ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग १२: मैं कौन हूँ?
आप सभी ने जो संजु की इस कहानी को प्यार दिया उसके लिए मैं शब्दों मे कह नहीं सकती कि मैं कितनी आभारी हूँ। इतने प्यार के बाद भी मैंने आप सभी को इतना लंबा इंतज़ार कराया इसलिए क्षमा भी मांगती हूँ। कुछ दिनों पहले प्रकाशित झलक को आगे बढ़ाते हुए इस कहानी के इस भाग में मैंने ९००० से अधिक शब्दों में संजु की भावनाओं को उकेरने का प्रयास किया है। यदि कोई कमी रह जाए तो क्षमा करिएगा और जरूर बताइएगा कि मैं उसमे सुधार कैसे कर सकती हूँ।
समय का पहिया निरंतर घूम रहा था। स्कूल और फिर स्कूल की परीक्षा के बाद गर्मी की छुट्टी भी आ चूकी थी। जैसे जैसे समय बदलता है, मनुष्य भी उसके साथ साथ बदलता चला जाता है। चाहे जितनी भी मुश्किलें आए, समय के साथ बदलने मे मनुष्य निपुण होता है तभी तो इतने सालों से मनुष्य आगे ही बढ़ता रहा है। और ऐसे ही संजु भी तो आगे बढ़ रहा था।
संजु का शरीर भीतर से आम लड़के लड़कियों से कुछ अलग तो था पर फिर भी उसकी उम्र के दूसरे लड़कों की ही तरह आखिर मे उसके अंदर छिपे Y क्रोमज़ोम ने रंग दिखाना शुरू कर दिया था। पीछले ५-६ महीनों मे संजु का कद तेजी से बढ़ने लगा था। जैसे कल की ही बात थी जब उसके क्लास की लड़कियां क्लास के अधिकांश लड़कों से लंबी हो चुकी थी और उनका शरीर अलग अलग जगहों पर विकसित होकर उन्हे आकर्षक युवतियों मे बदल रहा था। लड़के कहीं पीछे छूटे हुए से मालूम होते थे। पर अब अचानक ही सभी के सभी लंबे होने लगे थे, किसी के होंठों के ऊपर हल्की हल्की सी मूँछें भी आने लगी थी तो किसी की आवाज बदल रही थी। इस युवक बनने की प्रक्रिया मे संजु भी तो था। अब संजु की हाइट ऋतु से ५-६ इंच ज्यादा हो चुकी थी।
फिर भी दूसरे लड़कों से अलग संजु के भीतर एक अतिरिक्त X क्रोमज़ोम भी तो था जो पिछले दो सालों से संजु मे धीरे धीरे बदलाव ला रहा था। शायद Y को इस तरह आगे बढ़ते देखकर X ईर्ष्या से भर गया था तभी तो स्कूल की परीक्षा के बाद से उसने भी जोर लगाना शुरू कर दिया था और संजु के तन को तेजी से बदलने लगा था।
लंबा होता हुआ संजु अब बेहद दुबला पतला लगने लगा था। अब खाना उसके शरीर के कुछ खास जगहों पर ज्यादा लग रहा था। अब जब रात को अपनी नाइटी पहनकर संजु सोते हुए करवट लेता तो उसके बढ़े हुए स्तन अपने भार से उसे अपने होने का आभास दिलाते। जिस ओर उसने करवट ली होती, उस तरफ का स्तन बिस्तर से लगकर उसकी बाँहों से लगकर उसे उनकी कोमलता का एहसास कराता। कुछ महीनों पहले तक उसके दोनों स्तनों के बीच काफी दूरी होती थी पर अब करवट लेने पर ऊपरी स्तन उसके नीचे के स्तन को छूने लगता। ये परिवर्तन पिछले कुछ महीनों मे धीरे धीरे हुआ था इसलिए संजु के लिए एक सामान्य सी बात थी। इसके साथ साथ संजु के निपल भी बड़े और गहरे रंग के हो चले थे। इतने बड़े कि अब तो उसकी नाइटी मे उनका आकर हमेशा उभर कर दिखता था। क्योंकि इस घर के बाहर उसकी सिर्फ एक दोस्त थी ऋतु शायद इसलिए वो मन ही मन अपनी तुलना ऋतु से ही करता। अब भी उसके स्तन ऋतु की तुलना मे थोड़े छोटे ही थे पर अब उनका आकार उतना बड़ा था जिससे संजु को खुद मे कोई कमी न लगे।
स्तनों को लेकर तो संजु पहले से ही अवगत था परंतु पिछले कुछ महीनों मे उसके कूल्हों मे जो बदलाव आया था उसके लिए बिल्कुल नया था। उसके कूल्हे इतने बढ़ चुके थे कि संजु की चाल मे भी बदलाव आने लगा था। संजु को यकीन हो चला था कि अब तो उसके स्कूल की लड़कों वाली यूनिफॉर्म की पेंट वो पहन ही नहीं सकेगा। वो तो अच्छा हुआ कि अब स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थी। स्कूल शुरू होने के पहले उसे नई पेंट सिलवानी होगी।
स्कूल की छुट्टियाँ लगना तो जैसे संजु के लिए एक वरदान था। अब जब वो सुबह उठता तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान होती थी। सुबह सुबह उठकर अब जब वो एक कमसिन युवती की भांति अंगड़ाई लेता और बिस्तर से उठता तो उसके मन मे स्कूल जाने को लेकर करने वाली तैयारियों कि चिंता न होती। अब खुशी से वो अपने बालों का जुड़ा बनाकर नहाने बाथरूम जाता जहां वो हल्के से अपनी नाइटी को उतारकर समेटते हुए एक ओर रखता। अपने बालों को भीगने से बचाते हुए अपने तन पर साबुन लगाता और अपने कोमल स्तनों को बड़े ही प्रेम से साबुन से साफ करता। अब तो नीचे झुकने पर उसे अपने पेट की जगह उसके खूबसूरत स्तन दिखते थे। एक ओर तो घर के बाहर की दुनिया उसे इशारा करती थी कि उसके तन पर यह उभार शोभा नहीं देते पर शायद संजु की माँ और ऋतु का सहारा था जो संजु अपने बिना चाहते हुए पाये हुए स्तनों मे खूबसूरती देख सकता था। भले उसे ये सब दुनिया से छिपाना होता था पर फिर भी उसे अपने सुडौल कोमल शरीर पर मन ही मन भान था।
शॉवर् से निकलते ही संजु अपने तन को तौलिए से नजाकत से पोंछता और फिर एक खूबसूरत सी ब्रा निकालकर पहनता। अब उसकी ब्रा उसके स्तनों का सहारा थी। पहले तो उसके स्तन बिना ब्रा के भी संभल जाते थे और अपनी जगह से हिलते न थे। पर अब ब्रा के कप मे भर कर उसके स्तनों का आकार और भी निखर आता। अब तो संजु को भी ब्रा की डिजाइन और रंगों से लगाव हो गया था। संजु को पता भी न लगा कि उसमे ये बदलाव कब और कैसे आया। जो संजु ब्रा की डिजाइन को देखना तक पसंद न करता था, वही संजु अब अपने खूबसूरत स्तनों को सुंदर सी ब्रा मे देखकर मन ही मन गर्व महसूस करता था। पर फिर भी ये बात वो अपने मन मे ही रखता। कभी कभी ऋतु उससे कहती थी कि संजु लकी है कि उसकी मम्मी उसको ऐसी ब्रा खरीद कर देती है पर संजु मन ही मन मुस्कुरा देता पर कभी अपना लगाव ऋतु के सामने न दर्शाता। आखिर जो भी हो, एक लड़का होने की वजह से एक दवन्द तो उसके मन मे हमेशा से ही था जो इतनी आसानी से खत्म न होने वाला था।
