संजु (1)

 ये कहानी है संजु के रिश्तों की. एक तरफ तो उसकी प्यारी माँ है जो न जाने क्यों संजु को लड़कियों की तरह रहने को प्रेरित करती है, और दूसरी ओर है ऋतु, जिससे संजु को प्यार है.

भाग १: दिल की उलझन

“संजू … संजू… आ गया तू?”, स्कूल से बस अभी घर आया ही था संजू कि उसे उसकी माँ की आवाज़ सुनाई दी. शायद अपने कमरे में थी वो.

“हाँ, माँ.”, उसने जवाब दिया. उसके चेहरे में न तो कोई ख़ुशी थी और न कोई और भाव. बस एक साधारण सा चेहरा था संजू का.

“अच्छा.. जल्दी इधर आ.”, माँ की फिर आवाज़ आई तो वो चलकर माँ के कमरे में गया.

उसकी माँ ने कमरे में अपने बिस्तर पर बहुत से कपडे फैला रखे थे. शायद आज अपनी अलमारी साफ़ कर रही थी वो. संजू को देखते ही माँ के चेहरे पर ख़ुशी से एक बड़ी मुस्कान खिल उठी थी.

“अच्छा… देख तो इसमें से कौनसी साड़ियाँ तुझे पसंद है. पिछले २-३ साल में शादियों में बहुत सी गिफ्ट में मिली है मुझे. तेरी मामी और चाची ने भी तो दी है. पर कभी इन्हें पहनने का मौका नहीं मिलता. आखिर इतनी सारी साड़ियाँ है मेरे पास. ये सब तो बिना पहने ही पड़े पड़े धुल खा रही है.”, माँ बोली. और उसके कहते वक़्त उसके हाव भाव बड़े ड्रामेटिक से थे.

“अब तुम मुझसे क्यों पूछ रही हो माँ?”, संजू ने झुंझलाते हुए कहा.

तो माँ ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और फिर उसका हाथ प्यार से पकड़ते हुए बोली, “अरे इन सबके तो ब्लाउज भी सिले हुए है. तू २-३ साड़ियाँ पसंद तो कर. तो मैं फिर इनके ब्लाउज को तेरे साइज़ के लिए एडजस्ट कर लूंगी.”

“मुझे नहीं पहनना साड़ी वाड़ी. तुम ही पहनना इनको जब मौका मिले.”, संजू अभी भी झुंझला रहा था.

“अरे बेटा. अपनी माँ के लिए तू एक साड़ी पहन लेगा तो कुछ बिगड़ जायेगा क्या? तुझसे कुछ मांगती हूँ मैं भला?”, माँ ने अपने १४ साल के बेटे को गले से लगा लिया.

“तुम मेरे पीछे क्यों पड़ी रहती हो माँ? और अब ये साड़ी?”, संजू ने थोडा गुस्से में माँ से कहा.

“बेटा तू तो जानता ही है. चल अब ज्यादा बहस मत कर. देख ये फिरोज़ी रंग वाली तो तुझ पर बहुत अच्छी लगेगी. तू २ और पसंद कर ले.”, माँ ने संजू के तन पर फिरोजी रंग की साड़ी लगाते हुए बोली. माँ के दिल में संजू के लिए कितना प्यार था ये तो साफ़ दिख रहा था. संजू भी ज्यादा देर और माँ को टाल नहीं सकता था. उसने आखिर २ साड़ी को निकाल कर अलग कर लिया. उसने पसंद किया था या फिर बस माँ की इच्छा पूरी करने के लिए कोई भी २ साड़ी चुन लिया था… ये तो उसका दिल ही जाने. पर हलकी साड़ियाँ ही उसने पसंद किया था. सिल्क की भारी साड़ियों को तो उसने देखा तक नहीं.

