। तब तुम जो कहोगे वैसे ही मैं करूंगी। डील?”
“डील”, संजु ने थोड़ी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा और डॉ अलका से हाथ मिलाया। डॉ अलका ने खुशी से संजु को गले लगा लिया।
“वैसे तुम्हारी कुर्ती का डिजाइन बहुत अच्छा है। काफी मॉडर्न लुक है। इट सूट्स यू! और आगे से इस तरह उदास नहीं होना। समझे?”, डॉ अलका बोली।
संजु किसी तरह से मुस्कुराया।
“अच्छा बेटा। तुम जरा बाहर जाकर बैठो, मैं तुम्हारी मम्मी से भी बात कर लेती हूँ। बहुत चिंता करती है तुम्हारी।”, डॉ अलका मुसकुराते हुए बोली।
जब संजु बाहर चला गया तब अलका ने सुधा से कहा, “सुधा जी, मैं जानती हूँ कि आपके मन में बहुत से सवाल है। और आप सोच रही होंगी कि मैंने एस्ट्रजन और फीमैल हॉर्मोन को सप्रेस्स करने के लिए कोई और स्ट्रॉंग दवाई क्यों नही दी। पहले मैं भी वही करना चाहती थी। क्योंकि मैंने संजु को पहले भी देखा है- बिल्कुल नॉर्मल लड़के की तरह। पर आज उसे देखा तो ऐसा लगा जैसे उसे अभी और समय की जरूरत है। एक लड़की के रूप में खुद को जानने की। कहीं ऐसा न हो कि उसके दिल में लड़की हो और हमारे दबाव में उस लड़की को निखरने का मौका ही न मिले तो? हमारे किसी निर्णय या कदम से कुछ ऐसा न हो जाए कि उसकी पढ़ाई भी अच्छी तरह से न हो सके और वो सारी ज़िंदगी आपको और मुझे दोषी मानता रहे। मैं जानती हूँ कि उसकी इस यात्रा में संजु को कई संघर्षों से गुजरना पड़ सकता है। लेकिन इस यात्रा के अंत में निर्णय उसका होगा। आपका या मेरा नहीं। और इसी वजह से ये उसके कान्फिडन्स और खुशी दोनों को बढ़ाएगा। आप मेरी बात समझ रही है न?”
शायद संजु के बाद अब सुधा की बारी थी … अपने दिल को बहुत समझाने के बाद भी वो आँखों से कुछ बूंदों को बहने से रोक न सकी। सुधा को इस तरह देख डॉ अलका ने एक सहेली की तरह सुधा का हाथ पकड़कर कहा, “सुधा जी, मैं संजु से पिछले दो सालों से मिल रही हूँ। संजु मेरे लिए भी बहुत स्पेशल है। उसके अंदर एक स्वाभिमान है और परिस्थियों से लड़ने की क्षमता भी है। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी जो उसके लिए सही न हो। आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। क्या आप ये कर सकेंगी?”
डॉ अलका की बात सुन सुधा ने हाँ में सर हिलाया और अपनी साड़ी के एक छोर से अपने आंसुओं को पोंछ खुद को एक बार फिर एक मजबूत माँ के रूप में तैयार किया।
जब विषम परिस्थितियाँ हो तब दिमाग को कोई कितना भी समझाए कि सही रास्ता और सही समय खुद ब खुद एक दिन दिखेगा। बस थोड़े से समय की बात है। पर एक बार दिमाग समझ भी जाए फिर भी दिल तो जल्दी से जल्दी उस समय के आने की प्रार्थना करता है जब सब कुछ सुलझ जाए। सुधा और संजु दोनों की हालत कुछ ऐसी ही थी। दोनों जानते थे कि उन दोनों को ही मजबूत बनकर इस परिस्थिति का सामना करना है। और अब तक जो भी हुआ था उसमे सुधा और संजु दोनों ही एक दूसरे की हिम्मत बनकर साथ दे रहे थे। जहां सुधा संजु को प्रेरित करती थी वहीं संजु ने भी अब तक अपनी परिस्थिति से हार न मानी थी। शायद इसलिए तो वो कुछ महीनों मे ही लड़की के रूप में पूरी तरह से ढलने लगा था। शुरुआत धीमी जरूर थी पर अब पिछले कुछ महीनों मे संजु लगभग पूरी तरह से लड़की बन चुका था। उसके मन मे क्या था ये तो वही जानता था पर बाहर से वो लड़की ही लगता था।
गर्मी के उस मौसम में जब अपनी कोरी आँखों के साथ वो घर पहुंचा तो पहुंचते ही वो माँ के कमरे में गया और एसी ऑन करके उसने अपनी चुन्नी को उतार एक ओर फेंक दिया और बिस्तर पर लेट गया। उसकी आँखें अब भी अपने भविष्य के बारे में सोच रही थी।
सुधा भी अपना पर्स को एक ओर रखकर संजु के बगल में बैठ गई। उसने एक बार संजु की ओर देखा – जहां उसे चूड़ीदार कुर्ती और सलवार पहने पतली कमर और आकर्षक शरीर वाली उसकी बेटी दिखाई दी। सचमुच वो बेटी ही तो थी जो बगल में लेटी हुई थी। इतनी प्यारी राजकुमारी सी बेटी को वो राजकुमार कैसे बना सकती है? पर यदि इस राजकुमारी को राजकुमार बनना हो तो?
“क्या करना है अब?”, सुधा ने अपनी कलाई से घड़ी उतारते हुए पूछा।
“तुम्हें क्या लगता है माँ?”, छत की ओर एक टक देखती हुए नज़रों से संजु ने वापस सवाल किया।
“अलका आंटी ने कहा न बेटा कि ये निर्णय तुम्हारा है।”, सुधा ने कहा।
“हाँ”
“तो फिर?”
“फिर क्या माँ? अब तुम मेरे लिए नई यूनिफॉर्म सिलवाने की तैयारी करो!”, संजु ने माँ की ओर पलट कर कहा। उसका इशारा था कि अब स्कूल में उसे लड़की की यूनिफॉर्म की जरूरत होगी।
संजु की बात सुन सुधा ने मुस्कुराकर संजु की कलाई पकड़ी और वो भी उसके बगल में लेट गई और उसकी आँखों में देखते हुए बोली, “तो तू तैयार है?”
“हाँ, माँ।”
“तुझे पता है न कि तुझे कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा?”, सुधा ने कहा। सुधा को एक डर था कि अब तक तो संजु को उसकी माँ, पिता और ऋतु का सहारा था। पर संजु ने अब तक इस रूप में बाहर की दुनिया नहीं देखा था। उसे पता न था कि उसका कितना मज़ाक उड़ाया जा सकता है।
संजु ने कुछ देर सोचा और नजरे नीची कर देखा जहां उसके उभरे स्तन उसे दिख रहे थे। कुछ सोचकर वो बोला, “पता है माँ? अब मैं जब भी खुद को आईने में देखती हूँ तो मुझे बस एक लड़की दिखाई देती है। ऐसा लगता है कि लड़की बनकर जीना बड़ा आसान होगा क्योंकि उसके लिए मुझे ज्यादा मेहनत करने की जरूरत भी न होगी। जानती हूँ कि स्कूल में लड़के लड़कियां मेरा मज़ाक उड़ाएंगे पर यदि मैं लड़कों की तरह स्कूल गई, मज़ाक तो वो मेरा तब भी उड़ाएंगे न? और फिर मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ इस तन को लड़के के जैसा दिखाने की पर ये हमेशा लड़की की तरह ही दिखेगा।”
