ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग ११: ममता
रात को सुधा अपने कमरे मे अकेली थी। अकेली तो वो रोज ही रहती थी पर आज उसे अकेलापन महसूस हो रहा था। उसका मन बेहद विचलित था। आज संजु को दुकान मे ब्रा खरीदते वक्त टूटते हुए देखकर उसका दिल टूट सा गया था। पीछले एक साल से संजु के साथ साथ वो खुद भी संघर्ष कर रही थी। और उसके पास उसके पति का साथ भी नहीं था।
पति दूर विदेश मे जो रहते थे। सुधा का जी चाह रहा था कि काश वो यहाँ होते तो वो उनसे गले लगकर सुबक पड़ती और वो उसे अपनी बाँहों मे लेकर उसकी ताकत बढ़ाते। सुधा के गले लगने की चाहत एक शारीरिक जरूरत नहीं थी बल्कि एक पत्नी की एक पति से सहारा पाने की चाहत थी। कितना हँसता खेलता परिवार था उन तीनों का। उसने अपने पति से कहा भी था कि वो विदेश न जाए पर पैसे कमाने भी जरूरी थे। फिर भी किसी तरह एक साल पहले तक तो सब ठीक ही था, सुधा जानती थी कि एक दिन संजु के अंदर का एक्स्ट्रा X क्रोमज़ोम उनके जीवन मे बदलाव और परीक्षा की घड़ी लेकर आएगा। पर इस तरह इतनी जल्दी, ऐसा उसने नहीं सोचा था।
जिस बेटे को अपने हाथों से लाड़ प्यार कर खिलाकर बड़ा किया था आज उसे इस तरह टूटते देख कर उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी। पति की कमी उसे बेहद खल रही थी। वो दोनों तो वैसे भी कुछ समय से पति-पत्नी कम और माता-पिता ज्यादा बन चुके थे। हँसती खेलती चुलबुली सुधा अब शांत हो चली थी। अब उसे अपने बेटे का ज्यादा खयाल रखना होता था, उसका सहारा बनना होता था। उसके अंदर की ममता कई बार अश्रु बनकर बाहर आना चाहती थी, पर उसे उन अश्रुओं को वहीं रोक देना होता था। पर हर बार तो वो ये नहीं कर सकती थी।

पति से अनबन, रूठना मनाना, परेशानियों का मिलकर हल निकालना और कुछ रोमांटिक पल बीताना ये सब तो पुरानी बातें हो गई थी। मेकअप की जगह अब moisturizing क्रीम और एंटी-एजिंग क्रीम ने ले ली थी। अब तो जीवन मे एकमात्र ध्येय संजु की खुशी था। वो इस वक्त दिन भर के काम और शॉपिंग के बाद थक चुकी थी और सोना चाहती थी, पर दिल मे भारी बेचैनी भी थी कि संजु के दिल मे इस वक्त क्या चल रहा है। आखिर मे ममता ने उसे झकझोर ही दिया कि वो संजु के कमरे मे जाकर एक बार देख आए कि वो कैसा है। यूं तो सुधा संजु को प्यार से बेटी की तरह संबोधित करती थी मगर दिल मे तो वो आज भी दुलारा बेटा ही था उसके लिए। फिर चाहे उसका बेटा अब बाहरी रूप से बदलकर साड़ी पहनकर खुश होता हो।
जब सुधा संजु के कमरे के पास पहुंची तो वहाँ नाइट लैम्प जल रहा था और उसी के बगल मे बिस्तर मे संजु अपनी नाइटी पहने अपने घुटनों को अपने सीने से लगाए उसमे अपने चेहरे को छिपाकर बैठा हुआ था।
“संजु, बेटा, तू सोई नहीं अब तक?”, सुधा ने धीमे से दरवाजा खोलते हुए कहा।
“नहीं, माँ”, संजु की आवाज मे मायूसी थी।
जब सुधा संजु के बगल मे आकर बैठ गई तो संजु अपनी माँ से लिपटकर उसके सीने पर सर रखकर ज़ोरों से लिपट गया। माँ का मर्म स्पर्श पाकर वो ममता का अनुभव इस वक्त शायद संजु के लिए बहुत जरूरी था।
“क्या बात है बेटा? तू सोई क्यों नहीं?”
