संजु (10)

 ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग १०: शॉपिंग


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रोज रात की ही तरह, खाना खाने के बाद संजु अपनी माँ के साथ घर मे टीवी सीरीअल देख रहा था। उसकी मम्मी का ये फेवरेट सीरीअल था। आज सीरीअल मे संजु की मम्मी की प्रिय हिरोइन अपनी ननद को शादी करने के लिए मना रही थी, पर ननद थी कि वो अपनी प्यारी भाभी को मुसीबत मे अकेले छोड़ने को तैयार नहीं थी।

संजु का सीरीअल की कहानी मे तो कोई इंटेरेस्ट नहीं था, पर उस सीरीअल की ननंद के वो खुद को बेहद करीब पाता था। यूं तो उम्र मे संजु उससे काफी छोटा था पर उसके कपड़े पहनने का तरीका और चाल-चलन देखकर वो उससे काफी कुछ सीखता था। वो अकसर सलवार कुर्ती पहना करती थी और गले पर हमेशा एक हल्की सी पारदर्शी चुन्नी हुआ करती थी। उसी को देखकर संजु भी अब दुपट्टे को कंधों पर पिन करने की जगह अब हल्की चुन्नी ओढ़ने लगा था, और सीरीअल की ननद की ही तरह, वो भी चुन्नी को पूरी गर्दन के पास ही रखने लगा था। पिन करके चुन्नी को संभालने से बहुत आसान था, और कभी कभी अपने सीने को ढंकने के लिए चुन्नी का उपयोग करता था।

टीवी सीरीअल मे चल रहे इस सीन को रोज रात की ही तरह संजु अपनी मम्मी के साथ देख रहा था। संजु मे आया हुआ बदलाव उसकी मम्मी भी नोटिस कर रही थी। पहले तो मजबूरी मे पर अब अपनी खुशी से वो सीरीअल की लड़कियों और औरतों के हाव भाव को अपने जीवन मे अपनाने लगा था। पर संजु की मम्मी उससे कुछ कहती नहीं थी ताकि वो शर्मिंदा न महसूस करे। आखिर धीरे धीरे कर संजु लड़कियों के हाव भाव खुद ही सीखने लगा था। और उसकी माँ इसे देखकर खुश होती थी। कुछ अजीब सा जीवन था उन दोनों का भी जहां बेटे को लड़की बनते देख एक माँ को खुशी मिल रही थी।

जैसे बिल्कुल छोटी उम्र के बच्चे एक पल को रोते है और दूसरे ही पल हंस पड़ते है, कुछ वैसे ही संजु का जीवन भी था। कभी अपनी स्थिति को लेकर चिंतित होता तो अगले ही पल एक लड़की के रूप मे खुशी खुशी घर मे रहता। आजकल तो कभी सलवार पहनकर अपनी चुन्नी को लहराता, तो कभी साड़ी पहनकर बलखाता। वैसे तो उसकी माँ उसे रोज रोज साड़ी पहनने से मना कर रखा था, इसलिए हफ्ते मे एक दो दिन ही वो साड़ी पहनता था। कभी कभी माँ से छिपकर अपने कमरे मे ही साड़ी पहनने की खुद कोशिश करता, पर फिर भी अभी तक वो उतनी अच्छी तरह से साड़ी बांध नहीं पाता था जैसे उसकी मम्मी उसे बांध कर देती थी। जो भी हो, साड़ी अपने हाथों से पहनने की ललक उसकी कम नहीं हो रही थी। और एक बार साड़ी पहनने के बाद, बिल्कुल एक नवयुवती की तरह अपनी साड़ी मे खुश होता। एक जगह बैठकर अपनी गोद मे अपने पल्लू को फैलाकर उसकी खूबसूरती को देखकर खुश भी होता जैसे एक किशोर युवती होती है। और जब किचन मे साड़ी के पल्लू को कमर मे खोंचकर अपनी माँ की मदद करता तो मन ही मन खुश भी होता था कि अब वो बड़ा हो गया है। एक तरह से वो भी ऋतु की तरह ही सोचने लगा था जो एक किशोरी से यौवना बनने की ओर अग्रसर थी।

जहां एक ओर संजु को अपनी साड़ी के कलेक्शन से कोई शिकायत नहीं थी, वहीं दूसरी ओर उसकी सलवार कुर्ती का कलेक्शन बहुत ही पुराने फैशन का और ढीला ढाला सा था। इसलिए टीवी मे जब वो किसी लड़की को खूबसूरत सलवार मे देखता तो उसकी आँखों मे भी हसरत जाग जाती कि उसके पास भी ऐसी कुर्ती हो जिसमे उसका फिगर खिल उठे बिल्कुल वैसे ही जैसे ऋतु का खिल उठता है। संजु भी न, कितना बदल गया था। उसकी आँखों की ये हसरत शायद उसकी मम्मी काफी समय से नोटिस कर रही थी इसलिए तो संजु के सर पर हाथ फेरते हुए बोली, “संजु, ये बता तुझे ये सीरीअल मे शिखा ने जैसी कुर्ती पहनी है, तुझे पसंद है?”

माँ की बात सुनकर संजु थोड़ा सा शर्मा गया। अपने दिल की बात माँ के मुख से सुन थोड़ा तो शर्माना बनता था। “ठीक ही है माँ”, उसने ऐसे जवाब दिया जैसे कि उसका इतना भी इंटेरेस्ट न हो। पर माँ तो समझ गई थी।

“कल हम लोग तेरे लिए शॉपिंग करने जाएंगे दिन मे। तब ऐसी डिजाइन की कुर्तियाँ भी देख लेंगे।”, माँ ने कहा।

“हम लोग? बस हम दोनों ही जा रहे है न माँ?”, संजु ने पूछा।

“अरे, ऋतु भी तो चलेगी। मैंने उससे पहले ही कहा था चलने को। आखिर उसे मॉडर्न डिजाइन की ज्यादा समझ है।”, माँ ने कहा।

“माँ! तुम ऋतु को क्यों साथ लेकर चल रही हो?”, संजु ने ऐसे कहा जैसे उसे ऋतु का साथ पसंद न हो। पर ये तो तरीका होता है लड़कों के कहने का जहां वो कहते कुछ है और सोचते कुछ और है। ऋतु के साथ शॉपिंग करने की सोचकर ही वो मन ही मन खुश था।

“तुझे ऋतु से क्या प्रॉब्लम है? वो आ जाएगी तो हम दोनों को ही आसानी होगी न?”

“ठीक है माँ। जैसे तुम्हें ठीक लगे। पर उसको संभालना तुम्हारी जिम्मेदारी होगी। वो हमेशा मुझे परेशान करती थी।”, संजु ने किसी नादान लड़की की तरह शिकायती लहजे मे कहा। उसकी बात सुनकर सुधा मुस्कुरा दी। संजु और ऋतु की ये छोटी छोटी लड़ाई उसे बहुत प्यारी लगती थी।

“अच्छा, कल हम लोग तेरे लिए नई ब्रा भी ले लेंगे। तेरी सभी ब्रा छोटी हो रही है न?”, माँ ने कहा।

“माँ!”, संजु ने शरमाकर कहा। ब्रा शब्द माँ के मुंह से सुनकर उसे बहुत लाज आती थी।

“इतना शर्मा क्यों रही है बेटा? अब तू बड़ी हो रही है और ब्रा एक लड़की की जरूरत होती है। उसको लेकर ऐसे शरमाते नहीं है।”, माँ ने हंसकर संजु को समझाया। और फिर दोनों एक बार फिर सीरीअल देखने मे मगन हो गए।


अगली सुबह शनिवार की सुबह थी। संजु के लिए उसका सबसे प्रिय दिन और वो भी यदि वो महीने का दूसरा या तीसरा शनिवार हो। क्योंकि इस शनिवार को स्कूल की छुट्टी हुआ करती थी। इसका मतलब की संजु अपने घर मे आजादी से अपने रूप मे रह सकेगा। रोज की तरह आज उसे उसके स्तनों को छिपाने के लिए स्पोर्ट्स ब्रा पहनने की जरूरत भी न होती।