अपने बेटे की यह बात सुनकर सुधा की आँखों में आँसू आ गए और उसने संजु को अपने सीने से लगा लिया। माँ के सीने से झलकते प्रेम में संजु भी भाव विभोर हो गया। दोनों ने कुछ देर तक कुछ भी न कहा। बस वात्सल्य प्रेम के अनुभव में संजु कुछ देर वैसे ही डूबा रहा। दुनिया क्या कहेगी उसे न पता था, पर माँ का प्यार हमेशा उसके साथ रहेगा, ये वो जानता था। सुधा भी संजु की पीठ पर प्यार से हाथ फेरती रही। हाथ फेरते हुए संजु की पीठ पर सुधा का हाथ जब संजु की ब्रा की हुक पर से जाता तो सुधा को भी लगता कि शायद संजु के लिए यही उचित होगा वो स्कूल में लड़की बनकर ही जाए।
“माँ, एक बात पूछती हूँ। तुम सच सच बताना”, संजु ने माँ की साड़ी के आँचल को पकड़ कर कहा।
“तुझसे झूठ बोलती हूँ मैं भला?”, सुधा मुस्कुराई।
“ठीक है। तो फिर ये बताओ … क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि काश तुम्हारा बेटा भी नॉर्मल होता और दूसरे लड़कों की तरह बढ़ता?”, संजु ने पूछा।
सुधा ने कुछ देर सोचा और मुस्कुराकर बोली, “नॉर्मल बेटा? नॉर्मल तो तू अब भी है।”
“माँ! तुम जवाब दो न मेरा।”
“ठीक है बताती हूँ। …”, सुधा ने कहा और फिर आगे बोली, “आज से लगभग २ साल पहले तक मेरा बेटा रोज स्कूल से आता था। मुझसे बिना ज्यादा बातें किये वो खाना खाते ही क्रिकेट खेलने भाग जाता था। फिर खेलने के बाद पढ़ाई में लग जाता था। उसके पास हर चीज के लिए समय था बस माँ से बात करने की फुरसत न होती थी उसके पास। उस बेटे के मुकाबले तो मेरी बेटी अच्छी है। भले वो मुझसे लाख शिकायत करे पर मेरे साथ बैठ कर टीवी देखती है, साथ में खाना बनाती है, बातें करती है। मुझे तो कोई शिकायत नहीं है अपनी बेटी से।”, सुधा हँसने लगी।
“ओह तो तुमको बेटे से ज्यादा बेटी प्यारी है?”, संजु ने भी मुसकुराते हुए कहा।
“मैंने ऐसे तो नहीं कहा!”, सुधा बोली।
“तुम कहो न कहो मुझे तो समझ आ गया है। अब तुम देखना तुमको मैं भी दूसरी लड़कियों की तरह अपने लिए इतनी शॉपिंग करवाऊँगी न कि तुमको लगेगा कि बेटी से अच्छा तो बेटा ही था!”, और संजु खिलखिलाकर हँसने लगा।
“कर लेना जितनी शॉपिंग करनी है तुझे। मैं कहाँ मना कर रही हूँ!”, सुधा ने कहा और दोनों एक दूसरे के गले लग गए और सुधा प्रेमपूर्वक संजु के सर पर हाथ फेरने लगी।
एक बार फिर संजु के साहस की वजह से ही सुधा भी मुस्कुरा पा रही थी। ये संजु का साहस ही तो था जो उसने आज इतना बड़ा निर्णय लिया था। अब सुधा का कर्तव्य सिर्फ इतना था कि संजु ने जो रास्ता चुना है उसमे वो उसका साथ दे।
दिन बीत चुका था और माँ बेटी ने खाना भी खा लिया था। आज का दिन संजु के लिए काफी बड़ा दिन था क्योंकि उसने एक बड़ा निर्णय लिया था। यूं तो आने वाले दिनों की चिंता मन में कहीं न कहीं माँ बेटी के दिलों में थी फिर भी संजु के चेहरे पर आज एक संतोष था – एक खुशी थी क्योंकि उसे कम से कम अब ये पता था कि उसे अब लड़की की ही तरह रहना है। घर के बाहर लड़का और घर के अंदर लड़की … इस दोहरे जीवन से तो उसे मुक्ति मिलने वाली थी। अब उसे ज्यादा दिनों तक दुनिया से ऐसे छिप के रहना न होगा।
सारी चिंताओं को भुलाकर संजु तो जैसे सपने सँजो रहा था कि अब वो कैसे आसानी से घर के बाहर दूसरी लड़कियों की तरह अपने शरीर के अनुरूप कपड़े पहनकर निकल सकेगा। ऐसा न था कि संजु ने तय कर लिया था कि अब से वो जीवन भर के लिए लड़की है पर कम से कम अभी तो ये सवाल उसके जीवन से कुछ समय के लिए खत्म हो गया था। बस एक संतोष था इसी बात का उसके मन में। और सुधा भी ये बात समझ चुकी थी। संजु के स्कूल में एक लड़की के रूप में अड्मिशन के लिए उसे कुछ सरकारी काम भी करवाने होंगे पर सुधा ये संभाल लेगी।
“संजु .. सुन”
“हाँ माँ”, संजु ने अपनी चुन्नी संभालते हुए बर्तन समेटते हुए कहा।
“तू कल अपना कमरा ठीक कर लेना और अलमारी में थोड़ी जगह बना लेना। तेरे लिए नए यूनिफॉर्म और नए कपड़ों के लिए जगह बनानी होगी न।”, सुधा हँसते हुए बोली।
“ठीक है माँ। मैं कर लूँगी।”, संजु बोली।
कुछ देर अपनी माँ के साथ समय बीताने के बाद संजु सोने के लिए अपने कमरे में चली आई। कमरे में पहुँचकर वो अपने दर्पण के सामने पहुंची। पहले तो उसने अपनी चोटी सामने की और फिर पीठ पर अपनी कुर्ती का हुक खोलकर चेन खोलने लगी। संजु अब इस चीज में एक्सपर्ट हो गई थी। अब उसे कुर्ती पहनने उतारते समय चेन लगाने और खोलने के लिए माँ की मदद की जरूरत न होती थी। कुर्ती उतारकर संजु ने अपनी सलवार भी उतारी। ब्रा और पेंटी में बड़ी सुंदर लग रही थी संजु। फिर संजु ने अपनी ब्रा उतारी और अलमारी से नाइटी निकालकर पहन ली। गर्मी के मौसम में नाइटी उसे एक खुलापन महसूस कराती थी जो संजु को अच्छा लगता था। वैसे तो छोटे शहरों में कई लड़कियां और महिलायें नाइटी के अंदर पेटीकोट भी पहनती है पर संजु को उसकी जरूरत महसूस नहीं होती थी। वैसे भी उसे सिर्फ रात में सोते समय ही नाइटी पहननी होती थी।
अपने कपड़ों को सलीके से मोड़कर संजु ने कुर्ती के ऊपर अपनी ब्रा रखा और फिर अलमारी में उन्हे जगह पर रखने लगी। और तब एक नजर संजु की उसके उन कपड़ों पर पड़ी जो उसे एक लड़का बनाते थे। संजु ने उन्हे एक नजर देखा और मन ही मन सोचा, “आज के बाद से मुझे इनकी जरूरत कभी नहीं पड़ेगी।” संजु ने उन सारे कपड़ों को इकट्ठा किया और अलमारी से बाहर निकालकर अपने बिस्तर पर ले आया।
उनमें से उसने शर्ट उठाई और खोलकर देखने लगी, ये शर्ट उसके पापा ने उसके बर्थडे पर गिफ्ट में दिए थे। उस शर्ट को हाथों में पकड़कर उसका मन तो किया कि वो रो दे। पर उसने हिम्मत कर उन कपड़ों को हमेशा हमेशा के लिए अलग कर दिया। संजु अब लड़की है, उसे अब इसकी जरूरत नहीं है। जीवन के इतने साल लड़के के रूप में बीताने के बाद अपनी सालों की इस पहचान को कोई इतनी आसानी से खोने को तैयार नहीं होता है पर संजु के पास और रास्ता भी क्या था?