स्तनों के बाद अब बढ़े हुए कूल्हों की वजह से अब संजु को पेन्टी के आकार की महत्ता भी समझ मे आने लगी थी। उसकी पेन्टी भी तो उसके कूल्हों से ऐसे चिपक जाती जैसे उसकी त्वचा का ही हिस्सा हो। इन सबके बाद संजु एक सलवार कुर्ती निकालकर पहनता। पहले जो कुर्ती झट से उसके तन पर उतर जाती थी अब उसे पहनते वक्त उसके स्तन कुछ रुकावट भी लाते थे। और उसे बड़े ही ध्यान से संजु अपने स्तनों के ऊपर से पहनता। और फिर झट से एक चुन्नी उठाकर पहले अपने एक कंधे पर रखता, और फिर अपने एक हाथ से चुन्नी को अपने स्तनों के बीच मे पकड़ता और दूसरे हाथ से चुन्नी के दूसरे छोर को मानो हवा मे लहराते हुए अपने दूसरे कंधे पर चढ़ाता और फिर पलट कर देखता कि चुन्नी के दोनों सिरे बराबर है या नहीं। अब सरकती हुई चुन्नी को इस तरह दिन मे कई बार सुधारना तो उसके लिए सामान्य सी बात थी।
अब तो आईने मे संजु की आँखों के सामने खूबसूरत सुडौल शरीर की छाया होती थी बिल्कुल वैसे ही जैसे वो ऋतु को देखते हुए खुद के लिए सोचता था। उसके तन के बदलाव से उसकी कुर्ती मे उभार बहुत प्यारा लगता था। फिर खुद को देख संतुष्ट होकर संजु बिना समय गँवाए अपने सर से जुड़ा खोलकर बालों की चोटी बनाने लगता। चाहे जो भी हो संजु की माँ सुधा उसे बालों को खुला रखने से मना करती थी। चोटी बनाकर संजु उसके सिरे मे रबर बैंड लगाता और फिर झटककर अपनी चोटी को पीछे अपनी पीठ की ओर कर देता। यह सब तो संजु कई महीनों से कर रहा था पर अब यह सब करना उसे अच्छा लगने लगा था। आखिर वो खूबसूरत भी तो लगने लगा था। पर इन सबसे अलग अब दो नई बातें थी जो अब उसकी नई आदत बन चुकी थी। चोटी बनाने के बाद अब वो अपने माथे पर छोटी सी बिंदी लगाना कभी नहीं भूलता। बिंदी लगाते ही जैसे उसकी खूबसूरती मे चार चाँद लग जाते। और फिर उसके बाद अपने दोनों हाथों मे कुर्ती के रंगों से मैच करती हुई सिर्फ दो कांच की चूड़ियाँ पहनता। और ये चूड़ियाँ अब सिर्फ तभी उतरती जब वो रात को सोने के लिए जाता। अब तो संजु को याद भी नहीं कि उसे इन चूड़ियों का शौक कब और कैसे लगा।
अब पूरी तरह से तैयार होकर संजु नीचे अपनी माँ के साथ नाश्ता करने के लिए बढ़ चलता। अब उसके तन का सुंदर आकार और उसके तन से लगी हुई टाइट कुर्ती, उसके स्तनों और कूल्हों का उभार, इन सभी के साथ उसकी चाल किसी हिरणी की चाल की तरह हो चली थी। संजु की हाइट के उसकी तरह के दुबले पतले लड़कों को देखो तो अकसर उनकी पीठ ऊपर से थोड़ी घूमी हुई या झुकी हुई होती है और कंधे भी सामने की ओर झुके होते है। बढ़ती हाइट और दुबले पतले होने से लड़के इस उम्र मे इतने आकर्षक न दिखते। पर संजु का दुबलापन उसकी काया को और आकर्षक बनाता था क्योंकि उस नाजुक से तन पर उभार खिलकर उठते थे। शायद ब्रा और स्तनों के भार का खिंचाव वो कारण था जिसकी वजह से संजु अपने कंधों को पीछे कर पीठ सीधी रखकर चलता था जिससे उसके स्तन सामने की ओर उभरकर आते। सीधी पीठ और पीछे किये कंधों की वजह से अब ये यकीन करना मुश्किल था कि इतनी सुंदर काया वाली युवती एक युवती नहीं संजु है। क्या संजु युवक है? या फिर संजु युवती है? नहीं, इसका जवाब देना सही नहीं है क्योंकि संजु संजु है। और शायद यही काफी है।
न जाने कैसी खुशी थी संजु के दिल में जो उसके चेहरे पर इतनी मुस्कान थी। बलखाता हुआ संजु सीढ़ियों से उतर कर नीचे आया और रोज की तरह उसने अपनी माँ को किचन मे नाश्ता बनाते हुए पाया। और फिर दौड़ कर अपनी माँ के पीछे से गले लग गया। अब तो संजु अपनी माँ से भी लंबा हो गया था इसलिए बड़ी ही आसानी से उसने अपना सर माँ के कंधों पर रख अपनी आँखें बंद कर उनसे प्यार से लिपट गया जैसे एक बेटी अपनी माँ से गले लग रही हो। एक क्षण के लिए तो सुधा चौंक गई थी पर अपने बेटे के स्पर्श को वो पहचानती थी। तवे पर बनते हुए पराठे को छोड़ उसने प्यार से एक हाथ अपने बेटे के गालों पर फेरा। संजु अब भी आँखें बंद किये हुए था। माँ से लिपट कर संजु के अब बड़े सुडौल हो चुके स्तन माँ की पीठ से दब रहे थे। कुछ महीनों पहले तक यह बात संजु और उसकी माँ दोनों को ही कुछ अनकहा दर्द देती थी। पर अब यह बात माँ और बेटे के बीच के प्राकृतिक प्यार मे न आती थी। अब तो संजु का भी इस बात पर ध्यान न जाता था। समय के साथ दोनों इस बात को स्वीकार कर चुके थे।
“गुड मॉर्निंग माँ”, संजु ने आखिर आँखें खोलकर खिलखीलाते हुए चुप्पी तोड़ी।
“बात क्या है? आज बड़ी खुश लग रही है?”, सुधा ने अपनी “बेटी” से पूछा तो संजु ने माँ को अपनी बाँहों से छोड़कर पीछे होते हुए अपनी बाँहों को फैलाकर अपनी चुन्नी को लहराते हुए कहा, “मेरी प्यारी माँ … जब कोई दुखी होने का कारण न हो तो खुश रहने के अलावा कोई विकल्प है क्या?” संजु हँस दिया और फिर एक बार अपनी चुन्नी को समेटते हुए डाईनिंग टेबल से लगी कुर्सी पर बैठ गया।
सुधा समझ रही थी कि इस खुशी के पीछे कोई न कोई कारण तो जरूर है। उसने अंदाजा लगाया और संजु से पूछा, “कल रात पापा से बहुत देर तक बात हुई थी तेरी।”
“हाँ, माँ!”, संजु का चेहरा पापा का नाम सुनते ही चमक उठा। “कल मैंने जो वो पिंक वाली स्लीवलेस कुर्ती पहनी थी न? पापा कह रहे थे मैं उसमे बड़ी सुंदर लग रही थी!”
आखिर संजु की खुशी का माजरा अब सुधा को समझ आ रहा था। और फिर संजु ने एक बार फिर चहकते हुए कहा, “कल न मैंने पापा को अपनी शॉपिंग की हुई सारी चीजें दिखाई। पता है पापा क्या बोलते है?”