सुबह की धूप चेहरे पर पड़ने पर जब संजु की आँख खुली तो उसके मासूम चेहरे पर एक खुशी भरी मुस्कान थी। क्योंकि आज के दिन का तो वो बेसब्री से इंतज़ार जो कर रहा था। अपने बिस्तर पर उठकर उसने अपने दोनों हाथों को फैलाकर एक अंगड़ाई ली। जैसे जैसे समय का पहिया घूम रहा था, संजु की ये अंगड़ाई और मोहक होते जा रही थी। उसके बढ़ते हुए स्तन और बड़े होते निप्पल इस अंगड़ाई के वक्त उसकी कोमल नाइटी पर बेहद खूबसूरत सा उभार लेकर आते थे। संजु को भी ऐसा करते हुए अपने स्तनों पर वह सब महसूस होता था। खुश मन के साथ ही वो तुरंत उठकर अपनी नाइटी से अपने पैरों को ढँककर नहाने की ओर चल पड़ा। आज वो समय यूं व्यर्थ नहीं कर सकता था क्योंकि आज हफ्ते का वो एक दिन था जिसे वो साड़ी पहनकर बीताना चाहता था।

न जाने कैसे और क्यों पर संजु मे एक बदलाव और आया था। पहले जब वो नहाया करता था तब वो झटपट साबुन लगाकर फटाफट पानी डालकर १० मिनट से कम समय मे नहाकर बाहर आ जाया करता था। मगर अब वो बेहद ही प्यार से साबुन से झाग बनाकर अपने शरीर पर लगाता, बेहद ही नजाकत के साथ अपने स्तनों पर झाग लगाकर उन्हे अपने हाथों से छूकर साफ करता और अपने निप्पल को उंगलियों से पकड़ कर साफ करता। ऐसे ही फिर अपने कोमल पैरों के साथ करता। और बालों को धोते वक्त तो खास खयाल रखता। और नहाने के बाद कैसे सावधानी से बालों को सुखाना है यह तो उसकी मम्मी ने उसे सीखा ही दिया था। अब संजु को नहाने मे भी ज्यादा समय लगता और फिर बालों को सुखाने मे भी। बाथरूम मे बालों को धीरे धीरे तौलिए से पोंछने के बाद ही वो कुछ कपड़े पहनता। ऐसा करते हुए उसके बढ़ते हुए स्तन अब हिलने भी लगे थे। पहले पहले तो अपने सपाट सीने पर उभरते हुए उन स्तनों को देखकर संजु उन्हे अनदेखा करने की कोशिश किया करता था, पर अब तो उसे उनसे भी प्यार होने लगा था। उन्ही की वजह से तो उसका रूप आखिर निखरने लगा था।

बालों को पोंछने के बाद वो सबसे पहले पेंटी पहना करता था। अब तो बढ़ते हुए कूल्हों पर उसकी पेन्टी और भी चुस्त फिट आने लगी थी। उसकी नाजुक पेन्टी का स्पर्श उसके कूल्हों पर उसे अच्छा लगता था। और पेन्टी का कट उसके उनके होने का पूरे वक्त आभास देता था। संजु के लड़कों वाली अंडरवेयर से तो काफी ज्यादा आराम उसे पेन्टी मे लगता था।

इसके बाद अब वो ब्रा तो आँख बंद करके भी पहन सकता था। उसे अब पीछे हुक लगाने मे जरा भी परेशानी नहीं होती थी। पर आज वो सीधे ही ब्लॉउज़ पहनने वाला था। क्योंकि उसकी ब्रा उसे छोटी पड़ने लगी थी और फिर ब्लॉउज़ मे स्तनों को संभालने के लिए कटोरियाँ भी बनी हुई थी, तो उसे ब्रा पहनना उचित नहीं लगा।

और फिर बहुत खुशी से संजु ने ब्लॉउज़ को पहना। ये ब्लॉउज़ उसकी मम्मी का था। क्योंकि संजु ने घर मे पहनने के लिए माँ से ३-४ साड़ियाँ और ली थी, तो उनसे मैच करते हुए ब्लॉउज़ उसकी मम्मी ने संजु के साइज़ मे फिट कर दिए थे। उसकी कुहनी से कुछ ऊपर तक आने वाली आस्तीन उसकी बाँहों पर बिल्कुल चुस्त आ रही थी। और फिर ब्लॉउज़ के हुक लगाने के बाद, संजु के स्तन ब्लॉउज़ की कटोरियों मे बिल्कुल फिट आ गए। संजु को ये पुराने तरीके के कटोरी ब्लॉउज़ इसलिए बहुत पसंद थे कि इसमे ब्रा न पहनो तब भी स्तन सही जगह रहते थे। वरना उसकी माँ ने जो ब्लॉउज़ सिर्फ संजु के लिए सिले थे, वो थोड़े ज्यादा फैशनेबल थे, उनमे इस तरह की कटोरियाँ नहीं थी। और फिर उसकी मम्मी के ब्लॉउज़ का कट भी उतना गहरा नहीं था, तो पीठ काफी ढँकी रहती थी, और सामने से सिर्फ स्तनों के बीच की गहराई सिर्फ थोड़ी ही दिखती थी।

ब्लॉउज़ पहनने के बाद संजु ने जब खुद को आईने मे देखा तो उसकी आँखों मे एक चमक थी। अपनी मम्मी का ब्लॉउज़ पहनकर उसमे उसे अपनी माँ की छवि जो दिख रही थी। बेटी हो या बेटा, खुद मे माँ की छवि देखकर कोई भी खुश होता है। संजु किस रूप मे ये खुशी महसूस कर रहा था यह तो वही जाने या शायद उसे भी नहीं पता था। और फिर इसके बाद संजु ने पेटीकोट को पैरों पर चढ़ाकर नाड़ा बांधकर अपनी कमर पर कस लिया और एक साड़ी को हाथों मे लेकर खुशी खुशी बाथरूम से बाहर अपने कमरे मे आ गया।

साड़ी पहनने के पहले संजु ने उस साड़ी को बड़ी चमकती हुई आँखों से देखा और फिर उसे खोलकर निहारने लगा। “आज तो मैं बिल्कुल अपनी मम्मी की तरह लगूँगी”, उसने मन ही मन सोचा। तो इस वक्त संजु बिल्कुल एक बेटी की ही तरह सोच रहा था। वैसे तो रोज स्कूल से आने के बाद संजु को एक बेटे से बेटी बनने और उस तरह सोचने और बोलने मे समय लगता था, पर आज सुबह से ही संजु लड़की की ही तरह सोच रहा था। उसने इस साड़ी मे मम्मी को कई बार देखा था। और उसकी मम्मी उसे ये पुरानी साड़ी देना नहीं चाहती थी पर उसकी जिद के आगे उसकी मम्मी को मानना ही पड़ा था।

और फिर उस खूबसूरत प्रिंटेड शिफ़ौन साड़ी को उसने खोलकर अपनी कमर के चारों ओर लपेटने लगा। कुछ हद तक तो संजु साड़ी पहनना सिख ही गया था। एक बार चारों ओर लपेटने के बाद उसने पल्लू के एक सिरे को पकड़ कर नापा और फिर उसे खुद के चारों ओर लपेटकर अपने कंधे पर इस तरह रख दिया कि पल्लू उसके कंधों के पीछे सही लंबाई तक लटक रहा हो। इतना तो संजु सिख चुका था। पर उसकी असली मुसीबत प्लेट बनाने को लेकर थी। किसी तरह तो उसने कई प्रयास के बाद कमर के नीचे प्लेट बनाकर नाभि के नीचे लगाया और वहाँ प्लेटस के सबसे ऊपर एक सैफ्टी पिन लगाकर उन्हे फिक्स किया।

अब जब पल्लू को प्लीट करने की बारी आई तो न जाने कितने ही प्रयास के बाद भी वो बराबर प्लीट न बना सका। कभी आखिरी प्लेट छोटी पड़ जाती तो कभी बाकी प्लेटस से काफी बड़ी रह जाती। वो कई प्रयास के बाद भी बराबर प्लेट्स नहीं बना सका तो हारकर उसने अपने पल्लू को खुला ही रखना मुनासिब समझा। उसने बस पल्लू को एक सैफ्टी पिन से अपने ब्लॉउज़ के कंधे पर पिन कर दिया ताकि उसका पल्लू फिसलता न रहे। कटोरी ब्लॉउज़ मे उसके स्तन उसकी साड़ी के पल्लू के पीछे बहुत खूबसूरत लग रहे थे। संजु को साड़ी की यही बात सबसे ज्यादा लुभाती थी, कि साड़ी मे उसके शरीर का आकार बेहद अच्छी तरह से उभर कर आता था।

अब जब संजु तैयार था तो उसने अपने पल्लू को पीछे से आगे लाकर एक हाथ मे पकड़ा और फिर दूसरे हाथ की उंगलियों से कमर के नीचे की प्लेटस को उठाकर नीचे अपनी मम्मी से मिलने के लिए बढ़ चला। सीढ़ियों से उतरते चढ़ते वक्त साड़ी को इस तरह से उठाकर चलना तो संजु पहले ही दिन सिख चुका था। और अब तो इसमे वो माहिर हो गया था। साड़ी पहनकर चलते हुए उसके कूल्हों पर साड़ी की सरसराहट भरी आवाज बेहद लुभावनी लग रही थी उसके कानों पर। और फिर बिना ब्रा के स्वतंत्र उसके स्तन उसे बाकी दिनों के मुकाबले आज ज्यादा आरामदायक लग रहे थे। बाहर की दुनिया की अपनी परेशानियों को भुलाकर संजु अपने घर के अंदर आज सचमुच बहुत खुश था। और सचमुच घर ऐसा ही तो होना चाहिए जहां हम सभी परेशानियों से मुक्त हो, जहां हम अपनी मर्जी से जी सके .. बिना डरे, बिना घबराए, आजाद!