नाइटी पहनकर संजु बिस्तर पर लेट गया और अपने दोनों हाथों को आपस में पकड़ उसने अपने सीने पर रखा तो उसे अपने कोमल स्तनों का आभास हुआ। न जाने क्यों उसने उन्हे छूकर अपने निप्पल के उभार को महसूस किया। उसके मन में ऐसा करते समय कोई अपवित्र भावना न थी। वो तो सिर्फ आज उन्हे छूकर खुद के एक लड़की होने को स्वीकारने की कोशिश मात्र थी। पर उसके शरीर में अभी भी कुछ और भी था जो उसके तन में दौड़ते हॉर्मोन के साथ अपनी उपस्थिति का आभास दिन में कई बार कठोर होकर कराता था, संजु का उसपर कोई नियंत्रण न था। और वह अंग उभरकर संजु के लड़के होने के एहसास को पूरी तरह से कभी खत्म नहीं होने देता था। संजु ने अपने उस अंग को भी हल्के से छूकर देखा। क्या संजु को अपने इस लिंग से कोई शिकायत थी? नहीं ऐसा भी नहीं था। न तो उसे लिंग से कोई शिकायत थी और न ही उसे अपने स्तनों और बढ़ते कूल्हों से कोई शिकायत थी। उसे तो अपने रूप पर कहीं न कही थोड़ा सा अभिमान था। वो तो दुनिया की समस्या थी जो संजु को उसके शरीर के अंगों की वजह से लड़का या लड़की के भेद में कहीं बांधना चाहती थी। पर संजु शायद उस भेद के कहीं परे था। वो न लड़का था और न ही लड़की। वो तो बस संजु था जो बस स्वतंत्र रूप से संजु होकर जीने के लिए विचलित था।

उस स्वतंत्रता की उसके अंदर इतनी ललक थी कि उस रात सपने में उसने खुद को अपने घर की छत पर पाया। उसके लिए शायद वही आजादी थी जो उसने पहली बार छत पर महसूस की थी जिस दिन वह पहली बार साड़ी पहनकर वहाँ गया था। इसलिए तो सपने में भी उसने खुद को एक घरेलू पालीएस्टर साड़ी पहने हुए देखा। गहरे नीली रंग की साड़ी जिस पर फूलों के बहुत छोटे छोटे प्रिन्ट बने हुए थे। हल्की सी बहती हवा में वह साड़ी लहरा रही थी। मानो हवा में वो बह उठती और कहीं दूर चली जाती यदि ब्लॉउज़ पर लगी पिन से वो लगी न होती। सिंथेटिक साड़ियाँ क्योंकि हल्की होती है तो हल्की सी हवा में भी लहराने लगती है। और उस लहराते हुए पल्लू को देख संजु के चेहरे पर एक खुशी भर उठी। शायद ऐसी साड़ी पहनकर उसे लगता था जैसे कि उसके पंख लग गए है और वो इस दुनिया में उड़ने को तैयार है। उस छत से भी आगे बढ़कर स्वतंत्र होने के लिए।
अपनी लहराती हुई साड़ी के साथ मन में अनंत खुशियों के साथ संजु अपनी प्लेट को पकड़कर एक एक कदम धीरे धीरे बढ़ा रहा था अपनी आजादी की ओर। यूं तो ये सपना था … फिर भी किसी असली पल की तरह संजु को चलते हुए अपने स्तनों का भार भी महसूस हो रहा था। उन स्तनों को अपने दोनों हाथों से अपनी बाँहों में समाकर वो मानो यूं महसूस कर रहा था जैसे उसके भीतर भी वही वात्सल्य प्रेम देने की क्षमता है जो उसे अपनी माँ के सीने से गले लगकर महसूस होती थी। उसे अपने स्तनों से प्रेम हो गया था। साड़ी पहनकर अपने स्तनों की वजह से संजु को अपने अंदर अपनी माँ की छवि दिखाई देती थी जो उसे एक अलग ही खुशी देती थी।
उस सपने में जब संजु ने आगे कदम बढ़ाने के लिए अपनी साड़ी की प्लेटस को अपनी उंगलियों के बीच पकड़ा तो सपने में भी उसके लिंग ने उसे अपना आभास कराया। वो लिंग कठोर तो था पर फिर भी संजु की खूबसूरत साड़ी की प्लेट, और पेटीकोट के नीचे वह छिपा हुआ था। साड़ी उस लिंग को भी बड़ी आसानी से अपने भीतर समा लेती थी जैसा उसकी चूड़ीदार कमीज में आसानी से संभव न हो पाता था। संजु की साड़ी उसके शरीर के अनुरूप ढलकर उसे सुंदर महसूस करा रही थी। उस साड़ी को इससे फर्क न पड़ता था कि उसकी पेंटी के नीचे क्या है। उस साड़ी को इससे फर्क न पड़ता था कि उसके स्तनों का आकार क्या है। संजु तो आखिर तब भी साड़ी में सुंदर दिखता था जब उसके स्तन छोटे थे और आज भी सुंदर दिखता है जब उसके स्तन बढ़ चुके थे। उसकी साड़ी सिर्फ उसकी साड़ी थी जो संजु को किसी भी रंग रूप में अपनाने को तैयार थी। शायद संजु का यह सपना उसे समझा रहा था कि क्यों संजु को साड़ी इतनी पसंद है।
उंगलियों के बीच अपनी सॉफ्ट सी साड़ी को पकड़ कर चलते हुए संजु को उसका लिंग रह रहकर जैसे उसकी उंगलियों को छूने की कोशिश कर रहा था। मानो वो लिंग संजु की उंगलियों को छूकर संजु से कहना चाहता हो कि मुझे अपनी इस खूबसूरती में कहीं भूल न जाना संजु। संजु को कुछ अजीब भी लग रहा था पर वो उसे अनदेखा कर चलता रहा।
बहती हुआ हवा थोड़ी ठंडी होने लगी और उसके बालों को भी लहराने लगी। ठंडी हवा की सिहरन से उसकी खुली बाँहों के रोम रोम उठ खड़े हुए। अपनी साड़ी को छोड़ दोनों हाथों को अपनी बाँहों पर सहलाकर जैसे उन्हे गरम करने की कोशिश करने लगा था संजु। बाँयी ओर तो फिर भी उसकी साड़ी का पल्लू कुछ गर्माहट दे रहा था पर उसकी दाँयी ओर तो बाँहें खुली हुई थी। इसलिए संजु ने अपने पल्लू को पकड़कर पीछे से अपनी बाँहों के ऊपर लाकर खुद पर लपेट एक बार फिर बाँहों को गर्म करने लगा। ठिठुरते हुए जैसे वो खुद को साड़ी में समेटकर उसमे समाने की कोशिश करने लगा। ऐसे में उसकी बाँहों के बीच उसके दोनों कोमल स्तन दब कर आपस में छुआने लगे। न जाने क्यों अपनी इस सपने की दुनिया में संजु ने अपने ब्लॉउज़ के अंदर ब्रा नहीं पहना हुआ था। ठंड उसके स्तनों तक पहुँच गई थी जो उसके निप्पल को कठोर बना रही थी। और वो निप्पल उसकी कलाइयों से छुआ रहे थे। संजु को आनंद भी आ रहा था पर ठंड में संजु ने अपने पल्लू को और जोर से जकड़ कर खुद की बाँहों में अपने को समेटा तो उसके स्तन और जोर से दब गए। उस बहती हवा में किसी अनजानी खुशी में खुश होते हुए संजु ने अपनी आँखें बंद कर ली। और उस हवा को अपने एक एक अंग में महसूस करने लगा। पहले तो वो हवा उसके चेहरे को चूमने लगी, और बालों को बिखराने लगी। फिर वही हवा उसने अपने सीने पर अनुभव की जहां उसका आँचल उसके कोमल सीने को ढंके हुए था। वो बहती हवा मानो उसके आँचल को उड़ा ले जाना चाहती थी। संजु ने एक बार फिर खुद की बाँहों के बीच खुद को और जोर से जकड़ लिया।
न जाने क्या बात थी कि संजु के तन बदन में कुछ ऐसी तरंगे उठने लगी जैसे उसने पहले कभी महसूस न की थी। स्तनों से होते हुए वो तरंगे उसके पूरे शरीर में अकड़न पैदा करने लगी। उसका पूरा शरीर एक तेज उत्तेजना मे सिहर उठा। और फिर अगले ही पल में वो उत्तेजना अचनाक ही शांत हो गई। संजु के चेहरे पर एक शांति छा गई और संजु एक बार फिर गहरी नींद में खो गया।
संजु को पता न था कि उसके साथ क्या हुआ था। जब वो सुबह सो कर उठा और नहाने गया तब उसने अपनी पेंटी को उतारकर देखा तो उस पर कुछ धब्बे उसे दिखाई दिए। कुछ विचित्र सी गंध थी उसमे। संजु के साथ रात में वो हुआ था जो किसी भी लड़के के साथ १२-१४ की उम्र के बीच होता है। संजु के लिंग ने अपना वो रूप ले लिया था जो लड़कों का लिंग एक उम्र के बाद ले लेता है। बहुत से लड़कों को पहली बार वो बदलाव देखकर कुछ खराब सा लगता है पर लड़के कभी उस बारे में आपस में बात नहीं करते। संजु को भी अपनी पेंटी पर वो दाग देखकर अच्छा न लगा। हैरान संजु को उसकी पेंटी की वो गंध बिल्कुल पसंद न आई और वो विचलित होकर अपनी पेंटी धोने की कोशिश करने लगा। अपने लिंग के बदले रूप जहां स्किन थोड़ी पीछे हो गई थी उसे देख संजु को समझ न आया कि वो क्या सोचे। इस बारे में वो किसी से बात भी नहीं कर सकता था। अब तो उसने लड़की बनकर जीवन जीना तय कर लिया था। पर कोई लड़की या उसकी अपनी माँ उसकी ये बात कैसे समझेगी? और तो और अब तो किसी लड़के से भी इस बारे में बात करना संभव न था? कैसी विडंबना थी ये कि जिस दिन संजु ने लड़की का जीवन स्वीकार किया उसी दिन उसके लिंग ने उसे उसके लड़के होने की प्रक्रिया की ओर अगला कदम बढ़ा दिया था।
नहाने के बाद संजु ने अपनी नाइटी को भी एक बार खोलकर देखा कि कहीं उसमे भी कहीं कोई दाग तो न था। नाइटी को साफ देखकर उसने मन ही मन राहत महसूस की और फिर उसके बाद संजु ने आज एक स्कर्ट और टॉप पहना। आखिर में खुद को लड़की के रूप में स्वीकार कर संजु अब खुद को मुक्त महसूस कर रहा था।
अगले कुछ दिन सुधा और संजु के किस तरह बीत गए पता भी न चला। संजु के लिए स्कूल यूनिफॉर्म के लिए नई सलवार सूट सिलवाना और फिर सुनार की दुकान जाकर संजु के कान छिदवाना, और नए नए कपड़े खरीदना – न जाने कितना ही कुछ उन दोनों को करना था। और इसके लिए अब संजु को लड़की के रूप में घर से बाहर भी निकलना होता था। दुनिया की फिक्र किये बगैर माँ बेटी अपने इस नए जीवन की तैयारी कर रही थी पर बाहर के लोगों से ये सब ज्यादा दिनों तक छिपा भी न रहने वाला था। अब तक तो मोहल्ले में खुसर फुसर भी शुरू हो चुकी थी। सुधा तो जानती थी कि उसे जल्दी ही एक दिन सबको ये बताना होगा ताकि उनका भी सहयोग संजु को मिल सके। चाहे पीठ पीछे वो जो भी कहे …। सुधा को तो बस ऋतु के आने का इंतज़ार था ताकि संजु ऋतु के साथ मिलकर कभी मोहल्ले में बाहर निकले तो उसके साथ कोई तो हो। ऋतु साथ होगी तो शायद संजु को एक सहारा भी मिलेगा। जितना इंतज़ार सुधा को था उससे कहीं ज्यादा इंतज़ार तो संजु को था ऋतु से मिलने का … और वो तो बस दिन ही गिन रहा था।
आखिर में वो दिन आ ही गया जिस दिन ऋतु आने वाली थी। उस दिन संजु एक सुंदर सी नई सलवार कुर्ती पहनकर तैयार हुआ। आज वो बहुत खूबसूरत दिखना चाहता था। जैसे कोई लड़की तैयार होती है अपने प्रेमी से मिलने के लिए, संजु भी कुछ उसी खुशी के साथ तैयार हो रहा था। एक अजीब सी बात थी ये पर संजु के दिल में छिपी ये लड़की उससे ये सब करवा रही थी जिस वजह से संजु को इसमे कुछ गलत भी न लग रहा था। उसने आज अपनी आँखों में काजल भी लगाया और फिर अपने कान में सुंदर सी ईरिंग भी पहनी। खुद सजने के बाद आईने में खुद को देखकर वो किसी लड़की की तरह ही मुसकुराते हुए शर्मा रहा था। तैयार होने के बाद वो बार बार अपनी खिड़की से झाँककर देखता कि ऋतु आ तो नहीं गई। इस बेचैनी में वो अपनी चुन्नी को पकड़कर उसके साथ खेलता तो कभी अपनी चोटी को पकड़कर देखता। न जाने ये प्रेम का असर था या फिर टीवी में लड़कियों के हाव भाव देखने का … पर संजु पूरी तरह से लड़की की तरह ही व्यवहार कर रहा था। करे भी क्यों न ? आखिर उसे अपने अगले कुछ साल तो इसी तरह बीताने है तो फिर देर किस बात की?