संजू की चॉइस देखकर माँ बड़ी खुश हुई. “अच्छा आज शाम तक मैं ब्लाउज सिल देती हूँ इनके. आज शाम को एक साड़ी तो पहनकर देख ही लेना तू. तुझे अच्छा लगेगा.”, माँ ख़ुशी से बोली.

थोडा अजीब सा ही रिश्ता था ये एक माँ और बेटे के बीच. वरना ऐसी बातें तो एक माँ सिर्फ अपनी बेटी के साथ करती है.


माँ के साथ बात करने के बाद से संजू थोडा चिडचिडा सा गया था. अपनी माँ से बिना कुछ कहे ही वो घर के बाहर आँगन में आ गया. वो कुछ देर बाहर अकेले में समय बिताना चाहता था. पर शायद ये उसके नसीब में नहीं था.

“संजू… संजू…”, ये एक नयी आवाज़ थी. प्यारी सी सुरीली सी ये आवाज़ ऋतू की थी. ऋतू संजू के बगल में रहने वाली लड़की थी और उसकी हमउम्र. और तो और उसी के साथ उसकी क्लास में भी पढ़ती थी. संजू ने अनमने मन से पलट कर उसकी ओर देखा. वो उन दोनों के घर के बीच की बाउंड्री वाल से झांकती हुई मुस्कुरा रही थी. बहुत खुश लग रही थी. संजू की तरह वो भी स्कूल यूनिफार्म में थी. संजू तो स्कूल का शर्ट पेंट पहना हुआ था और वो स्कूल का सलवार सूट. टाइट चूड़ीदार पैजामा और एक टाइट कुर्ती जिसमे उसका फिगर बखूबी दीखता था. १४ साल की उम्र में आने वाले बदलाव उसके शरीर पर पूरी तरह जंच रहे थे. बेहद खुबसूरत और मासूमियत थी उसके चेहरे पे. बचपन से संजू के साथ खेलते कूदते बड़ी हुई थी वो इसलिए उसे ये अपने अन्दर आने वाले बदलाव की परवाह संजू के साथ नहीं थी. शायद इसलिए तो बिना दुपट्टा ओढ़े वो संजू से बात करने को बेताब थी.

संजू ने उसकी ओर मुड कर देखा और लगभग गुस्से से कहा, “क्या है?”

“कुछ नहीं. तू कैसा है बस यही जानना था.”, वो बोली.

“ठीक हूँ. पर मुझे कुछ देर अकेले रहना है.”, संजू ने कहा. वो ऋतू से छुटकारा पाना चाहता था. लगता था जैसे उसे ऋतू से कोई शिकायत है.

“ठीक है बाबा. तुझे अकेले रहने दूँगी. पर तू मुझसे आजकल बात क्यों नहीं करता है?”, ऋतू ने थोड़े उदास स्वर में कहा. वो एकटक संजू की तरफ देख रही थी. पर संजू उसे भाव ही नहीं दे रहा था. न जाने क्या बात थी.

पर संजू अच्छी तरह से जानता था कि वो क्यों ऋतू से बात नहीं कर रहा था. उम्र के शारीरिक बदलाव के साथ ऋतू एक बहुत ही खुबसूरत लड़की बन गयी थी. इतनी खुबसूरत कि पूरा स्कूल उसका दीवाना हो रहा था. उसकी क्लास के लड़के अब ऋतू के बारे में ऐसी ऐसी बातें करते थे जिसे सुनकर संजू को बुरा लगता था. अब तो क्लास का सबसे बिगडैल सा लड़का राहुल भी ऋतू पे नज़र लगाये हुए था. कुछ दिन पहले ही राहुल सभी लडको के सामने डींगे मार रहा था कि कैसे ऋतू उसकी दीवानी हो रही है और कैसे ऋतू उसके प्यार में पागल हो रही है. संजू ने राहुल की बातों को अनसुना करने की कोशिश भी किया था पर पिछले कुछ दिनों से उसने राहुल और ऋतू को हँसते हुए साथ में बातें करते हुए देखा था. अब तो उसे भी यकीन होने लगा था कि ऋतू राहुल से प्यार करने लगी है.