संजु ने अपनी माँ को ये साड़ी पहने कई बार देखा था। उसकी माँ सचमुच इस साड़ी की सादगी मे खूबसूरत लगती थी। शायद उसी खूबसूरती की चाहत मे संजु ने माँ से ये साड़ी मांगी थी।

सीढ़ियों से उतरकर जब संजु नीचे आया तो जैसा उसे उम्मीद थी, उसकी माँ किचन मे उन दोनों के लिए नाश्ता बना रही थी। भीगे हुए बालों के साथ उसकी माँ उसे बेहद प्यारी लग रही थी। संजु का जी तो चाहा कि वो दौड़कर अपनी माँ से गले लग जाए पर साड़ी पहनकर दौड़ना उसने मुनासिब नहीं समझा। और फिर माँ के सामने साड़ी पहनकर आने मे थोड़ी झिझक भी तो थी। चाहे जो भी वो अपनी माँ की तरह साड़ी उतनी अच्छी तरह से पहनना तो नहीं जानता था।

और धीरे धीरे चलते हुए वो अपनी माँ की ओर अपने खुले पल्लू को संभालते हुए बढ़ने लगा। शायद उसकी साड़ी से होने वाली सरसराहट को उसकी माँ ने सुन लिया था तभी तो बिना देखे ही उन्होंने कहा, “आ गई बेटा तू? आजा चल दोनों नाश्ता करते है।”

और फिर उन्होंने पलट कर संजु की ओर देखा तो उनके चेहरे पर संजु को साड़ी पहने देखकर मुस्कुरा दी। “तो आखिर तूने साड़ी पहन ही ली आज।”

संजु थोड़ा शर्मा गया पर अपनी झिझक छोड़ वो अब तेजी से माँ की ओर बढ़ा। खुला पल्लू कुछ ज्यादा लंबा हो गया था जो उससे संभाल नहीं रहा था तो उसने उसे उसी तरह से उठाकर अपने कंधे पर एक हाथ से चढ़ाया जैसे उसने अकसर अपनी माँ और टीवी मे दूसरी औरतों को करते देखा था। “हाँ, माँ! तुम मुझे पहनने से मना करती हो। पर आज मेरा दिन है इसलिए आज मैं साड़ी मे ही रहूँगी।”

उसकी बात सुनकर माँ हंस पड़ी। “वो सब तो ठीक है पर तुझसे पल्लू की प्लीट नहीं बन सकी न?”

अब संजु माँ से क्या छुपाता तो उसने सच बता ही दिया, “पता नहीं तुम कैसे बराबर प्लेट बना लेती हो माँ। मुझसे तो कभी एक छोटी या कभी बड़ी बन रही थी। जब बराबर बनी भी तो इतनी चौड़ी कि अच्छी नहीं लग रही थी। पर वो सब छोड़ो माँ … चलो मैं भी नाश्ता बनाने मे कुछ मदद कर देती हूँ।”

“बन चुका नाश्ता। मदद करनी थी तो पहले आना था न?”, माँ ने हँसते हुए कहा। “अच्छा रुक पहले तेरी साड़ी सुधार दूँ।” और फिर माँ ने संजु को पास बुलाया।

“ओहो तूने तो साड़ी भी इतनी ऊंची पहनी है। साड़ी इस तरह उठी हुई अच्छी नहीं लगती। ध्यान रखना आगे से कि साड़ी का निचला छोर पूरी तरह से पैरों तक आना चाहिए। समझी?”, माँ ने फिर कहा और संजु की पूरी साड़ी खोल दी और फिर एक बार फिर सही तरीके से पहनाने लगी।

यूं तो माँ के कहने के लहजे मे शिकायत थी पर उनके अंदर का प्यार संजु महसूस कर सकता था। और फिर देखते ही देखते माँ ने संजु को अच्छी तरह साड़ी पहना दी और कंधे पर प्लेट बनाकर पिन भी कर दी। यकीनन ही सही तरीके से साड़ी पहनने से बहुत फरक आ जाता है वो तो संजु को अब कुछ कदम चलकर ही समझ आ गया था क्योंकि अब वो बेहद आसानी से चल पा रहा था।

फिर माँ और बेटा दोनों टेबल पर बैठ कर नाश्ता करने लगे। तभी माँ ने संजु से कहा, “अपने बालों को धोने के बाद अच्छी तरह से सूखा लिया था न?”

“हाँ, माँ। तभी तो मुझे नीचे आने मे इतना समय लग गया।”, संजु ने नाश्ता करते हुए कहा।

“अच्छा? सच बताना बाल सुखाने की वजह से देर हुई या फिर साड़ी पहनने की वजह से?”, माँ खिलखिलाकर बोली।

संजु की माँ भी उसे छेड़ने से बाज नहीं आती थी। इस वक्त दोनों माँ बेटे कम बल्कि माँ बेटी ज्यादा थे। शायद संजु और उसकी माँ दोनों को ही ये रिश्ता ज्यादा सहज लगने लगा था। और इसी तरह बातचीत करते हुए दोनों का नाश्ता भी हो गया और बर्तन भी धूल गए।

जब सब कुछ हो गया तब माँ ने संजु से कहा, “चल अब तेरी चोटी बना देती हूँ।”

“माँ, एक दिन तो मुझे खुले बाल रखने दो न। प्लीज!”, संजु ने चेहरा बनाते हुए कहा।

“संजु”, माँ ने गंभीर आवाज मे कहा तो संजु को समझ आ गया कि उसकी एक न चलेगी। और फिर होना क्या था, माँ एक कुर्सी पर कंघी लेकर बैठ गई और संजु उनके पैरों पर चटाई बीछा कर पैर सीधे कर अपनी पीठ माँ के पैरों से लगाकर बैठ गया। बैठते ही सबसे पहले तो उसने अपनी साड़ी और अपने पल्लू को संवारा। अपनी साड़ी को लेकर संजु कुछ ज्यादा ही सचेत रहता था।

यूं तो किसी सामान्य लड़के के लिए नीचे पैर सीधे रख कर अपनी पीठ को सीधी रख बैठना मुश्किल होता है और संजु के साथ भी ५-६ महीने पहले तक ये बहुत मुश्किल काम हुआ करता था। पर न जाने कैसे अब वो बड़ी आसानी से इस तरह से बैठ सकता था। शायद या तो उसे इस तरह बैठने की अब आदत हो चुकी थी या फिर अब उसके बढ़ चुके गोल कूल्हों की वजह से बैठना आसान हो गया था।

और फिर माँ ने कंघी से संजु के लंबे बालों की उलझनों को पहले दूर किया और फिर चोटी बनाने लगी। संजु के गहने बालों की वजह से बेहद घनी लंबी चोटी बनती थी। यूं तो संजु के बाल लंबे थे पर फिर भी चोटी बनाने के बाद उसकी चोटी मुश्किल से उसके ब्लॉउज़ के नीचे तक पहुँच पाती थी। फिर भी खूबसूरत बहुत दिखती थी। यदि संजु के बाल इसी तरह बढ़ते रहे तो एक दिन उसकी चोटी कमर तक पहुँच जाएगी।

“माँ, एक बात पूँछु?”, संजु ने कहा।

चोटी बनाने मे व्यस्त माँ ने कहा,”हाँ, पूछ” वैसे तो उसकी माँ संजु से बिना कुछ छिपाए सब बता दिया करती थी। पर फिर भी जब कभी संजु अपने भविष्य के बारे मे माँ से बात करता तो उसकी माँ के लिए जवाब देना कभी कभी मुश्किल हो जाता था क्योंकि भविष्य तो वो भी नहीं जानती थी। इसलिए संजु का सवाल क्या होगा सोचकर वो थोड़ी असहज भी थी।