जितना संजु आतुर था उससे ज्यादा तो ऋतु उससे मिलने को उतावली थी। तभी तो जैसे ही ऋतु अपने मम्मी-पापा के साथ अपने घर पहुंची … उसने तो अपना सामान भी अपने कमरे में न रखा और बस घर से निकलकर दौड़ पड़ी…
“अरे कहाँ भाग रही है?”, ऋतु की माँ ने उसे आवाज दी।
“संजु से मिलने जा रही हूँ माँ!”, वो बोली और दौड़ते हुए निकल पड़ी।
“पर एक मिनट ठहर तो …”, इससे पहले कि उसकी माँ अपनी बात पूरी कर पाती ऋतु निकल चुकी थी।
संजु के घर के बाहर का गेट खोलते-खोलते ही वो संजु संजु चिल्लाते हुए बढ़ रही थी। और ऋतु की आवाज सुनते ही संजु भी अपने कमरे से दौड़े दौड़े उतारने लगा। सीढ़ियों से उतरते हुए उसकी चुन्नी लहराने लगी और उसके स्तन हर कदम पर उसकी ब्रा के अंदर हिलने लगे जो उसकी चुस्त कुर्ती में साफ हिलते दिख रहे थे। मगर संजु को इन सबकी कहाँ परवाह थी। वो तो बस अपनी ऋतु से मिलने को बेताब था। और दौड़ते दौड़ते बिना किसी की परवाह करते हुए दरवाजा खोलकर वो अपने घर के आँगन में आ चुका था।
आँगन में उसकी आँखों के सामने उसकी ऋतु थी। इस दौड़ भाग में संजु के बाल थोड़े से बिखर कर आँखों के सामने आ गए थे और उसकी चुन्नी एक कंधे से फिसलकर उसकी कलाइयों तक पहुँच चुकी थी। एक दूसरे को सामने देखते ही दोनों के पैर रुक गए।
घर के बाहर आँगन में संजु को इस तरह सलवार कुर्ती और चुन्नी पहने हुए देखकर ऋतु की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो उठी और उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। संजु के चेहरे पर ऋतु को देखते ही खुशी से भरी मुस्कान आ गई। दोनों के स्तन दौड़ने की वजह से हांफते हुए संकुचा भी रहे थे और अब उन दोनों के बीच ये दूरी उनसे बर्दाश्त न हो रही थी। और दोनों ने ही बिना समय गँवाए एक दूसरे को गले लगा लिया। ये दो प्रेमियों का मिलन था या फिर दो सहेलियों का? पर इस मिलन में दोनों एक दूसरे को जोर से गले लगाकर खो गए। दोनों के स्तन एक दूसरे से लगकर दब गए और दोनों को एक दूसरे की करीबी महसूस कराने लगे। दोनों के चेहरे पर खुशी के आँसू थे।
“संजु …”, ऋतु ने बस इतना ही कहा। उसके लिए तो ये सचमुच खुशी का पल था कि संजु आज हिम्मत कर घर से बाहर निकला था। गले लगाए हुए उसे संजु के कानों में लटके झुमके भी दिखाई दिए तो ऋतु की खुशी और बढ़ गई। बिना संजु के कुछ कहे ही ऋतु समझ गई थी कि संजु ने अपने जीवन में अगला कदम आगे की ओर ले लिया है। वो संजु के लिए बहुत खुश थी।
एक दूसरे को जी भर के गले लगाने के बाद संजु ने ऋतु को पहले बाँहों से पकड़कर उसे जी भर कर देखा और फिर ऋतु का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ घर के अंदर ले चला। घर के अंदर जाते हुए दोनों पक्की सहेलियों की तरह लग रही थी जो कई दिनों बाद एक दूसरे से मिल रही थी।
उन दोनों को इस तरह देख संजु की माँ सुधा की आँखों में आँसू आ गए जो ऋतु की आवाज सुन खुद घर से बाहर आ चुकी थी। पर इस समय, एक नजर और थी जो इस दृश्य को देख रही थी। वो नजर थी ऋतु की मम्मी नलिनी की जो संजु को इस तरह देख हतप्रभ थी। ऋतु के पीछे पीछे वो भी आकर इस समय घर के गेट पर खड़ी थी।
नलिनी ने हैरत भी नज़रों से सुधा की ओर देखा और किसी तरह कहा, “वो … मैं … संजु के पसंद के लड्डू लेकर आई थी। उसे ऋतु की नानी के गाँव के ये लड्डू पसंद है न ..”
सुधा ने नलिनी की ओर देखा और मुसकुराते हुए कहा, “नलिनी … तो वहाँ क्यों खड़ी है? अंदर आ जा। मैं तुझे सब बताती हूँ।”
और इस तरह ऋतु का परिवार मोहल्ले का वो पहला परिवार था जिसे संजु के सच के बारे में पता चला। ये बात किसी के लिए इतनी आसानी से समझना आसान भी नहीं होता पर ऋतु की मम्मी, नलिनी, ने पूरी तरह से इसे समझने की कोशिश की। वो सब कुछ समझ तो न सकी थी पर उससे कुछ कहा भी नहीं जा रहा था। सच तो ये था कि नलिनी ने संजु और ऋतु को बचपन से साथ में बढ़ते खेलते देखा था, तो उसके मन में भी संजु के लिए लगाव था। और फिर संजु था भी होनहार लड़का तो शायद उसने मन में न जाने कब ये सपने सँजो लिए थे कि संजु को वो अपना दामाद बनाएगी। पर अब ये बात कहकर वो सुधा का दिल भी न दुखाना चाहती थी। उसने बिना कुछ कहे बस सुधा को गले लगाकर अपने साथ का आश्वासन दिया। उसे तो यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी बेटी ऋतु इतने दिनों से यह बात जानते हुए भी संजु का इस तरह से साथ दे रही थी। उसे अपनी बेटी पर थोड़ा गर्व भी मसहूस हुआ।
“अच्छा सुधा मैं चलती हूँ। ये लड्डू संजु को जरूर दे देना। उसको पसंद आएंगे।”, नलिनी ने किसी तरह हिम्मत कर कुछ कहा और फिर वो उठकर सुधा से गले लगकर अपने घर चली गई। नलिनी के चेहरे पर एक उदासी साफ दिख रही थी जिसे देखकर सुधा को भरोसा हो गया था कि नलिनी इस परिस्थिति में उसका साथ जरूर देगी।
वहीं दूसरी ओर संजु और ऋतु संजु के कमरे में बैठे खुशी से बातें कर रहे थे। ऋतु संजु के कान के झुमके देखकर उन्हे छूकर खुश हो रही थी। और फिर जब संजु ने उसे बताया कि इस साल से स्कूल में वो लड़की के रूप में आएगा तो जैसे ऋतु की खुशी सांतवे आसमान पर पहुँच गई थी।
“अब से तू और मैं एक ही बेंच पर क्लास में साथ बैठा करेंगे!”, ऋतु चहकते हुए बोली तो संजु के चेहरे पर भी मुस्कान छा गई।
“ऋतु पर स्कूल शुरू होने के पहले तू मुझे सब कुछ सिखाएगी न कि मुझे कैसे बातें करनी है और कैसे रहना है? मुझे थोड़ी घबराहट हो रही है कि मैं ये सब कैसे करूंगी”, संजु ने पूछा। आखिर में संजु ने ऋतु के सामने लड़कियों की तरह बोलने की हिम्मत कर ही ली थी।
“ओ मेरी सहेली संजु! तू वैसे ही इतनी क्यूट लग रही है न कि तुझे कुछ सीखाने की भी जरूरत नहीं है। फिर भी I promise मैं तेरे साथ हमेशा रहूँगी। तुझे घबराने की कोई जरूरत नहीं है।”, ऋतु ने कहा।
“मैं तो सोचकर ही इतनी खुश हूँ अब हम दोनों हमेशा साथ रहेंगे और खूब बातें करेंगे। स्कूल साथ में आएंगे जाएंगे। और गॉसिप भी करेंगे!”, ऋतु ने आगे कहा।
“बातें करने और घूमने फिरने तक तो ठीक है ऋतु। पर मैं गॉसिप नहीं करने वाली!”, संजु ने कहा।
“अरे वो भी मैं तुझे सीखा दूँगी! हा हा …”, और फिर ऋतु हंस पड़ी।
संजु भी ऋतु की ओर देखने लगा और सोचने लगा कि न जाने ये सब कैसे इतना आसान हो गया है। यदि उसने खुद को पहले ही लड़की के रूप में स्वीकार कर लिया होता तो ये सब क्या पहले ही न सुलझ गया होता? पर क्या ये इतना आसान होता है किसी के लिए लड़के से लड़की बनकर बाहर की दुनिया में जाना? क्या बाकी दुनिया भी संजु को ऋतु की तरह खुले दिल से स्वीकारेगी?