पर संजू ने ये ध्यान नहीं दिया था कि ऋतू तो यूँ ही हंसमुख स्वभाव की थी. वो तो किसी से भी वैसे ही बातें करती. पर बाकी लड़के उसकी खूबसूरती के सामने उससे बात करने में थोडा संकोच करते थे. वही राहुल बिना घबराए उससे बात कर लेता और वो तो उसकी बातों का बस जवाब देती थी. पर दूर से देखने पर यूं लगता था जैसे राहुल और ऋतु के बीच कुछ चल रहा है. शायद इसी गलतफहमी की वजह से संजू को बुरा लगता था. वो तो इस सच से अनभिज्ञ था कि ऋतू का राहुल में कोई इंटरेस्ट नहीं है. पर इस उम्र में ये सब समझ कहाँ आता है? संजु को तो ये भी नहीं समझ आता था कि शायद ऋतु को राहुल के साथ देखकर उसे बुरा इसलिए लगता है क्योंकि उसे खुद ऋतु से प्यार है. उसके मन मे ये विचार आता तो था पर वो उसे कहीं किसी कोने मे दबा लेता था.

“तुझे क्या करना है? नहीं करना मुझे किसी से बात. तू जाकर किसी और लड़के से बात कर ले.”, संजू ने एक बार फिर गुस्से से कहा. उसका इशारा राहुल की तरफ था. उसके मन में राहुल और ऋतू की साथ की तस्वीर जो घूम रही थी. ऋतू उसकी दोस्त होते हुए आखिर राहुल के साथ? आखिर लडकियां भी न.. ऐसी ही होती है … अच्छे लडको की जगह बिगडैल लड़के ही पसंद करती है. वो मन ही मन सोच रहा था. संजू का विश्वास पक्का होता जा रहा था.

संजू की बात सुनकर ऋतू का चेहरा उदास हो गया. शायद वो रोने ही वाली थी. पर बिना कुछ कहे ही वो पलट कर दौड़ते हुए अपने घर के अन्दर चली गयी.

संजू ने उसे जाते हुए देखा तो उसे लगा कि कैसे ऋतू नखरे दिखाती हुई अपने जवान शरीर को दिखाती हुई जा रही थी. बेशर्म कहीं की. संजू के मन में विचार आया. पर बेचारी ऋतू तो सिर्फ उदास होकर गयी थी वहां से. उसमे भी संजू को बेशर्मी नज़र आ रही थी. ये उम्र ही ऐसी होती है. बेचारी ऋतू को तो पता भी नहीं था कि उसका ये खुबसूरत शरीर उसकी मर्ज़ी के बगैर ही लडको को कैसे कैसे सन्देश देता था. वो कुछ कहे या न कहे, करे या न करे, लोगो को लगता था कि वो अपने जवान शरीर को लेकर घमंड करने वाली लड़की है.


कुछ देर के बाद संजू भी उठकर घर के अन्दर आ गया. घर का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर वो ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ चला. उसे पता था कि एक बार उसने अपने कमरे में जाकर अपने कपडे बदल लिए तो फिर वो दोबारा कल स्कूल जाने के पहले घर से बाहर नहीं निकल सकेगा. और इसी चारदीवारी के अन्दर रहेगा. शायद इसलिए वो कुछ देर के लिए ही सही घर के बाहर अकेले बैठना चाहता था.