“माँ, तुम मुझे अपनी एक बिंदी लगाने को दोगी? शायद बिंदी लगाकर मैं ज्यादा अच्छी लगूँगी। बिल्कुल तुम्हारी तरह!”, संजु ने कहा।

उसकी ये छोटी सी रीक्वेस्ट सुनकर उसकी माँ का दिल भर आया और उसने झुककर संजु को गले लगा लिया।

“ठीक है, चल कमरे मे चल।”, और माँ संजु को अपने साथ अपने कमरे मे ले आई और उसे ड्रेसिंग टेबल पर बिठा दिया।

और फिर संजु के माथे पर एक गोल मरून रंग की बिंदी लगा दी। बिंदी के लगते ही संजु के रूप मे जैसे चार चाँद लग गए। एक छोटी सी टिकली भी किसी के रूप को कितना बदल सकती है। और फिर खुद को आईने मे देखकर संजु की खुशी का ठिकाना न रहा। शायद उसके चेहरे पर उसकी माँ की छवि अब पूरी हो चुकी थी। पर माँ के पास एक और सप्राइज़ था। उन्होंने ड्रावर से दो कंगन निकाले और संजु के हाथों मे पहना दिए। और संजु खुशी के मारे अपनी माँ के गले लग गया। उन दोनों की आँखों मे खुशी के आँसू जैसे छलकने को तैयार थे पर दोनों ने ही उसे छलकने न दिया।

“अच्छा, माँ। अब मैं पढ़ाई करने जाती हूँ।”, संजु ने कहा। चाहे जो भी हो, संजु अपनी पढ़ाई को लेकर बेहद गंभीर था। और फिर वो खुशी से उठकर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा तो पीछे से माँ ने फिर आवाज दी, “अच्छा सुन, आज दोपहर मे ३ बजे हम लोग शॉपिंग के लिए जा रहे है। याद है न?”

“हाँ, माँ!”, संजु ने चहकते हुए कहा और खुशी से अपनी साड़ी उठाकर सीढ़ियों पर से चढ़ते हुए अपने कमरे मे चला गया। कमरे मे पहुंचते ही उसने वहाँ लगे हुए बड़े से आईने मे खुद को देखा। बिंदी और कंगन के साथ वो सम्पूर्ण महसूस कर रहा था। वो छवि उसे एहसास दिला रही थी कि वो अपनी माँ का ही बेटा है। और फिर मारे खुशी के अपने पल्लू को लहराते हुए उसने गोल चक्कर लगाया।

कुछ पल अपनी माँ की साड़ी का आनन्द लेने के बाद वो पढ़ाई करने टेबल कुर्सी लगाकर बैठ गया। पढ़ते वक्त जब उसका पल्लू थोड़ा सरक जाता तो वो अपने हाथों से उसे उठाकर अपनी ब्लॉउज़ के ऊपर चढ़ाता। माँ की साड़ी मे लिपट कर उसे वही प्यार महसूस हो रहा था जैसा उसे माँ के साथ होता था। संजु का साड़ी से नाता और गहरा होते जा रहा था पर आज उसके जीवन मे कुछ और नया भी होने वाला था। आज शॉपिंग मे उसके लिए न जाने और क्या कपड़े खरीदे जाएंगे, उससे वो अनभिज्ञ था।

और फिर पढ़ाई मे मगन संजु उस दिन अपने कमरे से सिर्फ लंच के लिए बाहर आया था और उसके बाद फिर अपनी पढ़ाई मे व्यस्त हो गया। इस बीच उसे एहसास भी नहीं रहा कि कब ३ बज गए थे।


“आंटी”, ये ऋतु थी जो बिल्कुल सही समय पर शॉपिंग पे जाने के लिए आ गई थी।

“अरे, अंदर आ न बेटा। बाहर क्यों खड़ी हो?”, संजु की मम्मी ने कहा।

“आंटी आप लोग तैयार है?”

“हाँ, मैं बस दो मिनट मे तैयार होकर आती हूँ।”, संजु की मम्मी लगभग तैयार ही थी और इस वक्त ऋतु के आने की वजह से कमरे से अपने ब्लौज पर साड़ी पिन करते हुए बाहर आई थी।

“बेटा, तू जरा ऊपर जाकर देख संजु तैयार हुआ या नहीं?”

“जी, आंटी”, ऋतु ने कहा और चहकती हुई संजु के कमरे की ओर बढ़ चली। शॉपिंग तो ऋतु को पहले से ही पसंद थी, पर आज तो संजु को छेड़ने का सही मौका मिलने वाला था उसे। उन दोनों के बीच ये छेड़खानी कोई नई बात नहीं थी।

संजु के कमरे पे वो पहुंची तो संजु तो अभी भी अपनी पढ़ाई मे मगन था। ऋतु को वैसे तो संजु की पीठ दिख रही थी पर उसे इतना तो समझ आ गया था कि संजु ने साड़ी पहनी हुई है। पीछे से देखने पर ब्लॉउज़ और घनी चोटी देखकर तो यही लगता कि वहाँ कोई लड़की है। चाहे कोई कुछ कहे, इतने साल से जिस संजु को वो जानती थी उसकी जगह एक लड़की जैसे संजु ने इतने कम समय मे ले ली थी कि उसे अजीब जरूर लगता था। ऊपर से साड़ी पहनकर? फिर भी ऋतु अपने अंदर चल रही इस बात को अपने चेहरे और भाव पर नहीं आने देती थी। और ऐसा करने का सबसे आसान तरीका था संजु के साथ शैतानी करना। इसलिए वो धीरे धीरे चुपचाप संजु के पास पहुंची और उसे अचानक से छूकर उसे चौंका दी।

संजु सचमुच इस अचानक से हुए स्पर्श से चौंक गया था।

“ऋतु की बच्ची तुझे मार खानी है क्या?”, तमतमाते हुए संजु ने हाथ दिखाते हुए कहा। ऐसा करते हुए उसकी चोटी भी झटक कर उसके कंधों पर आ गई। मगर ऋतु थी कि जोर जोर से खिलखिला रही थी। अब जाकर उसने संजु को सामने से देखा था। साड़ी तो साड़ी आज तो संजु ने अपनी मम्मी की बड़ी सी बिंदी भी लगाया था और उनके कंगन भी पहने थे। ये बदलाव ऋतु के लिए बहुत ज्यादा था।

किसी तरह अपने मन के भाव को छिपाते हुए ऋतु ने संजु को छेड़ते हुए कहा, “आंटी जी आप अभी तक तैयार क्यों नहीं हुई?”

“ऋतु, मुझे गुस्सा मत दिला। नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”, संजु ने गुस्से से कहा।

“अब तूने इतनी बड़ी बिंदी लगाया है, साड़ी पहना है, और फिर अपनी मम्मी के कंगन भी। अब तुझे आंटी नहीं बोलू तो और क्या बोलू?”, ऋतु संजु को अब भी छेड़ रही थी।

पर शायद ऋतु की ये बात उसके दिल को दुखा गई। सच ही तो कह रही थी वो। आखिर जब वो एक आंटी की तरह तैयार हुआ है तो ऋतु उसके साथ कैसे लड़के की तरह व्यवहार करती? और एक संजु था जो ये सब करके कुछ देर पहले तक कितना खुश था। ये विचार आते ही उसके चेहरा उदास हो गया और उसकी नजरे झुक गई। उसकी गोद मे रखा उसका साड़ी का पल्लू अब भी उतना ही खूबसूरत था जितना कुछ देर पहले तक पर अब वो संजु को शर्मिंदगी महसूस करा रहा था।

ऋतु ने जब संजु को ऐसे देखा तो वो आखिर मे अपनी गलती को पहचान गई। और उसे सुधारने की कोशिश मे उसने संजु के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “सॉरी, संजु। तुझे पता है न मैं मज़ाक कर रही थी। मैं तुझे साड़ी पहनने की वजह से आंटी नहीं बोल रही थी। तू भूल गया उस दिन हम दोनों ने क्या तय किया था, हम दोनों मिलकर साड़ियाँ खरीद करेंगे? मैं तो बस आंटी की बिंदी देख कर बिना सोचे बोल गई। मुझे माफ कर दे यार।”

और ऋतु ने प्यार से संजु के उदास चेहरे को अपने हाथों से उठाया तो उसे संजु की आँखों मे आँसू की दो बूंद दिखाई पड़ी। तो ऋतु ने प्यार से अपनी चुन्नी से उसकी आँखों को पोंछा और कहा, “चल अब तैयार हो जा। आज मैं तुझे ऐसे सूट दिलाऊँगी कि तू साड़ियाँ भूल जाएगा!” और वो मुस्कुरा पड़ी। और उसे देख संजु भी मुस्कुरा दिया।

फिर संजु उठकर अपनी अलमारी खोलकर देखने लगा। उसने अपने लड़के वालों कपड़े मे से कुछ चुनकर बाहर निकाले और साथ ही वो चीज भी निकाली जो उसे बिल्कुल भी पसंद न थी। अपने स्तनों को छिपाने के लिए वो बेहद टाइट स्पोर्ट्स ब्रा। जहां इस वक्त संजु औरतों के कपड़ों मे इतना सहज महसूस कर रहा था वहीं अब लड़कों के कपड़े उसके लिए इतने असहज हो गए थे कि अब वो उन्हे बिल्कुल पहनना पसंद नहीं करता था। पीछले १ साल मे उसका जीवन कितना बदल गया था। जो कपड़े उसके लिए इतने स्वाभाविक थे, आज वही कुछ पराए से लगने लगे थे।

संजु के हाथ मे उस स्पोर्ट्स ब्रा को देखकर ऋतु उससे बोली, “यार तू इतनी अन्कम्फ्टबल ब्रा क्यों पहन रहा है?”