“क्या?”, सुधा ने पूछा।
“पापा ने कहा कि मेरी कपड़ों की चॉइस आपसे भी अच्छी है।”, और फिर संजु हँसने लगा।
“अच्छा। तेरे पापा से तो मैं बाद में निपट लूँगी। फिर तूने उनसे क्या कहा?”, सुधा ने पराठा बेलते हुए पूछा।
“मैंने तो उनको सच बता दिया कि ऋतु ने मेरी मदद की थी कपड़े पसंद करने मे। उसके बाद पापा ऋतु के बारे में पूछने लगे कि वो कितनी बड़ी हो गई है। और उसके साथ मेरी दोस्ती कैसी चल रही है। मैंने पापा को सब कुछ बताया। कल तो पापा के साथ बात करते हुए बड़ा मज़ा आया। “, संजु ने कहा।
संजु की बात सुनकर सुधा को भी थोड़ा सुकून मिला। क्योंकि संजु के पापा के दिल मे क्या है वो तो सुधा से भी पूरी तरह से न कहते थे पर व्हाट्सप्प के विडिओ मे उनकी आँखों मे सुधा काफी कुछ पढ़ लेती थी। लगभग २ साल हो गए थे उनको छुट्टी लेकर घर आए हुए। उन दिनों संजु के तन मे बदलाव आना शुरू ही हुआ था। बहुत चिंतित थे और वो काम पर वापस नही जाना चाहते थे। तब तक उन्होंने डॉक्टर से संजु को मिलवाया भी नहीं था। तब से लेकर अब तक कितना कुछ बदल गया था। जिस बेटे को छोड़कर वो अपने काम के लिए गए थे अब उसकी जगह एक खूबसूरत किशोरी बेटी ने ले ली थी। एक पिता होने की वजह से अपने बच्चे को खुश देखना और खुश रखना उनका कर्तव्य तो था। पर खुश बेटी को देखकर भी शायद एक टीस थी उनके मन मे जो अपने बेटे को खोने को लेकर थी। सुधा ये समझती भी थी और उन्हे समझाती भी थी कि उनका बेटा कहीं खोया नहीं है, वो वही है बस उसका रूप बदल गया है। चाहे कितना भी समझने की कोशिश करते पर एक नवयुवती के आकर्षक शरीर, लंबी चोटी और लड़कियों के कपड़े मे अपने बेटे संजु को देखना इतना आसान भी तो नहीं था।
“अच्छा बहुत बातें हो गई और अब नाश्ता कर ले।”, सुधा ने एक प्लेट टेबल पर लगाते हुए कहा। “ओहो ये प्लेट मे क्या लगा रह गया? लगता है ठीक से साफ नहीं हुई। मेरी आँखें कमजोर तो नहीं हो रही?”, सुधा ने लगभग खुदसे ही कहते हुए प्लेट उठाई और अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछकर फिर रख दी। और संजु को पराठे परोसने लगी।
अपनी माँ को साड़ी से प्लेट पोंछते देखकर संजु मन ही मन सोचने लगा कि सच मे माँ अपनी साड़ी से न जाने क्या क्या करती है। उसे माँ को इस तरह देखना अच्छा लगता था। शायद उसकी माँ की वजह से ही साड़ी का बड़ा शौक था। उसका बस चलता तो वो हमेशा घर मे साड़ी पहनता। आखिर उसने वो दिन अब तक भुला नहीं था जब उसने पहली बार साड़ी पहना था। कितना अच्छा लगा था उसे उस दिन। पर अब तो शायद १ महीने से ज्यादा हो गया था उसे साड़ी पहने हुए। उसकी मम्मी चाहती थी कि संजु अपनी उम्र की लड़कियों की तरह कपड़े पहने इसलिए वो संजु को मना करती थी। माँ से जिद करके तो वो फिर भी साड़ी पहन लेता आखिर उसके पास अब माँ से ली हुई ५-६ साड़ियाँ तो थी ही जो वो अब उसकी अपनी थी। पर ये ऋतु है न … वो किसी दिन साड़ी पहन लेता तो वो संजु को आंटी कहकर छेड़ती थी। ऋतु तो संजु को हमेशा ही स्कर्ट पहनने के लिए जिद करती थी जो उसने शॉपिंग वाले दिन उसे दिलाए थे। पर न जाने क्यों उसका कभी स्कर्ट पहनने का मन नहीं करता। इसलिए वो तो अब सलवार कुर्ती पहनकर ही काम चला रहा था। यूं तो सलवार कुर्ती मे उसे अच्छा भी लगता था पर साड़ी को लेकर उसके मन मे हमेशा एक गुदगुदी सी रहती थी। संजु एक बार फिर अपनी माँ की ओर देखने लगा। फूलों के प्रिन्ट वाली साड़ी पहनी सुधा संजु के लिए दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला थी। शायद वो भी अपनी माँ की तरह दिखना चाहता था।
थोड़ी देर बाद सुधा भी टेबल पर साथ मे नाश्ता करने बैठ गई और संजु से पूछने लगी, “तो आज क्या करने का प्लान है?”
“कुछ खास नहीं माँ। वही रोज का प्लान। कुछ देर पढ़ाई करूंगी और फिर जब ऋतु आ जाएगी तब उसके साथ कुछ देर बातें करूंगी।”, संजु ने माँ से कहा।
गर्मी की छुट्टी लगने के बाद से संजु ने घर से बाहर कदम नहीं रखा था। अब तो घर मे पूरे समय वह “लड़कियों वाले कपड़े” पहनकर ही रहता था। इतने समय से वो अपनी माँ की बेटी बनकर रह रहा था कि उसके लिए अब ये सब नॉर्मल हो गया था। लड़कियों की तरह तैयार होना और फिर एक बेटी की तरह माँ से बात करने मे अब कोई झिझक न थी उसके मन में। और इन्ही कुछ महीनों मे माँ के बेटी के साथ साथ अपने पापा की भी बेटी बन गया था। पापा से एक बेटी बनकर बात करने में उसे शुरुआत मे तो काफी शर्मिंदगी होती थी पर जब पापा का पूरा साथ उसने अनुभव किया तो पापा के साथ की झिझक भी खत्म हो गई। पर क्या संजु वाकई मे दिल से लड़की बन चुका था? इसका जवाब तो संजु भी न जानता था भले ही अब बेटी बनकर जीने मे उसे कोई प्रॉब्लेम न थी।
नाश्ता करने के बाद संजु ने बर्तन समेटने मे अपनी माँ की मदद की और फिर वहाँ से उठकर छत की ओर जाने लगा। घर की छत का एक हिस्सा था जहां वो इस दुनिया से छिपकर कुछ पल खुली हवा मे बीता सकता था। इसलिए अकसर वो यहाँ आया करता था। छत के दरवाजे से इस हिस्से तक आते हुए उसे दूसरों की नज़रों से बचकर आना पड़ता था। उसे डर रहता था कि कोई उसे इस रूप मे देख ले तो वो क्या करेगा? इसलिए वो ८ कदम चलते हुए उसके दिल की धड़कने तेज हो जाया करती थी। और इस हिस्से मे आने के बाद ही वो चैन की सांस ले पाता था। सांसें गहरी हो जाती थी तो उसके स्तन भी फूलने संकुचाने लगते थे। आज भी वैसा ही हुआ था। और इधर आते ही वो एक दीवार से टिककर नीचे बैठ गया। उसने नीचे झुककर देखा तो उसकी चुस्त कुर्ती से उसके उभरे हुए स्तन फूलते संकुचाते दिख रहे थे। न जाने क्यों उसने अपनी चुन्नी को सरकाकर अपनी कुर्ती मे झाँककर देखा जहां उसके कोमल सुडौल स्तन उसकी खूबसूरत सी ब्रा मे उसे दिखे। उस ब्रा के ऊपर कुछ एम्ब्रॉइडरी से डिजाइन बनी हुई थी जिसमे उसके स्तन बड़े ही सुंदर लगते थे। इतने सुंदर स्तनों के साथ संजु का तन भी आकर्षक था ये तो संजु भी जानता था। अपने तन के आकर्षक स्वरूप को संजु ने मन ही मन स्वीकार कर लिया था। पर वो यह भी जानता था कि इतने सुंदर तन के होने के बावजूद उसे खुद को दुनिया से छिपाकर रखना होता था। उसकी जगह कोई लड़की होती तो गर्व से ऐसे तन के साथ वो घर से बाहर निकलती। पर संजु? ये कैसा अभिशाप था संजु के लिए?
पर आज नहीं तो कल उसे एक दिन इस रूप मे घर से बाहर इस दुनिया के बीच तो जाना ही होगा। और वो दिन ज्यादा दूर भी नहीं थे। ये बात संजु अच्छी तरह जानता था। पर उस दिन को लेकर निरर्थक चिंता करना उसे उचित नहीं लगता था। जब सांसें काबू मे आ गई तो संजु उठ खड़ा हुआ और बहती हवा को अनुभव कर मन मे आनंदित होने लगा। हवा मे उसकी चुन्नी पीछे की ओर लहराने लगी। कभी कंधों से फिसलती तो वो उसे अपने कंधों पर फिर चढ़ा लेता। स्लीवलेस कुर्ती मे बाँहों मे वो हवा उसके तन मे एक सिहरन पैदा कर रही थी। संजु के चेहरे पर खुशी का एक भाव था। एकांत के इस पल मे खुली हवा को अनुभव करना उसके लिए एक बहुत खुशी की बात थी। उसकी चाल और उसके हाव भाव मे वही बात थी जो एक किशोरी युवती मे होती है। माथे पर छोटी सी बिंदी और कोमल दुबली कलाई मे २ चूड़ियाँ उसके रूप को निखार रही थी। इस समय जो वहाँ था वो कौन था? क्या वो दिल से एक लड़का था? या फिर वो दिल से एक लड़की था? क्या इस जवाब से कोई फर्क पड़ता है? इस समय तो वहाँ सिर्फ संजु था जो खुश था और वही महत्व रखता है।
दोपहर हो गई थी। और ऋतु अपने कमरे से बैग मे कुछ सामान भरते हुए बाहर निकली तो उसकी मम्मी ने पूछा, “कहाँ जा रही है इतनी गर्मी में?”