“बस नींद नहीं आ रही माँ”, संजु ने चेहरा सुधा के सीने पर रखे रखे ही जवाब दिया तो सुधा उसकी पीठ पर प्यार से हाथ फेरने लगी।
कुछ देर तक दोनों ने एक दूसरे से कुछ न कहा, और संजु धीरे से अपनी माँ की गोद मे सर रखकर लेट गया।
“माँ जब तुम मेरी उम्र की थी, तब तुम कैसी थी?”, संजु ने पूछा।
“बिल्कुल तेरी तरह ही थी मैं भी। बस थोड़ी ज्यादा शैतान थी मैं।”, सुधा ने संजु की नाक को पकड़कर हँसते हुए कहा।
“सच सच बताओ न माँ!”
“ठीक है बताती हूँ।”, सुधा बोली और मुस्कुराने लगी।
“हम्म मैं तेरी तरह पढ़ने मे होशियार तो नहीं थी मगर तेरी तरह मुझे भी इस उम्र मे साड़ी पहनने का बहुत शौक था। पर फिर हमारे समय मे तो लड़कियों को उस उम्र मे साड़ी पहनना सीखना ही पड़ता था। तो तेरी नानी भी मेरे पीछे पड़ी रहती थी।”
माँ की बात सुनकर संजु मुस्कुराने लगा।
“तब हमारे पास आज की तरह इतने इलेक्ट्रॉनिक सामान नहीं थे तो मनोरंजन के लिए सहेलियाँ ही होती थी। और मेरी तो ढेर सारी सहेलियाँ थी। हम लोग जितना समय मिलता था उतने समय मे खूब मस्ती किया करती थी। क्योंकि हम जैसे ही अपने अपने घर जाती तो हमारी माँ हमारे पीछे पड़ जाती कि हमको खाना बनाना सीखना चाहिए ताकि हमको ससुराल मे कोई शिकायत न हो।”
माँ की बात सुनकर संजु हँसने लगा और बोला, “तो तुम मुझे किचन मे कुछ सिखाती क्यों नहीं?”
“तुझे भी सीखा दूँगी। और वैसे तुझे ससुराल थोड़ी जाना है! आजकल तो लड़का हो या लड़की, सभी अपने अलग घर मे रहते है। वैसे खाना बनाना तो सभी को आना चाहिए। इसलिए मैं भी तुझे सीखा दूँगी। ठीक है?”
“ठीक है, माँ। और बताओ न अपने बचपन के बारे में।”
“और क्या बताऊँ?”
“जैसे तुम बड़ी होकर क्या बनना चाहती थी?”
“हम्म .. बड़ी होकर मैं एक प्यारे से बच्चे की मम्मी बनना चाहती थी!”, सुधा जोर जोर से हँसने लगी।
“वेरी फन्नी माँ! तो तुम्हारा सपना पूरा हुआ या नहीं?”, संजु ने भी माँ का हाथ पकड़ मसखरी करने लगा।
“हुआ न। जितना सोचा था उससे भी कई गुना ज्यादा। और मुझे इतनी प्यारी बेटी मिली।”, सुधा ने संजु के चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा। माँ का प्यार पाकर संजु भी बहुत खुश था।
“माँ, पता है तुम्हें?”, संजु ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा।
“क्या?”
“मुझे तो ये भी नहीं पता कि मैं बड़ी होकर कुछ बनूँगी या कुछ बनूँगा। मुझे डर लगता है माँ”
ये संजु की कही बात उस छोटी सी उम्र मे भी बहुत गहरी बात थी। सुधा इस बात को समझ सकती थी। पर सुधा ने मुसकुराते हुए प्यार से पूछा, “डर किस बात का बेटा?”