“ऋतु, तुझे पता है न क्यों पहन रहा हूँ।”, संजु ने कहा। संजु की भी ये खासियत थी कि वो एक पल माँ के साथ बिल्कुल बेटी बन जाता था तो दूसरे ही पल ऋतु के साथ लड़का। साड़ी बिंदी कंगन के बाद भी ऋतु के साथ वो लड़के की ही तरह पेश आता था और वो इस बात को इसी तरह बनाए रखना चाहता था। क्योंकि उसकी नज़रों मे ऋतु उसकी गर्लफ्रेंड थी और वो उसे वैसे ही चाहता था जैसे कोई लड़का किसी लड़की को पसंद करता है। जब भी ऋतु उसके सामने होती तब ये लड़कियों के कपड़े सिर्फ और सिर्फ उसके शरीर को सहज रूप से ढंकने का साधन होते थे, उससे ज्यादा और कुछ नहीं।

“वो तो ठीक है, पर तू रेगुलर ब्रा भी तो पहन सकता है न? बस उसके साथ एक थोड़ी लूज टी शर्ट पहन ले। रुक मैं ढूंढती हूँ तेरी अलमारी में।”, और बिना संजु की कुछ सुने ऋतु ने अलमारी खोलकर कपड़े ढूँढने लगी। उन सब मे आखिर उसने एक फूल शर्ट और एक टी शर्ट निकाली।

“ये दोनों तेरे लिए कुछ ज्यादा बड़ी नहीं लग रही?”, ऋतु ने आश्चर्य से पूछा।

“मम्मी का कहना है कि मैं तेजी से बड़ा हो रहा हूँ इसलिए वो मेरे लिए हमेशा बड़े साइज़ के कपड़े ही लेती है।”

“ठीक तो है। इस वक्त काम आएंगे ये कपड़े। सुन तू पहले ये टी-शर्ट ट्राई कर। देखते है कि रेगुलर ब्रा के साथ कैसी लगती है।”

“अच्छा ठीक है मैं करता हूँ। तू पहले कमरे से बाहर जा। मैं कपड़े बदलता हूँ।”, संजु ने ऋतु के हाथ से टी-शर्ट लेते हुए कहा।

“अरे वाह, उस दिन जब मैं साड़ी बदल रही थी तब तो तू बाहर नहीं गया था। अब मैं क्यों बाहर जाऊँ?”, ऋतु ने नटखट आँखों से कहा।

“ऋतु! प्लीज!”, संजु ने उससे फिर कहा।

“यार, मैं पीछे मुड़कर रहती हूँ। और मैं प्रामिस करती हूँ कि तेरी तरह पलट कर आँखें खोलकर नहीं देखूँगी तुझे।”, ऋतु ने कहा और बिस्तर पर दूसरी ओर पलट कर बैठ गई। और संजु बेचारा चुपचाप वहीं कपड़े बदलने लगा।

पहले तो संजु ने सैफ्टी पिन निकालकर अपनी साड़ी उतारी। उसे ऋतु के उसी कमरे मे रहते हुए ये करने मे शर्म तो आ रही थी मगर ऋतु अब तक अपनी बात पे कायम थी। और फिर संजु नीचे झुककर दोनों हाथों से अपने ब्लॉउज़ के हुक खोलने लगा। यूं नीचे झुककर ब्लॉउज़ खोलना सिर्फ और सिर्फ लड़कियों के नसीब मे होता है, पर संजु कुछ खास था जो उसे ये करने का मौका मिलता था। ब्लॉउज़ के उतारते ही उसके स्तन बाहर आ गए और उसे और शर्मिंदगी का एहसास हुआ, इसलिए उसने जीतने जल्दी हो सके अपनी एक रेगुलर ब्रा पहना और उसके ऊपर झट से टी-शर्ट डाल दी।

“अच्छा अब बता ये टी-शर्ट ठीक लग रही है?”, संजु ने ऋतु से पूछा।

ऋतु ने पलट कर जैसे ही संजु को देखा तो उसके मुंह से हंसी छूट पड़ी। “सीने पर तो पता नहीं पर पेटीकोट के साथ टी-शर्ट बड़ी विचित्र लग रही है।”

“हा हा .. वेरी फनी। अब ठीक ठीक बता”, संजु ने चिढ़ते हुए कहा।

“बता रही हूँ बाबा। एक मिनट”, और ऋतु संजु के पास आकर देखने लगी। शायद उसके चेहरे से संजु को समझ आ गया था कि ढीली टी-शर्ट होते हुए भी उसके स्तनों का उभार उस पर से दिख रहा होगा।

“मुझे पता था कि रेगुलर ब्रा से काम नहीं चलेगा।”, वो झुँझला उठा।

“एक मिनट यार। ये टी-शर्ट का कपड़ा सॉफ्ट है यही प्रॉब्लेम है। तू ये अपनी फूल शर्ट बटन वाली ट्राई कर। इसका कपड़ा थोड़ा हार्ड है तो ऐसे ब्रा के बीच मे लटकेगा नहीं।”

संजु का मन तो नहीं था पर ऋतु के कहने पर वो ट्राई करने को मान गया। और आखिर मे ये तरकीब काम आई।

भले बड़ा सा शर्ट और ढीली सी पेंट पहनकर संजु थोड़ा अजूबा जरूर लग रहा था पर उसकी उम्र के बढ़ते हुए पढ़ाकू लड़के अकसर ऐसे ही हुलिये मे हुआ करते थे तो ये कोई बड़ी बात नहीं थी। कुछ देर पहले उसके कूल्हों पर चुस्त तरीके से लिपटी हुई साड़ी थी अब उसकी जगह एक ढीली सी पेंट ने ले ली थी। संजु ने अब चोटी खोलकर एक पोनीटेल बना ली थी और उसे अपनी शर्ट के अंदर डाल दिया था। यदि पोनीटेल बाहर आ भी जाए तो चलता है क्योंकि लड़के फैशन मे इस तरह रखते है। मगर गूँथी हुई चोटी कम ही लड़के रखते है।

जो भी हो, संजु के तैयार होने के बाद ऋतु और वो दोनों नीचे आए जहां संजु की माँ तैयार बैठी थी। खूबसूरत सी साड़ी मे बड़ी सी पर्स के साथ लिप्स्टिक लगाए हुए। संजु को उसकी माँ का रूप बेहद भाता था। काश वो भी अपनी माँ कि तरह यूं बाहर जा पाता। खैर, अब सभी निकलने को तैयार थे। संजु की शॉपिंग शुरू होने वाली थी!