“कहाँ जाऊँगी मम्मी? संजु के यहाँ जा रही हूँ। घर में बोर हो रही हूँ!”, ऋतु बोली।
“अच्छा। कैसा है संजु? न जाने कितने दिनों से वो दिखा ही नहीं।”, उसकी मम्मी ने पूछा।
“अच्छा है मम्मी। पढ़ाकू लड़का है। गर्मी की छुट्टी में भी पढ़ायी कर रहा है वो भी अगले क्लास की। न जाने कैसा पागल है कि अभी स्कूल शुरू भी नहीं हुए है और वो पढ़ने मे लगा हुआ है।”
“तू भी कुछ सीख ले उससे। न जाने दिन भर क्या करती रहती है। न तो काम में मेरा हाथ बँटाती है और न पढती है।”, मम्मी की शिखायात शुरू हो गई थी।
“क्या मम्मी.. तुमको तो बस बहाना चाहिए। इतना कुछ करती हूँ फिर भी तुम मेरे पीछे ही पड़ी रहती हो!”, ऋतु बोली और फिर घर से निकल पड़ी।
“सुन जल्दी घर वापस आना। फिर पॅकिंग भी करनी है “, ऋतु की मम्मी ने आवाज दी पर वो उसे अनदेखा कर जा चुकी थी।
चुलबुली सी प्यारी सी ऋतु , आस पास के घरों मे सबकी चहेती थी वो। हमेशा हँसती मुसकुराती हुई ऋतु। पर उसके दिल के भंवर मे क्या चल रहा था कभी उसके चेहरे से दिखता न था। संजु के राज को अब तक अपने तक ही उसने छिपा के रखा था। उसका दिल तो करता था कि कभी अपनी मम्मी से गले लगकर रोए और सब कुछ बता दे। जिस लड़के से उसे इतना प्यार था अब उस लड़के मे उसे लड़का दिखता ही नहीं था। लंबी चोटी, टाइट सलवार कुर्ती पहने हुए दुबली पतली लड़की के तन मे उसका संजु छिपा हुआ था। पर कम से कम बात करने मे वही संजु था जो पहले की ही तरह उससे लड़ता झगड़ता भी था और ऋतु को डांटता भी था। पर उसके हाव-भाव और चाल अब पूरी तरह लड़कियों से हो चली थी। इसके लिए तो ऋतु भी जिम्मेदार थी जो उसे कई बार सिखाती थी कि किस तरह बैठना चलना चाहिए। ऋतु के मन की व्यथा तो सिर्फ उसकी डायरी जानती थी जिसमे वो सब कुछ लिखा करती थी। और जब भी वो कुछ लिखती उसके अंत मे एक लाइन जरूर लिखती “I love you Sanju.”
यूं तो संजु को भी उससे प्यार था पर दोनों ही एक दूसरे से ये बात कभी कहते नहीं थे। क्योंकि मिडल साइज़ के शहरों मे ये बात कहने की किसी को जरूरत ही नहीं लगती थी। जब दो दिल ऐसे ही मिल रहे हो तो यह बात बिना कहे ही कह दी जाती थी। वैसे उन्होंने ये बात कम से कम एक बार एक दूसरे को बता दी थी तो दोबारा कहने की क्या जरूरत?
अपने कमरे मे संजु कुछ मैथ्स की प्रॉब्लम सॉल्व करने मे लगा हुआ था। एक हाथ मे अपनी लंबी सी चोटी पकड़कर और दूसरे हाथ से पेन पकड़कर मुंह मे डाले हुए संजु सोच ही रहा था तब ऋतु उसके कमरे मे आई। ऋतु को देखकर उसके चेहरे मे खुशी दौड़ उठी। अपनी माँ के अलावा आखिर ऋतु ही तो थी इस दुनिया मे जिससे वो मिलकर बातें कर सकता था। उठते ही उसने अपनी चोटी झटकाकर पीछे की तो एक बार फिर उसकी चुन्नी उसकी चिकनी बाँहों पर फिसल उठी। उसने अपने एक हाथ से चुन्नी को ऊपर उठाया और फिर अपने स्तनों के बीच मे संवार कर ऋतु की ओर बढ़ चला। ये दृश्य कोई देख ले तो उन्हे यही लगता जैसे दो सहेलियाँ मिल रही हो। पर संजु के लिए ऋतु सहेली से कहीं बढ़कर थी। और ऋतु के लिए संजु सहेली न थी। ये तो ऋतु ही जानती थी कि संजु को ऐसा देखकर उसे कैसा लगता है। कुछ देर भले उसका मन भारी रहता पर फिर उसके बाद संजु से बात करते हुए वो इन बातों को आसानी से अनदेखा कर लेती।
“कितनी देर कर दी आज! कितनी देर से तेरा इंतज़ार कर रहा था।”, संजु ने ऋतु से कहा।
“ओहो … मेरी मम्मी मुझे घर के काम से छोड़ती ही नहीं है। पर अब आ गई हूँ तो २-३ घंटे के लिए तो कहीं नहीं जा रही मैं। अब खुश?”, ऋतु भी बोली।
“हाँ, खुश! चल आ न। और ये बैग मे क्या लेकर आई है?”, संजु ने पूछा।
“तेरे लिए सप्राइज़ है।”, ऋतु बोली।
“अच्छा क्या है? दिखा न।”, संजु ने ऋतु का हाथ पकड़कर उसे बिस्तर पर बैठाया और उसकी ओर उत्सुकता से देखने लगा। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक लड़की अपनी सहेली से मिलकर देखती हो।
“दिखाती हूँ। जरा सब्र तो रख।”
“ठीक है। ठीक है।”
“टा डा!”, ऋतु ने बैग से कुछ निकालकर कहा।
“ये क्या है?”
“ओ मेरे भोले दोस्त … ये है एक ऐसी जादुई चीज जिससे तेरे बाल एकदम खूबसूरत लगने लगेंगे। इसको हेयर स्ट्रैटनर कहते है। इससे बाल सीधे करते है।”, ऋतु बोली।
“मेरे बाल तो पहले से ही सीधे है। फिर इसका मैं क्या करूंगा?”, संजु ने अपनी चोटी को पकड़ते हुए पूछा। ऋतु का बॉयफ्रेंड होने के नाते संजु ऋतु से हमेशा लड़कों की तरह ही बातें करता था भले ही वो अपनी मम्मी पापा के लिए अब बेटी बन चुका था।
“बाल तो सीधे है पर इस स्ट्रेटनर से तेरी हेयरस्टाइल भी मेरी तरह करूंगी आज।”, ऋतु ने संजु की चोटी को पकड़ते हुए कहा और वो उस चोटी को संजु के पीछे होकर खोलने लगी।
संजु ने भी ऋतु की हेयर स्टाइल को नोटिस किया था। क्लिप लगाकर खुले सीधे बाल कुछ अलग सिल्की दिखते थे। संजु के बाल सुंदर तो थे पर तेल लगे हुए चमकीले थे। ऋतु के बाल आज वैसे तो नहीं लग रहे थे पर फिर भी एक अलग आकर्षण था उनमें। कुछ कुछ वैसे लहराते फिसलते बाल थे जैसे वो टीवी एडवर्टाइज़ मे देखता था। दूसरी ओर संजु के सुंदर लंबे घने बालों मे तेल ओर चोटी की वजह से वो सिल्की फ़ील न थी।
“यार ऋतु एक मिनट रुक तो सही …”, उसने अपनी चोटी छुड़ाते हुए कहा, ” यार माँ को पसंद नहीं कि मैं अपने बाल खुले रखूँ।”
“ओहो मम्मी के प्यारे बेटे , कभी कभी मम्मी पापा की मर्जी के विरुद्ध भी वो कुछ करना चाहिए जो हमें अच्छा लगता है।”, ऋतु ने कहा।
“नहीं नहीं … माँ को समझाने का मेरा मन नहीं है।”
“ओफो तू चिंता क्यों करता है? आंटी को मैं संभाल लूँगी। तेरा नया लुक देखकर वो भी खुश होंगी। I promise.”