अपने कमरे में पहुच कर उसने अपनी शर्ट खोली और फिर उसी शर्ट के अन्दर छुपे हुए उसके लम्बे बाल अब दिखने लगे. हाँ, संजू के बाल बेहद लम्बे थे जो उसकी कमर तक आते थे. घने और रेशमी बाल.. इतने सुन्दर की कोई भी लड़की वैसे बालो के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. पर संजू उन्हें पोनीटेल बना कर छिपा के रखता था. फिर भी सबको पता तो था कि संजू के बाल लम्बे है. पर इतने आकर्षक और रेशमी घने है इसका किसी को अंदाज़ा नहीं था. संजू ने हमेशा की तरह अपनी पोनीटेल को कंधे की एक ओर किया और शर्ट के अन्दर पहनी हुई इनर को निकालने लगा. पर इनर के अन्दर उसने और भी कुछ पहना हुआ था. वो एक टाइट सी स्पोर्ट्स ब्रा थी. उस ब्रा को पहनकर उसे घुटन सी होती थी. फिर भी उसे पहनना उसकी मजबूरी थी. और फिर उसने जैसे ही उस स्पोर्ट्स ब्रा को उतारा तो उसके सपाट से दिखने वाले सीने पर अचानक ही भरे पूरे स्तन बाहर निकल आये. जैसे न जाने कब से वो स्तन भी स्पोर्ट्स ब्रा से निकल कर आज़ाद होना चाहते थे. उन स्तनों के निप्पल भी उभर कर बाहर आ गए थे… और कुछ दर्द कर रहे थे. संजू को उसकी माँ ने बताया था कि बचपन से ही संजू के अन्दर एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम था. इसलिए उसके शरीर में कुछ स्त्रियों जैसे बदलाव हो रहे थे. उसके इलाज के लिए ही उसकी माँ उसे सुबह शाम कुछ गोलियां खाने को देती थी. पर संजू को समझ आ रहा था कि उन गोलियों का उस पर असर नहीं हो रहा था. तभी तो उसके स्तन समय के साथ बढ़ते ही जा रहे थे. पता नहीं कब तक वो इन्हें दुनिया की नज़रो से छिपा कर रख सकेगा. उसके शरीर के एक एक्स्ट्रा X क्रोमोजोम का असर सिर्फ स्तनों तक नहीं था. जब उसने अपनी पेंट उतारी तो साफ़ झलकता था कि उसकी हिप में भी किसी सामान्य लड़के के मुकाबले कुछ ज्यादा उभार था. शायद इसलिए उसे लडको की अंडरवियर सही फिट नहीं आती थी. इसलिए उसे लड़कियों की पेंटी पहनना पड़ता था. और इस वक़्त संजू सिर्फ पेंटी पहना हुआ था. टाइट ब्रा से निकलकर उसे अब कुछ अच्छा लग रहा था.

अब समय था कि संजू अपने घर के कपडे पहने. उसने अपनी अलमारी की दराज खोला और उसमे से एक ब्रा निकाला. उसके पास ६-७ अलग अलग रंगों ब्रा थी और सभी पर फूल के प्रिंट बने हुए थे जो उसे बिलकुल पसंद नहीं आते थे. पर उसकी माँ ने उसके लिए यही सब ब्रा खरीदी थी, वो खुद दुकान जाकर ब्रा पसंद करने मे संकोच जो करता था, और आखिर स्वाभाविक भी था. आखिर कौनसा लड़का अपनी माँ के साथ ब्रा की दुकान जाकर ब्रा पसंद करता? पर संजू की माँ ने कहा था कि यही सब ब्रा उसके स्तनों को आराम देगी. और फिर वो अपने मुलायम झूलते हुए स्तनों पर एक पीली रंग की ब्रा चढाने लगा. जितनी आसानी से उसने ब्रा के हुक अपनी पीठ पर लगा लिए उससे लगता था कि संजू को इसकी आदत है. लम्बी पोनीटेल और ब्रा-पेंटी में संजू का शरीर किसी लड़की के शरीर से कम नहीं लगता था. भले संजू को फूल प्रिंट वाली ब्रा पसंद न हो पर उसके नर्म मुलायम स्तनों को ब्रा पहनकर ही आराम मिलता था.