स्कूल शुरू होने में अब लगभग एक महीने का समय बचा था। अपने नए रूप में ढलने के लिए संजु के पास ज्यादा समय न था। अब सुधा ने भी धीरे धीरे मोहल्ले में जान पहचान के लोगों को संजु के बारे में बताना शुरू कर दिया था। कुछ थे जो समझने की कोशिश करते थे और कुछ ऐसे भी थे जो सामने तो मान लेते थे पर पीठ पीछे मज़ाक भी उड़ाते थे। वही सुधा के कहने पर अब ऋतु संजु को लेकर मोहल्ले में बाहर निकला करती थी। आसपास की दुकानों से कुछ सामान लेना होता तो अब सुधा संजु को ऋतु के साथ ही भेजती थी ताकि इससे एक तरफ संजु भी उस दुकान तक सहज होकर जा सके और वो दुकानदार भी अब संजु को नए रूप में देखकर समय के साथ सहज हो जाए। चाहे जो भी हो ऋतु एक तेज तर्रार लड़की थी इसलिए उसे जब भी ऐसा कुछ लगता कि कोई संजु पर हँस रहा है तो वो खरी खोटी सुनाने मे पीछे न रहती। शायद इसलिए कालोनी के जो बच्चे संजु का मज़ाक उड़ाने की सोचते तो वो भी ऋतु को देखकर चुप रह जाते। जब ऋतु दूसरों से लड़ती थी तो संजु बेहद शर्मसार भी महसूस करता था और सोचता था कि बस किसी तरह वहाँ से वो ऋतु को लेकर निकल जाए पर ऋतु इतनी आसानी से किसी को छोड़ती न थी।
कई बार यदि कोई कमेन्ट करता तो संजु उसे अनदेखा कर देता। चाहे जो भी हो, संजु इतना स्ट्रॉंग तो था कि ऐसे ही किसी की राह चलते कुछ कहने से उसे फर्क न पड़े। पर दिल तो कई बार दुखता भी था। लेकिन धीरे धीरे वो सीख रहा था इन बातों को अनदेखा कर हँसते हुए आगे बढ़ जाने की कला को। लेकिन संजु कुछ मामलों में बड़ा भाग्यशाली भी था। उसका रूप काया हाव भाव और बोलने की आवाज और तरीका अब पूरी तरह लड़कियों वाली थी। इसलिए जब वो और ऋतु किसी ऐसी जगह जाते जहां कोई जान पहचान का न हो तब किसी को पता भी न चलता कि ये लड़की लड़की नहीं बल्कि जन्म से लड़का है। इसलिए कॉलोनी से बाहर जाना ज्यादा आसान था इन दोनों सहेलियों के लिए।
और देखते ही देखते छुट्टी का आखिरी दिन भी आ गया। ऋतु और संजु दोनों ही निश्चिंत थे। दोनों को ही लगने लगा था कि अब संजु को किसी भी तरह की कोई परेशानी न होगी। पर उन्हे क्या पता था कि स्कूल में क्या होने वाला था। अब अगले दिन से स्कूल शुरू होने वाला था जहां संजु की असली परीक्षा शुरू होने वाली थी।

उस रात को सोने से पहले सुधा ने संजु को अपने कमरे में बुलाया और अपनी प्यारी बेटी के चेहरे पर हाथ फेरकर पूछा, “बेटा, तू कल स्कूल जाने को तैयार है न?”
“हाँ, माँ। अब ऋतु मेरे साथ रहेगी तो मुझे किसी बात का डर नहीं है।”, संजु ने अपनी चोटी को पकड़ते हुए कहा।
“अच्छी बात है। फिर भी यदि कोई प्रॉब्लम होगी तो प्रिन्सपल मैडम से जरूर बोलना। ठीक है?”
“हाँ, माँ।”, संजु ने कहा।
“अच्छा सुन। कल सुबह अपनी यूनिफॉर्म पहनने के बाद मेरे कमरे में आ जाना। मैं तेरी चोटी बना दूँगी।”
“माँ मैं चोटी बनाना तो जानती हूँ!”, संजु ने कहा।
“पगली तुझे एक चोटी बनाना है। मैं तो तेरी दो चोटियाँ बनाऊँगी बिल्कुल वैसे ही जैसे मैं स्कूल में बनाकर जाया करती थी रिबन बांध कर।”, सुधा मुस्कुराई।
किसी और बेटे बेटी की तरह संजु के लिए भी ये सोचना मुश्किल था कि उसकी माँ भी कभी स्कूल में स्टूडेंट रही होगी।
“हाँ एक चीज और …”, सुधा ने कहा और फिर अपनी अलमारी से कुछ हाथ में लेकर आते हुए बोली, “मैं ये तेरे लिए नई ब्रा लेकर आई हूँ .. तेरी यूनिफॉर्म के साथ इसे ही पहनना।”
और सुधा ने संजु के हाथ में ३-४ कॉटन की सफेद ब्रा दी जो उसकी यूनिफॉर्म के रंग के अनुरूप थी। उन्हे देखते ही संजु ने कहा, “माँ! कितनी डल है ये देखने में! मैं नहीं पहनूँगी इतनी बोरिंग ब्रा!”