और फिर ऋतु ने संजु की चुन्नी को उसके कंधों से हटाकर संजु के हाथ मे पकड़ा दी। और संजु से बोली, “संजु, ये ब्रा स्ट्रैप को अंदर रखा कर। तुझे मैंने पहले भी कहा था कि हम लड़कियों की ब्रा ऐसे दिखनी नहीं चाहिए।” और वो संजु की ब्रा स्ट्रैप को उसकी कुर्ती के अंदर करने लगी।
“मैं लड़की नहीं हूँ। और मुझे नहीं करवाना कोई हेयर स्टाइल।”, ऋतु की बात सुनकर संजु बहुत गुस्से से बोला। उसकी आँखों मे वो गुस्सा साफ दिख रहा था। वो ऋतु का बॉयफ्रेंड था लड़की नहीं।
ऋतु को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो संजु के कंधे पर हाथ रखकर बोली, “सॉरी यार। मैंने बीना सोचे समझे ये कह दिया। बस ब्रा को देखते ही वो बात वैसे ही निकल पड़ी जैसे अकसर मैं क्लास की लड़कियों से कह देती थी।” और फिर अपने कान पकड़कर बोली, “आई एम सॉरी। प्लीज मुझे माफ कर दे।” बड़े ही प्यार से वो संजु को समझाने लगी।
ऋतु की आँखों मे प्यार देखकर संजु ने भी अब झूठ मूठ का गुस्सा दिखाया और कहा, “ठीक है। आगे से ये गलती मत करना। ओके?”
“ओके बाबा। आप जैसा कहें।”, ऋतु भी खिलखिला दी और फिर संजु की चोटी खोलने मे मगन हो गई।
चोटी की वजह से संजु के बालों मे थोड़ा लहर की तरह शेप हो गया था जिसे ऋतु ने अपने हेयर स्ट्रेटनर से सीधा किया। स्ट्रेटनर काफी गरम था जिसे बहुत सलीके से उपयोग करना होता था। जब ऋतु संजु के बालों के एक एक गुच्छे को पकड़ उसपर स्ट्रेटनर चलाती, संजु के बाल तुरंत सीधे मखमली हो जाते। पर साथ ही गरम स्ट्रेटनर से थोड़े थोड़े बाल जलने भी लगते। संजु को ये कुछ ठीक न लग रहा था। उसे अपने बालों से भी प्यार था और वो नहीं चाहता था कि उन्हे कुछ हो।
जल्दी ही बाल सीधे करने के बाद ऋतु ने बड़ी से कंघी लेकर संजु के बालों को सुलझाने लगी और फिर कुछ लटों को लेकर उसके सर पर यहाँ वहाँ क्लिप लगाने लगी। और कुछ ही देर में संजु बिल्कुल नए लुक मे तैयार था।
“लो अब खुद को आईने मे देख लो।”, ऋतु ने गर्व से कहा और दोनों उठकर आईने के पास आ गए।
खुद को नए लुक में देखकर संजु को तो यकीन न हुआ। ऋतु ने संजु के कुछ बालों को दोनों ओर कंधों पर छोड़ दिया था जिन्हे छूकर संजु उनके मखमली होने का आभास कर रहा था। वो बिल्कुल वैसा ही लग रहा था जैसे टीवी पर देखने मे लगता था। ऋतु और वह दोनों एक ही हेयर स्टाइल मे ऐसे लग रही थी जैसे दोनों बहुत अच्छी सहेलियाँ थी। दोनों इस बात को माने या न माने पर सचमुच वो दोनों अच्छी सहेलियाँ तो बन चुकी थी फिर चाहे इस रिश्ते को कोई भी नाम दिया जाए।
“Wow!”, ऋतु की ओर मुड़कर संजु सिर्फ इतना ही कह सका। तो ऋतु मुस्कुरा दी।
और फिर संजु के बालों को सँवारती हुई उसके कंधे पर चुन्नी एक बार फिर से चढ़ाती हुई बोली, “अब हम दोनों लग रहे है न बेस्ट फ़्रेंड्स!”
संजु भी प्यार से मुस्कुरा दिया। खुद का ये निखरा हुआ रूप दिखाने के लिए वो ऋतु को दिल से धन्यवाद दे रहा था। और फिर दोनों हाथ पकड़कर एक बार फिर बिस्तर पर बैठकर बातें करने लगे। हँसना, छेड़ना, झगड़ना सब कुछ। संजु इन सब के बीच जाने अनजाने ऋतु से बहुत कुछ सिख रहा था। ऋतु किस तरह से नाराज होकर मुंह पलट लेती थी, ऋतु किस तरह दिल से हँसती थी, किस तरह अपने हाथों से भाव प्रदर्शित करती थी, किस तरह के चेहरे बनाती थी, संजु सब कुछ ऋतु की तरह ही करने लगा था। अपनी चुन्नी संभालना और नखरे दिखाना भी अब वो अपने व्यवहार मे सम्मिलित करने लगा था। ऋतु कई बार उसके साथ फैशन के बारे मे बातें करना चाहती थी। उसका उसमे बहुत इंटरेस्ट तो न था फिर भी वो ऋतु की बातें सुनता था। उन दोनों को दूर से देखो तो यही लगता था कि दो सबसे अच्छी सहेलियाँ बातें कर रही है। बस एक बात थी कि संजु हमेशा लड़के के रूप में जवाब देता था भले उसका अंदाज लड़कियों सा होता। कई बार तो बात करते हुए उसे ऐसा लगता कि शायद लड़की की तरह बात करना और आसान होगा जैसे मैं ये करूंगी, बोलूँगी, इत्यादि। पर इस इच्छा के साथ साथ वो हमेशा से खुद को ऋतु का बॉयफ्रेंड देखता था। इसलिए वो शायद एक आखिरी कदम था जो वो लेना नहीं चाहता था।
यूं ही बात करते करते ऋतु ने संजु का हाथ पकड़ कर कहा, “संजु एक बात पूँछू?”
“पूछ न”
“अब क्योंकि उस बात को बहुत दिन हो गए है इसलिए शायद तेरे लिए आज इस बारे मे बात करना आसान होगा। मेरे अंदर बहुत समय से ये सवाल है कि जिस दिन हम शॉपिंग के लिए गए थे तब तू ब्रा खरीदते वक्त इतना नर्वस होकर रोने क्यों लगा था?”, ऋतु ने संजु का हाथ अपने हाथों के बीच पकड़ लिया।
संजु इस बारे में ऋतु से बिल्कुल भी बात नहीं करना चाहता था पर ऋतु के बार बार कहने पर आखिर मे उसने ऋतु को समझाया कि वो किस तरह ऋतु के सामने उसका बॉयफ्रेंड और एक लड़के की तरह ही बातें करना चाहता है भले ही उसका तन और उसके कपड़े रूप लड़कियों की तरह हो। इसलिए ऋतु के सामने जब सेल्स गर्ल से लड़कियों की तरह उसे बात करनी पड़ी तो उसे बहुत लज्जित अनुभव हो रहा था।
संजु का हृदय और उसके भाव पूरी तरह से समझना ऋतु के लिए संभव न था पर वो कोशिश पूरी करती थी। और फिर कुछ सोचते हुए उसने एक बार फिर संजु के चेहरे को छूते हुए कहा, “बस इतनी सी बात? यार, उस सेल्स गर्ल को लग रहा था कि तू लड़की है। हम लोग उसको समझाने बैठते कि तू लड़की नहीं है तो हमारा काम पूरा होने मे कितना समय व्यर्थ होता? अब ऐसे मे तू किसी से लड़की की तरह बात करे तो मुझे कोई फरक नहीं पड़ता। क्योंकि मैं जानती हूँ कि तू मेरा संजु है। वही संजु जिसको मैं बचपन से जानती हूँ।”
अपनी उम्र से बहुत ज्यादा सुलझी हुई बातें करती थी ऋतु। और फिर ऋतु की आँखों मे देखकर संजु ने पूछा, “सच?”
“हाँ, सच!”, ऋतु ने अपनी आँखों से पूरा विश्वास दिलाया, “यकीन नहीं होता तो अभी ट्राई कर लेते है।”
“मुझे नहीं करना कुछ ट्राई”, संजु ने उखड़ते हुए बोला।
“यार, एक बार प्लीज। मैं तुझसे जो बोलूँगी तू बस रीपीट करते जाना। ठीक है?”
“मैंने एक बार मना कर दिया न ऋतु!”
“ओहो तू इतने नखरे क्यों करता है?”, ऋतु मुंह बनाते हुए बोली। फिर कुछ देर रुक कर बोली, “अच्छा इतना तो बोल सकता है तू कि मैं संजु हूँ। या इसमे भी कोई प्रॉब्लम है?”