एक रिक्शे मे तीनों बैठकर मार्केट की ओर बढ़ रहे थे। जैसे की उम्मीद थी, संजु और ऋतु की शैतानियाँ रास्ते भर होने वाली थी।

“आंटी, मैं तो कहती हूँ कि हम लोग स्कर्ट और टॉप भी खरीद लेते है।”, ऋतु ने कहा। वो सावधान थी कि रिक्शे वाले को पता न चले कि वो संजु के बारे मे कह रही है। ऋतु की बात सुन माँ तो मुस्कुरा दी पर संजु को लगा कि ऋतु उसे छेड़ने के लिए ये कह रही है। तो इसलिए उसने चुपके से ऋतु की चोटी खींच ली।

“संजु! देख दोबारा मेरी चोटी खींचा न तो फिर सोच ले, तेरे भी लंबे बाल है। खींच लूँगी मैं।”, ऋतु ने संजु को चेताया।

“संजु मत कर बेटा। बालों के साथ ऐसा नहीं करते।”, माँ ने भी ऋतु का साथ दिया।

और फिर ऋतु फिर अपने प्लान बताने मे मगन हो गई। उसकी बात सुनकर तो लग रहा था कि वो संजु को चप्पल, स्कर्ट, बिंदी, चूड़ी और न जाने क्या क्या दिलाकर पूरी तरह से लड़की ही बना देगी। संजु भी कब तक चुप रहता और फिर उसने वही किया, एक बार फिर ऋतु की चोटी खींच दी।

मगर इस बार ऋतु भी शांत न रही और उसने झट से संजु की पोनीटेल निकाल कर खींच दी। मगर इस खींचतान मे संजु की पोनीटेल मे लगा हुआ रबर टूट गया और उसके बाल पूरी तरह से खुलकर उसके चेहरे के सामने आ गए। कोई इस तरह संजु के चेहरे बस को देख ले तो उसे तो यही लगता कि संजु लड़की है, पर उसके कपड़ों की वजह से शायद इस बात को कोई नजरंदाज कर देता।

संजु ने गुस्से से ऋतु की ओर देखा और बोला, “तोड़ दी न रबर। अब तू अपनी चोटी से रबर निकाल कर दे। अब मैं कैसे जाऊंगा मार्केट?”

“मेरे पास भी एक रबर है, कैसे दे दूँ वो?”, ऋतु को अब अपनी गलती पर अफसोस हुआ। जो भी हो वो संजु को असहज स्थिति मे नहीं डालना चाहती। उसने संजु की माँ के ओर देखा पर उन्होंने तो बस क्लिप से अपने बालों को होल्ड कर रखा था। ऋतु का चेहरा रूआँसा हो चला था।

इससे पहले कि संजु और नाराज होता उसकी माँ ने कहा, “एक मिनट संजु। मैं अपनी पर्स मे देखती हूँ। एक न एक तो रबरबैंड होगा ही।” और वो अपनी पर्स को खोलकर देखने लगी। माँ की बड़ी पर्स होती है बड़े काम की चीज है। जो चाहो जब चाहो उसमे हमेशा मिल जाती है। आज जीवन मे एक बार फिर माँ के पर्स काम आने वाली थी।

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अब संजु की मजबूरी थी कि वो क्लचर से अपने कुछ बालों को कुछ इस तरह बांधे कि वो उसकी आँखों के सामने न आ सके।

दो मिनट तक अपनी पर्स मे ढूँढने के बाद आखिर सुधा, यानि संजु की मम्मी ने कहा, “ओहो लगता है मेरे पास कोई रबरबैंड नहीं है। बस ये क्लचर है।” उन्होंने अपने हाथ मे पकड़ा हुआ क्लचर दिखाया।

कुछ नहीं से कुछ तो बेहतर है। संजु ने सोचा कि चलो इसी से पोनीटेल बना लेता हूँ। किसी तरह इस क्लचर को अपनी कॉलर के पीछे छिपा लूँगा। मगर सुधा को इस बात को लेकर कुछ अंदेशा था। संजु के बाल बहुत घने थे और क्लचर था छोटा। और जिस बात का डर था वही सच साबित हुआ। संजु के पूरे बाल उस क्लचर की पकड़ मे नहीं आ रहे थे। तो आखिर मे अब बस यही किया जा सकता था कि संजु के कानों के पास के बालों को पकड़ कर पीछे क्लचर लगा दिया जाए। इससे कम से कम संजु के बाल उसके चेहरे पर नहीं आएंगे और उसे बार बार अपने बालों को चेहरे पर से पीछे नहीं करना पड़ेगा। पर इसके बाद भी संजु के बाल इतने लंबे तो थे कि भले चेहरे पर न आए लेकिन झुकने पर कंधों से फिसल कर सामने तो आएंगे ही। और क्योंकि आज संजु ने बाल धोए भी थे तो वो आज बिल्कुल रेशमी थे जो यूं ही लहरा भी रहे थे।

संजु ने अपनी माँ से कहा कि क्यों न वो अपने बालों को शर्ट के अंदर ही रख ले चाहे ऊपर से क्लचर लगा रहे पर संजु की माँ को ये ठीक नहीं लगा। और वो बोली, “बेटा आज तू अपने बालों को खुला रखने के अरमानों को पूरा कर ले!”

संजु के अरमान ऐसे पूरे होंगे उसने सोचा तो नहीं था। अब यूं इन खुले बालों और फिर लड़कों के ढीले कपड़ों मे संजु को देखकर कोई भी एक बार अवश्य सोच मे पड़ जाए कि ये लड़का है या लड़की। संजु की शॉपिंग का अनुभव कुछ रोचक होता जा रहा था जबकि अभी तो शॉपिंग शुरू भी नहीं हुई थी।


आखिर मे संजु, ऋतु और सुधा उस दुकान मे पहुँच ही गए जहां संजु के लिए शॉपिंग की जानी थी। शहर की सबसे बड़ी दुकान जो कि एक मॉल मे थी। मॉल क्या बस २० छोटी मोटी दुकानों को समेटे हुए उस शहर का एकमात्र स्थल था जहां ये एक अकेली भव्य दुकान थी जो ३ फ्लोर तक फैली हुई थी। दो फ्लोर तो सिर्फ औरतों के कपड़ों के लिए थे! वहाँ पहुंचते ही ऋतु की तो आँखें चमक उठी। वहीं दूसरी ओर संजु खुले बालों के साथ थोड़ा नर्वस महसूस कर रहा था। घर से बाहर वो ऐसे कभी नहीं आया था।

“मैडम आज क्या लेना चाहेंगी आप?”, एक महिला कर्मी ने आकर सुधा से पूछा।

“बस बच्चों के लिए नए स्टाइल की कुर्तियाँ, सलवार और लेगीन्ग चाहिए”, सुधा ने कहा।

“आइए मैं आपको वहाँ ले चलती हूँ।”, उस कर्मी ने कहा तो सभी उसके पीछे पीछे चल दिए।

“मैडम, आप लोग बैठिए यहाँ। सुरेश, मैडम को उनकी बेटी के लिए कुर्तियाँ और सलवार दिखाना।”, उस महिलाकर्मी ने दुकान के अटेंडेंट से कहा। शायद उसे लग रहा था कि ऋतु सुधा की बेटी है जिसे कपड़े खरीदने है। संजु को देखकर न तो उसने कुछ सोचा और न समझ। वो तो अपने काम से काम मतलब रखकर आगे बढ़ गई।

और जब कुर्तियाँ दिखाना शुरू की गई तो ऋतु तो जैसे दीवानी हो गई। वो और सुधा मिलकर एक एक कुर्ती की डिजाइन के बारे मे बातें करते। हालांकि ये सब संजु के लिए हो रहा था मगर वो तो दोनों के बीच मे चुपचाप बैठा हुआ था।

“आंटी मेरे खयाल से ये तीन कुर्तियों के डिजाइन अच्छे है। स्टाइल भी अच्छा है। और लेगीन्ग भी सुंदर है। क्यों न पहले इनको ट्राई करके साइज़ का अंदाज भी कर लेते है।”, ऋतु ने चहकते हुए कहा तो सुधा ने सहमति जता दी।

“संजु चल ट्रायल रूम मे ट्राई कर ले।”, शायद ऋतु ने उत्साह मे ये बात गलती से कह दी। उसकी बात सुनकर अटेंडेंट सुरेश थोड़ा आश्चर्य मे पड़ गया।

“ओ सॉरी बेटा। मुझे लग रहा था कि ये कुर्तियाँ इनके लिए ली जा रही है। (ऋतु की ओर इशारा करते हुए) नहीं तो मैं सीधे आप ही को दिखाता। माफ करना पर आपके कपड़ों से मैं धोखा खा गया। मुझे लगा कि आप मैडम के बेटे है।”, सुरेश ने संजु से कहा।

अब बेचारे संजु से कुछ कहा भी नहीं जा रहा था, तभी उसकी माँ सुधा ने बीच मे कहा, “सुरेश जी, ये मेरी बेटी ही है। वो तो आजकल शर्ट पेंट का शौक लग गया है तो जिद मे अपने भाई के कपड़े पहन लिए है इसने।”

अब जब एक बार संजु को सुधा ने अपनी बेटी बता दिया तो सुरेश को संजु के लंबे बालों के साथ उसमे लड़की देखने मे कोई शक तक नहीं हुआ।

“बेटा वैसे हमारे पास लड़कियों के फिट वाले बहुत अच्छे अच्छे शर्ट्स और जीन्स पेंट्स है। आप उन्हे भी ट्राई करना। आप अभी तो कुर्तियों का साइज़ चेक कर लो। मैं और अच्छी डिजाइन लेकर आता हूँ। आप बिल्कुल परी लगोगी इन्हे पहनकर”, सुरेश ने कहा।

जहां संजु अंदर ही अंदर शर्मिंदा हुआ जा रहा था वहीं ऋतु अंदर ही अंदर हंसी रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी। और जब वो संजु का हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए ट्रायल रूम की ओर ले गई तो उसकी हंसी अब रुक न सकी।

“तुझे बहुत मज़ा आ रहा है न?”, संजु ने कहा।

“यार बहुत मज़ा आ रहा है। सिचूऐशन ही ऐसी है!”, और वो हँसने लगी।

अब स्थिति वाकई मे बिल्कुल नई थी। संजु अब पूरे दिन मे सभी के सामने लेडीज ट्रायल रूम मे कुर्ती ट्राई करने जा रहा था!