“स्कूल में तुझे फैशन करने नहीं जाना है। पढ़ने के लिए जाना है, समझी?”, सुधा ने थोड़ी तेज आवाज में कहा।
एक जैसे दिखने वाली ब्रा को देखकर संजु को समझ आया कि जब ऋतु कहा करती थी कि संजु लकी है जो उसकी मम्मी उसे अच्छी ब्रा देती है पहनने को तब ऋतु का क्या मतलब था। संजु का मन तो विद्रोह कर रहा था कि आखिर स्कूल यूनिफॉर्म में इतनी बोरिंग ब्रा पहनने की क्या जरूरत है। पर माँ से बहस करना भी ठीक नहीं था। आखिर में उसे माँ की ही बात माननी पड़ती।
तभी संजु के पापा का फोन आ गया। उन्होंने खास फोन किया था संजु से बात करने के लिए ताकि वो संजु का हौसला बढ़ा सके। जब से संजु उनसे बेटी बनकर बात करने लगा था तबसे वो अपने पापा से दिल खोलकर बात करने लगा था और अब तो अपनी मम्मी की शिकायत करने से भी नहीं चुकता था। बाप-बेटी का प्यार भरा रिश्ता बन चला था ये। अपने पापा से बात करने के बाद संजु का आत्म-विश्वास और बढ़ गया था क्योंकि वो जिस तरह से संजु को अपनी बेटी कहकर पुकारते और फिर बताते कि उन्हे संजु पर कितना गर्व है, संजु के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता था। अब तो पापा से भी बात हो गई थी तो अब संजु को कोई घबराने की बात ही न लगी। और अपनी माँ से गुड नाइट कह कर अपने कमरे में सोने आ गया।
लेकिन ये डर कब कहाँ से आ जाता है पता भी नहीं चलता। नाइटी पहनकर संजु अपने बिस्तर पर सोने ही आया था कि उसके दिल में घबराहट उठ खड़ी हुई। कुछ देर पहले तक तो वो ठीक था पर अब स्कूल में सब दोस्तों के बीच लड़की के रूप में जाने के बारे में सोचकर उसके दिल में घबराहट हो रही थी। लेकिन कोई और रास्ता भी तो न था संजु के पास। चाहे वो खुद को कितना भी समझाता पर उस रात संजु की आँखों से नींद गायब हो गई थी। न जाने स्कूल में अगले दिन क्या होने वाला था।
अगली सुबह स्कूल में एक हलचल मची हुई थी। असेंबली के पहले संजु की क्लास के लड़के झुंड बनाकर झांक झांक कर देख रहे थे कि आखिर ये नई लड़की कौन आई है क्लास में जो ऋतु के साथ थी? दिखने में बाकी लड़कियों से ज्यादा लंबी भी थी और शायद इस वजह से आकर्षक भी। एक नई स्टूडेंट की झिझक भी थी उस लड़की में पर वो ऋतु के साथ हंसकर ऐसे बात भी करती थी जैसे उसे न जाने कब से जानती हो।
“वाओ … क्या लंबी और सेक्सी लड़की है यार!”, एक लड़के ने कहा।
“रुक मुझे भी देखने दे यार। कौन है यह? नाम पता चला इसका?”, दूसरे ने पूछा।
“नाम का तो पता नहीं पर माल लग रही है एक दम।”, पहले ने कहा।
“सच में ये अपनी चोटी खोल अपने बालों को लहरा दे न तो बस कहर बरपा देगी सब पर।”, तीसरे लड़के ने कहा।
इसी झुंड में हो रही कूद फांद में एक लड़का और आया जो थोड़े दादा किस्म के होते है। वो लड़का कोई और नहीं राहुल था जो कई लड़कों को अपना चमचा बनाकर रखता था। ऋतु के साथ उस नई लड़की को देखकर और फिर उस लड़की को देखते हुए लड़कों को देखकर उसने सबके बीच में आकर कहा, “लड़की तो माल है पर तुम लोग उसे देखना बंद करो। इस लड़की को तो मैं ही पटाऊँगा।” राहुल की दादागिरी चल रही थी पर शायद सब पर उसकी बातों का असर नहीं होता था तभी तो एक लड़के ने कहा, “हाँ, जैसे तूने ऋतु को पटाया था। हा हा ”
“क्या बोला बे …?”, राहुल लड़ने को उतारू था पर उसके चमचों ने उसे रोक लिया।
इन सब लड़कों से अलग एक शरीफ लड़का भी था वहाँ पर। जिसका नाम था अखिल। हाँ, ये संजु का वही दोस्त था जिसकी मम्मी उसे समझाती थी कि ये उम्र प्यार करने की नहीं पढ़ने लिखने की है। अखिल का क्लास में सिर्फ एक ही दोस्त था वो भी संजु। और वो संजु का ही इंतज़ार कर रहा था पर उसे संजु कहीं दिखाई न दिया।
यूं तो वो कभी लड़कियों की तरफ ध्यान नहीं देता पर उस लंबी लड़की पर उसकी नजर चली ही गई। और उसे देखते ही अखिल को लगा कि ये तो कुछ कुछ संजु की तरह ही दिखती है। जहां दूसरे लड़के उस लड़की को देखने को उतावले थे वहाँ जाकर अखिल ने कहा, “मुझे तो लगता है कि ये संजु के कोई चचेरी बहन है। तुम लोग उसको ऐसे मत देखो। संजु आएगा और तुम्हें ऐसे करते देखेगा तो तुम सबके लिए अच्छा नहीं होगा बता रहा हूँ मैं …”
“ओह तो ये संजु की बहन है। फिर तो इसको पटाना ही पड़ेगा।”, राहुल ने अखिल के पास आकर कहा और फिर उसकी कॉलर पकड़ कर बोला, “अखिल तू चुपचाप अपनी जगह पर जा अपने संजु के साथ। यहाँ टांग अड़ाने की कोई जरूरत नहीं है।”
अखिल लड़ने वालों लड़कों में से न था इसलिए वो चुपचाप अपनी जगह चला गया। फिर जब वहाँ क्लास टीचर आ गई तो सभी अपनी जगह पर पहुँच गए। वो नई लड़की भी ऋतु के साथ आकर अपनी जगह खड़ी हो गई। पर अखिल के बगल की जगह अब भी खाली थी।
जल्दी ही सुबह की प्रैअर हुई और फिर सब अपनी अपनी बेंच में बैठ गए। सारे लड़के अब उतावले थे कि उनकी क्लास टीचर अब नई स्टूडेंट का परिचय कराएगी पर ऐसा कुछ होता उसके पहले ही क्लास में प्रिंसिपल मैडम आ गई। पूरा स्कूल उनसे डरता था इसलिए सब क्लास में चुप बैठे रहे। और फिर वो हुआ जिसका इन लड़कों को अंदाजा भी न था।
प्रिंसिपल मैडम ने खुद क्लास को संजु के बारे में बताया और कहा कि सभी संजु का वेलकम करे। और साथ ही चेतावनी भी दी कि यदि किसी ने संजु के साथ बदतमीजी की तो उसको सजा मिलेगी। जिस लड़की को अब तक सभी लड़के माल लड़की कह रहे थे वो उनका अपना संजु था ये सुनकर तो लोगों के होश उड़ गए। पर इनके बीच कोई हंस भी रहा था जिसने राहुल को पीछे से कहा, “जा पटा ले तू अपनी आइटम को!”
राहुल के चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था। वहीं अखिल भी दूसरी ओर राहुल पर हंस रहा था। मौका देखते ही अखिल ने संजु की ओर हाथ दिखा कर उसे इशारों से हाय किया तो संजु ने भी हल्की सी मुस्कान के साथ उसे हाय किया। उस खूबसूरत स्माइल और चेहरे को देखकर न जाने क्यों अखिल की धड़कने तेज हो गई। वो समझ न सका कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। बेचारे अखिल के पास किसी लड़की से बात करने का अनुभव जो न था।
प्रिंसिपल मैडम के जाने के बाद क्लास शुरू हुई। इस समय सभी संजु के बारे में बातें करना चाहते थे पर क्लास टीचर के रहते ये संभव न था। फिर जैसे ही पीरीअड खत्म हुआ तो मौका मिलते ही दो लड़कियां संजु के पास आकर बोली, “हाय संजु! Welcome to girl’s gang! अब से तुम हमारी सहेली हो और तुम्हें कोई कुछ भी बुरा कहे तो उसे हमसे लड़ना पड़ेगा।”
और देखते ही देखते सारी लड़कियां संजु के पास आकर उसे गले लगाकर उसका स्वागत करने लगी। कोई माने न माने, ये सच है कि लड़कियों में ज्यादा अपनापन होता है और वो लड़कों के मुकाबले थोड़ी खुले दिल की होती है। नहीं ऐसा नहीं है कि लड़कों में कोई दोष है बल्कि दोष तो परवरिश में है जहां लड़कियों को खुले दिल की बनाने में जोर दिया जाता है वहीं लड़कों को उलटी पट्टी पढ़ाई जाती है। क्लास की सभी लड़कियों से इतना अपनापन पाकर संजु का दिल भाव-विभोर हो उठा और उसके दिल में खुशी भर उठी। ये देखकर ऋतु भी खुशी से भर उठी। और उसने भी संजु को गले लगाकर कहा, “मैं कहती थी न कि तुझे घबराने की जरूरत नहीं है। हम सब तेरी फ्रेंड्स है!”
पर सब कुछ इतना आसान तो नहीं हो सकता था। आखिर राहुल जिसकी संजु से बनती न थी वो कहाँ चुप रहने वाला था। और फिर अपनी बेंच से उठकर वो संजु के पास आकर बोला, “तो ये है संजु का असली सच … तभी मैं सोचता था कि ऋतु तुझसे इतना बातें कैसे करती थी। क्योंकि ऋतु तेरी गर्लफ्रेंड नहीं बल्कि तू ऋतु की सहेली थी …”
संजु इससे पहले की राहुल को कोई जवाब देता उसके पहले ही उन दोनों के बीच ऋतु आ गई और बोली, “राहुल भैया, ये सच है कि मैं संजु की सहेली हूँ। पर ये भी सच है कि मैं संजु की गर्लफ्रेंड पहले भी थी और आज भी हूँ। भैया .. अब आप प्लीज अपनी जगह पर जाओ। इस क्लास में किसी भी लड़की पर आपकी दाल नहीं गलने वाली है।”
ऋतु की बात सुनकर क्लास की सभी लड़कियां हँसने लगी तो खीजते हुए राहुल अपनी जगह पर चला गया। उसके मन में जैसे संजु और ऋतु से बदला लेनी की भावना जाग गई थी। लंच टाइम होते तक राहुल अपने मन में कुछ न कुछ प्लान बना रहा था पर फिर भी उसे कोई तरीका न सुझा जिससे वो अपना बदला ले सके।
क्योंकि संजु क्लास में सबसे होशियार था इसलिए क्लास के दूसरे लड़कों से उसकी कोई अनबन नहीं थी बल्कि लड़के उसकी रीस्पेक्ट करते थे और उससे पढ़ने और होमवर्क में क्लास में हेल्प भी लेते थे। शायद ये एक कारण था कि अधिकांश लड़कों ने संजु को कुछ न कहा या फिर बस हैलो कहा। आखिर उन्हे होमवर्क में संजु की सहायता कई बार लेनी पड़ती थी।
अब सिर्फ एक राहुल था जिसे संजु से परेशानी थी।
लंच टाइम में लड़के अपने टिफ़िन और क्रिकेट बैट बॉल लेकर बाहर चल दिए वहीं संजु क्लास की लड़कियों के साथ क्लास में ही था। ऋतु के साथ पूरा समय बीताकर वो मन ही मन खुश था और जैसे ऋतु ने राहुल को जवाब दिया था, संजु के दिल में बस प्यार भर गया था।
संजु ने टिफ़िन निकाला ही था कि क्लास की एक लड़की नमिता उसके पास आकर बोली, “हाय संजु! यार अब तू हमारे साथ है तो अब तो तू हम लोगों को लड़कों के सीक्रेट्स भी बता सकती है। तू बताएगी न?”