“मैं संजु हूँ।”, संजु को यह कहने मे कोई प्रॉब्लम न हुई।
“गुड। अब बोल कि मेरे बाल बहुत सुंदर है। ऋतु से भी ज्यादा अच्छे।”
संजु ने हँसते हुए ये बात भी कह दी।
“अच्छा अब बोल कि मैं सुंदर हूँ।”
“मैं सुंदर हूँ।”, संजु ने धीरे धीरे कहा।
“अब आगे बोल कि मैं …”
“मैं …”
“ऋतु से …”
“ऋतु से …”, संजु ने कहा।
“बहुत …”
“बहुत …”
“प्यार करती हूँ!”
“प्यार करती हूँ।”, संजु ने भी कहा और दोनों खिलखिला उठे। फिर रुककर ऋतु ने कहा, ” और मैं भी संजु से बहुत प्यार करती हूँ।”
उसके बाद कुछ देर तक दोनों ने कुछ न कहा। बस एक दूसरे को देखते रहे।
उस चुप्पी के पीछे दोनों के मन मे कुछ बातें चल रही थी। एक ओर तो संजु देख सकता था कि ऋतु उसके लिए कितना कुछ करती है। कितनी ही आसानी से ऋतु ने अपने प्यार का इजहार भी किया और साथ ही संजु के मन की सबसे बड़ी दुविधा का अंत भी कर दिया। वहीं ऋतु भी संजु की मनोदशा को समझकर उसके विचारों का सम्मान भी करती थी कि वो ऋतु के लिए किस तरह मन ही मन संघर्ष कर रहा था।
“चल आंटी को तेरी हेयर स्टाइल दिखाते है।”, ऋतु ने उस चुप्पी को तोड़ते हुए कहा।
“आंटी आपके लिए एक सरप्राइज़ है!”, ऋतु दौड़ते हुए नीचे पहुंची और चहकते हुए सुधा से बोली।
“अच्छा। क्या सरप्राइज़ है?”, सुधा ने ऋतु की ओर मुड़कर उत्सुकता से पूछा।
“संजु …”, ऋतु ने संजु को आवाज दी।
और फिर सीढ़ियों से धीरे धीरे उतरता हुआ संजु जब अपनी माँ के सामने आया तो अपनी बेटी को नए रूप में देखकर सुधा की आँखें चमक उठी।
“माँ, कैसी लग रही है मेरी हेयर स्टाइल ?”, संजु ने धीमी आवाज मे माँ से पूछा।
संजु इतना खूबसूरत लग रहा था कि माँ से रहा न गया और वो झट से चलकर संजु के पास आई और बोली, “बहुत सुंदर”, और फिर ऋतु की ओर मुड़कर बोली, “ये तुमने किया है ऋतु?”
“हाँ, आंटी”, ऋतु ने खुशी से जवाब दिया। आंटी की स्वीकृति से वो बहुत खुश थी।
“संजु पर यह हेयर स्टाइल तो बहुत अच्छा लग रहा है।”, माँ ने कहा।
“आंटी, आपकी बेटी है ही इतनी सुंदर। और इसके बाल भी इतने अच्छे है न कि इस पर कोई भी हेयर स्टाइल अच्छी लगेगी।”, ऋतु ने कहा तो अब संजु की माँ का सीन गर्व से फूल उठा। उन्हे भी तो अपनी बेटी पर गर्व था।
पर जल्दी ही उनके चेहरे के भाव थोड़े गंभीर हो गए। उन्होंने संजु के बालों को छूकर कहा, “तुमने इन बालों पर स्ट्रेटनर चलाया है?”
माँ के बदलते भाव देखकर संजु तो भांप गया कि कुछ गड़बड़ है पर ऋतु तो अनजान थी। संजु ने ऋतु को इशारा किया कि वो चुप रहे पर ऋतु को समझ न आया और वो बोली, “हाँ, आंटी। देखिए न स्ट्रेटनर से संजु के बाल कितने मखमली लग रहे है।” उसे तो उसने जो किया उस पर बेहद गर्व था।
“हम्म … ऋतु तुमने एक बार इसका उपयोग कर लिया पर दोबारा नहीं करना।”, सुधा बोली।
“मगर आंटी …”, ऋतु बोलते बोलते चुप हो गई।
“मगर माँ, ये मुझ पर अच्छा लग रहा है।”, संजु ने ऋतु को सपोर्ट करने का प्रयास किया।
“अगर मगर कुछ नहीं। मैंने मना कर दिया तो बस मना कर दिया। जब तुम बड़ी हो जाओगी और अकेले रहने लगोगी तब अपने बालों के साथ जो करना है कर लेना। पर जब तक इस छत के नीचे मेरे साथ हो, अपने बालों को तुम्हें मैं यूं खराब न होने दूँगी। तुम्हें पता भी है कि स्ट्रेटनर का बालों पर क्या असर पड़ता है?”
“सॉरी आंटी। संजु ने तो मना किया था पर मैं ही नहीं मानी।”, ऋतु का चेहरा थोड़ा उदास हो गया था। सुधा को भी यह बात समझ आ रही थी पर बच्चों को गलती करने से रोकना भी उसी का दायित्व था।
पर ऋतु के चेहरे से उदासी नहीं जा रही थी। जिसे देख सुधा बोली, “कोई बात नहीं बेटा। तुम्हें पता नहीं था पर आगे ध्यान रखना। न सिर्फ संजु बल्कि तुम भी। अभी से अपने बालों को इस तरह ट्रीट करोगी तो वो जल्दी ही खराब हो जाएंगे। अभी तो तुम दोनों के बाल प्राकृतिक रूप से ही इतने अच्छे है, उनके साथ ऐसे छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए।”
“नहीं आंटी, वो बात नहीं है।”, ऋतु ने अपनी चुन्नी पकड़ कर कहा। सुधा उसके पास आकर उसके चेहरे को छूते हुए बोली, “तो क्या बात है बेटा?”