अब फिर आईने के सामने खड़ा होकर संजू खुद को देखने लगा. और सोचने लगा कि कब दवाइयां उस पर असर करेगी और वो एक लड़के की तरह दिखने लगेगा. और फिर उसने अपनी अलमारी से एक सलवार सूट निकाला. संजू से उसकी माँ कहा करती थी कि जब तक वो ठीक नहीं हो जाता उसके लिए यही कपडे ठीक है. सलवार का पैजामा पहनने के बाद संजू ने ऊपर से ढीली सी कुर्ती पहना. जहाँ ऋतू की कुर्ती उसके शरीर के कर्व को पूरी तरह से निखारती थी वहीँ संजू की ढीली कुर्ती उसके शरीर के कर्व को जितना हो सके उतना छुपाती थी पर पूरी तरह नहीं.

संजू ने आईने के सामने अपने हाथो से अपनी कुर्ती को अपने हाथो से खिंच कर ज़रा टाइट करके देखा जैसे ऋतू की कुर्ती होती थी. ऐसा करने पर संजू के स्तन भी ऋतू की तरह ही एक आकर्षक फिगर दे रहे थे. शायद वो ऋतू की तरह ही हॉट लगता टाइट कुर्ती में. संजू खुद को आईने में वैसे देखते हुए सोचने लगा. और फिर उसके बाल तो ऋतू के बालो से भी लम्बे और ज्यादा आकर्षक थे. अब उसने अपनी पोनीटेल का रबर निकाल दिया था और उसके बाल पूरी तरह खुले हुए थे… सुन्दर… लम्बे … आकर्षक. और फिर वो अपने दोनों हाथो से अपने बालो को तीन भागो में बांटकर उसकी चोटी बनने लगा. संजू की माँ उसे समझाती थी कि वो चोटी बनाकर रखेगा तो उसके बाल झडेंगे नहीं और सुन्दर बने रहेंगे. चोटी बनाकर संजू अब पूरी तरह लड़की लग रहा था. और यही कारण था कि संजू घर आने के बाद घर की चारदीवारी में कैद रहने को मजबूर था. पिछले २ सालो में आये हुए उसके शरीर में बदलाव का राज उसके अलावा सिर्फ उसकी माँ जानती थी… और कोई नहीं. यहाँ तक कि ऋतू भी नहीं.

संजू अपनी सलवार कुर्ती के साथ दुपट्टा नहीं ओढ़ता था. क्योंकि वह यह कपडे सिर्फ सहूलियत के लिए पहनता था लड़की बनने के लिए नहीं. और फिर उसे लड़कियों की तरह अपनी काया दुसरे की नजरो से कम से कम घर के अन्दर छिपाने की ज़रुरत नहीं थी. इसलिए दुपट्टे को सँभालने के झंझट से वो दूर ही रहता था. और फिर संजू अपने कमरे में ही पढाई करने में जुट गया. घर में उसके पास वैसे भी और कुछ करने को नहीं था.


शाम का वक़्त हो गया था. और संजू अब भी कमरे में बैठ कर पढाई कर रहा था कि तभी उसकी माँ बेहद ख़ुशी के साथ वहां पहुंची. “संजू बेटा”, माँ ने कहा और प्यार से अपने बेटे के सर पर हाथ फेरने लगी.

“क्या हुआ माँ? बहुत खुश लग रही हो.”, संजू ने कहा.

“देख ये ब्लाउज मैंने तेरी साइज़ के लिए छोटा कर दिया है. एक बार ज़रा ट्राई करके देखना तो सही कि फिटिंग सही आ रही है.”, माँ बोली.

“माँ. इसे अभी करना ज़रूरी है क्या?”, संजू ने अपनी लम्बी चोटी को एक ओर कर वापस अपनी किताबो में घुसते हुए कहा.