नमिता की बात सुनकर संजु मुस्कुराकर बोला, “जरूर बताऊँगी नमिता। पर लड़कों के सीक्रेट्स जानने के बाद तुझे किसी लड़के से कभी प्यार नहीं हो पाएगा। हा हा ” और संजु की बात सुनकर सभी हंस पड़ी। सच में संजु के लिए ये दिन तो उसने जितना सोचा था उससे कहीं बेहतर गुजर रहा था। वो तो व्यर्थ में ही रात भर चिंता कर रहा था। उसने एक बार पलट कर ऋतु की ओर देखा और मन ही मन सोचा, “जब तक ऋतु मेरी लाइफ में है … मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है।” और उसे न जाने क्या सूझी उसने ऋतु को गले लगा लिया। जब संजु क्लास में लड़का बनकर था तब वो ऐसा नहीं कर सकता था पर अब उसे ऋतु को गले लगाने से कोई नहीं रोक सकता था। शायद ऋतु भी संजु के मन की भावनाओं को समझ गई थी इसलिए उसने भी प्यार से संजु को गले लगा लिया।
पर अभी ड्रामा खतम नहीं हुआ था। क्लास के बाहर लड़के अपना लंच खत्म करने के बाद क्रिकेट खेलने की तैयारी कर रहे थे। आज लंच ब्रेक के बाद २ पीरीअड स्पोर्ट्स के थे तो आज उनके पास पूरे २०-२० ओवर खेलने का समय था। पर परेशानी ये थी कि खेलने वाले २१ लड़के थे जिनको २ टीम में बांटना संभव नहीं था। सभी आपस में बात कर ही रहे थे कि अखिल ने कहा, “हम संजु को बुला लेते है। वो अच्छा प्लेयर भी है। फिर टीम बराबर भी बंट जाएगी।”
“मैं *** के साथ नहीं खेलूँगा।”, राहुल ने अखिल की बात कांटते हुए एक बुरे शब्द का उपयोग किया तो उसके चमचे हंस पड़े। लेकिन कुछ लड़के अखिल से सहमत थे। तो राहुल ने कहा, “तुमको उसे अपनी टीम में रखना हो तो रख लो। वो मेरी टीम में नहीं रहेगी।”
सहमति बनते ही अखिल दौड़े दौड़े संजु की ओर भागा और उसके पीछे पीछे राहुल का एक दोस्त प्रतीक भी दौड़ा दौड़ा वहाँ पहुँच गया।
“यार संजु तू क्रिकेट खेलेगी? एक प्लेयर कम पड़ रहा है।”, अखिल ने हांफते हुए संजु से पूछा। अपने अच्छे दोस्त को इस तरह लड़की के रूप में देखकर अखिल थोड़ा असहज मसहूस कर रहा था फिर भी वो उसे छिपा रहा था।
“पर अखिल … इस यूनिफॉर्म में क्रिकेट?”, संजु का मन तो था पर ये सलवार कुर्ती, चुन्नी और जूतियों के साथ कैसे खेलता वो क्रिकेट?
“राहुल ने कहा ही था कि ये चुन्नी संभालेगी या बैट? अखिल तूने यूंही दौड़ा दिया। क्रिकेट खेलना इसके बस की बात नहीं है।”, प्रतीक ने संजु का मज़ाक उड़ाना चाहा।
“प्रतीक … तू जाकर राहुल से बोल दे कि संजु आ रहा है क्रिकेट खेलने। तुम लोग टीम तैयार रखो।”, संजु के साथ खड़ी ऋतु ने तमककर कहा।
“ठीक है। तुझे संजु की इन्सल्ट करानी है तो तेरी मर्जी। मैं टीम तैयार कराता हूँ।”, प्रतीक ने कहा, “चल अखिल।”
“संजु जल्दी आ जाना। प्लीज।”, अखिल ने संजु से कहा।
उन दोनों के जाने के बाद संजु ने ऋतु की ओर देखा और कहा, “यार ऋतु … इस यूनिफॉर्म में मैं कभी दौड़ी तक नहीं हूँ, क्रिकेट कैसे खेलूँगी?”
“जैसे हमेशा खेलती थी। चल अब रेडी हो जा। आज उस राहुल को जवाब देने का टाइम आ गया है। उसे भी दिखाते है कि संजु क्या कर सकती है।”
कहना आसान होता है। पर करना मुश्किल। टीम का बंटवारा हो चुका था और संजु जिस टीम में था उसकी फील्डिंग की पहली बारी थी। संजु काफी नर्वस था। एक तरफ तो चुन्नी, और फिर ये दो लहराती चोटियाँ, और तो और उसकी जूतियों में वैसा ग्रिप नहीं था जैसा लड़कों के जूतों में हुआ करता था।
फील्ड के समय जब संजु की ओर बॉल आती तो संजु के लिए मैदान में दौड़ना आसान नहीं होता था। और फिर जब बॉल पकड़ने के लिए झुकना पड़ता तब चुन्नी सामने आ जाती या फिर चोटीयाँ। काश उसने एक चोटी की होती तो कुछ आसानी होती। वैसे तो चुन्नी कंधे पर पिन की हुई थी पर पीछे से लटकती चुन्नी संजु को परेशान कर रही थी। संजु की टीम का कैप्टन निलेश ये सब देख रहा था और मन ही मन वो चिढ़ रहा था कि संजु इतनी खराब फील्ड तो नहीं करता था। इसलिए उसने संजु को ऐसी जगह लगाया जहां बॉल कम जाती थी।
मैदान में अब तक ऋतु भी आ गई थी। उसने संजु को इस तरह संघर्ष करते देखा तो वो उसके पास आई और उसकी चुन्नी में पीछे से गांठ बांधते हुए बोली, “किचन में तो तू चुन्नी को पीछे बांधना नहीं भूलती, अब मैदान में क्यों ऐसे खुली रखी है?” ऋतु थोड़ी गुस्से में लग रही थी। और फिर ऋतु ने संजु की दोनों चोटियों को खोलना शुरू किया तो राहुल ने उनकी ओर देखकर कहा, “ओ लड़कियों, यदि तुम लोगों को चोटी चोटी खेलना है तो कहीं और जाओ।” और वो जोर से बाकी सबके साथ हँसने लगा।
ऋतु का गुस्सा और बढ़ गया और उसने संजु की दोनों चोटियों को खोलकर एक पोनीटेल बनाई और उसमे अपने रबर बैंड लगा दिया। “अब एक भी रन फील्डिंग में छूटना नहीं चाहिए।”, ऋतु ने संजु को डांटते हुए कहा।
पोनीटेल और चुन्नी की गांठ से संजु को कुछ आसानी तो हो रही थी पर फिर भी जूतियों के साथ दौड़ना मुश्किल पड़ रहा था। ये देखकर बैटिंग करने वाले भी जान बूझकर शॉट संजु की ओर ही मारते। अब मैदान में बाकी लड़कियां भी संजु को चीयर करने आ गई थी। शायद इसलिए धीरे धीरे संजु का विश्वास बढ़ने लगा और वो अब थोड़ी ज्यादा फुर्ती से फील्डिंग करने लगा था। लेकिन उसकी फुर्ती जब तक आई तब तक सामने वाली टीम ने २० ओवर में काफी बड़ा स्कोर खड़ा कर लिया था।
संजु की टीम के लोगों को लगने लगा था कि १५-२० अधिक रन तो संजु की स्लो फील्डिंग की वजह से बने।
अब जब बैटिंग की बारी आई तो टीम के कैप्टन निलेश ने अपने अच्छे बैट्समैन को भेजना शुरू किया। टीम की रन बनाने की गति तो अच्छी थी पर साथ ही साथ विकेट भी गिर रहे थे। मैच लगभग बराबरी पर ही चल रहा था। क्योंकि संजु बैटिंग अच्छी करता था इसलिए अक्सर दूसरे या तीसरे नंबर पर आया करता था। लेकिन आज निलेश संजु को मौका ही नहीं दे रहा था। कैप्टन निलेश को संजु पर भरोसा न था कि वो रन लेने के लिए दौड़ सकेगा। और इस चक्कर में कहीं दूसरे बैट्समैन रन आउट न हो जाए। संजु बस विवश होकर अपनी बैटिंग का इंतज़ार करता रहा और उसके सामने उससे कमजोर खेलने वाले प्लेयर आगे जाकर बैटिंग करते रहे और आउट होते रहे।
इस बराबरी के मैच में निलेश वाकई में एक कप्तानी वाली पारी खेल रहा था। उसी की वजह से लग रहा था कि टीम अब मैच जीत ही जाएगी। जीतने के लिए ५ रन चाहिए थे। इस ओवर की आखिरी बॉल थी और इसके बाद एक आखिरी ओवर राहुल की बोलिंग का बचा हुआ था। क्योंकि राहुल बहुत अच्छी फास्ट बोलिंग करता था और दूसरे छोर पर कमजोर बैट्समैन था इसलिए इस समय निलेश को इस आखिरी बॉल में एक रन लेकर अपनी स्ट्राइक बचाना था। और ऐसे समय में जब दबाव हो तब क्या होता है? निलेश रन आउट!