“चल अंदर जाकर एक एक कर कुर्ती पहनकर बाहर आकर मुझे दिखाना। ठीक है?”, ऋतु बोली।

ट्रायल रूम मे अंदर जाकर संजु ने अपने कपड़े उतारे और एक लेगीन्ग पर कुर्ती पहनकर देखने लगा। सचमुच उसका रंग और डिजाइन बहुत प्यार लग रहा था उसे। क्योंकि उसने रेगुलर ब्रा पहना हुआ था तो कुर्ती मे उसका शेप भी बहुत अच्छा आ रहा था। मगर ढीली ढाली कुर्तियाँ पहनने वाले संजु के लिए ये कुर्तियाँ इतनी टाइट थी कि उसे लगा कि उसे बड़े साइज़ की जरूरत है। यही सोचकर वो बाहर आया तो उसे देखते ही ऋतु ने कहा, “wow! ये तो परफेक्ट साइज़ है संजु!”

“ऋतु ये यहाँ टाइट लग रही है।”, संजु ने अपने चेस्ट से निचले कमर वाले हिस्से की ओर इशारा किया और फिर चुस्त बाँहों की ओर।

“वो वैसी ही होती है यार। ऐसे ही पहनते है आजकल।”

जब तक संजु अंदर कपड़े बदल रहा था तब तक ऋतु कुर्तियों से मैच करती हुई चुन्नी भी ले आई थी। ऋतु ने जब एक चुन्नी संजु के कंधों पर चढ़ाई और संजु ने वहीं खुद को आईने मे देखा तो खुले लंबे बालों, कुर्ती और चुन्नी के साथ उसे मम्मी के सीरीअल की ननंद याद आ गई जो इसी तरह की खूबसूरत मॉडर्न कुर्तियाँ पहना करती थी। संजु इस वक्त खुश होना तो चाहता था पर वो बेहद नर्वस महसूस कर रहा था। वो बाहर की दुनिया मे बिना किसी शक के पूरी तरह से लड़की के रूप मे था मगर किसी को ये पता चल गया कि वो लड़का है तब क्या होगा?

संजु अपनी दुविधा मे था तभी सुधा वहाँ पहुँच गई और संजु को देख खुशी से खिल उठी।

“आंटी देखिए न संजु कितनी खूबसूरत लग रही है।”, ऋतु ने संजु को लड़की के रूप मे संबोधित किया जो स्थिति अनुसार सही था।

“मेरी बेटी तो लाखों मे एक है।”, सुधा ने संजु की बाँहों को पकड़कर कहा।

“आंटी, वैसे हम लोग कितने सेट लेने वाले है संजु के लिए?”, ऋतु ने पूछा।

“कम से कम तीन तो लेंगे। एक बार संजु को उसका टेस्ट पता चल जाए तो फिर हम और खरीद सकते है।”, सुधा ने कहा। संजु के बारे मे ये सब बात हो रही थी और वो बेचारा शर्म से पानी पानी हो रहा था।

“अच्छा संजु, तुम कपड़े बदल कर आओ। मैं वहीं बैठती हूँ और सुरेशजी से सेम साइज़ मे और डिजाइन मँगवाती हूँ।”, सुधा ने कहा और वो वापस चली गई।

ऋतु कुछ देर तक वहीं संजु पर अलग अलग चुननियाँ ट्राई करती रही। पर तभी संजु ने कुछ ऐसा देखा जिससे उसके सांप सूंघ गया। उसे वहाँ से ही दुकान के बाहर राहुल उसी मॉल मे टहलता हुआ दिख गया। राहुल इस वक्त संजु को देखकर भले पहचान न सके मगर ऋतु को देखकर तो जरूर पहचान जाता। संजु ने झट से ऋतु को ट्रायल रूम्स के अंदर की ओर खींचा और उसको विपरीत दिशा मे पलट दिया।

“आउच”, ऋतु ने संजु से अपनी बांह छुड़ाते हुए कहा, “क्या हुआ संजु?”

“बाहर राहुल है!”, संजु धीरे से बोला।

“यहाँ दुकान में?”

“नहीं, बाहर मॉल में।”

अब जब राहुल मॉल मे ही था तो ऋतु और संजु को थोड़ी सावधानी बरतनी होगी। संजु ने अंदर कपड़े बदले और वो बाहर तभी निकला जब तक ऋतु ने उसे बाहर आने का इशारा नहीं किया। ऋतु ने जब छिपकर देखा कि राहुल मॉल मे ही स्थित CCD चला गया है तो उन दोनों की जान मे जान आई। कम से कम राहुल यहाँ दुकान मे तो नहीं आएगा वरना संजु की शॉपिंग मे आफत आ जाती अब जब दुकानदार संजु को लड़की समझ रहे थे।

छोटा सा शहर होने की वजह से इस मॉल मे पहचान के लोग मिलना असंभव तो नहीं था पर दोपहर मे कम ही लोग आते थे। और स्कूल के बच्चे इस तरह अकेले तो नहीं घुमा करते थे, कम से कम अच्छे बच्चे तो नहीं। पर राहुल अच्छे बच्चों की श्रेणी मे तो नहीं आता था। बिगड़ैल बेटा बिना लाइसेन्स के कच्ची उम्र मे मोटर साइकिल भी घुमाता था।

ऋतु इस बात से निश्चिंत थी कि राहुल कम से कम लड़कियों के सेक्शन मे तो नहीं आएगा। इसलिए एक बार फिर शॉपिंग शुरू हो गई। संजु के लिए ४ कुर्तियों के फूल सेट लिए गए। और ऋतु के कहने पर संजु के लिए उनसे मैच करने के लिए उसी दुकान से २ जोड़ी लेडीज चप्पल की भी लिए गए। सुधा को भी ये आइडिया ठीक लगा भले संजु के लड़की बनकर घर से बाहर जाने की संभावना अभी तो कम थी।

जब सुधा को लगा कि अब शॉपिंग पूरी हो गई, तभी ऋतु ने सुधा से कहा, “आंटी, मुझे लगता है कि संजु के पास १-२ स्कर्ट और टॉप तो होने ही चाहिए।”

“अरे हाँ। सही कह रही है तू ऋतु। घर मे रोज रोज कुर्ती की जगह स्कर्ट पहनना भी तो सही रहेगा। संजु को पता भी चल जाएगा कि स्कर्ट पहनकर कैसा लगता है।”, सुधा बोली।

पर संजु अब इस शॉपिंग के थकने लगा था। लड़कियों की तरह देर तक शॉपिंग करने का उसे अब तक तो शौक नहीं था। न ही उसे स्कर्ट के प्रति कोई लगाव था क्योंकि उसके पास अनुभव भी नही था। तो संजु ने अब और कपड़ों को ट्राई करने से साफ मना कर दिया। ऋतु ने उसे खूब मनाना चाह पर वो नहीं माना। तो आखिर मे सुधा और ऋतु ने खुद ही पसंद करके उसके लिए २ एम्ब्रॉइडरी वाले टॉप लिए और २ घुटनों से नीचे तक आने वाले बड़े घेरे वाले स्कर्ट।

“संजु, तुझे एक स्कर्ट तो ट्राई करके देखना चाहिए था न यार। देखना जब तू घर मे इनको पहनेगा न तो तू कुछ समय के लिए साड़ी भूल जाएगा।”, ऋतु ने कैश काउन्टर के पास कहा जहां सुधा कपड़ों का पेमेंट कर रही थी।