“बेटा. देख ले एक बार. यदि सही फिटिंग रही तो बाकी के ब्लाउज भी ऐसे ही सिल दूँगी.”, माँ ने बड़ी हसरत के साथ कहा.

“ठीक है. माँ”, संजू ने कहा जैसे उसका कोई इंटरेस्ट न हो. फिर भी उसने माँ के हाथ से ब्लाउज लिया और अपनी कुर्ती उतारकर वो ब्लाउज पहनने लगा. उसे ये सब करते हुए और लड़कियों के कपडे पहनते हुए थोड़ी शर्म भी आती थी अपनी माँ के सामने पर शायद अब तक उसने अपनी स्थिति को स्वीकार कर लिया था. वो धीरे धीरे अपनी ब्रा के ऊपर ब्लाउज पहनकर ब्लाउज के हुक सामने की ओर एक एक कर लगाने लगा. एक एक हुक के साथ वो ब्लाउज जैसे उसके शरीर का हिस्सा बनता जा रहा था. ब्लाउज की कटोरियाँ उसके स्तनों पर बिलकुल सही फिट आ रही थी और जब सारे हुक लग गए ते तो उसका ब्लाउज उसके स्तनों के साथ बिलकुल एकाकार हो गया.

“अच्छा. बता कैसा लग रहा है पहन कर?”, माँ ने पूछा तो संजू ने इधर उधर पलटकर ब्लाउज को खुद पर देखा और कहा,”मुझे तो कम्फ़र्टेबल लग रहा है माँ.”

पर माँ की नज़र उसके ब्लाउज के आस्तीन पर पड़ी. “ये थोड़ी ढीली लग रही है.”, माँ ने संजू की आस्तीन के अन्दर दो उंगलियाँ डालते हुए बोली. “.. पर माँ.. थोड़ी ढीली आस्तीन तो सही है न? आरामदेह रहेगी”

“बेटा. ब्लाउज अच्छा तभी लगता है जब आस्तीन बिलकुल फिट आये. ढीली आस्तीन अच्छी नहीं दिखती है साड़ी के साथ.”, माँ ने अपने अनुभव से कहा.

और फिर माँ ने संजू की पीठ की ओर देखते हुए बोली, “मैं ज़रा ब्लाउज का गला बड़ा कर देती हूँ. इतना छोटा गला मेरी जैसी ओल्ड फैशनड औरतों पर ठीक लगता है. मेरी जवान बेटी के ब्लाउज में और मेरी ब्लाउज में कुछ तो फर्क होना चाहिए न?”

बेचारा संजू अपनी माँ की बात सुन शर्मा गया. और फिर झट से उसने अपना ब्लाउज उतारकर माँ को दे दिया और फिर कुर्ती पहन लिया.

“अच्छा. चल मैं ये सब ब्लाउज कल तक सिल दूँगी. अभी तो माँ बेटी ज़रा खाना खा लेती है.”, माँ ने संजू का हाथ पकड़कर हँसते हुए बोली.

“माँ. तुम भी न.”, संजू ने शर्माते हुए कहा. संजू भले लड़कियों के कपडे पहनता था पर कभी भी लड़कियों की तरह हाव-भाव करने की कोशिश नहीं करता था. फिर भी कभी कभी अपने आप उसके भाव लड़कियों की तरह हो जाते थे. और ये भी ऐसा ही कुछ समय था.

“अरे… मैं तो बेहद उत्साहित हूँ. कल जब तुझे साड़ी पहनाऊँगी तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी. पहली बार अपनी बेटी को साड़ी पहने देखूँगी न. मुझे यकीन नहीं होता कि मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गयी है.”, माँ अब संजू को छेड़ने लगी थी. संजू शर्मा ज़रूर रहा था पर ऐसी छेड़ छाड़ उसकी माँ उसके साथ करती ही रहती थी. और फिर दोनों चलकर किचन में खाना खाने आ गए थे.

क्रमश:

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