ऋतु कुछ देर चुप रही और फिर बोली, “आंटी … वो मैं … कल से तीन हफ्तों के लिए अपनी नानी के यहाँ जा रही हूँ। तो संजु से अब मिल न पाऊँगी उसी को सोचकर ….” ऋतु फिर चुप हो गई।
ये सुनते ही संजु का चेहरे का रंग भी उतर गया मानो जैसे खुशियां एक पल मे ही गायब हो गई। ऋतु के बिना तो उसका भी कोई हमउम्र दोस्त न होगा बात करने के लिए। दिन भर इस घर मे अकेले रहते समय ऋतु से कुछ घंटों के लिए मिलना ही तो उसे खुशी देता था।
“ये तू मुझे अब बता रही है?”, संजु के चेहरे पर एक नाराजगी ने घर कर लिया।
“सॉरी संजु। मैं तुझे बताना चाह रही थी। पर तुझसे बोल न सकी।”, ऋतु संजु की ओर बढ़ चली तो संजु ने एक लड़की की तरह उससे मुंह फेर लिया।
“सॉरी संजु।”, ऋतु ने संजु के कंधे पर हाथ रखा और बोली, “संजु, तू मुझे कल सुबह बाय कहने के लिए तो आएगा न।”
संजु ने कुछ जवाब न दिया और वहाँ नाराजगी के साथ ऋतु को वहीं छोड़कर सीढ़ियों से अपने कमरे की ओर चला गया और ऋतु उसे देखती रह गई।
“बेटा, तुम चिंता मत करो। मैं संजु को समझा दूँगी। तुम अपनी छुट्टियाँ खुशी से मनाना और संजु की चिंता मत करना। मैं हूँ न यहाँ!”, सुधा ने उदास ऋतु को देखकर कहा।
“जी आंटी।”, ऋतु ने उदास स्वर मे जवाब दिया और मुंह लटकाए अपने घर चली गई।
अपने कमरे में संजु बेहद गुस्से मे था। “ऋतु को क्या लगता है … मैं उसके बिना रह नहीं सकता? उसने मेरी हेयर स्टाइल क्या बना दी उसे लगता है कि उससे सब ठीक हो जाएगा? वो मुझे बिना बताए यूं ऐसे कैसे जा सकती है वो भी दो हफ्तों के लिए।” संजु को एहसास भी न था कि मन ही मन वो जो बातें कर रहा था वो ऋतु से गलत अपेक्षाएँ लगा बैठा था। वो समझ नहीं रहा था कि ऋतु का जाना उसकी मर्जी न थी। अपने बिस्तर पर लेटकर संजु की आँखों मे कुछ आँसू बह चले।
बिस्तर पर इस वक्त संजु की आकृति किसी लड़की से समान थी जो करवट लेकर लेटी हुई थी। उसकी चुन्नी बिखरी हुई थी, और उसकी कुर्ती से उसकी पीठ दिख रही थी। हल्की सी पारदर्शी कुर्ती से उसकी ब्रा के झलकते हुए स्ट्रेप और ब्रा की हुक का उभार, उसके बढ़े हुए नरम कूल्हे और कसी हुई कुर्ती मे पतली कमर एक लड़की का ही आभास दिला रही थी। संजु की ये भावुकता भी आखिर एक लड़की की ही थी।
समय तो फिर भी थमने न वाला था। कुछ घंटे संजु ने इसी तरह बीताए तो सुधा ने आकर प्रेम से संजु को खाने के लिए जगाया। संजु का मन अब कुछ हल्का हो गया था। उठकर उसे कमरे मे लगे आईने मे अपनी आकृति दिखाई दी, उसकी खूबसूरत हेयर स्टाइल की झलक उसे दिखाई दी। और उस झलक में उसे ऋतु का प्यार नजर आया जिसने उसे बड़े प्रेम से सजाया था। और एक पल मे ही संजु का गुस्सा कहीं खो गया और चेहरे पर मुस्कान आ गई। और उसने अपनी माँ को गले से लगा लिया।
सुधा भी अपनी बेटी को अच्छे मूड मे देखकर निश्चिंत हो गई। उन्होंने संजु के सर पर अपना हाथ फेर और फिर माँ बेटी खाने के लिए किचन मे आ गई।
अगली सुबह संजु जल्दी उठ गया क्योंकि उसे ऋतु को बाय कहने के लिए तैयार भी होना था। आज उसने अपने रूप को निहारा भी नहीं और जल्दी जल्दी अपनी नाइटी उतार कर नहाने चला गया। शॉवर के नीचे पहुँचने से पहले उसने झट से अपने बालों का जुड़ा बनाया और नहाने लगा। नहाना होते ही उसने पेंटी पहनी और अपनी अलमारी के पास पहुंचा। बिना कुछ और पहने जुड़ा बांधे वो लड़की कुछ ढूँढने लगी। ढूंढते हुए उसके कोमल स्तन हिल रहे थे पर उसका उनकी ओर कोई ध्यान न था। और फिर उसकी नजर उस चीज पर पड़ी जिसकी उसे जरूरत तो थी पर उसे पसंद बिल्कुल न थी। वो थी संजु की स्पोर्ट्स ब्रा, वही ब्रा जिसे पहनकर वह अपने स्तनों को दबाता था और अपने स्कूल जाता था। उसने अपनी एक लड़कों वाली पेंट निकाली और उसे पहन लिया। काफी महीनों बाद वो पेंट पहन रहा था और उसे फर्क समझ आ रहा था। संजु के कूल्हे पीछले महीनों मे काफी बढ़ गए थे जिस वजह से उसकी पेंट आसानी से चढ़ नहीं रही थी। जल्दी जल्दी मे उसने किसी तरह पेंट को पहना। जहां एक ओर तो वो पेंट उसे टाइट लग रही थी पर आश्चर्यजनक रूप से पेंट की बटन लगाना काफी आसान था। उसकी कमर पतली जो लग रही थी। पर ये क्या पेंट उसे लंबाई मे छोटी पड़ रही थी। दूसरी पेंट ढूँढने का समय न था इसलिए संजु ने इसे ही पहने रखना मुनासिब समझा।
अब बारी थी स्पोर्ट्स ब्रा पहनने की। उसके लिए वो कितनी भी अन्कम्फ्टबल हो पर संजु को उसे पहनने मे पहले कभी ज्यादा समय नहीं लगता था। पर आज? उसकी ये ब्रा उसके स्तनों पर चढ़ ही न पा रही थी और आधे मे ही अटक गई। उसने एक बार फिर से अपने जुड़े पर से ब्रा सर पर डाली, अपने हाथ अंदर किये और ब्रा पहनने की कोशिश करने लगा। ब्रा थोड़ी नीचे तो उतरी पर उसके लिए सांस लेना असंभव हो गया। उसे ब्रा फिर से उतारनी पड़ी। बढ़े हुए स्तनों के वजह से वो अब ये ब्रा नहीं पहन पाएगा तो फिर वो घर से बाहर ऋतु को बाय कहने कैसे जा पाएगा? कुछ तो संजु मे बदलाव आ चुका था जिसकी वजह से संजु अब जल्दी भावुक होने लगा था और वो अपनी इस स्थिति पर रोने लगा।
रोते रोते संजु ने एक बार फिर कोशिश की।
“संजु तू अब तक बाहर नहीं आया? मम्मी पापा बाहर मेरा इंतज़ार कर रहे है। मुझे रेलवे स्टेशन के लिए अभी निकलना है।”, ये आवाज ऋतु की थी।
ऋतु की आवाज सुनते ही संजु जैसे टूट सा गया। स्पोर्ट्स ब्रा को एक ओर फेंककर अपना चेहरा छिपाकर वो सिसकने लगा। ऋतु को संजु की दुविधा समझते देर न लगी। पर उसके पास भी समय न था। ऋतु को संजु की दुविधा समझते देर न लगी। पर उसके पास भी समय न था। बिना कुछ कहे ही ऋतु खुद चलकर संजु की अलमारी तक गई वहाँ से उसने संजु की एक tshirt उठाई और एक ब्रा उठाई। संजु के चेहरे से हाथ हटाते हुए उसने संजु को एक नॉर्मल ब्रा पहनाई और उसके आँसू पोंछते हुए उसके सर से टीशर्ट डालती हुई संजु को पहनाई।
“मगर …”, संजु ने ऋतु को रोकना चाहा पर ऋतु ने उसके होंठों पर अपनी एक उंगली रखकर उसे चुप करा दिया। जब प्यार होता है तो किसी शब्दों की जरूरत नहीं होती है। ऋतु संजु के मन की बात समझ गई थी पर वो जानती थी कि इस परिस्थिति को कैसे संभालना है। जिस तरह से संजु के स्तन उसकी टी-शर्ट से उभर कर गोल गोल दिख रहे थे, और जैसा जुड़ा उसने बांध रखा था, वो कहीं से भी लड़का प्रतीत न हो रहा था। फिर भी ऋतु ने संजु का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ नीचे ले चली। सहमाता हुआ संजु बिना कुछ कहे चुप चाप ऋतु के साथ नीचे चल पड़ा।
नीचे हॉल से होते हुए ऋतु संजु का हाथ पकड़ कर घर के दरवाजे की ओर ले जा रही थी। क्या संजु अपने घर की दहलीज को पार कर इस तरह बाहर जाएगा? संजु का मन विचलित हो उठा। और जैसे ही वो दरवाजे तक पहुँच, उसके कदम रुक गए। ऋतु ने उसे बाहर ले जाना चाहा पर संजु अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा। उसके चेहरे का दर्द ऋतु देख रही थी पर यदि संजु इतना भी न कर सका तो वो आगे दुनिया के सामने कैसे जाएगा? शायद ऋतु संजु का सहारा बनना चाहती थी और ऐसे हर कदम पर वो उसके साथ रहना चाहती थी, इसलिए उसने संजु की ओर देखा और आँखों ही आँखों मे संजु से अपनी बात कह दी।
उसने एक बार फिर संजु का हाथ थामा और उसे लेकर दरवाजा खोल कर घर से बाहर ले आई। ज्योंही संजु ने घर के बाहर कदम रखा, वहाँ से कुछ दूर पर खड़े ऋतु के मम्मी पापा की नजर उस ओर पड़ी जहां ऋतु किसी को बाय कह रही थी। वो जिसे बाय कह रही थी उसने कपड़े तो संजु के लड़कों वाले पहने थे पर रूप से वो लड़की थी। उभरे स्तन और सर पर जुड़ा, ये वो संजु न था जिसे वो जानते थे। संजु ने ऋतु को विदा किया तो दोनों की आँखें भर आई।
“मैं जल्दी आऊँगी।”, ऋतु ने संजु की ओर देखते हुए कहा। और फिर संजु का हाथ छोड़ अपने मम्मी पापा के पास चली आई जो उसका इंतज़ार कर रहे थे। वो दोनों ने जो दृश्य देखा उसे देख वो अवाक रह गए थे जिस वजह से उनके होंठों पर एक चुप्पी थी। फिर ऑटो मे बैठ वो तीनों निकल पड़े। शायद आगे चलकर ऑटो मे उन्होंने ऋतु से कुछ पूछा हो, पर ऋतु ने क्या जवाब दिया होगा इस बात का अंदाजा संजु नहीं लगा सकता था।
एक उदास चेहरे के साथ संजु जब अपने घर के अंदर वापस आया तो उसके चेहरे की मायूसी देखकर सुधा का दिल भर आया। अपने बेटे को इस तरह देख वो भी व्यथित होकर उसकी ओर बढ़ चली। पर संजु ने अपनी माँ को अनदेखा कर दौड़कर अपने कमरे की ओर बढ़ चला जहां उसे एक सवाल का जवाब ढूँढना था। और उस सवाल का जवाब उसे खुद को देना था।
अपने कमरे मे पहुंचते ही संजु बिलख पड़ा। उसने अपनी टी-शर्ट उतार दी, अपनी पेंट, ब्रा और पेन्टी भी उतार कर उस कमरे मे खुद से लड़ते हुए उतार उसने एक कोने मे फेंक दी। उसके सवाल ने उसे झकझोर दिया था और वो आज उसका जवाब पाकर ही रहेगा। उसने अपना जुड़ा भी खोल दिया। उसका मन बहुत उद्वेलित हो उठा था। और फिर अपने कमरे मे लगे बड़े से दर्पण के सामने खड़े होकर उसने वो सवाल खुद से किया।
“संजु तू कौन है? तू लड़का है या लड़की है?”