मगर साड़ी का दीवाना संजु इतनी आसानी से कैसे इस बात को मान लेता। संजु इससे पहले कि कुछ कहता तभी उन दोनों को पीछे से आवाज आई। “ऋतु”

दोनों को उस आवाज को पहचानने मे पलटने की भी जरूरत नहीं थी। वो आवाज राहुल की थी। और फिर दौड़ता हुआ राहुल उन दोनों के पास पहुंचा।

राहुल का ध्यान इस वक्त सिर्फ ऋतु पे था, शायद उसे ध्यान तक नहीं था कि साथ मे संजु भी खड़ा है।

“हाय ऋतु!”, राहुल ने कहा।

“हाय। कहो क्यों आवाज दी मुझे?”, ऋतु ने थोड़ा रूखे स्वर मे कहा। ऋतु के सामने वैसे ही राहुल की बोलती बंद हुआ करती थी और फिर ऋतु के ऐसे स्वर मे तो उससे कुछ कहा भी न जाए।

“कुछ नहीं। यूं ही। तुम मुझे दूर से ही पहचान आ गई थी तो मैंने तुम्हें आवाज दे दिया हाय कहने के लिए।”, लगभग हकलाते हुए राहुल ने कहा।

“तो कह दिया न हाय? हो गया अब?”, ऋतु बोली।

“हाँ।”, राहुल नर्वस होकर बोला, “तुम यहाँ क्या कर रही हो?”

“दुकान मे लोग क्या करते है?”

“शॉपिंग”, राहुल बोला। “जब पता है तो पूछ क्यों रहे हो?”, ऋतु बोली।

“सॉरी यार”, राहुल ने नजरे झुकाकर कहा। और फिर जब उसने सर उठाया तो उसकी नजर पहली बार संजु पर पड़ी। उसे संजु को पहचानने मे समय लगा पर आखिर उसे पहचान कर उससे बोला, “संजु? तू ऐसे खुले बाल के साथ क्या कर रहा है?”

तभी वहाँ सुधा पहुँच गई। शायद सुधा को स्थिति का अंदाजा हो गया था। “क्या हुआ बच्चों?”, वो आते ही बोली।

“कुछ नहीं आंटी। ये हमारा क्लाससमेट राहुल है। इसे भी संजु की तरह बाल लंबे करने है।”, ऋतु मुँहफट होकर बोली और राहुल को तो जैसे चुप करा दिया।

“ऋतु, हमें कुछ और भी लेना था जो हम भूल गए है। तुम दोनों चलो मेरे साथ”, सुधा ने कहा और राहुल को वहीं छोड़कर सभी वहाँ से चल दिए। राहुल ने नर्वस स्वर मे ऋतु को बाय करने की कोशिश की पर किसी ने उसकी तरफ देखा तक नहीं। दुनिया भर के सामने शेखी बघारने वाले राहुल की हालत ऋतु के सामने इतनी बुरी होती थी ये तो आज संजु ने खुद अपनी आँखों से देख लिया था। वो तो व्यर्थ मे ही चिंता करता था।

राहुल से दूर, सुधा वाकई मे कुछ खरीदना भूल गई थी। उन्हे संजु के लिए बड़े साइज़ की ब्रा भी लेनी थी। और इसलिए तीनों ब्रा के सेक्शन मे चले गए। और उन्हे वहाँ साथ जाते राहुल ने देख लिया। ऋतु और खुद अपनी मम्मी के साथ संजु, एक लड़का, ब्रा के सेक्शन मे जाए, इस बात का फायदा राहुल आगे चल कर किसी न किसी तरह ऋतु और संजु को बदनाम करने के लिए तो जरूर उठाएगा क्योंकि आज संजु के सामने ऋतु ने राहुल को भाव तक नहीं दिया था।

क्योंकि शॉप मे ब्रा का सेक्शन थोड़ा प्राइवेट होता है, वहाँ पर संजु निश्चिंत होकर ब्रा पसंद कर रहा था। “आप अभी किस साइज़ की ब्रा पहनती है मिस?”, जब ये सवाल संजु से पूछा गया तो इसका जवाब संजु के पास था। किस्मत से संजु की उम्र मे उसकी आवाज कुछ ऐसी थी कि वो लड़कियों सी भी हो सकती थी। पर फिर भी संजु नर्वस तो था, और ऋतु मन ही मन हँसे जा रही थी।

संजु की नर्वसनेस तो तब और बढ़ गई जब अटेंडेंट महिला ने संजु से कहा कि वो फिटिंग रूम मे संजु का साइज़ मेशर कर सकती है। पर किसी तरह संजु ने कहा, “नहीं मैं अकेले मे खुद ट्राई करना पसंद करूंगी। जरूरत पड़े तो मैं अपनी माँ से हेल्प ले लूँगी।”

ऋतु के सामने हमेशा लड़का बने रहने की जो संजु की कोशिश थी, आज वो भी इस परिस्थिति मे नाकाम हो गई। भले ऋतु को इस वक्त मन ही मन हंसी आ रही थी मगर संजु मन ही मन रो रहा था। ऋतु के सामने यूं लड़की की तरह बात करते हुए उसके शर्म की सीमा नहीं थी। ये बात ऋतु तो नहीं समझ सकी थी मगर संजु के टूटते हुए शब्दों और टूटती हुई आवाज से सुधा अपने बेटे के दर्द को समझ पा रही थी।

सुधा ने तुरंत संजु को अपने साथ लेकर फिटिंग रूम मे ले गई और उसे तुरंत गले लगाकर बोली, “बेटा, तुम ब्रेव हो। ऐसे घबराते नहीं। मैं हूँ न तुम्हारे साथ।” संजु वहाँ कुछ देर तक माँ को गले लगकर रहा। उसकी माँ समझ गई थी कि संजु की आँखों मे इस वक्त अश्रु है। संजु को चुप कराने के बाद सुधा साइज़ ट्राई कराने के लिए कुछ ब्रा खुद लेकर आई और संजु को दी। साइज़ कन्फर्म करने के बाद सुधा ने ही खुद ब्रा पसंद कर खरीद ली और संजु से कुछ न कहा।

ऋतु को पूरी तरह से कुछ समझ न आया पर वो इतना तो जान गई थी कि कुछ तो है जो संजु को परेशान कर रहा था। इसलिए उसने भी चुप रहना ही मुनासिब समझा।

शॉपिंग के बाद मॉल से निकलते हुए सुधा ने कुछ रबरबैंड खरीदे और मॉल से निकलते ही संजु के बालों से क्लचर निकालकर रबर बैंड लगाकर पोनीटेल बनाई गई और शर्ट के अंदर डाल दी। ये करने के बाद, तीनों एक दूसरे की ओर देखते हुए हंस पड़े कि ये आइडिया उन्हे पहले क्यों नहीं आया! पहले ही ये सोच लिया होता तो संजु को इस तरह खुले बालों के साथ नहीं घूमना पड़ता।

पर फिर सुधा ने दोनों को समझाया कि जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ। आखिर इसी वजह से संजु को आसानी से लड़की मान लिया गया और उसे लेडीज ट्रायल रूम मे कपड़े ट्राई करने भी मिल गए।

उसके बाद, मॉल से सीधा तीनों एक रेस्टोरेंट गए जहां से खाना खाकर घर के लिए रवाना हुए।

आज का दिन तीनों के लिए कुछ सीखने वाला दिन था। सुधा समझ चुकी थी कि संजु को भविष्य मे यदि लड़की बनकर रहना पड़े, तो उसे हर कदम पर संजु के डटकर साथ रहना होगा।

ऋतु अपने नटखट स्वभाव की वजह से आज पूरे समय हँसती रही लेकिन जब जरूरत पड़ी तो राहुल के सामने वो संजु के लिए प्रोटेक्टिव भी थी। शायद ऋतु के व्यवहार से संजु या किसी को भी पता न चला हो, मगर आज संजु के लिए कपड़े पसंद करना और खरीदना, ये सब वो अपने प्यार की ताकत के सहारे ही कर सकी। उसके मन मे क्या था वो उसके अलावा सिर्फ उसकी डायरी को पता था जिसमे वो अपने दिल की बातें लिखा करती थी।

संजु के लिए आज का अनुभव कुछ मार्मिक था, उसे इस बात का भलीभाँति एहसास होने लगा था कि यदि वो बाहरी दुनिया के लिए लड़की बनकर रहेगा तो ऋतु के लिए लड़का बने रहना उसके लिए असंभव ही होगा। ऐसी हजार स्थितियाँ आएंगी जब उसे ऋतु के सामने भी सिर्फ कपड़ों से नहीं बल्कि हाव-भाव से भी लड़की बनना होगा।


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