अब तो मैच लगभग खत्म ही हो चुका था। अब चाहे संजु जाए या आखिर कमजोर बैट्समैन, टीम तो अब हार ही चुकी थी। अखिल के काफी कहने के बाद निलेश ने आखिर संजु को बैटिंग करने के लिए मैदान में भेज दिया।
अब सामने राहुल और बैटिंग पर था संजु। संजु के मैदान पर आते ही सारी लड़कियां एक बार फिर संजु संजु कहकर उसका प्रोत्साहन करने लगी। संजु ने एक बार फिर अपनी चुन्नी की गांठ को बांध कर पीछे किया। संजु अच्छी तरह जानता था कि ५ रन वो दौड़कर तो नहीं बना सकेगा और दूसरे बैट्समैन को स्ट्राइक देने का मतलब गेम ओवर क्योंकि दूसरी ओर बहुत ही कमजोर प्लेयर था। और फिर इन जूतियों के साथ तो संजु दौड़ भी नहीं सकता था।
राहुल के पास अब संजु से बदला लेने का सही मौका था।
“अब इस बेचारी लड़की को मैं कैसे कठिन बॉल दूँ? बेचारी अपनी चोटी तक तो संभाल नहीं सकती। चलो मैं इसे लालीपाप बॉल देता हूँ। “, राहुल ने कहा तो सारे फील्डर हंस पड़े।
मगर राहुल कोई मौका संजु को नहीं देना चाहता था इसलिए उसने अपनी सबसे फास्ट और कठिन बॉल डाली जिसे संजु सिर्फ प्लेट कर स्टम्प में लगने से रोक सका। दूसरी बॉल भी इसी तरह निकल गई। संजु शॉट तो लेना चाहता था पर वो कोई गलती भी नहीं करना चाहता था। इसी तरह तीसरी बॉल भी डॉट निकल गई तो सबने संजु से उम्मीद छोड़ दी। अब लड़कियों ने भी चीयर करना बंद कर दिया। संजु इस समय बहुत नर्वस था। उसने अपने चेहरे से पसीना पोंछ और अपनी पोनीटेल को अपने कंधे पर सामने लाकर एक बार फिर बॉल को हिट करने के लिए तैयार हो गया।
राहुल के ताने उसके मन में अभी भी गूंज रहे थे और उसे नर्वस भी महसूस हो रहा था पर इस बार संजु ने अपने एक पैर को आगे बढ़ाया और बैट को ऐसे घुमाया कि बॉल सीधे बाउन्ड्री पार। ४ रन! मैच के ड्रॉ होते ही टीम में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। राहुल के चेहरे पर जो गुस्सा आ गया था कि उसके मुंह से फील्डर के लिए गालियां निकल पड़ी जबकि उस फील्डर के लिए उस बाउन्ड्री को रोकना असंभव था।
अब दो बॉल में १ रन चाहिए था जीतने के लिए और राहुल को अच्छी तरह पता था कि संजु दौड़कर रन नहीं ले सकेगा। इसलिए उसने ऐसी बॉल डाली कि संजु बड़ा शॉट न खेल सके। और ये बात संजु भी समझ गया था। वो आखिरी बॉल तक खेलने का इंतज़ार नहीं कर सकता था। इसलिए संजु ने ऐसा शॉट खेला जिसमे सिंगल रन लिया जा सके। अब बस किसी तरह उसे दौड़कर दूसरी ओर पहुंचना था। उसने दौड़ने में अपनी पूरी जान लगा दी। फील्डर ने भी बॉल पकड़कर संजु को रन आउट करने के लिए बॉल को फेंका। पर संजु आज रुकने नहीं वाली थी। जिस कॉटन ब्रा को वो पसंद नहीं कर रही थी आज वही ब्रा उसे इतना सपोर्ट दे रही थी कि दौड़ते हुए उसके स्तन अपनी जगह से जरा भी न हिले और न उसकी दौड़ में बाधा बनें। संजु की जूतियाँ जरूर उसके लिए मुश्किल पैदा कर रही थी पर आज वो भी संजु को रोक नहीं सकती थी। और फिर संजु ने अपनी एक आखिरी छलांग ऐसी लगाई कि वो पूरी तरह से क्रीज़ की दूसरी ओर गिर पड़ी। गिरते ही उसके स्तन ज़ोरों से मैदान में दब गए, धूल उसके चेहरे पर उड़ पड़ी, उसकी कुर्ती मैदान में रगड़ कर मैली हो गई। आखिर संजु ने अपना विजयी रन ले ही लिया।
और देखते ही देखते उसकी टीम के खिलाड़ी दौड़े चले आए और सबने संजु को अपने कंधों पर उठा लिया। क्लास की सभी लड़कियां भी तुरंत संजु के पास आ गई। और चारों तरफ “संजु संजु” के नारे लग उठे।
राहुल को तो जैसे समझ ही नहीं आया कि यह कैसे हुआ। उसने जरा भी उम्मीद न किया था कि संजु इस तरह दौड़ कर रन लेगी। राहुल से संजु के हाथों अपनी हार बर्दाश्त नहीं हुई। शायद इसलिए वो गालियां देते हुए वहाँ से जाने लगा तो संजु ने उसे दूर से आवाज दी, “राहुल ….”, फिर वो रुककर बोली, “मैं लड़की हूँ … कमजोर नहीं”
आज संजु ने जो किया उससे उसकी क्लास की सभी लड़कियां उसकी फैन हो गई। अब स्पोर्ट्स पीरीअड भी खत्म हो रहा था तो सभी लड़कियां अपने हीरो संजु को घेर कर उसके साथ ही क्लास पहुंची। क्लास में जब संजु अपनी बेंच पर जाकर बैठा तब अखिल ने वहाँ आकर उससे कहा, “संजु तूने कमाल कर दिया यार। Well played!”, और फिर शरमाते हुए संजु से बोला, “संजु I think I have started liking you.”
अखिल की बात सुनकर संजु ने एक मुस्कुराहट के साथ प्यार से अखिल के गालों को छूकर बोली, “अखिल भूल गया तेरी मम्मी क्या बोलती है? ये उम्र पढ़ने लिखने की है.. लड़कियों को लाइक करने के लिए तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है.”
संजु की मुस्कान भरी यह तस्वीर जैसे अखिल के दिल में बस गई। पर साथ ही अखिल उस लड़की में अपने दोस्त संजु को ढूंढ रहा था। कहीं न कहीं अखिल के मन में एक दुख भी था कि संजु, उसका इकलौता दोस्त, अब उसके साथ नहीं बैठता है। अखिल ने अपनी बेंच पर वापस आकर अपनी बगल की खाली सीट की ओर देखा और फिर एक बार संजु की ओर देखा जो क्लास की बाकी लड़कियों के साथ खुशी से बात कर रही थी।
स्कूल के बाद तो साइकिल से घर जाते वक्त आज जैसे ऋतु की बातें करने की कोई सीमा ही नहीं थी। वो इतनी ज्यादा खुश थी और संजु को बता रही थी कि कैसे राहुल का चेहरा आज उतरा हुआ था और कैसे ऋतु को आज संजु पर गर्व है। ऋतु बातें करती जा रही थी और संजु सिर्फ मुसकुराता हुआ ऋतु की ओर देखता हुआ साइकिल चला रहा था। मन ही मन संजु सोच रहा था कि सच में वो कितना भाग्यशाली है कि उसे ऋतु जैसी दोस्त मिली जो उसे हर कदम पर सपोर्ट करती है। संजु की आँखों में साफ दिख रहा था कि उसकी नज़रों में दुनिया की सबसे सुंदर लड़की कौन है। यदि ऋतु इतनी बातें न कर रही होती तो संजु जरूर ऋतु से एक बार फिर आज अपने प्यार का इजहार करता। और फिर ऋतु की बातें सुनते हुए संजु को पता भी न चला कि कब घर आ गया।
घर पहुँचने पर जब सुधा ने संजु की कुर्ती धूल से सनी हुई दिखी तो सुधा पूछ पड़ी, “ये कुर्ती इतनी गंदी कैसे हो गई?”
“क्रिकेट खेलकर माँ!”, संजु ने चहकते हुए जवाब दिया।
“क्रिकेट? अभी भी?”, सुधा ने आश्चर्य से संजु की ओर देखा। पर मन ही मन खुश भी हुई।
जिस तरह से संजु निश्चिंत भाव से अपने कमरे की ओर बढ़ चला था, संजु के बिना कुछ कहे ही सुधा को विश्वास हो गया था कि संजु अपने जीवन की इस कठिन परीक्षा में भी सफल होगा।
क्रमश:
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