उसने उस दर्पण मे दिखने वाले आकृति को ऊपर से नीचे तक देखा। लंबे मखमली बाल, खूबसूरत आँखें, नरम होंठ। उसकी नजर सब कुछ टटोल रही थी। “लड़की?”, जैसे उसके मन ने जवाब दिया।
तो नजरे और नीचे बढ़ चली। गर्दन से होते हुए उस आकृति के सीने पर पड़ी जहां दो नर्म सुंदर सुडौल स्तन थे जिनका आकार किसी और लड़की को ईर्ष्या दिला देता। उसके रोम रोम उभर रहे थे और उस पर बड़े हो चले गहरे निप्पल भी थे। “लड़की?” एक बार फिर मन ने जवाब देने की कोशिश की।
तो नजर और आगे बढ़ती हुई उसकी कंटीली कमर से होती हुई उसके कूल्हों पर गई जो शायद कुछ महीनों मे बहुत बढ़ गए थे। “ये काया तो लड़की की है”, मन ने फिर से कहा।
और फिर नजरे उसकी मांसल जांघों पर होती हुई वहाँ बीच मे गई जहां कुछ और भी था। नजर एक बार फिर रुक गई और उस जगह को देख मन ने कहा, “लड़का?”
खुद को देखकर संजु के दिल पर इस समय क्या बीत रही थी शायद हममें से किसी के लिए समझना बहुत मुश्किल है।
“अधूरा लड़का? … या फिर अधूरी लड़की?”, जब मन ने यूं जवाब दिया तो संजु टूट पड़ा। वो अपने बिस्तर पर बैठकर रोने लगा। क्यों इतना भावुक हो गया था संजु? पहले तो वो ऐसा न था? पर पहले का संजु तो अब कहीं दिखाई भी नहीं देता?
क्या संजु अब नहीं रहा? या संजु बदल गया है? न जाने कितने सवाल संजु के मन मे उठ खड़े हुए। पर एक विचार जो बहुत देर से बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहा था पर इन सवालों के बीच वो कही लड़ भी रहा था। आखिर उस विचार ने हिम्मत कर संजु से कहा, “संजु बदला नहीं है। संजु तो अब भी वही है जो आज से कुछ साल पहले था। बदला तो सिर्फ रूप है।”
कभी कभी कुछ सामान्य से लगने वाले शब्द भी वो जादू कर देते है जो बड़ी से बड़ी बात न कर पाती है। ये विचार की संजु अब भी वही है, संजु को जैसे नई ताकत दे गया। इन शब्दों का मतलब संजु के लिए बहुत गहरा था जिसे पूरी तरह से सिर्फ वही समझ सकता था। इस नई हिम्मत ने उसके आंसुओं को बहने से रोक दिया और उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान छा गई। संजु अब एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ा होने को तैयार था।
और उसके कुछ देर बाद ही संजु एक बार फिर दर्पण के सामने था। और इस समय संजु नग्न न था। उसके तन पर इस वक्त थी एक बहुत खूबसूरत सी साड़ी जिसे पहनने का वो बहुत समय से इंतज़ार कर रहा था। संजु ने बेहद प्यार से साड़ी को प्लेट कर अपने कंधे पर लगाया और फिर अपने ब्लॉउज़ के साथ उसे सैफ्टी पिन से लगाकर दर्पण मे उस मुसकुराती हुई आकृति से कहा, “मैं संजु हूँ!”
दर्पण मे दिख रही उस आकृति की कमर पर बेहद सलीके से बनी हुई प्लीट जैसे किसी कली से खिलकर फूल बनती हुई लग रही थी। कंधे से लटकती हुई साड़ी जो घुटनों तक आ रही थी जब उस आकृति के हाथों मे आकर लहरा उठी तो मानो एक खुशी की चेतना उस आकृति मे दौड़ उठी। मखमली लंबे बाल भी उस खुशी मे शामिल ही झूम उठे। ऐसे में ब्लॉउज़ और उसके अंदर छिपे स्तन भी उस आकृति के स्वरूप को निखारने मे कहाँ पीछे रहने वाले थे? साड़ी के पीछे झाँकती हुई लचीली कमर और शोभा बढ़ाते कूल्हे उस आकृति को पूर्ण रूप दे रहे थे। माथे पर बिंदी और होंठों पर मुस्कान उस आकृति के सबसे बड़े आभूषण थे। इस आकृति को कोई लड़की कह सकता था तो कोई एक अधूरी लड़की। पर इस आकृति के पीछे था तो सिर्फ और सिर्फ संजु। “संजु तू कौन है?”, इस सवाल का जवाब था, “मैं संजु हूँ।” और ये जवाब अब कभी न बदलने वाला था चाहे ये आकृति कितनी ही क्यों न बदल जाए।

एक नई खुशी के साथ संजु अपनी साड़ी पहनकर धीरे धीरे सीढ़ी से उतरता हुआ नीचे आया जहां उसकी माँ सुधा सोफ़े पर बैठी हुई थी। संजु आते ही सुधा के बगल मे आकर बैठ गया, और फिर पालती मार कर अपनी साड़ी को समेटकर माँ की ओर देखकर मुस्कुराने लगा।
“तो अब क्या करना है?”, सुधा ने प्यार से संजु की ओर देखते हुए पूछा जैसे वो जानना चाह रही हो कि ऋतु के बगैर संजु कैसे अपना समय बीताएगा।
“करना क्या है माँ? अब बस तुम और मैं। अब मैं रोज साड़ी पहनूँगी, तुम्हारे साथ तुम्हारा फैव्रट सीरीअल देखूँगी और तुम्हारी हिरोइन की बुराई करूंगी।”, संजु ने हँसते हुए कहा। तो सुधा भी हँस दी और उसने संजु को गले से लगा लिया।
“ठीक है, कर लेना जितनी बुराई करना है। वैसे ये साड़ी का क्या चक्कर है? इतने दिनों से तो तूने पहनी नहीं थी।”
“वो तो ऋतु के कारण था माँ। वो मुझे साड़ी मे देखकर मुझे चिढ़ाया करती थी। पर अब वो नहीं है तो माँ अब मैं निश्चिंत होकर साड़ी पहन सकती हूँ। पर अब तुम शुरू मत हो जाना कि मुझे दूसरे कपड़े भी पहनने चाहिए।”
“ठीक है बाबा। नहीं बोलूँगी। वैसे भी तू साड़ी मे सबसे ज्यादा सुंदर लगती है।”, सुधा ने मुसकुराते हुए कहा।
“माँ, बस एक बात है। मेरे ब्लॉउज़ जरा टाइट लग रहे है। तुम उन्हे थोड़ा लूज कर दोगी प्लीज?”, संजु ने अब भी अपनी माँ को पकड़ रखा था। और फिर वो अपनी माँ की गोद मे सर रख कर लेट गया।
क्रमश:
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