“माँ, आज जिस तरह से दुकान मे सभी ने मुझे लड़की कि तरह देखा और व्यवहार किया, मुझे लगने लगा है कि मैं चाहूँ या न चाहूँ, मुझे आगे चलकर लड़की बनकर ही रहना होगा।”, संजु एक बार फिर मायूस था।
“अरे, किसने कहा तुझे ऐसा? ये कोई मजबूरी थोड़ी है? यदि तुम लड़की बनकर बड़ी होगी तो अपनी मर्जी से, मजबूरी मे नहीं”, माँ ने कहा।
“मगर कैसे माँ? जब सब मुझे मेरे शरीर की वजह से लड़की समझेंगे तो ये तो मेरी मजबूरी हुई न? मर्जी कैसे?”
सुधा कुछ पल के लिए सोच मे पड़ गई पर फिर कुछ सोचकर बोली, “अच्छा ये बता, जब तेरी स्कूल की परीक्षा आती है तो तेरा उद्देश्य क्या रहता है?”
“अच्छे नंबर लाना।”, संजु बोला।
“और उसके लिए तू क्या करती है?”
“खूब पढ़ाई।”
“हम्म तो उस पढ़ाई के लिए देर रात तक जागना पड़े तो तू जागेगी?”
“ऑफ कोर्स माँ। मैं तो परीक्षा के वक्त जागती भी हूँ।”, संजु ने कहा।
“हम्म ठीक है। तो अब मुझे ये बता कि अपनी नींद खराब करके देर रात तक पढ़ना तेरी मजबूरी है या मर्जी?”
“माँ, लेकिन स्कूल की परीक्षा और मेरी ये प्रॉब्लम अलग है।”, संजु ने समझ कर भी माँ की बात को अनदेखा किया। पर सुधा की ममता यूं हार नहीं मानने वाली थी।
“ऐसे कैसे अलग है बेटा? तेरी लाइफ मे भी एक परीक्षा है और तेरा उद्देश्य है उस परीक्षा को पास कर खुश रहना। अब यदि वो खुशी लड़की बनकर मिलती है तो वो मजबूरी नहीं होगी।”
“मजबूरी ही होगी माँ”, संजु ने रूठते हुए कहा। वो सुधा की बात सुनने को तैयार न था।
“संजु, देख मेरी बात सुन बेटा।”
पर संजु ने माँ से मुंह मोड़ लिया। पर सुधा ने एक बार फिर उसके चेहरे को अपनी ओर पलट कर बोली, “तू मेरी अच्छी बेटी है न?”
“तुमही ने तो कहा था कि मैं तुम्हारी अच्छी बेटी हूँ। अब पूछ क्यों रही हो?”
“और तुझे मेरी बेटी होना अच्छा लगता है? हम दोनों माँ-बेटी है, ये तुझे पसंद है या नहीं?”
“ऑफ कोर्स पसंद है माँ!”
“तो जब तू डिसाइड करेगी कि तू हमेशा लड़की बनकर रहेगी, तब वास्तव मे तू ये डिसाइड करेगी कि तू मेरी बेटी बनकर रहना चाहती है। क्या तू ये मजबूरी मे करेगी या खुशी से? यदि ये मजबूरी है तो ठीक है, अब से मैं तुझे न साड़ी पहनाऊँगी और न ही तुझे खाना बनाना सिखाऊँगी!”
“माँ तुम तो मुझे ईमोशनल ब्लैक्मैल कर रही हो।”, संजु माँ की ओर देख मुस्कुरा दिया।
पर अब सुधा की रूठने की बारी थी। तो अपनी रूठी माँ को मनाने के लिए संजु बिस्तर पे उठकर बैठ गया और फिर अपनी माँ को प्यार से गले लगाकर बोला, “माँ, मैं तुम्हारी बेटी हमेशा अपनी मर्जी और अपनी खुशी से बनूँगी। मैं जैसे भी रहूँ, तुम्हारी बेटी तुमको हमेशा प्यार करेगी!”
और संजु अपनी माँ से प्यार से गले लग गया। सुधा ने भी अपनी बेटी को प्यार से गले लगाया और फिर अपनी गोद मे उसका सर रखकर उसके बालों पर उँगलियाँ फेरती हुई उसे सुलाने लगी। एक बार फिर ममता जीत गई थी और उसी के साथ संजु को भी नई हिम्मत मिल गई थी।
क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें